Chapter - 5
" खनिज तथा ऊर्जा संसाधन "
❇️ खनिज़ :-
🔹 हमारे जीवन का अति अनिवार्य भाग है । सभी वस्तुओं का निर्माण खनिजों द्वारा होता है । एक कार्बनिक पदार्थ जिसमें कठोरता , रंग और निश्चित आकार होता है ।
❇️ अयस्क :-
🔹 लोहा , मैंगनीज , अभ्रक जैसे खनिज के अंशों का मिश्रित रूप है । खनिज अयस्कों में पाये जाते हैं । जो कि विभिन्न अशुद्धियों के साथ प्राकृतिक अवस्था में होते हैं ।
❇️ खनिजों का हमारे लिए महत्व :-
🔹 दैनिक जीवन में काम आने वाली छोटी से छोटी चीज़ सुई से लेकर जहाज तक खनिजों से बनाए जाते हैं । इमारतें , पुल तक खनिजों से बनाए जाते हैं । भोजन में भी खनिज होते हैं । मशीनें और औज़ार खनिजों से बनते हैं । परिवहन के साधन , बर्तन आदि खनिजों से ही बनाए जाते हैं ।
❇️ खनिजों के प्राप्ति स्थल :-
- आग्नेय तथा कायांतरित से ( जस्ता , तांबा , जिंक , सीसा )
- अवसादी चट्टानों की परतों में ( कोयला , पोटाश , सोडियम नमक )
- धरातलीय चट्टानों से अपघटन से
- जलोढ़ जमाव या प्लेसर निक्षेप के रूप में ( सोना , चाँदी , टिन , प्लैटिनम )
- महासागरीय जल ( नमक , मैग्नीशियम , ब्रोमाइन )
❇️ आग्नेय और कायांतरित चट्टानों में खनिजों का निर्माण :-
🔹 आग्नेय और कायांतरित चट्टानों में खनिज दरारों , जोड़ों , भ्रंशों व विदरों में मिलते हैं । छोटे जमाव शिराओं के रूप में तथा बड़े जमाव परत के रूप में पाए जाते हैं ।
🔹 जब ये तरल या गैसीय अवस्था में दरारों के सहारों से भू – पृष्ठ की ओर धकेले जाते हैं । तब ऊपर आते हुए ये ठंडे होकर जम जाते हैं ।
🔹 मुख्य धात्विक खनिज जैसे जस्ता , तांबा , जिंक और सीसा आदि इसके उदाहरण हैं ।
❇️ भूगर्भशास्त्री :-
🔹 वे वैज्ञानिक जो चट्टानों की प्रकृति और उनके निर्माण का अध्ययन करते हैं ।
❇️ खनन :-
🔹 पृथ्वी के गर्भ से धातुओं , अयस्कों तथा अन्य उपयोगी खनिजों को बाहर निकालना खनन कहलाता है ।
❇️ खनिजो के वर्गीकरण का आधार :-
🔹 खनिजों का वर्गीकरण उनके रंग , चमक , कठोरता , घनत्व तथा क्रिस्टल के आधार पर किया जाता है ।
❇️ खनिज के प्रकार :-
🔹 खनिज 3 प्रकार के होते हैं ।
- धात्विक
- अधात्विक
- ऊर्जा खनिज
❇️ धात्विक खनिज :-
🔹 वे खनिज जिनमें धातु का अंश अधिक होता है । ये तीन प्रकार के होते हैं ।
🔶 लौह :- ( जिसमे लोहे का अंश हो ) जैसे :- लौह अयस्क , मैग्नीज , निकल , कोबाल्ट , आदि ।
🔶 अलौह :- ( जिसमें लौहे का अंश न हो ) जैसे :- तांबा , सीसा , जस्ता , बाक्साइट , आदि ।
🔶 बहुमूल्य खनिज :- जैसे :- सोना , चाँदी , प्लैटिनम आदि ।
❇️ लौह खनिज :-
🔹 जिन खनिजों में लौह अंश होता है जैसे लोहा , मैंगनीज़ आदि ।
❇️ लौह अयस्क :-
