Chapter 1. शीतयुद्ध का दौर
अभ्यास प्रश्नावली
NCERT अभ्यास :
Q1. शीतयुद्ध के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन गलत है?
(क) यह संयुक्त राज्य अमरीका, सोवियत संघ और उनके साथी देशों के बीच की एक प्रतिस्पर्धा थी
(ख) यह महाशक्तियों के बीच विचारधराओं को लेकर एक युद्ध था।
(ग) शीतयुद्ध ने हथियारों की होड़ शुरू की।
(घ) अमरीका और सोवियत संघ सीधे युद्ध में शामिल थे।
उत्तर :
(घ) गलत
Q2. निम्न में से कौन-सा कथन गुट-निरपेक्ष आंदोलन के उद्देश्यों पर प्रकाश नहीं डालता?
(क) उपनिवेशवाद से मुक्त हुए देशों को स्वतंत्र नीति अपनाने में समर्थ बनाना।
(ख) किसी भी सैन्य संगठन में शामिल होने से इंकार करना।
(ग) वैश्विक मामलों में तटस्थता की नीति अपनाना।
(घ) वैश्विक आर्थिक असमानता की समाप्ति पर ध्यान केन्द्रित करता है
उत्तर :
(ग) गलत
Q3. नीचे महाशक्तियों द्वारा बनाए सैन्य संगठनों की विशेषता बताने वाले कुछ कथन दिए गए हैं
प्रत्येक कथन के सामने सही या गलत का चिन्हे लगाएँ|
(क) गठबंधन के सदस्य
देशों को अपने भू-क्षेत्रा में महाशक्तियों वेफ सैन्य अड्डे वेफ लिए स्थान देना
शरूरी था।
(ख) सदस्य
देशों को विचारधरा और रणनीति दोनो स्तरों पर महाशक्ति का समर्थन करना था।
(ग) जब कोई राष्ट्र
किसी एक सदस्य-देश पर आक्रमण करता था तो इसे सभी सदस्य देशों पर
आक्रमण समझा जाता था।
(घ) महाशक्तियाँ
सभी सदस्य देशों को अपने परमाणु हथियार विकसित करने में मदद
करती थीं।
उत्तर :
(क) सही, (ख) सही, (ग) सही, (घ) गलत |
Q4. नीचे कुछ देशों की एक सूची दी गई है। प्रत्येक वेफ सामने लिखे कि वह शीतयुद्ध के दौरान
किस गुट से जुड़ा था?
(क) पोलैंड
(ख) फ्रांस
(ग) जापान
(घ) नाइजीरिया
(ड) उत्तरी
कोरिया
(च) श्रीलंका
उत्तर :
(क) पोलैंड
-साम्यवादी गुट (सोवियत संघ)
(ख) फ़्रांस
-पूंजीवादी गुट (संयुक्त राज्य अमेरिका)
(ग) जापान
-पूंजीवादी गुट (संयुक्त राज्य अमेरिका)
(घ) नाईजीरिया
-गुट -निरपेक्ष में
(ड) उतरी
कोरिया -साम्यवादी गुट (साम्यवादी गुट)
(च) श्रीलंका-
गुट- निरपेक्ष में |
शीतयुद्ध से हथियारों की होड़ और हथियारों पर नियंत्रण - ये दोनों ही प्रक्रियाएं पैदा हुई | इन दोनों प्रक्रियाओं के क्या कारण थें ?
उत्तर :
शीतयुद्ध से हथियारों की और हथियारों पर नियंत्रण- ये दोनों प्रक्रियाएं ही पैदा हुई थी | हथियारों की होड़ से अभिप्राय यह है कि पूंजीवादी गुट एवं साम्यवादी गुट, दोनों ही एक-दुसरे पर अधिक प्रभाव रखने के लिए अपने-अपने हथियारों के भंडार बढाने लगे जिससे विश्व में हथियारों की होड़ शुरू हो गई | दूसरी तरफ हथियारों पर नियंत्रण से अभिप्राय यह है कि दोनों गुट यह सोचते थे कि यदि दोनों गुटों में युद्ध होता है, तो दोनों गुटों को ही अत्यधिक हानि होगी और दोनों गुटों में से कोई भी विजेता बनकर नहीं उभर पाएगा, क्योकि दोनों ही गुटों के पास परमाणु हथियार थे | इसी कारण शीतयुद्ध के दौरान हथियारों पर नियन्त्रण कि प्रक्रिया भी पैदा हुई |
महाशक्तियाँ छोटे देशों के साथ सैन्य गठबन्धन क्यों रखती थीं ? तीन कारण बताइए |
उत्तर :
महाशाक्तियाँ निम्न कारणों से छोटे देशों के साथ सैन्य गठबन्धन रखती थीं-
(1)
महाशक्तियां छोटे देशो के साथ सैन्य गठबन्धन इसलिए करती थीं, ताकि इन देशो से वे अपने हथियार और सेना का संचालन क्र सकें |
(2)
महाशक्तियां छोटे देशों में सैनिक ठिकाने बनाकर दुसमन देश कि जासूसी करते थे |
(3)
