Class 12 Home Science Chapter 10 बच्चों , युवाओं और वृद्धजनों के लिए सहायक सेवाओं , संस्थानों और कार्यक्रमों का प्रबंधन Notes In Hindi


 

Class 12 Home Science Chapter 10 बच्चों , युवाओं और वृद्धजनों के लिए सहायक सेवाओं , संस्थानों और कार्यक्रमों का प्रबंधन Notes In Hindi


📚 अध्याय = 10 📚

💠 बच्चों , युवाओं और वृद्धजनों के लिए सहायक सेवाओं , संस्थानों और कार्यक्रमों का प्रबंधन 💠

❇️ परिचय :-

🔹 किसी भी देश की समृद्धि उसके विभिन्न आयु वर्गों के नागरिको की खुशहाली और प्रगति पर निर्भर करती है । 

🔹 हर देश के कुछ लघु और कुछ दीर्घकालिक वित्तीय सामाजिक लक्ष्य होते हैं जिनकी पूर्ति के लिए सरकार सभी आयु वर्गों को ध्यान में रखते हुए कुछ ऐसी संस्थानों और सेवाओं का गठन करती है जो बच्चों , युवाओं , महिलाओं और वृद्धजनों के जीवन में सुधार के लिए प्रतिबद्ध होती है ।

❇️ महत्त्व :-

🔹 परिवार समाज की मूल इकाई होता है और इसका प्रमुख कार्य अपने सदस्यों की देखभाल करना और उनकी आवश्यकताओं को पूरा करना होता है । 

🔹 हर समुदाय कुछ ऐसी संरचनाओं जैसे कि विद्यालयों , अस्पतालों , विश्वविद्यालयों , मनोरंजन केंद्रों , प्रशिक्षण केंद्रों आदि का निर्माण करता है ।

🔹 जो सहायक सेवाएं प्रदान करते हैं और जिनका उपयोग परिवार के विभिन्न सदस्य अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कर सकते हैं ।

🔹भारत में सहायक तथा विशिष्ट सेवाओं एवं संसाधनों की कमी के परिणाम भारत में निर्धानता का स्तर बहुत बढ़ गया । 

🔹 हर देश तथा राज्य की सरकार और वहाँ के समाज का यह कर्तव्य बनता है कि वह अपने यहाँ के गरीब परिवारों में काम करने वाले नागरिकों के लिए विशेष प्रयासों एवं नीतियों द्वारा उनकी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने का काम करें ।

🔹 ताकि सभी नागरिक अच्छा और स्वस्थ जीवन जिए और बच्चों तथा युवाओं को स्वस्थ परिवेश में विकास के अवसर प्राप्त हो सके । इसके अलावा कार्य करने वाले निजी क्षेत्र तथा गैर – सरकारी संगठनों को भी हर संभव सहायत प्रदान कर चाहिए ।

❇️ समाज के संवेदनशील समूह :-

🔹 बच्चे , युवा और वृद्धजन हमारे समाज के संवेदनशील समूह है ।

❇️ बच्चे संवेदनशील क्यों होते हैं ? 

🔹 बच्चे के सभी क्षेत्रों में उत्तम विकास के लिए यह जरूरी है कि बच्चे की भोजन , आवास , स्वास्थ्य देखभाल , प्रेम , पालन और प्रोत्साहन की आवश्यकताओं को समग्र रूप से पूरा किया जाए । ऐसा न होने कारण बच्चे के विकास पर स्थायी प्रभाव पड़ सकता है । इसी कारण से बच्चे संवेदनशील माने जाते हैं ।

❇️  भारत में किशोरों के लिए न्याय का प्राथमिक वैधानिक ढाँचा :-

🔹 भारत में किशोरों के लिए न्याय का प्राथमिक वैधानिक ढाँचा primary legal framework ) है ।

🔹 यह अधिनियम निम्न दो प्रकार के किशोरों से संबंधित है :-

🔶  वे जो कानून का उल्लंघन करते हैं :-

🔹 कई बार कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चों को बाल अपराधी ( Juvenile ) भी कहा जाता है ।

