पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न-अभ्यास
प्रश्न 1.
कुछ पुरातन पंथी लोग स्त्रियों की शिक्षा के विरोधी थे। द्विवेदी जी ने क्या-क्या तर्क देकर स्त्री-शिक्षा का समर्थन किया? [CBSE 2012]
उत्तर:
द्विवेदी जी ने निम्नलिखित तर्क देकर पुरातनपंथियों के तर्को को नकारा और स्त्री-शिक्षा का समर्थन किया
- स्त्रियों का नाटकों में प्राकृत बोलना उनके अनपढ़ होने का प्रमाण नहीं है। उन दिनों कुछ ही लोग संस्कृत बोल पाते थे। शेष शिक्षित और अशिक्षित दोनों प्राकृत बोलते थे। प्राकृत में तो सारा बौद्ध जैन साहित्य लिखा गया है। हमारी आज की हिंदी, गुजराती आदि भाषाएँ भी आज की प्राकृतें हैं। इसलिए प्राकृत भाषा बोलना अनपढ़ होने का प्रमाण बिल्कुल नहीं
- यद्यपि आ स्त्री-शिक्षा होने के पर्याप्त प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं, किंतु वे खो भी सकते हैं। अतः पर्याप्त प्रमाणों के अभाव में यह नहीं कहा जा सकता कि प्राचीन समय में स्त्री-शिक्षा नहीं थी।
- भारत में वेद-मंत्र लिखने से लेकर तर्क, व्याख्यान और शास्त्रार्थ करने वाली सुशिक्षित नारियाँ हुई हैं। अतः प्राचीन नारी को शिक्षा से वंचित नहीं कहा जा सकता।
- शकुंतला का दुष्यंत को कटु वचन कहना उसकी अशिक्षा का परिणाम नहीं था, उसका स्वाभाविक क्रोध था। |
प्रश्न 2.
स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होते हैं’-कुतर्कवादियों की इस दलील का खंडन द्विवेदी जी ने कैसे किया है, अपने शब्दों में लिखिए। [ केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2009; CBSE]
उत्तर:
द्विवेदी जी ने कुतर्कवादियों की स्त्री-शिक्षा विरोधी दलीलों का जोरदार खंडन किया है। उन्होंने कहा कि यदि स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होते हैं तो पुरुषों को पढ़ाने से भी अनर्थ होते होंगे। यदि पढ़ाई को अनर्थ का कारण माना जाए। तो सुशिक्षित पुरुषों द्वारा किए जाने वाले सारे अनर्थ भी पढ़ाई के दुष्परिणाम माने जाने चाहिए। अतः उनके भी स्कूल-कॉलेज बंद कर दिए जाने चाहिए।
द्विवेदी जी ने दूसरा तर्क यह दिया कि शकुंतला ने दुष्यंत को कुवचन कहे। ये कुवचन उसकी शिक्षा के परिणाम नहीं थे, बल्कि उसका स्वाभाविक क्रोध था।
तीसरा तर्क व्यंग्यपूर्ण है-‘स्त्रियों के लिए पढ़ना कालकूट और पुरुषों के लिए पीयूष का बँट! ऐसी ही दलीलों और दृष्टांतों के आधार पर कुछ लोग स्त्रियों को अपढ़ रखकर भारत का गौरव बढ़ाना चाहते हैं।’
प्रश्न 3.