🔹 लौह अयस्क एक आधारभूत खनिज है तथा औद्योगिक विकास की रीढ़ है । भारत में लौह अयस्क के विपुल संसाधन विद्यमान हैं । भारत उच्च कोटि के लोहांशयुक्त लौह अयस्क में धनी है ।
❇️ मैग्नेटाइट :-
🔹 उच्च कोटि का लौह अयस्क जिसमें 70 प्रतिशत लौह अंश होता है । इसमें सर्वश्रेष्ठ चुंबकीय गुण होते हैं , जो विद्युत उद्योगों में विशेष रूप से उपयोगी हैं ।
❇️ हेमेटाइट :-
🔹 उद्योगों में प्रयोग होने वाला सर्वाधिक महत्वपूर्ण लोहा जिसमें 50-60 प्रतिशत लौह अंश होता है ।
❇️ भारत में लौह अयस्क की पेटिया :-
- उड़ीसा :- झारखण्ड पेटी
- महाराष्ट्र :- गोआ पेटी
- बेलारी :- चित्रदुर्ग , चिकमंगलूर – तुमकुर पेटी
- दुर्ग :- बस्तर – चन्द्रपुर पेटी
❇️ मैंगनीज़ :-
- मैंगनीज़ मुख्य रूप से इस्पात के विनिर्माण में प्रयोग किया जाता है ।
- एक टन इस्पात बनाने में लगभग 10 किग्रा . मैंगनीज़ की आवश्यकता होती है ।
- इसका उपयोग ब्लीचिंग पाउडर , कीटनाशक दवाएँ व पेंट बनाने में किया जाता है ।
❇️ अलौह खनिज :-
- इन खनिजों में लोहा शामिल नहीं होता है ।
- यद्यपि ये खनिज जिनमें ताँबा , बॉक्साइट , सीसा और सोना आते हैं ।
- धातु शोधन , इंजीनियरिंग व विद्युत उद्योगों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं ।
❇️ लौह और अलौह खनिज में अन्तर :-
लौह खनिज | अलौह खनिज |
---|---|
जिनमें लोहे का अंश होता है । | जिनमें लोहे का अंश नहीं होता है । |
लौह अयस्क , मैंगनीज , निकल और कोबाल्ट आदि । | तांबा , सीसा , जस्ता और बॉक्साइट । |
❇️ ताँबा :-
- घातवर्ध्य , तन्य और ताप सुचालक होने के कारण ताँबे का उपयोग मुख्यतः बिजली के तार बनाने , इलैक्ट्रोनिक्स और रसायन उद्योगों में किया जाता है ।
- मध्य प्रदेश की बालाघाट खदानें देश का लगभग 52 प्रतिशत ताँबा उत्पन्न करती है ।
❇️ बॉक्साइट :-
- बॉक्साइट निक्षेपों की रचना एल्यूमिनियम सीलिकेटों से समृद्ध व्यापक भिन्नता वाली चट्टानों के विघटन से होती है ।
- एल्यूमिनियम एक महत्त्वपूर्ण धातु है क्योंकि यह लोहे जैसी शक्ति के साथ – साथ अत्यधिक हल्का एवं सुचालक भी होता है ।
- इसमें अत्यधिक घातवर्ध्यता ( malleability ) भी पाई जाती है ।
- भारत में बॉक्साइट के निक्षेप मुख्यत :- अमरकंटक पठार , मैकाल पहाड़ियों तथा बिलासपुर कटनी के पठारी प्रदेश में पाए जाते हैं ।
❇️ अधात्विक खनिज :-
🔹 वे खनिज जिनमें धातु का अंश नहीं होता है ।
🔹 जैसे :- अभ्रक , नमक , पोटाश , चूना पत्थर , संगमरमर , बलुआ पत्थर आदि ।
❇️ अभ्रक :-
🔹 अभ्रक प्लेटों या परतों के रूप में पाया जाता है ।
🔹 अभ्रक के निक्षेप के प्रमुख क्षेत्र :-
- छोटा नागपुर पठार के उत्तरी पठारी किनारों पर ।
- बिहार झारखण्ड की कोडरमा गया हज़ारीबाग पेटी ।
- राजस्थान में अजमेर के पास ।
- आंध्र प्रदेश की नेल्लोर पेटी ।