छोटे देश सैन्य गठबन्धन के अंतर्गत आने वाले सैनिकों लो अपने देश में रखते थे जिससे महाशक्तियों पर आर्थिक दबाव कम पड़ता था |
(4)
महाशक्तियां आसानी से छोटे देशों पर अपना वर्चस्व कायम करती थी |
Q7. कभी-कभी कहा जाता है कि शीतयुद्ध सीधे तौर पर शक्ति के लिए संघर्ष था और इसका विचारधारा से कोई संबंध नही था | क्या आप इस कथन से सहमत है ? अपने उतर के समर्थन में एक उदाहरण दें |
उत्तर :
शीतयुद्ध के विषय में यह कहा जाता है, कि इसका विचारधारा से अधिक सम्बन्ध नहीं था, बल्कि शीतयुद्ध शक्ति के लिए संघर्ष था | परन्तु इस कथन से सहमत नहीं हुआ जा सकता, क्योंकि दोनों ही गुटों में विचारधारा का अत्यधिक प्रभाव था | पूंजीवादी विचारधारा के लगभग सभी देश अमेरिका के गुट में शामिल थें, जबकि साम्यवादी विचारधारा वाले सभी देश सोवियत संघ के गुट में सामिल थें | विपरीत विचारधाराओ वाले देशों में निरंतर आशंका, संदेह एवं भय पाया जाता था | परन्तु 1991 में सोवियत संघ के विघटन से एक विचारधारा का पतन हो गया और इसके साथ ही शीतयुद्ध भी समाप्त हो गया |
Q8. शीतयुद्ध के दौरान भारत की अमरीका और सोवियत संघ के प्रति विदेश नीति क्या थी ? क्या आप मानते हैं कि इस नीति ने भारत के हितों को आगे बढ़ाया
उत्तर :
शीतयुद्ध के दौरान भारत ने अपने आपको को दोनों गुटों से अलग रखा | भारत ने गुट- निरपेक्षता कि निति अपनाई | भारत ने सदैव दोनों गुटों में पैदा हुए मतभेदों को कम करने के लिए प्रयास किया, जिसके कारण ये मतभेद व्यापक युद्ध का रूप धारण न कर सके |
भारत कि अमेरिका के प्रति विदेश नीति - भारत और अमेरिका में बहुत अच्छे सम्बन्ध कभी नहीं रहे | अच्छे सम्बन्ध न होने का महत्वपूर्ण कारण अमेरिका का पाकिस्तान के प्रति रवैया है | अमेरिका ने कश्मीर के मामले में पाकिस्तान का समर्थन किया और पाकिस्तान को सैनिक सहायता भी दी | बांग्लादेश के मामले पर अमेरिका ने भारत के विरुद्ध सातवाँ समुंद्री बेडा भेजने कि कोशिश की | 1981 में अमेरिका ने भारत कि भावनाओ कि परवाह न करते हुए पाकिस्तान को आधुनिकतम हथियार दिए | 2 जून 1985 में प्रधानमंत्री राजीव गाँधी अमेरिका गए तो संबंध में थोडा बहुत सुधार हुआ | जनवरी 1989 में जॉर्ज बुश अमेरिका के राष्ट्रपति बने, परन्तु उनकी नीतियों में कोई परिवर्तन नहीं आया | प्रधानमंत्री नरसिम्हा राय ने अमेरिका के साथ सम्बन्ध सुधारने का प्रयास किया |
भारत कि सोवियत संघ के प्रति विदेश निति - भारत
के
सोवियत संघ के साथ शुरुआत में तनावपूर्ण सम्बन्ध रहे है, परन्तु जैसे जैसे भारत कि गुट-निरपेक्षता कि नीति स्पष्ट होती गई, वैसे- वैसे दोनों देश एक दुसरे के समीप आते गए | 1960 के बाद भारत और सोवियत संघ के अच्छे सम्बन्ध रहे है | 9 अगस्त, 1971 में को भारत और सोवियत संघ के बीच शांति- मैत्री और सहयोग कि संधि हुई | यह संधि 20 वर्षीय थी | दोनों देशों के नेता एक- दुसरे के देशों में यात्रा करने लगे जिससे दोनों देशों के गहरे सम्बन्ध स्थापित हुए | दोनों देशों के बीच आर्थिक, सांस्कृतिक व वैज्ञानिक सम्बन्ध बढाने के लिए कई समझौते हुए | 9 अगस्त, 1991 को 20 वर्षीय सन्धि 15 वर्ष के लिए और बड़ा दी गई | परन्तु 1991 में सोवियत संघ का बड़ी तेजी विघटन हो गया |
Q9. गुट-निरपेक्ष आन्दोलन को तीसरी दुनिया के देशो ने तीसरे विकल्प के रूप में समझा | जब शीतयुद्ध अपने शिखर पर था तब इस विकल्प ने तीसरी दुनिया के देशो के विकास में कैसे मदद पहुँचाई ?
