पृथ्वी पर जीवन (Life on the Earth) || 11th Class Geography Ch-15 (Book-1) || Notes In Hindi

 पृथ्वी पर जीवन

(Life on the Earth




❇️ जैवमंडल :-

🔹 सभी पैड़ – पौधों , जंतुओं , प्राणियों ( जिसमें पृथ्वी पर रहने वाले सूक्ष्म जीव भी हैं ) और उनके चारों तरफ के पर्यावरण के पारस्परिक अंतर्सबंध से जैवमंडल बना है । जैवमंडल और इसके घटक पर्यावरण के बहुत महत्वपूर्ण तत्व हैं ।

❇️ पारिस्थतिकी :-

🔹 परिस्थितिकी शब्द ग्रीक भाषा के दो शब्दो ओइकोस और लोजी से मिलकर बना है । ओइकोस का शब्दिक अर्थ घर तथा लोजी का अर्थ विज्ञान व अध्ययन से है । अर्थात् पृथ्वी पर पौधों , मनुष्यों जंतुओं व सूक्ष्म जीवाणुओं के घर के रूप में अध्ययन पारिस्थतिकी कहलाता है ।

❇️ पारिस्थितिकी विज्ञान :-

🔹 जर्मन प्राणीशास्त्री अर्नेस्ट हक्कल ( 1869 ) पारिस्थितिकी के ज्ञाता के रूप में जाने जाते हैं । जैव व अजैव घटकों के परस्पर संबंध के अध्ययन को पारिस्थितिकी विज्ञान कहते हैं ।

❇️ पारिस्थितिक अनुकूलन :-

🔹 विभिन्न प्रकार के पर्यावरण व विभिन्न परिस्थितियों में भिन्न – भिन्न प्रकार के पारितन्त्र पाए जाते हैं , अलग – अलग प्रकार के पौधे व जीव – जन्तु धीरे – धीरे उसी पर्यायवरण के अभ्यस्त हो जाते हैं अर्थात् स्वयं को पर्यावरण के अनुकूल ढाल लेते हैं । इसी को परिस्थितिक अनुकूलन कहा जाता है ।

❇️ बायोम :-

🔹 पौधों व प्राणियों का समुदाय जो एक भौगोलिक क्षेत्र में पाया जाता है उसे बायोम कहते हैं । जैसे वन , मरूस्थल , घास भूमि जलीय भूभाग , पर्वत , पठार , ज्वारनदमुख , प्रवाल भित्ति , कच्छ व दलदल आदि ।

❇️ पारितन्त्र :-

🔹 किसी क्षेत्र विशेष में किसी विशेष समूह के जीवाधारियों का भूमि , जल तथा वायु से ऐसा अन्तर्सम्बन्ध जिसमें ऊर्जा प्रवाह व पोषण श्रंखलाएं स्पष्ट रूप से समायोजित हो , उसे पारितन्त्र कहा जाता है ।

❇️ पारितन्त्र के प्रकार :-

🔹 पारितन्त्र मुख्यतः दो प्रकार के हैं :-

🔶 स्थलीय पारितन्त्र ( Terrestrial ) 

🔶 जलीय पारितन्त्र ( Aquatic )

❇️ स्थलीय पारितन्त्र :-

🔹 स्थालीय पारितन्त्र को पुनः बायोम में विभक्त किया जा सकता है । बायोम , पौधों व प्रणियों का एक समुदाय है , जो एक बड़े भौगोलिक क्षेत्र में पाया जाता है । वर्षा , तापमान , आर्द्रता व मिट्टी आदि बायोम की प्रकृति तथा सीमा निर्धारित करते हैं । विश्व के कुछ प्रमुख पारितन्त्र में वन , घास क्षेत्र , मरूस्थल , तट तथा टुण्ड्रा प्रदेश शामिल है । इनके अलावा ज्वार – नदमुख , प्रवाल भित्ति , महासागरीय नितल भी इसमें शामिल है ।

❇️ जलीय पारितन्त्र :-

🔹 जलीय पारितन्त्र को समुद्री पारितन्त्र व ताजे जल के पारितन्त्र में बांटा जाता है । समुद्री पारितन्त्र में महासागरीय , ज्वारनदमुख , प्रवालभित्ति पारितन्त्र सम्मिलित है । ताजे जल के पारितन्त्र में झीलें , तालाबें सारिताएं , कच्छ व दलदल शामिल हैं ।

