Chapter - 3
" भूमंडलीकृत विश्व का बनना "
🔹 उन्नीसवीं सदी में दुनिया तेजी से बदल रही थी । इस अवधि में सामाजिक , राजनीतिक , आर्थिक और तकनीकी के क्षेत्र में बड़े जटिल बदलाव हुए । उन बदलावों की वजह से विभिन्न देशों के रिश्तों के समीकरण में अभूतपूर्व बदलाव आए ।
🔹 अर्थशास्त्री मानते हैं कि आर्थिक आदान प्रदान तीन प्रकार के होते हैं जो निम्नलिखित हैं :
👉 व्यापार का आदान प्रदान
✳️ विश्व अर्थव्यवस्था का उदय :-
🔹 आइए इन तीनों को समझने के लिए ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था पर नजर डालें ।
🔹 18 वीं सदी के आखिरी दशक तक ब्रिटेन में “ कॉर्न लॉ "
👉 इस कानून के तहत कोई भी देश अपने भोज्य पदार्थ को ब्रिटेन निर्यात नहीं कर सकता है ।
🔹 कुछ दिन बाद ब्रिटेन में जनसंख्या का बहुत ज्यादा बढ़ गई , जैसे ही जनसंख्या बढ़ी भोजन की मांग में वृद्धि हो गई ।
🔹 भोजन की मांग बढ़ी तो कृषि आधारित सामानों में भी वृद्धि हो गई।
🔹 इससे पहले की ब्रिटेन में भुखमरी आती , सरकार ने कॉर्न लॉ को समाप्त कर दिया ।
🔹 जिस से अलग अलग देश के व्यापारियों ने ब्रिटेन में भोजन का निर्यात किया ।
🔹 भोजन की कमी में बदलाव आया और विकास होने लगा ।
✳️ कॉर्न लॉ हटने के प्रभाव :-
🔹 कॉर्न लॉ के हटने का मतलब था कि ब्रिटेन में जिस भाव पर भोजन का उत्पादन होता था उससे कहीं सस्ते दर पर उसे आयात किया जा सकता था । ब्रिटेन के किसानों द्वारा उगाए जाने वाले अनाज इस स्थिति में नहीं थे कि सस्ते आयात के आगे टिक सकें ।
🔹 खेती की जमीन का एक बड़ा हिस्सा खाली छोड़ दिया गया और लोग भारी संख्या में बेरोजगार हो गए । लोग एक बड़ी संख्या में काम कि तलाश में शहरों की ओर पलायन करने लगे । कई लोग विदेशों की तरफ भी पलायन कर गए ।
🔹 गिरते दामों की वजह से ब्रिटेन में खाने पीने की चीजों की माँग बढ़ने लगी । साथ में औद्योगीकरण से लोगों की आमदनी भी बढ़ने लगी । इसके परिणामस्वरूप ब्रिटेन को और भोजन आयात करने की जरूरत पड़ने लगी । इस मांग को पूरा करने के लिए पूर्वी यूरोप , अमेरिका , रूस और ऑस्ट्रेलिया में जमीन का एक बड़ा भाग साफ किया जाने लगा ।
🔹 अनाज को बंदरगाहों तक सही समय पर पहुँचाना भी जरूरी हो गया था । इसके लिए रेल लाइनें बिछाई गईं ताकि खेत से अनाज को सीधा बंदरगाहों तक पहुँचाया जा सके । खेत पर काम करने के लिए आसपास नई आबादी बसाने की जरूरत भी महसूस हुई । इन सब जरूरतों को पूरा करने के लिए लंदन जैसे वित्तीय केंद्रों से इन भागों तक पूँजी भी आने लगी ।
🔹 अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में मजदूरों की कमी पड़ रही थी । इस कमी को पूरा करने के लिए भारी संख्या में लोग पलायन करके वहाँ पहुँचने लगे । उन्नीसवीं सदी में लगभग पाँच करोड़ लोग यूरोप से अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया पहुँच चुके थे । इस दौरान पूरी दुनिया के विभिन्न भागों से लगभग 15 करोड़ लोगों का पलायन हुआ । 1890 का दशक आते - आते कृषी क्षेत्र में एक वैश्विक अर्थव्यवस्था का निर्माण हो चुका था । इसके साथ श्रम के प्रवाह , पूँजी के प्रवाह और तकनीकी बदलाव के क्षेत्र में बड़े ही जटिल परिवर्तन हुए ।
✳️ तकनीक का योगदान :-
🔹 इस दौरान विश्व की अर्थव्यवस्था के भूमंडलीकरण में टेकनॉलोजी ने एक अहम भूमिका निभाई । इस युग के कुछ मुख्य तकनीकी खोज हैं रेलवे , स्टीम शिप और टेलिग्राफ । रेलवे ने बंदरगाहों और आंतरिक भूभागों को आपस में जोड़ दिया । स्टीम शिप के कारण माल को भारी मात्रा में अतलांतिक के पार ले जाना आसान हो गया । टेलीग्राफ की मदद से संचार व्यवस्था में तेजी आई और इससे आर्थिक लेन देन बेहतर रूप से होने लगे ।
✳️ मीट का व्यापार :-
🔹 मीट का व्यापार इस बात का बहुत अच्छा उदाहरण है कि नई टेक्नॉलोजी से किस तरह आम आदमी का जीवन बेहतर हो जाता है । 1870 के दशक तक जानवरों को जिंदा ही अमेरिका से यूरोप ले जाया जाता था । जिंदा जानवरों को जहाज से ले जाने में कई परेशानियाँ होती थीं । वे ज्यादा जगह लेते थे और कई जानवर रास्ते में बीमार हो जाते थे या मर भी जाते थे । इसके कारण यूरोप के ज्यादातर लोगों के लिए मीट एक विलासिता की वस्तु ही थी ।
🔹 रेफ्रिजरेशन टेक्नॉलोजी ने तस्वीर बदल दी । अब जानवरों को अमेरिका में हलाल किया जा सकता था और प्रोसेस्ड मीट को यूरोप ले जाया जा सकता था । इससे शिप में उपलब्ध जगह का बेहतर इस्तेमाल संभव हो पाया । इससे यूरोप में मीट अधिक मात्रा में उपलब्ध होने लगा और कीमतें गिर गईं । अब आम आदमी भी नियमित रूप से मीट खा सकता था ।
🔹 लोगों का पेट भरा होने के कारण देश में सामाजिक शाँति आ गई । अब ब्रिटेन के लोग देश की उपनिवेशी महात्वाकाँछा को गले उतारने को तैयार लगने लगे ।
✳️ उन्नीसवीं सदी का उत्तरार्ध और उपनिवेशवाद :-
🔹 एक तरफ व्यापार के फैलने से यूरोप के लोगों की जिंदगी बेहतर हो गई तो दूसरी तरफ उपनिवेशों के लोगों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ा ।
🔹 जब अफ्रिका के आधुनिक नक्शे को गौर से देखेंगे तो आपको पता चलेगा कि ज्यादातर देशों की सीमाएँ सीधी रेखा में हैं । ऐसा लगता है जैसे किसी छात्र ने सीधी रेखाएँ खींच दी हो । 1885 में यूरोप की बड़ी शक्तियाँ बर्लिन में मिलीं और अफ्रिकी महादेश को आपस में बाँट लिया । इस तरह से अफ्रिका के ज्यादातर देशों की सीमाएँ सीधी रेखाओं में बन गईं ।
✳️ रिंडरपेस्ट या मवेशियों का प्लेग :-
🔹 रिंडरपेस्ट मवेशियों में होने वाली एक बीमारी है । अफ्रिका में रिंडरपेस्ट के उदाहरण से पता चलता है कि किस तरह से एक बीमारी किसी भूभाग में शक्ति के समीकरण को भारी तौर पर प्रभावित कर सकती है ।
🔹 अफ्रिका वैसा महादेश था जहाँ पर जमीन और खनिजों का अकूत भंडार था । यूरोपीय लोग खनिज और बागानों से धन कमाने के लिए अफ्रिका पहुंचे थे । लेकिन उन्हें वहाँ मजदूरों की भारी कमी झेलनी पड़ी । वहाँ एक और बड़ी समस्या ये थी कि स्थानीय लोग मेहनताना देने के बावजूद काम नहीं करना चाहते थे । दरअसल अफ्रीका की आबादी बहुत कम थी और वहाँ उपलब्ध संसाधनों की वजह से लोगों की जरूरतें आसानी से पूरी हो जाती थी । उन्हें इस बात की कोई जरूरत ही नहीं थी कि पैसे कमाने के लिए काम करें ।
🔹 यूरोपीय लोगों ने अफ्रिका के लोगों को रास्ते पर लाने के लिए कई तरीके अपनाए । उनमें से कुछ नीचे दिये गये हैं ।
👉 लोगों पर इतना अधिक टैक्स लगाया गया कि उसे केवल वो ही अदा कर पाते थे । जो खानों और बागानों में काम करते थे ।
👉 उत्तराधिकार के कानून को बदल दिया गया । अब किसी भी परिवार का एक ही सदस्य जमीन का उत्तराधिकारी बन सकता था । इससे अन्य लोगों को मजदूरी करने पर बाध्य होना पड़ा ।
👉 खान में काम करने वाले मजदूरों को कैंपस के भीतर ही रखा जाता था और उन्हें खुला घूमने की छूट नहीं थी ।
✳️ रिंडरपेस्ट का प्रकोप :-
🔹 रिंडरपेस्ट का अफ्रिका में आगमन 1880 के दशक के आखिर में हुआ था । यह बीमारी उन घोड़ों के साथ आई थी जो ब्रिटिश एशिया से लाए गए थे । ऐसा उन इटैलियन सैनिकों की मदद के लिए किया गया था जो पूर्वी अफ्रिका में एरिट्रिया पर आक्रमण कर रहे थे । रिंडरपेस्ट पूरे अफ्रिका में किसी जंगल की आग की तरह फैल गई । 1892 आते आते यह बीमारी अफ्रिका के पश्चिमी तट तक पहुँच चुकी थी । इस दौरान रिंडरपेस्ट ने अफ्रिका के मवेशियों की आबादी का 90 % हिस्सा साफ कर दिया ।
🔹 अफ्रिकियों के लिए मवेशियों का नुकसान होने का मतलब था रोजी रोटी पर खतरा । अब उनके पास खानों और बागानों में मजदूरी करने के अलावा और कोई चारा नहीं था । इस तरह से मवेशियों की एक बीमारी ने यूरोपियन को अफ्रिका में अपना उपनिवेश फैलाने में मदद की ।
✳️ भारत से बंधुआ मजदूरों का पलायन :-
🔹 वैसे मजदूर जो किसी खास मालिक के लिए खास अवधि के लिए काम करने को प्रतिबद्ध होते हैं बंधुआ मजदूर कहलाते हैं । आधुनिक बिहार , उत्तर प्रदेश , मध्य भारत और तामिल नाडु के सूखाग्रस्त इलाकों से कई गरीब लोग बंधुआ मजदूर बन गए । इन लोगों को मुख्य रूप से कैरेबियन आइलैंड , मॉरिशस और फिजी भेजा गया । कई को सीलोन और मलाया भी भेजा गया । भारत में कई बंधुआ मजदूरों को असम के चाय बागानों में भी काम पर लगाया गया ।
🔹 एजेंट अक्सर झूठे वादे करते थे और इन मजदूरों को ये भी पता नहीं होता था कि वे कहाँ जा रहे हैं । इन मजदूरों के लिए नई जगह पर बड़ी भयावह स्थिति हुआ करती थी । उनके पास कोई कानूनी अधिकार नहीं होते थे और उन्हें कठिन परिस्थितियों में काम करना पड़ता था ।
🔹 1900 के दशक से भारत के राष्ट्रवादी लोग बंधुआ मजदूर के सिस्टम का विरोध करने लगे थे । इस सिस्टम को 1921 में समाप्त कर दिया गया ।