Bhaswati Sanskrit Class 11 Solutions Chapter 6 शुकशावकोदन्तः
अभ्यासः
प्रश्न 1.
निम्नलिखितप्रश्नानाम उत्तरम संस्कतेन लिखत –
(क) पम्पाभिधानं पद्मसरः कुत्रासीत्?
उत्तर:
पम्पाभिधानं पद्मसरः विन्ध्याटव्याम् आसीत्।
(ख) शुकः क्व निवसति स्म?
उत्तर:
शुकः शाल्यमलीवृक्षस्य कोटरे निवसति स्म।
(ग) शबराणां कीदृशं जीवनं वर्तते?
उत्तर:
शबराणां जीवनं मोहप्रायं वर्तते।
(घ) हारीतः कस्य सुतः आसीत्?
उत्तर:
हारीतः जाबालिमुनेः सुतः आसीत्।
(ङ) जीवनाशा किं करोति?
उत्तर:
जीवनाशा खलीकरोति।
(च) शुकस्य पिता कीदृशानि फलशकलानि तस्मै अदात्?
उत्तर:
शुकस्य पिता शुककुलावदलितानि फलशकलानि तस्मै अदात्।
(छ) मृगयाध्वनिमाकर्ण्य शुकः कुत्र अविशत्?
उत्तर:
मृगयाध्वनिमार्ण्य शुकः पितुः पक्षपुटान्तरमविशत्।
(ज) शबरसेनापतिः कस्मिन् वयसि वर्तमानः आसीत्?
उत्तर:
शबरसेनापतिः प्रथमे वयसि वर्तमानः आसीत्।
(झ) केषां किम् दुष्करम्?
उत्तर:
अकरुणानाम् किं दुष्करम्।
(ञ) कः शुकस्य तातम् अपगतासुमकरोत्?
उत्तर:
जरच्छबरः तातम् अपगतासुमकरोत्।
प्रश्न 2.
पाठमाधृत्य बाणभट्टस्य गद्यशैल्याः विशेषताः लिखत –
उत्तर:
बाण की गद्यशैली की विशेषताएँ बाण के गद्य में सामान्यतः लम्बे समासों की भरमार रहती है। कहीं-कहीं छोटे-छोटे समास तथा समासों का अभाव भी मिलता है। वास्तव में बाण के समय में समासबहुलता गद्यकाव्यों में आवश्यक मानी जाती थी, कहा भी गया है – “ओजः समासभूयस्वमेतत गद्यस्य जीवितम्।”
बाण प्रसंग का पूरा ध्यान रखते हैं। प्रसंगानुसार वे समासबहुल या समासहीन भाषा का प्रयोग करते हैं। बाण पाञ्चाली गद्यशैली के अनुयायी हैं। वे अर्थ के अनुरूप शब्दों की योजना करते हैं। सरस प्रसंगों में कोमल कान्त पदावली का प्रयोग करते हैं तथा विन्द्र याटवी, शबर सेनापति आदि की भीषणता का चित्रण करने में कठोर वर्गों की योजना भी उनके द्वारा की गई है।
बाण का शब्दकोष अक्षय है। एक ही बात को अनेक रूपों मे तथा नए-नए शब्दों द्वारा अभिव्यक्त करने में वे पूर्ण दक्ष हैं। अलंकारों के सुन्दर प्रयोग से बाण की गद्य शैली विशेष आकर्षक हो गई है किन्तु इनकी गद्यशैली की तीखी आलोचना भी की गई है क्योंकि इनके काव्यों में असंख्य विशेषणों से लदे हुए तथा जटिल समस्त पदावली से भरपूर लम्बे-लम्बे वाक्यों के प्रयोग से पाठक बहुधा झुंझला उठते हैं।
प्रश्न 3.
