CBSE Class 10 Hindi A व्याकरण रस

  

CBSE Class 10 Hindi A व्याकरण रस

रस – साहित्य का नाम आते ही रस का नाम स्वतः आ जाता है। इसके बिना साहित्य की कल्पना नहीं की जा सकती है। भारतीय साहित्य शास्त्रियों ने साहित्य के लिए रस की अनिवार्यता समझा और इसे साहित्य के लिए आवश्यक बताया। वास्तव में रस  काव्य की आत्मा है।

किसी साहित्य को पढ़कर जब व्यक्ति कविता के भावों से तादात्म्य स्थापित कर लेता है तब इस प्रक्रिया में उसके मन के स्थायी भाव रस में परिणित हो जाते हैं। इस तरह काव्य से जो आनंद प्राप्त होता है वह जीवन के अनुभवों से प्राप्त अनुभवों जैसा होकर भी उससे ऊँचे स्तर को प्राप्त कर लेता है। यह आनंद व्यक्तिगत संकीर्णता से अलग होता है।

परिभाषा-कविता-कहानी को पढने, सुनने और नाटक को देखने से पाठक, श्रोता और दर्शक को जो आनंद प्राप्त होता है, उसे रस कहते हैं।

रस के अंग-रस के चार अंग माने गए हैं –

  1. स्थायीभाव
  2. विभाव
  3. अनुभाव
  4. संचारीभाव

1. स्थायीभाव – कविता या नाटक का आनंद लेने से सहृदय के हृदय में भावों का संचार होता है। ये भाव मनुष्य के हृदय में स्थायी रूप से विद्यमान होते हैं। सुषुप्तावस्था में रहने वाले ये भाव साहित्य के आनंद के द्वारा जग जाते हैं और रस में बदल जाते हैं

मानव मन में अनेक तरह के भाव उठते हैं पर साहित्याचार्यों ने इन भावों को मुख्यतया नौ स्थायी भावों में बाँटा है पर वत्सल भाव को शामिल करने पर इनकी संख्या दस मानी जाती है। ये स्थायीभाव और उनसे संबंधित रस इस प्रकार हैं –
CBSE Class 10 Hindi A व्याकरण रस 1
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2. विभाव – विभाव का शाब्दिक अर्थ है-भावों को विशेष रूप से जगाने वाला अर्थात् वे कारण, विषय और वस्तुएँ, जो सहृदय के हृदय में सुप्त पड़े भावों को जगा देती हैं और उद्दीप्त करती हैं, उन्हें विभाव कहते हैं।
विभाव के भेद होते हैं –

1. आलंबन विभाव-वे वस्तुएँ और विषय, जिनके सहारे भाव उत्पन्न होते हैं, उन्हें आलंबन विभाव कहते हैं।
आलंबन विभाव के दो भेद होते हैं
(क) आश्रय – जिस व्यक्ति या पात्र के हृदय में भावों की उत्पत्ति होती है, उसे आश्रय कहते हैं।
(ख) विषय – जिस विषय-वस्तु के प्रति मन में भावों की उत्पत्ति होती है, उसे विषय कहते हैं। एक उदाहरण देखिए –
अपने भाइयों और साथी राजाओं के एक-एक कर मारे जाने से दुर्योधन विलाप करने लगा। यहाँ ‘दुर्योधन’ आश्रय तथा ‘भाइयों और राजाओं का एक-एक कर मारा जाना’ विषय है। दोनों के मेल से आलंबन विभाव बन रहा है।

2. उद्दीपन विभाव-वे वाह्य वातावरण, चेष्टाएँ और अन्य वस्तुएँ जो मन के भावों को उद्दीप्त अर्थात तेज़ करते हैं, उन्हें उद्दीपन विभाव कहते हैं।

इसे उपर्युक्त उदाहरण के माध्यम से समझते हैं –
भाइयों एवं साथी राजाओं की मृत्यु से दुखी एवं विलाप करने वाला दुर्योधन ‘आश्रय’ है। यहाँ युद्ध के भयानक दृश्य, भाइयों के कटे सिर, घायल साथी राजाओं की चीख-पुकार, हाथ-पैर पटकना आदि क्रियाएँ दुख के भाव को उद्दीप्त कर रही हैं। अतः ये सभी उद्दीपन विभाव हैं।

