संरचना तथा भू - आकृति विज्ञान
(Structure and Physiography)
❇️ परिचय ( पृथ्वी ) :-
🔹 पृथ्वी लगभग 460 करोड़ वर्ष पुरानी है । इस संपूर्ण अवधि में पृथ्वी के भूपृष्ठ पर आंतरिक तथा बाह्य शक्तियों की गतिशीलता कारण बहुत से परिवर्तन हुए हैं । ये परिवर्तन भारतीय उपमहाद्वीप में भी हुए हैं जो गौंडवाना लैंड का भाग था ।
🔹 करोड़ों वर्ष पहले ‘ इंडियन प्लेट ‘ भूमध्य रेखा के दक्षिण में स्थित थी जो कि आकार में विशाल थी तथा आस्ट्रेलियन प्लेट भी इसी का हिस्सा थी ।
🔹 करोड़ों वर्षों के दौरान यह प्लेट कई हिस्सों में टूट गई और आस्ट्रेलियन प्लेट दक्षिण – पूर्व की ओर तथा इंडियन प्लेट उत्तर दिशा में खिसकने लगी ।
❇️ भारत का भू – वैज्ञानिक खंडो में विभाजन :-
🔹 भू – वैज्ञानिक संरचना व शैल समूह की भिन्नता के आधार पर भारत को तीन भू – वैज्ञानिक खंडो में विभाजित किया गया है :-
1. प्रायद्वीप खंड ।
2. हिमालय और अन्य अतिरिक्त प्रायद्वीपीय पर्वत मालाएं ।
3. सिंधु – गंगा – ब्रह्मपुत्र मैदान ।
❇️ प्रायद्वीप खंड :-
🔹 प्रायद्वीप खंड की उत्तरी सीमा कटी – फटी है , जो कच्छ से आरंभ होकर अरावली पहाड़ियों के पश्चिम से गुजरती हुई दिल्ली तक और फिर यमुना व गंगा नदी के समानांतर राजमहल की पहाड़ियों व गंगा डेल्टा तक जाती है ।
🔹 प्रायद्वीपीय भाग मुख्यतः प्राचीन नीस व ग्रेनाईट से बना है जो कैम्ब्रियन कल्प से एक कठोर खंड के रूप में खड़ा है ।
❇️ प्रायद्वीपीय पठार की विशेषताऐ :-
🔹 प्रायद्वीपीय पठार तिकोने आकार वाला कटा – फटा भूखंड है । उत्तर – पश्चिम में दिल्ली – कटक , पूर्व में राजमहल पहाड़ियाँ , पश्चिम में गिर पहाड़ियाँ , दक्षिण में इलायची पहाड़ियाँ , प्रायद्वीपीय पठार की सीमाएँ निर्धारित करती है । उत्तर – पूर्व में शिलांग व कार्बी – ऐंगलोंग पठार भी इस भूखंड का विस्तार है ।
🔹 प्रायद्वीपीय पठार मुख्यतः प्राचीन नीस व ग्रेनाइट से बना है ।
🔹 यह पठार भूपर्पटी का सबसे प्राचीनतम भू खण्ड है जिसकी औसत ऊँचाई 600 और 900 मीटर है । कैम्ब्रियन कल्प से यह भूखंड एक कठोर खंड के रूप में खड़ा है ।
🔹 इस पठार के उत्तर – पश्चिमी भाग में अरावली की पहाड़ियों , उत्तर में विन्ध्यांचल और सतपुड़ा की पहाड़ियां , पश्चिम घाट और पूर्व में पूर्वी घाट स्थित है । सामान्य तौर पर प्रायद्वीप की ऊंचाई पश्चिम से पूर्व की ओर कम होती जाती है । इस पठार के उत्तरी भाग का ढाल उत्तर दिशा की ओर है ।
🔹 इंडो – आस्ट्रेलियाई प्लेट का अग्र भाग होने के कारण यह खंड ऊर्ध्वाधर हलचलों व भ्रंश से प्रभावित है । नर्मदा नदी , तापी और महानदी , भ्रंश घाटियों के और सतपुड़ा , ब्लॉक पर्वत का उदाहरण हैं ।
❇️ हिमालय और अन्य अतिरिक्त प्रायद्वीपीय पर्वत मालाएं :-
