प्राकृतिक आपदाएं और संकट
(Natural Hazards and Disaster)
❇️ परिचय :-
🔹 प्रकृति और मानव का आपस में गहरा सम्बन्ध है । प्रकृति ने मानव जीवन को बहुत अधिक प्रभावित किया है ।
🔹 जो प्रकृति हमें सब कुछ प्रदान करके खुशियां देती हैं कभी – कभी उसी का विकराल रूप हमें दुखी कर देता है ।
🔹 धरती का धंसना , पहाड़ों का खिसकना , सूखा , बाढ़ , बादल फटना , चक्रवात , ज्वालामुखी विस्फोट , भूकम्प , समुद्री , तूफान , सुनामी , आकाल आदि अनेक प्राकृतिक आपदाओं से मनुष्य को समय – समय पर हानि उठानी पड़ी है ।
🔹 परिवर्तन प्रकृति का नियम है । यह लगातार चलने वाली प्रक्रिया है ।
🔹 कुछ परिवर्तन अपेक्षित व अच्छे होते है । तो कुछ अनपेक्षित व बुरे होते है । प्राकृतिक आपदाओं का मनुष्य पर गहारा प्रभाव पड़ता है । इससे होने वाली हानियाँ तथा इनसे बचाव के उपायों तथा नुकसान को कम करने के उपायों के बारे में जानना आवश्यक है ।
❇️ आपदा :-
🔹 आपदा प्रायः एक अनपेक्षित घटना होती है , जो ऐसी ताकतों द्वारा घटित होती है , जो मानव के नियंत्रण में नहीं हैं । यह थोड़े समय में और बिना चेतावनी के घटित होती है जिसकी वजह से मानव जीवन के क्रियाकलाप अवरुद्ध होते हैं तथा बड़े पैमाने पर जानमाल का नुकसान होता है ।
❇️ प्राकृतिक आपदा तथा संकट में अन्तर :-
🔹 प्राकृतिक आपदा तथा संकट में बहुत कम अन्तर है । इनका एक – दूसरे के साथ गहरा सम्बन्ध है । फिर भी इनमें अन्तर स्पष्ट करना अनिवार्य है ।
🔹 प्राकृतिक संकट , पर्यावरण में हालात के वे तत्व हैं जिसमें जन – धन को नुकसान पहुँचने की सम्भावना होती है । जबकि आपदाओं से बड़े पैमाने पर जन – धन की हानि तथा सामाजिक व आर्थिक व्यवस्था ठप्प हो जाती है ।
❇️ प्राकृतिक आपदाओं का वर्गीकरण :-
🔹 प्राकृतिक आपदाओं को उनकी उत्पत्ति के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है । जैसे ;
🔶 वायुमण्डलीय :- तड़ितझंझा , टारनेडो , उष्णकटिबंधीय चक्रवात , सूखा , तुषारपात आदि ।
🔶 भौमिक :- भूकंप , ज्वालामुखी , भू – स्खलन , मृदा अपरदन आदि ।
🔶 जलीय :- बाढ़ , सुनामी , ज्वार , महासागरीय धाराएं , तूफान आदि तथा
🔶 जैविक :- पौधों व जानवर उपनिवेशक के रूप में टिड्डीयाँ कीट , ग्रसन फफूंद , बैक्टीरिया , वायरल संक्रमण , बर्डफलू , डेंगू इत्यादि ।
❇️ किस स्थिति में विकास कार्य आपदा का कारण बन सकता है ?