🔹अभ्रक , विद्युत और इलेक्ट्रानिक उद्योगों में प्रयोग किया जाता है ।
❇️ चूना पत्थर :-
- चूना पत्थर कैल्शियम या कैल्शियम कार्बोनेट तथा मैगनीशियम कार्बोनेट से बनी चट्टानों में पाया जाता है ।
- यह अधिकांशतः अवसादी चट्टानों में पाया जाता है ।
- चूना पत्थर सीमेंट उद्योग का एक आधारभूत कच्चा माल होता है ।
- और लौह – प्रगलन की भट्टियों के लिए अनिवार्य है ।
❇️ खनन उद्योग को घातक उद्योग क्यों कहा जाता है ?
🔹 इस उद्योग से श्रमिकों के स्वास्थ्य और पर्यावरण पर बहुत खराब प्रभाव पड़ता है ।
- लगातार धूल व हानिकारक धुएँ में सांस लेना पड़ता है ।
- श्रमिकों को फेफड़ों से संबंधित बीमारियाँ हो जाती हैं ।
- खदानों में पानी भर जाने या आग लग जाने से श्रमिकों में डर बना रहता है ।
- कई बार खदानों की छत के गिर जाने से उन्हें अपनी जान गंवानी पड़ती है ।
- खनन के कारण नदियों का जल प्रदूषित हो जाता है ।
- भूमि और मिट्टी का अपक्षय होता है ।
❇️ खनिज संसाधनों का संरक्षण क्यों आवश्यक है ?
🔹 खनिज संसाधनों का संरक्षण आवश्यक हैं क्योंकि :-
- खनिज हमारे उद्योग और कृषि के आधार हैं ।
- नवीकरण योग्य नहीं हैं ।
- निक्षेपों की कुल मात्रा बहुत ही कम है ।
- इनके निर्माण में लाखों वर्ष लग जाते हैं ।
- हम बहुत तेजी से खनिजों का उपयोग कर रहे है ।
- इन्हें आने वाली पीढ़ी के लिए सम्भाल कर रखना चाहिए ।
❇️ खनिज संसाधनों के संरक्षण के उपाय :-
- खनन एवं परिष्करण के दौरान इन पदार्थों की बर्बादी कम हो ।
- जहाँ तक सम्भव हो प्लास्टिक ( प्रमाणित ) और लकड़ी का प्रयोग करें ।
- खनन व खनिज सुधार प्रक्रिया में धातु बनने तक कम से कम अपव्यय ।
- रद्दी एवं पुराने माल का पुनः प्रयोग करना चाहिए ।
- योजनाबद्ध तरीके से खनिजों का पुनः चक्रण व पुनः उपयोग ।
- नियोजित व सतत् पोषणीय तरीके से उपयोग ।
- पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए खनिजों के अन्य विकल्प ढूँढना , जैसे सी . एन . जी ।
❇️ ऊर्जा संसाधन :-
🔹 खाना पकाने में , रोशनी व ताप के लिए , गाड़ियों के संचालन तथा उद्योगों में मशीनों के संचालन में ऊर्जा की आवश्यकता होती है ।
🔹 ऊर्जा का उत्पादन ईंधन खनिजों जैसे :- कोयला , पेट्रोलियम , प्राकृतिक गैस , यूरेनियम तथा विद्युत से किया जाता है ।
🔹 ऊर्जा संसाधनों को परंपरागत तथा गैर – परंपरागत साधनों में वर्गीकृत किया जा सकता है ।
🔶 परंपरागत ऊर्जा के स्रोत :- ,लकड़ी , उपले , कोयला , पेट्रोलियम , प्राकृतिक गैस तथा विद्युत ( दोनों जल विद्युत व ताप विद्युत )।
🔶 गैर परंपरागत ऊर्जा के स्रोत :- सौर , पवन , ज्वारीय , भू – तापीय , बायोगैस तथा परमाणु ऊर्जा शामिल है ।
💠 परंपरागत ऊर्जा के स्रोत 💠
❇️ कोयला :-
🔹 भारत में कोयला बहुतायात में पाया जाने वाला जीवाश्म ईंधन है । यह देश की ऊर्जा आवश्यकताओं का महत्त्वपूर्ण भाग प्रदान करता है । इसका उपयोग ऊर्जा उत्पादन तथा उद्योगों और घरेलू ज़रूरतों के लिए ऊर्जा की आपूर्ति के लिए किया जाता है ।
🔹 भारत अपनी वाणिज्यिक ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु मुख्यतः कोयले पर निर्भर है । संपीड़न की मात्रा, गहराई और समय के अनुसार कोयले के तीन प्रकार होते हैं जो निम्नलिखित हैं :-
🔶 लिग्नाइट :-
🔹 लिग्नाइट एक निम्न कोटि का भूरा कोयला होता है । यह मुलायम होने के साथ अधिक नमीयुक्त होता है । लिग्नाइट के प्रमुख भंडार तमिलनाडु के नैवेली में मिलते हैं और विद्युत उत्पादन में प्रयोग किए जाते हैं ।
🔶 बिटुमिनस कोयला :-
🔹 गहराई में दबे तथा अधिक तापमान से प्रभावित कोयले को बिटुमिनस कोयला कहा जाता है । वाणिज्यिक प्रयोग में यह सर्वाधिक लोकप्रिय है । धातुशोधन में उच्च श्रेणी के बिटुमिनस कोयले का प्रयोग किया जाता है जिसका लोहे के प्रगलन में विशेष महत्त्व है ।
🔶 एंथ्रासाइट कोयला :-
🔹 एंथ्रेसाइट सर्वोत्तम गुण वाला कठोर कोयला है ।
❇️ भारत मे कोयला :-
🔹 भारत में कोयला दो प्रमुख भूगर्भिक युगों के शैल क्रम में पाया जाता है एक गोंडवाना जिसकी आयु 200 लाख वर्ष से कुछ अधिक है और दूसरा टरशियरी निक्षेप जो लगभग 55 लाख वर्ष पुराने हैं ।
🔶 गोंडवाना कोयले :- जो धातुशोधन कोयला है , के प्रमुख संसाधन दामोदर घाटी ( पश्चिमी बंगाल तथा झारखंड ) , झरिया , रानीगंज , बोकारो में स्थित हैं जो महत्त्वपूर्ण कोयला क्षेत्र हैं । गोदावरी , महानदी , सोन व वर्धा नदी घाटियों में भी कोयले के जमाव पाए जाते हैं ।
🔶 टरशियरी कोयला क्षेत्र :- उत्तर पूर्वी राज्यों मेघालय , असम , अरुणाचल प्रदेश व नागालैंड में पाया जाता है ।
❇️ पेट्रोलियम :-
🔹 भारत में कोयले के पश्चात् ऊर्जा का दूसरा प्रमुख साधन पेट्रोलियम या खनिज तेल है । यह ताप व प्रकाश के लिए ईंधन , मशीनों को स्नेहक और अनेक विनिर्माण उद्योगों को कच्चा माल प्रदान करता है ।
🔹 तेल शोधन शालाएँ संश्लेषित वस्त्र , उर्वरक तथा असंख्य रासायन उद्योगों में एक नोडीय बिंदु का काम करती हैं ।
🔹 भारत का 63% पेट्रोलियम मुम्बई हाई से निकलता है। 18% गुजरात से और 13% असम से आता है।
❇️ प्राकृतिक गैस :-
🔹 इसे ऊर्जा के एक साधन के रूप में तथा पेट्रो रासायन उद्योग के एक औद्योगिक कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया जाता है ।
🔹 कार्बनडाई ऑक्साइड के कम उत्सर्जन के कारण प्राकृतिक गैस को पर्यावरण अनुकूल माना जाता है । इसलिए यह वर्तमान शताब्दी का ईंधन है ।
🔹 कृष्णा- गोदावरी नदी बेसिन में प्राकृतिक गैस के विशाल भंडार खोजे गए हैं । अंडमान – निकोबार द्वीप समूह भी महत्त्वपूर्ण क्षेत्र हैं जहाँ प्राकृतिक गैस के विशाल भंडार पाए जाते हैं ।
❇️ विद्युत :-
🔹 विद्युत मुख्यतः दो प्रकार से उत्पन्न की जाती है
- ( क ) प्रवाही जल से जो हाइड्रो – टरबाइन चलाकर जल विद्युत उत्पन्न करता है ।
- ( ख ) अन्य ईंधन जैसे कोयला पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस को जलाने से टरबाइन चलाकर ताप विद्युत उत्पन्न की जाती है ।
🔹 बहु तेज बहते जल से जल विद्युत उत्पन्न की जाती है जो एक नवीकरण योग्य संसाधन है ।
🔹 भारत में अनेक बहु – उद्देशीय परियोजनाएँ हैं जो विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करती हैं ; जैसे – भाखड़ा नांगल , दामोदर घाटी कारपोरेशन और कोपिली हाइडल परियोजना आदि ।
🔶 ताप विद्युत :-
🔹 ताप विद्युत कोयला , पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस के प्रयोग से उत्पन्न की जाती है । ताप विद्युत गृह अनवीकरण योग्य जीवश्मी ईंधन का प्रयोग कर विद्युत उत्पन्न करते हैं ।
❇️ तापीय और जल विद्युत ऊर्जा में अन्तर :-
तापीय विद्युत | जल विद्युत ऊर्जा |
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यह विद्युत कोयले , पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस के प्रयोग से पैदा की जाती है । | जल विद्युत ऊर्जा गिरते हुए जल की शक्ति का प्रयोग करके टरबाइन को चलाने से होता है । |
यह प्रदूषण युक्त है । | यह प्रदूषण रहित है । |
स्थायी स्रोत नहीं है । | स्थायी स्रोत है । |
अनवीकरणीय स्रोतों पर आधारित है । | जल जैसे नवीकरणीय स्रोतों पर आधारित है । |
भारत में 310 से अधिक ताप विद्युत के केन्द्र हैं । | भारत में अनेक बहुउद्धेश्यीय परियोजनायें हैं । |
जैसे :- तलचेर , पांकी , नामरूप , उरन , नवेली आदि । | जैसे :- भाखड़ा नॉगल दामोदर घाटी कोपली आदि । |
💠 गैर परंपरागत ऊर्जा के साधन 💠
❇️ परमाणु अथवा आणविक ऊर्जा :-
🔹 परमाणु अथवा आणविक ऊर्जा अणुओं की संरचना को बदलने से प्राप्त की जाती है ।
🔹 जब ऐसा परिवर्तन किया जाता तो ऊष्मा के रूप में काफी ऊर्जा विमुक्त होती है ; और इसका उपयोग विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करने में किया जाता है ।
🔹 यूरेनियम और थोरियम जो झारखंड .और राजस्थान की अरावली पर्वत श्रृंखला में पाए जाते हैं , का प्रयोग परमाणु अथवा आणविक ऊर्जा के उत्पादन में किया जाता है ।
🔹 केरल में मिलने वाली मोनाजाइट रेत में भी थोरियम की मात्रा पाई जाती है ।
❇️ आणविक शक्ति :-
🔹 अणु के विखंडन से प्राप्त ऊर्जा ।
❇️ आणविक खनिज :-
🔹 परमाणु ऊर्जा को धारण करने वाले पदार्थ जैसे यूरेनियम , थोरियम तथा बैरिलियम ।
❇️ भारत में सौर ऊर्जा का भविष्य उज्ज्वल है , क्यों ?
- भारत एक उष्ण कटिबंधीय देश है ।
- यह प्रदूषण रहित ऊर्जा संसाधन है ।
- यह नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है ।
- निम्नवर्ग के लोग आसानी से इसका लाभ उठा सकते हैं ।
❇️ पवन ऊर्जा :-
🔹 भारत में पवन ऊर्जा फार्म के विशालतम पेटी तमिलनाडु में नागरकोइल से मदुरई तक अवस्थित है । इसके अतिरिक्त आंध्र प्रदेश , कर्नाटक , गुजरात , केरल , महाराष्ट्र तथा लक्षद्वीप में भी महत्त्वपूर्ण पवन ऊर्जा फार्म हैं ।
🔹 नागरकोइल और जैसलमेर देश में पवन ऊर्जा के प्रभावी प्रयोग के लिए जाने जाते हैं ।
❇️ बॉयो गैस :-
🔹 ऊर्जा जो घास फूस , कृषि कचरा , जानवर तथा मानव – अपशिष्ट पदार्थों से प्राप्त की जाती है ।
❇️ ज्वारीय ऊर्जा :-
🔹 महासागरीय तरंगों का प्रयोग विद्युत उत्पादन के लिए किया जा सकता है ।
🔶 ज्वारीय ऊर्जा के उतपन्न की प्रक्रिया :-
🔹 सँकरी खाड़ी के आर – पार बाढ़ द्वार बना कर बाँध बनाए जाते हैं । उच्च ज्वार में इस सँकरी खाड़ीनुमा प्रवेश द्वार से पानी भीतर भर जाता है और द्वार बन्द होने पर बाँध में ही रह जाता है ।
🔹 बाढ़ द्वार के बाहर ज्वार उतरने पर , बाँध के पानी को इसी रास्ते पाइप द्वारा समुद्र की तरफ बहाया जाता है जो इसे ऊर्जा उत्पादक टरबाइन की ओर ले जाता है ।
🔶 भारत मे ज्वारीय ऊर्जा उत्पन्न करने की आदर्श दशाएँ :-
- भारत में खम्भात की खाड़ी , कच्छ की खाड़ी तथा पश्चिमी तट पर गुजरात में और पश्चिम बंगाल में सुंदर वन क्षेत्र में गंगा के डेल्टा में ज्वारीय तरंगों द्वारा ऊर्जा उत्पन्न करने की आदर्श दशाएँ उपस्थित हैं ।
❇️ भू – तापीय ऊर्जा :-
🔹 पृथ्वी के आंतरिक भागों से ताप का प्रयोग कर उत्पन्न की जाने वाली विद्युत को भू – तापीय ऊर्जा कहते हैं ।
❇️ ऊर्जा का संरक्षण :-
- जरूरत न होने पर बिजली बन्द कर देनी चाहिए ।
- सार्वजनिक वाहनों का उपयोग करना चाहिए ।
- परंपरागत ऊर्जा के स्रोत सीमित हैं । इनका प्रयोग बड़े ध्यान से करना चाहिए ।
- नवीकरणीय साधनों का प्रयोग करना चाहिए ।
- विद्युत बचत करने वाले उपकरणों का प्रयोग करना चाहिए ।
- कार – पूलिंग ।