3. अनुभाव – अनुभाव दो शब्दों ‘अनु’ और भाव के मेल से बना है। ‘अनु’ अर्थात् पीछे या बाद में अर्थात् आश्रय के मन में पनपे भाव और उसकी वाह्य चेष्टाएँ अनुभाव कहलाती हैं।
जैसे-चुटकुला सुनकर हँस पड़ना, तालियाँ बजाना आदि चेष्टाएँ अनुभाव हैं।

4. संचारी भाव-आश्रय के चित्त में स्थायी भाव के साथ आते-जाते रहने वाले जो अन्य भाव आते रहते हैं उन्हें संचारी भाव कहते हैं। इनका दूसरा नाम अस्थिर मनोविकार भी है।
चुटकुला सुनने से मन में उत्पन्न खुशी तथा दुर्योधन के मन में उठने वाली दुश्चिंता, शोक, मोह आदि संचारी भाव हैं।
संचारी भावों की संख्या 33 मानी जाती है।

संचारी और स्थायी भावों में अंतर –
1. संचारी भाव बनते-बिगड़ते रहते हैं, जबकि स्थायीभाव अंत तक बने रहते हैं।
2. संचारी भाव अनेक रसों के साथ रह सकता है। इसे व्यभिचारी भाव भी कहा जाता है, जबकि प्रत्येक रस का स्थाई भाव एक ही होता है।

रस-निष्पत्ति –

हृदय के स्थायी भाव का जब विभाव, अनुभाव और संचारी भाव से संयोग होता है अर्थात् वे एक दूसरे से मिल-जुल जाते हैं, तब रस की निष्पत्ति होती है। अर्थात्
स्थायीभाव + विभाव + अनुभाव + संचारीभाव = रस की व्युत्पत्ति।

रस के भेद –
रस के भेद और उनके उदाहरण निम्नलिखित हैं –

1. श्रृंगार रस-शृंगार रस का आधार स्त्री-पुरुष का सहज आकर्षण है। स्त्री-पुरुष में सहज रूप से विद्यमान रति नामक स्थायीभाव, विभाव, अनुभाव और संचारीभाव के संयोग से आनंद लेने योग्य हो जाता है, तब इसे शृंगार रस कहते हैं।
अनुभूतियों के आधार पर शृंगार रस के दो भेद होते हैं –
(क) संयोग शृंगार रस
(ख) वियोग शृंगार रस

(क) संयोग श्रृंगार रस – काव्य में या अन्यत्र जब नायक-नायिका के मिलन का वर्णन होता है, तब वहाँ संयोग शृंगार रस होता
उदाहरण – वर्षा ऋतु में रात्रि के समय बिजली चमक रही है, बादल बरस रहे हैं। दादुरमोर की आवाज़ सुनाई देती है। पद्मावती अपने प्रीतम के संग जागती हुई वर्षा का आनंद ले रही है और बादलों की गर्जना सुनकर चौंककर प्रीतम के सीने से लग जाती है। संयोग शृंगार का वर्णन देखिए

“पदमावति चाहत रितु पाई, गगन सुहावन भूमि सुहाई।
चमक बीजु बरसै जग सोना, दादुर मोर सबद सुठिलोना॥
रंगराती प्रीतम संग जागी, गरजै गगन चौंकि उर लागी।
शीतल बूंद ऊँच चौपारा, हरियर सब देखाइ संसारा॥ (मलिक मोहम्मद जायसी)

यहाँ स्थायीभाव रति (प्रेम) है। रानी पद्मावती आश्रय तथा आलंबन उसका प्रीतम है। बिजली चमकना, दादुर-मोर का बोलना, बादलों का गरजना उद्दीपन विभाव तथा चौंककर सीने से लग जाना डरना संचारी भाव है।

(ख) वियोग श्रृंगार रस-प्रिय से बिछड़कर वियोगावस्था में दिन बिता रहे नायक-नायिका की अवस्था का वर्णन होता है, तब वियोग शृंगार होता है

मनमोहन तै बिछुरी जब सौं,
तन आँसुन सौ सदा धोवती हैं।
हरिश्चंद जू प्रेम के फंद परी
कुल की कुल लाजहि खोवती हैं।
दुख के दिन कोऊ भाँति बितै
विरहागम रंग संजोवती है।
हम ही अपनी दशा जानें सखी,
निसि सोबती है किधौं रोबती हैं। (‘भारतेंदु हरिश्चंद’)