🔹 संकट संभावित क्षेत्रों में विकास कार्य आपदा का कारण बन सकते हैं । ऐसा उस स्थिति में होता है , जब पर्यावरणीय परिस्थितिकी की परवाह किए बिना ही विकास कार्य किया जाता है ।
🔹 उदाहरणतया बाढ़ को नियंत्रित करने के लिए बांध बनाया जाता है ताकि बाढ़ का पानी और अधिक नुकसान न कर सके , लेकिन कुछ समय पश्चात उस रूके हुए पानी से महामारियां फैलनी आरम्भ हो जाती हैं इसीलिए हम कह सकते हैं कि अक्सर विकास कार्य आपदा का कारण बन जाते हैं ।
❇️ आपदा निवारण और प्रबन्धन की अवस्थाऐ :-
🔹 आपदा से पहले :- आपदा के विषय में आंकड़े और सूचना एकत्र करना , आपदा संभावित क्षेत्रों का मानचित्र तैयार करना और लोगों को इसके बारे में जानकारी देना ।
🔹 आपदा के समय :- युद्ध स्तर पर बचाव व राहत कार्य करना । आपदा प्रभावित क्षेत्रों से पीड़ित व्यक्तियों को निकालना , राहत कैंप में भेजना , जल और चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराना ।
🔹 आपदा के पश्चात :- आपदा प्रभावित लोगों को पुर्नवास की व्यवस्था करना ।
❇️ चक्रवातीय आपदा :-
🔹 चक्रवात :- चक्रवात निम्न वायुदाब का वह क्षेत्र है जो चारों ओर से उच्च वायुदाब द्वारा घिरा होता है । वायु चारो ओर से चक्रवात के निम्न वायुदाब वाले क्षेत्र की ओर चलती है । चक्रवातीय आपदा में वर्षा सामान्य से 50-100 सेमी तक अधिक होती है साथ ही तेज हवाओं का परिसंचरण भी होता है ।
❇️ चक्रवातीय आपदा के विनाशकारी प्रभाव :-
🔹 चक्रवातों का आकार छोटा होता है और दाब प्रवणता तीव्र होने के कारण वायु बड़ी तीव्र गति से चलती है । अतः इससे जान – माल की भारी हानि होती है । हजारों की संख्या में लोग मर जाते हैं ।
🔹 पेड़ , बिजली तथा टेलीफोन के खम्बे उखड़ जाते हैं और इमारतें गिर जाती हैं अथवा जरजर हो जाती हैं । इन चक्रवातों से भारी वर्षा होती है । जिससे बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है । समुद्र में चक्रवात से ऊंची – ऊंची लहरें उठती हैं जिससे मछुवारों व नाविकों की जान का खतरा हो जाता है और तटीय क्षेत्रों के निवासियों को जान – माल की भारी हानि उठानी पड़ती है ।
❇️ सूखा :-
🔹 सूखा : – किसी विशेष क्षेत्र में , विशेष समय में , सामान्य से कम वर्षा की मात्रा को सूखा कहते हैं ।
❇️ सूखा के प्रकार :-
🔹 इसके निम्न चार प्रकार हैं ।
🔶 मौसम विज्ञान संबंधी सूखा :- यह एक स्थिति है जिसमें लम्बे समय तक अपर्याप्त वर्षा होती है । ( वर्षा की कमी )
🔶 कृषि सूखा :- इसे भूमि आर्द्रता सूखा भी कहते हैं । जब जल के अभाव से फसलें नष्ट हो जाती हैं उसे कृषि सूखा कहते हैं । ( अपर्याप्त मानसून )
🔶 जल विज्ञान संबंधी सूखा :- जब धरातलीय एवं भूमिगत जलाशयों में जल स्तर एक सीमा से नीचे गिर जाए और वृष्टि द्वारा भी जलापूर्ति ना हो तो उसे जल विज्ञान संबंधी सूखा कहते हैं । ( भूमिगत तथा सतही जल का अतिशोषण )
