Chapter - 5
" उपभोक्ता अधिकार "
❇️ उपभोक्ता :-
🔹 बाजार से अपनी दैनिक आवश्यकताओं के लिए विभिन्न प्रकार की वस्तुएं खरीदने वाले लोग ।
❇️ उत्पादक :-
🔹 दैनिक आवश्यकताओं की वस्तुओं का निर्माण या उत्पादन करने वाले लोग ।
❇️ उपभोक्ताओं के अधिकार :-
🔹 उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा के लिए कानून द्वारा दिए गए अधिकार जैसे :-
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सुरक्षा का अधिकार
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सूचना का अधिकार
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चुनने का अधिकार
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क्षतिपूर्ति निवारण का अधिकार
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उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार
❇️ उपभोक्ताओं के शोषण के कारण :-
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सीमित सूचना
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सीमित आपूर्ति
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सीमित प्रतिस्पर्धा
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साक्षरता कम होना
❇️ भारत में उपभोक्ता आंदोलन :-
🔹 भारत के व्यापारियों के बीच मिलावट, कालाबाजारी, जमाखोरी, कम वजन, आदि की परंपरा काफी पुरानी है ।
🔹 भारत में उपभोक्ता आंदोलन 1960 के दशक में शुरु हुए थे । 1970 के दशक तक इस तरह के आंदोलन केवल अखबारों में लेख लिखने और प्रदर्शनी लगाने तक ही सीमित होते थे । लेकिन हाल के वर्षों में इस आंदोलन में गति आई है ।
🔹 लोग विक्रेताओं और सेवा प्रदाताओं से इतने अधिक असंतुष्ट हो गये थे कि उनके पास आंदोलन करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा था ।
🔹 एक लंबे संघर्ष के बाद सरकार ने भी उपभोक्ताओं की बात सुन ली । इसके परिणामस्वरूप सरकार ने 1986 में कंज्यूमर प्रोटेक्शन ऐक्ट (कोपरा) को लागू किया ।
❇️ उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम 1986 ( कोपरा ) :-
🔹 उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए बनाया गया कानून ।
🔹 कोपरा के अंतर्गत उपभोक्ता विवादों के निपटारे के लिए जिला राज्य और राष्ट्रीय स्तरों पर एक त्रिस्तरीय न्यायिक तंत्रा स्थापित किया गया है ।
🔹 जिला स्तर पर 20 लाख राज्य स्तर पर 20 लाख से एक करोड तक तथा राष्ट्रीय स्तर की अदालतें 1 करोड से उपर की दावेदारी से संबंधित मुकदमों को देखती है ।
❇️ उपभोक्ताओं के कर्त्तव्य :-
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कोई भी माल खरीदते समय उपभोक्ताओं को सामान की गुणवत्ता अवश्य देखनी चाहिए ।
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जहां भी संभव हो गारंटी कार्ड अवश्य लेना चाहिए ।
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खरीदे गए सामान व सेवा की रसीद अवश्यक लेनी चाहिए ।
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अपनी वास्तविक समस्या की शिकायत अवश्यक करनी चाहिए ।
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आई.एस.आई. तथा एगमार्क निशानों वाला सामान ही खरीदे ।
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अपने अधिकारों की जानकारी अवश्यक होनी चाहिए ।
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आवश्यकता पड़ने पर उन अधिकारों का प्रयोग भी करना चाहिए ।
❇️ राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस :-
🔹 24 दिसंबर को राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस के रूप में मनाया जाता है । यह वही दिन है जब भारतीय संसद ने कंज्यूमर प्रोटेक्शन ऐक्ट लागू किया था । भारत उन गिने चुने देशों में से है जहाँ उपभोक्ता की सुनवाई के लिये अलग से कोर्ट हैं ।
🔹 आज देश में 2000 से अधिक उपभोक्ता संगठन हैं , जिनमें से केवल 50-60 ही अपने कार्यों के लिए पूर्ण संगठित और मान्यता प्राप्त हैं ।
🔹 लेकिन उपभोक्ता की सुनवाई की प्रक्रिया जटिल, महंगी और लंबी होती जा रही है । वकीलों की ऊँची फीस के कारण अक्सर उपभोक्ता मुकदमे लड़ने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाता है ।
❇️ उपभोक्ता निवारण प्रक्रिया की सीमाएँ :-
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उपभोक्ता निवारण प्रक्रिया जटिल , खर्चीली और समय साध्य साबित हो रही है ।
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कई बार उपभोक्ताओं को वकीलों का सहारा लेना पडता है ।
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यह मुकदमें अदालती कार्यवाहियों में शामिल होने और आगे बढ़ने आदि में काफी समय लेते है ।
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अधिकांश खरीददारियों के समय रसीद नहीं दी जाती हैं । ऐसी स्थिति में प्रमाण जुटाना आसान नहीं होता है ।
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बाज़ार में अधिकांश खरीददारियाँ छोटे फुटकर दुकानों से होती है ।
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श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए कानूनों के लागू होने के बावजूद खास तौर से असंगठित क्षेत्रा में ये कमजोर है ।
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इस प्रकार बाज़ारों के कार्य करने के लिए नियमों और विनियमों का प्रायः पालन नहीं होता ।
❇️ भारत सरकार द्वारा उपभोक्ताओं की सुरक्षा के लिए उठाए गए कदम :-
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कानूनी कदम :- 1986 का उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम
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प्रशासनिक कदम :- सार्वजनिक वितरण प्रणाली
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तकनीकी कदम :- वस्तुओं का मानकीकरण
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सूचना का अधिकार अधिनियम ( 2005 )
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त्रि – स्तरीय उपभोक्ता अदालतों की स्थापना ।
❇️ उपभोक्ता संरक्षण परिषद् और उपभोक्ता अदालत में अंतर :-
🔶 उपभोक्ता संरक्षण परिषद् :- ये उपभोक्ता का मार्गदर्शन करती है कि कैसे उपभोक्ता अदालत में मुकदमा दर्ज करायें । यह जनता को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करती है ।
🔶 उपभोक्ता अदालत :- लोग उपभोक्ता अदालत में न्याय पाने के लिए जाते है । दोषी को दण्ड दिया जाता है । उन पर जुर्माना लगाती है या सज़ा देती है ।
❇️ आर टी आई – सूचना का अधिकार :-
🔹सन् 2005 के अक्टूबर में भारत सरकार ने एक कानून लागू किया जो आर टी आई या सूचना पाने का अधिकार के नाम से जाना जाता है । जो अपने नागरिकों को सरकारी विभागों के कार्यकलापों की सभी सूचनाएं पाने का अधिकार सुनिश्चित करता है ।
❇️ न्याय पाने के लिए उपभोक्ता को कहाँ जाना चाहिए ?
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न्याय पाने के लिए उपभोक्ता को उपभोक्ता अदालत जाना चाहिए ।
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कोपरा के अंतर्गत उपभोक्ता विवादों के निपटारे के लिए जिला राज्य और राष्ट्रीय स्तरों पर एक त्रिस्तरीय न्यायिक तंत्र स्थापित किया गया है ।
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जिला स्तर का न्यायालय 20 लाख तक के दावों से संबंधित मुकदमों पर विचार करता है ।
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राज्य स्तरीय अदालतें 20 लाख से एक करोड़ तक ।
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राष्ट्रीय स्तर की अदालतें 1 करोड़ से ऊपर की दावेदारी से संबंधित मुकदमों को देखती हैं ।