विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन (World Climate and Climate Change) || 11th Class Geography Ch-12 (Book-1) || Notes In Hindi

विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

(World Climate and Climate Change)




❇️ जलवायु :-

🔹 हमारा जीवन और हमारी आर्थिक क्रियाएं ( जैसे- कृषि , व्यापार , उद्योग आदि ) सभी जलवायु से प्रभावित और कभी – कभी नियंत्रित भी होती है । 

❇️ जलवायु का वर्गीकरण :-

🔹 जलवायु का सबसे पहला वर्गीकरण यूनानियों ने किया था ।

🔹 जलवायु वर्गीकरण के तीन आधार हैं :-

🔶 आनुभविक ( Empirical )

🔶 जननिक (Genetic)

🔶 व्यवहारिक या क्रियात्मक ।

🔹 जलवायु लम्बे समय ( कम से कम 30 वर्ष ) की दैनिक मौसमी दशाओं का माध्य अथवा औसत है ।

❇️ भूमध्य सागरीय जलवायु :-

🔹 भूमध्य सागरीय जलवायु ( Cs ) 30 ° से 40 ° अक्षांशों के मध्य उपोष्ण कटिबंध तक महाद्वीपों के पश्चिमी तट के साथ – साथ पाई जाती है ।

❇️ कोपेन का जलवायु वर्गीकरण :-

🔹 कोपेन का जलवायु वर्गीकरण ( 1918 ) जननिक और आनुभविक है । कोपेन ने जलवायु का वर्गीकरण तापमान तथा वर्षण के आधार पर किया । थार्नवेट ने वर्षण प्रभाविता , तापीय दक्षता और संभाव्य ताष्पोत्सर्जन को अपने जलवायु वर्गीकरण का आधार बनाया ।

🔹 कोपेन ने वनस्पति के वितरण तथा जलवायु मध्य एक घनिष्ठ संबंध की पहचान की । उन्होंने तापमान तथा वर्षण के कुछ निश्चित मानों का चयन करते हुए उनका वनस्पति के वितरण से संबंध स्थापित किया और इन मानों का उपयोग जलवायु के वर्गीकरण के लिए किया । 

🔹 कोपेन के अनुसार जलवायु समूह :-

🔶 शुष्क

🔶 कोष्ण शीतोष्ण 

🔶 शीतल हिम – वन

🔶 शीत 

🔶 उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र 

🔶उच्च भूमि 

🔹 कोपेन ने बड़े तथा छोटे अक्षरों के प्रयोग का आरंभ जलवायु के समूहों एवं प्रकारों की पहचान करने के लिए किया । सन् 1918 में विकसित तथा समय के साथ संशोधित हुई कोपेन की यह पद्धति आज भी लोकप्रिय और प्रचलित है । 

🔹 कोपेन ने पाँच प्रमुख जलवायु समूह निर्धारित किए , जिनमें से चार तापमान पर तथा एक वर्षण पर आधारित है।

🔹 कोपेन ने बड़े अक्षर A , C , D तथा E से आर्द्र जलवायु को और अक्षर B से शुष्क जलवायु को निरूपित किया है । जलवायु समूहों को तापक्रम एवं वर्षा की मौसमी विशेषताओं के आधार पर कई छोटी – छोटी इकाइयों में विभाजित किया गया है तथा छोटे अक्षरों के माध्यम से अभिहित किया गया है ।

❇️ कोपेन के उष्ण कटिबंधीय जलवायु :-

🔹 कोपेन के उष्ण कटिबंधीय जलवायु को तीन प्रकारों में बाँटा जाता है , जिनके नाम हैं :-

🔶 उष्ण कटिबंधीय आर्द्र जलवायु 

🔶 उष्ण कटिबंधीय मानसून जलवायु

🔶 उष्ण कटिबंधीय आर्द्र जलवायु , जिसमें शीत ऋतु शुष्क होती है ।

❇️ उष्ण कटिबंधीय मानसून , लघु शुष्क ऋतु :-

🔹 ये पवनें ग्रीष्म ऋतु में भारी वर्षा करती है ।

🔹 शीत ऋतु प्रायः शुष्क होती है । 

🔹 यह जलवायु भारतीय उपमहाद्वीप , दक्षिणी अमेरीका के उत्तर – पूर्वी भाग तथा उत्तरी आस्ट्रेलिया में पाई जाती है ।

❇️ उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र एंव शुष्क जलवायु :-

🔹 इस प्रकार की जलवायु में वर्षा बहुत कम होती है । 

🔹 इस जलवायु में शुष्क ऋतु लम्बी एंव कठोर होती है । 

🔹 शुष्क ऋतु में प्रायः अकाल पड़ जाता है । 

🔹 इस प्रकार की जलवायु वाले क्षेत्रों में पर्णपाती वन तथा पेड़ो से ढ़की घास भूमियाँ पाई जाती है ।

❇️ उष्ण कटिबंधीय आर्द्र जलवायु :-

🔹 उष्ण कटिबंधीय आर्द्र जलवायु विषुवत वृत के निकट पाई जाती है । इस जलवायु के प्रमुख क्षेत्र दक्षिण अमेरिका का आमेजन बेसिन , पश्चिमी विषुवतीय अफ्रीका तथा दक्षिणी पूर्वी एशिया के द्वीप हैं । वर्ष के प्रत्येक माह में दोपहर के बाद गरज और बौछारों के साथ प्रचुर मात्रा में वर्षा होती है । 

🔹 विषुवतीय प्रदेश में तापमान समान रूप से ऊँचा तथा वार्षिक तापांतर नगण्य होता है । किसी भी दिन ज़्यादातर तापमान 30 ° सेल्सियस और न्यूनतम तापमान 20 ° सेल्सियस होता है ।

❇️ उष्ण कटिबंधीय मानसून जलवायु :-

🔹 उष्ण कटिबंधीय मानसून जलवायु भारतीय उपमहाद्वीप , दक्षिण अमेरिका के उत्तर – पूर्वी भाग तथा उत्तरी ऑस्ट्रेलिया में मिलती है । भारी वर्षा ज़्यादातर गर्मियों में ही होती है ।  शीत ऋतु शुष्क होती है ।

❇️ शुष्क जलवायु :-

🔹 शुष्क जलवायु की विशेषता अत्यंत न्यून वर्षा है जो पादपों के विकास हेतु काफ़ी नहीं होती । यह जलवायु पृथ्वी के बहुत बड़े भाग पर मिलती है जो विषुवत वृत से 15 ° से 60 ° उत्तर व दक्षिण अक्षांशों के मध्य प्रवाहित होती है ।

❇️ मरूस्थलीय जलवायु :-

🔹 अधिकतर उष्ण कटिबंधीय वास्तविक मरूस्थल दोनों गोलार्द्ध में 15 ° तथा 60 ° अक्षाशों के मध्य विस्तृत हैं ।

🔹 गर्म मरूस्थलों में औसत तापमान 38 ° होता है । 

🔹 मरूस्थलों में वर्षण की अपेक्षा वाष्पीकरण की क्रिया अधिक होती है । 

🔹 उच्च तापमान और वर्षा की कमी के कारण वनस्पति बहुत ही कम पाई जाती है । 

❇️ चीन तुल्य जलवायु :-

🔹  यह जलवायु दोनो गोलाद्धों में 25 ° तथा 45 ° अक्षाशों के मध्य महाद्वीपों के पूर्वी समुद्र तटीय क्षेत्रों में पाई जाती है । 

🔹 वर्षा का वार्षिक औसत 100 सेंटीमीटर है । ग्रीष्म ऋतु में शीत ऋतु की अपेक्षा अधिक वर्षा होती है । 

🔹 यहाँ ग्रीष्म और शीत ऋतु दोनों ही होती हैं । तापमान ऊँचे रहते हैं । सबसे गर्म महीने का औसत तापमान 27 सेंटीग्रेड हो जाता है । वैसे शीत ऋतु मृदुल होती है । परन्तु कभी – कभी पाला भी पड़ जाता है । 

🔹 इस प्रदेश में चौड़ी पत्ती वाले तथा कोण धारी मिश्रित वन पाए जाते हैं ।

❇️ टैगा जलवायु :-

🔹  यह जलवायु वर्ग केवल उत्तरी गोलार्द्ध में 50 से 70 ° उत्तरी अक्षाशों के मध्य विस्तारित है । 

🔹 यह जलवायु उत्तरी अमेरिका में अलास्का से लेकर न्यूफांउड लैण्ड तक तथा यूरेशिया में स्कैंडिनेविया से लेकर साइबेरिया के पूर्वीछोर में कमचटका प्रायद्वीप तक पायी जाती है । 

🔹 इस जलवायु में ग्रीष्म ऋतु छोटी एंव शीतल होती है तथा शीत ऋतु लम्बी व कड़ाके की सर्दी वाली होती है । | 

🔹 वर्षण की क्रिया ग्रीष्म ऋतु होती है ।

❇️ टुंड्रा जलवायु :-

🔹 यह जलवायु वर्ग केवल उत्तरी गोलार्द्ध में 60 से 75 ° उत्तरी अक्षांशों के मध्य विस्तरित है ।

🔹 यह जलवायु उत्तरी अमेरिका और यूरेशिया की आर्कटिक तटीय पट्टी में ग्रीन लैण्ड और आइसलैण्ड के हिम रहित तटीय क्षेत्रों में पाई जाती है । 

🔹 यहाँ ग्रीष्म ऋतु छोटी सामान्यतः मृदुल होती है सामान्यतः तापमान 10 ° डिग्री सेलसियस से कम होती है ।

🔹 यहाँ साल भर हिमपात होता रहता है ।

❇️ ग्रीन हाउस प्रभाव :-

🔹 पृथ्वी पर ऊर्जा का मुख्य स्त्रोत सूर्य है ।

🔹 सूर्य से पृथ्वी तक पहुँचने वाली विकिरण को सूर्यातप कहते हैं अर्थात सूर्य से प्राप्त होने वाली ऊर्जा को सूर्यातप कहते हैं ।

🔹 सूर्य से प्राप्त होन वाली यह ऊर्जा लघु तरंगो के रूप में प्राप्त होती है । इसका बहुत सा भाग भूतल द्वारा दीर्घ तरंगों के रूप में परिवर्तित किया जाता है ।

🔹 पृथ्वी का वायुमण्डल सूर्यातप की विभिन्न तरंग दैर्ध्य वाली किरणों के साथ विभिन्न प्रकार का व्यवहार करता है ।

🔹 वायुमण्डल में उपस्थित कुछ गैसें तथा जलवाष्प भूतल में परिवर्तित दीर्घ तरंगो के 90 प्रतिशत भागों का अवशोषण करते हैं । इस प्रकार वायुमण्डल को गर्म करने का मुख्य स्रोत दीर्घतरंगें अर्थात पार्थिव विकिरण है । 

🔹 इस दृष्टि से वायुमंडल ग्रीन हाउस अथवा मोटर वाहन के शीशे की भांति व्यवहार करता है ।

🔹 यह सूर्य से आने वाली लघु किरणों को बीच से गुजरने देता है , परन्तु बाहर जाने वाली दीर्घ किरणों का अवशोषण कर लेता है । इसे ग्रीन हाउस प्रभाव कहते हैं । 

❇️ प्रमुख ग्रीन हाउस गैसें :-

🔹 प्रमुख ग्रीन हाउस गैसें गैसें निम्नलिखित हैं :-

🔶 कार्बन डाइ आक्साइड ( CO₂) 

🔶क्लोरो – फ्लोरो कार्बन ( CFCs )

🔶मीथेन ( CH₄ )

🔶 नाइट्रस आक्साइड ( N₂O )

🔶 ओजोन ( O₃ )  

🔶 नाइट्रिक आक्साइड ( NO ) 

🔶 कार्बन मोनो आक्साइड CO 

❇️ भूमण्डलीय तापन :-

🔹 ग्रीन हाउस प्रभाव से विश्व के तापमान में वृद्धि हो रही है , जिसे भूमण्डलीय तापन या उष्मन कहते हैं । भूमण्डलीय उष्मन वायुमण्डल में ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा में वृद्धि होने के कारण होता है । 

❇️ भूमण्डलीय तापन के प्रभाव :-

🔹 भूमण्डलीय तापन के निम्नलिखित प्रभाव है :-

🔹 ध्रुवीय क्षेत्रों और पर्वतीय क्षेत्रों की सारी बर्फ पिघल जाएगी । 

🔹 समुद्र का जल स्तर बढ़ जाएगा , इससे अनेक तटवर्ती क्षेत्र जल मग्न हो जाएगें । जैसे मुंबई , ढाका , मालदीव आदि । 

🔹 समुद्र का खारा पानी धरती के मीठे पानी को खराब कर देगा ।

🔹 पर्वतों की हिमानियों के पिघलने से नदियों में बाढ़ आ जाएगी ।

❇️ विश्व में जलवायु परिवर्तन के कारणों की विवेचना :-

🔹 जलवायु परिवर्तन के कई कारण हैं जिन्हें खगोलीय , पार्थिव तथा मानवीय जैसे तीन वर्गों में बाँटा जाता है :-

🔶 खगोलीय कारण :- खगोलीय कारणों का सम्बन्ध सौर कलंको से उत्पन्न सौर ऊर्जा में होने वाले परिवर्तन से है । सौर कलंक सूर्य पर पाए जाने वाले काले धब्बे हैं , जो चक्रीय क्रम में घटते व बढ़ते रहते हैं सौर कलंको की संख्या बढ़ती है । इसके विपरीत जब सौर कलंको की संख्या घटती है तो मौसम उष्ण हो जाता है । एक अन्य खगोलीय सिद्धान्त मिलैकोविच दोलन है जो सूर्य के चारों ओर पृथ्वी के अक्षीय झुकाव में परिवर्तनों के बारे में अनुमान लगता है । ये सभी कारक सूर्य से प्राप्त सूर्यातप में परिवर्तन ला देते हैं जिसका प्रभाव जलवायु पर पड़ता है ।

🔶 पार्थिव कारण :- पार्थिव कारणों में ज्वालामुखी उदगार जलवायु परिवर्तन का एक कारण है । जब ज्वालामुखी फटता है तो बड़ी मात्रा में एरोसेल वायुमण्डल में प्रवेश करते है । ये एरोसेल लम्बी अवधि तक वायुमण्डल में सक्रिय रहते हैं और सूर्य से आने वाली किरणों में बाधा बनकर सौर्यिक विकिरण को कम कर देते हैं । इससे मौसम ठण्डा हो जाता है । 

🔶 मानवीय कारण :- इनमें से कुछ परिवर्तन मानव की अवांछित गतिविधिओं का परिणाम है । इन्हें मानव प्रयास से कम किया जा सकता है । भू – मण्डलीय ऊष्मन एक ऐसा ही परिवर्तन है , जो मानव द्वारा लगातार और अधिकाधिक मात्रा में कार्बनडाईआक्साइड तथा अन्य ग्रीन हाऊस गैसें जैसे मीथेन तथा क्लोरोफ्लोरो कार्बन वायुमण्डल में पहुँचाए जाने से उत्पन्न हुआ है ।




इतिहास विश्व इतिहास के कुछ विषय

Chapter 1: - समय की शुरुआत से (From the Beginning of Time)

Chapter 2: - लेखन कला और शहरी जीवन (Writing and City Life)

Chapter 3: - तीन महाद्वीपों में फैला हुआ साम्राज्य (An Empire Across Three Continents)

Chapter 4:- इस्लाम का उदय और विस्तार (The Central Islamic Lands )

Chapter 5:- यायावर साम्राज्य (Nomadic Empires)

Chapter 6:- तीन वर्ग (The Three Orders)

Chapter 7:- बदलती हुई सांस्कृतिक परम्पराएँ (Changing Cultural Traditions)

Chapter 8:- संस्कृतियों का टकराव (Confrontation of Cultures)

Chapter 9:- औद्योगिक क्रांति (The Industrial Revolution)

Chapter 10:- मूल निवासियों का विस्थापन (Displacing Indigenous Peoples)

Chapter 11:- आधुनिकीकरण के रास्ते (Paths to Modernization)

राजनीति विज्ञान  भारत का संविधान : सिद्धांत और व्यवहार

Chapter 1:- संविधान क्यों और कैसे (Constitution because and how)

Chapter 2:- भारतीय संविधान में अधिकार (Rights in the Indian Constitution)

Chapter 3:- चुनाव और प्रतिनिधि (Election and Representative)

Chapter 4:- कार्यपालिका (Executive)

Chapter 5:- विधायिका (Legislature)

Chapter 6:- न्यायपालिका (Judiciary)

Chapter 7:- संघवाद (Federalism)

Chapter 8:- स्थानीय शासन (Local Government)

Chapter 9:- संविधान एक जीवंत दस्तावेज़ (Constitution a living document)

Chapter10:- संविधान का राजनितिक दर्शन (Political Philosophy of the Constitution)

 

 

- राजनितिक सिद्धांत

Chapter 1:- राजनीतिक सिद्धांत एक परिचय (Political Theory - An Introduction)

Chapter 2:- स्वतंत्रता (Freedom)

Chapter 3:- समानता (Equality)

Chapter 4:- सामाजिक न्याय (Social justice)

Chapter 5:- अधिकार (Rights)

Chapter 6:- नागरिकता (Citizenship)

Chapter 7:- राष्ट्रवाद (Nationalism)

Chapter 8:- धर्मनिरपेक्षता (Secularism)

Chapter 9:- शांति (Peace)

Chapter 10:- विकास (Development)

 

 

भूगोल   भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत

Chapter 1:- भूगोल एक विषय के रूप में (Geography as A Discipline)

Chapter 2:- पृथ्वी की उत्पत्ति एंव विकास (The Origin and Evolution of the Earth)

Chapter 3:- पृथ्वी की आन्तरिक संरचना (Interior of the Earth)

Chapter 4:- महासागरों और महाद्वीपों का वितरण (Distribution of Oceans and Continents)

Chapter 5:- खनिज एंव शैल (Minerals and Rocks)

Chapter 6:- आकृतिक प्रक्रियाएँ (Geomorphic Processes)

Chapter 7:- भू आकृतियाँ तथा उनका विकास (Landforms and their Evolution)

Chapter 8:- वायुमण्डल का संघटन एवं संरचना (Composition and Structure of Atmosphere)

Chapter 9:- सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान (Solar Radiation , Heat Balance and Temperature)

Chapter 10:- वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसमी प्रणालियाँ (Atmospheric Circulation and Seasonal Systems)

Chapter 11:- वायुमंडल में जल (Water in the Atmosphere)

Chapter 12:- विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन (World Climate and Climate Change)

Chapter 13:- महासागरीय जल (Ocean Water)

Chapter 14:- महासागरीय जल संचलन (Movements of Ocean Water)

Chapter 15:- पृथ्वी पर जीवन (Life on the Earth)

Chapter 16:- जैव विविधता एवं संरक्षण (Biodiversity and Conservation)

 

 

 भारत : भौतिक पर्यावरण

Chapter 1:- भारत स्थिति (India - Location)

Chapter 2:- संरचना तथा भू - आकृति विज्ञान (Structure and Physiography)

Chapter 3:- अपवाह तंत्र (Drainage System)

Chapter 4:- जलवायु (Climate)

Chapter 5:- प्राकृतिक वनस्पति (Natural Vegetation)

Chapter 6:- मृदा (Soils)

Chapter 7:- प्राकृतिक आपदाएं और संकट (Natural Hazards and Disaster)

 

 

 


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