प्राकृतिक वनस्पति
(Natural Vegetation)
❇️ परिचय :-
🔹 इस अध्याय में हम प्राकृतिक वनस्पतियों के बारे में पढ़ने वाले हैं ।
❇️ प्राकृतिक वनस्पति :-
🔹 प्राकृतिक वनस्पति में वे पौधे सम्मिलित किए जाते हैं जो मानव की प्रत्यक्ष या परोक्ष सहायता के बिना उगते हैं और जो अपने आकर , संरचना तथा अपनी आवश्यकताओं को प्राकृतिक पर्यावरण के अनुसार ढाल लेते हैं ।
❇️ प्राकृतिक वनस्पति के प्रकार :-
🔹 प्रमुख वनस्पति प्रकार तथा जलवायु परिस्थिति के आधार पर भारतीय वनों को पाँच वर्गों में रखा गया है ।
🔸 उष्ण कटिबंधीय सदाबाहर एवं अर्ध – सदाबहार वन ।
🔸 उष्ण कटिबंधीय पर्णपपती वन ।
🔸 उष्ण कटिबंधीय काँटेदार वन ।
🔸 पर्वतीय वन ।
🔸 वेलाचली व अनूप वन ।
❇️ शोलास वन :-
🔹 नीलगिरी अन्य मलाई और पालनी पहाड़ियों पर पाये जाने वाले शीतोष्ण कटिबंद को शोलास कहा जाता है ।
❇️ उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन :-
🔹 उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन आर्द्र तथा उष्ण भागों में मिलते हैं । इन क्षेत्रों में औसत वार्षिक वर्षा 200 सेमी से अधिक और सापेक्ष आर्द्रता 70 प्रतिशत से अधिक होती है औसत तापमान 24 डिग्री से . होता है । ये वन भारत में पश्चिमी घाट , उत्तर पूर्वी पहाड़ियों एवं अंडमान व निकोबार में पाये जाते हैं ।
❇️ उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन :-
🔹 ये वे वन हैं जो 100 से 200 सेमी . वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में पाये जाते हैं । इन वनों का विस्तार गंगा की मध्य एवं निचली घाटी अर्थात भाबर एवं तराई प्रदेश , पूर्वी मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ का उत्तरी भाग , झारखंड , पश्चिम बंगाल , उड़ीसा , आंध्र प्रदेश , महाराष्ट्र , कर्नाटक , तमिलनाडु तथा केरल के कुछ भागों में मिलते है । प्रमुख पेड़ साल , सागवान , शीशम , चंदन , आम आदि है ।
🔹 ये पेड़ ग्रीष्म ऋतु में अपने पत्ते गिरा देते हैं । इसलिए इन्हें पतझड़ वन भी कहा जाता है । उनकी ऊँचाई 30 से 45 मीटर तक होती है । ये इमारती लकड़ी प्रदान करते हैं । जिससे इनका आर्थिक महत्व अधिक है । ये वन हमारे कुल वन के क्षेत्र के 25 प्रतिशत क्षेत्र में फैले हुए है ।
❇️ उष्ण कटिबंधीय काँटेदार वन :-
🔹 जिन क्षेत्रों में 70 सेंटीमीटर से कम बारिश होती है वहां कटीले वन तथा झाड़ियां पाई जाती है ।
🔹 इस प्रकार की वनस्पति देश के उत्तर पश्चिम भाग में पाई जाती है जिनमें गुजरात राजस्थान छत्तीसगढ़ उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश तथा हरियाणा के कुछ क्षेत्र शामिल हैं ।
🔹 अकाशिया खजूर नागफनी यहां की प्रमुख पादप प्रजातियां है इन वनों के वृक्ष बिखरे हुए होते हैं इनकी जड़ें लंबी तथा जल की तलाश में फैली हुई होती है ।
🔹 पत्तियों का आकार काफी छोटा होता है । इन जंगलों में चूहे खरगोश लोमड़ी भेड़िए शेर सिंह जंगली गधा और घोड़े तथा ऊंट पाए जाते हैं ।
