Bhaswati Class 12 Solutions Chapter 5 दौवारिकस्य निष्ठा
अभ्यासः
प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत
(क) प्रतापदुर्गदौवारिकः कस्य ध्वनिम् इव अश्रौषीत् ?
उत्तर
पादक्षेपस्य।
(ख) काषायवासाः धृततुम्बीपात्रः भव्यमूर्तिः इति एते शब्दाः कस्य विशेषणानि सन्ति?
उत्तर
संन्यासिनः।
(ग) कः तुरीयाश्रमसेवी अस्ति?
उत्तर
संन्यासी।
(घ) महाराजस्य सन्ध्योपासनसमयः कदा भवति?
उत्तर
पूर्वाहने।
(ङ) के उत्कोचलोभेन स्वामिनं वञ्चयन्ति?
उत्तर
नीचाः।
(च) त्यज! नाहं पुनरायास्यामि, नाहं पुनरेवं कथयिष्यामि,महाशयोऽसि, दयस्व इति कः अवदत्?
उत्तर
संन्यासी।
(छ) दौवारिकस्य निष्ठा केन परीक्षिता?
उत्तर
गौरसिंहेन।
प्रश्न 2.
एकवाक्येन उत्तरं दीयताम्
(क): रात्रौ के के प्रविशन्ति?
उत्तर
रात्रौ परिचिता वा प्राप्तपरिचयपत्रा वा आहूता वा प्रविशन्ति।
(ख) दीपस्य समीपमागत्य संन्यासिना किम् उक्तम् ?
उत्तर
दीपस्य समीपमागत्य संन्यासिना उक्तम् “दौवारिक! न मां प्रत्यभिजानासि?”
(ग) महाराजं प्रत्यभिज्ञाय दौवारिकः किम् अवदत् ?
उत्तर
महाराज प्रत्यभिज्ञाय दौवारिकः अवदत् ‘आः! कथं श्रीमान् गौरसिंह? आर्य! क्षम्यतामनुचितव्यवहार एतस्य ग्राम्यवराकस्य।’
(घ) कः कम् कठोरभाषणैः तिरस्करोति?
उत्तर
दौवारिकः संन्यासिनं कठोरभाषणैः तिरस्करोतिः।
(ङ) ‘दौवारिकस्य निष्ठा’ अयं पाठः कस्मात् गन्थात् गृहीतः?
उत्तर
‘दौवारिकस्य निष्ठा’ अयं पाठः ‘शिवराजविजय’ नाम उपन्यासार
(च) शिवगणाः कीदृशाः आसन् ?
उत्तर
शिवगणाः विश्वसनीयाः आसन्।
(छ) दौवारिकः संन्यासिन कम् अमन्यत?
उत्तर
सिनं कस्यापि देशद्रोहिणः गूढचरम् अमन्यत।
प्रश्न 3.
प्रश्ननिर्माणं रेखाङ्कितानि पदान्याधृत्यं कुरुत
(क) महाराजशिववीरस्य आज्ञां वयं शिरसा वहामः।
उत्तर
कस्य आज्ञा वयं शिरसा दहामः?
(ख) नीचा उत्कोचलोभेन स्वामिनं कश्यत्विा आत्मानम् अन्धतमसे पातयन्ति।
उत्तर
के उत्कोचलोभेन स्वामिनं वञ्यत्विा आत्मानम् अन्धतमसे पातयन्ति?
(ग) दुर्गाध्यक्षः एव यथोचितम् व्यवहरिष्यति।
उत्तर
कः एव यथोचितम् व्यवहरिष्यति?
(घ) दौवारिकः संन्यासिनम् आकृष्य नयन्नेव प्रचलितः
उत्तर
दौवारिकः कम् आकृष्य नयन्नेव प्रचलितः?
(ङ) दौवारिकस्य पृष्ठे हस्तं विन्यस्यन् संन्यासिरूपो गौरसिंहः अवदत्।
उत्तर
कस्य पृष्ठे हस्तं विन्यस्यन् संन्यासिरूपो गौरसिंहः अवदत् ?
(च) दीपस्य समीपमागत्य संन्यासिना उक्तम् ।
उत्तर
दीपस्य समीपमागत्य केन उक्तम् ?
