Class 9 History || Chapter 2 यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति || Socialism in Europe and the Russian revolution Notes In Hindi


 

Class 9 History Chapter 2 यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति Socialism in Europe and the Russian revolution Notes In Hindi


📚 अध्याय = 2 📚

💠 यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति 💠

❇️ सामाजिक परिवर्तन का युग :-

🔹 यह दौर गहन सामाजिक और आर्थिक बदलावों का था । औद्योगिक क्रांति के दुष्परिणाम जैसे काम की लंबी अवधि , कम , मजदूरी , बेरोजगारी , आवास की कमी , साफ – सफाई की व्यवस्था ने लोगों को इस पर सोचने को विवश कर दिया ।

🔹 फ्रांसीसी क्रांति ने समाज में परिवर्तन की संभावनाओं के द्वार खोल दिए । इन्हीं संभावनाओं को मूर्त रूप देने में तीन अलग – अलग विचारधाराओं का विकास हुआ  :-


उदारवादी 


रूढ़िवादी 


परिवर्तनवादी ।


❇️ उदारवादी :-

🔹 उदारवादी एक विचारधारा है जिसमें सभी धर्मों को बराबर का सम्मान और जगह मिले । वे व्यक्ति मात्र के अधिकारों की रक्षा के पक्षधर थे ।

❇️ उदारवादियों के मुख्य विचार :-


अनियंत्रित सत्ता के विरोधी । 


सभी धर्मों का आदर एवं सम्मान । 


व्यक्ति मात्र के अधिकारों की रक्षा के पक्षधर । 


प्रतिनिधित्व पर आधारित निर्वाचित सरकार के पक्ष में ।


सार्वभौमिक व्यस्क मताधिकार के स्थान पर संपत्तिधारकों को वोट का अधिकार के पक्ष में ।


❇️ रुढ़िवादी :-

🔹 यह एक ऐसी विचारधारा है जो पारंपरिक मान्यताओं के आधार पर कार्य करती है ।

❇️ रूढ़िवादी के मुख्य विचार :-


उदारवादियों और परिवर्तनवादियों का विरोध ।


अतीत का सम्मान ।


बदलाव की प्रक्रिया धीमी हो ।


❇️ परिवर्तनवादी :-

🔹 ऐसी विचारधारा जो क्रन्तिकारी रूप से सामाजिक और राजनितिक परिवर्तन चाहता है ।

❇️ परिवर्तनवादियों के मुख्य विचार :-


बहुमत आधारित सरकार के पक्षधर थे ।


बड़े जमींदारों और सम्पन्न उद्योगपतियों को प्राप्त विशेषाधिकार का विरोध ।


सम्पत्ति के संकेद्रण का विरोध लेकिन निजी सम्पत्ति का विरोध नहीं । 


महिला मताधिकार आंदोलन का समर्थन ।


❇️ समाजवादी विचारधारा :-

🔹 समाजवादी विचारधारा वह विचारधारा है जो निजी सम्पति रखने के विरोधी है और समाज में सभी को न्याय और संतुलन पर आधारित विचारधारा है ।

❇️ समाजवादियों के मुख्य विचार :-


निजी सम्पत्ति का विरोध ।


सामुहिक समुदायों की रचना ( रॉवर्ट ओवेन )


सरकार द्वारा सामुहिक उद्यमों को बढ़ावा ( लुई ब्लॉक ) 


सारी सम्पत्ति पर पूरे समाज का नियंत्रण एवं स्वामित्व ( कार्ल मार्क्स और प्रेडरिक एगेल्स )


❇️ औद्योगिक समाज और सामाजिक परिवर्तन :-

🔹 यह ऐसा समय था जब नए शहर बस रहे थे नए औद्योगिक क्षेत्र विकसित हो रहे थे रेलवे का काफी विस्तार हो चुका था । औरतो , आदमियों और बच्चों , सबको कारखानों में लगा दिया काम के घंटे बहुत लंबे होते थे । मजदूरी बहु कम मिलती थी बेरोजगारी उस समय की आम समस्या थी ।

