मृदा (Soils) || 11th Class Geography Ch-6 (Book-2) || Notes In Hindi

मृदा

(Soils)

 


❇️ मृदा :-

🔹 मृदा प्रकृति का एक मूल्यवान ( संसाधन ) है । यह भू – पर्पटी की सबसे महत्वपूर्ण पर है ।

🔹 मृदा भू – पृष्ठ का वह उपरी भाग है , जो चट्टानों के टूटे – फुटे बारीक कणों तथा वनस्पति के सड़े – गले अंशों के मिश्रण से जलवायु व जैव – रासायनिक प्रक्रिया से बनती है । 

❇️ मृदा का निर्माण :-

🔹 मृदा का निर्माण – मृदा के निर्माण की प्रक्रिया बहुत जटिल है । मृदा निर्माण को प्रभावित करने वाले कारक हैं : 

🔶 जनक सामग्री अथवा मूल पदार्थ :- मृदा का निर्माण करने वाला मूल पदार्थ चट्टानों से प्राप्त होते हैं । चट्टानों के टूटने – फूटने से ही मृदा का निर्माण होता है । 

🔶 उच्चावच :- मृदा निर्माण की प्रक्रिया में उच्चावच का महत्वपूर्ण स्थान है । तीव्र ढाल वाले क्षेत्रों में जल प्रवाह की गति तेज़ होती है और मृदा के निर्माण में बाधा आती है । कम उच्चावच वाले क्षेत्रों में निक्षेप अधिक होता है । और मृदा की परत मोटी हो जाती है । 

🔶 जलवायु :- जलवायु के विभिन्न तत्व विशेषकर तापमान तथा वर्षा में पाए जाने वाले विशाल प्रादेशिक अन्तर के कारण विभिन्न प्रकार की मृदाओं का जन्म हुआ है ।

🔶 प्राकृतिक वनस्पति :- किसी भी प्रदेश में मृदा निर्माण की वास्तविक प्रक्रिया तथा इसका विकास वनस्पति की वृद्धि के साथ ही आरंभ होता है ।

🔶 समय :- मृदा की छोटी सी परत के निर्माण में कई हज़ार वर्ष लग जाते हैं ।

❇️ मृदा के प्रकार :-

🔹 जलोढ़ मृदा

🔹 लैटराइट मृदा

🔹 काली मृदा 

🔹लाल / पीली मृदा 

🔹 शुष्क मृदा

🔹 लवण मृदा

❇️ जलोढ़ मृदा :-

🔹 उत्तर भारत का विशाल मैदान इसी मृदा से बना है ।

🔹 जल + ओढ़ = जल अपने साथ कुछ कण लाएगा ।

🔹 अवसाद + गाद + कंकड़ + बजरी + पत्थर + जैविक पदार्थ = जलोढ़ मृदा ।

🔹 भारत में सबसे अधिक पाई जाती है ।

🔹 यह मृदा नदियों द्वारा बहाकर लाए गए अवसादों से बनती है ।

🔹सबसे उपजाऊ ।

🔹 नदी घाटियों , डेल्टाई क्षेत्रों तथा तटीय मैदानों में पाई जाती है ।

🔹 इसमें पोटाश की मात्रा अधिक और फॉस्फोरस की मात्रा कम होती है ।

🔹इस मृदा का रंग हलके धूसर से राख धूसर ( Gray ) जैसा होता है ।

🔹यह भारत में गंगा – ब्रहमपुत्र मैदानों में पाई जाती ।

❇️ काली मृदा :-

🔹 इसका निर्माण ज्वालामुखी क्रियाओं से प्राप्त लावा से होता है ।

🔹 इसे रेगड़ मिटटी भी कहते हैं ।

🔹 यह एक उपजाऊ मृदा है ।

🔹इसमें कपास की खेती होती है इसलिए इसे कपास मृदा भी कहा जाता है ।

🔹 इसमें चूना , लौह , मैग्नीशियम तथा अल्यूमिना जैसे तत्व अधिक पाए जाते हैं तथा फॉस्फोरस , नाइट्रोजन तथा जैविक तत्वों की कमी होती है । 

🔹क्षेत्र : दक्कन के पठार का अधिकतर भाग महाराष्ट्र के कुछ भाग , गुजरात , आंध्रप्रदेश तथा तमिलनाडु के कुछ भाग।

