Chapter - 6
" विनिर्माण उद्योग "
❇️ विनिर्माण :-
🔹 मशीनों द्वारा बड़ी मात्रा में कच्चे माल से अधिक मूल्यवान वस्तुओं के उत्पादन को विनिर्माण कहते हैं ।
❇️ विनिर्माण उद्योगों का महत्व :-
- विनिर्माण उद्योग से कृषि का आधुनिकीकरण करने में मदद मिलती है ।
- विनिर्माण उद्योग से लोगों की आय के लिये कृषि पर से निर्भरता कम होती है ।
- विनिर्माण से प्राइमरी और सेकंडरी सेक्टर में रोजगार के अवसर बढ़ाने में मदद मिलती है ।
- इससे बेरोजगारी और गरीबी दूर करने में मदद मिलती है ।
- निर्मित वस्तुओं का निर्यात वाणिज्य व्यापार को बढ़ाता है जिससे अपेक्षित विदेशी मुद्रा की प्राप्ति होती है ।
- किसी देश में बड़े पैमाने पर विनिर्माण होने से देश में संपन्नता आती है ।
❇️ राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में उद्योगों का योगदान :-
🔹 पिछले दो दशकों से सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण उद्योग का योगदान 27 प्रतिशत में से 17 प्रतिशत ही है । क्योंकि 10 प्रतिशत भाग खनिज खनन , गैस तथा विद्युत ऊर्जा का योगदान है ।
🔹 भारत की अपेक्षा अन्य पूर्वी एशियाई देशों में विनिर्माण का योगदान सकल घरेलू उत्पाद का 25 से 35 प्रतिशत है । पिछले एक दशक से भारतीय विनिर्माण क्षेत्र में 7 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से बढ़ोतरी हुई है ।
🔹 बढ़ोतरी की यह दर अगले दशक में 12 प्रतिशत अपेक्षित है । वर्ष 2003 से विनिर्माण क्षेत्र का विकास 9 से 10 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से हुआ है ।
❇️ विदेशी विनिमय :-
🔹 एक देश की मुद्रा को दूसरे देश की मुद्रा में बदलने की प्रक्रिया को विदेशी विनिमय कहते हैं ।
❇️ विदेशी मुद्रा :-
🔹 मुद्रा का वह माध्यम जिसके द्वारा सरकार दूसरे देश से वस्तुएँ खरीदती व बेचती है ।
❇️ उद्योग :-
🔹 विनिर्माण का विस्तृत रूप उद्योग कहलाता है ।
❇️ उद्योग की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले कारक :-
🔶 उद्योगों की अवस्थिति के भौतिक कारक :-
- अनुकूल जलवायु
- शक्ति के साधन
- कच्चे माल की उपलब्धता
🔶 उद्योगों की अवस्थिति के मानवीय कारक :-
- श्रम
- पूँजी
- बाज़ार
- परिवहन और संचार बैकिंग , बीमा आदि की सुविधाएँ ।
- आधारिक संरचना
- उद्यमी
- सरकारी नीतियाँ
❇️ उद्योगों का वर्गीकरण :-
🔹 उद्योगों को निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है :-
✳️ प्रयुक्त कच्चे माल के स्रोत के आधार पर :-
🔶 कृषि आधारित :- सूती वस्त्र , ऊनी वस्त्र , पटसन , रेशम वस्त्र , रबर , चीनी , चाय , काफी तथा वनस्पति तेल उद्योग ।
🔶 खनिज आधारित :- लोहा तथा इस्पात , सीमेंट , एल्यूमिनियम , मशीन , औज़ार तथा पेट्रोरासायन उद्योग ।
