Class 9 Science Chapter 7 जीवों में विविधता (Diversity in Living Organisms) Notes In Hindi

 अध्याय - 7

जीवों में विविधता


❇️ जीवों में विविधता :-

🔹 पृथ्वी पर जीवन की असीमित विविधता और असंख्य जीव हैं । इनके विषय में जानने के लिए हमें जीवों को समानता व असमानता के आधार पर वर्गीकृत करना पड़ेगा । क्योंकि लगभग 20 लाख प्रकार के जीव जन्तु का बाह्य , आन्तरिक , कंकाल / डाँटा पोषण का तरीका व आवास का अध्ययन करना सुगम नहीं है ।

❇️ नाम पद्धति :-

🔹 विभिन्न देशों में विभिन्न नामों से विभिन्न जंतुओं को बुलाया जाता है , जिससे परेशानी होती है । इसलिए द्वि नाम पद्धति कार्ल लिनियस द्वारा दी गयी ।

❇️ नाम लिखते समय ध्यान राखने योग्य बातें :-

🔹 जीव वैज्ञानिक नाम लिखते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखा जाता है । 

  • जीनस का नाम जाति से पहले लिखा जाता है । 
  • जीनस का पहला अक्षर हमेशा बड़ा होता है । जबकि प्रजाति का नाम हमेशा small alphabet से लिखा जाता है । 
  • छपे हुए रूप में जीनस व जाति हमेशा Italic में लिखे जाते हैं व हाथ से लिखते समय जीनस व जाति को अलग – अलग रेखांकित किया जाता है ।

🔹 उदाहरण :- मनुष्य ( Human ) Homo sapiens , चीता ( Tiger ) Panthera tigris

❇️ टैक्सोनोमी :-

🔹 यह जीव विज्ञान का वह भाग है जिसमें नाम पद्धति पहचान व जीवों का वर्गीकरण करते हैं । कार्ल लिनियस को टैक्सोनोमी का जनक कहा जाता है । 

❇️ वर्गीकरण :-

🔹 सभी जीवों को उनके समान व विभिन्न गुणों के आधार पर बाँटना , वर्गीकरण कहलाता है ।

❇️ वर्गीकरण :-

🔹 जीवों को लक्षणों की समानता एवं असमानता के आधार में समूहों में वातन वर्गीकरण कहलाता है । 

❇️ जीव जगत के भाग :-

🔹सबसे पहले 1758 में कार्ल लिनियस ने जीव जगत को दो भागों में बाँटा 

  • पौधे व 
  • जन्तु 

🔹 सन् 1959 में राबर्ट व्हिटेकर ने जीवों को पाँच वर्गों ( जगत ) में बाँटा :-

  • मोनेरा
  • प्रोटिस्टा 
  • फंजाई 
  • प्लांटी 
  • एनीमेलिया 

🔹 सन् 1977 में कार्ल वोस ने मोनेरा को आर्किबैक्टिरिया व यूबैक्टिरिया में बाँटा ।

❇️ वर्गीकरण के लाभ :-

  • असंख्य जीवों के अध्ययन को आसान व सुगम बनाता है । 
  • विभिन्न समूहों के मध्य संबंध प्रदर्शित करता है । 
  • यह जीवन के सभी रूपों को एक नजर में प्रदर्शित करता है । 
  • जीव विज्ञान के कुछ अनुसंधान वर्गीकरण पर आधारित हैं । 
  • जीवों को विविधता को स्पष्ट करने में सहायक होता है ।

❇️ वर्गीकरण का पदानुक्रम :-

🔹 वर्गीकरण लिखने के लिए निम्न प्रारूप का प्रयोग किया जाता है जिसे वर्गीकरण का पदानुक्रम कहते हैं :-

जगत → फाइलम → वर्ग → गण → कुल → वंश → जाति

❇️ कोशिका का प्रकार :-

🔶 प्रोकेरियोटिक कोशिका :- ये प्राथमिक अल्प विकसित कोशिकाएँ हैं , जिनमें केन्द्रक बिना झिल्ली के होता है । 

🔶 यूकैरियोटिक कोशिका :- ये विकसित कोशिकाएँ जिनमें अंगक व पूर्ण रूप से विकसित केन्द्रक युक्त होती है ।

❇️ संगठन का स्तर :-

🔶 कोशिका स्तर :- सभी जीव कोशिका के बने होते हैं जो जीवन की मौलिक संरचनात्मक एवम् क्रियात्मक इकाई होती है ।