(छ) संन्यासी तुरीयाश्रमसेवी इति प्रणम्यते।
उत्तर
कः तुरीयाश्रमसेवी इति प्रणम्यते।
प्रश्न 4.
समासविग्रहः क्रियताम्
उत्तर-
(क) प्रतापदुर्गदौवारिकः = प्रतापदुर्गस्य दौवारिकः ।
(ख) दीपप्रकाशे = दीपानां प्रकाशे।
(ग) क्षणानन्तरम् = क्षणस्य अनन्तरम् ।
(घ) पादध्वनिः = पादयोः ध्वनिः।
(ङ) द्वाःस्थेन = द्वारे स्थितः यः सः, तेन।
(च) कठोरभाषणैः = कठोराणि च तानि भाषणानि, तैः।
(छ) गम्भीरस्वरेण = गम्भीरेण स्वरेण ।
प्रश्न 5.
सन्धिच्छेदः क्रियताम्
उत्तर-
(क) किञ्चिदन्धकारे = किञ्चित् + अन्धकारे
(ख) शान्तो भव = शान्तः + भव।
(ग) अद्यापि = अद्य + अपि।
(घ) इत्येवम् = इति + एवम्।.
(ङ) कोऽत्र = कः + अत्र।
(च) तदधुनैव = तत् + अधुना + एव।।
(छ) क्षान्तोऽयमपराधः = क्षान्तः + अयम् + अपराधः ।
(ज) बहूक्तम् = बहु + उक्तम्।
प्रश्न 6.
उपसर्ग-प्रकृति/प्रकृति-प्रत्यय-विभागं दर्शयत
उत्तर
(क) निधाय = नि उपसर्ग, √ , ल्यप.प्रत्यय।
(ख) प्रत्यागतम् = प्रति + आ उपसर्ग √ गम्, क्त प्रत्यय।
(ग) विदधानः = वि उपसर्ग + √धा, शानच् प्रत्यय।…
(घ) निरीक्षमाणः = निर् उपसर्ग, √ ईक्ष्, शानच् प्रत्यय।
(ङ) भाषमाणेन = √ भाष्, शानच् प्रत्यय।
(च) अभिज्ञाय = अभि उपसर्ग √ ज्ञा, ल्यप् प्रत्यय।
(छ) पश्यन् = √ दृश्, शतृ प्रत्यय।
(ज) अनुत्तरयन् = अन् + उद् उपसर्ग √ तु, शतृ प्रत्यय।
प्रश्न 7.
विशेषणं विशेष्येन सह योजयत
उत्तर
विशेषणम् – विशेष्यम्
(क) गम्भीरेण – स्वरेण
(ख) मुमुर्षः – जनः
(ग) कठोरैः – भाषणैः
(घ) परिष्कृतम् – पारदभस्म
(ङ) कपटी – संन्यासिन्
(च) उत्कोचलोभी – नीचः
(छ) देशद्रोहिणः – गूढचरः
(ज) आहूताः – अभ्यागताः
Bhaswati Class 12 Solutions Chapter 5 दौवारिकस्य निष्ठा Summary Translation in Hindi and English
1. संकेत-संवृत्ते किञ्चिदन्धकारे ………………… अभूदालापः
हिन्दी-अनुवाद-कुछ अन्धकार होने पर बन्दूक कंधे पर रखकर, अच्छी तरह से (चारों ओर) देखता हुआ तथा आते-जाते हुए को जानतें समझते हुए प्रतापदुर्ग के द्वारपाल ने किसी के पैरों की आवाज सुनी। फिर रुककर सामने देखते हुए दीपक का प्रकाश होने पर भी किसी को न देखते हुए गंभीर स्वर में कहा-‘अरे! यहाँ कौन है? कौन है यहाँ?”