🔹 उन्हें पुलिस द्वारा इसलिए पकड़ा गया हो क्योंकि उन्होंने ऐसा कोई जुर्म किया हो जिसके लिए उन्हें गिरफ्तार किया जाना जरूरी है ।

🔹 इस अधिनियम में बाल अपराध की रोकथाम तथा बाल अपराधियों के साथ उचित व्यवहार के लिए विशेष दिशा – निर्देश दिए गए हैं । 

🔶 वे जिन्हें देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता होती है :-

🔹 इस अधिनियम के तहत उन बच्चों की देखभाल और संरक्षण का प्रावधान भी है जिनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं होता या जिन्हें बंधुआ मजदूरी या कि कारखाने इत्यादि में गैर कानूनी रूप से रखकर काम करवाया जाता है ।

❇️ देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चों की पहचान :-

🔹 जिनका कोई घर निश्चित स्थान अथवा आश्रय नहीं है अथवा जिनके पास निर्वहन का कोई साधन नहीं है । 

🔹 इनमें छोड़े हुए बच्च सड़क पर पलने वाले बच्चे घर छोड़कर भाग जाने वाले बच्चे और गुमशुदा बच्चे शामिल है ।

🔹 जो किसी ऐसे व्यक्ति के साथ रहते हैं जो बच्चे की देखभाल के लिए बिल्कुल भी ठीक नहीं होता है या , जहाँ बच्चे के मारे जाने उनके साथ दुर्व्यवहार होने या फिर व्यक्ति द्वारा उसके प्रति लापरवाही बरतने की संभावना होती है । 

🔹जिन बच्चो को मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग , बीमार अथवा किसी लंबी या ठीक न होने वाली बीमारी हो और जिनके पास उनकी देखभाल या सहायता के लिए कोई न हों ।

🔹 जिन्हें यौन दुर्व्यवहार या अनैतिक कामो के लिए दंडित किया जाता है ।

🔹 जो नशीली दवाओं की लत या उनके अवैध व्यापार के लिए संवेदनशील होते है ।

🔹 जो सशस्त्र विद्रोह नागरिक विद्रोह या प्राकृतिक आपदा के शिकार होते हैं ।

❇️ संस्थागत कार्यक्रम और बच्चों के लिए पहल :-

🔹 निम्नलिखित कुछ ऐसे ही प्रयासों / कार्यक्रमों का विवरण दिया गया है जिन्हें सरकार अथवा गैर सरकारी संगठनों द्वारा चलाय जा रहा है

❇️ समेकित बाल विकास सेवाएँ :-

विश्व का सबसे बड़ा प्रारंभिक बाल्यावस्था कार्यक्रम है । 

🔶 समेकित बाल विकास सेवाएँ के मुख्य उद्देश्य :-

🔹 इस योजना के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित है :-


समेकित तरीके से 0-6 वर्ष तक के बच्चों , किशोरियों गर्भवती तथा धात्री माताओं के स्वास्थ्य , पोषण , टीकाकरण तथा प्रारंभिक शिक्षा संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करना है


गर्भवती तथा धात्री माताओं के लिए स्वास्थ्य , पोषण , स्वच्छता तथा उचित टीकाकरण संबंधी शिक्षा / जानकारी देना ।


3-6 वर्ष तक की आयु के बच्चों को अनौपचारिक विद्यालय पूर्व शिक्षा देना ।


छह वर्ष से कम आय के सभी बच्चों तथा गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए पूरक भोजन वृद्धि की निगरानी तथा मूलभूत स्वास्थ्य एवं देखरेख संबंधी सेवाएँ उपलब्ध कराना ।


इन सेवाओं के अंतर्गत 0-6 वर्ष तक की आयु के बच्चों के लिए टीकाकरण और विटामिन ए पूरकों को प्रदान करता है ।


ये सेवाएँ सभी आँगनबाड़ी देखरेख केंद्र पर समेकित तरीके से दी जाती हैं ।


❇️ एस.ओ.एस. बाल गाँव :-

🔹 एस.ओ.एस. एक स्वतंत्र गैर सरकारी सामाजिक संगठन है जिसने अनाथ और छोड़े हुए बच्चों की लंबे समय तक देखरेख के लिए परिवार मॉडल पर आधारित अभिगम ( family approach ) को शुरुआत की है ।