🔶 पारिस्थितिक सूखा :- जब प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र में जल की कमी से उत्पादकता में कमी हो जाती है और पर्यावरण में तनाव उत्पन्न हो जाता है उसे पारिस्थितिक सूखा कहते हैं । ( जलस्तर का घटना )
❇️ सूखे से निवारण के उपाय :-
🔹 लोगों को तत्कालीन सेवाएं प्रदान करना जैसे सुरक्षित पेयजल वितरण , दवाइयों , पशुओं के लिए चारा , व्यक्तियों के लिए भोजन तथा उन्हें सुरक्षित स्थान प्रदान करना ।
🔹 भूमि जल भंडारों की खोज करना जिसके लिए भौगोलिक सूचना तंत्र की सहायता ली जा सकती है ।
🔹 वर्षा के जल का संग्रहण एवं संचय करना तथा इसके लिए लोगों को प्रोत्साहित करना तथा नदियों पर छोटे बांधों का निर्माण करना ।
🔹 अधिक जल वाले क्षेत्रों को निम्न जल वाले क्षेत्रों से नदी तंत्र की सहायता से आपस में जोड़ना ।
🔹 वृक्षारोपण द्वारा वन क्षेत्र को बढ़ाकर सूखा से काफी हद तक छुटकारा पाया जा सकता है ।
❇️ भूकम्प :-
🔹 भूकम्प पृथ्वी की पर्पटी पर होने वाली वह हलचल है जिससे पृथ्वी हिलने लगती है और भूमि आगे पीछे खिसकने लगती है । वास्तव में , पृथ्वी के अन्दर होने वाली किसी भी संचलन के परिणाम स्वरूप जब धरातल का ऊपरी भाग अकस्मात कांप उठता है तो उसे भूकम्प कहते हैं।
❇️ भूकम्प के कारण :-
🔹 भूकम्प को महाविनाशकारी आपदा माना जाता है । इससे प्रायः संकट की स्थिति पैदा होती है ।
🔹 भूकम्प मुख्यतः विवर्तनिक हलचलों , ज्वालामुखी विस्फोटों , चट्टानों के टूटने व खिसकने , खानों ( Mines ) के धसने , जलाशय में जल के इकट्ठा होने से उत्पन्न होते हैं । विर्वतनिक हलचलों से पैदा होने वाले भूकम्प सबसे अधिक विनाशकारी होते हैं । इसे इस चित्र के माध्यम से समझा जा सकता है ।
❇️ भूकम्पों के परिणाम :-
🔹 भूकम्पों से होने वाले नुकसान को निम्न बिन्दुओं की सहायता से समझा जा सकता है ।
🔶 जान तथा माल की भारी क्षति होती है ।
🔶 भूस्खलन हो सकते हैं ।
🔶 आग लग सकती है ।
🔶 तटबंधों व बाँधों के टूटने से बाढ़ आ सकती है ।
🔶 सागरों व महासागरों में बड़ी – बड़ी प्रलयकारी लहरें ( सुनामी ) आ सकती हैं ।
❇️ भूकम्प से होने वाले नुकसान को कम करने के उपाय :-
🔹 भूकम्प नियन्त्रण केन्द्रों की स्थापना करके , भूकम्प संभावित क्षेत्रों में लोगों को समय पर सूचना प्रदान करना ।
🔹 सुभेद्यता मानचित्र तैयार करना और संभावित जोखिमों की सूचना लोगों तक देना तथा इन्हें इसके प्रभाव को कम करने के बारे में शिक्षित करना ।
🔹 भूकम्प प्रभावित क्षेत्रों में घरों के प्रकार और भवनों के डिजाइन में सुधार लाना । उन्हें भूकम्प रोधी बनाना ।
🔹 भूकम्प प्रभावित क्षेत्रों में ऊंची इमारतों के निर्माण को प्रतिबंधित करना , बड़े औद्योगिक संस्थान और शहरीकरण को बढ़ावा न देना ।
🔹 भूकम्प प्रभावित क्षेत्रों में भूकम्प प्रतिरोधी इमारतें बनाना और सुभेद्य क्षेत्रों में हल्के निर्माण सामग्री का प्रयोग करना ।
❇️ हिमालय और उत्तर – पूर्वी क्षेत्रों में अधिक भूकम्प क्यों आते हैं ?
