अध्याय = 8 💠 क्षेत्रीय आकांक्षाएं 💠

 📚 अध्याय = 8 📚

💠  क्षेत्रीय आकांक्षाएं 💠


❇️ स्वययत्ता का अर्थ :-


🔹 भारत में सन् 1980 के दशक को स्वायत्तता के दशक के रूप में देखा जाता हैं ।

🔹 स्वययत्ता का अर्थ होता है किसी राज्य के द्वारा कुछ विशेष अधिकार माँगना । देश मे कई हिस्सों में ऐसी माँग उठाई गई । कुछ लोगो मे अपनी माँग के लिए हथियार भी उठाए ।

🔹 कई बार संकीर्ण स्वार्थो , विदेशी प्रोत्साहन आदि के कारण क्षेत्रीयता की भावना जब अलगाव का रास्ता पकड़ लेती है तो यह राष्ट्रीय एकता और अखण्डता के लिए गम्भीर चुनौती बन जाती है ।


❇️ क्षेत्रीय आकांक्षाये :-


🔹 एक क्षेत्र विशेष के लोगों द्वारा अपनी विशिष्ट भाषा , धर्म , संस्कृति भौगोलिक विशिष्टताओं आदि के आधार पर की जाने वाली विशिष्ट मांगों को क्षेत्रीय आकांशाओं के रूप में समझा जा सकता है ।


❇️ क्षेत्रीयता के प्रमुख कारण :-


धार्मिक विभिन्नता


सांस्कृतिक विभिन्नता


भौगोलिक विभिन्नता


राजनीतिक स्वार्थ


असंतुलित विकास


क्षेत्रीय राजनीतिक दल इत्यादि।


❇️ क्षेत्रवाद और पृथकतावाद में अंतर :-


🔶 क्षेत्रवाद – क्षेत्रीय आधार पर राजनीतिक , आर्थिक एवं विकास सम्बन्धी मांग उठाना । 

🔶 पृथकतावाद – किसी क्षेत्र का देश से अलग होने की भावना होना या मांग उठाना ।


❇️ जम्मू एवं कश्मीर मुद्दा  :-


🔹  यहाँ पर तीन राजनीतिक एवं सामाजिक क्षेत्र शामिल है :- जम्मू , कश्मीर और लद्दाख ।

🔹 कश्मीर का एक भाग अभी भी पाकिस्तान के कब्जे में है । और पाकिस्तान ने कश्मीर का भाग अवैध रूप से चीन को हस्तांतरित कर दिया है स्वतंत्रता से पूर्व जम्मू कश्मीर में राजतंत्रीय शासन व्यवस्था थी ।


❇️ कश्मीर मुद्दा की समस्या की जड़े :- 


🔹1947 के पहले यहां राजा हरी सिंह का शासन था । ये भारत मे नही मिलना चाहते थे ।

🔹  पकिस्तान का मानना था कि जम्मू – कश्मीर में मुस्लिम अधिक है तो इसे पाक में मिल जाना चाहिए ।

🔹 शेख अब्दुल्ला चाहते थे कि राजा पद छोड़ दे । शेख अब्दुल्ला national congress के नेता थे यह कांग्रेस के करीबी थे ।

🔹 राजा हरि सिंह ने इसको अलग स्वतंत्र देश घोषित किया तो पाकिस्तानी कबायलियों की घुसपैठ के कारण राजा ने भारत सरकार से सैनिक सहायता मांगी और बदले में कश्मीर के भारत में विलय करने के लिए विलय पत्र पर हस्ताक्षर किये ।

🔹 तथा भारत ने संविधान के अनुच्छेद 370 के द्वारा विशेष राज्य का दर्जा प्रदान किया ।

🔹 पाकिस्तान के उग्रवादी व्यवहार और कश्मीर के अलगावादियों के कारण यह क्षेत्र अशान्त बना हुआ है ।


❇️ यहाँ के अलगावादियों की तीन मुख्य धाराएँ है –


🔹 1 ) कश्मीर को अलग राष्ट्र बनाया जाए ।

🔹 2 ) कश्मीर का पाकिस्तान में विलय किया जाए।

🔹 3 ) कश्मीर भारत का ही भाग रहे परन्तु इसे और अधिक स्वायत्ता दी जाए ।


❇️ बाहरी और आंतरिक विवाद :-


🔹 पाक हमेशा कश्मीर पर अपना दावा करता है । 1947 युद्ध मे कश्मीर का कुछ हिस्सा पाक के कबजे में आया जिसे आजाद कश्मीर या P.O.K भी कहा जाता है ।

🔹 इसे 370 के तहत अन्य राज्यो से अधिक स्वययत्ता दी गई है ।


❇️ 1948 के बाद राजनीति :-


पहले C.M शेख अब्दुल ने भूमि सुधार , जन कल्याण के लिए काम किया ।


कश्मीर को लेकर केंद्र सरकार और कश्मीर सरकार में मतभेद हो जाते थे ।


1953 में शेख अब्दुल्ला बर्खास्त ।


इसके बाद जो नेता आए वो शेख जितने लोकप्रिय नही थे । केंद्र के समर्थन पर सत्ता पर रहे पर धांधली का आरोप लगा ।