🔶 उद्देश्य :-


ऐसे बच्चों को परिवार आधारित दीर्घावधि की देखरेख प्रदान करना है जो किन्हीं कारणों से अपने जैविक परिवारों के साथ नहीं रहते हैं ।


🔶 कार्यविधि तथा लाभ :-


प्रत्येक एस.ओ.एस. घर में एक ‘ माँ होती है जो 10-15 बच्चों की देखभाल करती है ।


यहाँ सभी बच्चे एक परिवार की तरह रहते हैं , जिसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि बच्चे एक बार फिर संबंधों और प्रेम का अनुभव करते हैं ।


ऐसे घरों में बच्चे एक पारिवारिक परिवेश में पलते हैं और एक वयस्क बनने तक उनको व्यक्तिगत रूप से सहायता की जाती है ।


कई एस.ओ.एस. परिवार एक साथ रहते है ताकि एक सहायक ग्राम परिवेश ( supportive village environment ) बनाया जा सकें ।


नोट :- भारत में पहला एस.ओ.एस. गाँव 1964 में स्थापित किया गया था ।


❇️ बाल गृह :-

🔹 यह 3-18 वर्ष के बच्चों के लिए होते है जिन्हें विभिन्न कारणों से राज्य की देखरेख ( custody ) में रखा जाता हैं ।

❇️ बाल गृह के प्रकार :-

🔹 बच्चों के लिए निम्न तीन प्रकार के बाल गृह स्थापित किए जाते हैं :-

🔶 प्रेक्षण गृह :- प्रेक्षण गृहों में मुख्य रूप से गुमशुदा या कहीं से छुड़ाए गए बच्चों को अस्थायी रूप से अशेत उनके माता पिता का पता लगाए जाने तक और उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में जानकारी एकत्रित किए जाने तक रखा जाता है ।

🔶 विशेष गृह :- विशेष गृह वह स्थान होते है जहाँ कानून का उल्लंघन करने वाले 18 वर्ष से कम आयु के किशोर को हिरासती देख रेख में रखा जाता है ।

🔶 किशोर / बाल गृह :- किशोर / बाल गृहों में अधिकतर उन बच्चों को रखा जाता है जिनके परिवार का कोई अता – पता नहीं होता या फिर उन बच्चों को जिनके माता पिता / अभिभावक मर चुके होते है ।

यहाँ ऐसे बच्चों को भी रखा जाता है जिनके माता अभिभावक उन्हें अपने पास / साथ नहीं रखना चाहते हैं ।

❇️ गोद लेना / दत्तक गृहण :-


पहले के समय में परिवार में से ही बच्चा गोद ले लिया जाता था ।


लेकिन बदलते समय के साथ परिवार के बाहर से बच्चा गोद लेने की प्रथा को संस्थागत और विधिक ( institutionalized and legalized ) बना दिया गया है ।


कई गैर सरकारी संगठन ( एन . जी.ओ. ) भी बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया के लिए आवश्यक वितरण प्रणाली प्रदान करते हैं । –


बच्चों को गोद लेने की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की सलाह पर एक केंद्रीय संस्था तथा केंद्रीय दत्तक गृहण संसाधन संस्था ( सी.ए.आर.ए. ) का गठन किया है ।


जो बच्चों के कल्याण और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए गोद लेने संबंधी सभी दिशा निर्देश निर्धारित करती है ।


❇️ यूवा क्यों संवेदनशील हैं?