🔶 ऊतक स्तर :- कोशिकाएँ संगठित हो ऊतक का निर्माण करती है । ऊतक को शिकाओ का समुह होता है । जिसमें कोशिकाओं की संरचना तथा कार्य का एक समान होते हैं । 

🔶 अंग स्तर :- विभिन्न ऊतक मिलकर अंग का निर्माण करते हैं जो किसी के कार्य को पूर्ण करते है ।

🔶 अंग तंत्र स्तर :- विभिन्न अंग मिलकर अंग तंत्र का निर्माण करते हैं जो जटिल वहुकोशिय जीवों में विभिन्न जैव क्रियाएँ करते है ।

🔹 जैसे पाचन तंत्र भोजन के पाचन का कार्य करता है ।

❇️ शरीर संरचना :-

🔶 एककोशिकीय जीव :- ऐसे जीव जो एक ही कोशिका के बने होते है और सभी जैविक क्रियाएँ इसमें सम्पन्न होती है ।

🔶 बहुकोशिकीय जीव ( बहुकोशिकीय जीव ) :- ऐसे जीव जो कि एक से अधिक कोशिका के बने होते हैं व विभिन्न कार्य विभिन्न कोशिकाओं के समूह द्वारा किए जाते हैं ।

❇️ भोजन प्राप्त करने का तरीका :-

🔶 स्वपोषी :- वे जीव जो प्रकाश संश्लेषण ( Photosynthesis ) द्वारा अपना भोजन स्वयं बनाते हैं । 

🔶 परपोषी :- वे जीव जो अपने भोजन के लिए दूसरे जीवों पर निर्भर रहते है ।

❇️ पाँच जगत वर्गीकरण :-

🔶 मोनेरा :-

  • प्रोकैरियोटिक , एक कोशिय 
  • स्वपोषी या विषमपोषी 
  • कोशिका भित्ति उपस्थित या अनुपस्थित 

🔹 उदाहरण :- एनाबिना , बैक्टीरिया , सायनोबैक्टीरिया , नील- हरित शैवाल , माइकोप्लाज़्मा

🔶 प्रोटिस्टा :-

  • यूकैरियोटिक , एक कोशिक 
  • स्वपोषी या विषमपोषी 
  • गमन के लिए सीलिया , फलैजेला , कूटपाद संरचनाएँ पाई जाती है । 
  • शैवाल , डायएटम , अमीबा , पैरामीशियम , युग्लीना

🔶 फंजाई / कवक :-

  • यूकैरियोटिक व विषमपोषी , बहुकोशिका ( यीस्ट को छोड़कर ) 
  • यीस्ट एक कोशिक कवक है जो आवायवीय श्वसन करता है 
  • कोशिका भित्ति कठोर , जटिल शर्करा व काईटिन की बनी होती है । 
  • अधिकांश सड़े गले पदार्थ पर निर्भर – मृतजीवी , कुछ दूसरे जीवों पर निर्भर – परजीवी । 
  • कुछ शैवाल व कवक दोनों सहजीवी सम्बन्ध बनाकर साथ रहते हैं । शैवाल कवक को भोजन प्रदान करता है व कवक रहने का स्थान प्रदान करते हैं ये जीव लाइकेन कहलाते हैं और इस अंर्तसंबंध को सहजीविता कहते हैं । 

🔹 उदाहरण :- पेनिसीलियम , एस्पेरेजिलस , यीस्ट , मशरूम

🔶 पादप :- 

🔹 पादप जगत का मुख्य लक्षण प्रकाश संश्लेषण का होना है । 

  • यूकैरियोटिक , बहुकोशिक 
  • स्वपोषी 
  • कोशिका भित्ती सेल्युलोज की बनी होती है ।

❇️ उपजगत ( क्रिप्टोगैम ) :-

🔹 जिन पौधों में फूल या जननांग बाहर प्रकट नहीं होते हैं । ( ढके होते हैं ) 

🔹 क्रिप्टोगैम के प्रकार :-

  • थैलोफाइटा
  • ब्रायोफाइटा 
  • टेरिडोफाइटा

🔶 थैलोफाइटा :-

  • पौधे का शरीर जड़ तथा पत्ती में विभाजित नहीं होता बल्कि एक थैलस है । 
  • सामान्यतः शैवाल कहते हैं । 
  • कोई संवहन ऊतक उपस्थित नहीं । 
  • जनन बीजाणु ( spores ) के द्वारा मुख्यतः जल में पाए जाते हैं । 