यहाँ स्थायी भाव रति (प्रेम) है। विरहिणी नायिका आश्रय तथा उसका प्रिय (मनमोहन) आलंबन है। विभाव-मिलन के सुखद दिन तथा संचारी भाव-पूर्व मिलन की यादें, दुख आदि, जिनके संयोग से वियोग शृंगार रस की अनुभूति हो रही है।

2. हास्य रस – किसी विचित्र व्यक्ति, वस्तु, आकृति, वेशभूषा, असंगत क्रिया विचार, व्यवहार आदि को देखकर जिस विनोद भाव का संचार होता है, उसे हास कहते हैं। हास के परिपुष्ट होने पर हास्य रस की उत्पत्ति होती है।
उदाहरण – श्रीराम-लक्ष्मण के वन गमन के समय उनके पैरों की रज छूकर शिला बन चुकी अहिल्या जीवित हो उठीं। यह समाचार सुनते ही विंध्याचल पर्वत पर रहने वाले मुनिगण बड़े खुश हुए कि यहाँ की अब सभी शिलाएँ नारी बन जाएँगी –

विंध्य के बासी उदासी तपोव्रत धारी नारि बिना मुनि महा दुखारे ।
गौतम तीय तरी तुलसी सो कथा सुनि भये मुनिवृंद सुखारे।
हवै हैं सिला सब चंद्रमुखी, परसे प्रभु के पदकंज तिहारे।
कीन्हीं भली रघुनायक जो करुणा करि कानन को पग धारे॥

यहाँ विंध्याचल पर तपस्या करने वाले ऋषि-मुनि आश्रय, राम आलंबन हैं, शिलाओं का पत्थर बनने की खबर सुनना विभाव और प्रसन्न होना, राम के वन आगमन को अच्छा समझना संचारी भाव है। इनके निष्पत्ति से हास परिपुष्ट हो रहा है और हास्य रस की उत्पत्ति हो रही है।

3. वीर रस – युद्ध में वीरों की वीरता के वर्णन में वीर रस परिपुष्ट होता है। जब हृदय में उत्साह नामक स्थायी भाव का विभाव, अनुभाव और संचारी भाव से संयोग होता है, तब वीर रस की उत्पत्ति होती है।

उदाहरण – अर्जुन के दूसरे मोर्चे पर युद्धरत होने और कौरवों द्वारा चक्रव्यूह की रचना से चिंतित युधिष्ठिर जब अभिमन्यु को अपनी चिंता बताते हैं तो अभिमन्यु उनसे कहता है

हे सारथे! हे द्रोण क्या, देवेंद्र भी आकर अड़ें,
है खेल क्षत्रिय बालकों का, व्यूह-भेदन कर लड़े।
मैं सत्य कहता हूँ सखे! सुकुमार मत जानो मुझे,
यमराज से भी युद्ध में प्रस्तुत सदा मानो मुझे।

यहाँ आश्रय अभिमन्यु, आलंबन कौरव पक्ष के वीर और उनके द्वारा रचित चक्रव्यूह, उनकी ललकार सुनकर भुजाएँ फड़कना, वचन देना, उत्साहित होना विभाव तथा रणक्षेत्र में जाने को तत्पर होना, रोमांच, उत्सुकता उग्रता संचारीभाव तथा वीर रस की निष्पत्ति हुई है।

4. रौद्र रस – क्रोध की अधिकता से उत्पन्न इंद्रियों की प्रबलता को रौद्र कहते हैं। जब इस क्रोध का मेल विभाव, अनुभाव और संचारीभाव से होता है, तब रौद्ररस की निष्पत्ति होती है।
उदाहरण-सीता स्वयंवर के अवसर पर धनुष भंग होने की खबर सुनते ही परशुराम स्वयंवर स्थल पर आए। लक्ष्मण के वचनों ने उनके क्रोध को और भी भड़का दिया। वे रौद्र रूप धारण कर कहने लगे –