राष्ट्रीय युवा नीति , 2014 में 15-29 वर्ष तक की आयु के व्यक्ति को युवा कहा गया हैं ।


इस नीति में 13-19 वर्ष तक की आयु के व्यक्ति को किशोर किशोरी ( Adolescents ) कहा गया हैं ।


युवावस्था को निम्न कारणों से संवेदनशील अवधि माना जाता :-


🔶 तीव्र शारीरिक परिवर्तन :- 


किशोरावस्था में शारीरिक परिवर्तन बहुत तेजी से होते हैं । अक्सर किशोर इन परिवर्तनों के लिए तैयार नहीं होते इसलिए वह घबरा जाते हैं ।


इसी कारण वह परेशानी और निराशा का अनुभव करते हैं ।


उनके लिए यह समय काफी कठिन होता है क्योंकि इन परिवर्तनों का अपने व्यक्तित्व के साथ समायोजन करने में उन्हें काफी समय लगता है ।


🔶 संवेगात्मक परिवर्तन :-


संवेगात्मक परिवर्तनों के कारण भी किशोर संवेगात्मक रूप से अस्थिर व उत्तेजित महसूस करते हैं ।


इस अवस्था में किशोरों के संवेग बहुत तीव्र और अनियंत्रित होने के कारण उन्हें सर्वगात्मक परिस्थितियों में संभालना कठिन हो जाता है ।


मानसिक अस्थिरता के कारण किशोर तनाव का अनुभव करते हैं ।


🔶 लैंगिक परिवर्तन :-


किशोरावस्था में लैगिक परिवर्तनों के कारण किशारों के जीवन में बड़ी तेजी से परिवर्तन होते हैं ।


लैगिक विकास को प्राप्त करने वाली किशोरियाँ झिझक महसूस करती हैं वहीं देर से परिपक्व होने वाले किशोर चिंतित हो उठते हैं कि उनकी सामान्य किशोरों की तरह दाढ़ी मूछ आएगी या नहीं ?


🔶 सामाजिक परिवर्तन :-


हालांकि किशोर दिखने में किसी वयस्क के समान प्रतीत होते हैं परंतु उनकी मानसिक स्थिति बच्चों की तरह ही होती है ।


कभी तो उनके साथ बड़ों की तरह व्यवहार किया जाता है तो कभी बच्चों की ही तरह समझा जाता है ।


उन्हें बड़ों की तरह जिम्मेदारियाँ तो दी जाती हैं परन्तु यदि वह किसी अधिकार की मांग करते हैं तो उन्हें अभी तुम बच्चे हो ‘ कहकर मना कर दिया जाता है ।


किशोरियों पर भी कई प्रकार के सामाजिक बंधन लगा दिये जाते हैं । जैसे- स्कर्ट की जगह सूट पहनने के लिए कहा जाता है व लड़कों की अपेक्षा घर लौटने का समय निर्धारित कर दिया जाता है ।


🔶 साथियों द्वारा स्वीकृति :-


किशोरों के लिए उसके साथियों की स्वीकृति बहुत महत्वपूर्ण होती है ।


वे अपने मित्र समूह के नियमों के अनुरूप कार्य करना चाहते हैं ताकि मित्रों में उनकी प्रतिष्ठा ( status ) बनी रहे ।


वहीं यदि मित्रों व माता पिता के विचारों में मतभेद हो तो ऐसे में किशोर के लिए दोनों तरफ सामजस्य बनाना काफी कठिन हो जाता है । जिसके कारण किशोर अक्सर तनावग्रस्त रहने लगते हैं । 


🔶 भविष्य की चिंता :-


किशोरावस्था में किशोर अपने भविष्य के बारे में सोचना शुरू कर देते हैं ।


पढ़ाई का उन पर दबाव रहता है ताकि वे अच्छे अंक प्राप्त कर सकें व आगे उच्च शिक्षा के लिए महाविद्यालय प्रवेश पा सके ।


इससे वह बहुत चिन्तित रहते हैं कि वह अपनी आँशाओं को पूरा कर पायेंगे या नहीं , इसलिए वह तनाव की स्थिति में रहते है ।


🔶 विषमलिंगियों के प्रति आकर्षण :-


किशोरों के लिए विषमलिंगियों के प्रति आकर्षण व उनको स्वीकृति प्राप्त करना एक चिता का विषय रहता है ।


वह अपने व्यक्तित्व के बारे में चिन्तित रहते है कि क्या वह विषमलिंगीय मित्रों में लोकप्रिय हो पाएंगे की नहीं , इसी कारण वह हमेशा तनाव व चिंता रहते हैं ।


