पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न-अभ्यास
प्रश्न 1.
आपके विचार से माँ ने ऐसा क्यों कहा कि लड़की होना पर लड़की जैसी मत दिखाई देना? [ केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2008]
अथवा
ऋतुराज की ‘कन्यादान’ कविता के आधार पर बताइए कि आपके विचार से माँ ने ऐसा क्यों कहा-‘लड़की होना, पर लड़की जैसी दिखाई मत देना।’ [CBSE 2008] |
उत्तर:
माँ चाहती है कि उसकी लडकी स्वभाव से सरल, भोली और कोमल बनी रहे। वह दुनियादारों जैसी स्वार्थी, चालाक और झगड़ालू न बने। परंतु साथ ही वह उसे शोषण से भी बचाना चाहती है। वह चाहती है कि उसके ससुराल वाले उसकी सरलता का गलत फायदा न उठाएँ, उस पर अत्याचार न करें। इसलिए वह कहती है कि उसकी लड़की लड़की तो बने किंतु लड़की जैसी दिखाई न दे।
प्रश्न 2.
‘आग रोटियाँ सेंकने के लिए है।
जलने के लिए नहीं’
(क) इन पंक्तियों में समाज में स्त्री की किस स्थिति की ओर संकेत किया गया है?
(ख) माँ ने बेटी को सचेत करना क्यों ज़रूरी समझा?
उत्तर:
(क) इन पंक्तियों में समाज में स्त्री की दशा के बारे में दो बातें बताई गई हैं
- वह ससुराल में घर-गृहस्थी का काम सँभालती है। घर-भर के लिए रोटियाँ पकाती है।
- काम में खटने के बावजूद उस पर अत्याचार किए जाते हैं। कई बार उसे जला डाला जाता है।
(ख) माँ ने बेटी को सचेत करना जरूरी इसलिए समझा क्योंकि सभी लड़कियाँ शादी के समय खुशहाली के सपने देखती हैं। परंतु वे सभी सपने झूठे सिद्ध होते हैं। वास्तव में बहुओं को प्यार के नाम पर घर-गृहस्थी के कठोर बंधनों में बाँधा जाता है। यदि वह इससे इनकार करे तो उसे जला भी दिया जाता है। परंतु विवाह के समय भोली कन्या को इस दुर्दशा का अहसास नहीं होता। इसलिए वह उससे बचने का कोई उपाय भी नहीं करती।
प्रश्न 3.
‘पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की ।
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की इन पंक्तियों को पढ़कर लड़की की जो छवि आपके सामने उभरकर आ रही है उसे शब्दबद्ध कीजिए।
उत्तर:
इन पंक्तियों को पढ़कर हमारे मन में एक ऐसी लड़की की छवि उभरती है जो विवाह के काल्पनिक सुखों में मग्न है। वह सोच रही है कि वह सज-धजकर ससुराल में जाएगी। उसके पति उस पर रीझेंगे, उसे प्यार करेंगे। सास-ससुर और अन्य मित्र-बंधु उसे पलकों पर बिठा लेंगे। वह नाज-नखरों से रहेगी। सब लोग उसकी प्रशंसा करेंगे तो वह कितनी सुखी
होगी। जब वह नए-नए कपड़े और गहने पहनेगी तो सबकी आँखों में प्रशंसा का भाव होगा। इस प्रकार ससुराल में उसका जीवन मधुर होगा, संगीतमय होगा। उसे घर-गृहस्थी के सारे काम निपटाने पड़ेंगे, चूल्हा-चौका करना पड़ेगा इसकी तो वह कल्पना भी नहीं करती।
प्रश्न 4.
माँ को अपनी बेटी ‘अंतिम पूँजी’ क्यों लग रही थी? [Imp.] [CBSE 2012]
उत्तर:
माँ अपने सुख-दुख को, विशेषकर नारी-जीवन के दुखों को अपनी माँ, बहन या बेटी के साथ बाँट सकती है। शादी से पहले माँ और बहनें उसकी पूँजी थीं। वह उनके साथ बातें कर सकती थी, सलाह ले-दे सकती थी। परंतु अब उसके पास बेटी ही एक मात्र पूँजी है। कन्यादान के बाद वह भी ससुराल चली जाएगी तो वह बिल्कुल अकेली रह जाएगी।
प्रश्न 5.
माँ ने बेटी को क्या-क्या सीख दी? [Imp.][CBSE2012; A.I. CBSE 2008; A.I. CBSE 2008 C]
उत्तर:
माँ ने बेटी को निम्नलिखित सीख दी
- कभी अपनी सुंदरता और उसकी प्रशंसा पर न रीझना।
- घर-गृहस्थी के सामान्य कार्य तो करना, किंतु अत्याचार न सहना।
- कपड़ों और गहनों के बदले अपनी आज़ादी न बेचना, अपना व्यक्तित्व न खोना।
- अपनी सरलता और भोलेपन को इस तरह प्रकट न करना कि लोग उसका गलत ढंग से लाभ उठाएँ।
रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न 6.
आपकी दृष्टि में कन्या के साथ दान की बात करना कहाँ तक उचित है?
