Bhaswati Sanskrit Class 12 Solutions Chapter 1 अनुशासनम्
अभ्यासः
एकपदेन उत्तरत
प्रश्न 1.
(क) अयं पाठः कस्माद् ग्रन्थात् संकलितः?
उत्तर
तैत्तिरीय- उपनिषदः
(ख) सत्यात् किं न कर्तव्यम् ?
उत्तर
प्रमादः।
(ग) आचार्यः कम् अनुशास्ति?
उत्तर
अन्तेवासिनम्।
(घ) स्वाध्याय-प्रवचनाभ्यां किं न कर्तव्यम् ?
उत्तर
प्रमादः।
(ङ) अस्माकं कानि उपास्यानि?
उत्तर
सुचरितानि।
प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत.
(क) आचार्यस्य कीदृशानि कर्माणि सेवितव्यानि?
उत्तर
आचार्यस्य अनवद्यानि कर्माणि सेवितव्यानि।
(ख) शिष्यः किं कृत्वा प्रजातन्तुं न व्यवच्छेत्सीः?
उत्तर
शिष्यः प्रियं धनमाहृत्य प्रजातन्तुं न व्यवच्छेत्सीः।
(ग) शिष्याः कर्मविचिकित्सा विषये कथं वर्तेरन् ?
उत्तर-
शिप्याः कर्मविचिकित्सा विषये यथा ब्राह्मणाः सम्मर्शिनः युक्ताः, आयुक्ताः, अलूक्षा धर्मकामाः तथा वर्तेरन्।
(घ) काभ्यां न प्रमदितव्यम् ?
उत्तर
स्वाध्यायप्रवचनाभ्यां न प्रभदितव्यम्।
(ङ) ब्राह्मणाः कीदृशाः स्युः?
उत्तर
ब्राह्मणाः सम्मर्शिनः स्युः ।
प्रश्न 3.
रिक्त स्थानपूर्तिं कुरुत
उत्तर
(क) वेदमनूच्याचार्यों ऽन्तेवासिनम् अनुशास्ति।
(ख) सत्यं वद धर्मं चर।
(ग) यान्यनवद्यानि कर्माणि तानि सेवितव्यानि।.
(घ) यथा ते तत्र वर्तेरन् तथा तत्र वर्तेथाः।
(ड) एषा वेदोपनिषत्।।
प्रश्न 4.
मातृभाषया व्याख्यायेताम्
(क) देवपितृकार्याभ्यां न प्रभदितव्यम् ।
उत्तर
अर्थ-देवताओं तथा पितरों के कार्यों को करने में प्रमाद या आलस्य नहीं करना चाहिए।
व्याख्या-प्रस्तुत पंक्ति में आचार्य अपने शिष्य को उपदेश देते हुए कहते हैं कि देवताओं के अर्थात् पूजा, अर्चना आदि कार्यो में बिल्कुल भी आलस्य नहीं करना चाहिए। इसी प्रकार पितरों के कार्य अर्थात् श्राद्ध, तर्पण आदि कार्यों में भी बिलकूल असावधानी नहीं होनी चाहिए। इस प्रकार आचार्य शिष्य को देवताओं तथा पितरों के कार्यों को सम्पन्न करने का उपदेश दे रहे हैं यहाँ।
(ख) यान्यनवद्यानि कर्माणि तानि सेवितव्यानि।
उत्तर
अर्थ-जो कार्य दोषरहित हैं उनका आचरण करना चाहिए।
व्याख्या-प्रस्तुत पंक्ति में आचार्य अपने शिष्य को उन कार्यों को करने का उपदेश दे रहे हैं जो दोषरहित हैं, पवित्र हैं। मनुष्य में कुछ न कुछ दोष स्वभाव से ही होते हैं, अतः उन दोषपूर्ण कार्यों का परित्याग तथा शुभ एवं पवित्र कार्यों का आचरण किया जाना चाहिए-यही आचार्य का अपने शिष्य के लिए उपदेश है।
प्रश्न 5.
अधोनिर्दिष्टपदानां समानार्थकपदानि कोष्ठकात चित्वा लिखत
उत्तर
(क) अनूच्य = सन्बोध्य।
(ख) संविदा = सद्भावनया।
(ग) झिया = लज्जया।
(ड) उपास्यम् = अनुपालनीयम्।
(सदभावनया, सम्बोध्य, लज्जया. अनपालनीयम. अरूक्षा)
प्रश्न 6.