❇️ राष्ट्रीय सेवा योजना – NSS :-

🔹 राष्ट्रीय सेवा योजना का मुख्य उद्देश्य विद्यालय स्तर के विद्यार्थियों को समाज मे वा और राष्ट्रीय विकास से संबंधित विभिन्न कार्यक्रमों में शामिल करना तथा उनकी सहभागिता बढ़ाना होत है ।

❇️ योजना के अंतर्गत किये गए कार्य :-

🔹 इस योजना के अंतर्गत आमतौर पर निम्न कार्य किए जाते है :-


सड़कों के निर्माण और मरम्मत कार्य ।


विद्यालय की इमारत की सफाई एवं रखरखाव । 


गाँव में तालाबो / ताल आदि का निर्माण ।


वृक्षारोपण , गड्डे खोदना इत्यादि तालाबों से खरपतवारों को निकालना ।


स्वास्थ्य और सफाई संबंधित क्रियाकलाप ।


परिवार कल्याण संबंधी कार्यक्रम बाल – देखरेखसंबंधी कार्यक्रम सामूहिक टीकाकरण कार्यक्रम ।


शिल्प , सिलाई , बुनाई प्रशिक्षण कार्यक्रम ।


व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम ।


❇️ राष्ट्रीय सेवा स्वयंसेवक योजना :-

🔹 इस योजना के अंतर्गत नेहरू युवा केंद्र के माध्यम से ऐसे विद्यार्थियों को पूर्णकालिक रूप से एक या दो वर्ष की अल्पावधि के लिए राष्ट्रीय विकास के कार्यक्रम में शामिल होने का अवसर प्रदान किया जाता है , जो अपनी पहली डिग्री प्राप्त कर चुके हो । 

🔹 इस योजना के अंतर्गत विद्यार्थियों को प्रौढ़ क्लबों की स्थापना कार्य शिविरों के आयोजन , युवा नेतृत्व के प्रशिक्षण कार्यक्रमों , व्यावसायिक प्रशिक्षण , ग्रामीण खेलकूद और वो को बढ़ावा देने के कार्यक्रमों में शामिल किया जाता हैं ।

🔶 योजना का उद्देश्य :-

🔹 इस योजना के माध्यम से नेहरू युवक केंद्रों का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों के -विद्यार्थी युवकों को ग्रामीण क्षेत्रों के विकास में योगदान देने में सक्षम बनाना है ।

🔹 विभिन्न कार्यकलापों के द्वारा राष्ट्रीय रूप से मान्य उद्देश्य जैसे कि आत्मनिर्भरता , धर्म निरपेक्षता , सामाजिकता , प्रजातंत्र राष्ट्रीय एकता और वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देना है । ,

🔹 औपचारिक शिक्षा , समाज सेवा शिविर , युवाओं के लिए खेलों का आयोजन , सास्कृतिक और मनोरंजन के कार्यक्रम व्यावसायिक प्रशिक्षण , युवा नेतृत्व प्रशिक्षण शिविर तथा युवाक्लबों को प्रोत्साहन देना और उनकी स्थापना करना ।

🔹 इसके अतिरिक्त उनमें गणितीय कौशल विकसित करने , उनकी कार्य क्षमता को बेहतर बनाने और उन्हें उनके विकास की संभावनाओं के बारे में जानकार बनाने का प्रयास भी किया जाता है ।

❇️ साहसिक कार्यों को प्रोत्साहन :-

🔹 युवा क्लब और स्वयंसेवी संगठन पर्वतारोहण , दुर्गम रास्तों पर पैदल यात्रा , आँकड़ों के सगृहण के लिए पड़ताल यात्रा , पहाड़ों की वनस्पतियों और जंतुओं वनों , मरुस्थलों और सागरों के अध्ययन , नौकायन , तटीय जलयात्रा , रफ्ट प्रदर्शनियाँ , तैरने और साइकिल चलाने जैसे साहसिक कार्यों के प्रोत्साहन के लिए सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली वित्तीय सहायता का उपयोग करके इन गतिविधियों का आयोजन करते हैं ।