❇️ पर्णपाती वन :-
🔹 यह वन 100 से 200 सेमी . वर्षा वाले क्षेत्रों में पाये जाते हैं । ये सहयाद्रि के पूर्वी ढाल , प्रायद्वीप के उत्तर – पूर्वी पठार , हिमालय की तलहटी के भाबर और तराई क्षेत्रों तथा उत्तर – पूर्वी भारत में पाये जाते हैं ।
🔹 ये वन ग्रीष्म ऋतु में अपने पत्ते गिरा देते हैं । ये कम घने होते हैं । वृक्षों की ऊँचाई अपेक्षाकृत कम होती है ।
🔹 इन वनों की लकड़ी कम कठोर होती है । ये वन लगभग पूरे भारत में पाये जाते है ।
🔹 इन वनों की लकड़ी बहुत उपयोगी होती है ।
❇️ अनूप वन :-
🔹 भारत के उन क्षेत्रों में जहाँ जमीन हमेशा जलयुक्त अथवा आर्द्र होती है वहाँ की प्राकृतिक वनस्पति को वेलांचली या अनूप वन कहते हैं । भारत में इस तरह की आठ आर्द्र भूमियाँ है जो अपने सघन वनों एवं जैव विविधता के लिए विख्यात हैं ।
🔹 भारत में प0 बंगाल का सुंदर वन डेल्टा अपने मैंग्रोव वनों के लिए विश्व विख्यात है । इन वनों में टाइगर से लेकर सरीसृप तक बड़े – छोटे जानवर पाये जाते हैं ।
🔹 पर्यावरण संरक्षण , जैवविविधता एवं प्राकृतिक वनस्पतियों के संरक्षण के लिये इन वनों के अस्तित्व की सुरक्षा की आवश्यकता है ।
❇️ वन क्षेत्र :-
🔹 ये वे क्षेत्र हैं जहां राजस्व विभाग के अनुसार वन होने चाहिये । इसके अन्तर्गत एक निश्चित क्षेत्र को वन क्षेत्र के रुप में अधिसूचित किया जाता है ।
❇️ वास्तविक वन आवरण :-
🔹 इसके अन्तर्गत वह क्षेत्र आता है जो वास्तव में प्राकृतिक वनस्पतियों के झुरमुट से ढका होता है । भारत में सन् 2001 में वास्तविक वन आवरण केवल 20.55 प्रतिशत था ।
❇️ सामाजिक वानिकी का अर्थ :-
🔹 सामाजिक वानिकी का अर्थ है पर्यावरणीय , सामाजिक व ग्रामीण विकास में मदद के उद्देश्य से वनों के प्रबंधन में समाज की भूमिका तय करना एवं ऊसर भूमि पर वन लगाना ।
❇️ सामाजिक वानिकी :-
🔹 सामाजिक वानिकी शब्दावली का प्रयोग सबसे पहले राष्ट्रीय कृषि आयोग ने ( 1976-79 ई 0 ) में किया था ।
❇️ सामाजिक वानिकी के उद्देश्य :-
🔹 जनसंख्या के लिए जलावन लकड़ी की उपलब्धता ।
🔹 छोटी इमारती लकड़ी ।
🔹 फलों का उत्पादन बढ़ाना ।
🔹 छोटे – छोटे वन उत्पादों की आपूर्ति करना ।
❇️ सामाजिक वानिकी के अंग :-
🔹 इसके तीन अंग है :
🔸 शहरी वानिकी :- शहरों में निजी व सार्वजनिक भूमि जैसे -हरित पट्टी , पार्क , सड़को व रेलमार्गो व औद्योगिक व व्यापारिक स्थलों के साथ वृक्ष लगाना और उनका प्रबंधन करना ।
🔸 ग्रामीण वानिकी :- इसके अंतर्गत कृषि वानिकी और समुदाय कृषि वानिकी को बढ़ावा देना ।
🔸 फार्म वानिकी :- इसके अंतर्गत कृषि योग्य तथा बंजर भूमि पर पेड़ लगाना तथा फसलें उगाना जिससे खाद्यान्न , चारा , ईंधन व फल – सब्जियाँ मिल सकें ।
❇️ वन्य प्राणियों की संख्या में कमी :-
🔹 औद्योगिकी और तकनीकी विकास के कारण वनों का दोहन ।