🔹 उदाहरण :- अल्वा , स्पाइरोगाइरा , क्लेडोफोरा , यूलोथ्रिक्स

🔶 ब्रायोफाइटा :-

  • सरलतम पौधे , जो पूर्णरूप से विकसित नहीं होते । 
  • कोई संवहन ऊतक उपस्थित नहीं । 
  • बीजाणु ( spores ) द्वारा जनन । 
  • भूमि व जल दोनों स्थान पर पाए जाते हैं इसलिए इन्हें पादपों का एम्फीबिया / उभयचर ” भी कहते हैं ।

🔹 उदाहरण :- फ्यूनेरिया , रिक्सिया , मार्केशिया

 🔶 टेरिडोफाइटा :-

  • पादप का शरीर तना , जड़ें व पत्तियों में विभक्त होता है 
  • सवंहन ऊतक उपस्थित
  • बहुकोशिकीय , बीजाणु द्वारा जनन 

उदाहरण :- मार्सिलिया , फर्न , होर्सटेल 

❇️ उपजगत ( फैनरोगैम ) :-

🔹 इन पौधों में फूल या जननांग स्पष्ट दिखाई देते हैं । तथा बीज उत्पन्न करते है ।

🔹 फैनेरोगेम के प्रकार :-

  • जिम्नोस्पर्म ( अनावृत बीजी )
  • एंजियोस्पर्म ( आवृत बीजी )

🔶 जिम्नोस्पर्म :-

  • बहुवर्षीय , सदाबहार , काष्ठीय । 
  • शरीर जड़ , तना व पत्ती में विभक्त ।
  • संवहन ऊतक उपस्थित । 
  • नग्न बीज , बिना फल व फूल । 

🔹 उदाहरण :- पाइनस , साइकस

🔶 एंजियोस्पर्म :-

🔹 फूलों वाले पौधे :-

  • एक बीज पत्री 
  • द्वि- बीज पत्री
  • फूल बाद में फल में बदल जाता है ।
  • बीज फल के अंदर । 
  • भ्रूण के अन्दर पत्तियों जैसे बीजपत्र पाए जाते हैं । 
  • जब पौधा जन्म लेता है तो वे हरी हो जाती हैं , जो प्रकाश संश्लेषण द्वारा भोजन का निर्माण करती है । 
  • पूर्ण सवहन ऊतक उपस्थित

💠 जगत जन्तु 💠 जन्तु जगत में वर्गीकरण का आधार :- 

❇️ संगठन का स्तर :-

🔶 कोशिकीय स्तर :- इस स्तर पर जीव की कोशिका बिखरे सहुत में होती है ।

🔶 ऊत्तक स्तर :- इस स्तर पर कोशिकाँए अपना कार्य संगठित होकर ऊतक के रूप में करती है ।

🔶 अंग स्तर :- ऊत्तक संगठित होकर अंग निर्माण करता है जो एक विशेष कार्य करता है । 

🔶 अंगतंत्र स्तर :- अंग मिलकर तंत्र के रूप में शारिरिक कार्य करते है और प्रत्येक तंत्र एक विशिष्ट कार्य करता है ।

❇️ समिति :-

🔶 असममिति :- किसी भी केंद्रीत अक्ष से गुजरने वाली रेखा इन्हे दो बराबर भागों में विभाजित नहीं करती है ।

🔶 अरीय सममिति :- किसी भी केंद्रीत अक्ष से गुजरने वाली रेखा इन्हें दो बराबर भागों में विभाजित करती है । 

🔶 द्विपार्श्व सममिति :- जब केवल किसी एक ही अक्ष से गुजरनी वाली रेखा द्वारा शरीर दो समरुप दाएँ व बाएँ भाग में बाटाँ जा सकता है ।

❇️ द्विकोरिक तथा त्रिकोरकी संगठन :-

🔶 द्विकोरिक :- जिन प्राणियों में कोशिकाएँ दो भ्रूणीय स्तरों में व्यवस्थित होती है :-

  • बाह्म ( एक्टोडर्म ) 
  • आंतरिक ( एंडोडर्म ) 

🔶 त्रिकोरिकी :- वे प्राणी जिनके विकसित भ्रूण में तृतीय भ्रूणीय स्तर मीजोडर्म भी होता है ।

❇️ प्रगुहा ( सीलोम ) ( शरीर भित्ति तथा आहार नाल के बीच में गुहा ) :-

🔶 प्रगुही प्राणी :- मीजोडर्म से आच्छादित शरीर गुहा को देहगुहा कहते है । प्रगुही प्राणी में देहगुहा उपस्थित होती । 