🔹 इन कार्यकलापों / गतिविधियों का उद्देश्य युवाओं में साहस , जोखिम सहयोगात्मक रूप से दल में काम करने पढ़ने की लेने क्षमता और 3 , चुनौती पूर्ण स्थितियों के लिए सहन शीलता विकसित करने को प्रोत्साहन देना होता है । 

🔹 सरकार कार्यकलापों को सुक्ष सुरक्षित बनाने के लिए संस्थानों की स्थापना और विकास के लिए हर संभव सहायता प्रदान करती है ।

❇️ राष्ट्रमंडल युवा कार्यक्रम :-

🔹 भारत पिछले कई वर्षों से राष्ट्रमंडल युवा कार्यक्रमों में भागीदारी कर रहा है । इस भागीदारी का मुख्य उद्देश्य भारतीय युवाओं को देश को विकास प्रक्रियाओं में भागीदारी करने और राष्ट्रमंडल देशों में सहयोग और समझ को बढ़ाने के लिए मंच प्रदान करना है ।

🔹 इस कार्यक्रम के तहत भारत , जाम्बिया और गुआना में अध्ययन के लिए तीन क्षेत्रीय केंद्र स्थापित किए गए हैं । एशिया पैसीफिक क्षेत्रीय केंद्र , चंडीगढ़ , भारत है ।

❇️ राष्ट्रीय एकता को प्रोत्साहन :-

🔹 सरकार अनेक स्वयंसेवी संस्था , वित्तीय सहायता प्रदान करती है ताकि वह ऐसे भ्रमण कार्यक्रम तैयार एवं क्रियान्वित करें जिसमें किसी एक प्रदेश में रहन वाल युवाआ को दूसरे ऐसे प्रदेशों के दौरे पर भेजा जाए जो सांस्कृतिक रूप से काफी भिन्न हों ।

🔹 इन भ्रमण कार्यक्रमों का मुख्य उद्देश्य युवाओं में दूसरे प्रदेशों में स्थिति देश की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों , विभिन्न क्षेत्रों और परिवेशों के लोगों द्वारा झेली जाने वाली कठिनाइयों , देश के अन्य भागों के सामाजिक रीति रिवाजों आदि को अच्छी समझ विकसित करना होता है । 

❇️ वृद्धजन क्यों संवेदनशील है ? 


भारत में 60 वर्ष या उससे अधिक आयु के व्यक्तियों को वरिष्ठ नागरिक माना जाता है ।


चिकित्सा के क्षेत्र में हुई तरक्की के चलते दुनिया समेत भारत में भी वृद्धजनों की जनसंख्या में लगातार वृद्ध हो रही है ।


मानव विकास रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2016 में भारत में वृद्धजनों की जनसंख्या कुल जनसंख्या का लगभग 9 प्रतिशत थी ।


❇️ भारत में वृद्धजनों को जनसंख्या की विशिष्ट विशेषताएँ :-

🔹 भारत में वृद्धजनों को जनसंख्या की विशिष्ट विशेषताएँ निम्नलिखित हैं :-


देश में वृद्धजनों की कुल जनसंख्या का लगभग 80 प्रतिशत भाग ग्रामीण क्षेत्रों में रहता हैं , जिससे सेवाओं का वितरण और आया नौतीपूर्ण हो जाता है ।


वृद्ध जनसंख्या में स्त्रियों की संख्या पुरुषों की अपेक्षा कहीं अधिक है ।


80 वर्ष से अधिक आयु के अति वृद्ध व्यक्तियों की संख्या में वृद्धि हो रही है ।


वरिष्ठ नागरिकों की कुल जनसंख्या का लगभग 30 प्रतिशत भाग गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन कर रहा है ।


वृद्धजनों को निम्न कारणों सरोकार से संवेदनशील समूह की श्रेणी में रखा जाता हैं ।


आयु बढ़ने के अनुरूप वृद्धजन कम शारीरिक शक्ति और रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी के कारण रोगों के प्रति अधिक संवेदना आयु बढ़ने के कारण विभिन्न प्रकार की बीमारियों के अतिरिक्त कई प्रकार की अक्षमताएँ भी होने लगती है ।

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