🔹 हिमालय नवीन वलित पर्वत है , जिसके निर्माण की प्रक्रिया अभी चल रही है । हिमालय क्षेत्र में अभी भी भू – संतुलन की स्थिति उत्पन्न नहीं हुई है । भारतीय प्लेट निरन्तर उत्तर की ओर गतिशील है जिसके कारण इस क्षेत्र में प्रायः भूकंप आते रहते हैं और भूकंपीय हलचलें होती रहती है ।
❇️ सुनामी के कारण :-
🔹 सुनामी समुद्र में भूकंप , भूस्खलन अथवा ज्वालामुखी उद्गार जैसी घटनाओं से पैदा होती है ।
❇️ सुनामी प्रभाव :-
🔹 तटवर्ती क्षेत्रों के निवासियों के लिए सुनामी बहुत बड़ा खतरा है । सुनामी समुद्र तट पर विराट लहरों के रूप में अपार शक्ति के साथ प्रहार करती है और बिना किसी चेतावनी के “ पानी के बम ” की तरह टकराती हैं । ये घरों को गिरा देती है ।
🔹 गांवों को बहाकर ले जाती है । पेड़ों व बिजली के खम्बों को उखाड़ देती है , नावों को तट से दूर बहाकर ले जाती है और अंत में वापस जाते समय हजारों असहाय पीड़ितों को समुद्र में घसीट कर ले जाती है । सुनामी का प्रभाव बहुत ही विध्वंशकारी होता है ।
❇️ भारत में बाढ़ क्यों आती है ?
🔹 वर्षा ऋतु में नदियों का जल स्तर अचानक बढ़ जाता है । तब वह नदी के तटबन्धों को तोड़ता हुआ मानव बस्तियों , खेतों और आसपास की जमीन के निचले हिस्सों में बाढ़ के रूप में फैल जाता है । भारी वर्षा , उष्णकटिबन्धीय चक्रवात बांध टूटने और प्राकृतिक कारणों के अतिरिक्त मानव के कुछ आवांछित क्रियाकलाप भी बाढ़ को लाने में सहायक होते हैं ।
❇️ भारत में बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र :-
🔹 असम , पश्चिमी बंगाल और बिहार राज्य सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित क्षेत्र हैं । इसके अतिरिक्त उत्तर भारत की अधिकांश नदियां विशेषकर पंजाब और उत्तर प्रदेश में बाढ़ लाती है । राजस्थान , गुजरात , हरियाणा और पंजाब में आकस्मिक बाढ़ आती रहती है ।
❇️ बाढ़ को रोकने के उपाय :-
🔹 बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों में नदियों के तटबन्ध बनाना , नदियों पर बांध बनाना , बाढ़ वाली नदियों के ऊपरी जल ग्रहण क्षेत्र में निर्माण कार्य पर प्रतिबंध लगाना ।
🔹 नदियों के किनारे बसे लोगों को दूसरी जगह बसाना , बाढ़ के मैदानों में जनसंख्या के बसाव पर नियंत्रण रखना ।
🔹 तटीय क्षेत्रों में ” चक्रवात सूचना केन्द्रों की स्थापना कर ” तूफान के आगमन की सूचना प्रसारित करके इससे होने वाले नुकसान के प्रभाव को कम कर सकते हैं ।
❇️ पश्चिमी भारत की बाढ़ पूर्वी भारत की बाढ़ से अलग कैसे होती है ?