उत्तर :
द्वितीय विश्व युद्ध के समय जब शीतयुद्ध चरम- सीमा पर था, तब विश्व में एक नई धारणा ने जन्म लिया, जिसे गुट- निरपेक्ष आन्दोलन के नाम से जाना जाता है | गुट- निर्पेकः आन्दोलन से अभिप्राय किसी भी गुट में शामिल न होना गुट- निरपेक्ष कहलाता है |गुट- निरपेक्ष आन्दोलन में आधिकांश विकाशशील एवं नव- स्वतंत्रत देश शामिल थे इन देशों ने गुट- निरपेक्ष आन्दोलन का विकल्प इसलिए चुना क्योंकि वे अपने- अपने देश का स्वतंत्रतापूर्वक रजनीतिक, सामाजिक, व आर्थिक विकास करना चाहते थे | यदि वे किसी भी गुट में शामिल हो जाते तो वे अपने देश का स्वतंत्रतापूर्वक विकास नहीं कर सकते थें, परन्तु गुट- निरपेक्ष आन्दोलन का सदस्य बनकर उन्होंने दोनों गुटों से आर्थिक मदद स्वीकार करके अपने देश के विकास को आगे बढाया | यदि एक गुट किसी विकाशशील या नव-स्वतंत्रता प्राप्त देशों को दबाने का प्रयास करता था, तो दूसरा गुट उसकी रक्षा के लिए आ जाता था तथा उसे हर तरह की मदद प्रदान करता था, इसलिए ए देश अपना विकास बिना रोक टोक के करते थे |
Q10. गुट- निरपेक्ष आंदोलन अब अप्रासगिक हो गया है | आप इस कथन के बारे में क्या सोचते है |अपने उतर के समर्थन में तर्क प्रस्तुत करे |
उत्तर :
गुट- निरपेक्ष आन्दोलन 1961 में नव- स्वतंत्र राष्ट्रों को महाशक्तियों के प्रभाव से बचाने केलिए आरंभ हुआ | इन आन्दोलन का उदेश्य शक्ति गुटों से दूर रह कर अपने देश की पहचान एवं आस्तित्व बनाये रखना था | गुट- निरपेक्ष आन्दोलन का आरंभ शीतयुद्ध काल से ही आरंभ हुआ | वर्तमान समय में शक्ति गुट समाप्त हो चुका हैं और अमेरिका ही एक महाशक्ति देश रह गया है | संसार एकध्रुवीय हो चुका है | फरवरी 1992 में गुट- निरपेक्ष आन्दोलन के विदेश मन्त्रियों के सम्मेलन में मिस्त्र ने कहा था की सोवियत संघ के विघटन, सोवियत गुट तथा शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद गुट- निरपेक्ष आन्दोलन की प्रासंगिकता समाप्त हो गई है | अतः इसे समाप्त क्र देना चाहिए | परन्तु उपरोक्त विवरण के आधार पर न तो यह कहना उचित होगा की गुट- निरपेक्ष आन्दोलन अप्रासंगिक हो गया और न ही ए की इसे समाप्त कर देना चाहिए | वर्तमान परिस्थितियों में गुट- निरपेक्ष आन्दोलन का औचित्य निम्नलिखित रूप से देखा जा सकता है -
(1)
गुट- निरपेक्ष आन्दोलन विकासशील देशों के सम्मान एवं प्रतिष्ठा को बनाये रखने के लिए आवश्यक है |
(2)
निःशस्त्रीकरण, विश्व- शांति एवं मानव आधिकारो की सुरक्षा के लिए गुट- निरपेक्ष आन्दोलन आज भी प्रासंगिक है |
(3)
नई-
अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की स्थापना के लिए गुट- निरपेक्ष आन्दोलन आवश्यक है |
(4)
संयुक्त राष्ट्र- संघ को अमेरिका के प्रभुत्व से मुक्त करवाने के लिए भी इसका औचित्य है |
(5)
अशिक्षा, बेरोजगारी, आर्थिक समानता जैसी समस्याओं के समूल नाश के लिए गुट- निरपेक्ष आन्दोलन आवश्यक है |
(6)
गुट- निरपेक्ष आन्दोलन का लोंकतान्त्रिक स्वरूप इसकी सार्थकता को प्रकट करता है |
(7)
गुट- निरपेक्ष देशों का आज भी इस आन्दोलन के सिद्धांतो में विश्वास एवं इसके प्रति निष्ठा इसके महत्व को बनाये हुए है | अतः यह कहना की वर्तमान एकध्रुविय विश्व में गुट- निरपेक्ष आन्दोलन अप्रासंगिक हो गया है एवं इसे समाप्त कर देना चाहिए |