NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

  पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का जो अंश आपको सबसे अच्छा लगा उसे अपने शब्दों में संवाद शैली में लिखिए।
उत्तर:
लक्ष्मण-परशुराम जी! हमने बचपन में ऐसे-ऐसे कितने धनुष तोड़ डाले। आपने तब तो क्रोध नहीं किया। फिर इस पर इतनी ममता क्यों?
परशुराम-अरे राजकुमार! लगता है तेरी मौत आई है। तभी तो तू सँभलकर बोल नहीं पा रहा। तू शिव-धनुष को आम धनुष के समान समझ रहा है।
लक्ष्मण-हमने तो यही जाना था कि धनुष-धनुष एक-समान होते हैं। फिर राम ने तो इस पुराने धनुष को छुआ भर था कि यह दो टुकड़े हो गया। इसमें राम का क्या दोष? | परशुराम-अरे मूर्ख बालक! लगता है तू मेरे उग्र स्वभाव को नहीं जानता। मैं तुझे बच्चा समझकर छोड़ रहा हूँ। तू क्या मुझे कोरा मुनि समझता है। मैं बाल ब्रह्मचारी हूँ। मैंने कई बार पृथ्वी के सारे राजाओं का संहार किया है। मैंने सहस्रबाहु की भी भुजाएँ काट डाली थीं। मेरा फरसा इतना कठोर है कि इसके डर से गर्भ के बच्चे भी गिर जाते हैं।

लक्ष्मण-वाह मुनि जी! आप तो बहुत बड़े योद्धा हैं। आप बार-बार मुझे कुठार दिखाकर डराना चाहते हैं। आपका बस चले तो फैंक मारकर पहाड़ को उड़ा दें। मैं भी कोई छुईमुई का फूल नहीं हूँ जो तर्जनी देखने-भर से मर जाऊँ। मैं तो आपको ब्राह्मण समझकर चुप रह गया। हमारे वंश में गाय, ब्राह्मण, देवता और भक्तों पर वीरता नहीं दिखाई जाती। फिर आपके तो वचन ही करोड़ों वज्रों से अधिक घातक हैं। आपने शस्त्र तो व्यर्थ ही धारण कर रखे हैं।
परशुराम-विश्वामित्र! यह बालक तो बहुत मूर्ख, कुलनाशक, निरंकुश और कुलकलंक है। मैं तुम्हें कह रहा हूँ कि इसे रोक लो। इसे मेरे प्रताप और प्रभाव के बारे में बताओ। वरना यह मारा जाएगा।

लक्ष्मण-मुनि जी! आपके यश को आपके सिवा और कौन कह सकता है। आप पहले भी अपने बारे में बहुत प्रकार से बहुत कुछ कह चुके हैं। कुछ और रह गया हो तो वह भी कह लीजिए। वैसे सच्चे शूरवीर युद्ध भूमि में अपना गुणगान नहीं करते, वीरता दिखाते हैं।

प्रश्न 2.
परशुराम ने अपने विषय में सभी में क्या-क्या कहा, निम्न पद्यांश के आधार पर लिखिए बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।। भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।। सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर। गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर।।
अथवा
‘राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ में परशुराम ने अपने विषय में जो कहा, उसे अपने शब्दों में लिखिए। [A.I. CBSE 2008 C]
उत्तर:
परशुराम ने अपने बारे में कहा-“मैं बाल ब्रह्मचारी हूँ। स्वभाव से बहुत क्रोधी हूँ। सारा संसार जानता है कि मैं क्षत्रियों के कुल का शत्रु हूँ। मैंने अनेक बार अपनी भुजाओं के बल पर धरती के सारे राजा मार डाले हैं और यह पृथ्वी ब्राह्मणों को दान दी है। मेरा फरसा बहुत भयानक है। इसने सहस्रबाहु जैसे राजा को मार डाला था। इसे देखकर गर्भिणी स्त्रियों के गर्भ गिर जाते हैं।”

प्रश्न 3.
लक्ष्मण ने वीर योद्धा की क्या-क्या विशेषताएँ बताई? [Imp.] [CBSE; A.I. CBSE 2008 C]
अथवा
राम-परशुराम-लक्ष्मण संवाद के आधार पर संक्षेप में लिखिए कि परशुराम की क्रोधपूर्ण बातें सुनकर लक्ष्मण ने उन्हें शूरवीर की क्या पहचान बताई? [CBSE 2008]
उत्तर:
लक्ष्मण ने वीर योद्धा के बारे में बताया कि सच्चा वीर रणभूमि में वीरता दिखलाता है, अपना गुणगान नहीं करता सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।