🔹 ये मृदा गीली होने पर फूल जाती है तथा चिपचिपी हो जाती है ।

❇️  लाल / पीली मृदा :-

🔹 इस मृदा का रंग लाल होता है ।

🔹 यह मृदा अधिक उपजाऊ नहीं होती ।

🔹 इसमें नाइट्रोजन , जैविक पदार्थ तथा फास्फोरिक एसिड की कमी होती है ।

🔹जलयोजित होने के कारण यह पीली दिखाई देती है ।

🔹 यह मृदा दक्षिणी पठार के पूर्वी भाग में पाई जाती है ।

🔹 क्षेत्र :- ओडिशा , छत्तीसगढ़ के कुछ भाग , मध्य गंगा के मैदान ।

🔹 महीन कणों वाली लाल और पीली मृदा उर्वर होती हैं । 

🔹 मोटे कणों वाली उच्च भूमि की मृदाएँ अनुर्वर होती हैं ।

❇️  लैटराइट मृदा :-

🔹 लैटेराइट एक लैटिन शब्द ‘ लेटर ‘ से बना है ।

🔹 शाब्दिक अर्थ – ईंट 

🔹 क्षेत्र : उच्च तापमान और भारी वर्षा के क्षेत्र ।

🔹 इसका निर्माण मानसूनी जलवायु में शुष्क तथा आद्र मौसम के क्रमिक परिवर्तन के कारण होने वाली निक्षालन प्रक्रिया से हुआ है ।

🔹यह मृदा उपजाऊ नहीं होती ।

🔹 इसमें नाइट्रोजन , चूना , फॉस्फोरस तथा मैग्नीशियम की मात्रा कम होती है । 

🔹 यह मृदा पश्चिमी तट , तमिलनाडु , आंध्रप्रदेश , उड़ीसा , असम के पर्वतीय क्षेत्र तथा राजमहल की पहाड़ियों में मिलती है ।

🔹 मकान बनाने के लिए लैटेराइट मृदाओं का प्रयोग ईंटे बनाने में किया जाता है ।

❇️ शुष्क मृदा :-

🔹 इसका रंग लाल से लेकर किशमिश जैसा होता है ।

🔹 यह बलुई और लवणीय होती है ।

🔹 कुछ क्षेत्रों की मृदाओं में नमक की मात्रा इतनी अधिक होती है की इनके पानी को वाष्पीकृत करके नमक प्राप्त किया जा सकता है ।

🔹 शुष्क जलवायु , उच्च तापमान और तीव्र वाष्पीकरण के कारण इन मृदाओं में नर्मी और ह्यूमस की कमी होती है ।

🔹 ये मृदाएँ अनुर्वर हैं क्योंकि इनमे ह्यूमस तथा जैविक पदार्थ कम मात्रा में पाए जाते हैं ।

🔹 नीचे की ओर चूने की मात्रा बढ़ने के कारण निचले संस्तरों में कंकड़ की परतें पाई जाती हैं ।

🔹 मृदा के तली संस्तर में कंकडों की परतें बनने के कारण पानी का रिसाव सीमित हो जाता है ।

🔹 इसलिए सिंचाई किए जाने पर इन मृदाओं में पौधों की सतत वृद्धि के लिए नमी हमेशा बनी रहती है ।

🔹 ये मृदाएँ विशिष्ट शुष्क स्थलाकृति वाले पश्चिमी राजस्थान में विकसित हुई है ।

❇️ लवण मृदा :-

🔹 शुष्क और अर्धशुष्क तथा जलाक्रांत क्षेत्रों और अनूपों में पाई जाती है ।

🔹 इनकी संरचना बलुई से लेकर दुमटी तक होती है ।

🔹 इन्हें ऊसर मृदा भी कहते हैं ।

🔹 सोडियम , पोटैशियम , मैग्नीशियम अधिक अनुर्वर और किसी भी प्रकार की वनस्पति नहीं उगती ।

🔹 शुष्क जलवायु और ख़राब अपवाह के कारण इनमे लवणों की मात्रा बढ़ जाती है ।

🔹 कच्छ के रन में दक्षिणी – पश्चिमी मानसून के साथ नमक के कण आते हैं जो एक पपड़ी के रूप में ऊपरी सतह पर जमा हो जाते हैं ।