अब जनि देइ दोसु मोहि लोगू। कटुवादी बालक वध जोगू॥
बाल विलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनहार भा साँचा॥
खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही॥
उत्तर देत छोडौं बिनु मारे। केवल कौशिक सील तुम्हारे ॥
न त येहि काटि कुठार कठोरे। गुरहि उरिन होतेउँ भ्रम थोरे ॥

यहाँ स्थायी भाव क्रोध है, आश्रय-परशुराम, आलंबन-कटुवादी लक्ष्मण है एवं परशुराम का कठोर वचन उच्चारण अनुभाव है एवं आवेग, उग्रता, चपलता आदि संचारी भाव है। इनके संयोग से रौद्र रस की निष्पत्ति हुई है।

5. भयानक रस – डरावने दृश्य देखकर मन में भय उत्पन्न होता है। जब भय नामक स्थायीभाव का मेल विभाव, अनुभाव और संचारी भाव से होता है, तब भयानक रस उत्पन्न होता है।
उदाहरण – प्रलय का एक भयानक चित्र देखिए –
पंचभूत का वैभव मिश्रण झंझाओं का सकल निपातु,
उल्का लेकर सकल शक्तियाँ, खोज रही थीं खोया प्रात।
धंसती धरा धधकती ज्वाला, ज्वालामुखियों के नि:श्वास;
और संकुचित क्रमशः उसके अवयव का होता था ह्रास।

यहाँ – स्थायीभाव – भय, आश्रय स्वयं मनु हैं जो प्रलय की भयंकरता देख रहे हैं, आलंबन-प्रलय का प्रकोप, अनुभाव-भयभीत होना, उद्दीपन-धधकती ज्वालाएँ, धरा का धंसते जाना, ज्वालामुखी में सब कुछ नष्ट होना तथा संचारी भाव-शंका, भय आदि हैं, जिनके संयोग से भयानक रस की निष्पत्ति हुई है।

6. करुण रस – प्रिय जन की पीड़ा, मृत्यु, वांछित वस्तु का न मिलना, अनिष्ट होना आदि से शोकभाव परिपुष्ट होता है तब वहाँ करुण रस होता है।
उदाहरण – दुलारों में नित पाली हुई, प्रेम की प्रतिभा वह प्यारी।
खिलौना इस घर की वह हाय, वही थी सरला सुकुमारी।
अरे! कोई यह दीन पुकार, कहीं यदि सुनता हो कोई।
मुझे दिखला दे मेरा प्राण, जगा दे फिर किस्मत सोई ॥

यहाँ – स्थायी भाव-शोक, आश्रय-जिससे हृदय का भाव जाग्रत हो, आलंबन – मृत प्रियजन और नाश को प्राप्त ऐश्वर्य। उद्दीपन – प्रिय केशव दर्शन, चिता जलाना उससे संबंधित वस्तुओं एवं अन्य रोते हुए बांधवों का दर्शन, अत्याचार आदि। अनुभाव – विलाप, रोदन, भाग्य की निंदा, प्रलाप आदि। संचारी भाव – मोह ग्लानि चिंता विषाद आदि।

7. वीभत्स रस – वीभत्स का स्थायी भाव जुगुप्सा है। अत्यंत गंदे और घृणित दृश्य वीभत्स रस की उत्पत्ति करते हैं। गंदी और घृणित वस्तुओं के वर्णन से जब घृणा भाव पुष्ट होता है तब यह रस उत्पन्न होता है।

उदाहरण – हाथ में घाव थे चार
थी उनमें मवाद भरमार
मक्खी उन पर भिनक रही थी,
कुछ पाने को टूट पड़ी थी
उसी हाथ से कौर उठाता
घृणा से मेरा मन भर जाता।

यहाँ – स्थायीभाव – जुगुप्सा (घृणा) है,
आश्रय – जिसके मन में घृणा हो,
आलंबन – घाव, मवाद भिनभिनाती मक्खियाँ ।
उद्दीपन – घाव-मवाद युक्त हाथ से भोजन करना
अनुभाव – नाक-मुँह सिकोड़ना, घृणा करना, थूकना
संचारी भाव – ग्लानि दैन्य आदि।

8. अद्भुत रस – जब किसी वस्तु का वर्णन आश्चर्य उत्पन्न करता है, तब अद्भुत रस उत्पन्न होता है।