✳️ प्रमुख भूमिका के आधार पर :-
🔶 आधारभूत उद्योग :- जिनके उत्पादन या कच्चे माल पर दूसरे उद्योग निर्भर हैं जैसे :- लोहा इस्पात , ताँबा प्रगलन व एल्यूमिनियम प्रगलन उद्योग ।
🔶 उपभोक्ता उद्योग :- जो उत्पादन उपभोक्ताओं के सीधे उपयोग हेतु करते हैं जैसे चीनी , दंतमंजन , कागज , पंखे , सिलाई मशीन आदि ।
✳️ पूँजी निवेश के आधार पर :-
🔶 लघु उद्योग :- जिस उद्योग में एक करोड़ रुपए तक की पूंजी का निवेश हो तो उसे लघु उद्योग कहते हैं ।
🔶 बृहत उद्योग :- जिस उद्योग में एक करोड़ रुपए से अधिक की पूंजी का निवेश हो तो उसे बृहत उद्योग कहते हैं ।
✳️ स्वामित्व के आधार पर :-
🔶 सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग :- सरकार के स्वामित्व और प्रत्यक्ष नियंत्रण वाले उद्योग । जैसे :- SAIL , BHEL , GAIL आदि ।
🔶 निजी क्षेत्र के उद्योग :- जिनका एक व्यक्ति के स्वामित्व में और उसके द्वारा संचालित अथवा लोगों के स्वामित्व में या उनके द्वारा संचालित है । टिस्को , बजाज ऑटो लिमिटेड डाबर उद्योग आदि ।
🔶 संयुक्त उद्योग :- जो उद्योग राज्य सरकार और निजी क्षेत्र के संयुक्त प्रयास से चलाये जाते हैं । जैसे :- ऑयल इंडिया लिमिटेड ।
🔶 सहकारी उद्योग :- जिनका स्वामित्व कच्चे माल की पूर्ति करने वाले उत्पादकों , श्रमिकों या दोनों के हाथ में होता है । लाभ – हानि का विभाजन भी अनुपातिक होता है । जैसे :- केरल का नारियल उद्योग और महाराष्ट्र का चीनी उद्योग ।
✳️ कच्चे तथा तैयार माल की मात्रा व भार के आधार पर :-
🔶 भारी उद्योग :- वे उद्योग जो भारी और अधिक स्थान घेरने वाले कच्चे – माल का प्रयोग करते हैं । जैसे :- लोहा और इस्पात उद्योग , चीनी उद्योग , सीमेंट उद्योग आदि ।
🔶 हल्के उद्योग :- जो कम भार वाले कच्चे माल का प्रयोग कर हल्के तैयार माल का उत्पादन करते हैं जैसे :- विद्युतीय उद्योग ।
❇️ कृषि आधारित उद्योग :-
🔹 कृषि उत्पादों को औद्योगिक उत्पाद में बदलने वाले उद्योग कृषि आधारित उद्योग होते हैं ।
🔹 सूती वस्त्र , पटसन , रेशम , ऊनी वस्त्र , चीनी तथा वनस्पति तेल आदि उद्योग कृषि से प्राप्त कच्चे माल पर आधारित हैं ।
❇️ वस्त्र उद्योग :-
🔹 भारतीय अर्थव्यवस्था में वस्त्र उद्योग का अपना अलग महत्त्व है क्योंकि इसका औद्योगिक उत्पादन में महत्त्वपूर्ण योगदान है ।
🔹 देश का यह अकेला उद्योग है जो कच्चे माल से उच्चतम अतिरिक्त मूल्य उत्पाद तक की श्रृंखला में परिपूर्ण तथा आत्मनिर्भर है ।
❇️ सूती कपड़ा उद्योग :-
- पहला सूती वस्त्र उद्योग 1854 में मुम्बई में स्थापित की गई ।
- महात्मा गांधी ने चरखा काटने और खादी के पहनावे पर जोर दिया जिससे बुनकरों को रोजगार मिल सकें ।
