Chapter 4 India’s External Relations NCERT Solutions

 


 Chapter 4. भारत के विदेश सम्बन्ध

Exercise

Q1.इन बयानों के आगे सही या गलत का निशान लगाएँ :

(क) गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाने के कारण भारत , सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमरीका दोनों

की सहायता हासिल का सका |

(ख) अपने पड़ोसी देशी के साथ भारत के संबंध शुरूआत से ही तनावपूर्ण रहे |

(ग) शीतयुद्ध का असर भारत -पाक संबंधो पर भी पड़ा |

(घ) 1971 की शांति और मैत्री की संधि संयुक्त राज्य अमरीका से भारत की निकटता का परिणाम थी|

उत्तर :

(क) सही (ख) गलत (ग) सही (घ) गलत |

Q2. निम्नलिखित का सही जोड़ा मिलाएँ :

(क) 1950-६४के दौरान भारत की विदेश नीति का लक्ष्य  (i) तिब्बत के धार्मिक नेता जो सीमा पार करके भारत चले आए |
(ख) पंचशील (ii) क्षेत्रीय अखण्डता और संप्रभुता की रक्षा थी थी आर्थिक विकाश |
(ग) बांडुंग सम्मेलन 

(iii) शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिदांत 

(घ) दलाई लामा (iv) इसकी परिणति गुटनिरपेक्ष आन्दोलन में हुई |

उत्तर :

(क) 1950-64 के दौरान भारत की      2. क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता की रक्षा तथा आर्थिक        विदेश नीति का लक्ष्य                 विकास 

(ख) पंचशील                        3. शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धान्त |

(ग) बांडुंग सम्मलेन                  4. इसकी परिणति गुट-निरपेक्ष आन्दोलन में हुई |

(घ) दलाईलामा                      1. तिब्बत के धार्मिक नेता जो सीमा-पार करके भारत चले                                       गए 

Q3. नेहरू विदेश नीति के संचालन को स्वतंत्रता का एक अनिवार्य संकेतक क्यों मानते थे ? अपने

उतर में दो कारण बताएं और उनके पक्ष में उदहारण भी दे |

उत्तर :

नेहरु विदेश नीति के संचालन को स्वतंत्रता का एक अनिवार्य संकेतक इसलिए मानते थे, क्योंकि विदेश नीति का संचालन व्ही देश क्र सकता है, जो स्वतंत्र हो | एक पराधीन देश अपनी विदेश नीति का संचालन नहीं कर सकता क्योंकि वह दूसरे देश के अधीन होता है | जैसे 1947 से पहले भारत स्वमं अपनी विदेश नीति का संचालन नहीं करता था, बल्कि ब्रिटिश सरकार करती थी |

Q4. विदेश नीति का निर्धरण घरेलू जरूरत और अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों के दोहरी दबाव में होता है

'' 1960 के दशक में भारत द्वारा अपनाई गई विदेश नीति से एक उदहारण देता हुआ अपने उतर

की पुष्ठी करे |

उत्तर :

किसी भी देश की विदेश नीति का निर्धारक घरेलू और अन्तर्रष्ट्रीय परिस्थितियों के अंतर्गत होता है | प्रत्येक राष्ट्र विदेश नीति बनाते समय अपनी घरेलू जरूरतों एवं अन्तर्रष्ट्रीय परिस्थितियों को ध्यान में रखता है | उदहारण के लिए, भारत ने 1960 के दशक में जो विदेश नीति अपनाई उस पर चीन एवं पाकिस्तान के युद्द, अकाल, रजनीतिक परिस्थितियां तथा शीतयुद्ध का प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है |

Q5. अगर आपके भारत की विदेश नीति के बारे में फैसला लेने को कहा जाए तो आप इसकी किन

दो बातो को बदलना चाहेगे | ठीक इसी तरह यह भी बताएं कि भारत की विदेश नीति के किन दो

पहलूओं को आप बरकरार रखता चाहेगे | अपने उतर के समर्थन में तर्क दीजिए |

उत्तर :

भारत की विदेश नीति में चीन एवं पाकिस्तान के साथ जिस प्रकार की नीति अपनाई जा रही है, उसमे बदलाव की आवश्कता है, क्योंकि उसमे वांछित परिणाम नहीं मिल पा रहे हैं | इसी प्रकार वर्तमान समय में भारत को शीतयुद्ध का अब कोई अस्तित्व नहीं रह गया है | जहां तक विदेश नीति  के दो पहलुओं को बरकरार रखने की बात है, तो प्रथम गुट- निरपेक्षता के अस्तित्व को बनाए रखना चाहिए, क्योंकि यह भारत की विदेश नीति का मूल आधार है | दिवतीय भारत को संयुक्त राष्ट्र- संघ के साथ सहयोग जारी रखना चाहिए, क्योंकि इससे अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा को बढावा मिलता है |

Q6. निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए :

(क) भारत का परमाणु नीति 

(ख) विदेश नीति के मामलो पर सर्व-सहमति 

उत्तर :

(क) भारत की परमाणु नीति - अनुच्छेद 51 के अनुसार राज्य को अंतर्राष्ट्रीय झगड़ों को निपटाने के लिए मध्यस्थ का रास्ता अपनाने सम्बन्धी निर्देश दिए गए है |

(ख) विदेश नीति के मामलों में सर्व- सहमती आवश्यक है, क्योंकि यदि एक देश की विदेश नीति के मामलों में सर्व-सहमती नही होगी, तो वह देश अंतर्राष्ट्रीय मंचो पर अपना पक्ष प्रभावशाली ढंग से नहीं रख पाएगा | भारत की विदेश नीति के महत्वपूर्ण बिन्दुओं जैसे गुट- निरपेक्षता, साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद का विरोध, दूसरे देशों से मित्रतापूर्ण सम्बन्ध बनाना तथा अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा को बढ़ावा देना, इत्यादि पर सदैव सर्व- सहमती रही है |

Q7. भारत की विदेश नीति का निर्माण शांति और सहयोग के सिदान्तो को आधार मानकर हुआ

लेकिन , 1962-1972 की अवधि यानी महज दस सालो में भारत को तीन युधो का सामना करना

परा | क्या आपको लगता है कि यह भारत की विदेशी नीति की असफलता है अथवा , आप ऐसे

अंतराष्टीय परिस्थितियों का परिणामो मंनेगे ? अपने मन्तव्य के पक्ष में तर्क दीजिए |

उत्तर :

आजादी के समय भारत ने अपनी विदेश नीति का निर्माण शांति और सहयोग के सिद्धांतो के आधार पर किया अर्थात भारत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सभी देशों के साथ शांति एवं सहयोग चाहता था, परन्तु 1962 से लेकर 1972 तक भारत को तीन युद्द लड़ने पड़े तो इसमें कुछ हद तक भारत की विदेश नीति की असफलता भी मणि जाती है तथा अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों का परिणाम थी |  भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पण्डित जवाहर लाल नेहरु ने अपनी विदेश नीति के अंतर्गत सभी पड़ोसी देशों पर विश्वास जताया, परन्तु चीन एवं पाकिस्तान ने उस विश्वास को तोड़ दिया | इसी तरह अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों जैसे शीतयुद्ध ने पाकिस्तान को भारत पर आक्रमण करने के लिए उकसाया |

Q8. क्या भारत की विदेशी नीति से यह झलकता है कि भारत क्षेत्रीय स्तर की महाशक्ति बनना

चाहता है ? 1971 के बांग्लादेश युद्ध के सन्दर्भ में इस प्रश्न पर विचार करे |

उत्तर :

भारत भारतीय उप- महाद्वीप का सबसे महत्वपूर्ण एवं शक्तिशाली देश है | अतः भारत की विदेश नीति का संचालन इस प्रकार से किया गया कि भारत भारतीय उपमहाद्वीप में एक महाशक्ति बनकर उभरें, क्योंकि यदि भारत इस क्षेत्र में एक महाशक्ति बनकर उभरता है, तो इससे इस क्षेत्र के सभी देशों को लाभ पहुचेगा तथा 1971 के युद्द से यह बात स्पष्ट हो गई कि भारत एक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है |

