पृथ्वी की उत्पत्ति एंव विकास
(The Origin and Evolution of the Earth)
❇️ पृथ्वी :-
🔹 पृथ्वी , जिसे मानव का निवास स्थान माना जाता है मानव के साथ – साथ समस्त सजीव – निर्जीव घटकों का भी निवास स्थान है ।
❇️ पृथ्वी की उत्पत्ति कैसे हुई ?
🔹 यह प्रश्न वैज्ञानिकों के लिए सदा से चिन्तन का विषय रहा है । यह अध्याय पृथ्वी ही नहीं वरन् ब्रह्मांड एवं इसके सभी खगोलीय पिंडो की निर्माण प्रक्रिया का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करता है । इस अध्याय को प्रश्नों के माध्यम से जानना एक नया अनुभव होगा ।
❇️ पृथ्वी के विकास अवस्था :-
🔹 प्रारंभ में हमारी पृथ्वी चट्टानी गर्म तथा विरान थी । इसका वायुमण्डल भी बहुत ही विरल था , जिसकी रचना हाइड्रोजन तथा हीलयम गैसों से हुई थी । कालांतर में कुछ ऐसी घटनाएँ घटी , जिनके कारण पृथ्वी सुन्दर बन गई और इसपर जल तथा जीवन के लिए अनुकूल परिस्थितियों विकसित हुई ।
🔹 पृथ्वी पर जीवन आज से लगभग 460 करोड़ वर्ष पूर्व विकसित हुआ । पृथ्वी की संरचना परतदार है , जिसमें वायुमण्डल की बाहरी सीमा से पृथ्वी के केन्द्र तक प्रत्येक परत की रचना एक – दूसरे से भिन्न है । कालांतर में स्थलमण्डल तथा वायुमण्डल की रचना हुई । पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति इसके निर्माण के अन्तिम चरण में हुई ।
❇️ पृथ्वी पर वायुमण्डल का विकास :-
🔹 पृथ्वी पर वायुमण्डल के विकास की तीन अवस्थाएं हैं ।
🔸 पहली अवस्था में सौर पवन के कारण हाइड्रोजन व हीलियम पृथ्वी से दूर हो गयी ।
🔸 दूसरी अवस्था में पृथ्वी के ठंडा होने व विभेदन के दौरान पृथ्वी के अंदर से बहुत सी गैसें व जलवाष्प बाहर निकले जिसमें जलवाष्प , नाइट्रोजन , कार्बन – डाई – आक्साइड , मीथेन व अमोनिया अधिक मात्रा में निकलीं , किंतु स्वतन्त्र ऑक्सीजन बहुत कम थी ।
🔸 तीसरी अवस्था में पृथ्वी पर लगातार ज्वालामुखी विस्फोट हो रहे थे जिसके कारण वाष्प एंव गैसें बढ़ रही थीं । यह जलवाष्प संघनित होकर वर्षा के रूप में परिवर्तित हुयी जिससे पृथ्वी पर महासागर बने एंव उनमें जीवन विकसित हुआ । जीवन विकसित होने के पश्चात् संश्लेषण की प्रक्रिया तीव्र हुई एंव पृथ्वी के वायुमंडल में ऑक्सीजन की अधिकता हई ।
❇️ पृथ्वी की उत्पत्ति से सम्बन्धित प्रारम्भिक संकल्पनायें :-
🔹 पृथ्वी की उत्पत्ति से सम्बधित प्रमुख प्राचीन संकल्पनायें निम्नलिखित थी :-
🔶 नीहारिका परिकल्पना :- इस परिकल्पना के जनक इमैनुअल कान्ट थे । इनके अनुसार गैस एंव अन्य पदार्थो के घूमते हुए बादल से ग्रहों की उत्पत्ति हुई ।
🔶 लाप्लेस ने इस परिकल्पना में सुधार करते हुए कहा कि घूमती हुई नेबुला के कोणीय संवेग बढ़ जाने से नेबुल संकुचित हो गयी और उसका बाहरी भाग छल्लों के रूप में बाहर निकला जो बाद में ग्रहों में परिवर्तित हो गया ।
🔶 चेम्बरलेन एवं मोल्टन के अनुसार सूर्य के पास से एक अन्य तारा तीव्र गति से गुजरा । जिसके गुरूत्वीय बल के कारण सूर्य की सतह से सिगार के आकार का एक टुकड़ा अलग हो गया , कालान्तर में उसी टुकड़े से ग्रहों का निर्माण हुआ ।
