Class 12 Sociology Chapter 5 सामाजिक विषमता एवं बहिष्कार के स्वरूप (Patterns of Social Inequality and Exclusion) Notes In English

अध्याय - 5

सामाजिक विषमता एवं बहिष्कार के स्वरूप


❇️ सामाजिक विषमता व बहिष्कार :-

🔹 सामाजिक विषमता व बहिष्कार हमारे दैनिक जीवन में प्राकृतिक व वास्तविकता है ।

🔹 प्रत्येक समाज में हर व्यक्ति की सामाजिक प्रस्थिति एक समान नहीं होती है । समाज में कुछ लोगों के पास तो धन , सम्पत्ति , शिक्षा , स्वास्थ्य , सत्ता और शक्ति जैसे साधनों की अधिकता होती है तो दूसरी ओर कुछ लोगों के पास इनका नितान्त अभाव रहता है तो कुछ लोगों की स्थिति बीच की होती है ।

🔹 सामाजिक विषमता व बहिष्कार सामाजिक इसलिए है –

  • ये व्यक्ति से नहीं समूह से सम्बन्धित है । 
  • ये व्यवस्थित व संरचनात्मक हैं । 
  • ये आर्थिक नहीं हैं ।

❇️ सामाजिक संसाधनों का विभाजन :-

🔹 सामाजिक संसाधनों को तीन रूपों में विभाजित किया जा सकता है :-

  • भौतिक संपत्ति एवं आय के रूप में आर्थिक पूंजी ।
  • प्रतिष्ठा व शैक्षणिक योग्यता के रूप में सांस्कृतिक पूंजी । 
  • सामाजिक संगतियों व संपर्कों के जाल के रूप में – सामाजिक पूंजी ।

❇️ सामाजिक विषमता :-

🔹 सामाजिक संसाधनों तक असमान पहुँच की पद्धति सामाजिक विषमता कहलाती है ।

❇️ सामाजिक स्तरीकरण :-

🔹 वह व्यवस्था जो एक समाज के अंतर्गत पाए जाने वाले समूहों का ऊँच नीच या छोटे – बड़े के आधार पर विभिन्न स्तरों पर बँट जाना ही सामाजिक स्तरीकरण कहलाता है ।

❇️ सामाजिक स्तरीकरण के तीन मुख्य सिद्धान्त विशेषताएँ :-

  • सामाजिक स्तरीकरण व्यक्तियों के बीच की विभिन्नता का प्रकार्य नहीं बल्कि समाज की विशिष्टता है । 
  • सामाजिक स्तरीकरण पीढ़ी दर पीढ़ी बना रहता है । 
  • सामाजिक स्तरीकण को विश्वास या विचारधारा द्वारा समर्थन मिलता है ।

❇️ पूर्वाग्रह :-

🔹 एक समूह के सदस्यों द्वारा दूसरे समूह के बारे में पूर्वकल्पित विचार या विश्वास को पूर्वाग्रह कहते हैं । जैसे यहूदी ओर मारवाड़ी कंजूस होते हैं । 

🔹 पूर्वाग्रह अपरिर्वतनीय , कठोर व रूढ़िवद्ध धारणाओं पर आधारित होते हैं । 

❇️ रूढ़धारणाएँ :-

🔹 ऐसा लोक विश्वास , समूह स्वीकृत कोई अचल विचार या भावना जो सामान्यतः शाब्दिक तथा संवेगयुक्त होती हैं रूढ़धारणा कहलाती है । यह ज्यादातर महिलाओं , नृजातीय प्रजातीय समूहों के बारे में प्रयोग की जाती है ।

❇️ भेदभाव :-

🔹 किसी समूह के सदस्यों को उनके लिंग , जाति या धर्म के आधार पर अवसरों तथा सुविधाओं से वंचित रखा जाना भेदभाव कहलाता है ।

❇️ सामाजिक बहिष्कार :-

🔹 वह तौर तरीके जिनके जरिए किसी व्यक्ति या समूह को समाज में पूरी तरह घुलने मिलने से रोका जाता है या अलग रखा जाता है यह आकस्मिक न होकर व्यवस्थित तथा अनैच्छिक होता है ।

🔹 सामाजिक बहिष्कार आकस्मिक नहीं होता , यह व्यवस्थित तथा अनैच्छिक होता है । लम्बे समय तक विषमता , के कारण निष्कासित समाज में प्रतिशोध व घृणा की भावना पैदा हो जाती है , जिस कारण निष्कासित समाज अपने – आप को मुख्य धारा से जोड़ने की कोशिश नहीं करते । जैसे – दलित , जनजातीय समुदाय , महिलाएँ तथा अन्यथा सक्षम लोग ।

❇️ जाति एक भेदभावपूर्ण व्यवस्था :-

  • जाति प्रथा जन्म से ही निर्धारित होता है न कि उस मनुष्य की क्या स्थिति है । 
  • जाति व्यवस्था व्यक्तियों का व्यवसाय निर्धारित करती है ।सामाजिक व आर्थिक प्रस्थिति एक – दूसरे के अनुरूप होती है ।