❇️ अजैविक कारक :-

🔹 अजैविक कारकों में तापमान , वर्षा , सूर्य का प्रकाश , आर्द्रता , मृदा की स्थिति व अकार्बनिक तत्व ( कार्बन – डाई – ऑक्साइड , जल , नाइट्रोजन , कैल्शियम फॉसफोरस , पोटेशियम आदि ) सम्मिलित हैं ।

❇️  जैविक कारक :-

🔹 इसमें पर्यावरण के सभी जैविक तत्त्व सम्मिलित है | जीवमंडल के जैविक घटकों में सूक्ष्म जीवो से लेकर पक्षी जगत , स्तनपायी , जलथलचारी , रेंगनेवाले प्राणी सम्मिलित हैं | मनुष्य भी इसी जैविक घटक का एक उदाहरण हैं ।यह सभी जीवित प्राणी अन्योन्याश्रित हैं , इसीलिए इन्हें उत्पादक , उपभोक्ता व अपघटक की श्रेणी में विभक्त किया जाता है ।

❇️ उत्पादक :-

🔹 उत्पादक ऐसे जीव हैं जो प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के द्वारा अपना भोजन स्वयं बनाते हैं इसलिए इन्हें स्वपोषी जीवधारी भी कहा जाता है । यह प्राथमिक उत्पादक भी कहलाते हैं । उदाहरण – पौधे , शैवाल , घास इत्यादि ।

❇️ उपभोक्ता :-

🔹 यह जीव उत्पादकों पर आश्रित होते हैं-

🔶 प्राथमिक उपभोक्ता :- यह जीव अपने भोजन की आपूर्ति के लिए पौधों पर निर्भर होते हैं । जैसे – टिड्डा भेड़ , बकरी , खरगोश , इत्यादि ।

🔶 द्वियितिक उपभोक्ता :- यह अपना भोजन दूसरे जीवो को मारकर प्राप्त करते हैं। यह अपना भोजन प्राथमिक उपभोक्ता से प्राप्त करते हैं। यह मांसाहारी होते हैं उदाहरण – भेड़िया , लोमड़ी , चिड़िया , सांप

🔶 तृतीयक उपभोक्ता :- यह जीव प्राथमिक और द्वितीयक उपभोक्ताओं पर निर्भर होते हैं जैसे – शार्क , बाज , शेर इत्यादि

❇️ अपघटक :-

🔹 अपघटक वे हैं जो मृत जीवों पर निर्भर हैं जैसे कौवा और गिद्ध तथा कुछ अन्य अपघटक जैसे बैक्टीरीया और सूक्ष्म जीवाणु जो मृतकों को अपघटित कर उन्हें सरल पदार्थों में परिवर्तित करते हैं ।

❇️ पारितंत्र के कार्य या पारिस्थितिक तंत्र के कार्य :-

🔹 ऊर्जा प्रवाह 

🔹 खाद्य श्रृंखला 

🔹 खाद्य जाल

🔹 जैव भू – रसायन चक्र

❇️ ऊर्जा प्रवाह :-

🔹 पारितंत्र में ऊर्जा का प्रवाह को खाद्य या ऊर्जा पिरामिड द्वारा समझा जा सकता है।

🔹 पिरामिड में सबसे निचले स्तर पर उत्पादक को रखा जाता है।

🔹 द्वितीय व तृतीय उपभोक्ता उत्पादकों के बाद रखे जाते हैं।

🔹 उत्पादक प्रकाश संश्लेषण द्वारा स्वयं भोजन का निर्माण करते हैं किंतु प्राथमिक उपभोक्ता उत्पादकों से ऊर्जा का केवल 10 % भाग ही ग्रहण कर पाते हैं ।

🔹द्वितीयक उपभोक्ता प्राथमिक उपभोक्ताओं के पास व्याप्त ऊर्जा का 10 % ग्रहण करते हैं इस नियम के अनुसार एक पोषण स्तर से दूसरे पोषण स्तर के केवल 10 % ऊर्जा ही प्राप्त होती है ।

❇️  खाद्य – श्रृंखला :-

🔹 किसी भी पारिस्थितिक तन्त्र में समस्त जीव भोजन के लिए परस्पर एक दूसरे पर निर्भर रहते हैं । इस प्रकार समस्त जीव एक दूसरे पर निर्भर होकर भोजन श्रृंखला बनाते हैं इससे पारिस्थितिक तन्त्र में खाद्य ऊर्जा का प्रवाह होता है । खाद्य ऊर्जा का एक स्तर से दूसरे स्तर पर ऊर्जा प्रवाह ही खाद्य श्रृंखला कहलाती है । इसमें तीन से पाँच स्तर होते है । हर स्तर पर ऊर्जा कम होती जाती है ।