प्रश्न 4.
साहस और शक्ति के साथ विनम्रता हो तो बेहतर हैं। इस कथन पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
यह बात सत्य है कि साहस और शक्ति तभी तक अच्छे लगते हैं, जब तक कि साहसी व्यक्ति विनम्र रहे। जैसे ही शक्तिशाली व्यक्ति उदंडता करता है, या घमंड दिखाता है, या बढ़-चढ़कर बोलता है, वह बुरा लगने लगता है। परशुराम और लक्ष्मण दोनों के उदाहरण सामने हैं। परशुराम पराक्रमी हैं, किंतु उसका स्वयं को महापराक्रमी, बाल-ब्रह्मचारी, क्षत्रियकुल घातक कहना बुरा लगता है। जैसे-जैसे वह अपने कुठार को सुधारता है और वचन कड़े करता चला जाता है, वैसे-वैसे वह हँसी का पात्र बनता चला जाता है।

लक्ष्मण का साहस हमें भला लगता है। परंतु वह भी सीमाएँ तोड़ देता है। धीरे-धीरे वह बहुत उग्र, कठोर और उद्देड हो जाता है। इस कारण सभी सभाजन उसके विरुद्ध हो जाते हैं। लक्ष्मण की उदंड शक्ति हमें खटकने लगती है। दूसरी ओर, रामचंद्र साहस और शक्ति के साथ विनम्रता का भी परिचय देते हैं। इसलिए वे सबका हृदय जीत लेते हैं।

प्रश्न 5.
भाव स्पष्ट कीजिए
(क) बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।। पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन पूँकि पहारू।
उत्तर:
लक्ष्मण हँसकर कोमल वाणी में बड़बोले परशुराम से बोले-अहो मुनिवर! आप तो माने हुए महायोद्धा निकले। आप मुझे बार-बार अपना कुल्हाड़ा इस प्रकार दिखा रहे हैं मानो फैंक मारकर पहाड़ उड़ा देंगे। आशय यह है कि परशुराम का गरज-गरजकर अपनी वीरता का गुणगान करना व्यर्थ है। उनकी वीरता खोखली है। उसमें कोई सच्चाई नहीं।

(ख) इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं।।
देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
उत्तर:
लक्ष्मण ने परशुराम के वीर-वेश का मजाक उड़ाते हुए कहा-मुनि जी! यदि आप भी वीर योद्धा हैं तो हम भी कोई छुईमुई के फूल नहीं हैं जो तर्जनी देखते ही मुरझा जाएँगे। हम आपसे टक्कर लेंगे; और सच कहूँ! मैंने आपके हाथ में धनुष-बाण देखा तो लगा कि सामने कोई ढंग का योद्धा आया है। उससे दो-दो हाथ करूं। इसीलिए मैंने आपके सामने कुछ अभिमानपूर्वक बातें कही थीं। मुझे पता होता कि आप कोरे मुनि-ज्ञानी हैं तो मैं भला आपसे क्यों भिड़ता। आशय यह है कि परशुराम मुनि-ज्ञानी हैं। उनका वीर-वेश ढोंग है।
(ग) गाधिसूनु कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।
उत्तर:
विश्वामित्र ने परशुराम के बड़बोले वचन सुने। परशुराम ने बार-बार कहा कि मैं पल-भर में लक्ष्मण को मार डालूंगा। इन वचनों को सुनकर विश्वामित्र मन-ही-मन हँसे। सोचने लगे कि परशुराम को हरा-ही-हरा सूझ रहा है। वे लक्ष्मण को गन्ने से बनी खाँड़ के समान समझ रहे हैं कि उसे एक ही बार में नष्ट कर डालेंगे। वे अज्ञानी यह नहीं जानते कि लक्ष्मण लोहे से बना खाँड़ा है जिससे संघर्ष मोल लेना आसान नहीं है।