❇️ अस्पृश्यता :-

🔹 आम बोलचाल में छुआछूत कहा जाता है । धार्मिक एवं कर्मकांडीय दृष्टि से शुद्धता व अशुद्धता के पैमाने पर सबसे नीची जाने वाली जातियों के विरूद्ध अत्यन्त कठोर सामाजिक दंडों का विधान किया जाता है । इसे अस्पृश्यता कहते है ।

🔹 अस्पृश्यता शब्द का प्रयोग ऐसे लोगों के लिए किया गया है जिन्हे अपवित्र , गन्दा और अशुद्ध माना जाता था । ऐसे लोगों को कुओं , मन्दिरों और सार्वजनिक स्थानों पर प्रवेश निषेध था ।

🔹 गाँधी जी ने इन लोगों के लिए हरिजन शब्द का प्रयोग किया था किन्तु आजकल दलित शब्द का प्रयोग किया जाता है ।

🔹 दलित का शब्दिक अर्थ है ‘ पैरो से कुचला हुआ । ‘

🔹 भारतीय संविधान ( 1956 ) के अनुसार जाति अस्पृश्यता निषेध है ।

🔹 महात्मा गाँधी , डॉ अम्बेडकर और ज्योतिबा फूले ने अस्पृश्यता निवारण की दिशा में उल्लेखनीय कार्य किया ।

❇️ अस्पृश्यता के आयाम :-

🔶 अपवर्जन या बहिष्कार :- पेयजल के सामान्य स्त्रोतों से पानी नहीं लेने दिया जाता । सामाजिक उत्सव , समारोहों में भाग नहीं ले सकते । धार्मिक उत्सव पर ढोल – नगाड़े बजाना ।

🔶 अनादर और अधीनतासूचक :- टोपी या पगड़ी उतारना , जूतो को : उतारकर हाथ में पकड़कर ले जाना , ले जाना , सिर झुकाकर खड़े रहना , साफ या चमचमाते हुए कपड़े नहीं पहनना ।

🔶 शोषण व आश्रिता :- उन्हें ‘ बेगार ‘ करनी पड़ती है जिसके लिए उन्हें कोई पैसा नहीं दिया जाता या बहुत कम मज़दूरी दी जाती है ।

🔶 दलित :- वह लोग जो निचली पायदान ( जाति व्यवस्था में ) पर है तथा शोषित है , दलित कहलाते हैं ।

❇️ जातियों व जन जातियों के प्रति भेदभाव मिटाने के लिए राज्य द्वारा उठाए गए कदम :-

  • अनुसूचित जाति व जनजाति के लिए राज्य व केन्द्रीय विधान – मंडलों में आरक्षण ।
  • सरकारी नौकरी में आरक्षण ।
  • अस्पृश्यता ( अपराध ) 1955 ।
  • 1850 का जातिय निर्याग्यता निवारण अधिनियम ।
  • अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति अस्पृश्यता उन्मूलन कानून 1989 उच्च शैक्षिक संस्थानों के 93 वें संशोधन के अंतर्गत अन्य पिछड़े वर्ग को आरक्षण देना ।

❇️ गैर सरकारी प्रयास व सामाजिक आन्दोजन :-

🔹 स्वाधीनता पूर्व – ज्योतिबाफूले , पेरियार , सर सैयद अहमद खान , डॉ . अम्बेडकर , महात्मा गांधी , राजाराम मोहन राय आदि का महत्वपूर्ण योगदान रहा है ।

🔹 उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी , कर्नाटक में दलित संघर्ष समिति ।

🔹 विभिन्न भाषाओं के साहित्य से योगदान ।

❇️ अन्य पिछड़ा वर्ग :- 

🔹 सामाजिक , शैक्षिक रूप से पिछड़ी जातियों के वर्ग , को अन्य पिछड़ा वर्ग कहा जाता है इसमें सेवा करने वाली शिल्पी जातियों के लोग शामिल है ।

🔹 इन वर्गों की प्रमुख विशेषता संस्कृति , शिक्षा , और सामाजिक दृष्टि से इनका पिछड़ापन है । ये वर्ग न तो अगड़ी जाति में आते हैं न ही पिछड़ी जाति में आते है ।

❇️ पिछड़े वर्ग आयोग :-

🔹 काका साहेब कालेलकर की अध्यक्षता से सबसे पहले ” पिछड़े वर्ग आयोग ” का गठन किया था । आयोग ने अपनी रिपोर्ट 1953 में सरकार को सौंप दी थी । 

🔹 1979 में दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग ( मंडल आयोग ) गठित किया ।

❇️ भारत में जनजातीय जीवन :-

🔹 भारतीय संविधान के अनुसार निर्धनता , शक्ति हीनता व सामाजिक लांछन से पीड़ित सामाजिक समूह है । इन्हें जनजाति भी कहा जाता है ।