❇️ खाद्य श्रंखला के प्रकार :-

🔹 सामान्यतः दो प्रकार की खाद्य श्रंखला पाई जाती है । 

🔶 चराई खाद्य श्रृंखला

🔶 अपरद खाद्य श्रृंखला 

❇️ चराई खाद्य श्रृंखला :-

🔹 पौधों ( उत्पादक ) से आरम्भ होकर मांसाहारी ( तृतीयक उपभोक्ता ) तक जाती है , जिसमें शाकाहारी मध्यम स्तर पर है । हर स्तर पर ऊर्जा का हास होता है जिसमें श्वसन , उत्सर्जन व विघटन प्रक्रियाएं सम्मिलित हैं । इसमें काबनिक पदार्थ निकलते हैं । 

❇️ अपरद खाद्य श्रृंखला :-

🔹 चराई श्रृंखला से प्राप्त मृत पदार्थों पर निर्भर है और इसमें कार्बनिक पदार्थ का अपघटन सम्मिलत है ।

❇️ डीट्रीटस पोषक :-

🔹 उपभोक्ता समूह जो चराई खाद्य श्रृंखला से प्राप्त मृत प्राणियों पर निर्भर करता है ।

❇️ जैव भू – रासायनिक चक्र :-

🔹 विभिन्न अध्ययनों से पता चला है कि पिछले 100 करोड़ वर्षों में वायुमण्डल व जलमंण्ड की संरचना में रासायनिक घटकों का संतुलन एक जैसा अर्थात बदलाव रहित रहा है । रासायनिक ऊतकों से होने वाले चक्रीय प्रवाह से यह संतुलन बना रहता है । यह चक्र जीवों द्वारा रासायनिक तत्वों के अवशोषण से आरंभ होता है और उनके वायु , जल व मिट्टी में विघटन से पुनः आरंभ होता है । ये चक्र मुख्यतः सौर ताप से संचलित होते हैं । जैव मंडल में जीवधारी व पर्यावरण के बीच में रासायनिक तत्वों के चक्रीय प्रवाह को जैव भू – रासायनिक चक्र कहा जाता है । 

❇️ जैव भू – रासायनिक चक्र के प्रकार :-

🔶 गैसीय चक्र :-

🔹 यहाँ पदार्थ का भंडार / स्त्रोत वायुमंडल व महासागर हैं । 

🔶 तलछटी चक्र :-

🔹 यहाँ पदार्थ का प्रमुख भंडार पृथ्वी की भूपर्पटी पर पाई जाने वाली मिट्टी , तलछट व अन्य चट्टाने हैं ।

🔶 ऑक्सीजन चक्र :-

🔹 चक्र बताता है कि प्रकृति के माध्यम से ऑक्सीजन विभिन्न रूपों में कैसे फैलती है । ऑक्सीजन हवा में स्वतंत्र रूप से होती है , जो पृथ्वी के चक्र में रासायनिक यौगिकों के रूप में फंस जाती है , या पानी में भंग हो जाती है । 

🔹 हमारे वायुमंडल में ऑक्सीजन लगभग 21 % है , और यह नाइट्रोजन के बाद दूसरी सबसे प्रचुर मात्रा में गैस मानी जाती है । इसका ज्यादातर जीवित जीवों , विशेष रूप से श्वसन में मनुष्य और जानवरों द्वारा उपयोग किया जाता है । ऑक्सीजन मानव शरीर का सबसे आम और महत्वपूर्ण तत्व भी है ।

🔶 कार्बन चक्र :-

🔹 सभी जीवधारियों में कार्बन पाया जाता है यह सभी कार्बनिक यौगिक का मूल तत्व है , जैवमंडल में असंख्य कार्बन यौगिक के रूप में मौजूद हैं ।

🔹 कार्बन चक्र वह प्रक्रिया है जिसको हवा , जमीन , पौधों , जानवरों , और जीवाश्म ईंधन के माध्यम से यह चक्र चलता है ।

🔹 लोग और जानवर हवा से ऑक्सीजन लेते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड ( सीओ 2 ) निकालते हैं , जबकि पौधे प्रकाश संश्लेषण के लिए सीओ 2 अवशोषित करते हैं और वायुमंडल में वापस ऑक्सीजन उत्सर्जित करते हैं ।

🔶 नाइट्रोजन चक्र :-

🔹 वायुमंडल में 79 % नाइट्रोजन है । कुछ विशिष्ट जीव , मृदा , जीवाणु व नीले हरे शैवाल ही इसे प्रत्यक्ष रूप से ग्रहण कर सकते है ।