एक क्षण के बाद पुनः वही पैरों की आवाज सुनाई पड़ी। फिर क्रोधपूर्वक उसने कहा- “यह कौन बहरा है जो मुझे उत्तर न देकर मरने की इच्छा से यहाँ आ रहा है?” इसके पश्चात् “द्वारपाल! शान्त हो जाओ, क्यों व्यर्थ में मरने वाला और बहरा कहते हो?” इस प्रकार बोलने वाले को बिना देखे ही गम्भीर स्वर में स्निग्ध वाणी को (द्वारपाल ने) सुना (इसके पश्चात् (द्वारपाल ने कहा)
‘तो क्या आप अभी तक महाराज के आदेश को नहीं जानते हैं कि द्वारपाल या पहरेदार के द्वारा तीन बार पूछने पर भी उत्तर न देने वाले को मार दिया जाना चाहिए?’ द्वारपाल के ऐसे कहने पर-क्षमा करें, मैं आ रहा हूँ, आकर सब कुछ बताऊँगा’ ऐसा कहते हुए बारह वर्षीय भिक्षु बालक से अनुकरण किए जाते हुए काषाय वस्त्रधारी, तुम्बी पात्र लिए हुए, भव्यमूर्ति वाले किसी संन्यासी को द्वारपाल ने देखा। तब उन दोनों में इस प्रकार का वार्तालाप हुआ
English-Translation-When it was little dark, the gatekeeper of Pratap fort, who was carrying a gun on his shoulder, who was looking all around carefully and watching all the people who were coming and going, heard some one’s sound of foot-step. Then he stopped and looked . forward being unable to see anyone in the light of lamp even. He asked in slow voice- ‘Oh! who is there? who is there?”
After a moment, the same sound of foot-step was again heard. Then he asked angrily—“Who is this deaf man that is coming here, willing to die, without answering me.”
After that without seeing any one he heard someone saying in soft speech-—”Oh gatekeeper! keep quiet. Why do you call me deaf and one willing to die uselessly?” After that the door keeper said—What! Do you not know by now even the king’s order that one should be killed who do not answer being questioned by the gatekeeper or the watchman even for three times?’ When gatekeeper said so, he saw a beautiful.
sannyasin who was wearing soffron-coloured-clothes holding an earthen or wooden-pot and who was followed by a twelve-years young beggar saying-‘Please excuse me, I am just coming. I will tell you everything after coming there.’ Then this conversation took place between the too .
संकेत-संन्यासी-कथमस्मान् ………………… (तथा कृत्वा) कथ्यताम् । (पृष्ठ 35)
हिन्दी-अनुवाद-संन्यासी-हम संन्यासियों को भी तुम कठोर भाषण से क्यों तिरस्कृत करते हो?
द्वारपाल – भगवन् ! आप संन्यासी हैं, चतुर्थ आश्रम के सेवी हैं, अतः आपको प्रणाम है परन्तु आप स्वामी के आदेश का उल्लंघन करके अपना परिचय दिए बिना चले आ रहे हैं,
इसलिए मैं क्रुद्ध हो रहा हूँ।
संन्यासी-सत्य है, तुम्हारा अपराध क्षमा किया किन्तु संन्यासियों, ब्रह्मचारियों, पण्डितों, स्त्रियों तथा बालकों से कुछ भी नहीं पूछना। अपना परिचय न देने पर भी उन्हें प्रवेश करने
देना।
द्वारपाल-संन्यासी! संन्यासी बहुत कह चुके हो, अब रुको। हम द्वारपाल लोग ब्रह्मा की आज्ञा भी नहीं मानते हैं। केवल महाराज शिववीर की आज्ञा को शिरोधार्य करते हैं। पूर्वाह्न में महाराज के सन्ध्या-पूजन के समय आप जैसे लोगों के मिलने का समय होता है, रात्रि में नहीं।
संन्यासी-तो क्या कोई भी रात्रि में प्रवेश नहीं करता?
द्वारपाल-(क्रोधपूर्वक) कोई भी क्यों नहीं प्रवेश करता? परिचित अथवा परिचय पत्र प्राप्त अथवा आमन्त्रित लोग प्रवेश करते हैं न कि आप जैसे आए हुए कोई भी लोग।
संन्यासी-द्वारपाल! यहाँ आओ, कुछ कान में कहना चाहता हूँ। द्वारपाल-(वैसा करके) कहिए।
English-Translation Why do you insult us by such harsh words?
Gatekeeper-Oh lord! You are a Sannyasin, you are serving the fourth Ashrama, So I bow to you but as you did not obey our lord’s order and are trying to enter without giving your introduction, sol am getting angry.
Sannyasin-O.K., you have been excused. but Sannyasins, Brahmacharis, Pandits, ladies and children should not be asked anything. They should be allowed to enter without giving their introduction even.