अथवा
‘कन्यादान’ शब्द द्वारा वर्तमान समय में कन्या के दान की बात करना कहाँ तक उचित है? [CBSE 2012, 2008]
उत्तर:
कन्या के साथ ‘दान करना’ शब्द-प्रयोग सम्मान-बोधक नहीं है। इससे प्रतीत होता है कि मानो कन्या कोई वस्तु है जिसे दान किया जा सकता है। मानो कन्या बेजान है, व्यक्तित्वहीन है। उसकी अपनी कोई इच्छा ही नहीं है। इस शब्द-प्रयोग। से ऐसा भी लगता है मानो कन्यादान करने के बाद कन्या के माता-पिता के साथ उसका कोई संबंध न रहा हो। वह पराई हो गई हो। इस प्रकार ये रोनों ही अर्थ अनुचित हैं।।
कन्यादान का दूसरा पक्ष भी है। भारत में दान की बड़ी महिमा है। दान वही श्रेष्ठ माना जाता है, जो दिया जाने योग्य हो, जो मूल्यवान और श्रेष्ठ हो। इसके लिए दान का योग्य पात्र भी देखा जाता है। किसी योग्य पात्र को दी जाने वाली वस्तु दान करने से दानदाता स्वयं को धन्य मानता है। इस दृष्टि से कन्यादान मनुष्य द्वारा दिया गया श्रेष्ठतम दान माना जाता है। जब व्यक्ति श्रेष्ठ संस्कारों से पाली गई अपनी कन्या को उसके ससुराल वालों को सौंपता है तो वह धन्य हो जाता है। वहाँ कन्यादान करना सर्वोत्तम माना जाता है।
पाठेतर सक्रियता
प्रश्न
‘स्त्री को सौंदर्य का प्रतिमान बना दिया जाना ही उसका बंधन बन जाता है-इस विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर:
यह बात सच है कि स्त्री की सुंदरता को महत्त्व देकर उसे बंधन में बाँधा जाता है। यदि किसी नारी को वश में करना है तो उसकी प्रशंसा करो। विशेष रूप से, उसकी सुंदरता की प्रशंसा करो। वह मुग्ध हो जाएगी। वह न चाहते हुए भी मर मिटेगी। इसलिए फिल्मों में सारे नायक नायिकाओं के रूप-सौंदर्य के दीवाने हुए फिरते हैं। हम देखते हैं कि अपनी प्रशंसा सुनकर लड़कियाँ दीवानी हो जाती हैं। जब वे सौंदर्य-जाल में फँस जाती हैं तो वही नायक कठोर पति बनकर उनसे हर प्रिय-अप्रिय काम करवाते हैं। तब नायिका को बोध होता है कि उसका सौंदर्य-वर्णन मात्र एक छलावा था। वास्तव में तो वह एक सामान्य नारी है। जो नारी इतना भी नहीं समझ पाती, वह जीवन-भर सजती-सँवरती रहती है और समाज की प्रशंसा पाने के लिए अपने व्यक्तित्व को खो देती है। इसके विपरीत जो नारियाँ अपनी इस कमज़ोरी को समझ लेती हैं, वे पुरुषों के बहकावे में नहीं आतीं। वे शारीरिक सौंदर्य की परिधि को पार करके अपने मन और आत्मा की तृप्ति के लिए जीती हैं। वे शिक्षा, व्यवसाय या अध्यात्म के क्षेत्र में नाम कमा जाती हैं।
प्रश्न
यहाँ अफगानी कवयित्री मीना किश्वर कमाल की कविता की कुछ पंक्तियाँ दी जा रही हैं। क्या आपको कन्यादान कविता से इसका कोई संबंध दिखाई देता है?
मैं लौटॅगी नहीं।
मैं एक जगी हुई स्त्री हूँ।
मैंने अपनी राह देख ली है।
अब मैं लौटुंगी नहीं |
मैंने ज्ञान के बंद दरवाजे खोल दिए हैं।
सोने के गहने तोड़कर फेंक दिए हैं।
भाइयो! मैं अब वह नहीं हूँ
जो पहले थी मैं एक जगी हुई स्त्री हूँ।
मैंने अपनी राह देख ली है।
अब मैं लौटूगी नहीं
उत्तर:
इस कविता का सीधा संबंध कन्यादान नामक कविता से है। कन्यादान की कन्या भोली है। वह सौंदर्य के जाल में बँधी हुई है। वह अपनी गुलामी के कारणों से अनजान है। इसलिए अबोध है। वह नहीं जानती कि सोने के आभूषण उसे पुरुष का गुलाम बनाते हैं।
‘मैं लौटॅगी नहीं’ की कन्या जागरूक हो उठी है। उसने जान लिया है कि सोने की जंजीरें उसके लिए बंधन हैं। इसलिए उसने सब गहने तोड़ डाले हैं। उसने अपनी कमजोरी को, अपने लक्ष्य को तथा दिशा को समझ लिया है। इस प्रकार ‘मैं लौटॅगी नहीं’ की कन्या कन्यादान’ की कन्या का जाग्रत रूप है।