Q9. किसी राष्ट्र का राजनीतिक नेत्रित्व किस तरह उस राष्ट्र की विदेश नीति पर असर डालता है

भारत की विदेशी नीति के उदारण देते हुए इस प्रश्न पर विचार कीजिए |

उत्तर : 

विदेश नीति के निर्माण में उस देश के रजनीतिक नेत्रत्व का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है | रजनीतिक नेत्रत्व की विचारधारा के आधार पर ही देश की विदेश नीति का निर्माण होता है | उदाहरण के लिए, भारतीय विदेश नीति पर इस राष्ट्र के महान नेताओं के वैयक्तिक तत्वों का भी प्रभाव पड़ा | पण्डित नेहरु के विचरों से हमारी विदेश नीति पर्याप्त प्रभावित हुई | पण्डित नेहरु साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद व फासिस्टवाद के घोर विरोधी थे और वे समस्याओं का समाधान करने के लिए शान्तिपूर्ण मार्ग के समर्थक थे | वह मैत्री, सहयोग व सह-अस्तित्व के पोषक थे | साथ ही अन्याय का विरोध करने के लिए शक्ति प्रयोग के समर्थक थे | पण्डित जवाहरलाल नेहरु ने अपने विचारो द्वारा हमारी विदेश नीति के ढांचे को ढाला | पानीक्कर जैसे महान नेताओ के विचारों ने भी हमारी विदेश नीति को प्रभावित किया | शास्त्री जी व भूतपूर्व प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गांधी के कल में हमनें अपनी विदेश नीति के मूल तत्त्वों को कायम रखते हुए इसमें व्यावहारिक तत्त्वों का भी प्रयोग किया |

Q10. निम्नलिखित अवतरण को पढ़े और इसके आधार पर [पूछे गए प्रश्नों के उतर दीजिए :

गुटनिरपेक्षता का व्यापक अर्थ है अपने को किशी भी सैन्य गुट में शमिल नही करने ...इसका अर्थ

होता है चीजो को यथासंभव सैन्य द्रिस्टीकोण से न देखना और इसकी कभी जरूरत आन पड़े तक भी

कीसी सैन्य गुट के नजरिए को अपनाने की जगह स्वतंत्र रूप से विचार करना तथा सभी देशो के

साथ दोस्ताना रिश्ते कायम करना ........

(क) नेहरू सैन्य गुटों से दूरी क्यों बनाना चाहता थे ?

(ख) क्या आप मानते है कि भरत-सोवियत मैत्री की संधि से गुटनिरपेक्षता के सिदान्तो का उल्लंघन

हुआ ? अपने उतर के समर्थन में तर्क दीजिए |

(ग) अगर सैन्य - गुट न होता तो क्या गुटनिरपेक्षता की नीति बेमानी होती ?

उत्तर : 

(क) पं. नेहरु सैन्य गुटों से इसलिए दूरी बनाना चाहते थे क्योंकि किसी सैन्य गुट में शामिल होकर एक देश स्वतंत्र नीति का निर्माण नहीं कर पाता | इसके साथ- साथ सैन्य गुट युद्दों को भी बढ़ावा देते हैं |

(ख) भारत- सोवियत मैत्री की सन्धि से गुट- निरपेक्षता का सिद्दांतों का उलंघन नहीं हुआ, क्योंकि इस सन्धि के पश्चात भी भारत गुट- निरपेक्षता के मौलिक सिद्धांतो पर कायम रहा तथा जब सोवियत संघ की सेनाएं अफगानिस्तान में पहुंची, तो भारतने उसकी आलोचना की |

(ग) यदि विश्व में सैन्य- गुट नहीं होते तो भी गुट- निरपेक्षता की प्रासंगिकता बनी रहती, क्योंकि गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की स्थापना शांति एवं विकास के लिए की गई थी तथा शांति एवं विकास के लिए चलाया गया कोई भी आन्दोलन कभी भी अप्रासंगिक नहीं हो सकता |

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