मातृभाषया शबरसेनापते: चरित्रम् लिखत –
उत्तर:
शबरसेनापति विवेकशून्य था, मदिरा मांस उसका भोजन था, शिकार करना परिश्रम, गीदड़ियों का रोना शास्त्र तथा पक्षियों की जानकारी ही इसका ज्ञान था। इसके अतिरिक्त यह जिस जंगल में रहता था उसे खोदकर पूरी तरह नष्ट-भ्रष्ट कर देता था – यही इसके स्वभाव की विशेषताएँ थीं।
प्रश्न 4.
अधोलिखितानां भावार्थ लिखत –
(क) किमिव हि दुष्करमकरुणानाम्।
उत्तर:
वृद्ध शबर अतीव निर्दयतापूर्वक वृक्ष पर चढ़कर वृक्ष के खोखले के अन्दर से शुकशावकों को फलों की तरह पकड़ने लगा तथा उन्हें मारकर पृथ्वी पर गिरा रहा था। इसी भाव को अभिव्यक्त करते हुए कवि ने कहा है कि निष्ठुर लोगों के लिए कोई भी काम कठिन नहीं है। इस पंक्ति में शबर की निर्दयता अभिव्यक्त की गई है।
(ख) नास्ति जीवितादन्यदभिमततरमिह जगति सर्वजन्तूनाम्।
उत्तर:
पिता ने जीवन के अन्तिम क्षण तक अपने पंखों में छिपाकर भी अपने सुत उस शुकशावक की रक्षा की किन्तु उसकी मृत्यु के उपरान्त बहुत शीघ्र वह जल आदि की इच्छा अनुभव करने लगा, इसी भाव को अभिव्यक्त करने के लिए महाकवि बाण यहाँ कहते हैं कि सभी प्राणियों के लिए अपने जीवन से बढ़कर कुछ भी अधिक प्रिय नहीं हैं। इस प्रकार प्राणियों के लिए उनका अपना जीवन सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण एवं प्रिय है- यही भाव है इस पंक्ति का।
(ग) सर्वथा न कञ्चिन्न खलीकरोति जीवनाशा।
उत्तर:
वह शुकशावक पिता की मृत्यु के बाद भी जीवन की लालसा से युक्त है। वैसे भी कोई किसी की मृत्यु के कारण स्वयं अपने जीवन का विनाश नहीं करता। इसी कारण अपने को धिक्कारता है वह शुकशावक और कह उठता है कि जीवन की लालसा मनुष्य को नीच (कृतघ्न) बना देती है। वह पिता के उपकारों का किसी भी प्रकार से बदला नहीं चुका सका यही भाव है इस पंक्ति का।
(घ) प्रायेण अकारणमित्राण्यतिकरुणाणि च भवन्ति सतां चेतांसि।।
उत्तर:
सज्जनों का स्वभाव वर्णित किया गया है इस पंक्ति में। जाबलिमुनि का पुत्र हारीत अत्यन्त कोमल स्वभाव वाला था। उसने शुकशावक को पानी की बूंदें पिलाईं तथा उसे जीवनशक्ति प्रदान की। उसी का दयालु स्वभाव वर्णित है इस पक्ति में। न जानते हुए भी उस मुनिसुत ने शुकशावक के प्रति अत्यन्त दया का भाव प्रकट किया।
प्रश्न 5.
शुकशावकस्य आत्मकथां संक्षेपेण लिखत –
उत्तर:
कादम्बरी की कथा की भू शुक अपनी पूर्णकथा इस प्रकार सुनाता है –
मैं (शुकशावक) विन्ध्याटवी में पम्पा पद्मसरोवर के पश्चिमी तट पर स्थित शाल्मली वृक्ष पर अपने पिता के साथ रहता था। मेरा जन्म होते ही प्रसव वेदना से मेरी माता की मृत्यु हो गई। एक बार एक शबर सेना शिकार करने उधर आई। इस सेना में से एक वृद्ध शबर पीछे रह गया और उसने उस शाल्मली वृक्ष पर चढ़कर मेरे बूढ़े पिता की गर्दन मरोड़कर मृत्यु कर दी और उसे नीचे फेंक दिया। उसके पंखों में सिमटा हुआ मैं भी नीचे गिर गया किन्तु सूखे पत्तों के ढेर पर गिरने के कारण मेरे अंग नहीं टूटे तथा एक तमाल वृक्ष की जड़ में छिप जाने के कारण मैं उस शबर की दृष्टि से बच गया।
शबर के चले जाने पर मुझे प्यास लगी। तभी स्नान के लिए जाता हुआ हारीत नामक जाबालि ऋषि का पुत्र वहाँ से आ निकला। उसने प्यार से मुझे पानी पिलाया तथा छाया में बिठाया। स्नान करके वह मुझे अपने पिता महर्षि जाबालि के आश्रम में ले गया। यही है शुक शावक द्वारा वर्णित उसकी आत्मकथा।
प्रश्न 6.