Gatekeeper – Oh Sannyasin! OhSannyasin! you have said much, now you keep quiet. We, the gatekeepers, do not accept the order of Brahma even. We follow completely the oreder of great king Shivavira only. The enterance of the people like you is possible only in the noming when our lord worships God and it is not possible during night
Sannyasin – Then, does no. one enter during night?
Gatekeeper – (Angrily). Why no one enters? The people who are well known or who occupy the identity cards or who are invited enter but not people like you.
Sannyasin – Oh gatekeeper ! Come here, I want to tell you something in your ear.
Gatekeeper (Doing so) – Please tell.
संकेत-सन्यासी यदि त्वं ………………….. विजयन्ते। (पृष्ठ 36)
हिन्दी -अनुवाद-संन्यासी-यदि तुम प्रवेश करने से मुझे न रोको तो तुम्हें मैं इसी समय परिष्कृत पारद भस्म दे दूँ जिससे रत्ती भर से भी तुम पचास तोले तक ताँबे का सोना बना सकते हो। द्वारपाल-अरे! कपटी संन्यासी! तुम विश्वासघात और स्वामी से वंचना सिखा रहे हो? वे कोई और ही. नीच लोग होते हैं जो रिश्वत के लोभ से स्वामी को छलकर अपने को गहन अन्धकार (घोर नरक) में गिराते हैं, हम महाराज शिवाजी के सेवक ऐसे नहीं है। (संन्यासी का हाथ पकड़कर) इधर आओ और सच-सच बताओ तुम कौन हो? कहाँ से आए हो? अथवा किसने तुम्हें भेजा है?
मैं तो तुम्हें किसी देशद्रोही का गुप्तचर मानता हूँ। (हाथ खींचकर) तो दुर्गाध्यक्ष के समीप आओ। वे ही तुम्हें पहचानकर तुम्हारे साथ उचित व्यवहार करेंगे। तब संन्यासी ने अनेक बार कहा- ‘छोड़ दो, मैं पुनः नहीं आऊँगा, मैं ऐसा नहीं कहूँग आप महान् हैं, दया करो, दया करो।’ द्वारपाल तो उसे खींचकर ले जाने लगा।
इसके बाद दीपक के पास आकर संन्यासी ने कहा- “द्वारपाल! क्या तुम मुझे नहीं, पहचानते?” तब द्वारपाल ने उस संन्यासी को अच्छी प्रकार से देखा और पहचान लिया तथा कहा- “अरे! क्या आप श्रीमान् गौरसिंह जी हैं? आर्य! इस बेचारे गँवार के अनुचित व्यवहार को क्षमा करें।” यह सुनकर द्वारपाल के पीठ पर हाथ फेरते हुए संन्यासी वेषधारी गौरसिंह ने कहा-“हे द्वारपाल ! मैंने तुम्हारी अच्छी प्रकार से परीक्षा ले ली है, तुम यथायोग्य पद पर ही नियुक्त किए गए हो। तुम्हारे जैसे लोम ही वास्तव में पुरस्कार प्राप्त करने के अधिकारी होते हैं और दोनों लोकों को जीतते हैं।
English-Translation—If you do not prevent me from entering then I give you just now the ash of purified-mercury. By its very small quantity you can convert huge amount of (52 tolas) brass into gold.
Sannyasin-On fraud Sannyasin! you are teaching me violation of trust and deceiving the lord. They may be some other people who fall into deep hell by deceiving their kingdue to the greed of taking bribe. We the attendants of lord Shivaji are not of such nature.
(Holding Sannyasin with his hand) Come here and tell the truth who are you? From where have you come? By whom have you been sent? I consider you to be a spy of some traitor. So, come near the controller of the fort. After recognising you, he will only behave properly with you.
Then that Sannyasin said many times—“Leave me, I will not come here again. I will not say so again. You are a great man. Please have mercy on me.’ The gatekeeper tried to pull him.
After that, the Sannyasin came near the lamp and said-“Oh gatekeeper! Do you not recognise me?” Then the gatekeeper looked seriously towards the Sannyasin and said—“Oh! Are you Shri Gaur Singh Ji? Oh Sir ! Please excuse the uncultured behaviour of this poor uneducated man.”
On hearing this that Sannyasi who was Gaur Singh actually patted the back of that gatekeeper and said. .
“Oh gatekeeper! you have been examined by me seriously and have been placed on the proper past. People like you only deserve prizes and get success in both the worlds.