🔹 डेल्टा प्रदेश में समुद्री जल के भर जाने से लवण मृदाओं के विकास को बढ़ावा मिलता है ।

🔹 अत्यधिक सिंचाई वाले गहन कृषि क्षेत्रों में विशेष रूप से हरित क्रान्ति वाले क्षेत्रों में उपजाऊ जलोढ़ मृदाएँ भी लवणीय होती जा रही हैं ।

❇️ मृदा अवकर्षण :-

🔹 मृदा की उर्वरता का ह्रास ।

🔹 इसमें मृदा का पोषण स्तर गिर जाता है ।

🔹 अपरदन और दुरुपयोग के कारण मृदा की गहराई कम हो जाती है ।

🔹 भारत में मृदा संसाधनों के क्षय का मुख्य कारक मृदा अवकर्षण है ।

❇️ मृदा अपरदन :-

🔹 प्राकृतिक तथा मानवीस कारणों से मृदा के आवरण का नष्ट होना मृदा अपरदन कहलाता है । 

🔹 मृदा अपरदन के कारक के आधार पर इसे पवनकृत एवं जल जनित द्वारा अपरदन में वर्गीकृत कर सकते हैं । पवन द्वारा अपरदन शुष्क एवं अर्द्धशुष्क प्रदेशों में होता है जबकि बहते जल द्वारा अपरदन ढालों पर अधिक होता है इसे हम पुनः दो वर्गों में रखते हैं :-

🔶 परत अपरदन :- तेज बारिश के बाद मृदा की परत का हटना ।

🔶 अवनालिका अपरदन :- तीव्र ढालों पर बहते जल से गहरी नालियां बन जाती है । चंबल के बीहड़ इसका उदाहरण है ।

❇️ मृदा अपरदन के प्रमुख कारण :-

🔹  वनोन्मूलन 

🔹 अतिसिंचाई 

🔹 रासायनिक उर्वरकों का अधिक प्रयोग 

🔹मानव द्वारा निर्माण कार्य एवं दोषपूर्ण कृषि पद्धति । 

🔹 अनियंत्रित चराई । 

🔹 वृक्षारोपण ।

🔹 समोच्च रेखीय जुताई ।

🔹 अति चराई पर नियन्त्रण ।

🔹सीमित सिंचाई ।

🔹 रासायनिक उर्वरकों का उचित प्रयोग ।

🔹 वैज्ञानिक कृषि पद्धति को अपनाना ।

❇️ मृदा संरक्षण :-

🔹 मृदा अपरदन को रोककर उसकी उर्वरता को बनाये रखना ही मृदा संरक्षण है ।

❇️ मृदा के संरक्षण को सुनिश्चित करने के लिए क्या करना चाहिये ?

🔹 मृदा संरक्षण के उपाय :-

🔶 15 से 25 प्रतिशत ढाल प्रवणता वाली भूमि पर खेती न करना । 

🔶 सीढ़ीदार खेत बनाना ।

🔶 शस्यावर्तन यानि फसलों को हेरफेर के साथ उगाना ।

❇️ मृदा संरक्षण के उपाय :-

🔹  वृक्षारोपण पेड़ :- पौधे , झाड़ियाँ और घास मृदा अपरदन को रोकने में सहायता करते है । 

🔹  समोच्च रेखीय जुताई व मेड़बंदी :- तीव्र ढाल वाली भूमि पर समोच्च रेखाओं के अनुसार जुताई व मेड़ बनाने से पानी के बहाव में रुकावट आती है तथा मृदा पानी के साथ नहीं बहती ।

🔹 पशुचारण पर नियंत्रण :- भारत में पशुओं की संख्या अधिक होने के कारण ये खाली खेतों में आजाद घूमते हैं । इनकी चराई प्रक्रिया को रोककर या नियंत्रित करके मृदा के अपरदन को रोका जा सकता है ।

🔹 कृषि के सही तरीके :- कृषि के सही तरीके अपनाकर मृदा अपरदन को रोका जा सकता है ।




इतिहास विश्व इतिहास के कुछ विषय

Chapter 1: - समय की शुरुआत से (From the Beginning of Time)

Chapter 2: - लेखन कला और शहरी जीवन (Writing and City Life)

Chapter 3: - तीन महाद्वीपों में फैला हुआ साम्राज्य (An Empire Across Three Continents)

Chapter 4:- इस्लाम का उदय और विस्तार (The Central Islamic Lands )

Chapter 5:- यायावर साम्राज्य (Nomadic Empires)

Chapter 6:- तीन वर्ग (The Three Orders)

Chapter 7:- बदलती हुई सांस्कृतिक परम्पराएँ (Changing Cultural Traditions)

Chapter 8:- संस्कृतियों का टकराव (Confrontation of Cultures)

Chapter 9:- औद्योगिक क्रांति (The Industrial Revolution)

Chapter 10:- मूल निवासियों का विस्थापन (Displacing Indigenous Peoples)

Chapter 11:- आधुनिकीकरण के रास्ते (Paths to Modernization)

राजनीति विज्ञान  भारत का संविधान : सिद्धांत और व्यवहार

Chapter 1:- संविधान क्यों और कैसे (Constitution because and how)

Chapter 2:- भारतीय संविधान में अधिकार (Rights in the Indian Constitution)

Chapter 3:- चुनाव और प्रतिनिधि (Election and Representative)

Chapter 4:- कार्यपालिका (Executive)

Chapter 5:- विधायिका (Legislature)

Chapter 6:- न्यायपालिका (Judiciary)

Chapter 7:- संघवाद (Federalism)

Chapter 8:- स्थानीय शासन (Local Government)

Chapter 9:- संविधान एक जीवंत दस्तावेज़ (Constitution a living document)

Chapter10:- संविधान का राजनितिक दर्शन (Political Philosophy of the Constitution)

 

 

- राजनितिक सिद्धांत

Chapter 1:- राजनीतिक सिद्धांत एक परिचय (Political Theory - An Introduction)

Chapter 2:- स्वतंत्रता (Freedom)

Chapter 3:- समानता (Equality)

Chapter 4:- सामाजिक न्याय (Social justice)

Chapter 5:- अधिकार (Rights)

Chapter 6:- नागरिकता (Citizenship)

Chapter 7:- राष्ट्रवाद (Nationalism)

Chapter 8:- धर्मनिरपेक्षता (Secularism)

Chapter 9:- शांति (Peace)

Chapter 10:- विकास (Development)

 

 

भूगोल   भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत

Chapter 1:- भूगोल एक विषय के रूप में (Geography as A Discipline)

Chapter 2:- पृथ्वी की उत्पत्ति एंव विकास (The Origin and Evolution of the Earth)

Chapter 3:- पृथ्वी की आन्तरिक संरचना (Interior of the Earth)

Chapter 4:- महासागरों और महाद्वीपों का वितरण (Distribution of Oceans and Continents)

Chapter 5:- खनिज एंव शैल (Minerals and Rocks)

Chapter 6:- आकृतिक प्रक्रियाएँ (Geomorphic Processes)

Chapter 7:- भू आकृतियाँ तथा उनका विकास (Landforms and their Evolution)

Chapter 8:- वायुमण्डल का संघटन एवं संरचना (Composition and Structure of Atmosphere)

Chapter 9:- सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान (Solar Radiation , Heat Balance and Temperature)

Chapter 10:- वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसमी प्रणालियाँ (Atmospheric Circulation and Seasonal Systems)

Chapter 11:- वायुमंडल में जल (Water in the Atmosphere)

Chapter 12:- विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन (World Climate and Climate Change)

Chapter 13:- महासागरीय जल (Ocean Water)

Chapter 14:- महासागरीय जल संचलन (Movements of Ocean Water)

Chapter 15:- पृथ्वी पर जीवन (Life on the Earth)

Chapter 16:- जैव विविधता एवं संरक्षण (Biodiversity and Conservation)

 

 

 भारत : भौतिक पर्यावरण

Chapter 1:- भारत स्थिति (India - Location)

Chapter 2:- संरचना तथा भू - आकृति विज्ञान (Structure and Physiography)

Chapter 3:- अपवाह तंत्र (Drainage System)

Chapter 4:- जलवायु (Climate)

Chapter 5:- प्राकृतिक वनस्पति (Natural Vegetation)

Chapter 6:- मृदा (Soils)

Chapter 7:- प्राकृतिक आपदाएं और संकट (Natural Hazards and Disaster)

 

 

 

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