1953 से 1974 तक कांग्रेस का राजनीति पर असर रहा ।


1974 में इंदिरा ने शेख अब्दुल्ला से समझौता किया और उन्हें C.M बना दिया ।


दुबारा National congress को खडा किया । 1977 में बहुमत मिला । 1982 में मौत हो गई।


1982 में शेख की मौत के बाद N.C  की कमान उनके बेटे फारुख अब्दुल्ला ने संभाली । फारुख C.M बने ।


1986 में केंद्र ने N.C से चुनावी गठबन्धन किया ।


❇️ पंजाब संकट :-


🔹 1920 के दशक में गठित अकाली दल ने पंजाबी भाषी क्षेत्र के गठन के लिए आन्दोलन चलाया जिसके परिणाम स्वरूप पंजाब प्रान्त से अलग करके सन 1966 में हिन्दी भाषी क्षेत्र हरियाणा तथा पहाडी क्षेत्र हिमाचल प्रदेश बनाये गये ।

🔹 अकालीदल से सन् 1973 के आनन्दपुर साहिब सम्मेलन में पंजाब के लिए अधिक स्वायत्तता की मांग उठी कुछ धार्मिक नेताओं ने स्वायत्त सिक्ख पहचान की मांग की और कुछ चरमपन्थियों ने भारत से अलग होकर खालिस्तान बनाने की मांग की ।

🔶 ऑपरेशन ब्लू स्टार :-

🔹 सन् 1980 के बाद अकाली दल पर उग्रपन्थी लोगों का नियन्त्रण हो गया और इन्होंने अमृतसर के स्वर्ण मन्दिर में अपना मुख्यालय बनाया । सरकार ने जून 1984 में उग्रवादियों को स्वर्ग मन्दिर से निकालने के लिए सैन्य कार्यवाही ( ऑपरेशन ब्लू स्टार ) की ।

🔶 इंन्दिरा गांधी की हत्या :-

🔹 इस सैन्य कार्यवाही को सिक्खों ने अपने धर्म , विश्वास पर हमला माना जिसका बदला लेने के लिए 31 अक्टूबर 1984 को इंन्दिरा गांधी की हत्या की गई तो दूसरी तरफ उत्तर भारत में सिक्खों के विरूद्ध हिंसा भड़क उठी ।


❇️ पंजाब समझौता :-


🔹 पंजाब समझौता जुलाई 1985 में अकाली दल के अध्यक्ष हर चन्द सिंह लोगोवाल तथा राजीव गांधी के समझौते ने पंजाब में शान्ति स्थापना के प्रयास किये ।


❇️ पंजाब समझौते के प्रमुख प्रावधान :-


चण्डीगढ पंजाब को दिया जायेगा । 


पंजाब हरियाणा सीमा विवाद सुलझाने के लिए आयोग की नियुक्ति होगी । 


पंजाब , हरियाणा , राजस्थान के बीच राबी व्यास के पानी बंटवारे हेतु न्यायाधिकरण गठित किया जायेगा । 


पंजाब में उग्रवाद प्रभावित लोगों को मुआवजा दिया जायेगा । 


पंजाब से विशेष सुरक्षा बल अधिनियम ।


❇️ पूर्वोत्तर भारत :- 


🔹 इस क्षेत्र में सात राज्य है जिसमे भारत की 04 प्रतिशत आबादी रहती है । 

🔹 यहाँ की सीमायें चीन , म्यांमार , बांग्लादेश और भूटान से लगती है यह क्षेत्र भारत के लिए दक्षिण पूर्व एशिया का प्रवेश द्वार है । 

🔹 संचार व्यवस्था एवं लम्बी अन्तर्राष्ट्रीय सीमा रेखा आदि समस्याये यहां की राजनीति को संवेदनशील बनाती है ।

🔹 पूर्वोत्तर भारत की राजनीति में स्वायत्तता की मांग , अलगाववादी आंदोलन तथा बाहरी लोगों का विरोध मुद्दे प्रभावी रहे है ।


❇️ स्वायत्तता की मांग :- 


🔹 आजादी के समय मणिपुर एवं त्रिपुरा को छोड़कर पूरा क्षेत्र असम कहलाता था जिसमें अनेक भाषायी जनजातिय समुदाय रहते थे इन समुदायों ने अपनी विशिष्टता को सुरक्षित रखने के लिए अलग – अलग राज्यों की मांग की ।


❇️ अलगाववादी आन्दोलन :-


🔹 मिजोरम – सन् 1959 में असम के मिजो पर्वतीय क्षेत्र में आये अकाल का असम सरकार द्वारा उचित प्रबन्ध न करने पर यहाँ अलगाववादी आन्दोलन उभारो ।