प्रश्न 6.
पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा सौंदर्य पर दस पंक्तियाँ लिखिए।
उत्तर:
तुलसी रससिद्ध कवि हैं। उनकी काव्य-भाषा रस की खान है। रामचरितमानस में उन्होंने अवधी भाषा का प्रयोग किया है। इसमें चौपाई-दोहा शैली को अपनाया गया है। दोनों छंद गेय हैं। तुलसी की प्रत्येक चौपाई संगीत के सुर में ढली हुई जान पड़ती है। उन्होंने संस्कृत शब्दों को विशेष रूप से कोमल और संगीतमय बनाने का प्रयास किया है। भाषा को कोमल बनाने के लिए उन्होंने कठोर वर्गों की जगह कोमल ध्वनियों का प्रयोग किया है। जैसे–’श’ की जगह ‘स’, ‘ण’ की जगह ‘न’, ‘क्ष’ की जगह ‘छ’, ‘य’ की जगह ‘इ’ आदि। जैसे-• नाथ संभुधनु भंजनिहारा।
गुरुहि उरिन होतेउँ श्रम थोरे। इस काव्यांश में उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक, पुनरुक्ति प्रकाश और अनुप्रास आदि अलंकारों का कुशलतापूर्वक प्रयोग हुआ है। कुछ उदरण देखिए
उपमा-लखन उतर आहुति सम। उत्प्रेक्षा-तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा। रूपक-भानुबंस राकेस कलंकू।। अनुप्रास-न तो येहि काटि कुठार कठोरे।
इस काव्यांश में वीर तथा हास्य रस की भी सुंदर अभिव्यक्ति हुई है। मुहावरों और सूक्तियों के साथ-साथ वक्रोक्तियों का प्रयोग भी मनोरम बन पड़ा है। सूक्ति का एक उदाहरण देखिए
सेवकु सो जो करै सेवकाई।। वक्रोक्ति-अहो मुनीसु महाभट मानी।। इस प्रकार यह काव्यांश भाषा की दृष्टि से अत्यंत मनोरम है।

प्रश्न 7.
इस पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य है। उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘परशुराम-लक्ष्मण : संवाद’ मूल रूप से व्यंग्य का काव्य है। व्यंग्य के सूत्रधार हैं-वीर एवं वाक्पटु लक्ष्मण। उनके सामने ऐसा योद्धा है जिस पर धनुष-बाण नहीं चलाया जा सकता। परशुराम बूढे हैं, मुनि हैं, ब्राह्मण हैं; किंतु बहुत डिगियल और बड़बोले हैं। इस कारण लक्ष्मण भी उन पर बातों के तीर चलाते हैं। परशुराम जितनी पोल बनाते हैं, लक्ष्मण वह पोल खोल देते हैं। वे परशुराम की खोखली वीरता की धज्जियाँ उड़ा देते हैं। | परशुराम शिव-धनुष तोड़ने वाले का संहार करने की घोषणा करते हैं। लक्ष्मण कहते हैं-हमने तो बचपन में ऐसे कितने ही धनुष तोड़ रखे हैं। परशुराम कहते हैं-शिव-धनुष कोई ऐसा-वैसा धनुष नहीं था। लक्ष्मण कहते हैं-हमारी नजरों में सब धनुष एक-से होते हैं। परशुराम स्वयं को बाल-ब्रह्मचारी, क्षत्रिय-कुल द्रोही, सहस्रबाहु संहारक कहते हैं। लक्ष्मण व्यंग्य करते हैं-वाह! मुनि जी तो सचमुच महायोद्धा हैं। वे फैंक से ही पहाड़ उड़ा देना चाहते हैं। परंतु यहाँ भी कोई छुईमुई के फूल नहीं हैं। परशुराम विश्वामित्र को कहते हैं कि वे लक्ष्मण को उसकी महिमा का वर्णन करें, वरना यह मारा जाएगा। तब लक्ष्मण व्यंग्य करते हैं-मुनि जी! आपसे बढ़कर आपकी महिमा और कौन बता सकता है। अपने गुण बताते-बताते आपका पेट अभी न भरा हो तो और कह लो। फिर सच्चे वीर युद्ध क्षेत्र में वीरता दिखाते हैं, बातें नहीं बताते। परशुराम क्रोध में आकर विश्वामित्र को कहते हैं कि मैं अभी इसे मारकर गुरु-ऋण से उऋण होता हैं। इस पर लक्ष्मण चोट करते हुए कहते हैं-हाँ हाँ, माता-पिता का ऋण तो आप उतार चुके। अब गुरु-ऋण भारी पड़ रहा है। लंबे समय से न चुका पाने के कारण ब्याज भी बढ़ गया होगा। लाओ, कोई हिसाब-किताब करने वाला बुलाओ। मैं अभी अपनी थैली खोलकर ऋण चुकाता हूँ। इस प्रकार यह अंश व्यंग्य से भरपूर है। तुलसी ने सच ही कहा है
लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोपु कृसानु।। परशुराम यदि आग हैं तो लक्ष्मण के वचन घी की तरह काम करते हैं।