🔹 खेती , मानवीय बस्ती , सड़कों , खदानों , जलाशयों आदि के लिए जमीन से वनों की सफाई ।
🔹 स्थानीय लोगों के चारे , ईंधन और इमारती लकड़ी के लिए पेड़ों की कटाई ।
🔹 पालतू पशुओं के लिए नए चरागाह की खोज में मानव ने वन्य जीवों और उनके आवासों को नष्ट कर दिया ।
🔹 रजवाड़ों तथा संधांत वर्ग ने शिकार क्रीड़ा बनाया और एक ही बार में सैंकड़ों वन्य जीवों को शिकार बनाया / व्यापारिक महत्व के लिए अभी भी मारा जा रहा है ।
🔹 जंगलो में आग लगने से ।
❇️ भारत में वन्य प्राणी संरक्षण :-
🔸 वन्य प्राणी अधिनियम :-
🔹 भारत में वन्य प्राणी अधिनियम 1972 ई . में पास हुआ ।
❇️ वन्य प्राणी अधिनियम के प्रमुख उद्देश्य :-
🔸 वन्य प्राणी अधिनियम के दो प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं :-
🔹 इस अधिनियम के अनुसार कुछ सूचीबद्ध संकटापन्न प्रजातियों को सुरक्षा प्रदान करना ।
🔹 सरकार द्वारा निर्धारित नेशनल पार्कों , पशुविहारों जैसे संरक्षित क्षेत्रों को कानूनी सहायता प्रदान करना ।
❇️ वन संरक्षण नीति :-
🔹 स्वतंत्रता के पश्चात भारत में पहली बार वन नीति 1952 में लागू की गई थी । सन् 1988 में नई राष्ट्रीय वन नीति वनों के क्षेत्रफल में हो रही कमी को रोकने के लिए बनाई गई थी ।
❇️ वन संरक्षण नीति के प्रमुख उद्देश्य :-
🔹 देश के 33 प्रतिशत भाग पर वन लगाना ।
🔹 पर्यावरण संतुलन बनाए रखना तथा परिस्थितिक असंतुलित क्षेत्रों में वन लगाना ।
🔹 देश की प्राकृतिक धरोहर , जैव – विविधता तथा आनुवांशिक मूल का संरक्षण ।
🔹 मृदा अपरदन और मरुस्थलीकरण को रोकना तथा बाढ़ व सूखा को नियंत्रित करना ।
🔹 निम्नीकृत भूमि पर सामाजिक वानिकी एवं वनरोपण द्वारा वन आवरण का विस्तार करना ।
🔹 वनों की उत्पादकता बढ़ाकर वनों पर निर्भर ग्रामीण जनजातियों को इमारती लकड़ी , ईधन , चारा और भोजन उपलब्ध करवाना और लकड़ी के स्थान पर अन्य वस्तुओं को प्रयोग में लाना ।
🔹 पेड़ लगाने को बढ़ावा देने के लिए तथा पेड़ों की कटाई रोकने के लिए जन – आन्दोलन चलाना , जिसमें महिलाएं भी शामिल हों ताकि वनों पर दबाव कम हो ।
🔹 वन और वन्य जीव संरक्षण में लोगों की भागीदारी ।
❇️ जीवन मंडल निचय :-
🔹 जीवमंडल निचय ( आरक्षित क्षेत्र ) विशेष प्रकार के भौमिक और तटीय पारिस्थितिक तंत्र है , जिन्हें यूनेस्को ने मानव और जीवमंडल कार्यक्रम के अन्तर्गत मान्यता प्रदान की है ।
❇️ जीव मंडल निचय के मुख्य उद्देश्य :-
🔹 जीव मंडल निचय के तीन मुख्य उद्देश्य है
🔹 इसमें क्षेत्र को प्राकृतिक अवस्था में रखा जाता है । सभी प्रकार की वनस्पति और वन जीवों का संरक्षण किया जाता है । उदाहरणतया नंदा देवी , नीलगिरी , सुन्दर वन आदि ।
❇️ भारत के वे जीव मंडल निचय जिनके नाम यूनेस्को के जीव मंडल निचय विश्व नेटवर्क पर मान्यता प्राप्त हैं :-
🔹 भारत के 14 जीव मंडल निचय हैं , जिनमें से 4 जीव मंडल निचय
🔸 नीलगिरी
🔸 नंदादेवी
🔸 सुंदर वन
🔸 मन्नार की खाड़ी यूनेस्को द्वारा जीव मंडल निचय विश्व नेटवर्क पर मान्यता प्राप्त हैं ।
❇️ नीलगिरी जीवमंडल निचय :-
🔹 स्थापना :- 1986 ( भारत का पहला जीवमंडल निचय )
🔹 इसमें वायनाड वन्य जीवन सुरक्षित क्षेत्र , नगरहोल , बांदीपुर , मदुमलाई और निलंबूर का सारा वन से ढका ढाल , ऊपरी नीलगिरी पठार , साइलेंट वैली और सिदुवानी पहाड़ियां शामिल हैं ।
🔹 कुल क्षेत्र :- 5,520 वर्ग किलोमीटर
🔹 प्राकृतिक वनस्पति :- शुष्क / आद्र पर्णपाती वन , अर्ध सदाबहार और आद्र सदाबहार वन , सदाबहार शोलास , घांस के मैदान और दलदल।
🔹 संकटापन्न प्राणी :- नीलगिरी ताहर / शेर जैसी दुम वाला बन्दर।
🔹 अन्य प्राणी :- हाथी , बाघ गौर , संभार , चीतल
🔹 इसकी स्थलाकृति उबड़ खाबड़ है ।
🔹 पश्चिमी घाट में पाए जाने वाले 80 % फूलदार पौधे इसी निचय में मिलते हैं ।
❇️ नंदा देवी जीवमंडल निचय :-
🔹 स्थान :- उत्तराखंड ( चमोली , अल्मोड़ा , पिथोरागढ़ बागेश्वर )
🔹 शीतोष्ण कटिबंधीय वन पाए जाते हैं ।
🔹 प्रजातियाँ :- सिल्वर वुड , लैटिफोली – ओरचिड और रोडोडेड्रान ।
🔹 वन्य जीव :- हिम तेंदुआ , काला भालू , भूरा भालू , कस्तूरी मृग , हिम – मुर्गा सुनहरा बाज और काला बाज।
❇️ सुंदरवन जीवमंडल निचय :-
🔹 स्थान :- पश्चिम बंगाल , गंगा नदी के दलदली डेल्टा पर
🔹 क्षेत्र :- 9,630 वर्ग किलोमीटर
🔹 वन :- मैन्ग्रोव , अनूप , वनाच्छादित द्वीप
🔹 लगभग 200 रॉयल बंगाल टाइगर
🔹 मैन्ग्रोव वनों में 170 से ज्यादा पक्षी प्रजातियाँ
🔹 स्वयं को लवणीय और ताजे जल पर्यावरण के अनुसार ढालते हुए बाघ पानी में तैरते हैं और चीतल , भौंकने वाले मृग , जंगली सूअर और यहाँ तक की लंगूरों जैसे दुर्लभ शिकार भी कर लेते हैं ।
🔹यहाँ के मैन्ग्रोव वनों में हेरिशिएरा फोमिज नामक इमारती लकड़ी पाई जाती है जो की बहुत बेशकीमती है।
❇️ फार्म वानिकी :-
🔹 इसमें किसान अपने खेतों में व्यापारिक महत्व वाले अथवा दूसरे वृक्ष लगाते है ।
🔹 वन – विभाग इसके लिए छोटे और मध्यम किसानों को निःशुल्क पौधे उपलब्ध कराता है ।
🔹 खेतों की मेड़े चरागाह , घास – स्थल घर के पास पड़ी खाली जमीन और पशुओं के बाड़ों में पेड़ लगाए जाते हैं ।
❇️ प्रोजेक्ट टाईगर तथा प्रोजेक्ट एलिफेंट :-
🔹 प्रोजेक्ट टाईगर ( 1973 ई . ) तथा प्रोजेक्ट एलिफेंट ( 1992 ई . ) में इन प्रजातियों के संरक्षण और उनके प्राकृतिक आवास को बचाने के लिए आरंभ किए गए थे । इनका मुख्य उद्देश्य भारत में बाघों व हाथियों की जनसंख्या के स्तर को बनाए रखना है ।
❇️ राष्ट्रीय उद्यान :-
🔹 सुरक्षा की दृष्टि से राष्ट्रीय उद्यानों को उच्च स्तर प्रदान किया जाता है । इसकी सीमा में पशुचारण की मनाही है । साथ ही इसकी सीमा में किसी भी व्यक्ति को भूमि अधिकार नहीं मिलता ।
❇️ अभ्यारण्य :-
🔹 इसमें कम सुरक्षा का प्रावधान है । इसमें वन जीवों की सुरक्षा के साथ – साथ नियंत्रित मानवीय गातिविधियों की अनुमति होती है । इसमें किसी अच्छे कार्य के लिए भूमि का उपयोग हो सकता है ।