अध्याय - 4
बाज़ार एक सामाजिक संस्था के रूप में
❇️ बाजार :-
🔹 एक ऐसा स्थान जहाँ पर वस्तुओं का क्रय – विक्रय होता है । बाहार केवल एक आर्थिक संस्था नहीं बल्कि सामाजिक संस्था भी है ।
❇️ साप्ताहिक बाजार :-
🔹 जो सप्ताह में एक बार लगे नगरों में कहीं कहीं – कहीं साप्ताहिक बाजार भी लगते हैं । जहाँ से उपभोक्ता अपनी दैनिक उपयोग की चीजे , जैसे- सब्जी , फल आदि सामान खीरदते है ।
❇️ ग्रामीण क्षेत्रों में बाजार :-
🔹 ग्रामीण क्षेत्रों में भी हाट व मेले के रूप में बाजार सजते हैं । जहाँ से ग्रामीण अपनी आवश्यकता संबंधी वस्तुएँ खरीदते हैं ।
❇️ एडम स्मिथ के अनुसार पूंजीवाद अर्थव्यवस्था :-
🔹 पूंजीवाद अर्थव्यवस्था स्वयं लाभ से स्वचालित है और यह तब अच्छे से कार्य करती है , जब हर व्यक्ति खरीददार व विक्रेता तर्क संगत निर्णय लेते हैं जो उनके हित में होते हैं । स्मिथ ने खुले व्यापार का समर्थन किया ।
❇️ अदृश्य हाथ :-
🔹 बाजार व्यवस्था में प्रत्येक व्यक्ति अपने लाभ को बढ़ाने के विषय में सोचता है । ऐसा करते हुए वह जो भी करता है वह स्वयं समाज के हित में होता है । अतः कोई अदृश्य शक्ति सामाजिक हित में कार्यरत है , जिसे अदृश्य हाथ के रूप में परिभाषित किया गया है ।
❇️ जजमानी प्रथा :-
🔹 जजमानी प्रथा का अर्थ है सेवा भाव से काम करना , जैसे पुराने समय में अधिकतर छोटे लोग बड़ो लोगों की सेवा किया करते थे , जिसमे मजदूरी न के बराबर होती थी ।
❇️ मुक्त बाजार :-
🔹 सभी प्रकार के नियमों से मुक्त होना चाहिए चाहे उस पर राज्य का नियंत्रण हो या किसी और सत्ता का ।
🔹 मुक्त बाजार को फ्रेंच कहावत में अहस्तक्षेप नीति कहा जाता है । इस कहावत का अर्थ है ‘ अकेलो छोड़ दो ।
❇️ बाजार एक सामाजिक संस्था के रूप में :-
🔹 समाजशास्त्री बाजार को एक संस्था मानते हैं जो विशेष सांस्कृतिक तरीके द्वारा निर्मित है , बाजारों का नियन्त्रण या संगठन अकर विशेष सामाजिक समूहों या वर्गों द्वारा होता है । जैसे – साप्ताहिक , आदिवासी हाट , पाम्परिक व्यापारिक समुदाय ।
❇️ जनजातीय साप्ताहिक बाजार :-
🔹 आसपास के गाँव के लोगों को एकत्रित करता है जो अपनी खेती की उपज या उत्पाद को बेचने आते हैं वे अन्य सामान खरीदने आते हैं जो गाँव में नहीं मिलते ।
🔹 इन बाजरों में साहूकार , मसखरे , ज्योतिष गप – शप करने वाले लोग आते हैं । पहाड़ी और जंगलाती इलाकों में जहाँ अधिवास दूर – दराज तक होता है , सड़कें और संचार भी जीर्ण – शीर्ण होता है एवं अर्थव्यवस्था भी अपेक्षाकृत अविकसित होती है ।
🔹 ऐसे में साप्ताहिक बाजार उत्पादों के आदान – प्रदान के साथ साथ सामाजिक मेल – मिलाप की एक प्रमुख संस्था बन जाता है । स्थानीय लोग आपस में वस्तुओं का लेन – देन करते हैं । हाट जाने का प्रमुख कारण सामाजिक है जहाँ वह अपने रिश्तेदारों से भेंट कर सकता है , घर के जवान लड़के – लड़कियों का विवाह तय कर सकते हैं , गप्पे मार सकते हैं ।
