Class 9 Geography || Chapter 4 जलवायु || Climate Notes In Hindi


 

Class 9 Geography Chapter 4 जलवायु Climate Notes In Hindi


📚 अध्याय = 4 📚

💠 जलवायु 💠

❇️ जलवायु :-

🔹 एक विशाल क्षेत्र में लंबे समयावधि ( 30 वर्ष से अधिक ) में मौसम की अवस्थाओं तथा विविधताओं का कुल योग ही जलवायु है ।

❇️ मौसम :-

🔹 मौसम एक विशेष समय में एक क्षेत्र के वायुमंडल की अवस्था को बताता है । मौसम तथा जलवायु के तत्त्व , जैसे तापमान , वायुमंडलीय दाब , पवन , आर्द्रता तथा वर्षण एक ही होते हैं । 

❇️ मौसम और जलवायु में अंतर :-

मौसम हमेशा छोटे समय की वायुमंडलीय दशा को दर्शाता है । जलवायु एक लम्बे समय की वायुमंडलीय दशा को दर्शाती है । मौसम एक दिन में बहुत बार बदल सकता है ।  जलवायु बहुत लम्बे समय तक नहीं बदलती । मौसम की पढाई को मौसम विज्ञान कहा जाता है ।जलवायु की पढाई को जलवायु विज्ञानं कहा जाता है ।

❇️ मानसून :-

🔹 मानसून शब्द की व्युत्पत्ति अरबी शब्द ‘ मौसिम ‘ से हुई है , जिसका शाब्दिक अर्थ है “मौसम” । मानसून का अर्थ , एक वर्ष के दौरान वायु की दिशा में ऋतु के अनुसार परिवर्तन है । 

❇️ भारत की जलवायु :-

🔹 भारत की जलवायु को मानसूनी जलवायु कहा जाता है । एशिया में इस प्रकार की जलवायु मुख्यतः दक्षिण तथा दक्षिण – पूर्व में पाई जाती है । सामान्य प्रतिरूप में लगभग एकरूपता होते हुए भी देश की जलवायु अवस्था में स्पष्ट प्रादेशिक भिन्नताएँ हैं ।

❇️ मौसम में भिन्नताएँ :-

🔶 तापमान :-

🔹 गर्मियों में राजस्थान में कुछ जगह 50° तक पहुँच जाता है जबकि जम्मू कश्मीर के पहलगाम में तापमान लगभग 20°C रहता है और जम्मू के द्रास का तापमान 45°C तक रहता है ।

🔶 वर्षा :-

🔹 हिमालयी भागों में वर्षा हिम के रूप में होती है तथा अन्य भागो में वर्षा के रूप में मेघालय में लगभग वार्षिक वर्षा 400 सेंटीमीटर तक होती है जबकि राजस्थान जैसे इलाके में 10 सेंटीमीटर तक ही होती है ।

❇️ महाद्वीपीय अवस्था :-

🔹( गर्मी में बहुत अधिक में गर्म एवं सर्दी में बहुत अधिक ठंडा ) इस प्रकिया को महाद्वीपीय अवस्था कहते हैं ।

❇️ भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक :-

🔹 किसी क्षेत्र की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक :- अक्षांश , ऊँचाई , वायुदाब , पवन तन्त्र , समुद्र से दूरी , महासागरीय धारायें तथा उच्चावच हैं ।

🔶 अक्षांश :- अक्षांश पर किसी भी देश की स्थिति का प्रभाव जलवायु पर पड़ता है । 

🔶 ऊँचाई :- ऊँचाई के बढ़ने पर तापमान में कमी होती जाती है । 

🔶 समुद्र से दूरी :- समुद्र से दूर होने पर विषम जलवायु तथा निकट होने पर सम जलवायु होती है । 

🔶 महासागरीय धारायें :- गर्म महासागरीय धाराओं के प्रभाव के कारण जलवायु सम और ठंडी धाराओं के कारण जलवायु विषम होती है । 

🔶 वायुदाब :- किसी भी क्षेत्र का वायुदाब उस स्थान के अक्षांश तथा ऊँचाई पर निर्भर करता है ।

❇️ जेट धारा :-

🔹 जेट धारा क्षोभमंडल में अत्यधिक ऊंचाई वाली पश्चिमी पवने होती है जिनकी गति 110 किलोमीटर प्रति घंटा से लेकर 180 किलोमीटर प्रतिघंटा तक होती है ये धारा भारत के उत्तर एवं उत्तर पश्चिम हिस्से में शीतकालीन वर्षा लाती है ।

🔹 जेट धारा भारत में गर्मियों को छोड़ कर पूरे साल हिमालय के दक्षिण में बहती हैं । ये धारा 27 डिग्री से 30 डिग्री उत्तर अक्षांश के बीच होती है ।

❇️ अंत : उष्ण कटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र :-

🔹 ये विषुवतीय अक्षांशों में विस्तृत गर्त एवं निम्न दाब का क्षेत्र होता है । यहीं पर उत्तर – पूर्वी एवं दक्षिण – पूर्वी व्यापारिक पवनें आपस में मिलती हैं । यह अभिसरण क्षेत्र विषुवत् वृत्त के लगभग समानांतर होता है , लेकिन सूर्य की आभासी गति के साथ – साथ यह उत्तर या दक्षिण की ओर खिसकता है ।