- आरंभिक वर्षों में सूती वस्त्र उद्योग महाराष्ट्र तथा गुजरात के कपास केन्द्रों तक ही सीमित थे ।
- कपास की उपलब्धता , बाज़ार , परिवहन , पत्तनों की समीपता , श्रम , नमीयुक्त जलवायु आदि कारकों ने इसके स्थानीयकरण को बढ़ावा दिया ।
- कताई कार्य महाराष्ट्र , गुजरात तथा तमिलनाडु में केंद्रित है लेकिन सूती , रेशम , ज़री , कशीदाकारी आदि में बुनाई के परंपरागत कौशल और डिजाइन देने के लिए बुनाई अत्यधिक विक्रेंदीकृत हो गई ।
❇️ भारत में सूती वस्त्र उद्योग के सामने समस्याएँ :-
- पुरानी और परंपरागत तकनीक ।
- लंबे रेशे वाली कपास की पैदावार का कम होना ।
- नई मशीनरी का अभाव ।
- कृत्रिम वस्त्र उद्योग से प्रतिस्पर्धा ।
- अनियमित बिजली की आपूर्ति ।
❇️ कपास उद्योग की प्रमुख समस्याएं :-
- बिजली की आपूर्ति अनियमित है ।
- मशीनरी को उन्नत करने की आवश्यकता है ।
- श्रम का कम निष्पादन ।
- सिंथेटिक फाइबर उद्योग के साथ कड़ी प्रतिस्पर्धा ।
❇️ पटसन ( जूट ) उद्योग :-
🔹 भारत पटसन व पटसन निर्मित समान का सबसे बड़ा उत्पादक है तथा बांग्लादेश दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक भी है । भारत में पटसन उद्योग अधिकांशतः हुगली नदी के तट पर संकेंद्रित है ।
❇️ भारत में अधिकांश जूट मिलें पश्चिम बंगाल में क्यों स्थित हैं ?
- भारत में सबसे अधिक पटसन का उत्पादन पश्चिम बंगाल में होता है ।
- इस उद्योग को कच्चे पटसन के निस्तारण के लिए पानी की अधिक आवश्यकता पड़ती है जो हुगली नदी से पर्याप्त मात्रा में मिल जाता है ।
- पश्चिम बंगाल , बिहार , उड़ीसा आदि पड़ोसी राज्यों से सस्ते मजदूर भी मिल जाते हैं ।
- पटसन की चीज़ों के निर्यात के लिए कोलकाता का बन्दरगाह है ।
- कच्चे माल की मिलों तक सुविधाजनक परिवहन के लिए रेलवे , रोड़वेज और जल परिवहन ।
- एक बड़ा शहर होने के कारण कोलकाता बैकिंग बीमा आदि सुविधाएँ उपलब्ध कराता है ।
❇️ भारत के जूट उद्योग के समक्ष चुनौतियाँ :-
- कृत्रिम रेशों से चीजें बनने लगी हैं ।
- कृत्रिम रेशे से बनी चीजें सस्ती होती हैं ।
- जूट की खेती पर व्यय बहुत हो जाता है ।
- विदेशी स्पर्धा का मुकाबला बाजार में चुनौती के रूप में खड़ा है ।
- बांग्लादेश अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में चुनौती के रूप में खड़ा है ।
❇️ चीनी उद्योग :-
🔹 भारत का चीनी उत्पादन में विश्व में दूसरा स्थान है व गुड़ व खांडसारी के उत्पादन में इसका प्रथम स्थान है ।
🔹 चीनी मिलें उत्तर प्रदेश , बिहार , महाराष्ट्र , कर्नाटक , तमिलनाडु , आंध्र प्रदेश , गुजरात , पंजाब , हरियाणा तथा मध्य प्रदेश राज्यों में फैली है ।
🔹 पिछले कुछ वर्षों से इन मिलों की संख्या दक्षिणी और पश्चिमी राज्यों में विशेषकर महाराष्ट्र में बढ़ी है ।