🔹 सन् 1966 मिजो नेशनल फ्रंट ( M . N . E . ) ने लाल डेंगा के नेतृत्व में आजादी की मांग करते हुए सशस्त्र अभियान चलाया । 1986 में राजीव गांधी तथा लाल डेगा के बीच शान्ति समझौता हुआ और मिजोरम पूर्ण राज्य बना ।


❇️ नागालैण्ड :-


🔹 नागा नेशनल कांउसिल ( N . N . C ) ने अंगमी जापू फिजो के नेतृत्व में सन् 1951 से भारत से अलग होने और वृहत नागालैंण्ड की मांग के लिए सशस्त्र संघर्ष चलाया हुआ है ।

🔹 कुछ समय बाद N . N . C में दोगुट एक इशाक मुइवा ( M ) तथा दुसरा खापलांग ( K ) बन गये । भारत सरकार ने सन् 2015 में N . N . C – M गुट से शान्ति स्थापना के लिए समझौता किया परन्तु स्थाई शान्ति अभी बाकी है ।


❇️ बाहरी लोगों का विरोध :-


🔹 पूर्वोत्तर के क्षेत्र में बंगलादेशी घुसपैठ तथा भारत के दूसरे प्रान्तो से आये लोगों को यहां की जनता अपने रोजगार और संस्कृति के लिए खतरा मानती है ।

🔹 1979 से असम के छात्र संगठन आसू ( AASU ) ने बाहरी लोगों के विरोध में ये आन्दोलन चलाया जिसके परिणाम स्वरूप आसू और राजीव गांधी के बीच शान्ति समझौता हुआ सन् 2016 के असम विधान सभा चुनावों में भी बांग्लादेशी घुसपैठ का प्रमुख मुद्दा था ।


❇️ द्रविड आन्दोलन :-


🔹 दक्षिण भारत के इस आन्दोलन का नेतृत्व तमिलसमाज सुधारक ई . वी . रामास्वामी नायकर पेरियार ने किया ।

🔹 इस आन्दोलन ने उत्तर भारत के राजनीतिक , आर्थिक व सांस्कृतिक प्रभुत्व , ब्राहमणवाद व हिन्दी भाषा का विरोध तथा क्षेत्रीय गौरव बढ़ाने पर जोर दिया । इसे दूसरे दक्षिणी राज्यों में समर्थन न मिलने पर यह तमिलनाडु तक सिमट कर रह गया ।

🔹 इस आन्दोलन के कारण एक नये राजनीतिक दल – “ द्रविड कषगम ” का उदय हुआ यह दल कुछ वर्षों के बाद दो भागो ( D . M . K . एवं A . I . D . M . K . ) में बंट गया ये दोनों दल अब तमिलनाडु की राजनीति में प्रभावी है ।


❇️ सिक्किम का विलय :-


🔹 आजादी के बाद भारत सरकार ने सिक्किम के रक्षा व विदेश मामले अपने पास रखे और राजा चोग्याल को आन्तरिक प्रशासन के अधिकार दिये ।

🔹 परन्तु राजा जनता की लोकतान्त्रिक भावनाओं को नहीं संभाल सका और अप्रैल 1975 में सिक्किम विधान सभा ने सिक्किम का भारत में विलय का प्रस्ताव पास करके जनमत संग्रह कराया जिसे जनता ने सहमती प्रदान की । 

🔹 भारत सरकार ने प्रस्ताव को स्वीकार कर सिक्किम को भारत का 22वाँ राज्य बनाया ।


❇️ गोवा मुक्ति :-


🔹 गोवा दमन और दीव सोलहवीं सदी से पुर्तगाल के अधीन थे और 1947 में भारत की आजादी के बाद भी पुर्तगाल के अधीन रहे ।

🔹 महाराष्ट्र के समाजवादी सत्याग्रहियों के सहयोग से गोवा में आजादी का आन्दोलन चला दिसम्बर 1961 में भारत सरकार ने गोवा में सेना भेजकर आजाद कराया और गोवा दमन , दीव को संघ शासित क्षेत्र बनाया ।

🔹 गोवा को महाराष्ट्र में शामिल होने या अलग बने रहने के लिए जनमत संग्रह जनवरी 1967 में कराया गया और सन् 1987 में गोवा को राज्य बनाया गया ।


❇️ आजादी के बाद से अब तक उभरी क्षेत्रीय आकांक्षाओं के सबक :-


क्षेत्रीय आकांक्षाये लोकतान्त्रिक राजनीति की अभिन्न अंग है ।


क्षेत्रीय आकाक्षाओं को दबाने की बजाय लोकतान्त्रिक बातचीत को अपनाना अच्छा होता है ।


सत्ता की साझेदारी के महत्व को समझना ।


क्षेत्रीय असन्तुलन पर नियन्त्रण रखना ।

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