NCERT Solutions for Class 12 Sanskrit Bhaswati Chapter 7 नैकेनापि समं गता वसुमती

 

Bhaswati Class 12 Solutions Chapter 7 नैकेनापि समं गता वसुमती

अभ्यासः

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत

(क) धाराराज्ये को राजा प्रजाः पर्यपालयत?
उत्तर
सिन्धुलः।

(ख) सिन्धुलः कस्मै राज्यम् अयच्छत् ?
उत्तर
मुजाय।

(ग) सिन्धुलः कस्य उत्सङ्गे भोज मुमोच?
उत्तर
मुञ्जस्य।

    

(घ) मुजः कं.मुख्यामात्यं दूरीकृतवान् ?
उत्तर
बुद्धिसागरम्।

(ङ) कः विच्छायवदनः अभूत् ?
उत्तर
मुजः।

(च) मुजः कं समाकारितवान् ?
उत्तर
वत्सराजम्।

(छ) वत्सराजः भोज रथे निवेश्य कुत्र नीतवान् ? .
उत्तर
वनम्

(ज) कृतयुगालंकारभूतः क आसीत् ? रिभूतः क आसीत्?
उत्तर
राजा मान्धाता।.

(झ) महोदधौ सेतुः केन रचितः?
उत्तर
रामेण !

(ञ) कः वहनौ प्रवेशं निश्चितवान् ?
उत्तर
मुजः।

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत

(क) भोजः कस्य पुत्रः आसीत?
उत्तर
भोजः सिन्धुलस्य पुत्रः आसीत्।

(ख) सिन्धुलः किं विचारयामास?
उत्तर
सिन्धुलः विचारयामास-यद्यहं राज्यलक्ष्मीभारधारणसमर्थं सहोदरमपहाय राज्य पुत्राय प्रयच्छामि तदा लोकापवादः। अथवा बालं मे पुत्रं मुजो राज्यलोभाद्विषादिना मारयिष्यति तदा दत्तमपि राज्यं वृथा !

    

(ग) सभायां कीदृशः ब्राह्मणः आगतवान्।
उत्तर
सभायां ज्योतिः शास्त्रपारंगतः ब्राह्मणः आगतवान् ।

(घ) कः भोजस्य जन्मपत्रिकां निर्मितवान् ?
उत्तर
ज्योतिःशास्त्रपारंगतः ब्राह्मणः भोजस्य जन्मपत्रिकां निर्मितवान्।

(ङ) मुञ्जः किम् अचिन्तयत् ?
उत्तर
मुञ्जः अचिन्तयत् यदि राजलक्ष्मीः भोजकुमारं गमिष्यति तदाहं जीवन्नापि मृतः।

(च) वत्सराजः भोजं कुत्र नीतवान्?
उत्तर
वत्सराजः भोजं वनं नीतवान्।

(छ) वत्सराजः कम् अनमत् ?
उत्तर
वत्सराजः बुद्धिसागरम् अनमत् ।

(ज) मुञ्जः कापालिकं किम् उक्तवान् ?
उत्तर
मुजः कापालिकं स्वपुत्रं प्राणदानेन रक्षितुम् उक्तवान्।

प्रश्न 3.
रेखाङ्कितानि पदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत

(क) सिन्धुलस्य भोजः पुत्र अभवत् ।
उत्तर
कस्य भोजः पुत्र अभवत् ?

(ख) सिन्धुलः राज्यं मुञ्जाय अयच्छत् ।
उत्तर
सिन्धलः राज्यं कस्मै अयच्छत?

(ग) एकदा एकः ब्राह्मणः सभायाम आगच्छत।
उत्तर
एकदा एकः ब्राह्मणः कुत्र आगच्छत् ?

(घ) मुजः भोजस्य जन्मपत्रिकाम् अदर्शयत् ।
उत्तर
मुञ्जः कस्य जन्मपत्रिकाम् अदर्शयत् ?

(ङ) वत्सराजः भोजं गृहाभ्यन्तरे ररक्ष।
उत्तर
वत्सराजः कम् गृहाभ्यन्तरे ररक्ष?

(च) मुजः सभामागतं कापालिक दण्डवत् प्राणमत्।
उत्तर
मुञ्जः सभामागतं कम् दण्डवत् प्राणमत् ?