प्रश्न 8.
निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचान कर लिखिए
(क) बालकु बोलि बधौं नहि तोही।
उत्तर:
‘ब’ की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है। ‘ह’ की भी आवृत्ति है।
( ख ) कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा।
उत्तर:
उपमा-कोटि कुलिश (वज्र) के समान वचन। अनुप्रास-कोटि कुलिस।
(ग) तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।
उत्तर:
उत्प्रेक्षा-तुम मानो काल को हाँक कर ला रहे हो। पुनरुक्ति प्रकाश-बार-बार।
(घ) लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोपु कृसानु।
बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।
उत्तर:
उपमा-लखन उतर आहुति सरिस (लक्ष्मण के उत्तर आहुति के समान थे)
जल सम बचन (वचन जल के समान थे)
रूपक-भृगुबर कोप कृसानु (क्रोध रूपी आग) रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 9.
“सामाजिक जीवन में क्रोध की ज़रूरत बराबर पड़ती है। यदि क्रोध न हो तो मनुष्य दूसरे के द्वारा पहुँचाए जाने वाले बहुत से कष्टों की चिर-निवृत्ति का उपाय ही न कर सके।” ।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का यह कथन इस बात की पुष्टि करता है कि क्रोध हमेशा नकारात्मक भाव लिए नहीं होता बल्कि कभी-कभी सकारात्मक भी होता है। इसके पक्ष या विपक्ष में अपना मत प्रकट कीजिए।
उत्तर:
पक्ष में विचार-क्रोध केवल नकारात्मक भाव नहीं है। वह भी निर्माण के काम आता है। जैसे हथौड़ा और बुलडोजर केवल भवन तोड़ने का ही काम नहीं करते, बल्कि वे भवन बनाने में सहयोग करते हैं। उसी भाँति क्रोध बुरी बातों को दूर करने में हमारी सहायता करता है। यदि दुर्योधन द्रौपदी के वस्त्र खींचती रहे और लोग बिना क्रोध किए देखते रहें तो फिर न्याय की रक्षा कैसे होगी? यदि कोई गुंडा आपके घर आकर गालियाँ बकता रहे और आप शांत बने रहें तो गुंडा चुप कैसे होगा? यदि परशुराम बढ़-चढ़कर बकझक करते रहें और लक्ष्मण का सिर उतारने को तैयार हो जाएँ तो फिर उन्हें कौन रोकेगा? इसका एक ही उत्तर है-क्रोध। ऐसे समय में क्रोध रक्षक की भूमिका निभाता है। वह स्वभाव से क्षत्रिय है, सिपाही है।
। विपक्ष में विचार-क्रोध चांडाल है। यदि एक चांडाल के विरुद्ध अपना चांडाल खड़ा कर दिया जाए तो, भी चांडाल रहेगा तो चांडाल ही। क्रोध ध्वंस का काम तो कर सकता है, किंतु निर्माण नहीं कर सकता। इस पाठ को ही देख लें। लक्ष्मण के क्रोध ने परशुराम के बड़बोलेपन की फैंक तो निकाल दी किंतु स्वयं फेंक में आ गया। वह परशुराम को इतना अधिक भड़का गया कि कुछ भी विध्वंस हो सकता था। अतः क्रोध से बचना चाहिए।

प्रश्न 10.
संकलित अंश में राम का व्यवहार विनयपूर्ण और संयत है, लक्ष्मण लगातार व्यंग्य बाणों का उपयोग करते हैं और परशुराम का व्यवहार क्रोध से भरा हुआ है। आप अपने आपको इस परिस्थिति में रखकर लिखें कि आपका व्यवहार कैसा होता।
उत्तर:
मेरा व्यवहार लक्ष्मण और राम के बीच का होता। मैं लक्ष्मण की भाँति परशुराम के बड़बोलेपन की हवा तो निकालता किंतु बदले में उसका अपमान न करता। मैं उसी की तरह ज़ोर-जोर से बोलकर उसे परिस्थिति समझने के लिए कहता। यदि वे सुनने के लिए तैयार हो जाते तो फिर विनय का प्रदर्शन करता। आखिर वे हैं तो बड़े, बूढ़े, मुनि और सम्माननीय।

प्रश्न 11.
दूसरों की क्षमताओं को कम नहीं समझना चाहिए-इस शीर्षक को ध्यान में रखते हुए एक कहानी लिखिए।
उत्तर:
एक खरगोश खुद को बहुत तेज और कछुए को बहुत धीमा समझता था। इसी घमंड में उसने उसे दौड़ की चुनौती दे दी। कछुआ हँसते-हँसते मान गया और दौड़ में शामिल हो गया। खरगोश ने एक छपाका मारा और आधा रास्ता पार कर लिया। अब शरारतवश सोचने लगा–बाकी रास्ता तो मैं सुस्ता कर भी पार कर लूंगा। यह सोचकर वह सचमुच सुस्ताने लगा। परंतु उसे नींद आ गई। इधर कछुआ धीमे-धीमे चलता रहा और लक्ष्य तक पहुँच गया। खरगोश जागा तो बहुत देर हो चुकी थी। तब उसे अहसास हुआ कि किसी को भी कम नहीं आँकना चाहिए।

प्रश्न 12.
उन घटनाओं को याद करके लिखिए जब आपने अन्याय का प्रतिकार किया हो।
उत्तर:
मुझे याद है। मैं पूरे नगर की दौड़ प्रतियोगिता में प्रथम आया। खेल-विभाग के अधिकारी ने मुझे कहा-अगर तुम प्रांतीय प्रतियोगिता में भाग लेना चाहते हो तो मुझे एक हजार रुपये ला देना, वरना दूसरे का नाम आगे भेज दूंगा।
मैंने उस अधिकारी की शिकायत अपने जिलाधीश को कर दी। परिणाम यह हुआ कि मुझे अवसर मिला और मैंने प्रांतीय प्रतियोगिता जीती। उस अधिकारी को खूब खरी-खोटी सुननी पड़ी।

प्रश्न 13.
अवधी भाषा आज किन-किन क्षेत्रों में बोली जाती है?
उत्तर:
अवधी भाषा आजकल लखनऊ, इलाहाबाद, फैजाबाद, मिर्जापुर, जौनपुर, फतेहपुर और आस-पास के क्षेत्रों में बोली जाती है।

पाठेतर सक्रियता

प्रश्न
तुलसी की अन्य रचनाएँ पुस्तकालय से लेकर पढ़ें।
उत्तर:
छात्र पढे–विनय-पत्रिका, कवितावली, जानकी-मंगल, पार्वती-मंगल।

प्रश्न
कभी आपको पारंपरिक रामलीला अथवा रामकथा की नाट्य प्रस्तुति देखने का अवसर मिला होगा उस अनुभव को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
मुझे बचपन में अनेक बार रामलीला देखने का अवसर मिला। मुझे सबसे अधिक मार्मिक प्रसंग लगा-लक्ष्मण-मूछ का। श्री राम जब छोटे भाई लक्ष्मण को मूर्छित देखते हैं तो भावुक हो उठते हैं। उनकी आँखों से अश्रुधारा बहने लगती हैं। तब हनुमान सुषेण नामक वैद्य को अपने कंधों पर उठा लाते हैं। सुषेण के कहने पर हनुमान हिमालय जाकर संजीवनी बूटी ले आते हैं। इस अवसर पर राम की अधीरता, विलाप और हनुमान के आने पर खुशी देखकर मैं भावमुग्ध हो जाता हूँ। करुणा भरा यह प्रसंग मुझसे आज भी भुलाए नहीं भूलता।।

प्रश्न
कोही, कुलिस, उरिन, नेवारे-इन शब्दों के बारे में शब्दकोश में दी गई विभिन्न जानकारियाँ प्राप्त कीजिए।
उत्तर:
कोही-विशेषण, काव्य में प्रयुक्त शब्द, ‘क्रोधी’ का एक बोली-रूप।।
कुलिस-कुलिश का एक रूप, काव्य में प्रयुक्त शब्द, अर्थ-वज्र, पुल्लिग। उरिन-काव्य में प्रयुक्त शब्द, उऋण का बदला हुआ रूप, विशेषण। नेवारे-काव्य में प्रयुक्त शब्द, स. क्रिया, दूर करना।

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