उदाहरण – अखिल भुवन चर-अचर सब हरि मुख में लखि मातु।
चकित भई गदगद् वचन, विकसत दृग पुलकातु॥

यहाँ-स्थायी भाव-विस्मय है। आश्रय-माता यशोदा तथा आलंबन-बालक श्री कृष्ण का मुख, मुख के भीतर का दृश्य उद्दीपन। आँखों का फैलना, गदगद वचन बोलना अनुभाव, भय संचारीभाव है। इनके संयोग से अद्भुत रस की उत्पत्ति हुई है।

9. शांत रस – जब चित्त शांत दशा में होता है तब शांत रस उत्पन्न होता है। इसका स्थायी भाव निर्वेद है।

उदाहरण – अब लौं नसानी अब न नसैहौं।
राम कृपा भव निशा सिरानी, जागे फिर न डसैहौं।
पायो नाम चारु चिंतामनि, उर करतें न खसैहौं।
श्याम रूप सुनि रुचिर कसौटी चित्त कंचनहि कसैहौं।
परबस जानि हँस्यो इन इंद्रिय निज बस हवै न हसैहौं।
मन मधुकर पनकरि तुलसी रघुपति पद कमल बसैहौं।

यहाँ-स्थायीभाव-निर्वेद, उद्दीपन विभाव-संसार की क्षणभंगुरता, सारहीनता, इंद्रियों द्वारा उपहास, अनुभाव-राम के चरणों में मन लगना, संचारी भाव-दृढ़ प्रतिज्ञ मति होना आदि के संयोग से निर्वेद नामक स्थायी भाव पुष्ट होकर शांत रस को प्राप्त हुआ है।

10. वात्सल्य रस – छोटे बच्चों के प्रति स्नेह के चित्रण में वात्सल्य रस उत्पन्न होता है। हृदय में ‘वत्सल’ नामक स्थायी भाव का मेल विभाव, अनुभाव और संचारी भाव से होता है, तब वात्सल्य रस परिपुष्ट होता है।

उदाहरण – मैया मोरी मैं नहिं माखन खायो।
भोर भयो गैयन के पाछे मधुवन मोहि पठायो।
चार पहर वंशी वन भटक्यो साँझ परे घर आयो।
ग्वाल-बाल सब बैर पड़े हैं, वरबस मुख लपटायो।
मैं बालक बहियन को छोरो, छीको केहि विधि पायो।
सूरदास तब बिहँसि यशोमति मैं उर कंठ लगायो॥

यहाँ – स्थायीभाव-वत्सल, आश्रय – माता यशोदा, आलंबन – श्री कृष्ण, उद्दीपन – श्रीकृष्ण के मुख पर लगा मक्खन, अनुभाव-यशोदा के मन में शंका, जिज्ञासा प्रकट करना, संचारी भाव – यशोदा का हर्षित होना आदि के संयोग से वात्सल्य रस परिपुष्ट हुआ है।

अभ्यास प्रश्न

निम्नलिखित काव्य पंक्तियों में निहित रस का नाम बताइए

1. दूलह श्री रघुनाथ बने, दुलही सिय सुंदर मंदिर माही। ।
गावत गीत सबै मिलि सुंदरि वेद जुआ जुरि विप्र पढ़ाही। |
राम को रूप निहारति जानकी कंगन के नग की परछाहीं॥
याते सबै सुधि भूलि गई कर टेकि रही पल टारति नाहीं॥

2. बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय।
सौहिं करै भौहन हँसै, देन कहे नरिजाय ॥

3. कहत, नटत रीझत खिझत हँसत मिलत लजियात।
भरे भौन में करत हैं नयनन ही सो बात॥

4. खद्दर कुरता भकभकौ, नेता जैसी चाल।
येहि बानक मो मन बसौ, सदा विहारी लाल॥

5. तन मन सेजि जरै अगि दाहू। सब कहँ चंद भयउ मोहिराहू॥
चहूँ खंड लागे अँधियारा। जो घर नाही कंत पियारा॥