(छ) भोजः चिरं प्रजाः पालितवान् ।
उत्तर
भोजः चिरं काः पीलतवान् ।

    

प्रश्न 4.
प्रकतिप्रत्ययविभागं कुरुत-.. यथा
उपसर्गः
    

प्रश्न 5.
प्रकृति-प्रत्ययं नियुज्य शब्द लिखत
यथा = आ + सीद् + ल्यप् = आसाद्य
उत्तर
(क) जीव् + शत् = जीवन्।
(ख) मृ + क्त = मृतः।
(ग) चिन्त् + क्त्वा = चिन्तयित्वा।।
(घ) हन् + तव्यत् = हन्तव्यम्।
(ङ) आ + नी + तव्यत् = आनेतव्यम्।
(च) नि + शम् + ल्यप् = निशम्य।
(छ) नम् + क्त्वा = नत्वा ।
(ज) आ + कर्ण + ल्यप् = आकर्ण्य ।
(झ) नि + क्षिप् + ल्यप् = निक्षिप्य।
(ञ) मन् + क्त्वा = मत्वा।
(भ) ज्ञा + क्त्वा = ज्ञात्वा।
(ट) नी + क्तवतु = नीतवान् ।
(ठ) आ + पद् + क्त = आपन्नः।
(ढ) हन् + क्तवतु = हतवान्।
(ण) आ + दिश् + क्त = आदिष्टः ।

प्रश्न 6.
उचित-अथैः सह मेलनं कुरुत यथा-वसुमती-पृथ्वी
उत्तर
(क) निशीथे = रात्रौ।
(ख) प्रणिपत्य = प्रणम्य।
(ग) निशम्य = श्रुत्वा।
(घ) पार्वे = समीपे
(ङ) विपिने = वने।
(च) दशास्यान्तकः = रामः।
(छ) दिवम् = स्वर्गम्।
(ज) अधीत्य = पठित्वा
(झ) महोदधौ = समुद्रे।
(ज) यास्यति = गमिष्यति।

    

प्रश्न 7.
मञ्जूषायां प्रदत्तैः अव्ययशब्दैः रिक्तस्थानानि पूरयत
तु, एव, तदा, किमर्थम्, पुरा, चिरम् ।
उत्तर
पुरा सिन्धुलः नाम राजा आसीत् । सः चिरम् प्रजाः पर्यपालयत् । वृद्धावस्थायां तस्य एकः पुत्र अभवत् । तदा सः अचिन्तयत् किमर्थम् न स्वपुत्रं भ्रातुः मुञ्जस्य उत्सङ्गे समर्पयामि : सिन्धुलः पुत्रं मुञ्जस्य उत्सङ्गे समर्प्य एव परलोकम् अगच्छत् । सिन्धुले दिवंगते मुञ्जस्य मनसि लोभः समुत्पन्नः । लोभाविष्टः सः तुः मुञ्जस्य विनाशार्थम् उपायं चिन्तितवान्।

प्रश्न 8.
उदाहरणानुसारं लिखत-
(क) यथा-पर्यपालयत्
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प्रश्न 9.
विशेषणं विशेष्येण सह योजयत
यथा – महाबलम् – मुजम्
उत्तर
विशेषणम् – विशेष्यम्
(क) बालम् – पुत्रम्
दत्तम् – राज्यम्
दिवंगते – राजनि
ज्योतिःशास्त्रपारंगतः – ब्राह्मणः
इमाम् – भविष्यवाणीम्
बङ्गदेशाधीश्वरम् – वत्सराजम्
सन्तप्तः – मुञ्जः

    

योग्यता विस्तारः

प्रश्न 1.
अधोलिखितानाम् आभाणकानां समानार्थकानि वाक्यानि पाठे अन्वेष्टव्यानि-
उत्तर-
1. चेहरा फीका पड़ गया = विच्छायवदनोऽभूत्।
2. जैसी आपकी आज्ञा = देनदेशः प्रमाणम्। ।
3. लोगों में बात फैल गई = इति कथा लोकेषु प्रसृता।

प्रश्न 2.
पौराणिकपरम्परायां चत्वारः युगाः मताः। ते यथा
उत्तर
पौराणिकपरम्परा में चार युग माने गए हैं
1. कृतयुगः (सत्ययुगः)
2. त्रेतायुगः
3. द्वापरयुगः
4. कलियुगः।