❇️ एलनीनो :-

🔹 एलनीनो एक गर्म जलधारा है । यह पेरु के तट पर उत्पन्न होती है , और पेरु की शीतधारा को अस्थायी रूप से हटाकर उसका स्थान ले लेती है ।

❇️ मानसून का आगमन ओर वापसी :-

🔹 मानसून का समय जून के शुरू से लेकर मध्य सितम्बर तक होता है यह समय लगभग 100 से 120 दिन का होता है । इसके आने से सामान्य वर्षा बढ़ जाती है और कई दिनों तक लगातार होती रहती है । इसे मानसून प्रस्फोट भी कहा जाता है ।

🔹 जून के पहले हफ्ते में मानसून भारतीय प्रायद्वीप के दक्षिणी छोर से प्रवेश करता है इसके बाद यह दो भागों में बंट जाता है अरब सागर शाखा और बंगाल की खाड़ी शाखा । अरब सागर शाखा लगभग दस दिन बाद 10 जून के आसपास मुंबई पहुँचती और बंगाल की खाड़ी शाखा भी तेजी से आगे की ओर बढ़ती है ।

🔹 जून के पहले हफ्ते में यह असम पहुँच जाती है और ऊंचे पर्वतों के कारण यह मानसूनी पवनें पश्चिम में गंगा के मैदान की और मुड़ जाती है । 

🔹 मध्य जून तक अरब सागर शाखा सौराष्ट्र , कच्छ एवं देश के मध्य भागों में पहुँच जाती है अरब सागर शाखा और बंगाल की खाड़ी शाखा दोनों गंगा के मैदान के उत्तर पश्चिम भाग में आपस में मिल जाती है ।

🔹 दिल्ली में मानसूनी वर्षा बंगाल की खाड़ी शाखा से जून के अंतिम हफ्ते में होती है , जुलाई के प्रथम हफ्ते तक मानसून पश्चिमी उत्तरप्रदेश , पंजाब , हरियाणा तथा पूर्वी राजस्थान में पहुँच जाता है ।

🔹 मध्य जुलाई तक मानसून हिमाचल प्रदेश एवं देश के अन्य हिस्सों तक पहुँच जाता है । मानसून की वापसी देश के उत्तर पश्चिमी राज्यों से सितम्बर में शुरू हो जाती है और मध्य अक्टूबर तक मानसून प्रायद्वीप के उत्तरी भाग से पूरी तरह पीछे हट जाता है और दिसंबर के प्रारंभ तक , मानसून की वापसी हो जाती है ।

❇️ मानसून का फटना :-

🔹 अचानक ही कई दिनों तक वर्षा का लगातार होना और प्रचंड रूप रखना मानसून का फटना कहलाता है ।

❇️ मानसूनी हवायें :-

🔹 वर्षा ऋतु में भारत में हवायें समुद्र से स्थल की ओर चलने लगती हैं , जिन्हें हम मानसूनी हवायें कहते हैं ।

❇️ मानसूनी हवाओं का विभाजन :-

🔹 मानसूनी हवाओं को दो भागों में बांटा जाता है 


दक्षिणी – पश्चिमी मानसून 


उत्तरी – पूर्वी मानसून


❇️ दक्षिणी पश्चिमी मानसून :-


यह मानसून अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से उत्तर की ओर बढ़ता है । 


ये मानसूनी पवने जून से सितम्बर माह में बहती है । 


ये पवने देश व्यापी वर्षा करती है ।


❇️ उत्तरी – पूर्वी मानसून :-


यह मानसून उत्तर – पूर्व से समुद्र की ओर बढ़ता है । 


ये पवनें अक्टूबर – नवम्बर माह में चलती है ।


ये पवने तमिलनाडु में वर्षा करती है । 


❇️ ऋतुएँ :-

🔹 भारत में मुख्यतः चार ऋतुओं को पहचाना जा सकता है । 


शीत ऋतु – मध्य नवम्बर से फरवरी तक 


ग्रीष्म ऋतु – मार्च से मई तक 


वर्षा ऋतु – जून से सितम्बर 


लौटते हुए मानसून की ऋतु – अक्टूबर से नवम्बर


❇️ शीत ऋतू :-

🔹 यह मध्य नवम्बर से शुरू होकर फरवरी तक रहती है , भारत के उत्तरी भाग में दिसंबर और जनवरी सबसे ठन्डे महीनें होते हैं । 

🔹 दक्षिण में औसत तापमान 24 डिग्री सेल्सियस तक होता है जबकि उत्तर भारत में 10 डिग्री सेल्सियस से 15 डिग्री सेल्सियस तक होता है ।

🔹 इस ऋतू में देश के अधिकतर भाग में शुष्क मौसम होता है तथा आसमान साफ़ होता है और तापमान तथा आद्रता कम होती है शीतकाल में वर्षा बहुत कम होती है लेकिन यह वर्षा रबी की फसल के लिए बहुत ज़रूरी होती है ।

🔹 प्रायद्वीप भाग में शीत ऋतू स्पष्ट नहीं होती क्योंकि समुद्री पवनों के प्रभाव के कारण शीत ऋतू में भी यहाँ तापमान में ज्यादा परिवर्तन नहीं होता ।

❇️ ग्रीष्म ऋतू :-

🔹 मार्च से मई तक भारत में ग्रीष्म ऋतू होती है और मार्च में दक्कन के पठार का उच्च तापमान लगभग 38 डिग्री सेल्सियस होता है और अप्रैल में मध्य प्रदेश और गुजरात का तापमान लगभग 42 डिग्री सेल्सियस तक होता है ।

🔹 मई में देश के उत्तर पश्चिमी भागों का तापमान 45 डिग्री सेल्सियस होता है लेकिन प्रायद्वीपीय भारत में समुद्री प्रभाव के कारण तापमान कम होता है । देश के उत्तरी भाग में तापमान में वृद्धि होती है तथा वायुदाब में कमी आती है ।

❇️ लू :-

🔹 ये धूलभरी , गर्म और शुष्क पवनें होती हैं जो मई जून में दिन के समय भारत के उत्तर एवं उत्तर पश्चिमी क्षेत्रों में चलती हैं ।

❇️ वर्षा ऋतू :-

🔹 जून के प्रारंभ में उत्तरी भारत में निम्न दाब की अवस्था तीव्र हो जाती है यह दक्षिणी गोलार्ध की व्यापारिक पवनों को आकर्षित करती है यह पवने गरम महासागरों के ऊपर से होकर गुजरती है इसलिए यह अपने साथ बहुत अधिक मात्रा में नमी लाती है यह पवने बहुत ‘ तेज गति से चलती है ।

🔹 इस मौसम की अधिकतर वर्षा देश के उत्तर पूर्वी भागों में होती है और खासी पहाड़ी के दक्षिण में स्थित मासिनराम में विश्व में सबसे अधिक औसत वर्षा होती है ।

🔹 राजस्थान और गुजरात के कुछ भागों में बहुत कम वर्षा होती है , मानसून से जुड़ी एक और परिघटना है जिसे मानसून का विराम कँहा जाता है इसमें आद्र और शुष्क दोनों अंतराल होते है , मानसूनी वर्षा एक समय में कुछ ही दिनों तक होती है और इनमें वर्षा रहित अंतराल भी होते हैं ।

🔹 जब मानसून के गर्त का अक्ष मैदान के ऊपर होता है तब इन भागों में अच्छी वर्षा होती है तथा जब अक्ष हिमालय के ऊपर चला जाता है तब मैदानों में लंबे समय तक शुष्क अवस्था रहती है तथा हिमालय की नदियों के पर्वतीय जलग्रहण क्षेत्रों ने भारी बारिश होती है ।

🔹 विभिन्न कारणों से ये गर्त उत्तर या दक्षिण की ओर खिसकते रहते हैं , इस भारी वर्षा के कारण मैदानों में विनाशकारी बाढ़ आती हैं और जान माल की हानि होती है ।

🔹 मानसून का आगमन और वापसी अव्यवस्थित होती है जिसके कारण कभी कभी ये देश के किसानों के कृषि कार्यों को अव्यवस्थित कर देता है ।

❇️ मानसून की वापसी :-

🔹 अक्टूबर – नवम्बर के दौरान दक्षिण की तरफ सूर्य के आभासी गति के कारण मानसून गर्त यो निम्नदाब वाला गर्त उत्तरी मैदानों के ऊपर शिथिल हो जाता है और धीरे धीरे वहां उच्च दाब का क्षेत्र बन जाता है अक्टूबर के प्रारंभ में मानसूनी पवनें उत्तर के मैदान से पीछे हट जाती हैं ।

🔹 अक्टूबर और नवम्बर का महीना गर्म वर्षा ऋतू से शीत ऋतू में बदले का काल होता है मानसून की वापसी होने से आसमान साफ़ हो जाता है । दिन का तापमान बढ़ने लगता है और रातें ठंडी और सुहावनी लगने लगती है । अक्टूबर के उत्तरार्ध में उत्तरी भारत में तापमान तेजी से गिरने लगता है ।

🔹 नवम्बर के प्रारंभ में उत्तर पश्चिम भारत के ऊपर निम्नदाब वाली अवस्था बंगाल की खाड़ी पर चली जाती है और यह चक्रवाती निम्नदाब से सम्बंधित होता है जो की अंडमान सागर के ऊपर उत्पन्न होता ये चक्रवात भारत के पूर्वी तट को पार करता है जिसके कारण भारी वर्षा होती है और यह बहुत ही विनाशकारी भी होता है ।

🔹 गोदावरी कृष्णा और कावेरी नदियों के सघन आबादी वाले डेल्टा प्रदेशों में अक्सर चक्रवात आते रहते हैं जिसके कारण बहुत ज्यादा जान माल की हानि होती है कभी कुभी ये चक्रवात उड़ीसा , पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के तटीय क्षेत्रों तक पहुँच जाते है ।

0 comments: