आम चुनाव 1967-2014 तक


कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियां और पुनर्स्थापन 



इस आर्टिकल में कांग्रेस प्रणाली क्या है, कांग्रेस प्रणाली चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना, कांग्रेस प्रणाली की पुनर्स्थापना किस प्रकार से हुई, कांग्रेस प्रणाली के पतन के कारण, पुरानी कांग्रेस से क्या अभिप्राय है, आम चुनाव (1967-2014) आदि के बारे में चर्चा की गई है।



What is Congress System : कांग्रेस के एक दलीय प्रभुत्व के दौर में राजनीतिक होड कांग्रेस के भीतर ही चलती थी। चुनावी प्रतिस्पर्धा के पहले दशक में कांग्रेस ने शासक और विपक्ष दल दोनों की भूमिका निभाई। इसी कारण भारतीय राजनीति के इस कालखंड को कांग्रेस प्रणाली (Congress System) कहा जाता है।


आम चुनाव 1967-2014 तक


1960 के दशक को खतरनाक दशक कहा जाता है, क्योंकि गरीबी, असमानता, सांप्रदायिक और क्षेत्रीय विभाजन आदि के सवाल अभी अनसुलझे थे।

1964 में नेहरू की मृत्यु के बाद निर्विरोध रूप से लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri) को प्रधानमंत्री बनाया गया। शास्त्री 1964-66 तक प्रधानमंत्री रहे।

इस दौरान अनेक कठिनाईयों का सामना करना पड़ा। भारत-चीन युद्ध 1962 से उत्पन्न आर्थिक कठिनाई से उबरने की कोशिश, मानसून की असफलता से सूखे की स्थिति फिर 1965 में भारत-पाक युद्ध आदि। शास्त्री ने इन कठिनाइयों से निपटने हेतु “जय जवान जय किसान” का नारा दिया।

लाल बहादुर शास्त्री 10 जनवरी 1966 को ताशकंद समझौते (अयूब खान-शास्त्री) पर हस्ताक्षर करने हेतु ताशकंद गए थे। वहां दिल का दौरा पड़ने से देहांत हो गया। नेहरू मंत्रिमंडल में रेल मंत्री (1951-56) रहे। 1957-64 तक भी मंत्री रहे।

शास्त्री के बाद मोरारजी देसाई और इंदिरा गांधी के बीच कड़े मुकाबले के चलते गुप्त मतदान द्वारा इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) को प्रधानमंत्री बनाया गया। इस दौरान गुलजारीलाल नंदा कार्यवाहक प्रधानमंत्री रहे। (1 माह 14 दिन)


चौथे आम चुनाव 1967


कांग्रेस को लोकसभा में तो जैसे तैसे बहुमत मिल गया परंतु प्राप्त मतों के प्रतिशत तथा सीटों की संख्या में भारी गिरावट आई। गांधी मंत्रिमंडल के आधे मंत्री चुनाव हार गए।

कांग्रेस को 7 राज्य में बहुमत नहीं मिला। दो राज्यों में दल-बदल के कारण कांग्रेस सरकार नहीं बना सकी। इस प्रकार 9 राज्यों पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, मद्रास और केरल से सत्ता हाथ से निकल गई।

मद्रास में एक क्षेत्रीय पार्टी DMK जो हिंदी विरोधी आंदोलन के कारण पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई। चुनावी इतिहास में यह पहली घटना थी जब किसी गैर कांग्रेसी दल को किसी राज्य में पूर्ण बहुमत मिला हो। बाकी 8 राज्यों में गैर कांग्रेसी दलों के गठबंधन की सरकार बनी।

तात्कालीन अनेक राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने चुनाव परिणाम को राजनीतिक भूकंप की संज्ञा दी। भारतीय राजनीतिक दल व्यवस्था जो अब तक कांग्रेस प्रधान अथवा एक दलीय प्रभुत्व वाली व्यवस्था के रूप में जानी जाती थी, प्रतियोगी दलीय व्यवस्था में तब्दील हो गई। इन चुनावों को द्वितीय क्रांति एवं प्रथम वास्तविक आम चुनाव भी कहा जाता है।

इस दौर में दल-बदल से “आया राम गया राम” का जुल्मा मसहूर हुआ। दल बदल के कारण कांग्रेस छोड़ने वाले विधायकों ने हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तरप्रदेश में गैर कांग्रेसी सरकार बहाल करने में अहम भूमिका निभाई।

गैर कांग्रेसवाद क्या है

समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया (Ram Manohar Lohia) ने गैर कांग्रेसवाद की रणनीति अपनाई। गैर कांग्रेसी दलों को एक साथ लाने का काम किया।

कांग्रेस सिंडिकेट क्या है

कांग्रेसी नेताओं के एक ताकतवर और प्रभावशाली नेताओं का समूह है। सिंडिकेट के अगुवा नेता के. कामराज (K. Kamraj) मद्रास के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष रह चुके थे।

अन्य नेता मुंबई के एस के पाटिल, मैसूर के एस एन निजलिंगप्पा, आंध्रा के एन संजीव रेड्डी और बंगाल के अतुल्य घोष शामिल है। शास्त्री और इंदिरा को प्रधानमंत्री बनाने में इस सिंडिकेट की प्रमुख भूमिका थी।

इंदिरा बनाम सिंडिकेट

इंदिरा को असली चुनौती विपक्ष से नहीं बल्कि खुद अपनी पार्टी के भीतर सिंडिकेट से मिली। इंदिरा ने बड़ी सावधानी से सिंडिकेट को हाशिए पर ला खड़ा किया और अपना स्वतंत्र मुकाम बनाना शुरू किया। उन्होंने अपनी सरकारी नीतियों को वामपंथी रंग देने हेतु 1967 में 10 सूत्री कार्यक्रम अपनाया।

1969 में सिंडिकेट की अगुवाई वाली कांग्रेस (O)-पुरानी कांग्रेस तथा इंदिरा की अगुवाई वाली कांग्रेस (R)-नई कांग्रेस में कांग्रेस का विभाजन हो गया।

राष्ट्रपति चुनाव : 1969


जाकिर हुसैन के निधन से खाली हुए राष्ट्रपति पद हेतु यह चुनाव हुआ।


सिंडिकेट/कांग्रेस (O) ने इंदिरा की असहमति के बावजूद कांग्रेस पार्टी की तरफ से तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष नीलम संजीव रेड्डी को उम्मीदवार बनाया।


कांग्रेस (R) यानी इंदिरा ने तत्कालीन उपराष्ट्रपति वी वी गिरी (V V Giri) को एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में नामांकन भरवाया।


वी वी गिरि (V V Giri) विजय हुए।


मध्यावधि चुनाव : 1971


5 वीं लोकसभा के लिए ये चुनाव हुए, कांग्रेस का पुनर्स्थापन। कांग्रेस का विभाजन, इंदिरा सरकार अल्पमत में, मध्यावधि चुनाव हुए।


ग्रैंड अलायंस (Grand Alliance) : सभी बड़ी गैर साम्यवादी और गैर कांग्रेसी विपक्षी पार्टी ने चुनावी गठबंधन बनाया। इसमें SSP, PSP, जनसंघ, स्वतंत्र पार्टी, भारतीय क्रांति दल एक छतरी के नीचे आ गए।


इंदिरा कांग्रेस (R) ने CPI के साथ गठबंधन किया।


ग्रैंड अलायंस (महागठबंधन) ने ‘इंदिरा हटाओ’ कार्यक्रम तय किया।


परिणाम : कांग्रेस (R) और सीपीआई गठबंधन को पिछले 4 चुनाव से कहीं ज्यादा सीटें मिली। कांग्रेस (R) – 352 सीट, 44 प्रतिशत मत प्राप्त हुए।


ग्रैंड अलायंस (महागठबंधन) को 40 से भी कम सीटें प्राप्त हुई। अकेले कांग्रेस (O) को 16 सीटें मिली।


इन चुनाव परिणामों ने साबित कर दिया कि असली कांग्रेस कांग्रेस (R) है।


1972 में पूर्वी पाकिस्तान में सैन्य संकट से इंदिरा को लोकप्रियता और 1972 के विधानसभा चुनाव में व्यापक सफलता मिली।


कामराज योजना : 1963 में के. कामराज (K Kamraj) ने एक प्रस्ताव रखा कि सभी वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं को इस्तीफा दे देना चाहिए ताकि अपेक्षाकृत युवा पार्टी कार्यकर्ता कमान संभाल सके। यह प्रस्ताव कामराज योजना के नाम से मशहूर हुआ।

1970-80 के दशक के दौरान लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट पैदा हुआ। संसदीय व्यवस्था में विश्वास न रखने वाले कुछ मार्क्सवादी समूह मार्क्सवादी-लेनिनवादी (माओवादी /नक्सलवादी) सक्रिय हुए। प. बंगाल में ज्यादा सक्रिय।

गुजरात आंदोलन : 1974 में गुजरात के छात्रों द्वारा बढ़ती महंगाई एवं भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन। इस आंदोलन में बड़ी राजनीतिक पार्टियां भी शामिल। आंदोलन का विकराल रूप। राष्ट्रपति शासन लागू। इंदिरा के मुख्य विरोधी मोरारजी देसाई की धमकी – नए सिरे से चुनाव नहीं करवाने पर भूख हड़ताल। 1975 में विधानसभा चुनाव और कांग्रेस पराजय।

बिहार आंदोलन : 1974 में। जयप्रकाश नारायण द्वारा बिहार आंदोलन का सशक्त नेतृत्व किया गया। जय प्रकाश नारायण ने बिहार में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दायरे में संपूर्ण क्रांति का आह्वान किया।

बिहार आंदोलन के साथ ही रेलवे कर्मचारियों ने बोनस एवं सेवा से जुड़ी शर्तों को लेकर हड़ताल कर दी। बगैर समझौते हड़ताल वापस ली। जे पी नारायण ने 1975 में जनता के संसद मार्च का नेतृत्व किया। लगभग सभी गैर कांग्रेसी दलों का समर्थन मिला। इन दलों ने जे पी को इंदिरा के विकल्प के रूप में पेश किया।

इस प्रकार गुजरात और बिहार के आंदोलन कांग्रेसी विरोधी आंदोलन माना गया और कहा गया कि यह आंदोलन राज्य सरकार के खिलाफ नहीं बल्कि इंदिरा के नेतृत्व के खिलाफ चलाए गए।

आपातकाल (Emergency) की घोषणा : 25 जून 1975 को आंतरिक अशांति को देखते हुए अनुच्छेद 352 के तहत बगैर मंत्रिमंडल के परामर्श से राष्ट्रपति ने आपातकाल (Emergency) की घोषणा कर दी। यह इमरजेंसी 18 माह लागू रही।

शाह जांच आयोग : 1977 में जनता पार्टी सरकार द्वारा आपातकाल में की गई कार्यवाही की जांच हेतु पूर्व न्यायाधीश श्री जे सी शाह की अध्यक्षता में शाह जांच आयोग का गठन किया गया।


6 ठें आम चुनाव : 1977


बड़ी विपक्षी पार्टियों ने एकजुट होकर एक नई पार्टी जनता पार्टी बनाई जो आपातकाल के खिलाफ थे। जे पी ने नेतृत्व स्वीकार किया।


कुछ अन्य कांग्रेसी नेताओं ने बाबू जगजीवन राम (Babu Jagjivan Ram) के नेतृत्व में कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी नई पार्टी बनाई और बाद में जनता पार्टी में शामिल हुई।


विपक्षी पार्टी ने लोकतंत्र बचाओ के नारे पर चुनाव लड़ा।


आजादी के बाद कांग्रेस पहली बार लोकसभा चुनाव हारी, मात्र 154 सीटें प्राप्त, 35% से भी कम मत, केंद्र में पहली बार सत्ता परिवर्तन।


उत्तर भारत में बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा से एक भी सीट नहीं मिली। राजस्थान और मध्यप्रदेश से महज एक-एक सीट मिली।


इंदिरा रायबरेली और पुत्र संजय गांधी अमेठी से चुनाव हारे।


दक्षिण भारत में महाराष्ट्र, गुजरात और उड़ीसा में कई सीटों पर कब्जा बरकरार रखा। क्योंकि आपातकाल (Emergency) का प्रभाव दक्षिण भारत में कम रहा, सर्वाधिक प्रभाव तो उत्तर भारत में पडा था।


जनता पार्टी को कुल 542 सीटों में से 295 सीटें और समर्थकों को 35 सीटें, इस प्रकार कुल 295 + 35 = 330 सीटें प्राप्त हुई।


जनता पार्टी की तरफ से मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री बनाया गया। दिशा, नेतृत्व एवं सांझे कार्यक्रम के अभाव में जनता पार्टी बिखर गई और देसाई सरकार ने 18 माह में ही बहुमत खो दिया।


कांग्रेस पार्टी के समर्थन पर दूसरी सरकार चरण सिंह के नेतृत्व में बनी। बाद में समर्थन वापसी के कारण 4 माह तक ही सत्ता में रही।


इस छठे आम चुनाव 1977 में आपातकाल की पृष्ठभूमि में जनता सरकार ने ‘लोकतंत्र बनाम तानाशाही’ तथा कांग्रेस सरकार ने ‘स्थायित्व बनाम अराजकता’ के मुद्दे पर चुनाव लड़ा।


इस चुनाव में पहली बार 65% से अधिक मताधिकार का प्रयोग हुआ और “मतपत्रों की क्रांति” की संज्ञा दी गई।


7 वें आम चुनाव : 1980


जनता पार्टी बुरी तरह से परासत, इंदिरा कांग्रेस सत्तारूढ़ हुई, पुन: एक दलीय व्यवस्था स्थापित, इंदिरा प्रधानमंत्री बनी। 1978 में विभाजित कांग्रेस – कांग्रेस (I) और कांग्रेस (V) बाद में कांग्रेस (S) नाम से इंदिरा कांग्रेस वाले कांग्रेस (I) इस चुनाव में विजई हुई।


8 वें आम चुनाव : 1984


चुनाव पूर्व राजनीतिक परिदृश्य : पंजाब में आंतकवाद, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उपजी सहानुभूति की लहर।


7 राष्ट्रीय एवं 27 क्षेत्रीय दलों (Regional Party) ने भाग लिया।


कांग्रेस (इ) द्वारा भारत की एकता, अखंडता और राजनीतिक स्थायित्व तथा इंदिरा जी की याद में राजीव गांधी के साथ का नारा, 401 सीटें प्राप्त की।


निर्दलीय उम्मीदवारों की बड़ी संख्या और चुनाव परिणामों में जाति के तत्व की गौण भूमिका उल्लेखनीय तथ्य था।


इंदिरा कांग्रेस वाली कांग्रेस (आई) के राजीव गांधी प्रधानमंत्री बनें।


9 वें आम चुनाव : 1989


बोफोर्स प्रकरण (Bofors Case), भ्रष्टाचार (Corruption), अयोध्या विवाद तथा कांग्रेस (इ) की गिरती राजनीतिक प्रतिष्ठा और गैर कांग्रेसी दलों का गठबंधन 9 वें आम चुनाव की महत्वपूर्ण घटनाएं है।

कांग्रेस की पराजय, परन्तु लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, बहुमत नहीं मिलने से विपक्ष में बैठने का फैसला। एन.टी. रामाराव की अध्यक्षता में VP Singh के संयोजकत्व में गठित राष्ट्रीय मोर्चा ने भाजपा और वाम मोर्चे के साथ गठबंधन किया।

राष्ट्रीय मोर्चे द्वारा गठबंधन सरकार बनाई, भाजपा और वाम मोर्चे ने बाहर से समर्थन दिया, V P Singh प्रधानमंत्री बने, अल्पमत सरकार का कार्यकाल 11 माह रहा।

1990 में कांग्रेस (इ) के बाहरी समर्थन से चंद्रशेखर के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी की अल्पमत सरकार बनी, कांग्रेस (ई) के द्वारा समर्थन वापसी से समय पूर्व नौवीं लोकसभा भंग।

1989 से कांग्रेस प्रणाली समाप्त, फिर भी किसी अन्य पार्टी की बजाय उसका शासन ज्यादा दिनों तक रहा।

1989 के बाद एक बड़ा बदलाव ‘मंडल मुद्दे’ का उदय हुआ था। 1990 में राष्ट्रीय मोर्चे की सरकार ने मंडल आयोग (1978-80) की सिफारिशों को लागू किया।

बहुदलीय शासन प्रणाली का युग शुरू हुआ, 1989 के बाद किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला, क्षेत्रीय पार्टियों (Regional Party) द्वारा गठबंधन सरकारों का दौर शुरू हुआ, ढांचागत समायोजन कार्यक्रम अथवा नए आर्थिक सुधार के दौर का समय, इसकी शुरुआत राजीव सरकार में हुई, 1991 में बदलाव बड़े पैमाने पर।


10 वें आम चुनाव : 1991


‘मंडल-मंदिर’ चुनाव भी कहा जाता है।


इस चुनाव में स्थायित्व, देश की वामपंथी लोकतांत्रिक एवं धर्मनिरपेक्ष शक्तियों की एकजुटता, राम मंदिर का निर्माण तथा सामाजिक न्याय मुख्यतः चुनावी मुद्दे रहे हैं।


अस्पष्ट जनादेश वाली लोकसभा अस्तित्व में आई।


भारतीय जनता पार्टी दूसरे प्रमुख दल के रूप में उदित।


स्थानीय मुद्दों की महत्वपूर्ण भूमिका रही।


पिछली दो अल्पमत सरकारों के क्रम में केंद्र में तीसरी अल्पमत सरकार, कांग्रेस (इ) की सरकार का गठन। पी वी नरसिंह राव प्रधानमंत्री बने।


राष्ट्रवाद और धर्मनिरपेक्षता पर बहस तेज हुई, भाजपा का उदय और हिंदुत्व की राजनीति।


90 के दशक में राजनीतिक मुकाबला भाजपा-नीत गठबंधन और कांग्रेस-नीत गठबंधन के बीच चला।


11 वें आम चुनाव 1996


तीन प्रमुख दलीय गठबंधन :


कांग्रेस ने राष्ट्रीय स्तर पर कोई गठबंधन न कर राज्य स्तर पर तमिलनाडु एवं केरल में गठबंधन।


भाजपा ने भी राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन न कर राज्यों के क्षेत्रीय दलों के साथ चुनावी समझौता – हरियाणा विकास पार्टी, अकाली दल, समता पार्टी, शिवसेना।


सीपीआई (एम) ने CPI, RSP, फॉरवर्ड ब्लॉक के साथ चुनावी गठबंधन किया।


भाजपा सबसे बड़े राजनीतिक दल के रूप में उभरी। त्रिशंकु संसद (Hung Parliament) को जन्म, अटल बिहारी वाजपेयी‌ प्रधानमंत्री, बहुमत का समर्थन न जुटा पाने के कारण 13 दिन पश्चात त्यागपत्र।

14 राजनीतिक दलों के गठबंधन से निर्मित संयुक्त मोर्चे की साझा सरकार का गठन एचडी देवगौड़ा के नेतृत्व में, कांग्रेस ने बाहर से समर्थन दिया,10 माह बाद कांग्रेस की मांग पर इंद्र कुमार गुजराल 12 वें प्रधानमंत्री बने। कांग्रेस द्वारा समर्थन वापस, लोकसभा भंग।

त्रिशंकु संसद (Hung Parliament) : जब किसी द्विदलीय संसदीय प्रणाली में किसी प्रमुख दल को सीटों की संख्या के अनुसार संसद में पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं होता है। इसे कभी कभार संतुलित संसद या बिना किसी नियंत्रण वाली विधायक भी कहा जाता है। जैसे – UK, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा।


12 वें आम चुनाव 1996


तीन गठबंधन – भाजपा एवं सहयोगी दल, कांग्रेस एवं सहयोगी दल, संयुक्त मोर्चे का घटक दल।


7 राष्ट्रीय, 35 राज्य स्तर तथा 612 पंजीकृत गैर मान्यता प्राप्त दलों ने भाग लिया।


किसी भी राजनीतिक दल अथवा गठबंधन को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला।


भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी।


वाजपेयी के नेतृत्व में 17 राजनीतिक दलों की सरकार, घटक दल अन्नाद्रमुक के समर्थन वापसी के कारण विश्वास मत के दौरान एक मत से हारे।


12 वें आम चुनाव 1996 के दौरान पहली बार फोटो पहचान पत्र मतदाता के पास होना अनिवार्य किया गया।


13 वें आम चुनाव 1999


भाजपा ने सहयोगी दलों के साथ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA)।


13 वें आम चुनाव अभियान निषेधात्मक चुनाव अभियान था।


13 वां आम चुनाव सोनिया बनाम वाजपेयी मुद्दे पर लड़े गया।


पांच चरणों में संपन्न, अब तक की दीर्घ चुनावी प्रक्रिया।


चुनाव पूर्व चुनावी सर्वेक्षण पर लगी रोक हटायी।


पहली बार ईवीएम (EVM) का प्रयोग – सिर्फ 45 संसदीय क्षेत्रों में।


वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए सरकार का गठन, समय पूर्व (9 माह) लोक सभा विघटित।


14 वें आम चुनाव 2004


21वीं सदी का प्रथम लोकसभा चुनाव, सभी क्षेत्रों में ईवीएम (EVM) का प्रयोग।


एनडीए (NDA) का प्रगति से फील गुड फैक्टर और शाइनिंग का नारा।


सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा।


चुनावी प्रचार के हाईटेक एवं नवीनतम तकनीकों का इस्तेमाल।


8 वर्षों तक केंद्र में सत्ता से बाहर रही कांग्रेस ने यूपीए गठन से केंद्र में सत्तारूढ़ हुई। डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने।


15 वें आम चुनाव 2009


अब तक की सर्वाधिक 59 महिलाएं चुनी गई।


शपथ पत्र (आपराधिक रिकॉर्ड एवं संपत्ति, शैक्षिक योग्यता का ) की व्यवस्था थी।


लगातार दूसरी बार यूपीए सरकार विजय, लगातार दूसरी बार डॉक्टर मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने।


16 वें आम चुनाव 2014


भाजपा ने पूर्ण बहुमत प्राप्त किया (10 सीटें ज्यादा ही थी)


NDA को 336 सीटें मिली, अकेली भाजपा को 282


49-O जिसे नो वोट (NOTA) के रूप में अधिक जाना गया।


चुनाव के समय 61 महिला सांसद चुनी गई। 2016 तक हुए उपचुनाव के बाद यह संख्या 65 हो गई। (11.23%)


राज्यों की राजनीति (State Politics)


1980 के दशक में दलित जातियों के राजनीतिक संगठनों का उभार हुआ जैसे : बामसेफ (1978), बसपा (1989) और 91 के चुनावों में उत्तर प्रदेश में सफलता हासिल की।

राज्य राजनीति का निष्प्रभावी काल (1947-64)

इस काल में भाषा के आधार पर देश के नवीन राज्यों की मांग के लिए आंदोलन हुए। राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिश पर भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन किया गया।

राज्य राजनीति की प्रभावशीलता का काल (1964-67)


नेहरू के उत्तराधिकारियों के चयन में राज्यों के नेताओं की भूमिका।


कांग्रेस में तीव्र गुटबंदी के कारण राज्यों में कांग्रेस में फूट और विभक्त होकर क्षेत्रीय दलों का निर्माण।


असम, तमिलनाडु, पंजाब में क्षेत्रीयतावाद की प्रवृत्ति।


अनेक राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकारों का गठन।


गुटबंदी एवं अस्थिरता का काल (1967-71)


गैर कांग्रेसी सरकारें मिली-जुली थी।


दल बदल की राजनीति।


कांग्रेस का दो भागों में विभाजन।


केंद्र के प्रभुत्व का काल (1971-76)


तमिलनाडु, केरल को छोड़कर सभी राज्यों में कांग्रेस सत्तारूढ़।


प्रधानमंत्री की इच्छा अनुसार व्यक्तियों को मुख्यमंत्री के रूप में मनोनीत किया।


घटकवादी राजनीति का काल (1977)


प्रथम बार केंद्र में गैर कांग्रेसी सरकार।


राज्यों में अलग-अलग राजनीतिक दलों का प्रभुत्व।


अनेक राज्यों द्वारा स्वायतता की मांग द्वारा केंद्र पर दबाव।


केंद्र निर्देशित राजनीति का काल (1980-88)

इंदिरा द्वारा 9 राज्यों की विधानसभा भंग, चुनाव में बहुमत, अपनी इच्छा के मुख्यमंत्री का चयन, राज्य प्रशासन के अधिकांश निर्देश प्रधानमंत्री से प्राप्त।

राज्य स्तरीय क्षेत्रीय दलों के प्रभाव का काल (1989-2004)

इस दौरान चुनाव में केंद्रीय स्तर पर किसी एक राष्ट्रीय दल को पूर्ण बहुमत न मिल पाने के कारण क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के सहयोग से मिली जुली सरकारों का गठन हुआ।



अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)


1967 के आम चुनाव में कितने राज्यों से कांग्रेस के हाथों से सत्ता निकल गई थी?


उत्तर : 1967 के आम चुनाव कांग्रेस को 7 राज्य में बहुमत नहीं मिला। दो राज्यों में दल-बदल के कारण कांग्रेस सरकार नहीं बना सकी। इस प्रकार 9 राज्यों पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, मद्रास और केरल से सत्ता हाथ से निकल गई।


किस भारतीय राजनीतिक दल को छतरी संगठन के रूप में जाना जाता है


उत्तर : भारतीय राजनीतिक दल कांग्रेस को छतरी संगठन के रूप में जाना जाता है। भारत में दलीय प्रणाली की शुरुआत 1885 में कांग्रेस की स्थापना के साथ शुरू हुई। समस्त भारतीय समाज ने क्षणभर के लिए विभेद खत्म करके कांग्रेस के झंडे तले अपने आपको सुसंगठित कर लिया। इसी कारण पामर ने कांग्रेस को एक छाता संगठन के नाम से संबोधित किया।


कांग्रेस के भीतर प्रभावशाली नेताओं के समूह का क्या नाम था?


उत्तर : कांग्रेस के भीतर प्रभावशाली नेताओं के समूह का नाम कांग्रेस सिंडिकेट था।


कांग्रेस सिंडिकेट का क्या अर्थ है?


उत्तर : कांग्रेस सिंडिकेट कांग्रेसी नेताओं के एक ताकतवर और प्रभावशाली नेताओं का समूह है। सिंडिकेट के अगुवा नेता के. कामराज (k kamraj) मद्रास के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष रह चुके थे।


भारतीय राजनीति में कौन से आम चुनाव को राजनीतिक भूकंप की संज्ञा दी गई?


उत्तर : चौथे आम चुनाव 1967 के चुनाव परिणाम को तत्कालीन राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने राजनीतिक भूकंप की संज्ञा दी।

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