अधोलिखितेषु शब्देषु प्रकृतिप्रत्ययविभागं कुरुत –
उत्तर:
(क) समाहृत्य = सम् और आ उपसर्ग, हृ धातु + ल्यप् प्रत्यय।
(ख) आकर्ण्य = आ उपसर्ग, कर्ण धातु + ल्यप् प्रत्यय।
(ग) निष्क्रम्य = निस् उपसर्ग, क्रम् धातु + ल्यप् प्रत्यय।
(घ) विक्षिपन् = वि उपसर्ग, क्षिप् धातु + शतृ प्रत्यय।
(ङ) उपरतम् = उप उपसर्ग, रम् धातु + क्त प्रत्यय।
(च) गृहीत्वा = ग्रह धातु + क्त्वा प्रत्यय।
(छ) अभिलाषः = अभि उपसर्ग, लष् धातु + घञ् प्रत्यय।
(ज) संचरमाणः = सम् उपसर्ग, चर् धातु + शानच् प्रत्यय।
प्रश्न 7.
रिक्तस्थानानि पूरयत –
उत्तर:
(क) अस्ति भुवो मेखलेव विन्ध्याटवी नाम।
(ख) ममैव जायमानस्य प्रसववेदनया में जननी मृता।
(ग) अहो मोहप्रायम् एतेषां जीवितम्।
(घ) तातः स्नेहपरवशो मद्रक्षणे आकुलः अभवत्।
(ङ) सर्वथा न कञ्चित् न खलीकरोति जीवनाशा।
प्रश्न 8.
सन्धिविच्छेदं कुरुत –
उत्तर:
(1) तस्यैवैकस्मिन् = तस्य + एव + एकस्मिन्।
(2) तातस्तु = तातः + तु।
(3) प्रत्यूषसि = प्रति + उपसि।
(4) अचिराच्च। = अचिरात् + च।
(5) चिन्तयत्येव = चिन्तयति + एव।
(6) फलानीव = फलानि + इव।
(7) तावदहम् = तावत् + अहम् !
(8) तेनैव = तेन + एव।
(9) चादाय = च + आदाय।
योग्यताविस्तार:
पम्पा – पम्पा नामक एक प्रसिद्ध सरोवर है जो आजकल ‘पेन्नसिर’ नाम से जाना जाता है। सरोवर के पास में ही ऋष्यमूक पर्वत है। पम्पा नामक नदी इसी सरोवर से निकली है।
विन्ध्याटवी – यह एक पर्वतश्रेणी है जो उत्तरभारत को दक्षिण भारत से पृथक करती है। इसकी गणना सप्तकुल पर्वतो में की जाती है। यह पर्वतमाला मध्यदेश की दक्षिणसीमा में है।
हिमवद – हिमालय और विन्ध्याचल के बीच विनशन (कुरुक्षेत्र) के पूर्व तथा प्रयाग के पश्चिम का देश ‘मध्यदेश’ कहा गया है।
इन पर्वतमालाओं में गहन जंगल हैं जो ‘विन्ध्याटवी’ नाम से कहे जाते हैं। ‘किमिव हि दुष्करमकरुणानाम्’ – इस पाठ में प्रसिद्ध सूक्ति है। इस पाठ में दी हुई ऐसी कुछ अन्य सूक्तियाँ ये हैं –
(क) सर्वथा न कञ्चिन्न खलीकरोति जीवनाशा।
(ख) प्रायेणकारणमित्राण्यति करुणााणि च भवन्ति सतां चेतांसि।
Class 11 Sanskrit Bhaswati Chapter 6 शुकशावकोदन्तः Summary Translation in Hindi and English
संकेत – अस्ति मध्यदेशालङ्कारभूता ……………………………. शेषमेवाकरोदशनम्।
शब्दार्थ (Word-meanings)
अशनम् = खाना : To eat