🔹 भारत के पूर्वी भाग में असम , पश्चिम बंगाल , बिहार तथा झारखंड जैसे क्षेत्र हैं । इन क्षेत्रों में बड़ी – बड़ी नदियां बहती हैं जैसे ब्रह्मपुत्र , हुगली , दामोदर , कोसी , तिस्ता तथा तोरसा आदि ।
🔹इनमें हर वर्ष लगभग बाढ़ आती रहती है जिसके चलते यहां के स्थानीय निवासी इन नदियों के विध्वंशकारी प्रभाव से भलीभांति परिचित होते हैं । लेकिन पश्चिमी भारत में कुछ नदियों को छोड़कर ज्यादातर
🔹 मौसमी नदियां हैं ये कम ढाल व अधिक बरसात के कारण बाढ़ से बचाव के लिए किए गए उपायों की अनदेखी करने के परिणामस्वरूप पश्चिमी भारत में जब कभी बाढ़ आती है तो अधिक नुकसान उठाना पड़ता है ।
❇️ भारत मे भू – स्खलन सुभेधता क्षेत्र :-
🔹 अत्यधिक सभेद्यता क्षेत्र :- इस क्षेत्र के अंतर्गत हिमालय की युवा पर्वत श्रृंखलायें , अंडमान व निकोबार द्वीप समूह , पश्चिमी घाट तथा नीलगिरी के अधिक वर्षा तथा तीव्र ढाल वाले क्षेत्र , उत्तर – पूर्वी राज्य , अत्यधिक मानव क्रियाकलापों वाले क्षेत्र ( विशेषतः सड़क निर्माण व बांध निर्माण ) सम्मिलित हैं ।
🔹 अधिक सुभेद्यता क्षेत्र :- इन क्षेत्रों में भौगोलिक परिस्थितियां अत्यधिक सुभेद्यता वाले क्षेत्रों की परिस्थितियों से मिलती जुलती ही है । अंतर केवल इतना है कि इन क्षेत्रों में भू – स्खलन की गहनता एवं आवृत्ति कम होती है । इन क्षेत्रों में हिमालय क्षेत्र के सारे राज्य और उत्तर – पूर्वी भाग ( असम को छोड़कर ) सम्मिलित हैं
🔹 मध्यम एवं कम सुभेद्यता वाले क्षेत्र :- इस क्षेत्र में लद्दाख , स्पिति , अरावली की पहाड़ियां , पूर्वी तथा पश्चिमी घाट के वर्षा छाया क्षेत्र , दक्कन का पठार सम्मिलित हैं । इसके अतिरिक्त मध्य पूर्वी भारत के खदानों वाले क्षेत्रों में भूस्खलन होता रहता है ।
❇️ भू – स्खलन को रोकने के उपाय :-
🔹भू – स्खलन प्रभावित व सम्भावित क्षेत्रों में सड़क व बांध निर्माण कार्यों को रोका जाये ।
🔹 स्थानांतरी कृषि की अपेक्षा स्थायी व सीढ़ीनुमा कृषि को प्रोत्साहित करना ।
🔹 तीव्र ढालों की अपेक्षा मन्द ढालों पर कृषि क्रियाएं करना ।
🔹 वनों के कटाव को प्रतिबंधित करना तथा नये पेड़ – पौधे लगाना ।
❇️ आपदा प्रबंधन अधिनियम :-
🔹 आपदा प्रबंधन अधीनयम आपदा किसी क्षेत्र में धरित एक महाविपत्ति , दुर्घटना , संकट या गंभीर घटना है जो प्राकृतिक अथवा मानवीय कारणों या लापरवाही का परिणाम हो सकता है जिससे बड़े स्तर पर जान – माल को क्षति , मानव पीड़ी व पर्यावरण की हानि होती है ।
❇️ आपदा निवारण व प्रबंधन की अवस्थाएँ :-
🔹 आपदा से पहले आपदा से संबंधित ऑकड़े व सूचना एकत्र करना , आपदा संभावी क्षेत्रों को मानचित्र तैयार करना , लोगों को इसके बारे में जाग्रत करना , आपदा योजना बनाना , तैयार रहना बचाव का उपाय करना ।
🔹 आपदा के समय आपदाग्रस्त क्षेत्रों में लोगों की सहायता करना , फंसे हुए लोगों को निकालना या इसकी व्यवस्था करना , आश्रम स्थ्लों का निर्माण , राहता कैंप की व्यवस्था जल , भोजन व दवाईयों की अपूर्ति करना ।
🔹 आपदा के पश्चातः प्रभावित लोगों के पुनर्वास की व्यवस्था करना , भविष्य में आपदओं से निपटने के लिए क्षमता निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना ।