Class 12 Home Science Chapter 9 विशेष शिक्षा और सहायक सेवाएँ Special Education and Support Services Notes In Hindi


 

Class 12 Home Science Chapter 9 विशेष शिक्षा और सहायक सेवाएँ Special Education and Support Services Notes In Hindi


📚 अध्याय = 9 📚

💠 विशेष शिक्षा और सहायक सेवाएँ 💠

❇️ विशेष शिक्षा :-

🔹 विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों के लिए , शक्षिक प्रावधानों से है अर्थात् उन बच्चों के लिए जिनमें एक या एक से अधिक अपंगताएँ होती हैं और जिनकी भिन्न आवश्यकताएँ होती हैं । ये विशेष शक्षिक आवश्यकताएँ ( एस . ई . एन ) कहलाती हैं ।

🔹 इस प्रकार विशेष शिक्षा का अर्थ सभी व्यवस्थाओं जैसे – कक्षा , घर , सड़क और जहाँ कहीं भी बच्चे जा सकते हैं , वहाँ ऐसे बच्चों के लिए विशेष रूप से रचित निर्देशों से है ।

❇️ विशेष शिक्षक :-

🔹 जो शिक्षक / अध्यापक विशेष शिक्षा प्रदान करते हैं , वे विशेष शिक्षक कहलाते हैं । जो व्यक्ति विशेष शिक्षक बनने का निर्णय करता है , उसकी जीविका विशेष शिक्षा में जीविका ‘ मानी जाती है ।

❇️ भूमिका :-

🔹 कुछ बच्चे ऐसे होते हैं जिन्हें चलने खेलने बोलने , देखने और सुनने में , समाज में लोगों से बातचीत करने अथवा किसी ऐसे कार्य को करने में अस्वाभाविक रूप से कठिनाई होती है जिन कार्यों को करना आप सामान् मानते हैं ।

🔹 इष्तम रूप से संसार का अनुभव करने के लिए उन्हें अधिक प्रयास करना पड़ता है और इनके आस – पास के लोगों को उनके इस प्रयास में उन्हें सक्षम बनाना होता है । 

🔹 विशेष शिक्षा विधियां विकलांग बच्चों को उतना ज्ञान प्राप्त करने में मदद करती हैं जितना वे अपनी पूरी क्षमता हासिल करते हैं । अधिकांश बच्चे सामान कक्षाओं में आसानी से पढ़ सकते हैं तथापि , कुछ बच्चे जिन्हें अपनी अपंगता के स्वरूप के कारण गंभीर कठिनाइयाँ हैं सिर्फ़ उन्हीं के लिए बनाई गयी कक्षाओं में पढ़ें तो उन्हें लाभ होता ।

❇️ बच्चों की विशेष शिक्षा आवश्यकताएँ ( एस . ई . एन . ) :-


विशेष शिक्षा की कुछ कार्यविधियों द्वारा पूरी की जाती हैं । 


अपंग विद्यार्थियों के लिए पृथक अथवा विशिष्ट शिक्षा नहीं है । 


ऐसा उपागम है जो सीखना सुगम बनाता है ।


विभिन्न क्रियाकलापों में उनकी भागीदारी को संभव बनाता है । 


जिनमें वे अपनी अक्षमता के कारण भाग नहीं ले पाते थे ।


❇️ विद्यालयतंत्र अपंग बच्चों को शिक्षा प्रदान करने के लिए पर्याप्त न होने के प्राथमिक कारण :-


सामान् शिक्षा के शिक्षकों को विशेष विधियों से दिशानिर्देशित नहीं किया जाता ।


समावेशी कक्षा में , सभी शिक्षकों को विशेष शिक्षा आवश्यकता वाले विद्यार्थियों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए । उदाहरण : यदि बच्चे में बौद्धिक अक्षमता हो , तो शिक्षक को पाठ रोचक बनाना , छोटी इकाइयों में बाँटाना और बच्चे धीमी गति पढ़ाना हो । 


सभी शिक्षक तो कुछ कौशल अर्जित कर सकते हैं लेकिन विशेष शिक्षक इन विधियों में विशिष्ट प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं ।


❇️ विशेष विद्यालय / कार्यक्रम :-

🔹 केवल विशिष्ट अपंग बच्चों को शिक्षा प्रदान करते है , जैसे- बौद्धिक दोष , प्रमस्तिष्क घात ( सेरीब्रलपाल्सी ) अथवा दृष्टिदोष वाले बच्चों विशेष शिक्षकों की की आवश्यकता उन विशिष् अपंगताओं वाले बच्चों के लिए कार्य करने में प्रशिक्षित हों ।

❇️ समावेशी शिक्षा विद्यालय कार्यक्रम :-

🔹 परिसर में ही विशेष शिक्षा आवश्यकताओं वाले बच्चों के लिए भी कार्यक्रम चलाया जाता है । सभी बच्चे एक साथ सीखते हैं भले ही वे प्रत्येक से भिन्न हो ।

❇️ एकीकृत विद्यालय / कार्यक्रम :-


विशेष आवश्यकता वाले विद्यार्थी नियमित कक्षाओं में पढ़ते हैं । 


विशेष शिक्षक नियमित शिक्षकों के साथ काम समन्वय करते हैं । 


स्कूल प्रणाली कठोर है , बहुत कम बच्चे सामना कर पाते हैं । 


विद्यालय के संसाधन कक्ष में विद्यार्थिय को अतिरिक्त शिक्षा सहायता प्रदान करते हैं ।


❇️ समावेशी शिक्षा :-

🔶 परिभाषा :- जब विशेष शिक्षा आवश्यकता वाले बच्चे / विद्यार्थी सामान् कक्षाओं में अपने साथियों के साथ पढ़ते हैं तो यह व्यवस्था ” समावेशी शिक्षा ” कहलाती है । 

🔶 दर्शन :- इस उपागम को निर्देशित करने वाला दर्शन यह है कि विविध आवश्यकताओं ( शक्षिक , शारीरिक , सामाजिक और भावनात्मक ) वाले विद्यार्थियों को एक साथ ऐसी आयु उपयक्त कक्षाओं / समहों में रखा जाए , जिससे बच्चे अपनी अधिगम क्षमताओं को इष्तम रूप से प्राप्त कर सकें । 

🔶 सिद्धांत :- वे जिस विद्यालय अथवा कार्यक्रम के भाग होते हैं , अपनी पाठ्यचर्या शिक्षण विधियों और भौतिक संरचना में उपयुक् समायोजन और रूपांतरण करते हैं जिससे उनकी शिक्षा सुगम हो सके । 

🔶 विशेष शिक्षक की भूमिका :- ऐसी व्यवस्था में विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को ही नहीं पढ़ाते हैं , बल्कि सामान कक्षा के शिक्षकों को भी शिक्षा संबंधी ( निर्देशात्मक ) सहायता प्रदान करते हैं । 

🔶 लाभ :- सभी छात्रों को लाभ देता है , सभी के लिए एक शिक्षा है । 

🔶 लागत :- परिसर के भीतर , आवश्यकतावाले बच्चों के लिए सुविधा है । इसलिए यह महंगा है । 

🔶 लचीलापन :- यह बहुत लचीला है ।

❇️ सहायता सेवाएँ :-

🔹 विशेष और समावेशी शिक्षा के प्रभावी होने के लिए सहायता सेवाएँ भी उपलब्ध होनी चाहिए । ये विद्यालय के अंदर अथवा समुदाय में स्थित हो सकती हैं  


विशेष शिक्षा की आवश्यकता वाले विद्यार्थियों और शिक्षकों के लिए संसाधन सामग्री ।


विद्यार्थियों के लिए परिवहन सेवा ।


वाक् चिकित्सा ।


शारीरिक और व्यावसायिक चिकित्सा ।


बच्चों , माता – पिता और शिक्षकों के लिए परामर्श सेवा ।


चिकित्सा सेवाएँ ।


नोट :- ( 2 ) से ( 6 ) में विशेषज्ञता प्राप्त करने के लिए मानव पारिस्थिति की और परिवार विज्ञान , के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में उच् शैक्षिक योग्ताएँ एवं प्रशिक्षण ।


❇️ अपंगता :-

🔹 विश्व स्वास्थ्य संगठन ( डब्लू . एच . ओ . ) के अनुसार “ अपंगता ” , एक समावेशी शब्द है जिसमें दोष , सीमित् क्रियाकलाप और भागीदारी में कठिनाई शामिल हैं । कुछ बच्चे शारीरिक , संवेदी अथवा मानसिक दोषों के साथ जन्म लेते हैं , कछ दोष विकसित हो जाते हैं जो उनके दैनिक कार्यों को करने की उनकी कम कर देते हैं । शैक्षिक संदर्भ में इन्हें , ” अपंग ” , बच्चे कहते हैं । 

❇️ अपंगताओं का वर्गीकरण :-


बौद्धिक क्षति ( सीमित बौद्धिक कार्य और अनुकूलनात्मक कौशल ) , 


दृष्टि दोष ( इसमें कम दृष्टि और पूर्ण अंधता शामिल हैं ) , 


श्रवण दोष ( इसमें आंशिक श्रवण हानि और बहरापन शामिल हैं ) , 


प्रमस्तिष्कघात ( सेरीब्रलपाल्सी ) मस्तिष्क की के कारण चलने – फिरने , उठने बैठने , बोलने और हाथ से काम करने में कठिनाई , 


स्वलीनता , ( ऐसी अपंगता जो संप्रेषण / बोलचाल सामाजिक अंतःक्रिया मेलजोल और खेल व्यवहार को प्रभावित करती है ) , 


चलने फिरने संबंधी अपंगता ( हड्डियों , जोड़ों और पेशियों में क्षति के कारण चलने – फिरने में कठिनाई ) , 


अधिगम अक्षमता ( पढ़ने , लिखने और गणित में कठिनाइयाँ )


❇️ अपंगताओं के कारण :-

🔹 क्षतियों के कारणों पर विस्तृत चर्चा इस अध्याय के दायरे से बाहर है । संक्षिप्त रूप से बाहर है । संक्षिप्त रूप से इन कारणों को तीन श्रेणियों में बाँटा जा सकता है 


जन्म से पहले प्रभावित करने वाले आनुवांशिक और गैर – आनुवांशिक दोनों कारक।


ऐसे कारक जो बच्चे को जन्म के समय और उसके तत्काल बाद प्रभावित करते हैं ।


ऐसे कारक जो विकास की अवधि के दौरान बच्चे पर असर करते हैं । 


❇️ विशेष शिक्षा विधियाँ :-

🔹 विशेष शिक्षा की कुछ विशिष्ट विधियाँ और प्रक्रियाएँ होती हैं जो विशेष शिक्षक के लिए विशेष शिक्षा की आवश्यकता वाले बच्चों को क्रमबद्ध तरीके से पढ़ना/सिखाती हैं । 


पहले , विद्यार्थी के स्तर का विकास और अधिगम के विभिन्न क्षेत्रों में मूल्यांकन किया जाता है । उदाहरण के लिए संज्ञानात्मक विकास , ( उदाहरण – गणित की अवधारणाएँ ) भाषा विकास अथवा सामाजिक कौशल के क्षेत्रों में विकास । 


मूल्यांकन रिपोर्ट के आधार पर प्रत्येक विद्यार्थी के लिए एक शिक्षा कार्यक्रम ( आई . ई . पी . ) विकसित किया जाता है जिसका उपयोग विद्यार्थी के व्यवहार करने में मार्गदर्शन के लिए किया जाता है ।


आई . ई . पी का नियमित मूल्यांकन किया जाता है जिससे यह निर्धारण किया जा सके कि अधिगम और विकास के लक्ष्य पूरे हुए हैं या नहीं और विद्यार्थी ने कितनी प्रगति की है । 


पूरे क्रम में सहायक सेवाओं ( जैसे – वाचिकित्सा उपचार परामर्श सेवा ) तक पहुँच और उनका प्रयोग सुगम बनाया जाता है जिससे विशेष शिक्षा के विद्यार्थी पर वांछित प्रभाव पड़ सके । 