❇️ एल्फ्रेड गेल के अध्ययन से बाजार :-
🔹 एल्फ्रेड गेल ने विशेष रूप से आदिवासी समाज का अध्ययन किया है । उन्होंने छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के धोराई गाँव का अध्ययन किया । साप्ताहिक बाजार का दृश्य सामाजिक सम्बंधों को दर्शाता है । बाजार में बैठने यानि दुकान लगाने । स्थानों का क्रम इस प्रकार होता है जिससे उनके सामाजिक संस्तरण , प्रस्थित तथा बाजार व्यवस्था का स्पष्ट पता चलता है ।
🔹 उनके अनुसार बाजार का महत्व सिर्फ इसकी आर्थिक क्रियाओं तक सीमित नहीं है । यह उस क्षेत्र के अधिक्रमित अंतर समूहों के सामाजिक सम्बन्धों का प्रतीकात्मक चित्रण करता हैं ।
❇️ उपनिवेशिक भारत में बाज़ार एवं व्यापारिक तंत्र :-
🔹 उपनिवेशवाद के दौरान भारत में प्रमुख आर्थिक परिवर्तन हुए । ऐतिहासिक शोध यह दिखाते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था का मौद्रीकरण उपनिवेशिकता के ठीक पहले से ही विद्यमान था । बहुत से गांवों में विभिन्न प्रकार की गैर बाजारी विनिमय व्यवस्था जैसे जजमानी व्यवस्था मौजूद थी । पूँजीवादी व्यवस्था ने अपनी जड़ें जमानी शुरु कर दी थी ।
❇️ पूर्व उपनिवेशिक व उपनिवेशिक बाजार व्यवस्था :-
🔹 भारत हथकरघा कपड़ों का मुख्य निर्माता व निर्यातक था । पारम्परिक व्यापारिक समुदायों व जातीयों की अपनी कर्ज व बैंक व्यवस्था थी । इसका मुख्य साधन हुड़ी या विनिमय बिल होता है । उदाहरण – तमिलनाडु के नाकरट्टार ।
❇️ भारत का पारम्परिक व्यापारिक समुदाय :-
🔹 वैश्य , पारसी , सिन्धी , बाहरा , जैन आदि । व्यापार अधिकतर जाति एवं रिश्तेदारों के बीच होता है ।
❇️ उपनिवेशवाद और नए बाजारों को आविर्भाव :-
🔹 भारत में उपनिवेशवाद के प्रवेश से अर्थव्यवस्था में भारी उथल पुथल हुई जो उत्पादन , व्यापार और कृषि को तितर – बितर करने का कारण बनी ।
🔹 हस्तकरघा उद्योग का पूरी तरह से खत्म हो जाना इंग्लैण्ड से मशीनों द्वारा निर्मित सस्ते कपड़ो का भारतीय बाज़ारो में भारी मात्रा में आगमन हस्ताकरघा उद्योग को नष्ट कर गया । भारत की विश्व पूँजीवादी अर्थव्यवस्था से जुड़ने की शुरूआत हुई थी । भारत कच्चे माल और कृषि उत्पादों को मुहैया करवाने का एक बड़ा उपभोक्ता बन गया ।
🔹 बाजार अर्थव्यवस्था के विस्तार के कारण नए व्यापारी समूह का उदय हुआ जिन्होंने व्यापार के अवसरों को नहीं गवाया । जैसे – मारवाड़ी समुदाय ।
🔹 मारवाड़ियों का प्रतिनिधित्व बिड़ला परिवार जैसे नामी औद्योगिक घरानों से है । उपनिवेशकाल के दौरान ही मारवाड़ी एक सफल व्यापारिक समुदाय बने । उन्होंने सभी सुअवसरों का लाभ उठाया । आज भी भारत में किसी अन्य समुदाय की तुलना में मारवाड़ियों की उद्योग में सबसे बड़ी हिस्सेदारी है ।
❇️ पूंजीवाद : एक सामाजिक व्यवस्था के रूप में :-