सरलार्थ – मध्यदेश की आभूषण स्वरूप तथा पृथ्वी की मेखला की तरह विन्ध्य नामक अटवी (जंगल) थी। उसमें पम्पा नामक पद्म सरोवर था। उसके पश्चिमी तट पर बहुत पुराना सेंमल का वृक्ष था। उसके एक खोखले में रहते हुए मेरे पिता का किसी तरह (बड़ी कठिनाई से) मै ही एक पुत्र हुआ। मेरे जन्म के समय प्रसव पीड़ा से मेरी माता की मृत्यु हो गई। पुत्रं स्नेह के कारण अपने शोक को वश में करके मेरे पिता मेरे पालन में तत्पर हो गए। औरों के घोंसलों से गिरे हुए धान की बालों से चावल के दानों को लेकर तथा तोतों के द्वारा कुतरे हुए फलों के टुकड़े इकट्ठे करके (मेरे पिता) मुझे दिया करते थे। मेरे खाने से बचे हुए को ही वे खाया करते थे।
Meaning in English – There was a forest named Vindhya which was like the ornament of Madhya country and a waiste band of the earth. There was a lake full of lotuses Pampa by name in that forest. There was a very old silk-cotton tree on the western bank of that lake. My parents lived in the hollow of that tree when I was born. At the time of my birth my mother died due to unbearable pain of delivery. My father controlled his sorrow and engaged himself in nourishing me due to his affection towards me. My father used to bring the pieces of fruits bitten by other birds and the grains of rice from the rice-plants which fell from other’s nests. He gave those grains to me and ate the remaining grains only after I had eaten.
संकेत – एकदा तु ……………………………….. शबरसेनापतिमपश्यम्।
शब्दार्थ (Word-meanings)
सरलार्थ – एक बार सूर्योदय से पहले अचानक उस वन में शिकार का शोर होने लगा। उसे सुनकर भय से व्याकुल तथा शुक शावक (तोते का बच्चा) होने से काँपता हुआ मै पिता के पंखों के बीच में घुस गया। शीघ्र ही जंगल को व्याकुल करने वाले मृगया के शोर के शान्त हो जाने पर पिता की गोद से थोड़ा-सा निकलकर खोखले में ही स्थित रहते हुए, गर्दन को फैलाकर ‘यह क्या है? ऐसा देखने की इच्छा से मैंने सामने आती हुई शबरसेना को देखा और उसके मध्य में विद्यमान तरुण अवस्था वाले शबरसेनापति को देखा।
Meaning in English – Once, before sunrise suddenly the noise of hunting was heard in that forest. On hearing that, being a baby of the parrot I got frightened and shivering with fear I entered into the wings of my father. Very soon that frightening noise disappeared. Then I came out very little from the lap of my father and remaining in the hollow itself I spread my neck. I wanted to know what is that. Then I saw an army of the savage tribe coming before us. I also saw there a young commander of that army.