🔹 कठोर एवं स्थिर प्रायद्वीपीय खंड के विपरीत हिमालय और अतिरिक्त – प्रायद्वीपीय पर्वतमालाओं की भूवैज्ञानिक संरचना तरूण , दुर्बल और लचीली है ।
🔹 ये पर्वत वर्तमान समय में भी बहिर्जनिक तथा अंतर्जनित बलों की अंतक्रियाओं से प्रभावित हैं । इसके परिणामस्वरूप इनमें वलन , अंश और क्षेप ( thrust ) बनते हैं ।
🔹 इन पर्वतों की उत्पत्ति विवर्तनिक हलचलों से जुड़ी हैं । तेज बहाव वाली नदियों से अपरदित ये पर्वत अभी भी युवा अवस्था में हैं । गॉर्ज , V- आकार घाटियाँ , क्षिप्रिकाएँ व जल – प्रपात इत्यादि इसका प्रमाण हैं।
❇️ सिंधु – गंगा – बह्मपुत्र मैदान :-
🔹 भारत का तृतीय भूवैज्ञानिक खंड सिंधु , गंगा और बह्मपुत्र नदियों का मैदान है । मूलत : यह एक भू – अभिनति गर्त है जिसका निर्माण मुख्य रूप से हिमालय पर्वतमाला निर्माण प्रक्रिया के तीसरे चरण में लगभग 6.4 करोड़ वर्ष पहले हुआ था ।
🔹 तब से इसे हिमालय और प्रायद्वीप से निकलने वाली नदियाँ अपने साथ लाए हुए अवसादों से पाट रही । इन मैदानों में जलोढ़ की औसत गहराई 1000 से 2000 मीटर है ।
❇️ करेवा :-
🔹 करेवा ‘ पीरपंजाल श्रेणी पर 1000-1500 मीटर की ऊँचाई पर स्थित हिमोढ़ के जमाव है जिन्हें हिमनदियों ने निक्षेपित किया है । यहाँ पर केसर ( जाफरान ) की खेती होती है ।
❇️ वृहत् हिमालय श्रृंखला का अन्य नाम :-
🔹 वृहत् हिमालय श्रृंखला को ‘ केंद्रीय अक्षीय श्रेणी ‘ अथवा महान हिमलाय भी कहा जाता है । इसकी पूर्व – पश्चिम लम्बाई लगभग 2500 किमी . तथा उत्तर – दक्षिण चौड़ाई 160 से 400 किमी . तक है ।
❇️ भाबर :-
🔹 यह प्रदेश सिन्धु नदी से तिस्ता नदी तक विस्तृत है ।
🔹 यह पतली पट्टी के रूप में 8 से 10 किमी . की चौड़ाई में फैला है ।
🔹 भाबर प्रदेश कृषि के लिए उपयुक्त नहीं है ।
🔹 हिमालय से निकलने वाली नदियाँ यहाँ पर अपने साथ लाए हुए कंकड़ , पत्थर , रेत , बजरी जमा कर देती है ।
❇️ तराई :-
🔹 तराई प्रदेश , भाबर प्रदेश के दक्षिण में उसके साथ -2 विस्तृत है ।
🔹 भाबर के समांतर इसकी चौड़ाई 10 से 20 किमी . है ।
🔹 तराई प्रदेश में वनों को साफ कर कृषि योग्य बनाया गया है ।
🔹 यह बारीक कणों वाले जलोढ़ से बना हुआ वनों से ढंका क्षेत्र है ।
❇️ बाँगर :-
🔹 बाँगर प्रदेश बाढ़ के तल से ऊँचा है ।
🔹 यह कृषि के लिए उपयोगी नहीं है ।
🔹 यह पुरानी जलोढ़ मिट्टी से बना उच्च प्रदेश है ।
🔹 कहीं -2 चुना युक्त कंकरीली मिट्टी पाई जाती है ।
🔹 पंजाब में इसे छाया कहते हैं ।
❇️ भारत में ठंडा मरूस्थल :-
🔹 भारत में ठंडा मरूस्थल कश्मीर हिमालय के उत्तर पूर्वी क्षेत्र लेह – लद्दाख में स्थित है ।
🔹 यह ठंडा मरूस्थल वृहत हिमालय और कराकोरम श्रेणियों के बीच स्थित है ।
🔹 इस क्षेत्र की प्रमुख श्रेणियां निम्न है :
( अ ) लद्दाख श्रेणी
( ब ) जॉस्कर श्रेणी
( स ) कराकोरम श्रेणी
❇️ हिमालय पर्वतमाला की पूर्वी पहाड़ियों की विशेषताएं :-
🔹 हिमालय पर्वत के इस भाग में पहाड़ियों की दिशा उत्तर से दक्षिण है ।
🔹 ये पहाड़ियां विभिन्न स्थानीय नामों से जानी जाती है । उत्तर में पटकाई बूम , नागा पहाड़ियां , मणिपुर पहाड़ियां और दक्षिण में मिजो या लुसाई पहाड़ियों के नाम से जानी जाती है ।
🔹 यह नीची पहाड़ियों का क्षेत्र है जहां अनेक जनजातियां ‘ झूम ‘ या स्थानांतरी खेती / कृषि में संलग्न है ।
❇️ अरब सागर के द्वीप :-
🔹 अरब सागर के द्वीप छोटे हैं तथा आवास योग्य नहीं हैं ।
🔹 अरब सागर के द्वीपों में कोई ज्वालामुखी नहीं मिलता ।
🔹 यहाँ 36 द्वीप हैं । और इनमें से केवल 11 द्वीपों पर ही मानव बसाव है ।
🔹 मिनिकॉय द्वीप सबसे बड़ा द्वीप है इसमें लक्षद्वीप सम्मिलित है ।
🔹 इसे 11 डिग्री चैनल द्वारा अलग किया जाता है ।
🔹 यह पूरा द्वीप समूह प्रवाल निक्षेप से बना है ।
❇️ बंगाल की खाड़ी के द्वीप :-
🔹 बंगाल की खाड़ी के द्वीप बड़े हैं तथा आवास योग्य हैं ।
🔹 यहाँ बैरन द्वीप एक जीवंत ज्वालामुखी है ।
🔹 बंगाल की खाड़ी में लगभग 572 द्वीप हैं ।
🔹 यहाँ अण्डमान तथा निकोबार द्वीप समूह सम्मिलित हैं इन्हें 10 डिग्री चैनल द्वारा अलग किया जाता है ।
🔹 इन द्वीपों की उत्पत्ति ज्वालामुखी से हुई है ।
❇️ भारत के पश्चिमी तटीय मैदान :-
🔹 यह तटीय मैदान मध्य भाग में संकीर्ण है परंतु उत्तर और दक्षिण में चौड़े हो जाते हैं । औसत चौड़ाई 64 किमी . है ।
🔹 यहां बहने वाली नदियाँ अपेक्षाकृत छोटी हैं और ये डेल्टा नहीं बनाती क्योंकि ये तेज बहती हैं ।
🔹 यह मैदान अधिक कटा – फटा है जिस कारण यहां पत्तनों एवं बंदरगाह के विकास के लिए प्राकृतिक परिस्थितियां अनुकूल है । इसे उत्तर में गोवा तट , कोंकण तट तथा दक्षिण में केरल तक मालाबार तट कहते हैं ।
❇️ भारत के पूर्वी तटीय मैदान :-
🔹 पश्चिमी तटीय मैदान की तुलना में पूर्वी तटीय मैदान चौड़ा है यह ( 80 से 100 किमी . ) चौड़ा है ।
🔹 यहां बहने वाली नदियां लम्बे , चौड़े डेल्टा बनाती हैं ।
🔹 इसमें महानदी , गोदावरी , कृष्णा और कावेरी का डेल्टा शामिल हैं ।
🔹 उभरा हुआ तट होने के कारण यहां बंदरगाह कम हैं । यहाँ पत्तनों और बंदरगाहों का विकास मुश्किल है ।
🔹 यह गोदावरी नदी के मुहाने से उत्तर की ओर उत्तरी सरकार तट तथा इसके दक्षिण में इसे कोरोमंडल तट कहते हैं ।
❇️ पश्चिमी तटीय मैदान पर कोई डेल्टा क्यों नहीं है ?
🔹 पश्चिमी तटीय मैदान , अरब सागर के तट पर फैला एक संकरा मैदान है । इसके पूर्व में पश्चिमी घाट की पहाड़ियां है जिनसे अनेक छोटी – छोटी और तीव्रगामी नदियां निकलती है । छोटा मार्ग और कठोर शैल होने के कारण ये नदियां अधिक तलछट नहीं लातीं । अवसाद का पर्याप्त निक्षेप न होने के कारण यहां कोई डेल्टा नहीं बन पाता ।
❇️ ” भारतीय मरूस्थल कभी समुद्र का हिस्सा था । ” इस कथन की पुष्टि कीजिए ?
🔹 भारतीय मरूस्थल अरावली पहाड़ियों के उत्तर पश्चिम में स्थित हैं । यह माना जाता है कि मैसोजोइक काल में यह क्षेत्र समुद्र का हिस्सा था । इसके निम्नलिखित प्रमाण हैं –
🔶 आकल में स्थित काष्ठ जीवाश्म पार्क तथा
🔶 जैसलमेर के निकट ब्रह्मसर के आस – पास के समुद्री निक्षेप हैं ।
❇️ अरूणाचल प्रदेश में निवास करती जनजातियाँ :-
🔹 अरूणाचल हिमालय में पश्चिम से पूर्व की ओर क्रमश मोनपा , डफ्फला , अबर , मिशमी , निशी और नागा जनजातियाँ निवास करती हैं ।
❇️ भारत की उत्तर तथा उत्तर पूर्वी पर्वतमाला का विवरण :-
🔹 उत्तर तथा उत्तर पूर्वी पर्वतमाला में हिमालय पर्वत और उत्तर पूर्वी पहाड़ियां शामिल हैं । इन पर्वतमालाओं की उत्पत्ति विवर्तनिक हलचलों से हुई है । तेज बहाव वाली नदियों से अपरदित ये पर्वत मालाएँ अभी भी युवा अवस्था में हैं ।
🔹 हिमालय पर्वत भारत के उत्तर में चाप की आकृति में पश्चिम से पूर्व की दिशा में सिन्धु और ब्रह्मपुत्र नदियों के बीच लगभग 2500 कि.मी. तक फैला है । इसकी चौड़ाई 160 से 400 कि.मी. तक है ।
🔹 मिजोरम , नागालैंड और मणिपुर में ये पहाड़ियां उत्तर दक्षिण दिशा में फैली हैं । ये पहाड़ियां उत्तर पटकोई बुम , नागा पहाड़ियां , मणिपुर पहाड़ियां और दक्षिण में मिजो या लुसाई पहाड़ियों के नाम से जानी जाती हैं ।
🔹 हिमालय पर्वत की समानान्तर रूप में फैली हुई तीन पर्वत श्रेणियां हैं :-
🔶 वृहत् हिमालय :- यह हिमालय की सबसे ऊंची श्रेणी है । अधिक ऊंचाई होने के कारण यह सदा बर्फ से ढ़की रहती है ।
🔶 मध्य हिमालय अथवा लघु हिमालय :- यह वृहत हिमालय के दक्षिण से लगभग उसके समानान्तर पूर्व से पश्चिम दिशा में फैली है । भारत के अधिकांश स्वास्थ्यवर्धक स्थान लघु हिमालय की दक्षिण ढलानों पर ही स्थित है । धर्मशाला , शिमला , डलहौजी , मसूरी , नैनीताल , दार्जिलींग आदि ऐसे ही स्थान हैं ।
🔶 शिवालिक श्रेणी :- यह मध्य हिमालय के दक्षिण में उसके समानान्तर फैली है । यह हिमालय पर्वत श्रृंखला की अन्तिम श्रेणी है और मैदानों से जुड़ी है ।
🔹 भारतीय उपमहाद्वीप तथा मध्य एवं पूर्वी एशिया के देशों के बीच एक मजबूत दीवार के रूप में हिमालय पर्वत श्रेणी खड़ी है । हिमालय एक प्राकृतिक अवरोधक ही नहीं अपितु यह एक जलवायु विभाजक , अपवाह और सांस्कृतिक विभाजक भी है ।
❇️ पश्चिमी घाट पर्वत और पूर्वी घाट पर्वत में अन्तर :-
🔶 पश्चिमी घाट पर्वत :-
🔹 पश्चिमी घाट पर्वत उत्तर में महाराष्ट्र से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक अरब सागर के पूर्वी तट के साथ – साथ फैले हैं ।
🔹 इन्हें महाराष्ट्र तथा गोवा में सहयाद्री , कर्नाटक तथा तमिलनाडु में नीलगिरी तथा केरल में अनामलाई और इलायची की पहाड़ियों के नाम से जानते हैं ।
🔹 ये पर्वत लगातार एक श्रेणी के रूप में है । उत्तर से दक्षिण तक तीन दर्रे थालघाट , भोरघाट तथा पालघाट इसकी निरंतरता भंग करते प्रतीत होते हैं ।
🔹 इस पर्वत श्रेणी की औसत ऊंचाई लगभग 1500 मीटर है जो कि उत्तर से दक्षिण की ओर बढ़ती जाती है ।
🔹 प्रायद्वीपीय पठार की सबसे ऊंची चोटी अनाईमुडी 2695 मीटर है जो की पश्चिमी घाट पर्वत की अनामलाई पहाड़ियों में स्थित है । अधिकांश प्रायद्वीपीय नदियों की उत्पत्ति पश्चिमी घाट से हुई है ।
🔶 पूर्वी घाट पर्वत :-
🔹 दक्कन पठार की पूर्वी सीमा पर पूर्वी घाट के पर्वत , महानदी की घाटी से लेकर दक्षिण में नीलगिरी तक फैले हैं ।
🔹 पूर्वी घाट की मुख्य श्रेणियां जावादी पहाड़ियाँ , पालकोंडा श्रेणी , नल्लामाला पहाड़ियां और महेन्द्रगिरी पहाड़ियां हैं ।
🔹 पूर्वी घाट की श्रेणी लगातार नहीं है । कई बड़ी नदियों ने इन्हें काटकर अपने मार्ग बना लिए हैं ।
🔹 इस पर्वत श्रेणी की औसत ऊंचाई लगभग 600 मीटर है नदियों द्वारा अपदरित होने के कारण अवशिष्ट श्रृंखला ही शेष है ।
🔹 पूर्वी और पश्चिमी घाट के पर्वत नीलगिरी पहाड़ियों में आपस में मिलते हैं । इस श्रेणी से कोई बड़ी नदी नहीं निकलती है ।