🔹  जनजातियों को प्राय- ‘ वनवासी ‘ और आदिवासी जाना जाता है ।

❇️ आन्तरिक उपनिवेशवाद :-

🔹 आदिवासी समाज ने प्रगति के नाम पर आन्तरिक उपनिवेशवाद का सामना किया । भारत सरकार ने वनों का दोहन , खदान कराखानें , बांध बनाने के नाम पर उनकी जमीन का अधिग्रहण किया तथा उनका पलायन हुआ । 

❇️ आदिवासियों की समस्याओं से जुड़े प्रमुख मुद्दे :-

  • राष्ट्रीय वन नीति बनाम आदिवासी विस्थापन ।
  • आदिवासी क्षेत्रों में सधन औद्योगीकरण की नीति ।
  • आदिवासियों में सजातीय राजनीतिक जागरूकता के दर्शन ।

❇️ स्त्रियों के अधिकारों व उनकी स्थिति :-

🔹 स्त्री पुरुष में असमानता सामाजिक है , न कि प्राकृतिक यदि स्त्री पुरुष प्राकृतिक आधार पर असमान है तो क्यों कुछ महिलाएँ समाज में शीर्ष स्थान पर पहुँच जाती है । दुनिया या देश में ऐसे भी समाज है जहाँ परिवारों में महिलाओं की सत्ता व्याप्त है जैसे केरल के ‘ नायर ‘ परिवारों में और मेघालय की ‘ खासी जनजाति । 

🔹 यदि महिला जैविक या शारीरिक आधार पर अयोग्य समझी जाती हो तो कैसे वह सफलतापूर्वक कृषि और व्यापार को चला पातीं संक्षेप में , यह कहना न्याय संगत होगा कि स्त्री पुरुष के बीच असमानता के निर्धारण में जैविक / प्राकृतिक या शारीरिक तत्वों की कई भूमिका नहीं है ।

❇️ स्त्रियों की स्थिति को सुधारने हेतु उन्नीसवीं सदी में सुधार आन्दोलन :-

  • राजा राम मोहन राय ने सती प्रथा तथा बाल विवाह का विरोध किया तथा विधवा विवाह का समर्थन किया । 
  • ज्योतिबा फूले ने जातिय व लैंगिक अत्याचारों के विरोध में आन्दोलन किया । 
  • सर सैयद अहमद खान ने इस्लाम में सामाजिक सुधारों के लिए लड़कियो के स्कूल तथा कॉलेज खोले । 
  • दयानंद सरस्वती ने नारियों की शिक्षा में योगदान दिया । 
  • रानाडे ने विधवा विवाह पुनर्विवाह पर जोर दिया ।
  • ताराबाई शिंदे ने “ स्त्री पुरूष तुलना ” लिखी जिसमें गलत तरीके से पुरूषों को ऊँचा दर्जा देने की बात कही गई ।
  • बेगम रोकेया हुसैन ने ‘ सुल्तानाज ड्रीम नामक किताब लिखी जिसमें हर लिंग को बराबर अधिकार देने पर चर्चा की गई है ।
  • 1931 में कराची में भारतीय कांग्रेस द्वारा एक अध्यादेश जारी करके स्त्रियों को बराबरी का हक देने पर बल दिया गया । सार्वजनिक रोजगार , शक्ति या सम्मान के संबंध में निर्योग्य नहीं ठहराया जाएगा ।
  • 1970 में काफी अहम मुद्दे पर जोर दिया गया जैसे- पुलिस हिरासत में दहेज , । बलात्कार , दहेज हत्या आदि । स्त्रियों को मत डालने , सार्वजनिक पदधारण ” करने का अधिकार होगा ।

❇️ अक्षमता ( विकलांगता ) :- 

🔹 शारीरिक , मानसिक रूप से बाधित व्यक्ति , इसलिए अक्षम कहलाते हैं क्योंकि वे समाज की रीतियों व सोच के अनुसार जरूरत को पूरा नहीं करते ।

🔹 निर्योग्यता / अक्षमता को एक जैविक कमजोरी माना जाता है । जब कभी किसी अक्षम व्यक्ति के समक्ष कई समस्याएँ खड़ी होती है तो यह मान लिया जाता है कि ये समस्याएँ उसकी बाधा या कमजोरी के कारण ही उत्पन्न हुई है ।

🔹 यह माना जाता है कि निर्योग्यता उस निर्योग्य व्यक्ति के अपने प्रत्यक्ष ज्ञान से जुड़ी है । 

❇️ निर्योग्यता तथा गरीबी के बीच संबंध :-

🔹 निर्योग्यता तथा गरीबी के बीच काफी निकट संबंध देखा गया है क्योकि गरीबी के कारण ही माताएँ कुपोषण का शिकार होती है और दुर्बल व अविकसित बच्चों को जन्म देती है । जो बड़े होकर विक्लांग लोगों की संख्या को बढ़ाते है ।

❇️ सरकार इनके लिए क्या करती है ?

🔹 सरकार इनके लिए विभिन्न कार्यक्रम प्रदान करती है – जैसे- शिक्षा , रोजगार , व्यावसायिक

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