🔹 स्वंतत्र नाइट्रोजन का मुख्य स्रोत मिट्टी के सूक्ष्म जीवाणुओं की क्रिया व संबंधित पौधों की जड़े तथा रंध्र वाली मृदा है जहाँ से वह वायुमंडल में पहुँचती है । 

🔹 वायुमंडल में चमकने वाली बिजली एवं अंतरिक्ष विकिरण द्वारा नाइट्रोजन का यौगिकीकरण होता है तथा हरे पौधों में स्वांगीकरण होता है । 

🔹 मृत पौधों तथा जानवरों के अपषिष्ट मिट्टी में उपस्थित बैक्टीरिया द्वारा नाइट्राइट में बदल जाते हैं । 

🔹 कुछ जीवाणु इन नाइट्रेट को दोबारा स्वंतत्र नाइट्रोजन में परिवर्तित करने में योग्य होते हैं इस प्रक्रिया को डी – नाइट्रीकरण कहते हैं ।

❇️ परिस्थितिक संतुलन :-

🔹 किसी पारितंत्र या आवास में जीवों के समुदाय में परस्पर गतिक साम्यता की अवस्था ही पारिस्थितिक संतुलन है । यह पारितंत्र में हर प्रजाति की संख्या के एक स्थायी संतुलन के रूप में तभी रह सकता है , जब किसी पारिस्थितिकी तंत्र में निवास करने वाले विभिन्न जीवों की सापेक्षिक संख्या में संतुलन हो । यह इस तथ्य पर निर्भर करता हैं कि कुछ जीव अपने भोजन के लिए अन्य जीवों पर निर्भर करते हैं उदाहरणतया घास के विशाल मैदानों के हिरण , जेबरा , भैंस आदि शाकाहारी जीव अधिक संख्या में होते हैं । दूसरी और बाघ व शेर जैसे मांसाहारी जीव अपने भोजन के लिए शाकाहारी जीवों पर निर्भर करते हैं और उनकी संख्या अपेक्षाकृत कम होती है अथवा इनकी संख्या नियंत्रित रहती है ।

❇️ पारिस्थितिक असन्तुल :-

🔹 संसार में जीवों तथा भौतिक पर्यावरण में सन्तुलन बना रहता है लेकिन जब ये सन्तुलन बिगड़ जाता है तब पारिस्थतिक असन्तुलन पैदा हो जाता है ।

❇️ पारिस्थितिक असन्तुलन के चार कारक :-

🔹 जनसंख्या वृद्धि :- लगातार जनसंख्या वृद्धि के कारण प्राकृतिक संसाधनों पर जनसंख्या का दबाव बढ़ता जाता है और पारिस्थितिक असन्तुलन की स्थित उत्पन्न हो जाती है ।

🔹 वन सम्पदा का विनाश :- वन सम्पदा के विनाश ( मानव व प्रकृति दोनों के द्वारा ) से भी पारिस्थितिक असन्तुलन की स्थिति पैदा हो जाती है अत्याधिक वर्षा से बाढ़ द्वारा मृदा अपरदन या सूखे से भी वन नष्ट हो जाते हैं ।

🔹 तकनीकी प्रगति :- लगातार प्रगति के कारण औद्योगिक क्षेत्र बढ़ता जा रहा है और इनसे निकलने वाला धुंआ व अपशिष्ट पदार्थ वातावरण को दूषित कर परिस्थितिक सन्तुलन को बिगाड़ते हैं । 

🔹 माँसाहारी पशुओं की कमी :- मासांहारी पशुओं की कमी से शाकाहारी पशुओं की संख्या बढ़ जाती है और उनके द्वारा वनस्पति ( घास – झाडिया ) अधिक मात्रा में खाई जाती है । जिससे पहाडियों पर वनस्पति का आवरण कम हो जाता है और मृदा अपरदन की तीव्रता बढ़ जाती है जिससे पारिस्थितिक असंतुलन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है ।

❇️ जैव मण्डल क्यों महत्वपूर्ण है ? 