🔶 कालमार्क्स के अनुसार :- अर्थव्यवस्था चीजों से नहीं बल्कि लोगों के बीच रिश्तों से बनती है । मजदूर अपनी श्रम शक्ति को बाजार में बेचकर मजदूरी कमाते हैं ।
- ( अ ) उत्पादन विधि → सम्बन्धों का बनना → वर्ग का बनना ।
- ( ब ) पूँजीवाद → पूँजीवादी → मजदूर
❇️ पण्यीकरण ( वस्तुकरण ) :-
🔹 पहले कोई वस्तु बाजारों में बेची या खरीदी नहीं जाती थी , लेकिन अब वह खरीदी व बेची जा सकती है । इसके पण्यीकरण कहते हैं । जैसे श्रम व कौशल , किडनी तथा अन्य मानव अंग ।
❇️ उपभोग :-
🔹 उपभोक्ता अपनी सामाजिक , आर्थिक या सांस्कृति के अनुसार कुछ विशेष वस्तुओं को खरीद या प्रदर्शित कर सकता है व विज्ञापनों का भी प्रयोग किया जाता है ।
❇️ प्रतिष्ठा का प्रतीक :-
🔹 उपभोक्ता अपने खाने , पीने , पहनने , रहने आदि के लिए किस कोटि की वस्तुएं खरीदता है , इसके उनकी माली हालत का पता चलता है , यही प्रतिष्ठा का प्रतीक कहलाता है । जैसे – सेलफोन , नये मॉडल की कार आदि ।
❇️ भूमंडलीयकरण :-
🔹 देश की अर्थव्यवस्था का विश्व की अर्थव्यवस्था से जुड़ना भूमडलीकरण कहलाता है । इसके कारण हैं – आर्थिक , सामाजिक , सांस्कृतिक , प्रौद्योगिकी , संचार , जिसके कारण दूरियाँ कम हो गई एवं एकीकरण हुआ है ।
❇️ भूमंडलीयकरण के लाभ :-
🔹 सम्पूर्ण विश्व एक वैश्विक गाँव में तब्दील हो गया है । आजकल वस्तुओं और सेवाओं की खरीद – फरोख्त के लिए आभासी बाजार का प्रचलन बढ़ गया है ।
🔹 आभासी बाजार से तात्पर्य इंटरनेट , वेब साइट्स के माध्यम से वस्तुओं और सेंवाआं की खरीदारी करना इस तरह के बाजार में क्रेता व विक्रता प्रत्यक्ष रूप से हाजिर नहीं होते है । शेयर बाजार इसका उदाहरण है ।
🔹 आज भारत सॉफ्टवेयर सेवा उद्योग तथा बिजनेस प्रोसेस आउट सोर्सिग उधोग जैसे कॉल सेन्टर के माध्यम से वैश्विक अर्थव्यवस्था से जुड़ा हुआ है ।
🔹 कॉल सेन्टर एक ऐसा केन्ट्रियकृत स्थान होता है जहाँ उपभोक्ताओं को विभिन्न सेवाओं तथा उत्पादो की जानकारी प्राप्त होती है ।
❇️ उदारीकरण :-
🔹 वह प्रक्रिया जिसमें सरकारी विभागों का निजीकरण , पूंजी , व्यापार व श्रम में सरकारी दखल का कम होना , विदेशी वस्तुओं के आयात शुल्क में कमी करना और विदेशी कम्पनियों को भारत में उद्योग स्थापित करने की इजाजत देना आदि सम्बन्धित प्रक्रियाएँ उदारीकरण कहलाता है ।
🔶 लाभ :-
- विदेशी वस्तुएँ उपलब्ध होना ।
- विदेशी निवेश का बढ़ना ।
- आर्थिक विकास ।
- रोजगार बढ़ना ।
🔶 हानियाँ :-
- भारतीय उद्योग विदेशी कम्पनियों के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाते जैसे कार , इलेक्ट्रोनिक सामान आदि ।
- बेरोजगारी भी बढ़ सकती है ।
❇️ समर्थन मूल्य :-
🔹 किसानों की उपज का सरकार उचित मूल्य ( न्यूनतम ) सुनिश्चित करती है , जिसे समर्थन मूल्य कहते हैं ।
❇️ सब्सिडी :-
🔹 सरकार द्वारा दी गई सहायता सब्सिडी कहलाती है । किसानों को इसे , उर्वरकों , डीजल तथा बीच का मूल्य कम करके दिया जाना , एल.पी.जी. बिजली आदि ।