अध्याय - 2
स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर भारतीय अर्थव्यवस्था
🔹 अ ) आँकड़ों का संकलन :-
" आँकडा ' एक ऐसा साधन है जो सूचनाएं प्रदान कर समस्या को समझने में । सहायक होता है । अतः आँकड़ों के संग्रह का उद्देश्य किसी समस्या के स्पष्ट एवं ठोस समाधान के लिए साक्ष्य को जुटाना है । इसलिए सांख्यिकीय अनुसंधान के लिए आँकड़ों का संकलन सबसे प्रथम एवं प्रमुख कार्य है ।
🔹 आँकड़ों के स्रोत :-
प्राथमिक स्रोत
द्वितीयक स्रोत
🔹 प्राथमिक आँकडे :-
1 . प्राथमिक आँकड़े वे होते हैं जो अनुसंधानकर्ता द्वारा अपने उद्देश्य के लियें सर्वप्रथम स्वयं एकत्रित किये जाते हैं ।
2 . प्राथमिक आँकड़ें मौलिक होते हैं क्योंकि अनुसंधानकर्ता स्वयं उनके मौलिक स्रोत से एकत्रित करता है ।
3 . प्राथमिक आँकड़ों को एकत्रित करने में अधिक धन समय और परिश्रम की आवश्यकता होती है ।
4 . यदि अनुसंधानकर्ता ग्यारहवी कक्षा के विद्यार्थियों से पूछकर अर्थशास्त्र विषय की अंक सूची बनाता है तो इस तरह से प्राप्त आँकड़े प्राथमिक आंकड़े माने जायेंगे ।
🔹 प्राथमिक आँकड़े एकत्रित करने की विधियाँ:-
1 ) प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान
2 ) अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसंधान
3 ) संवाददाताओं से सूचना प्राप्ति
4 ) टेलीफोन , डाक या प्रगणकों द्वारा ।
🔹 द्वितीयक आँकड़े :–
1 . द्वितीयक आँकड़े वे होते हैं जो पहले एकत्रित किये जा चुके होते हैं । ये किसी दूसरे उद्देश्य के लिय किसी अन्य संस्था द्वारा संग्रहित किये हुये होते हैं ।
2 . द्वितीयक आँकड़े मौलिक नहीं होते क्योंकि अनुसंधानकर्ता उन्हें अन्य व्यक्तियों अथवा संस्थाओं के अभिलेखों से प्राप्त करता है ।
3 . द्वितीयक आँकड़ों को एकत्रित करने में अपेक्षाकृत कम धन , समय और परिश्रम की आवश्यकता होती है ।
4 . यदि अनुसंधानकर्ता कक्षा अध्यापक के माध्यम से स्कूल रिकार्ड जैसे अंक सूची या रिजल्ट रजिस्टर से जानकारी प्राप्त करके ग्यारहवीं कक्षा की अर्थशास्त्र की अंक सूची बनाता है तो यह द्वितीयक आँकड़े माने जायेंगे ।
🔹 द्वितीयक आँकड़े एकत्रित करने के स्रोत :-
1 ) प्रकाशित स्रोत ,
2 ) अप्रकाशित स्रोत ,
3 ) अन्य स्रोत – वेबसाइट आदि
🔹 एक अच्छी प्रश्नावली के गुण :-
1 ) अन्वेषक का परिचय तथा अन्वेषक के उद्देश्य का विवरण ।
2 ) प्रश्नावली बहुत लम्बी न हो ।
3 ) प्रश्नावली सामान्य प्रश्नों से आरम्भ होकर विशिष्ट प्रश्नों की ओर बढनी चाहिए ।
4 ) प्रश्न सरल व स्पष्ट होने चाहिए ।
5 ) प्रश्न दोहरी नकारात्मक वाले नहीं होने चाहिए ।
6 ) संकेतक प्रश्न नहीं होने चाहिए ।
7 ) प्रश्न से उत्तर के विकल्प का संकेत नहीं मिलना चाहिए ।
🔹 प्रतिदर्श की विधियाँ :-
🔹 दैव प्रतिदर्श या . यादृच्छिक प्रतिचयन :-
क ) सरल दैव प्रतिदर्श
ख ) प्रतिबद्ध प्रतिदर्श
ग ) स्तरीय प्रतिदर्श
घ ) व्यवस्थित प्रतिदर्श
ड ) बहुस्तरीय प्रतिदर्श
🔹 अदैव प्रतिदर्श या अयादृच्छिक प्रतिचयन :-
क ) सविचार प्रतिदर्श
ख ) अभ्यंश प्रतिदर्श
ग ) सुविधानुसार प्रतिदर्श
🔹 जनगणना सर्वेक्षण :- अन्वेषण की इस विधि में समग्र की प्रत्येक इकाईको सम्मिलित किया जाता है ।
🔹 प्रतिदर्श सर्वेक्षण :– अन्वेषण की इस विधि में समग्र की कुछ प्रतिनिधि इकाईयों का अध्ययन किया जाता है ।
🔹 प्रतिचयन त्रुटियाँ ;- प्रतिचयन त्रुटियाँ प्रतिदर्श आकलन तथा समष्टि विशेष के वास्तविक मूल्य के बीच का अन्तर प्रकट करती है ।
🔹 अप्रतिचयन त्रुटियाँ :- ये त्रुटियाँ जनगणना विधि या प्रतिदर्श विधि द्वारा संकलित आंकड़ों में पायी जाती है ।
🔹 त्रुटियों के प्रकार :-
प्रतिचयन त्रुटियाँ
1 . पक्षपात पूर्ण त्रुटियाँ
2 . अपक्षपात पूर्ण त्रुटियाँ
अप्रतिचयन त्रुटियाँ
1 . आँकड़ा अर्जन में त्रुटियाँ
2 . अनुत्तर संबंधी त्रुटियाँ
3 . मापन त्रुटियाँ
🔹 भारतीय की जनगणना तथा राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन CENSUS OF INDIA & NSSO
भारतीय जनगणना देश की जन सांख्यिकी स्थिति से संबंधित पूर्ण जानकारी प्रदान करती है । जैसे जनसंख्या का आकार , वृद्धि दर , वितरण , प्रक्षेपण , घनत्व , लिंग अनुपात और साक्षरता ।
राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन की स्थापना भारत सरकार द्वारा सामाजिक - आर्थिक मुद्दों पर ( जैसे रोजगार , शिक्षा , मातृत्व - शिशु देखभाल , सार्वजनिक वितरण विभाग का उपयोग आदि ) राष्ट्रीय स्तर के सर्वेक्षण के लिए की गई है ।
NSSO द्वारा संगृहित आँकड़े समय - समय पर विभिन्न रिपोर्टों एवं इसकी त्रैमासिक पत्रिका " सर्वेक्षण ' में प्रकाशित किए जाते हैं ।
🔹 स्मरणीय बिन्दु :-
• अपरिष्कृत आँकड़ों को सरल , संक्षिप्त तथा व्यवस्थित ढंग से प्रस्तुत करने को आँकड़ों का व्यवस्थितीकरण कहा जाता है ताकि उन्हें आसानी से आगे के सांख्यिकीय विश्लेषण के योग्य बनाया जा सके ।
• एकत्रित आँकड़ों को उनकी समानता और असमानताओं के आधार पर विभिन्न वर्गों व समूहों में विभाजित करना वर्गीकरण कहलाता है ।
🔹 वर्गीकरण की विशेषताएँ :-
1 . स्पष्टता
2 . व्यापकता
3 . सजातीयता
4 . अनुकूलता
5 . लोचदार
6 . स्थिरता
🔹 वर्गीकरण का आधार :-
1 . कालानुक्रमिक वर्गीकरण : - जब आँकडों को समय के संदर्भ जैसे - वर्ष , तिमाही , मासिक या साप्ताहिक आदि रुप में आरोही या अवरोही क्रम में वर्गीकृत किया जा सकता है ।
2 . स्थानिक वर्गीकरण : - जब आँकडों को भौगोलिक स्थितियों जैसे देश । राज्य , शहर , जिला , कस्बा आदि में वर्गीकृत किया जाता है । ।
3 . गुणात्मक वर्गीकरण : - विशेषताओं पर आधारित आँकड़ों के वर्गीकरण को गुणात्मक वर्गीकरण कहा जाता है । जैसे राष्ट्रीयता , साक्षरता लिंग वैवाहिक स्थिति आदि ।
4 . मात्रात्मक वर्गीकरण : - जब विशेषताओं की प्रकृति मात्रात्मक होती है । तो इस आधार पर किए गए वर्गीकरण को मात्रात्मक वर्गीकरण कहते हैं । जैसे ऊँचाई , भार , आय , आय , छात्रों के अंक आदि । उदाहरण : ऊचाई । भार आदि ।
🔹 चर :-
चर से अभिप्राय उस विशेषता या गुण से है जिसे मापा जा सकता है । तथा जिसमें समय - समय पर परिवर्तन होता रहता है ।
🔹 चर के प्रकार :-
1 . विविक्त चर - ये चर केवल निश्चित मान वाले हो सकते हैं । इसके मान केवल परिमित ' उछाल ' से बदलते हैं । यह उछाल एक मान से दूसरे मान के बीच होते हैं , परन्तु इसके बीच में कोई मान नहीं आता है । उदाहरण विद्यार्थियों की संख्या , कर्मचारियों की संख्या ।
2 . संतत् चर - वे चर जो कि सभी संभावित मूल्यों ( पूर्णांकों या भिन्नात्मक ) को एक दी गई सीमाओं के अन्तर्गत ले सकते हैं , सतत चर कहलाते हैं । जैसे - ऊँचाई , भार आदि ।
• बारम्बारता वितरण - यह अपरिष्कृत आँकड़ों को एक मात्रात्मक चर में वर्गीकृत करने का एक सामान्य तरीका है । यह दर्शाता है कि किसी चर । के भिन्न मान विभिन्न वर्गों में अपने अनुरुप वर्गों में बारम्बारताओं के साथ कैसे वितरित किए जाते हैं ।
• वर्ग - मूल्यों के एक निश्चित समूह को वर्ग कहा जाता है जैसे 0 - 10 , 10 - 20 , 20 - 30 आदि । ।
• वर्ग सीमाएँ - प्रत्येक वर्ग की दो सीमाएँ होती हैं - निम्न सीमा तथा ऊपरी सीमा । उदाहरण के लिए 10 - 20 के वर्ग में 10 निम्न सीमा ( L ) तथा 20 ऊपरी सीमा ( L2 ) है ।
• वर्गान्तर – वर्ग की ऊपरी सीमा तथा निम्न सीमा के अन्तर को वर्गान्तर कहते हैं । उदाहरण के लिए 10 - 20 का वर्गान्तर 10 है ।
• वर्ग आवृति - किसी वर्ग में शामिल मदों की संख्या को उस वर्ग की आवृति या बारम्बारता कहते हैं । इसे f द्वारा प्रदर्शित करते हैं ।
• मध्य मूल्य - किसी वर्ग के वर्गान्तर का मध्य बिन्दु ही मध्य मूल्य कहलाता है । इसे वर्ग की ऊपरी सीमा व निम्न सीमा के योग को 2 से भाग देकर प्राप्त किया जा सकता है । इसे वर्ग चिन्ह भी कहते हैं ।
• अपवर्जी श्रृंखला - इसके द्वारा वर्गों का गठन इस प्रकार किया जाता है । कि एक वर्ग की उच्च सीमा , अगले वर्ग की निम्न सीमा के बराबर होती है जैसे - 0 - 10 , 10 - 201
• समावेशी श्रृंखला - यह वह श्रृंखला है जिसमें किसी वर्ग की सभी आवृतियाँ उसी वर्ग में शामिल होती हैं अर्थात् एक वर्ग की ऊपरी सीमा का मूल्य भी उसी वर्ग में शामिल होता है । जैसे 0 - 9 , 10 - 19 ।
• सूचना की हानि - बारम्बारता वितरण के रुप में आँकड़ों के वर्गीकरण में एक अन्तर्निहित दोष पाया जाता है । यह परिष्कृत आँकड़ों को सारांश में । प्रस्तुत कर उन्हे संक्षिप्त एवं बोधगम्य तो बनाता है , परन्तु इसमें वे विस्तृत विवरण प्रकट नहीं हो पाते जो अपरिष्कृत आँकड़ों में पाए जाते हैं । अतः अपरिष्कृत आँकड़ों को वर्गीकृत करने में सूचना की हानि होती ।