द्विवेदी जी ने स्त्री-शिक्षा विरोधी कुतर्को का खंडन करने के लिए व्यंग्य का सहारा लिया है- जैसे-‘यह सब पापी पढ़ने का अपराध है। न वे पढ़तों, न वे पूजनीय पुरुषों का मुकाबला करतीं।’ आप ऐसे अन्य अंशों को निबंध में से छाँटकर समझिए और लिखिए।
उत्तर:
इस निबंध में निम्नलिखित अंश व्यंग्यात्मक हैंवाल्मीकि रामायण के तो बंदर तक संस्कृत बोलते हैं। बंदर संस्कृत बोल सकते थे, स्त्रियाँ न बोल सकती थीं।
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जिन पंडितों ने गाथा-सप्तशती, सेतुबंध महाकाव्य और कुमारपालचरित आदि ग्रंथ प्राकृत में बनाए हैं, वे यदि अपढ़ और आँवार थे तो हिंदी के प्रसिद्ध से प्रसिद्ध अखबार का संपादक इस जमाने में अपढ़ और गॅवार कहा जा सकता है; क्योंकि वह अपने ज़माने की प्रचलित भाषा में अखबार लिखता है।
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पुराणादि में विमानों और जहाजों द्वारा की गई यात्राओं के हवाले देखकर उनको अस्तित्व तो हम बड़े गर्व से स्वीकार करते हैं, परंतु पुराने ग्रंथों में अनेक प्रगल्भ पंडितों के नामोल्लेख देखकर भी कुछ लोग भारत की तत्कालीन स्त्रियों को मूर्ख अपढ़ और गॅवार बताते हैं। इस तर्कशास्त्रज्ञता और इस न्यायशीलता की बलिहारी! वेदों को प्रायः सभी हिंदू ईश्वर-कृत मानते हैं। सो ईश्वर तो वेद-मंत्रों की रचना अथवा उनका दर्शन विश्ववरा आदि स्त्रियों से करावे और हमें उन्हें ककहरा पढ़ाना भी पाप समझें।
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अत्रि की पत्नी पत्नी-धर्म ……………… भारतवर्ष का गौरव बढ़ाना चाहते हैं।
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पुराने ढंग के पक्के सनातन-धर्मावलंबियों ::::::::::: गई-बीती समझी जानी चाहिए।
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परंतु विक्षिप्तों, बात व्यथितों और ग्रहग्रस्तों के सिवा ऐसी दलीलें पेश करने वाले बहुत ही कम मिलेंगे। शकुंतला ने दुष्यंत को कटु वाक्य कहकर कौन-सी अस्वाभाविकता दिखाई? क्या वह यह कहती कि-“आर्यपुत्र; शाबास! बड़ा अच्छा काम किया जो मेरे साथ गांधर्व-विवाह करके मुकर गए। नीति, न्याय, सदाचार और धर्म की आप प्रत्यक्ष मूर्ति हैं।”
प्रश्न 4.
पुराने समय में स्त्रियों द्वारा प्राकृत भाषा में बोलना क्या उनके अपढ़ होने का सबूत है-पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए। [Imp.] [CBSE 2012; CBSE 2008 C]
उत्तर:
पुराने समय में स्त्रियों के प्राकृत भाषा में बोलने के प्रमाण मिलते हैं। परंतु इसका यह तात्पर्य नहीं है कि प्राकृत भाषा अनपढों की भाषा थी। वास्तव में प्राकृत अपने समय की बोलचाल की प्रचलित भाषा थी। जिस प्रकार आज हिंदी, बांग्ला आदि प्राकृत भाषाएँ हैं। अतः प्राकृत भाषा में बोलने के कारण महिलाओं को अनपढ़ कहने की भूल नहीं की जा सकती।
प्रश्न 5.
परंपरा के उन्हीं पक्षों को स्वीकार किया जाना चाहिए जो स्त्री-पुरुष समानता को बढ़ाते हों-तर्क सहित उत्तरे दीजिए। [Imp.]
उत्तर:
हमारी परंपरा बहुत लंबी है। उसकी सभी बातें आज अफ्माने-योग्य नहीं हैं। प्राचीन समय में कुछ बातें स्त्री-पुरुष में अंतर करके उनका पुस : युग है। आज लिप-दीकार्य नहीं है। अत: हमें अस्प में उन्हीं बातों को स्वीकार करना चाहिए जो स्त्री-पुरुष की समानता को बढ़ाती हों। तभी हमारा समाज उन्नति कर सकेगा।
प्रश्न 6.
तब की शिक्षा-प्रणाली और अब की शिक्षा-प्रणाली में क्या अंतर है? स्पष्ट करें। [ केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2008]
उत्तर:
तब की शिक्षा-प्रणाली में स्त्रियों को शिक्षा से वंचित किया जाता था। शिक्षा गुरुओं के आश्रमों और मंदिरों में दी जाती थी। कुमारियों को नृत्य, गान, श्रृंगार आदि की विद्या दी जाती थी। आज की शिक्षा प्रणाली में नर-नारी-भेद नहीं किया जाता। लड़कियाँ भी वही विषय पढ़ती हैं, जो कि लड़के पढ़ते हैं। उनकी कक्षाएँ साथ-साथ लगती हैं। पहले सहशिक्षा का प्रचलन नहीं था। आज सहशिक्षा में पढ़ना फैशन बन गया है।
रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न 7.
महावीरप्रसाद द्विवेदी का निबंध उनको दूरगामी और खुली सोच का परिचायक है, कैसे? [Imp.]
उत्तर:
महावीर प्रसाद द्विवेदी खुली सोच वाले निबंधकार थे। उनके युग में स्त्रियों की दशा बहुत शोचनीय थी। उन्हें पढ़ाई-लिखाई से दूर रखा जाता था। पुरुष-वर्ग उन पर मनमाने अत्याचार करता था। द्विवेदी जी इस अत्याचार के विरुद्ध थे। वे लिंग-भेद के कारण स्त्रियों को हीन समझने के विरुद्ध थे। इसलिए उन्होंने अपने निबंधों में उनकी स्वतंत्रता की वकालत की। उन्होंने पुरातनपंथियों की एक-एक बात को सशक्त तर्क से काटा। जहाँ व्यंग्य करने की जरूरत पड़ी, उन पर व्यंग्य किया। वे चाहते थे कि भविष्य में नारी-शिक्षा का युग शुरू हो। उनकी यह सोच दूरगामी थी। वे युग को बदलने की क्षमता रखते थे। उनके प्रयास रंग लाए। आज नारियाँ पुरुषों से भी अधिक बढ़-चढ़ गई हैं। वे शिक्षा के हर क्षेत्र में पुरुषों पर हावी हैं।
प्रश्न 8.
द्विवेदी जी की भाषा-शैली पर एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर:
द्विवेदी जी अपने समय के भाषा-सुधारक थे। उन्होंने अमानक और अशुद्ध हिंदी को शुद्ध करने का प्रयास किया। इस निबंध में तत्कालीन संस्कृतनिष्ठ शब्दावली के दर्शन होते हैं। द्विवेदी जी ने संस्कृत के साथ-साथ उर्दू के प्रचलित शब्दों का भी प्रयोग किया है।
उदाहरणतया
विद्यमान, प्रमाणित, सुशिक्षित (संस्कृत शब्द)
अपढ़, गॅवार, बात, पुराना (तद्भव शब्द)
मुश्किल, बरबाद, दलील, जमाना (उर्दू शब्द)
तिस, जावे, सो, करावे, आवे (पुराने प्रयोग)
कॉलेज, स्कूल, (अंग्रेज़ी शब्द)
द्विवेदी जी का मत था कि हमें जनप्रचलित शब्दों को स्वीकार करना चाहिए। हाँ, वे शब्द व्याकरण की दृष्टि से शुद्ध होने चाहिए। उनका मनमाना प्रयोग नहीं होना चाहिए। इस निबंध में द्विवेदीकालीन पुराने प्रयोग भी साफ़ दिखाई देते हैं। जैसे-करावे, आवे, सो आदि।
भाषा-अध्ययन
प्रश्न 9.
निम्नलिखित अनेकार्थी शब्दों को ऐसे वाक्यों में प्रयुक्त कीजिए जिनमें उनके एकाधिक अर्थ स्पष्ट हों-चाल, दल, पत्र, हरा, पर, फल, कुल।
उत्तर:
चाल-यदि जमाने की चाल बदलना चाहते हो तो चालबाज़ी छोड़ो।
दल-इस चुनाव में जनता के रोष ने सभी राजनीतिक दलों के इरादों को दल कर रख दिया। पत्र-आज के समाचार-पत्र में मेरा पत्र छपा है। हरा-हमारे खिलाड़ियों ने हरे मैदान पर हर टीम को हरा दिया। पर-पक्षी तो पकड़ा गया, पर उसके पर सुरक्षित नहीं रहे। फल-अधिक फल खाने का फल भी अच्छा नहीं होगा। कुल-हमारे कुल में सब लोगों के कुल अंक 70% से अधिक रहे हैं।
पाठेतर सक्रियता
प्रश्न
अपनी दादी, नानी और माँ से बातचीत कीजिए और ( स्त्री-शिक्षा संबंधी) उस समय की स्थितियों का पता लगाइए और अपनी स्थितियों से तुलना करते हुए निबंध लिखिए। चाहें तो उसके साथ तसवीरें भी चिपकाइए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।
प्रश्न
लड़कियों की शिक्षा के प्रति परिवार और समाज में जागरूकता आए-इसके लिए आप क्या-क्या करेंगे?
उत्तर:
मैं लड़कियों के साथ बिना भेदभाव बरते उन्हें पढ़ाने की वकालत करूंगा। जो सहायता मुझसे बन पड़ेगी, करूंगा। स्त्री शिक्षा पर एक पोस्टर तैयार कीजिए। उत्तर-छात्र स्वयं करें।
प्रश्न
स्त्री-शिक्षा पर एक नुक्कड़ नाटक तैयार कर उसे प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर: