महासागरीय जल (Ocean Water) || 11th Class Geography Ch-13 (Book-1) || Notes In Hindi

 महासागरीय जल

(Ocean Water)




❇️ पृथ्वी को नीला ग्रह क्यों कहा जाता है ? 

🔹 पृथ्वी के कुल क्षेत्रफल के 71 प्रतिशत भाग पर महासागरों का विस्तार हैं । अंतरिक्ष से देखने पर यह नीली दिखाई देती है इसलिए इसे नीला ग्रह कहते हैं ।

❇️ जल चक्र :-

🔹 जल चक्र करोड़ों वर्षों से पृथ्वी पर कार्यरत एक चक्र है । इसमें जल अपनी अवस्था और स्थान निरंतर बदलता रहता है और चक्र के रूप में महासागर से धरातल पर और धरातल से वापस महासागर में पहुंचता है ।

🔹 महासागरों के तल से जल का वाष्पीकरण होता है जिससे बादलों का निर्माण होता है । वायुमंडल में उपस्थित जलवाष्प संघनित होकर धरती पर वर्षण के रूप में आती है । 

🔹 यही जल नदियों के रास्ते वापस महासागर में पहुंच जाता है । जल के इसी चक्र को जल चक्र कहा जाता है । इस प्रकार जल चक्र स्थल मंडल , जल मंडल और वायुमंडल को एक दूसरे से जोड़े रहता है ।

❇️ जल चक्र की गणितीय विधि :-

🔹 RF = RO + ET , यहाँ RF- सभी प्रकार का वर्षा जल , RO = Run off जो पृथ्वी द्वारा सोखा नहीं जाता , ET = Estimated Time

❇️ महासागरीय खाइयाँ अथवा गर्त :-

🔹 महासागरीय नितल पर स्थित तीव्र ढाल वाले लम्बे , पतले और गहरे अवनमन को खाई या गर्त कहते हैं । विश्व के सबसे गहरे गर्त का नाम मेरीआना गर्त है इसकी गहराई 11033 मीटर है । जो प्रशान्त महासागर में है । 

❇️ महाद्वीपीय सीमांत :-

🔹 समुद्र में डूबी महाद्वीपों की बाहय सीमा को महाद्वीपीय सीमांत कहते हैं ।

❇️ उर्ध्वपातन ( Sublimation ) :-

🔹 किसी पदार्थ का ठोस अवस्था से सीधे गैसीय अवस्था में परिवर्तित होना उर्ध्वपातन ( Sublimation ) कहलाता है । जैसे जलवाष्प का सीधे हिमकणों में बदलना ।

❇️ महाद्वीपीय मग्नतट ( Continental Shelf ) :-

🔹 मग्नतट महाद्वीपों के वे भाग हैं , जो समुद्र में डूबे हुए हैं , महाद्वीपीय मग्नतट कहलाते हैं । इसकी अधिकतम गहराई सामान्यतः 200 मी तथा ढलान सामान्य होता है इसकी चौडाई इसके ढाल पर निर्भर करती है । परिणामस्वरूप इसकी चौड़ाई कुछ किलोमीटर से लेकर 1000 कि . मी . तक हो सकती है । फिर भी इसकी औसत चौडाई 80 कि . मी . होती है । महाद्वीपीय शेल्फ तीव्र ढाल पर समाप्त होती है जिसे शेल्फ अवकाश कहते हैं।

❇️ गम्भीर सागरीय मैदान :-

🔹 महाद्वीपीय ढाल समाप्त होते ही ढाल मन्द पड़ जाता है और गम्भीर सागरीय मैदान शुरू हो जाता है जिसे नितल मैदान कहते हैं । यह एक विस्तृत समतल क्षेत्र होता है जिसका ढाल 1 ° अंश से भी कम होता है । महासागरों की तली का लगभग 40 प्रतिशत भाग इन्ही मैदानों से घिरा हुआ है । ये लगभग सभी महासागरों और बहुत से समुद्रों में उपस्थित हैं । इनकी गहराई 3000-6000 मी . तक होती है । ये मैदान महीन कणों वाले अवसादों जैसे मृत्तिका व गाद से ढके रहते हैं ।

❇️ नितल पहाड़ियाँ ( Sea Mount ) :-

🔹 महासागरीय नितल पर हजारों की संख्या में ऐसी पहाड़ियाँ पाई जाती हैं जो समुद्र के जल में डूबी हुई हैं जिनका शिखर नितल से 1000 मीटर से अधिक ऊपर उठा हुआ है उन्हें समुद्री पर्वत अथवा नितल पहाड़ियाँ कहते हैं । 

🔹 जबकि सपाट शीर्ष वाले पर्वतों को गाईआट Guyot कहते हैं इन सभी आकृतियों का निर्माण ज्वालामुखी प्रक्रिया द्वारा होता है सबसे अधिक नितल पहाड़ियाँ प्रशांत महासागर में है ।

❇️ जलमग्न कैनियन Sub – marine Canyon :-

🔹 महासागरीय नितल पर जलमग्न तीव्र ढालों वाली गहरी तथा संकरी अथवा गहरे गाों को जलमग्न केनियन कहते हैं ये महाद्वीपीय मग्नढाल तथा गम्भीर सागरीय मैदान पर अधिक पाए जाते हैं । 

🔹 शेयर्ड तथा बेयर्ड के अनुसार विश्व में 102 केनियन हैं । सबसे अधिक कैनियन प्रशांत महासागर में पाए जाते हैं । संसार के सबसे लम्बे जलमग्न कैनियन बेरिंग सागर में बेरिंग , प्रिविलाफ तथा जेमचुग पाये जाते हैं विश्व का सबसे प्रसिद्ध कैनियन हडसन कैनियन है जो हडसन नदी के मुहाने से शुरू होकर अटलांटिक महासागर तक चला गया है ।

❇️ महाद्वीपीय ढाल ( Continental Slop )

🔹 महासागरीय बेसिनो तथा महाद्वीपीय निमग्न तट के मध्य स्थित भाग को महाद्वीपीय ढाल कहते हैं । इसकी प्रवणता 2-5 के मध्य होती है तथा इसकी गहराई 200 से 300 मीटर के बीच होती है ।

❇️ समुद्री टीला :-

🔹 समुद्री टीला नुकीले शिखरों वाला एक पर्वत है जो समुद्री तली से ऊपर की ओर उठता है । लेकिन महासागरीय सतह तक नहीं पहुंच पाता । इसकी ऊँचाई समुद्री की तली से 3000 मीटर से 4500 मीटर तक हो सकती उदाहरण – एम्पेरर समुद्री टीला है जो प्रशांत महासागर में हवाई द्वीप समूहों का विस्तार है ।

❇️ महासागरीय जल की लवण ( Salinity ) :-

🔹 समुद्र का जल खारा होता है ऐसा उसमें उपस्थित लवणता के कारण है । इसका परिकलन 1000 ग्राम ( 1 कि . ग्रा ) समुद्री जल में घुले हुए नमक की मात्रा ( ग्राम में ) द्वारा व्यक्त किया जाता है । इसे प्रायः प्रति 1000 ग्राम या पी.पी. टी . के रूप में व्यक्त किया जाता है ।

❇️ महासागरीय जल की लवणता को प्रभावित करने वाले कारक :-

🔹 विभिन्न स्थानों पर विभिन्न मात्रा में लवणता पाई जाती है । इसको प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित है :-

🔶 जल की आपूर्ति :- ठण्डे जल में गर्म जल की अपेक्षा कम लवणता होती है । नदियों के मुहानों पर लवणता कम मिलती है ।

🔶 वाष्पीकरण की मात्रा :- ध्रुवों व उच्च अक्षांशों पर कम , जबकि कर्क एंव मकर वृत पर अधिक वाष्पीकरण होता है । जहाँ वाष्पीकरण अधिक होगा लवणता अधिक होगी । 

🔶 महासागरीय धाराएं :- ठंडी धाराओं में लवणता कम तथा गर्म धाराओं में अधिक पायी जाती हैं ।

❇️ महासागरीय जल की लवणता का क्षैतिज वितरण :-

🔹 विश्व के विभिन्न सागरों के जल में लवणता का वितरण भिन्न -2 प्रकार का है इसका वर्णन इस प्रकार से किया जा सकता है :-

🔹 खुले सागरों की लवणता :-

🔶 कर्क तथा मकर रेखा पर लवणता की मात्रा सबसे अधिक है । ( वाष्पीकरण की अधिकता के कारण )

🔶 वर्षा अधिक होने के कारण भूमध्य रेखा के निकट लवणता की मात्रा कम होती है ।

🔶 ध्रुवों के समीप लवणता की मात्रा कम पाई जाती है , ( बर्फ के समुद्र में मिलने के कारण )

❇️  महासागरों के तापमान वितरण को प्रभावित करने वाले कारक :-

🔹 पृथ्वी पर उपस्थित अन्य सभी वस्तुओं की भांति महासागरीय जल को ऊष्मा सूर्य से ही प्राप्त होती है । समुद्र का जल सौर – विकिरण से ऊष्मा प्राप्त करके गर्म होता है जिससे उसका तापमान बढ़ता है । समुद्री जल का तापमान सदा एक सा नहीं रहता है । यह समय तथा स्थान के अनुसार बदलता रहता है । 

❇️  समुद्र से नीचे जाने पर तापमान की किन परतों का सामना करेंगे ? गहराई के साथ तापमान में भिन्नता क्यों आती है ? 

🔹 समुद्र में हजारों प्रकार के जीव – जन्तु व अन्य तत्व समाहित है जोकि समुद्री तापमान के द्वारा प्रभावित होते रहते हैं जैसे – जैसे हम समुद्र की गहराई की और बढ़ते है वैसे – वैसे समुद्री तापमान में भिन्नता आती रहती है । समुद्र में नीचे जाने पर निम्नलिखित परतों का सामना होता है ।

🔶 प्रथम स्तर ( First Level ) :- यह महासागरीय जल का सबसे ऊपरी , गर्म स्तर प्रदर्शित करता है । इसकी मोटाई लगभग 500 मीटर है , यहाँ तापमान 20 ° सेल्सियस से -25 ° सेल्सियस के मध्य रहता है ।

🔶 द्वितीय स्तर ( Second Level ) :- यह थर्मोक्लाइन या ताप प्रवणता कहलाता है । इसकी विशेषता गहराई बढ़ने के साथ तीव्र गति से तापमान घटता है । इसकी मोटाई 500-1000 मीटर तक होती है ।

🔶 तृतीय स्तर ( Third Level ) :- यह स्तर बहुत अधिक ठंडा होता है तथा गम्भीर सागरीय तली तक विस्तृत होता है अंटार्कटिका वृतों में सतही जल का तापमान 0 ° से . के निकट होता है जो सतह से गम्भीर महासागरीय मैदान तक विस्तृत होती है । इसमें ऊष्मा सीधे सूर्य से प्राप्त नहीं होती है बल्कि संचलन द्वारा निचले भागों को प्राप्त होती है ।

❇️ ताप प्रवणता ( थर्मोक्लाइन ) तथा लवण प्रवणता ( हैलोक्लाइन ) में क्या अन्तर है ।

🔹 ताप प्रवणता एवं लवण प्रवणता उस स्तर का घोतक है , जहाँ तापमान व लवणता में तेजी से क्रमशः गिरावट या वृद्धि होती है । समुद्र में ये दोनों परतें 500-1000 मीटर की गहराई पर पाई जाती है । 

🔹 ताप प्रवणता परत तेजी से गिरते हुए तापमान को दिखाती है जबकि लवण प्रवणता तेजी से बढ़ती हुई लवणता को दिखलाती है । तापमान और लवणता दोनों ही समुद्री जल के घनत्व को प्रभावित करती है । जिससे महासागरीय जल का स्तरीकरण होता है । उच्च घनत्व वाला जल निम्न घनत्व वाले के नीचे चला जाता है तथा महासागरों में जल धाराओं के जन्म का कारण बनता है ।




इतिहास विश्व इतिहास के कुछ विषय

Chapter 1: - समय की शुरुआत से (From the Beginning of Time)

Chapter 2: - लेखन कला और शहरी जीवन (Writing and City Life)

Chapter 3: - तीन महाद्वीपों में फैला हुआ साम्राज्य (An Empire Across Three Continents)

Chapter 4:- इस्लाम का उदय और विस्तार (The Central Islamic Lands )

Chapter 5:- यायावर साम्राज्य (Nomadic Empires)

Chapter 6:- तीन वर्ग (The Three Orders)

Chapter 7:- बदलती हुई सांस्कृतिक परम्पराएँ (Changing Cultural Traditions)

Chapter 8:- संस्कृतियों का टकराव (Confrontation of Cultures)

Chapter 9:- औद्योगिक क्रांति (The Industrial Revolution)

Chapter 10:- मूल निवासियों का विस्थापन (Displacing Indigenous Peoples)

Chapter 11:- आधुनिकीकरण के रास्ते (Paths to Modernization)

राजनीति विज्ञान  भारत का संविधान : सिद्धांत और व्यवहार

Chapter 1:- संविधान क्यों और कैसे (Constitution because and how)

Chapter 2:- भारतीय संविधान में अधिकार (Rights in the Indian Constitution)

Chapter 3:- चुनाव और प्रतिनिधि (Election and Representative)

Chapter 4:- कार्यपालिका (Executive)

Chapter 5:- विधायिका (Legislature)

Chapter 6:- न्यायपालिका (Judiciary)

Chapter 7:- संघवाद (Federalism)

Chapter 8:- स्थानीय शासन (Local Government)

Chapter 9:- संविधान एक जीवंत दस्तावेज़ (Constitution a living document)

Chapter10:- संविधान का राजनितिक दर्शन (Political Philosophy of the Constitution)

 

 

- राजनितिक सिद्धांत

Chapter 1:- राजनीतिक सिद्धांत एक परिचय (Political Theory - An Introduction)

Chapter 2:- स्वतंत्रता (Freedom)

Chapter 3:- समानता (Equality)

Chapter 4:- सामाजिक न्याय (Social justice)

Chapter 5:- अधिकार (Rights)

Chapter 6:- नागरिकता (Citizenship)

Chapter 7:- राष्ट्रवाद (Nationalism)

Chapter 8:- धर्मनिरपेक्षता (Secularism)

Chapter 9:- शांति (Peace)

Chapter 10:- विकास (Development)

 

 

भूगोल   भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत

Chapter 1:- भूगोल एक विषय के रूप में (Geography as A Discipline)

Chapter 2:- पृथ्वी की उत्पत्ति एंव विकास (The Origin and Evolution of the Earth)

Chapter 3:- पृथ्वी की आन्तरिक संरचना (Interior of the Earth)

Chapter 4:- महासागरों और महाद्वीपों का वितरण (Distribution of Oceans and Continents)

Chapter 5:- खनिज एंव शैल (Minerals and Rocks)

Chapter 6:- आकृतिक प्रक्रियाएँ (Geomorphic Processes)

Chapter 7:- भू आकृतियाँ तथा उनका विकास (Landforms and their Evolution)

Chapter 8:- वायुमण्डल का संघटन एवं संरचना (Composition and Structure of Atmosphere)

Chapter 9:- सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान (Solar Radiation , Heat Balance and Temperature)

Chapter 10:- वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसमी प्रणालियाँ (Atmospheric Circulation and Seasonal Systems)

Chapter 11:- वायुमंडल में जल (Water in the Atmosphere)

Chapter 12:- विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन (World Climate and Climate Change)

Chapter 13:- महासागरीय जल (Ocean Water)

Chapter 14:- महासागरीय जल संचलन (Movements of Ocean Water)

Chapter 15:- पृथ्वी पर जीवन (Life on the Earth)

Chapter 16:- जैव विविधता एवं संरक्षण (Biodiversity and Conservation)

 

 

 भारत : भौतिक पर्यावरण

Chapter 1:- भारत स्थिति (India - Location)

Chapter 2:- संरचना तथा भू - आकृति विज्ञान (Structure and Physiography)

Chapter 3:- अपवाह तंत्र (Drainage System)

Chapter 4:- जलवायु (Climate)

Chapter 5:- प्राकृतिक वनस्पति (Natural Vegetation)

Chapter 6:- मृदा (Soils)

Chapter 7:- प्राकृतिक आपदाएं और संकट (Natural Hazards and Disaster)

 

 

 


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