प्रश्न 3.
मान्धाता सूर्यवंशस्य प्रतापी राजा अभवत् । तेन प्रजायाः पालनं सम्यक्तया कृतम् । सः स्वयुगस्य अलङ्कारभूतः नृप आसीत्।
उत्तर
मान्धाता सूर्यवंश के अत्यन्त तेजस्वी राजा हुए। उसने प्रजा का पालन बहुत अच्छी तरह से किया। वह अपने समय का अत्यन्त उत्कृष्ट राजा था।

Bhaswati Class 12 Solutions 7 नैकेनापि समं गता वसुमती Summary Translation in Hindi and English

संकेत-पुरा धाराराज्ये …………. यथेच्छं पृच्छ।
    
    

हिन्दी-अनुवाद-प्राचीन समय में धारा राज्य में सिन्धुल नामक राजा ने बहुत समय तक प्रजाओं का पालन किया। वृद्धावस्था में उसका ‘भोज’ यह पुत्र उत्पन्न हुआ। जब वह पाँच वर्ष का हुआ तब पिता ने अपना बुढ़ापा जानकर मुख्य मन्त्रियों को बुलाकर मुज्ज नामक अपने छोटे भाई को अत्यधिक बलवान् देखकर तथा पुत्र को बालक देखकर सोचा-यदि मैं राजलक्ष्मी का भार उठाने में समर्थ अपने छोटे भाई मुञ्ज को छोड़कर राज्य अपने पुत्र को दे दूँ तो लोगों में निन्दा होगी अथवा यह भी हो सकता है कि मेरे पुत्र को जो अभी बालक है, मुञ्ज राज्य के लालच से विष आदि देकर मरवा दे।

    

तब दिया हुआ राज्य भी व्यर्थ हो जाएगा। इस प्रकार पुत्र की हानि और वंश का विनाश होगा-ऐसा विचारकर राज्य को मुञ्ज को देकर उसकी गोद में भोज़ को डाल दिया। उसके बाद राजा के परलोक चले जाने पर क्रम से राज्य की सम्पदा को प्राप्त कर चुकने वाले मुञ्ज ने बुद्धिसागर नामक मुख्यमन्त्री को व्यापार के लिए पैसा देकर दूर करके उसके स्थान पर किसी और को स्थापित किया। तब एक बार ज्योतिषशास्त्र में निपुण कोई ब्राह्मण आकर राजा से बोला-हे राजन् ! लोग मुझे सर्वज्ञ कहते हैं। इसलिए आप भी इच्छानुसार कुछ पूछे।

English-Translation-In the olden time, in Dhara kingdom, king Sindhula protected his subjects for long. In the old age, his son named Bhoja was born. At the age of five years, his father Bhoja, knowing his old-age, called his eminent ministers and finding his younger brother Munja to be very powerful and his son still a child, thought.

‘If setting aside my brother Munja who is capable of bearing the burden of the kingdom, I install my son as a king then there will be public consure against me.

Moreover, Munja, out of greed for kingdom, may kill my son who is still a child through poison etc. In that case the given kingdom will be useless and there will be loss of son and extinction of the family. Therefore, giving away his kingdom to Munja he put Bhoja, in his lap.

Then gradually, after the death of the king, Munja having obtained the wealth of the kingdom, removed the chief-minister named Buddhi Sagar by giving him money for business and appointed another one in his place. Then, once a Brahman, expert in the science of Astrology, came to the king and said !-Oh king! People call me omniscient. Therefore, you may ask me something whateven you desire…

    

संकेत-ततो…………………… उक्तवान् ।
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हिन्दी-अनुवाद-तब मुञ्ज ने कहा-भोज की जन्मपत्रिका बनाओ। ब्राह्मण ने जन्म पत्रिका बनाकर कहा

English-Translation-Then Munja said—Make the horoscope of Bhoja. Then after making the horoscope, the brahman said.

पञ्चाशत्पञ्चवर्षाणि सप्तमासदिनत्रयम् ।
भोजराजेन भोक्तव्यः सगौडो दक्षिणापथः ।।
    

हिन्दी सरलार्थ-भोजराज पचपन वर्ष, सात महीने तथा तीन दिन गौड देश (बंगाल). सहित दक्षिण भारत पर राज्य का भोग करें।

English-Translation-Bhoja Raja will enjoy the kingdom of the south India along with the Gauda country (Bengal) for fifty-five years, seven months and three days.