🔶 कूट – गुहिक प्राणी :- कुछ प्रणियों मं यह गुहा मीसोडर्म से आच्छादित ना होकर बल्कि मीसोडर्म एक्टोडर्म एवं एन्डोडर्म के बीच बिखरी हुई थैली के रुप में पाई जाती है ।

🔶 अगुहीय :- जिन प्राणियों में शरीर गुहा नही पाई जाती । 

❇️ पृष्ठरज्जु ( नोटोकोर्ड ) :-

  • नोटोकार्ड छड़ की तरह एक लंबी संरचना है जो जन्तुओं के पृष्ठ भाग पर पाई जाती है यह तंत्रिका ऊतक को आहार नाल से अलग करती है । 

🔶 कार्डेट ( कशेरूकी ) :- पृष्ठरज्जू युक्त प्राणी को कशेरूकी कहते हैं ।

🔶 नॉन कार्डेट ( अकशेरूकी ) :- पृष्ठरज्जू रहित प्राणी ।

❇️ फाइलम – पोरीफेरा :-

  • कोशिकीय स्तर संगठन 
  • अचल जन्तु ।
  • पूरा शरीर छिद्रयुक्त । 
  • बाह्य स्तर स्पंजी तन्तुओं का बना ।

🔶 उदाहरण :- स्पंज जैसे : साइकॉन , यूप्लेक्टेला , स्पांजिला इत्यादि ।

❇️ फाइलम सीलेन्टरेटा :-

  • ऊतकीय स्तर । 
  • अगुहीय ( देहगुहा अनुपस्थित ) । 
  • अरीय सममित , द्विस्तरीय ।
  • खुली गुहा ।

🔹 उदाहरण :- हाइड्रा , समुद्री एनीमोन , जलीफिश ।

❇️ एस्केलमिन्थीज ओर निमेटोडा :-

  • शरीर सूक्ष्म से कई सेमी तक । 
  • त्रिकोरक , द्वि पार्श्वसममित । 
  • वास्तविक देह गुहा का अभाव ।
  • कूट सीलोम उपस्थित ।  
  • समान्यतः परजीवी ।

🔹 उदाहरण :- गोलकृमि , पिनकृमि

❇️ एनीलिडा :-

  • द्विपाश्व सममित एवं त्रिकोरिक ! 
  • नम भूमि , जल व समुद्र में पाए जाने वाले ।
  • वास्तविक देह गुहा वाले । 
  • उभयलिंगी , लैंगिक या स्वतंत्र । 
  • शरीर खण्ड युक्त । 

🔹 उदाहरण :- केंचुआ , जोंक , नेरीस

❇️ आर्थ्रोपोडा :-

  • जन्तु जगत के 80 % जीव इस फाइलम से ( सबसे बड़ा जगत ) संम्बंधित ।
  • पैर खंड युक्त व जुड़े हुए और सामान्यतः कीट कहलाते है । 
  • शरीर सिर , वक्ष व उदर में विभाजित । 
  • अग्र भाग पर संवेदी स्पर्शक उपस्थित । 
  • बाह्य कंकाल काइटिन का । 
  • खुला परिसंचरण तंत्र । 

🔹 उदाहरण :- झींगा , तितली , मकड़ी , बिच्छू , कॉकरोच इत्यादि ।

❇️ मोलस्का :-

  • दूसरा बड़ा फाइलम 90,000 जातियाँ । 
  • शरीर मुलायम द्विपार्श्वसममित । 
  • शरीर सिर , उदर व पाद में विभाजित ।
  • बाह्य भाग कैल्शियम के खोल से बना ।
  • नर व मादा अलग । 
  • खुला संवहनों तत्र पाया जाता है । 

🔹 उदाहरण :- सीप , घोंघा , ऑक्टोपस , काइटॉन । 

❇️ इकाइनोडर्मेटा :-

  • समुद्री जीव । 
  • शरीर तारे की तरह , गोल या लम्बा । 
  • शरीर की बाह्य सतह पर कैल्शियम कार्बोनेट का कंकाल एवं काँटे पाए जाते हैं ।
  • शरीर अंखडित त्रिकोरक व देहगुहायुक्त । 
  • लिंग अलग – अलग । 

🔹 उदाहरण :- समुद्री अर्चिन , स्टारफिश इत्यादि ।

❇️ कॉर्डेटा :-

  • द्विपार्श्व सममित , त्रिकोरकी , देहगुहा वाले । 
  • सीलोम उपस्थित , अंगतंत्र स्तर संगठन । 
  • मेरूरज्जु उपस्थित । 
  • पूँछ जीवन की किसी अवस्था में उपस्थित । 
  • कशेरूक दंड उपस्थित । 

❇️ कॉर्डेटा के प्रकार :-

  • प्रोटोकार्डेटा 
  • वर्टीब्रेटा

🔶 प्रोटोकार्डेटा :-

  • कृमि की तरह के जन्तु , समुद्र में पाए जाने वाले ।
  • द्विपार्श्व सममित , त्रिकोरकी एवं देहगुहा युक्त । 
  • श्वसन गिल्स द्वारा । 
  • लिंग अलग – अलग ।
  • जीवन की अवस्था में नोटोकार्ड की उपस्थिति नहीं ।

🔹 उदाहरण :- बेलेनाग्लासस , हर्डमेनिया । 

🔶 वर्टीब्रेट :-

  • द्विपार्श्वसममित , त्रिकोश्की , देहगुहा वाले जंतु है । 
  • अंग तंत्र स्तर का संगठन ।
  • नोटोकॉर्ड ( व्यास्क में ) मेरूरज्जु में परिवर्तित ।
  • युम्मित क्लोम थैली ।
  • वर्टीब्रेटा ( कशेस्की ) को पाँच वर्गों में विभाजित किया गया है – मत्स्य एम्फीविया , सरीसृप , पक्षी एवं स्तनधारी ।

❇️ वर्ग मत्स्य :-

  • जलीय जीव ।
  • त्वचा शल्क अथवा प्लेटों से ढकी होती है । 
  • गिल उपस्थित । 
  • दिपार्श्व सममित , धारा रेखीय शरीर जो तैरने में मदद करता है । 
  • हृदय दो कक्ष युक्त , ठंडे खून वाले । 
  • अंडे देने वाला , जिनसे नए जीव बनते हैं । 
  • कुछ का कंकाल उपास्थि का व कुछ का हड्डी से बना । 
  • उपस्थिककाल मछलि – जैसे शार्क अस्थि कंकाल मछली – जैसे रोहू ट्युना ।

🔹 उदाहरण :- शार्क , रोहू , टारपीडो आदि ।

❇️ एम्फीबिया जलस्थलचर :-

  • भूमि व जल में पाए जाने वाले या रहने वाले ।
  • जनन के लिए जल आवश्यक ।
  • त्वचा पर श्लेष्मग्रन्थियाँ उपस्थित । 
  • शीत रुधिर , हृदय तीन कोष्ठक वाला । 
  • श्वसन गिल या फेफड़ों द्वारा । 
  • पानी में अंडे देने वाले । 

🔹 उदाहरण :- टोड , मेढक , सेलामेन्डर ।

❇️ सरीसृप :-

  • अधिकांश थलचर । 
  • शरीर पर शल्क , श्वसन फेफड़ों द्वारा । 
  • शीत रूधिर असमतापी ।
  • हृदय त्रिकक्षीय लेकिन मगरमच्छ का हृदय चार कक्षीय ।
  • कवच युक्त अण्डे देते हैं । 

🔹 उदाहरण :- साँप , कछुआ , छिपकली , मगरमच्छ आदि ।

❇️ पक्षी वर्ग :-

  • गर्म खून वाले जन्तु । ( समतापी ) 
  • चार कक्षीय हृदय होता है । 
  • श्वसन फेफड़ों द्वारा ।
  • इनकी अस्थियाँ खोखली होती है । 
  • शरीर पर पंख पाए जाते हैं । 
  • शरीर सिर , गर्दन , धड़ व पूँछ में विभाजित ।
  • अग्रपाद पंखों में रूपान्तरित । 
  • नर व मादा अलग ।

🔹 उदाहरण :- कौआ , कबूतर , मोर आदि ।

❇️ स्तनपायी स्तनधारी :-

  • त्वचा बाल खेद और तेल ग्रथि युक्त , गर्म रुधिर वाले ( समतापी ) 
  • स्तन ( दुग्ध ) ग्रन्थियाँ , बाह्य कर्ण उपस्थित । 
  • श्वसन फेफडों द्वारा । 
  • शिशुओं को जन्म ( इकिडना और प्लेटिपस अंडे देते है ) । 
  • निषेचन क्रिया आंतरिक । 
  • हृदय चार कक्षीय । 
  • माँ बाप द्वारा शिशु की देखभाल ।

🔹 उदाहरण :- मनुष्य , कंगारू , हाथी , बिल्ली , चमगादड़ आदि । 

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