❇️ दक्षिणी और पश्चिमी राज्यों में चीनी की बढ़ी मिलों के कारण :-
- गन्ने में सूक्रोस की अत्यधिक मात्रा हैं ।
- ठंडी जलवायु ।
- सहकारी समितियाँ अधिक सफल हुई ।
❇️ भारत में चीनी उद्योग के सम्मुख चुनौतियाँ :-
- यह उद्योग मौसमी प्रकृति का है , छोटी अवधि का होता है ।
- गन्ने का उत्पादन प्रति हैक्टेयर कम है ।
- पुरानी मशीनों का होना ।
- खोई का अधिकतम इस्तेमाल न कर पाना ।
- परिवहन के साधनों के असक्षम होने के कारण गन्ने का समय पर कारखानों में न पहुँचना ।
❇️ खनिज आधारित उद्योग :-
🔹 वे उद्योग जो खनिज व धातुओं को कच्चे माल के रूप में प्रयोग करते हैं , खनिज आधारित उद्योग कहलाते हैं ।
❇️ लौह तथा इस्पात उद्योग :-
- लौह तथा इस्पात एक आधारभूत उद्योग है क्योंकि अन्य सभी भारी , हल्के और मध्य उद्योग इनसे बनी मशीनरी पर निर्भर है ।
- इस उद्योग के लिए लौह अयस्क , कोकिंग कोल तथा चूना पत्थर का अनुपात लगभग 4:2:1 का है ।
- वर्ष 2016 में भारत 956 लाख टल इस्पात का विनिर्माण कर संसार में कच्चा इस्पात उत्पादकों में तीसरे स्थान पर था । यह स्पंज लौह का सबसे बड़ा उत्पादक है ।
- सार्वजनिक क्षेत्र के लगभग सभी उपक्रम अपने इस्पात को स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया के माध्यम से बेचते है ।
- भारत के छोटा नागपूर के पठारी क्षेत्र में अधिकांश लोहा तथा इस्पात उद्योग संकेन्द्रित है ।
❇️ छोटानागपुर पठारी क्षेत्र में लौह और इस्पात उद्योग की आधिकतम सांद्रता होने के कारण :-
- लौह अयस्क की कम लागत ।
- नजदीक में उच्च श्रेणी के कच्चे माल की उपलब्धता ।
- सस्ते श्रम की उपलब्धता ।
- घरेलू बाजार में विशाल विकास क्षमता ।
❇️ भारत में लौह तथा इस्पात उद्योग पूर्ण विकास न हो पाने के कारण :-
- कोकिंग कोल की उच्च लागत और सीमित उपलब्धता ।
- श्रम की कम उत्पादकता ।
- ऊर्जा की अनियमित आपूर्ति ।
- कमजोर बुनियादी ढांचा ।
❇️ लोहा और इस्पात उद्योग को आधारभूत उद्योग कहे जाने के कारण :-
- कई अन्य उद्योग , लोहे और इस्पात उद्योग पर निर्भर हैं ।
- लोहा और इस्पात उद्योग अन्य उद्योगों जैसे कि चीनी उद्योग या सीमेंट उद्योग आदि को मशीनरी प्रदान करता है ।
- देश की औद्योगिक प्रगति इस उद्योग पर निर्भर करती है ।
- बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार प्रदान करता है ।
❇️ लोहा और इस्पात उद्योग को भारी उद्योग कहे जाने के कारण :-
- लौह अयस्क , कोयला और चूना जैसे सभी कच्चे माल प्रकृति से भारी हैं ।
- इस उद्योग के तैयार उत्पादों को परिवहन हेतु उच्च लागत की आवश्यकता होती है ।
❇️ एल्यूमिनियम प्रगलन :-
- भारत में एल्यूमिनियम प्रगलन दूसरा सर्वाधिक महत्वपूर्ण धातु शोधन उद्योग है ।