❇️ पृथ्वी के भू – वैज्ञानिक कालक्रम का विभाजन :-
🔹 पृथ्वी के भू – वैज्ञानिक काल क्रम को वृहत , मध्यम व लघुस्तरों में विभाजित किया गया है जोकि इस प्रकार है :-
🔶 इयान ( Eons ):- इयान सबसे बड़ी और युग सबसे छोटी अवधि है । पृथ्वी की उत्पत्ति से अब तक पृथ्वी के भू – वैज्ञानिक इतिहास को चार इयान में विभक्त किया गया है । वर्तमान इयान फेनेरोजॉईक ( Phanerozoic ) इयान कहलाता है ।
🔹 इस इयान को तीन महाकल्पों में बांटा गया है ।
पुराजीवी महाकल्प
मध्य जीवी महाकल्प
नवजीवी महाकल्प
🔶 महाकल्प ( Era )
🔶 कल्प ( Period )
🔶युग ( Epoch )
🔹 उक्त महाकल्पों को कल्पों में तथा कल्पों को और छोटी अवधि युगों मे विभक्त किया गया है ।
❇️ नीहारिका :-
🔹 नीहारिका या नेबुला से तात्पर्य गैस एवं धूल तथा अन्य पदार्थों के घूमते हुए बादल से है ।
❇️ क्षुद्रग्रह :-
🔹 सौरमंडल मे बाह्यग्रहों एंव पार्थिव ग्रहों के बीच में लाखों छोटे पिंडो की एक पट्टी है उन्हें क्षुद्र ग्रह कहते हैं ।
❇️ वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी की आयु कितनी है ?
🔹 4.6 अरब वर्ष ।
❇️ बिग बैंग सिद्धान्त :-
🔹 ‘ बिग बैंग सिद्धान्त ‘ ब्रह्मांड की उत्पत्ति संबंधी सर्वमान्य सिद्धान्त है । बिग बैंग सिद्धान्त के अंतर्गत ब्रह्मांड का विस्तार निम्नलिखित अवस्थाओं में हुआ है
❇️ बिग बैंग सिद्धान्त के अनुसार ब्रहमांड के विकास की तीन अवस्थाए :-
🔹 आज ब्रह्मांड जिन पदार्थों से बना है वह समस्त पदार्थ एकाकी परमाणु के रूप में स्थित था जिसका आयतन अत्याधिक सूक्ष्म एंव घनत्व बहुत ही अधिक था ।
🔹 परमाणु में अत्याधिक ऊर्जा संचित हो जाने के कारण इसमें विस्फोट हुआ एंव विस्फोट के एक सेकंड के अन्दर ही ब्रह्मांड का विस्तार हुआ ।
🔹 बिग बैंग से 3 लाख वर्षों के दौरान , तापमान 4500 ° केल्विन तक कम हो गया एंव परमाणवीय पदार्थों का निर्माण हुआ ।
❇️ ग्रहों का निर्माण :-
🔹 वैज्ञानिकों द्वारा ग्रहों के निर्माण की तीन अवस्थाएं मानी गई हैं :-
🔸 ग्रहों का निर्माण तारों से हुआ है । गुरुत्वाकर्षण बल के परिणामस्वरूप आरंभ में क्रोड का निर्माण हुआ , जिसके चारों ओर गैस और धूलकणों की चक्कर लगाती हुई एक तश्तरी विकसित हो गई ।
🔸 दूसरी अवस्था में गैसीय बादल के संघनन के कारण क्रोड के आस पास का पदार्थ छोटे गोलाकार पिंडों के रूप में विकसित हो गया । जिन्हें ग्रहाणु कहा गया ।
🔸 बाद में बढ़ते गुरूत्वाकर्षण के कारण ये ग्रहाणु आपस में जुड़ कर बड़े पिंडों का रूप धारण कर गए । यह ग्रह निर्माण की तीसरी और अन्तिम अवस्था मानी जाती है ।
❇️ पार्थिव ग्रहों एवं बाह्य ग्रहों में अन्तर :-
🔹 पार्थिव ग्रह जनक तारे के समीप थे अतः अधिक तापमान के कारण वहाँ गैसें संघनित नहीं हो पायीं जबकि जोवियन ग्रह दूर होने के कारण वहाँ गैसें संघनित हो गयीं ।
🔹 सौर वायु के प्रभाव से पार्थिव ग्रहों के गैस व धूलकण उड़ गये किन्तु जोवियन ग्रहों की गैसों को सौर पवन नहीं हटा पायी ।