6. भाषे लखन कुटिल भई भौंहें।
रद फुट फरकट नैन रिसौंहें ।

7. जाके प्रिय न राम बैदेही।
तजिए उसे कोटि बैरी सम जद्यपि परम सनेही।
तज्योपिता प्रहलाद, विभीषण बंधु, भरत महतारी।
बलि गुरु तज्यो कंत ब्रज बनितनि, भय मुद-मंगलकारी।
नाते नेह राम के मनियत सुहृद सुसेव्य जहाँ लौं।
अंजन कहा आँखि जेहि फूटै बहुतक कहौ कहाँ लौं।
तुलसी सो सब भाँति परम हित पूज्य प्रान ते प्यारो।
जासो होत सनेह राम पद ऐतो मतो हमारे ॥

8. पौरि के किंवार देत धरै सबै गारिदेत
साधुन को दोष देत प्राति न चहत हैं।
माँगते को ज्वाब देत, बात कहै रोयदेत,
लेत-देत भाज देत ऐसे निबहत है।
मागेहुँ के बंद देत बारन की गाँठ देत
धोती की काँछ देत देतई रहत है।
ऐसे पै सबैई कहै, दाऊ, कछू देत नाहि,
दाऊ जो आठो याम देतई रहत है।

9. राम नाम मणि दीप धरि, जीह देहरी द्वार।
तुलसी बाहर भीतरेहु जो चाहत उजियार ॥

10. ‘ यशोदा हरि पालने झुलावे।
हलरावै दुलराइ मल्हावै, जोइ सोइ कछु गावै।
मेरे लाल को आउ निदरिया काहे न आनि सोवावै।
तू काहे ना बेगि सो आवै तोको कान्ह बुलावै।

11. सखिन्ह रचा पिउ संग हिंडोला। हरियल भूमि कुसुंभी चोला॥
हिय हिंडोल अस डोले मोरा। विरह झुलाइ देत झकझोरा ॥

12. मेरी भवबाधा हरो, राधा नागरि सोय।
जा तन की झांई परे, स्याम हरित दुति होय॥

13. बाने फहराने घहराने घंटा गजन के,
नाही ठहराने, राव राने देश-देश के।
नग भहराने, ग्राम नगर पराने सुनि,
बाजत निसाने शिवराज जू नरेश के।
हाथिन के हौदा उकसाने कुंभ कुंजर के
मौन की भजाने अलि छूटे लट केश के।
दल के दरारन ते कमठ करारे फूटे,
केरा कैसे पात विहराने फन सेस के॥

14. चूरन खावै एडीटर जात,
जिनके पेट पचै नहिं बात।
चूरन पुलिस वाले खाते,
सब कानून हज़म कर जाते।
साँच कहै ते पनही खावै,
झूठे बहुविधि पदवी पावै।

15. निज दरेर सौ पौन पटल फारति फहरावति।
सुर-पुरते अति सघन घोर घन धसि धवरावति॥
चली धार धुधकार धरादिशि काटत कावा।
सगर सुतन के पाप ताप पर बोलति धावा।

16. स्वानों को मिलता दूध भात भूखे बालक अकुलाते हैं।
माँ की हड्डी से चिपक ठिठुर, जाड़े की रात बिताते हैं।
युवती की लज्जा वसन बेच जब ब्याज चुकाए जाते हैं।
मालिक तब तेल फुलेलों पर पानी सा द्रव्य बहाते हैं।

17. बिनु गोपाल बैरिन भई कुंजै।
तब ये लता लगति अति शीतल जबभई विषम ज्वाल की पुंजै।
वृथा बहति जमुना खग बोलत वृथा कमल फूलैं अलि गुंजै।
पवन पानि धनसारि संजीवनि दधिसुत किरन भानु भई भुंजै।
हे ऊधव कहिए माधव सो विरह विरद कर मारत लुंजै।
सूरदास प्रभु को मग जोहत अखियाँ भई बरनि ज्यों गुंजै।

18. चरन कमल बंदी हरि राई ।
जाकी कृपा पंगु गिरि लंघे, अंधे को सब कुछ दरसाई।
बहिरौ सुनै गूंग पुनि बोलै, रंक चले सिर छत्र धराई ।
सूरदास स्वामी करुनामय बार-बार बंदौ तिहि पाई॥

