पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न-अभ्यास
प्रश्न 1.
कवि आत्मकथा लिखने से क्यों बचना चाहता है? [Imp.] [A.I. CBSE 2008 C; CBSE]
अथवा
कवि जयशंकर प्रसाद ने आत्मकथा ने लिखने के कौन-कौन से कारण गिनाए हैं? [केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2008]
उत्तर:
कवि ने ‘ श्रीब्रजदूलह’ शब्द का प्रयोग सुंदर साँवले नंद किशोर श्रीकृष्ण के लिए प्रयुक्त किया है। उन्हें संसार रूपी मंदिर का दीपक इसलिए कहा गया है क्योंकि जिस तरह मंदिर का दीपक सुंदर दिखने के साथ ही अपनी चमक के आलोक से मंदिर को आलोकित करता है उस प्रकार श्रीकृष्ण अपनी सुंदरता एवं उपस्थिति से संपूर्ण ब्रजभूमि में आनंद एवं आलोक बिखेर देते हैं।
प्रश्न 2.
आत्मकथा सुनाने के संदर्भ में ‘अभी समय भी नहीं’ कवि ऐसा क्यों कहता है? [CBSE]
उत्तर:
1. अनुप्रास अलंकार-
- ‘कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई’ (यहाँ ‘क’ वर्ण की आवृत्ति हुई है।)
- साँवरे अंग लसै पट-पीत (‘प’ की आवृत्ति हुई है।)
- ‘हिये हुलसै बनमाल सुहाई’ (यहाँ ‘ह’ वर्ण की आवृत्ति हुई है।)
2. रूपक अलंकार-
- हँसी मुखचंद जुन्हाई (मुख रूपी चंद्र।)
- जै जगमंदिर-दीपक सुंदर (जग रूपी मंदिर के दीपक ।)
प्रश्न 3.
स्मृति को ‘पाथेय’ बनाने से कवि का क्या आशय है? [Imp.] [CBSE 2008; CBSE]
उत्तर:
काव्य-सौंदर्य-इन पंक्तियों में श्रीकृष्ण के रूप सौंदर्य का मनोहर चित्रण है। श्रीकृष्ण के पैरों में पड़े नूपुर और कमर की करधनी में लगे हुँघरू मधुर ध्वनि उत्पन्न कर रहे हैं। उनके साँवले शरीर पर पीला वस्त्र और गले में वनफूलों की माला सुंदर लग रही है।
शिल्प सौंदर्य
भाषा – मधुर सरस ब्रजभाषा, जिसमें संगीतमयता का गुण है।
छंद – सवैया छंद है।
गुण – माधुर्य गुण है।
बिंब – दृश्य एवं श्रव्य बिंब साकार हो उठा है।
अलंकार – ‘कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई’, ‘पट पीत’ और ‘हिये हुलसै’ में अनुप्रास अलंकार है।
प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए
(क) मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया। आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
( ख ) जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में। अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
उत्तर:
प्रायः कवि बसंत ऋतु को उद्दीपन के रूप में प्रस्तुत करते हैं। फूलों का सौंदर्य, नव-प्रस्फुटित कोंपलें, मंद-मंद प्रवाहित समीर जहाँ हृदय में स्पंदन करते हैं उस परंपरा से हटकर कवि देव ने स्नेह के प्रतीक शिशु रूप में बसंत की कल्पना की है जो स्वयं कामदेव का पुत्र है। पुत्र बसंत के लिए डालियों का पालना, नव-पल्लवों का बिछौना, तोते-मोर का शिशु से बातें करना, कोयल के द्वारा शिशु को प्रसन्न करने का प्रयास करना, नायिका द्वारा शिशु की नज़र उतारना, गुलाब के द्वारा प्रातः चुटकी बजाकर जगाना आदि रूप अन्य-कवियों की सोच का परिष्कृत रूप है।
यहाँ नायक-नायिका के हृदय-स्पंदन में उद्दीपन न होकर अपने शिशु के प्रति स्नेह के लिए आतुर दिखाई देता है।
प्रश्न 5.
‘उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की’ कथन के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है? [Imp.][CBSE]
उत्तर:
‘प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै’ – पंक्ति का भाव यह है कि प्रात:काल गुलाब की कलियाँ चटकती हैं और खिलकर फूल बन जाती हैं। इन कलियों के चटकने की आवाज सुनकर ऐसा लगता है मानो बालक वसंत को जगाने के लिए गुलाब चुटकी बजा रहा है।
प्रश्न 6.
‘आत्मकथ्य’ कविता की काव्यभाषा की विशेषताएँ उदाहरण सहित लिखिए।
अथवा
अथवा ‘आत्मकथ्य’ कविता की भाषा पर प्रकाश डालिए।[CBSE]
उत्तर:
कवि ने चाँदनी-रात की सुंदरता को निम्न रूपों में देखा है-
- स्फटिक शिलाओं से निर्मित सुधा-मंदिर रूप में देखा है।
- चारों ओर फैलती चाँदनी को दधि रूप-समुद्र की तरह देखा है जो चारों ओर से उमड़ पड़ रही है।
- आँगन में उमड़ते हुए दूध के झाग के रूप में देखा है।
- चाँदनी को नायिका के रूप में देखा है जो तारों से सुसज्जित है।
अंबर रूपी-दर्पण के रूप में चाँदनी को देखा है।
प्रश्न 7.
कवि ने जो सुख का स्वप्न देखा था उसे कविता में किस रूप में अभिव्यक्त किया है?
उत्तर:
‘प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद’ का भाव यह है कि चाँदनी रात में आसमान स्वच्छ-साफ़ दर्पण के समान दिखाई दे रहा है। स्वच्छ आसमान रूपी दर्पण में चमकता चंद्रमा धरती पर खड़ी राधा का प्रतिबिंब प्रतीत हो रहा है। यहाँ चंद्रमा की तुलना राधा के प्रतिबिंब से की गई है।
इस पंक्ति में चाँद की तुलना राधा के प्रतिबिंब से करके परंपरागत उपमान को उपमेय से हीन बताया गया है। परंपरा के विपरीत ऐसा करने से यहाँ ‘व्यतिरेक अलंकार’ है।
प्रश्न 8.
इस कविता के माध्यम से प्रसाद जी के व्यक्तित्व की जो झलक मिलती है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
कवि देव ने उक्त कवित्त में निम्न उपमानों का प्रयोग किया है
- स्फटिक शिला
- सुधा-मंदिर
- उदधि-दधि
- दूध के से फेन
- तारों से
- आरसी से।
प्रश्न 9.
आप किन व्यक्तियों की आत्मकथा पढ़ना चाहेंगे और क्यों?
उत्तर:
पठित कविताओं के आधार पर देव की निम्नलिखित काव्यगत विशेषताएँ दिखाई देती हैं
भाव-सौंदर्य-
कवि देव ने अपनी कविताओं में सामंती वैभव-विलास एवं रूप सौंदर्य का चित्र खींचा है। वे श्रीकृष्ण को । संसार रूपी मंदिर का प्रकाशमान दीपक और ब्रज के दूलह के रूप में चित्रित करते हैं। प्रकृति वर्णन में सिद्धहस्त देव ने नवीन कल्पना एवं मौलिकता का समावेश करते हुए प्रकृति के सौंदर्य का मनोहारी चित्र खींचा है।