अध्याय - 8
सामाजिक आंदोलन
❇️ सामाजिक आन्दोलन :-
🔹 ये समाज को एक आकार देते है । 19वीं सदी में कुछ सुधार आन्दोलन हुए जैसे-जाति व्यवस्था के विरूद्ध, लिंग आधारित, भेदभाव के विरूद्ध, राष्ट्रीय आज़ादी की आन्दोलन आदि ।
❇️ सामाजिक आन्दोलन के लक्षण :-
🔹 लम्बे समय तक निरंतर सामुहिक गतिविधियों की आवश्यकता । सामाजिक आन्दोलन प्रायः किसी जनहित के मामले में परिवर्तन के लिए होते हैं । जैसे आदिवासिओं का जंगल पर अधिकार, विस्थापित लोगों का पुनर्वास ।
🔹 सामाजिक परिवर्तन लाने को लिए । सामाजिक आन्दोलन के विरोध में प्रतिरोधी अन्दोलन जन्म लेते हैं, जैसे सती प्रथा के विरूद्ध आन्दोलन के खिलाफ धर्म सभा बनी; जिसने अंग्रजो से सती प्रथा खत्म करने के विरूद्ध कानून न बनाने की मांग की ।
🔹 सामाजिक आन्दोलन विरोध के विभिन्न साधन विकसित करते है-मोमबत्ती या मशाल जुलूस, नुक्कड़ नाटक, गीत ।
❇️ सामाजिक आन्दोलन के सिद्धांत :-
🔶 सापेक्षिक वचन का सिद्धान्त :-
🔹 सामाजिक संघर्ष तब उत्पन्न होता है जब सामाजिक समूह अपनी स्थिति खराब समझता है । मनोवैज्ञानिक कारण जैसे क्षोभ व रोष ।
🔶 सापेक्षिक वंचन के सिद्धांत की सीमाएं :- सामुहिक गतिविधि के लिए वंचन का आभास आवश्यक है लेकिन एक प्रर्याप्त कारण नहीं है ।
🔶 दि लोजिक ऑफ कलैक्टिव एक्शन :-
🔹 सामाजिक आन्दोलन में स्वयं का हित चाहने वाले विवेकी व्यक्तिगत अभिनेताओं का पुर्ण योग है । व्यक्ति कुछ प्राप्त करने लिए इनमे शामिल होगा उसे इसमें जोखिम भी कम हो और लाभ अधिक ।
🔶 सीमाएं :- सामाजिक आन्दोलन की सफलता संसाधनों व योग्यताओं पर निर्भर करती है ।
🔶 संसाधन गतिशीलता का सिद्धांत :-
🔹 सामाजिक आन्दोलन नेतृत्व, संगठनात्मक क्षमता तथा संचार सुविधाओं का एकत्र करना इसकी सफलता का जरिया है ।
🔶 सीमाएं :- प्राप्त संसाधनों की सीमा में वंचित नहीं, नए प्रतीक व पहचान की रचना भी कर सकती हैं ।
❇️ सामाजिक आंदोलनों के प्रकार :-
🔶 प्रतिदानात्मक आन्दोलन :- व्यक्तियों की चेतना तथा गतिविधियों में परिवर्तन लाते है । जैसे केरल के इजहावा समुदाय के लोगो ने नारायण गुरू के नेतृत्व मे अपनी सामाजिक प्रथाओं को बदला ।
🔶 सुधारवादी आन्दोलन :- सामाजिक तथा राजनीतिक विन्यास को धीमे व प्रगतिशील चरणों द्वारा बदलना । जैसे – 1960 के दशक में भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन व सूचना का अधिकार ।
🔶 क्रांन्ति आन्दोलन :- सामाजिक सम्बन्धों में आमूल परिवर्तन करना तथा राजसत्ता पर अधिकार करना । जैसे- बोल्शेविक क्रान्ति जिसमें रूस में जार को अपदस्थ किया ।
❇️ सामाजिक अन्दोलन के अन्य प्रकार :-
🔹 पुराना सामाजिक आन्दोलन (आजादी पूर्व)- नारी आन्दोलन, सती प्रथा के विरूद्ध आन्दोलन, बाल विवाह, जाति प्रथा के विरूद्ध । राजनीतिक दायरे में होते थे ।
🔹नया सामाजिक आन्दोलन- जीवन स्तर को बदलने व शुद्ध पर्यावरण के लिए । बिना राजनीतिक दायरे के होते हैं तथा राज्य धर दबाव ड़ालते है । अन्तर्राष्ट्रीय है ।
❇️ पारिस्थितिकीय अन्दोलन :-
🔶 उदाहरण :- चिपको आन्दोलन
🔹 उत्तरांचल में वनों को काटने से रोकने तथा पर्यावरण का बचाव करने के लिए स्त्रियाँ पेड़ों से चिपक गई तथा पेड़ काटने नहीं दिये । इस प्रकार यह आन्दोलन आर्थिक, पारिस्थितिकीय व राजनीतिक बन गया ।
❇️ वर्ग आधारित आन्दोलन :-
🔹 किसान आन्दोलन :- 1858 -1914 के बीच स्थानीयता, विभाजन व विभिन्न शिकायतों से सीमित होने की ओर प्रवृत हुआ ।
- 1859 – 62 मील की खेती के विरोद्ध में
- 1857 – दक्षिण का विद्रोह जो साहुकारो के विरोद्ध में
- 1928 – लगान विरोद्ध बारदोली, सूरत में
- 1920 – ब्रिटिश सरकार की वन नीतियों के विरुद्ध
- 1920 – 1940 – अल इंडिया किसान सभा
❇️ स्वतंत्रता के समय दो मुख्य किसान आंदोलन हुए :-
🔹 1946 – 1947 तिभागा आन्दोलन :- यह संघर्ष पट्टेदारी के लिए हुआ ।
🔹 1946 – 1951 तेलंगाना आन्दोलन :- यह हैदराबाद की सांमती दशाओं के विरुद्ध था ।
❇️ स्वतंत्रा के बाद दो बड़े सामाजिक आंदोलन हुए :-
🔹 1967 नक्सली आन्दोलन :- यह आंदोलन भूमि को लेकर हुआ था।
🔹 नए किसानों का आंदोलन
❇️ नया किसान आन्दोलन :-
- 1970 में पंजाब व तमिलनाडु में प्रारंभ हुआ ।
- दल रहित थे ।
- क्षेत्रीय आधार पर संगठित थे ।
- कृषक के स्थान पर किसान जुड़े थे ( किसान उन्हें कहा जाता है जो कि वस्तुओं के उत्पादन और खरीद दोनों में बाजार से जुड़े होते है । )
- राज्य विरोधी व नगर विरोधी थे ।
- लाभ प्रद कीमतें , कृषि निवेश की कीमते , टैक्स व उधार की वापसी की माँगे थी ।
- सड़क व रेल मार्ग को बंद किया गया था ।
- महिला मुद्दों को शामिल किया गया ।
❇️ कामगारों का अन्दोलन :-
🔹 1860 में कारखानो में उत्पादन का कार्य शुरू हुआ । कच्चा माल भारत से ले जाकर, इंग्लैड में निर्माण किया जाता था ।
- बाद में ऐसे कारखानों को मद्रास, बंबई और कलकत्ता स्थापित किया गया ।
- कामगारों ने अपनी कार्य दशाओं के लिए विरोध किया ।
- 1918 मे शुरूआत सर्वप्रथम मजदूर संघ की स्थापना हुई ।
- 1920 में एटक की स्थापना हुई ( ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस-एटक )
- कार्य के घंटों की अवधि को घटाकर 10 घंटे कर दिया गया ।
- 1926 में मजदूर संघ अधिनियम पारित हुआ जिसने मज़दूर संघों के पंजीकरण कि प्रावधान किया, और कुछ नियम बनाए ।
❇️ जाति अधारित अन्दोलन :-
🔶 दलित आन्दोलन :- दलित शब्द मराठी, हिन्दी, गुजराती व अन्य भाषाओं के रूप मे पहचान प्राप्त करने का संघर्ष है । दलित समानता, आत्मसम्मान, अस्पृश्यता उन्मूलन के लिए संघर्ष कर रहे हैं ।
- मध्यप्रदेश में चमारों का सतनामी आन्दोलन
- पंजाब में अदिधर्म आन्दोलन
- महाराष्ट्र में महार आन्दोलन
- आगरा में जाटवों की गतिशीलता
- दक्षिण भारत में ब्राह्मण विरोधी अन्दोलन
🔶 पिछड़े वर्ग का आन्दोलन :-
- पिछड़े जातियों, वर्गों का राजनीतिक इकाई के रूप मे उदय ।
- औपनिवेशिक काल में राज्य अपनी संरक्षित का वितरण जाति अधारित करते थे ।
- लोग सामाजिक तथा राजनीतिक पहचान के लिए जाति में रहते है ।
- आधुनिक काल में जाति अपनी कर्मकांडो विषय वस्तु छोड़ने लगी तथा राजनीतिक गतिशीलता के पंथनिरपेक्ष हो गई है ।
🔶 उच्चजाति का आन्दोलन :- दलित व पिछडो के बढ़ते प्रभाव से उच्च जातियों ने उपेक्षित महसूस किया ।
❇️ जन जातीय अन्दोलन :-
🔹 जनजातीय आंदोलनों में से कई मध्य भारत में स्थित है । जैसे छोटे नागपुर व संथाल परगना में स्थित संथाल, हो, मुंडा, ओराव, मीणा आदि ।
🔶 झारखन्ड :-
- बिहार से अलग होकर 2000 में झारखन्ड राज्य बना ।
- आन्दोलन की शुरूआत विरसा मुण्डाने की थी ।
- ईसाई मिशनरी ने सक्षरता का अभियान चलाया ।
- दिक्कुओं – (व्यापारी व महाजन) के प्रति घृणा ।
- आदिवासीयों का अलग थलग किया जाना ।
🔶 पूर्वीतर राज्यों के आन्दोलन :- वन भूमि से लोगों का विस्थापन तथा पारिस्थितिकीय मुद्दे ।
❇️ महिलाओं का अन्दोलन :-
- 1970 के दशक में भारत मे महिला आन्दोलन का नवीनीकरण हुआ ।
- महिला आन्दोलन स्वायत थे तथा राजनीतिक दलो से स्वतन्त्र थे ।
- महिलाओं के प्रति हिंसा के बारे मे अभियान चलाए ।
- स्कूल के प्रार्थना पत्र में माता पिता दोनो के नाम शामिल ।
- यौन उत्पीड़न व दहेज के विरोध मे ।
- कुछ महिला संगठनों के नाम- विन्स इंडिया एसोसिएशन (1971), ऑल इंडिया विमंश कांफ्रेंस (1926)