19. हे खग, हे मृग मधुकर श्रेनी
तुम्ह देखी सीता मृग नैनी॥

20. लता ओट तब सखिन्ह लखाए। स्यामल गौर किसोर सुहाए।
देख रूप लोचन ललचाने । हरसे जनुनिज निधि पहचाने।
थके नयन रघुपति छबि देखी। पलकनि हूँ परिहरी निमेषी।
अधिक सनेह देहभइ भोरी। सरद ससिहिं जनु चितव चकोरी।
लोचन मग रामहि उर आनी। दीन्हें पलक कपाट सयानी॥
उत्तर:

  1. संयोग शृंगार रस
  2. संयोग शृंगार रस
  3. संयोग शृंगार रस
  4. हास्य रस
  5. वियोग शृंगार रस
  6. रौद्र रस
  7. शांत रस
  8. हास्य रस
  9. शांत रस
  10. वात्सल्य रस
  11. वियोग शृंगार रस
  12. शांत रस
  13. वीर रस
  14. हास्य रस
  15. वीर रस
  16. करुण रस
  17. वियोग शृंगार रस
  18. शांत रस
  19. वियोग शृंगार रस
  20. संयोग शृंगार रस

बोर्ड परीक्षाओं के प्रश्न

1. (क) काव्यांश का रस पहचानकर उसका नाम लिखिए – (Delhi 2015)

1. कहत नटत रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात।
भरे भौन में करत हैं नैनन ही सों बात

2. जगी उसी क्षण विद्युज्ज्वाला,
गरज उठे होकर वे क्रुद्ध;
“आज काल के भी विरुद्ध है
युद्ध-युद्ध बस मेरा युद्ध।”

3. कौरवों को श्राद्ध करने के लिए,
या कि रोने को चिता के सामने,
शेष अब है रह गया कोई नहीं.
एक वृद्धा, एक अंधे के सिवा।

उत्तरः

  1. संयोग शृंगार रस
  2. भयानक रस
  3. करुण रस

(ख) काव्यांश में कौन-सा स्थायी भाव है?
संकटों से वीर घबराते नहीं,
आपदाएँ देख छिप जाते नहीं।
लग गए जिस काम में, पूरा किया
काम करके व्यर्थ पछताते नहीं।
उत्तरः
स्थायी भाव – उत्साह

2. (क) निम्नलिखित काव्यांश पढ़कर रस पहचानकर लिखिए – (Foreign 2015)

1. पड़ी थी बिजली-सी विकराल, लपेटे थे घन जैसे बाल।
कौन छेड़े ये काले साँप, अवनिपति उठे अचानक काँप।

2. कहीं लाश बिखरी गलियों में
कहीं चील बैठी लाशों में।

3. उस काल मारे क्रोध के तनु काँपने उनका लगा।
मानो हवा के ज़ोर से सोता हुआ सागर जगा।

उत्तरः

  1. अद्भुत रस
  2. वीभत्स रस
  3. रौद्र रस

(ख) निम्नलिखित काव्यांश में कौन-सा स्थायी भाव है?
वह मधुर यमुना कि जिसमें,
स्निग्ध दृग का जल बहा है।
वह मधुर ब्रजभूमि जिसको,
कृष्ण के उर ने वरा है।
उत्तरः
शांत रस

3. (क) निम्नलिखित काव्यांश पढ़कर रस पहचानकर लिखिए – (All India 2015)

1. कहत, नटत, रीझत, खिझत
मिलत, खिलत, लजियात
भरे भवन में करते हैं
नैननि ही सौं बात।

2. एक ओर अजगरहिं लखि एक ओर मृगराय।
विकल बटोही बीच ही, पर्यो मूरछा खाय।

3. एक मित्र बोले “लाला तुम किस चक्की का खाते हो?
इतने महँगे राशन में भी, तुम तोंद बढ़ाए जाते हो।”

उत्तरः

  1. संयोग शृंगार रस
  2. भयानक रस
  3. हास्य रस

(ख) वीर रस का स्थायी भाव क्या है?
उत्तरः
उत्साह

4. (क) काव्य पंक्तियों को ध्यानपूर्वक पढ़कर रस का निर्णय कीजिए।

1. निसदिन बरसत नैन हमारे।
सदा रहत पावस ऋतु हम पै जब ते स्याम सिधारे।

2. हँसि हँसि भाजै देखि दूलह दिगंबर को
पाहुनी जे आँखें हिमाचल के उछाह में।

3. रे नृप बालक काल बस, बोलत तोहि न संभार।

उत्तरः

  1. शांत रस
  2. हास्य रस
  3. रौद्र रस

(ख) वीर रस का स्थायी भाव क्या है?
उत्तरः
उत्साह

अब स्वयं करें

1. नीचे कुछ रसों के नाम दिए गए हैं। आप उनके स्थायी भावों के नाम लिखिए –
(क) श्रृंगार रस ……………..
(ख) वीर रस ……………..
(ग) हास्य रस ……………..
(घ) करुण रस ……………..
(ङ) वात्सल्य रस ……………..
(च) भयानक रस ……………..

2. नीचे कुछ स्थायी भाव दिए गए हैं। आप उनसे संबंधित रसों के नाम लिखिए –
(क) विस्मय ……………..
(ख) जुगुप्सा ……………..
(ग) हास ……………..
(घ) उत्साह ……………..
(ङ) वात्सल्य ……………..
(च) निर्वेद ……………..

3. नीचे दी गई काव्य पंक्तियों में निहित अलंकारों के नाम लिखिए –

(क) किलक अरे मैं नेह निहारूँ,
इन दाँतों पर मोती वारूँ ।

(ख) ऐसा यह संसार है, जैसा सेमल फूल।
दिन दस के व्यवहार में, झूठे रंग न भूल॥

(ग) हिमाद्रि तुंग शृंग से, प्रबुद्ध शुद्ध भारती।
स्वयं-प्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती।

(घ) बसो मोरे नैनन में नंद लाल।
मोर मुकुट मकराकृत कुंडल, अरुण तिलक दिए भाल।
मोहनि मूरत साँवली सूरत नैना बने विशाल।

(ङ) क्या ही स्वच्छ चाँदनी है यह, है क्या ही निस्तब्ध निशा;
है स्वच्छंद-सुनंद गंधबह, निरानंद है कौन दिशा?

(च) हा राम! हा प्राण प्यारे!
जीवित रहूँ किसके सहारे ?

(छ) खोज रहे थे भूले मनुको
जो घायल होकर लेटे।
इड़ा आज कुछ द्रवित हो रही,
दुखियों को देखा उसने।

4. नीचे दी गई काव्य पंक्तियों में निहित अलंकारों के नाम लिखिए –

(क) देख समस्त विश्व सेतु से मुख में,
यशुदा विस्मय सिंधु में डूबी।

(ख) निशा काल के चिर अभिशापित
बेबस उन चकवा-चकवी का
बंद हुआ क्रंदन फिर उनमें,
उस महान सरवर के तीरे
शैवालों की हरी दरी पर, प्रणय कलह छिड़ते देखा है।

(ग) जौ तुम्हारि अनुशासन पाऊँ। कन्दुक इव बह्मांड उठाऊँ॥
काँचे घट जिमि डारौं फोरी। सकऊ मेरु मूसक जिमि तोरी॥

(घ) एक दूसरे से वियुक्त हो
अलग-अलग रहकर ही जिनको
सारी रात बितानी होगी

(ड) मदिरारुण आँखों वाले उन
उन्मद किन्नर किन्नरियों की
मृदुल मनोरम अँगुलियों को वंशी पर फिरते देखा है।

(ड) कबहूँ करताल बजाइ के नाचत, मातु सबै मन मोद भरै
अवधेस के बालक चारि सदा तुलसी मन मंदिर में बिहरै।

(च) साजि चतुरंग वीर रंग मैं तुरंग चढ़ि
सरजा सिवाजी जंग जीतन चहत है।

(छ) हाय फूल सी कोमल बच्ची
हुई राख की थी ढेरी।

5. संचारी भाव को व्यभिचारी भाव क्यों कहा जाता है?
6. रस के मुख्य अंग कौन-कौन से हैं? उनके नाम लिखिए।
7. शृंगार रस के भेदों के नाम उदाहरण सहित लिखिए।

8. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर निर्देशानुसार लिखिए
(क) स्थायी भाव और संचारी भाव में अंतर स्पष्ट कीजिए।
(ख) रौद्र रस का स्थायी भाव लिखिए।
(ग) जुगुप्सा (घृणा) से कौन-सा रस निष्पन्न होता हैं ?
(घ) वियोग शृंगार रस से संबंधित काव्य पंक्तियाँ लिखिए।

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