- यह हल्का , जंग अवरोधी , ऊष्मा का सूचालक , लचीला तथा अन्य धातुओं के मिश्रण से अधिक कठोर बनाया जा सकता है ।
- भारत में एल्यूमिनियम प्रगलन संयंत्र ओडिशा , पश्चिम बंगाल , केरल , उत्तर प्रदेश , छत्तीसगढ़ , महाराष्ट्र व तमिलनाडु राज्यों में स्थित है ।
🔶 इस उद्योग की स्थापना की दो महत्वपूर्ण आवश्यकताएँ है :-
- नियमित ऊर्जा की पूर्ति ।
- कम कीमत पर कच्चे माल की उपलब्धता ।
❇️ रसायन उद्योग :-
- भारत के सकल घरेलू उत्पाद में रसायन उद्योग की भागीदारी लगभग 3 प्रतिशत है ।
- यह उद्योग एशिया में तीसरा सबसे बड़ा व विश्व में आकार की दृष्टि से 12 वे स्थान पर है ।
- भारत में कार्बनिक व अकाबर्निक दोनो प्रकार के रसायनों का उत्पादन होता है ।
🔶 कार्बनिक रसायन :- कार्बनिक रसायन में पेट्रो रसायन शामिल है जो कृत्रिम वस्त्र , रबर , प्लास्टिक , दवाईयाँ आदि बनाने में काम आता है ।
🔶 अकार्बनिक रसायन :- अकार्बनिक रसायन में सलफ्यूरिक अम्ल , नाइट्रिक अम्ल , क्षार आदि शामिल है ।
❇️ उर्वरक उद्योग :-
- उर्वरक उद्योग नाइट्रोजनी उर्वरक ( मुख्यतः यूरिया ) , फास्फेटिक उर्वरक तथा अमोनिया फास्फेट और मिश्रित उर्वरक के इर्द – गिर्द केन्द्रित है ।
- हमारे देश में पोटेशियम यौगिकों के भंडार नहीं है । इसलिए हम पोटाश , का आयात करते हैं ।
- हरित क्रांति के बाद इस उद्योग का विस्तार देश के कई भागों में हुआ है ।
❇️ सीमेंट उद्योग :-
- इस उद्योग को भारी व स्थूल कच्चे माल जैसे :- चूना पत्थर , सिलिका और जिप्सम की आवश्यकता होती है ।
- रेल परिवहन , कोयला व विद्युत आवश्यक ।
- इसका उपयोग निर्माण कार्यों में होता है ।
- इस उद्योग की इकाइयाँ गुजरात में लगाई गई है क्योंकि यहाँ से खाडी के देशों में व्यापार की उपलब्धता है ।
❇️ हमारे देश के लिए सीमेंट उद्योग का विकास अति महत्वपूर्ण है , क्यों ?
- भवन , फैक्टरियाँ , सड़कें , पुल , बाँध , घर आदि का निर्माण करने के लिए आवश्यक है ।
- हमारा सीमेंट उद्योग उत्तम गुणवत्ता वाले सीमेंट का उत्पादन करता है ।
- अफ्रीका के देशों में मांग रहती है ।
❇️ मोटरगाड़ी उद्योग :-
- मोटरगाड़ी यात्रियों तथा सामान के तीव्र परिवहन के साधन हैं ।
- उदारीकरण के पश्चात् नए और आधुनिक मॉडल के वाहनों का बाजार तथा वाहनों की माँग बड़ी हैं ।
- यह उद्योग दिल्ली , गुड़गाँव मुंबई , पुणे , चेन्नई आदि शहरों के आस – पास स्थापित है ।
❇️ भारत में उदारीकरण एवं प्रत्यक्ष विदेशी निवेश ने मोटरगाड़ी उद्योग में अत्यधिक वृद्धि करने के कारण :-
- उदारीकरण के पश्चात नए और आधुनिक मॉडल के वाहनों का बाजार बढ़ा है ।
- वाहनों की माँग बढ़ी है । कार , स्कूटर , स्कूटी , बाईक ऑटो रिक्शा की संख्या में अपार वृद्धि हुई है ।
- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के साथ नई प्रौद्योगिकी के उपयोग से यह उद्योग विश्वस्तरीय विकास के स्तर पर आ गया है ।
- आज 15 इकाइयाँ कार , 14 इकाइयाँ स्कूटर , मोटरसाइकिल तथा ऑटोरिक्शा का निर्माण करती हैं ।
❇️ सूचना प्रौद्योगिकी तथा इलैक्ट्रोनिक उद्योग :-
🔹 इलैक्ट्रोनिक उद्योग के अंतर्गत आने वाले उत्पादों में ट्रांजिस्टर से लेकर टेलीविजन , टेलीफोन एक्सचेंज , राडार , कंप्यूटर तथा दूरसंचार उद्योग के लिए उपयोगी अनेक उपकरण तक बनाए जाते हैं ।
🔹 भारत की इलैक्ट्रोनिक राजधानी के रूप में बेंगलूरू का विकास हुआ । भारत में सूचना और प्रौद्योगिकी उद्योग के सफल होने के कारण हार्डवेयर व सॉफ्टवेयर का निरंतर विकास हुआ है ।
❇️ भारत के सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग का आर्थिक विकास में योगदान :-
- रोज़गार उपलब्ध करवाता है ।
- विदेशी मुद्रा अर्जित करता है ।
- कार्यरत महिलाओं की संख्या में वृद्धि हुई है ।
- हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर का निरंतर विकास हो रहा है ।
- सॉफ्टवेयर प्रौद्योगिकी पार्क , विशेषज्ञों को एकल विंडो सेवा तथा उच्च आंकड़े संचार सुविधा प्रदान करते हैं ।
❇️ प्रदूषण के प्रकार :-
- तापीय प्रदूषण
- जल प्रदूषण
- ध्वनि प्रदूषण
- वायु प्रदूषण
🔶 वायु प्रदूषण :-
- उद्योगों द्वारा सल्फर डाई ऑक्साइड और कार्बन मोनो ऑक्साइड का उत्सर्जन ।
- रासायनिक और पेपर उद्योग , ईंट भट्टे तथा रिफाइनरी द्वारा धुँआ निकलना ।
🔶 जल प्रदूषण :-
- औद्योगिक कचरे ( कार्बनिक तथा अकार्बनिक ) द्वारा प्रदूषण ।
- पेपर , रासायनिक , वस्त्र उद्योग तथा उद्योगों द्वारा प्रदूषण ।
🔶 तापीय प्रदूषण :-
- कारखाने और तापीय संयंत्र द्वारा गर्म जल का नदी में गिरना ।
🔶 ध्वनि प्रदूषण :-
- सुनने की क्षमता प्रभावित होती है ।
- हृदय गति तथा रक्त चाप बढ़ जाता है ।
❇️ उद्योगों द्वारा पर्यावरणीय प्रदूषण को कम करने के लिए उठाए गए विभिन्न उपाय :-
- प्रदूषित जल को नदियों में न बहाया जाये ।
- जल को साफ करके प्रवाहित करना चाहिए ।
- जल विद्युत का प्रयोग करना चाहिए ।
- ऐसी मशीनरी का प्रयोग करना चाहिए जो कम ध्वनि करे ।
❇️ भारत में पर्यटन के बढ़ते महत्त्व :-
- विश्व का सबसे तेजी से बढ़ता हुआ तृतीयक क्षेत्र का उद्योग ।
- कुल 2500 लाख नौकिरियाँ प्रदान करता है ।
- कुल राजस्व सकल घरेलू उत्पाद का 40 प्रतिशत ।
- उद्योगों व व्यापार में वृद्धि का कारक ।
- देश के आधार भूत ढाँचे में सुधार ।
- अर्न्तराष्ट्रीय बंधुता बढ़ाने में उपयोगी ।
🔹 हाल के वर्षों में पर्यटन उद्योग के कई नये स्वरूप जैसे मेडिकल टूरिज्म आदि का प्रचलन भी बढ़ा है ।