विरीतार्थकपदैः योजयत-
उत्तर
(क) सत्यम् = असत्यम्।
(ख) धर्मम् = अधर्मम्।
(ग) श्रद्धया = अश्रद्धया।
(घ) अवद्यानि = अनवद्यानि
(ड) लूक्षा = अलूक्षा।
प्रश्न 7.
अघोनिर्दिष्टेषु पदेषु प्रकृति-प्रत्यय-विभागं कुरुत
उत्तर
(क) प्रमदितव्यम् = प्र उपसर्ग, मद धातु + तव्यत् प्रत्यय ।
(ख) अनवयम् = न + अवद्यम्, नञ् तत्पुरूष समास, प्रथमा वि. एकवचन।
(ग) उपास्यम् = उप उपसर्ग, आस् धातु + यत् प्रत्यय।
(घ) अनुशासनम् = अनु उपसर्ग, शास् धातु, ल्युट् प्रत्यय ।
Bhaswati Class 12 Solutions Chapter 1 अनुशासनम् Summary Translation in Hindi and English
संकेत-वेदमनूच्याचार्यः ……………………. चैतदुपास्यम्।
हिन्दी-अनुवाद:
वेद पढ़ाकर आचार्य शिष्य को शिक्षा देते हैं-सत्य बोलो। धर्म का आचरण करो। स्वाध्याय के बारे में लापरवाही मत करो। आचार्य के लिए प्रिय धन लाकर वंश परम्परा को मत तोड़ो। सत्यपालन से प्रमाद नहीं करना चाहिए। धर्म में लापरवाही नहीं करनी चाहिए। मंगलकारी बातों की अवहेलना नहीं करनी चाहिए । ऐश्वर्य की प्राप्ति में आलस्य नहीं करना चाहिए। स्वाध्याय तथा अध्यापन में लापरवाही नहीं करनी चाहिए। देवताओं तथा पितरों के कार्यों को करने में आलस्य नहीं करना चाहिए। माता को देवता मानने वाले बनो। पिता को देवता मानने वाले बनो। आचार्य को देवता मानने वलो बनो।
अतिथि को देवता मानने वाले बनो। जो दोषरहित कर्तव्य हैं उनका सेवन करना चाहिए, अन्य (दोषपूर्ण) का नहीं। जो हमारे अच्छे कार्य हैं तुम्हें उनका सेवन करना चाहिए, अन्य नहीं। यदि तुम्हें कर्म के सम्बन्ध में या आचरण के विषय में संदेह हो तो वहाँ जो ब्राह्मण विवेकशील, कर्म में तत्पर, स्वेच्छापूर्वक कर्मपरायण, सरल हृदय तथा धर्मपरायण हों और जैसा वे वहाँ व्यवहार करें वैसा तुम वहाँ व्यवहार करना। यह आदेश है, यह उपदेश है। यह वेदों का रहस्य ज्ञान है। यह शिक्षा है। इस प्रकार उपासना करनी चाहिए। यह ही उपासना करने योग्य है।
English-Translation:
Having taught Veda, the teacher instructs the disciple-speak the truth, practise the righteousness. Don’t be careless in the matter of self-study. Having brought the wealth to the preceptor which is dear to him, do not snap the link of the progeny (or the laws of creation) Do not be careless regarding truth. Do not ignore Dharma (righteousness). Do not be careless in the matter of well-being.
Do not be careless in the matter of riches. Do not be careless in the matter of self-study and teaching. Do not be careless in performing the duties towards the gods and manes. Worship your mother as a goddess. Worship your father as a god. Worship your preceptor as a god. Worship your guest as a god. You should perform only those deeds which are faultless and should not perform others.
You should practise our good deeds only and not others. And if, after this, there arises a doubt about action or about behaviour, then you should act in those matters as the brahmans do who are conscientious, engaged in performing their duties, who fulfill their duties willingly, who are kind hearted and dutiful.
This is order. This is the instruction. This is the mystical knowledge of the vedas. This is the teaching. You should follow this and this should be followed in this manner only.