🔹 जैव मण्डल में ही किसी भी प्रकार का जीवन संभव है , मानव के लिए भोजन का मूल स्रोत भी यही है । जीवों के जीवित रहने , बढ़ने व विकसित होने में सहायक है । अतः यह हमारे लिए अत्यंत महत्तवपूर्ण है । 

❇️ पर्यावरण असंतुलन से नुकसान :-

🔹 पर्यावरण असंतुलन से ही प्राकृतिक आपदाएँ जैसे- बाढ़ , भूकंप , बीमरियाँ और कई जलवायु सम्बन्धी परिवर्तन होते हैं ।




इतिहास विश्व इतिहास के कुछ विषय

Chapter 1: - समय की शुरुआत से (From the Beginning of Time)

Chapter 2: - लेखन कला और शहरी जीवन (Writing and City Life)

Chapter 3: - तीन महाद्वीपों में फैला हुआ साम्राज्य (An Empire Across Three Continents)

Chapter 4:- इस्लाम का उदय और विस्तार (The Central Islamic Lands )

Chapter 5:- यायावर साम्राज्य (Nomadic Empires)

Chapter 6:- तीन वर्ग (The Three Orders)

Chapter 7:- बदलती हुई सांस्कृतिक परम्पराएँ (Changing Cultural Traditions)

Chapter 8:- संस्कृतियों का टकराव (Confrontation of Cultures)

Chapter 9:- औद्योगिक क्रांति (The Industrial Revolution)

Chapter 10:- मूल निवासियों का विस्थापन (Displacing Indigenous Peoples)

Chapter 11:- आधुनिकीकरण के रास्ते (Paths to Modernization)

राजनीति विज्ञान  भारत का संविधान : सिद्धांत और व्यवहार

Chapter 1:- संविधान क्यों और कैसे (Constitution because and how)

Chapter 2:- भारतीय संविधान में अधिकार (Rights in the Indian Constitution)

Chapter 3:- चुनाव और प्रतिनिधि (Election and Representative)

Chapter 4:- कार्यपालिका (Executive)

Chapter 5:- विधायिका (Legislature)

Chapter 6:- न्यायपालिका (Judiciary)

Chapter 7:- संघवाद (Federalism)

Chapter 8:- स्थानीय शासन (Local Government)

Chapter 9:- संविधान एक जीवंत दस्तावेज़ (Constitution a living document)

Chapter10:- संविधान का राजनितिक दर्शन (Political Philosophy of the Constitution)

 

 

- राजनितिक सिद्धांत

Chapter 1:- राजनीतिक सिद्धांत एक परिचय (Political Theory - An Introduction)

Chapter 2:- स्वतंत्रता (Freedom)

Chapter 3:- समानता (Equality)

Chapter 4:- सामाजिक न्याय (Social justice)

Chapter 5:- अधिकार (Rights)

Chapter 6:- नागरिकता (Citizenship)

Chapter 7:- राष्ट्रवाद (Nationalism)

Chapter 8:- धर्मनिरपेक्षता (Secularism)

Chapter 9:- शांति (Peace)

Chapter 10:- विकास (Development)

 

 

भूगोल   भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत

Chapter 1:- भूगोल एक विषय के रूप में (Geography as A Discipline)

Chapter 2:- पृथ्वी की उत्पत्ति एंव विकास (The Origin and Evolution of the Earth)

Chapter 3:- पृथ्वी की आन्तरिक संरचना (Interior of the Earth)

Chapter 4:- महासागरों और महाद्वीपों का वितरण (Distribution of Oceans and Continents)

Chapter 5:- खनिज एंव शैल (Minerals and Rocks)

Chapter 6:- आकृतिक प्रक्रियाएँ (Geomorphic Processes)

Chapter 7:- भू आकृतियाँ तथा उनका विकास (Landforms and their Evolution)

Chapter 8:- वायुमण्डल का संघटन एवं संरचना (Composition and Structure of Atmosphere)

Chapter 9:- सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान (Solar Radiation , Heat Balance and Temperature)

Chapter 10:- वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसमी प्रणालियाँ (Atmospheric Circulation and Seasonal Systems)

Chapter 11:- वायुमंडल में जल (Water in the Atmosphere)

Chapter 12:- विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन (World Climate and Climate Change)

Chapter 13:- महासागरीय जल (Ocean Water)

Chapter 14:- महासागरीय जल संचलन (Movements of Ocean Water)

Chapter 15:- पृथ्वी पर जीवन (Life on the Earth)

Chapter 16:- जैव विविधता एवं संरक्षण (Biodiversity and Conservation)

 

 

 भारत : भौतिक पर्यावरण

Chapter 1:- भारत स्थिति (India - Location)

Chapter 2:- संरचना तथा भू - आकृति विज्ञान (Structure and Physiography)

Chapter 3:- अपवाह तंत्र (Drainage System)

Chapter 4:- जलवायु (Climate)

Chapter 5:- प्राकृतिक वनस्पति (Natural Vegetation)

Chapter 6:- मृदा (Soils)

Chapter 7:- प्राकृतिक आपदाएं और संकट (Natural Hazards and Disaster)

 

 

 


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