🔹 पार्थिव ग्रह छोटे थे एवं इनमें गुरुत्वाकर्षण शक्ति कम थी अतः इन पर सौर पवनों के प्रभाव से गैसे रूकी नहीं । जबकि जोवियन ग्रह भारी थे तथा दूर होने के कारण सौर पवनों के प्रभाव से बचे रहे । अतः उन पर गैसें रूकी रहीं।
❇️ चन्द्रमा की उत्पत्ति :-
🔹 चन्द्रमा की उत्पत्ति एक बड़े टकराव का परिणाम है जिसे ‘ द बिग स्प्लैट ‘ कहा जाता है । यह घटना लगभग 4,44 अरब वर्ष पहले हुई थी ।
❇️ चन्द्रमा की उत्पत्ति से सम्बन्धित द बिग स्प्लैट सिद्धान्त :-
🔹 इस सिद्धान्त के अन्तर्गत यह माना जाता है कि पृथ्वी के बनने के कुछ समय बाद ही मंगल ग्रह से तीन गुणा बड़े आकार का एक पिंड पृथ्वी से टकराया । इस टकराव से पृथ्वी का एक हिस्सा टूटकर अंतरिक्ष में बिखर गया । यही पदार्थ चन्द्रमा के रूप में पृथ्वी का चक्कर लगाने लगा । यह घटना 4.44 अरब वर्ष पहले हुई थी ।
❇️ स्थलमंडल के विकास में विभेदन प्रक्रिया का योगदान :-
🔹 हल्के व भारी घनत्व वाले पदार्थों के पृथक होने की प्रक्रिया को विभेदन कहा जाता है । पृथ्वी की उत्पत्ति के दौरान अत्यधिक ताप के कारण पृथ्वी के पदार्थ द्रव अवस्था में हो गये जिसके फलस्परूप हल्के एंव भारी घनत्व का एक मिश्रण तैयार हो गया । घनत्व के अंतर के कारण भारी पदार्थ पृथ्वी के केन्द्र में चले गये एंव हल्के पदार्थ पृथ्वी की सतह या ऊपरी भाग की तरफ आ गये । समय के साथ ये पदार्थ ठंडे हुए और ठोस रूप में भूपर्पटी के रूप में विकसित हुए ।
❇️ पृथ्वी से देखने पर चन्द्रमा का सदैव एक ही भाग दिखाई देता है । क्यों ?
🔹 जब हम चन्द्रमा को पृथ्वी से देखते हैं तब उसका एक ही भाग अथवा एक ही रूप दिखाई देता है क्योंकि चन्द्रमा की घूर्णन अवधि व परिक्रमण अवधि समान है इसलिए हम चन्द्रमा का एक ही भाग देख पाते हैं ।
❇️ प्रकाशवर्ष ( Lightyear ) :-
🔹 प्रकाशवर्ष समय का नहीं वरन् दूरी का माप है । प्रकाश की गति लगभग 3 लाख कि.मी. प्रति सेकेण्ड है । एक साल में प्रकाश जितनी दूरी तय करेगा , वह एक प्रकाशवर्ष होगा । यह 9.461 x 10 कि.मी. के बराबर है । पृथ्वी और सूर्य की औसत दूरी 14 करोड़ 95 लाख 98 हजार किलोमीटर है । प्रकाशवर्ष के सन्दर्भ में यह दूरी केवल 8.311 मिनट है ।
❇️ चन्द्रमा के संबंध में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य :-
🔹 चन्द्रमा का व्यास 3475 किलोमीटर है ।
🔹 पृथ्वी से चन्द्रमा की औसत दूरी -3,84,000 किलोमीटर है ।
🔹 चन्द्रमा का धरातलीय तापमान – दिन के समय 127 ° से . तथा रात में -163 ° से .
🔹 चन्द्रमा की घूर्णन व परिक्रमण अवधि -27¹/₂ दिन है ।
🔹 चन्द्रमा का द्रव्यमान , पृथ्वी के द्रव्यमान का 1/81 है ।
🔹 चन्द्रमा का गुरुत्वबल , पृथ्वी के गुरुत्व बल का 1 / 6 वाँ भाग है ।
🔹 ऐसा माना जाता है चन्द्रमा का निर्माण उसी पदार्थ से हुआ है जो ‘ द स्प्लैट ‘ घटना के परिणाम स्वरूप प्रषांत क्षेत्र से छिटक गया था जो कि अब प्रषांत महासागरीय गर्त के रूप में विराजमान है ।