🔹 शहर तेजी से बसते और फैलते जा रहे थे इसलिए आवास और साफ सफाई का काम भी मुश्किल होता जा रहा था । उदारवादी और रैडिकल , दोनों ही इन समस्याओं का हल खोजने की कोशिश कर रहे थे । बहुत सारे रैडिकल और उदारवादियों के पास काफी संपत्ति थी और उनके यहां बहुत सारे लोग नौकरी करते थे ।

❇️ यूरोप में समाजवाद का आना :-

🔹 समाजवादी निजी संपत्ति के विरोधी थे यानी व संपत्ति पर निजी स्वामित्व को सही नहीं मानते थे । उनका कहना था कि बहु सारे लोगों के पास संपत्ति तो है जिससे दूसरों को रोजगार भी मिलता है लेकिन समस्या यह है कि संपत्तिधारी व्यक्ति को सिर्फ अपने फायदे से ही मतलब रहता है वह उनके बारे में नहीं सोचता जो उसकी संपत्ति को उत्पादनशील बनाते हैं ।

🔹 इसलिए उनका कहना है अगर संपत्ति पर किसी एक व्यक्ति के बजाय पूरे समाज का नियंत्रण हो तो सामाजिक हितों पर ज्यादा अच्छी तरह ध्यान दिया जा सकता है ।

🔹 कार्ल मार्क्स का विश्वास था कि खुद को पूंजीवादी शोषण से मुक्त कराने के लिए मजदूरों को एक अत्यंत अलग किस्म का समाज बनाना पड़ेगा उन्होंने भविष्य के समाज को साम्यवादी ( कम्युनिस्ट ) समाज का नाम दिया ।

❇️ समाजवाद के लिए समर्थन :-

🔹 1870 का दशक आते – आते समाजवादी विचार पूरे यूरोप में फैल चुके थे । समाजवादियों ने द्वितीय इंटरनेशनल के नाम से एक अंतरराष्ट्रीय संस्था भी बना ली थी । 

🔹 इंग्लैंड और जर्मनी के मजदूरों ने अपनी जीवन और कार्य स्थिति में सुधार लाने के लिए संगठन बनाना शुरू कर दिया था । काम के घंटों में कमी तथा मताधिकार के लिए आवाज उठाना शुरू कर दिया ।

🔹 1905 तक ब्रिटेन के समाजवादियों और ट्रेड यूनियन आंदोलनकारियों ने लेबर पार्टी के नाम से अपनी एक अलग पार्टी बना ली थी फ्रांस में भी सोशलिस्ट पार्टी के नाम से ऐसी एक पार्टी का गठन किया गया ।

❇️ रूसी क्रांति :-

🔹 फरवरी 1917 में राजशाही के पतन से लेकर अक्टूबर 1917 में रूस की सत्ता पर समाजवादियों के कब्जे तक की घटनाओं को रूसी क्रांति कहा जाता है ।

❇️ रूसी समाज :-

🔹 1914 में रूस और उसके साम्राज्य पर जार निकोलस का शासन था ।

🔹 मास्को के आसपास पढ़ने वाले छात्र के अलावा आज का फिनलैंड , लातविया , लिथुआनिया , पोलैंड , यूक्रेन व बेलारूस के कुछ हिस्से रूसी साम्राज्य के अंग थे ।

❇️ रूसी समाज की अर्थव्यवस्था :-


बीसवीं सदी की शुरूआत में रूस की लगभग 85 प्रतिशत जनता खेती पर निर्भर थी । 


कारखाने उद्योगपतियों की निजी सम्पत्ति थी जहाँ काम की दशाएँ बेहद खराब थी । 


यहाँ के किसान समय – समय पर सारी जमीन अपने कम्यून ( मीर ) को सौंप देते थे और फिर कम्यून परिवार की जरूरत के हिसाब से किसानों को जमीन बाँटता था । 


रूस में एक निरंकुश राजशाही था । 


1904 ई . में जरूरी चीजों की कीमतें तेजी से बढ़ने लगी । 


मजदूर संगठन भी बनने लगे जो मजदूरों की स्थिति में सुधार की माँग करने लगे । 


❇️ रूस में समाजवाद :-


1914 से पहले रूस में सभी राजनीतिक पार्टियां गैरकानूनी थी । 


मार्क्स के विचारों को मानने वाले समाजवादियों ने 1898 में रशियन सोशल डेमोक्रेटिक वर्कर्स पार्टी का गठन किया ।


यह एक रूसी समाजिक लोकतांत्रिक श्रमिक पार्टी थी ।


इस पार्टी का एक अखबार निकलता था उसने मजदूरों को संगठित किया था और हड़ताल आदि कार्यक्रम आयोजित किए थे ।


19 वी सदी के आखिर में रूस के ग्रामीण इलाकों में समाजवादी काफी सक्रिय थे सन् 1900 में उन्होंने सोशलिस्ट रेवलूशनरी पार्टी ( समाजवादी क्रांतिकारी पार्टी ) का गठन कर लिया ।


इस पार्टी ने किसानों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया और मांग की की सामंतो के कब्जे वाली जमीन फॉरेन किसानों को सौंप दी जाए ।


❇️ खूनी रविवार :-

🔹 इसी दौरान पादरी गौपॉन के नेतृत्व में मजदूरों के जुलूस पर जार के महल के सैनिकों ने हमला बोल दिया । इस घटना में 100 से ज्यादा मजदूर मारे गए और लगभग 300 घायल हुए । इतिहास में इस घटना को ” खूनी रविवार के नाम से याद किया जाता है ।

❇️ 1905 की क्रांति :-

🔹 1905 की क्रांति की शुरूआत इसी घटना से हुई ।


सारे देश में उड़ताल होने लगी । 


विश्वविद्यालय बंद कर दिए गए । 


वकीलों , डॉक्टरों , इंजीनियरों और अन्य मध्यवर्गीय कामगारों में संविधान सभा के गठन की माँग करते हुए यूनियन ऑफ यूनियन की स्थापना कर ली । 


जार एक निर्वाचित परामर्शदाता संसद ( ड्यूमा ) के गठन पर सहमत हुआ ।


मात्र 75 दिनों के भीतर पहली ड्यूमा , 3 महीने के भीतर दूसरी ड्यूमा को उसने बर्दाश्त कर दिया । 


तीसरे ड्यूमा में उसने रूढ़िवादी राजनेताओं को भर दिया ताकि उसकी शक्तियों पर अंकुश न लगे ।


❇️ पहला विश्वयुद्ध और रूसी साम्राज्य :-

🔹 1914 ई . में प्रथम विश्व युद्ध शुरू हो गया जो 1918 तक चला । इसमें दो खेमों केंद्रिय शक्तियाँ ( जर्मनी , ऑस्ट्रिया , तुर्की ) और मित्र राष्ट्र ( फ्रांस , ब्रिटेन व रूस ) के बीच लड़ाई शुरू हुई जिसका असर लगभग पूरे विश्व पर पड़ा ।

🔹 इन सभी देशों के पास विशाल वैश्विक साम्राज्य थे इसलिए यूरोप के साथ साथ यह युद्ध यूरोप के बाहर भी फैल गया था । इस युद्ध को पहला विश्वयुद्ध कहा जाता है ।

🔹 इस युद्ध को शुरू शुरू में रूसियों का काफी समर्थन मिला लेकिन जैसे – जैसे युद्ध लंबा खींचता गया ड्यूमा में मौजूद मुख्य पार्टियों से सलाह लेना छोड़ दिया उसके प्रति जनता का समर्थक कम होने लगा लोगों ने सेंट पीटर्सबर्ग का नाम बदलकर पेत्रोग्राद रख दिया क्योंकि सेंट पीटर्सबर्ग जर्मन नाम था ।

🔹 1914 से 1916 के बीच जर्मनी और ऑस्ट्रिया में रूसी सेनाओं को भारी पराजय झेलनी पड़ी । 1917 तक 70 लाख लोग मारे जा चुके थे पीछे हटती रूसी सेनाओं ने रास्ते में पड़ने वाली फसलों इमारतों को भी नष्ट कर डाला ताकि दुश्मन की सेना वहां टिक ही ना सके । फसलों और इमारतों के विनाश से रूस में 30 लाख से ज्यादा लोग शरणार्थी हो गए ।

❇️ फरवरी क्रांति :-

🔶 फरवरी क्रांति के कारण :-


प्रथम विश्व युद्ध को लंबा खिंचना । 


रासपुतिन का प्रभाव ।


सैनिकों का मनोबल गिरना ।


शरणार्थियों की समस्या ।


खाद्यान्न की कमी उद्योगों का बंद होना । 


असंख्य रूसी सैनिकों की मौत ।


🔶 फरवरी क्रांति की घटनाएँ :-


22 फरवरी को फैक्ट्री में तालाबंदी ।


50 अन्य फैक्ट्री के मजदूरों की हड़ताल ।


हड़ताली मजदूरों द्वारा सरकारी इमारतों का घेराव ।


राजा द्वारा कफ्यू लगाना ।


25 फरवरी को ड्यूमा को बर्खास्त करना । 


27 फरवरी को प्रदर्शन कारियों ने सरकारी इमारतों पर कब्जा कर लिया । 


सिपाही एवं मजदूरों का संगठन सोवियत का गठन ।


2 मार्च सैनिक कमांडर की सलाह पर जार का गद्दी छोड़ना ।


🔶 फरवरी क्रांति के प्रभाव :-


रूस में जारशाही का अंत ।


सार्वभौमिक व्यस्क मताधिकार के आधार पर संविधान सभा का चुनाव । 


अंतरिम सरकार में सोवियत और ड्यूमा के नेताओं की शिरकत ।


❇️ अप्रैल थीसिस :-

🔹 महान बोल्शेविक नेता लेनिन अप्रैल 1917 में रूस लौटे । उन्होंने तीन माँगे की जिन्हें अप्रैल थीसिस कहा गया :-


युद्ध की समाप्ति 


सारी जमीनें किसानों के हवाले ।


बैंको का राष्ट्रीयकरण ।


❇️ अक्टूबर क्रांति :-

🔹 फरवरी 1917 में राजशाही के पतन और 1917 के ही अक्टूबर के मिश्रित घटनाओं को अक्टूबर क्रांति कहा जाता है ।

🔹 24 अक्टूबर 1917 का विद्रोह शुरू हो गया और शाम ढलते – ढलते पूरा पैट्रोग्राद शहर बोल्शेविकों के नियंत्रण में आ गया । इस तरह अक्टूबर क्रांति पूर्ण हुई ।

❇️ अक्टूबर क्रांति के बाद क्या बदला :-


निजी सम्पत्ति का खात्मा ।


बैंको एवं उद्योगों का राष्ट्रीकरण ।


जमीनों को सामाजिक सम्पत्ति घोषित करना ।


अभिजात्य वर्ग की पुरानी पदवियों पर रोक ।


रूस एक दलीय व्यवस्था वाला देश बन गया । 


जीवन के हरेक क्षेत्र में सेंसरशिप लागू ।


गृह युद्ध का आरंभ ।


❇️ गृह युद्ध :-

🔹 क्रांति के पश्चात् रूसी समाज में तीन मुख्य समूह बन गए बोल्शेविक ( रेड्स ) सामाजिक क्रांतिकारी ( ग्रीन्स ) और जार समर्थक ( व्हाइटस ) इनके मध्य गृहयुद्ध शुरू हो गया ग्रीन्स और ‘ व्हाइटस ‘ को फ्रांस , अमेरिका और ब्रिटेन से भी समर्थन मिलने लगा क्योंकि ये समाजवादियों से सशंकित थे ।

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