संकेत-भोजविषयिणीम् …………………………………. तेन किमुक्तम् ?
    
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हिन्दी-अनुवाद-भोज के विषय में इस भविष्यवाणी को सुनकर राजा के मुख की कान्ति उड़ गई। तब ब्राह्मण को भेजकर रात में शय्या पर लेटकर राजा सोचने लगा-यदि राजलक्ष्मी भोजकुमार को प्राप्त होगी तो मैं जीवित ही मर जाऊँगा। तब उसने अकेले ही कुछ सोचकर बङ्गदेश के राजा वत्सराज को बुलाया। धारानगरी में आकर राजा को प्रणाम करके वत्सराज बैठ गया।

महल को एकान्त (सुनसान) करके राजा ने वत्सराज से कहा–तुम भोज को भुवनेश्वरी के जंगल में रात में मार देना तथा कटा हुआ उसका सिर मेरे पास अन्तःपुर में लाना। ऐसा सुनकर राजा को प्रणाम करके वत्सराज ने कहा-यद्यपि महाराज का आदेश प्रमाण है फिर भी मैं कुछ कहना चाहता हूँ, अपराधयुक्त होते हुए भी मेरे वचन क्षमा कर दिए जाएँ। महाराज! पुत्र का वध कदापि हितकर नहीं होता।

वत्सराज के ऐसे शब्द सुनकर, क्रुद्ध होकर राजा ने कहा-तुम मेरे सेवक हो, मैं जो कहता हूँ वैसा ही करो। तब ‘राजा की आज्ञा का पालन करना चाहिए’ ऐसा मानकर वत्सराज चुप हो गया। बाद में न चाहते हुए भी वत्सराज भोज को रथ में बिठाकर रात्रि में जंगल में ले गया। वहाँ अपने वध की योजना को जानकर भोज ने वत्सराज से कुछ कहा।

    

उसके वचनों से वैराग्ययुक्त होकर वत्सराज ने पुनः उसे नहीं मारा अपितु घर आकर, भोज को घर के अन्दर भूमि पर रखकर उसकी रक्षा की। फिर कृत्रिम रूप से पुनः भोज का मस्तक बनाकर राजमहल . जाकर वत्सराज ने राजा से कहा-श्रीमान् ने जो आज्ञा दी थी वह पूरी कर दी गई है। तब . भोजराज का वध जानकर राजा ने उससे पूछा-हे वत्सराज! तलवार से प्रहार के समय उसने । क्या कहा?

English-Translation. On hearing this prediction about Bhioja king lost his beauty. Then he sent back the brahman and laid down on his bed at night and thought-If the wealth of the kingdom goes to Bhoja Kumar then I can not remain alive. Then being alone he thought of something. After that he called for king Vatsraja of Bangal. Vatsraja came to the city of Dhara, he bowed to the king and sat down there.

After making the palace lonely the king said to Vatsaraja—you should kill Bhoja at night in the forest of Bhuvaneshwari and bring his cut head near me in my palace. Having heard this Vatsraja bowed to the king and said-Even if I should completely follow the order of my majesty still I want to say something. Even if my words are guilty, still I should be excused. Oh king! the assassination of the son is never beneficial.

Oh hearing such words of Vatsaraja the king became angry and said-you are my attendant. You should follow what I say. Then, the king’s order should be followed’-considering so, Vatsaraja kept quiet. Then not willing to do so, still Vatsaraja placed Bhoja in the chariot and he took him forcibly to the forest at night.

Then knowing the planning of his own assassination Bhoja said something to Vatsaraja. Having detachment from the world by his words Vatsaraja did not kill him again but he came back to his house, placed Bhoja inside the house and he protected him. Then Vatsaraja again got an artificial skull of Bhoja, After that he went to the palace and said to the king-the orders of the majesty have been carried out.

    

Then having known the assassination of Bhoja raja being accomplished the king asked him-Oh Vatsaraja! what did the son say when he was being killed by the sword?

संकेत-वत्सराजेन च राज्ञे …………. श्लोकः समर्पितः
    

हिन्दी-अनुवाद-तब वत्सराज ने राजा के लिए भोज के अन्तिम सन्देश के रूप में दिया गया श्लोक प्रस्तुत किया
English Translation-Then Vatsraja presented this verse which was sent by Bhoja as the last-message for the king

मान्धाता च महीपतिः कृतयुगालङ्कारभूतो गतः
सेतुर्येन महोदधौ विरचितः क्वासौ दशास्यान्तकः।
अन्ये वापि युधिष्ठिरप्रभृतयो याता दिवं भूपते!
नैकेनापि समं गता वसुमती नूनं त्वया यास्यति।।
    

हिन्दी सरलार्थ-हे राजन् ! सतयुग के आभूषण के समान राजा मान्धाता चला गया (मृत्यु को प्राप्त हो गया), महासागर पर पुल बनाने वाला तथा रावण का अन्त करने वाला वह राम अब कहाँ है? (अर्थात् नहीं है)। युधिष्ठिर आदि दूसरे राजा भी स्वर्ग सिधार गए। यह पृथ्वी किसी एक के साथ ही नहीं गई लेकिन लगता है निश्चय ही यह आपके साथ जाएगी।

Meaning in English-Oh king! King Mandhata, the ornament of the Satya age-passed away. Where is that Rama who built a bridge on the ocean and who was the destoryer of ten headed i.e. Ravana? Other kings like. Yudhishthira and others also died. This earth did not go certainly with any one of these kings but it seems that it will surely go with you.”

संकेत-श्लोकमिमम् …………….. पालितवान् । (पृष्ठ 54)
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हिन्दी-अनुवाद-इस श्लोक को पढ़कर शोक से व्याकुल मुज ने प्रायश्चित करने … के लिए अपने को अग्नि को सौंपने का निश्चय किया। राजा के अग्नि में प्रवेश के कार्यक्रम को सुनकर वत्सराज ने बुद्धिसागर को प्रणाम करके धीरे-धीरे कहा. हे तात! मेरे द्वारा भोजराज सुरक्षित है। पुनः बुद्धिसागर ने उसके कान में कुछ कहा जिसे सुनकर वत्सराज वहाँ से चला गया। पुनः राजा के अग्निप्रवेश के समय कोई तान्त्रिक सभा में आया।

सभा में आए हए उस तान्त्रिक को दण्डवत् प्रणाम करके मुञ्ज ने कहा-हे योगीन्द्र ! मेरे द्वारा मारे हुए महापापी के पुत्र की प्राणदान देकर रक्षा करें। तब तान्त्रिक ने कहा-हे राजन् ! डरो नहीं। भगवान शिव की कृपा से वह जीवित हो जाएगा। तब तान्त्रिक की योजना के अनुसार भोज को श्मशान भूमि में लाया गया। तब “योगी के द्वारा भोज जीवित कर दिया गया” लोगों में यह कथा फैल गई। तब हाथी पर बैठाकर भोज राजभवन में लाया गया।

    

तब प्रसन्न मन राजा मुञ्ज भोज को राजसिंहासन पर बिठाकर अपनी पटरानियों के साथ तपोवन में चला गया तथा कठोर तपस्या करने लगा और भोज ने दीर्घकाल तक प्रजाओं का पालन किया।

English-Translation-Having recited this verse Munja became very sad and he decided to enter into the fire as a repentence. On hearing the news of the king entering into fire Vatsaraja bowed to Buddhi Sagar and said slowly-Oh respectable one! Bhojaraja is well-protected.

Then Buddhi Sagar said something in his ear, on hearing which Vatsaraja went away from there. Then at the time of king’s enterance into the fire some Tantrika came to the assembly.

Munja saluted with his head-bent to that Tantrika who was present in the assembly and said Oh great Yogil please protect my son by offering him life. Then the tantrika said, Oh king! Do not be afraid. He will be alive by the grace of Lord Shiva. Then Bhoja was brought to the penance ground according to the plan of the tantrika. Then “Bhoja has been brought back to life by the Yogi”, this story became popular among the people.

Then, climbing on the back of the elephant, Bhoja was brought to the royal palace. And the happy king Vunja placed Bhoja on the royal throne and being accompained by his chief queens he went to the penance-grove. He then practised severe penance there. Bhoja then, also protected his subjects for a long-time.

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