संकेत – आसीच्च मे मनसि …………………………………… दिशमयासीत्।
शब्दार्थ (Word-meanings)
सरलार्थ – मेरे मन में विचारा आया – ‘अरे! इनका जीवन कितना विवेकशून्य है। मदिरा, मांस आदि इनका भोजन है, शिकार करना परिश्रम है, गीदड़ियों का रोना शास्त्र है, पक्षियों की जानकारी ज्ञान है। ये जिस जंगल में रहते हैं उसे खोदकर पूरी तरह उजाड़ कर देते हैं – जब मैं ऐसा सोच ही रहा था शबर सेनापति आकर उसी वृक्ष की छाया में सेवकों के द्वारा लाए हुए पत्तों के आसन पर बैठ गया। थोड़ा जल पीकर तथा कमलनालों को खाकर थकान दूर होने पर सारी सेना के साथ (वह सेनापति) अभीष्ट दिशा की ओर चला गया।
Meaning in English: I thought then – ‘Oh! Their life is full of ignorance. Wine, meat, etc. are their food, hunting is exercise, the crying of the female jackals is their shastras and their knowledge is to know the birds. They completely destroy the forest where they live – the commander of that army of the savage tribe reached there as I was thinking so. He sat on the seat made of leaves which were brought by his attendants under the shade of that tree. After drinking little water and eating the stalks of the lotuses his fatigue was removed and then he went towards his desired direction.
संकेत – एकतमस्तु …………………………………… क्षितावपातयत्।
शब्दार्थ (Word-meanings)
सरलार्थ – तभी उस सेना में से एक वृद्ध किरात थोड़ी देर के लिए उसी वृक्ष के नीचे रुंक गया। सेनापति के ओझल हो जाने पर वह वृद्ध किरात उस पर चढ़ने की इच्छा से बहुत देर तक वृक्ष को जड़ से लेकर (ऊपर तक) देखता रहा। उसके देखने से भयभीत शुककुलों के प्राण मानो उसी समय निकल गए। निष्ठुर लोगों के लिए कौन-सा काम कठिन है क्योंकि वह (बूढ़ा शबर) बिना प्रयल के ही उस वृक्ष पर चढ़कर उस वृक्ष के खोखलों के भीतर से शुकशावकों को फलों की तरह पकड़ने लगा और उन्हें मारकर पृथ्वी पर गिराने लगा।
Meaning in English – At that very time, an old Kirata from that army stopped for some time under that tree. When the commander of that army went a little further, that old kirata looked for a long time towards the tree from the root to it’s end with a desire to climb it. Being frightened by his looks, the parrots were about to die. Which work is difficult for the cruel people because that old kirata climbed up that tree easily. He then caught the babies of the parrots like fruits who were inside the hollows of that tree. He then killed them and threw them on the earth.
संकेत – तातस्तु तदवलोक्य …………….. मूलदेशमविशम्।
शब्दार्थ (Word-meanings)
सरलार्थ – उसे देखकर दुःख के कारण दीन तथा अश्रुपूर्ण दृष्टि से इधर-उधर देखते हुए मेरे पिता अपने पंखों से मुझे ढककर स्नेह विवश होकर मेरी रक्षा के लिए व्याकुल हो उठे। दूसरी शाखाओं पर घूमते हुए अपनी भुजाएँ फैलाकर हमारे खोखले के पास आकर उस पापी ने बार-बार अपनी चोंच से प्रहार करने वाले चीखते हुए मेरे तिा को खींचकर मार डाला। छोटा शरीर होने से उसने मुझे नहीं देखा। उसने मेरे मृत पिता को पृथ्वी पर छोड़ दिया। मैंने भी उनके पैरों के बीच में गरदन रखे हुउ चुपचाप उनकी छाती से चिपककर उन्हीं के साथ हवा के कारण इकट्ठे हुए सूखे पत्तों के ढेर पर अपने को गिरा हुआ देखा! जब तक वह वृद्ध शबर उस पेड़ के शिखर से नहीं उतरा तब तक निष्ठुर प्राणी की तरह पिता को छोड़कर स्नेह से अनजान रहकर केवल भय से आक्रान्त होता हुआ इधर-उधर लुढ़कता हुआ मैं समीपवर्ती तमाल वृक्ष की जड़ में घुस गया।
Meaning in English – On seeing him being afflicted with sorrow and having tears in eyes my father covered me with his wings due to affection. He got worried for my protection. Walking on other branches that cruel Kirata spread his arms and came near our hollow. He pulled my father and killed him who was attacking with his beak again and again and who was crying also. He did not see me because my body was very small. He left my dead father on the earth. I saw myself lying on the heap of the dry leaves which were collected by the wind. At that time my neck was hidden between the feet of my father and I was sticking quietly to his chest. Then I left my dead father like a cruel person being ignorant of affection. Being frightened I saw here and there and hy the time that old Kirata got down from the top of that tree, being rolling I entered into the roots of the nearby Tamala tree.