❇️ ज्ञान और कौशल :-

🔶 संवेदनशीलता विकसित करना :- यदि किसी अधिक वज़न वाले व्यक्ति को दूसरों द्वारा सैदव मोटा कहकर बुलाया जाए तो यह कथन असंवेदनशीलता की श्रेणी में आता है , क्योंकि इससे उस व्यक्ति की भावनाओं को ठेस पहुँचती है । यह उसे अनुचित तरीके से बुलाना है । विशेष शिक्षकों से अपंग बच्चों के प्रति संवेदनशीलता विकसित करने की उम्मीद की जाती है । वे ऐसे शब्दों और भाषा का प्रयोग करके यह काम कर सकते हैं जैसे सबसे पहले बच्चों के प्रति सम्मान प्रदर्शित करें और उनके साथ इस धारणा के साथ काम करें कि वे बच्चे भी अन्य सभी बच्चों की भाँति सीख सकते हैं और विकास कर सकते हैं । उनमें तथा उनके अभिभावकों में उम्मीद जगा सकें । अपंग बच्चे के प्रति असम्मान अथवा महज़ दया और सहानुभूति का भाव , उनके प्रति असंवेदनशीलता और सम्मान की कमी को दर्शाते हैं ।

🔶 विकलांगता के बारे में जानकारी :- चूँकि विशेष शिक्षक , विशेष शिक्षा आवश्यकता वाले बच्चों के साथ काम पर ध्यान देते हैं , अत : उन्हें विभिन्न प्रकार की अपंगताओं की प्रकृति , इन अपंगताओं वाले बच्चों की विकासात्मक विशेषताओं और उससे संबंधित ऐसी कठिनाइयों अथवा विसंगतियों के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए , जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता है । 

🔶 शिक्षण कौशल :- विशेष शिक्षक के लिए विद्यार्थियों को पढ़ाने की कला और विज्ञान को जानने की आवश्यकता होती है , जिसे शिक्षा शास्त्र कहते हैं । इसका अर्थ है किसी विशेष विषय ।

🔶 अंतर वैयक्तिक कौशल :- जो व्यक्ति बातचीत करने में अच्छे होते हैं , वे विशेष शिक्षक के रूप में प्रभावी हो सकते हैं । तथापि , प्रशिक्षण से आप संप्रेषण / बातचीत के कौशल विकसित कर सकते हैं , क्योंकि इनकी बच्चों के साथ व्यक्तिगत रूप से अथवा समूह में काम करने के लिए आवश्यकता होती है । अकसर बच्चों के माता – पिता और परिवार के अन्य सदस्यों को मार्गदर्शन और परामर्श सेवा की आवश्यकता होती है , जिसके लिए अंतर वैयक्तिक कौशल काफ़ी उपयोगी होते हैं ।

❇️ विशेष शिक्षा में जीविका के लिए तैयार करना :-


इग्नू ‘ समावेशन समर्थित प्रारंभिक बाल्यावस्था विशेष शिक्षा ‘ सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम , न्यूनतम शैक्षिक योग्यता कक्षा X पास ।


अपंगता अध्यनों में स्नातकोत्तर डिग्री ।


बाल विकास , मानव विकास , मनोविज्ञान अथवा सामाजिक कार्य जैसे क्षेत्रों में स्नातकोत्तर डिग्री आर सी . आई . द्वारा मान्यता प्राप्त किसी सर्टिफिकेट , डिप्लोमा अथवा डिग्री पाठ्यक्रम ।


किसी भी क्षेत्र में स्नातक डिग्री लेने के बाद विशेष शिक्षा में स्नातक डिग्री अभ्यार्थी को विशेष समावेशी विद्यालय में शिक्षक ।


गृह – विज्ञान संकायों के अंतर्गत बाल्यावस्था अपंगता से संबंधित पाठ्यक्रम करते हैं ।


❇️ कार्यक्षेत्र :-


‘ पी . डब्ल्यू . डी अधिनियम 1995 ( एस . एस . ए . ) में निःशक्त बच्चों समेत सभी के लिए आठ वर्ष की शिक्षा का प्रावधान है । प्रशिक्षण भारतीय पुर्नवास परिषद् ( आर . सी . आई . ) द्वारा नियंत्रित होता है ।


निजी उद्यम चलाने मार्गदर्शन , परामर्श सेवा


विशेष शिक्षकों और प्रशिक्षकगैर सरकारी संगठन , सर्व शिक्षा अभियान ( एस . एस . ए )


विशेष विद्यालयों में विशेष शिक्षा कार्यक्रमों के अध्यक्ष / प्रबंधक


शिक्षण , अनुसंधान , कार्यक्रमों की योजना बनाने और अपना निजी संगठन स्थापित


प्रारंभिक बाल्यावस्था विशेष शिक्षक कक्षा X के बाद

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