संकेत – अजातपक्षतया …………………………… मरणमद्यैवोपपादयेत्।
शब्दार्थ (Word-meanings)
सरलार्थ – पंख न निकल पाने के कारण, बार-बार मुँह के बल गिरने से, लम्बी-लम्बी सांस लेने से तथा धूल में भरकर रेंगते हुए मेरे मन में यह विचार आया – इस संसार में सब जीवों को जीवन से अधिक प्यारा अन्य कुछ नहीं है। पिता के इस प्रकार मर जाने पर भी मैं जीना चाहता हूँ। मुझ निर्दय, अति निष्ठुर तथा कृतघ्न को धिक्कार है। सचमुच मेरा हृदय नीच है। पिता के द्वारा जो किया गया वह सब मैंने एकदम भुला दिया। ऐसा कोई प्राणी नहीं है जिसे जीवन की लालसा हर प्रकर से नीच नहीं बना देती, जो एसी अवस्था में भी मुझे जल की प्यास से परेशान कर रही है और दिन की यह दशा अत्यन्त कष्टदायक हो रही है। भूमि-धूप से तपी हुई धूल वाली हो गई है। प्यास से शिथिल पड़े हुए मेरे अंग तनिक भी चलने में समर्थ नहीं हैं। मेरा अपने पर ही अधिकार नहीं रह गया। मेरा हृदय डूब रहा है। मेरी आँखों में अँधेरा छा रहा है। शायद क्रूर विधाता मेरे न चाहते हुए भी मुझे आज ही मृत्यु दे दे।
Meaning in English – Due to without grown-up wings, falling, again and again, straight, breathing deeply and crawling with a body full of dust I thought – There is nothing else in this world more agreeable than life for all living beings. I wish to remain alive even after the death of my father. Really I am very mean. I have forgotten everything immediately whatever was done by my father. There is no one in this world who is not made so mean by the desire to live. Thurst to have water is making me restless even in such condition and this condition of the day is creating great trouble. The earth is full of hot dust due to very bright sun. My body-parts have become very weak due to thirst and I am unable to walk at all. I have no authority on my own body. My heart is sinking. There is darkness in my eyes. I hope cruel God may give me death today even if it is not desired.
संकेत – इत्येवं चिन्तयत्येव …………………………… तपोवनमगच्छत्।
शब्दार्थ (Word-meanings)
सरलार्थ – मैं ऐसा सोच ही रहा था कि हारीत नामक जाबालि मुनि का पुत्र समान आयु वाले अन्य मुनिकुमारों के साथ उसी मार्ग से स्नान करने की इच्छा से उसी कमलसरोवर की ओर आया। प्रायः सज्जनों के चित्त अकारण स्नेह करने वाले तथा अत्यन्त करुणा के कारण कोमल हुआ करते हैं। ऐसी अवस्था में देखकर वह ऋषिकुमार मुझे सरोवर के तट पर ले आया तथा कुछ जल की बूंदें लेकर मुझे पिलायीं। प्राणशक्ति उत्पन्न मुझे छाया में रखकर ऋषिकुमार ने स्नान किया। स्नान के अंत में सब मुनिकुमारों के दल के द्वारा पीछा किया जाता हुआ वह ऋषिकुमार मुझे लेकर तपोवन की ओर चल दिया।
Meaning in English – While I was thinking thus, Hareeta, son of sage Jabali came to that lotus-pond to take bath with many other sons of the sages of the same age group. The gentlemen are very kind-hearted as they have affection and kindness for all. Seeing me in such condition that son of the sage took me to the bank of the pond. He made me drink a few drops of water. Thus he kept me who had fresh life now in the shade and then he took bath. After taking bath, being followed by the sons of the sages that son of the sage took me towards the hermitage.