पृथ्वी की आन्तरिक संरचना
(Interior of The Earth)
❇️ पृथ्वी :-
🔹 सौरमंडल में पृथ्वी एक मात्र ऐसा ग्रह है जिस पर जीवन विधमान है एवं यह अपनी स्थिति के अंतर्गत तीसरा ग्रह हैं इससे नीला ग्रह भी कहा जाता है , क्योकि पृथ्वी पर 71 % जल पाया जाता है ।
❇️ पृथ्वी की आन्तरिक संरचना :-
🔹 पृथ्वी की आन्तरिक संरचना को समझने में जिन स्त्रोतों की भूमिका प्रमुख है उनको हम दो भागों में विभाजित कर सकते हैं ।
🔶 प्रत्यक्ष स्रोत :- इसके अन्तर्गत खनन से प्राप्त प्रमाण एवं ज्वालामुखी से निकली हुई वस्तुऐं आती है ।
🔶 अप्रत्यक्ष स्रोत :- इसके अन्तर्गत
🔹पृथ्वी के आन्तरिक भाग में तापमान दबाव एवं घनत्व में अन्तर
🔹अन्तरिक्ष से प्राप्त उल्कापिंड
🔹गुरूत्वाकर्षण
🔹भूकम्प संबंधी क्रियाएँ आदि आते हैं ।
🔶 भूकम्पीय तरंगें :- प्राथमिक तरंगें एवं द्वितीयक तरंगें भी भूगर्भ को समझने में सहायक हैं । यह अध्याय पृथ्वी के अन्दर की तीनों परतों एवं ज्वालामुखी द्वारा निर्मित स्थलरूपों को समझने में भी सहायक है ।
❇️ पृथ्वी की आंतरिक संरचना की परतें :-
🔹 पृथ्वी की आंतरिक संरचना को मुख्यत : तीन भागो में विभाजित किया जाता है :-
( 1 ) भूपर्पटी
( 2 ) मैंटल
( 3 ) क्रोड
❇️ भूपर्पटी :-
🔹 यह पृथ्वी का सबसे बाहरी भाग है । यह धरातल से 30 कि . मी . की गहराई तक पाई जाती है । इस परत की चट्टानों का घनतव 3 ग्राम प्रति घन से . मी . है ।
❇️ मैंटल :-
🔹 भूपर्पटी से नीचे का भाग मैंटल कहलाता है यह भाग भूपर्पटी के नीचे से आरम्भ होकर 2900 कि . मी . गहराई तक है । भूपर्पटी एंव मैंटल का उपरी भाग मिलकर स्थल मंडल बनाता है । मैंटल का निचला भाग ठोस अवस्था में है । इसका घनत्व लगभग 3.4 प्रति घन से . मी . हैं ।
❇️ क्रोड :-
🔹 मैंटल के नीचे क्रोड है जिसे हम आन्तरिक व बाह्य क्रोड दो हिस्सों में बांटते हैं । बाह्य क्रोड तरल अवस्था में है । जबकि आन्तरिक क्रोड ठोस है । इसका घनत्व लगभग 13 ग्राम प्रति घन सेमी है । क्रोड निकिल व लोहे जैसे भारी पदार्थो से बना है ।
❇️ पृथ्वी की भूपर्पटी ( Earth Crust ) के भाग :-
🔹 पृथ्वी की भूपर्पटी की गहराई धरातल के नीचे 30 कि.मी. तक है । इसे दो भागों में बांटा गया है :-
🔶 महाद्वीपीय परत या सियाल ( Sial ) :- 20 कि.मी. मोटी यह परत मुख्यतः सिलिकेट तथा एल्युमिनियम जैसे हल्के खनिजों से बनी है । अतः इसे Sial ( Si = सिलिका व AI = एल्यूमिनियम ) भी कहते हैं । इसका घनत्व कम है ।
🔶 महासागरीय परत या सिमा ( Sima ) :- यह परत 20 – 30 कि . मी . की औसत गहराई पर पाई जाती है जो कि मुख्यतः बेसाल्ट से बनी है । यह घनत्व में सियाल से भारी है । इस परत में सिलिकेट के साथ मैगनिशियम खनिजों को भी अधिकता है अतः इसे सिमा ( Sima ) भी कहते हैं ।
❇️ भूकम्प :-
🔹 भूकम्प का साधारण अर्थ है भूमि का काँपना अथवा पृथ्वी का हिलना । दूसरे शब्दों में अचानक झटके से प्रारम्भ हुए पृथ्वी के कम्पन को भूकम्प कहते हैं । भूकम्प एक प्राकृतिक आपदा है । भूकम्पीय आपदा से होने वाले प्रकोप निम्न है :-
🔶 भूमि का हिलना ।
🔶 धरातलीय विंसगति ।
🔶 भू – स्खलन / पंकस्खलन ।
🔶 मृदा द्रवण ।
🔶 धरातलीय विस्थापन ।
🔶 हिमस्खलन ।
🔶 बाँध व तटबंध के टूटने से बाढ़ का आना ।
🔶 आग लगना ।
🔶 इमारतों का टूटना तथा ढाचों का ध्वस्त होना ।
🔶 सुनामी लहरें उत्पन्न होना ।
🔶 वस्तुओं का गिरना ।
🔶 धरातल का एक तरफ झुकना ।
❇️ पृथ्वी में कम्पन्न क्यों होता है ?
🔹 भूपृष्ठ में पड़ी भ्रंश के दोनों तरफ शैल विपरीत दिशा में गति करती हैं । जहाँ ऊपर के शैल खण्ड दबाव डालते हैं । उनके आपस का घर्षण उन्हें परस्पर बांधे रखता है । फिर भी अलग होने की प्रवृति के कारण एक समय पर घर्षण का प्रभाव कम हो जाता है जिसके परिणामस्वरूप शैलखण्ड विकृत होकर अचानक एक – दूसरे के विपरीत दिशा में सरक जाते है । इससे ऊर्जा निकलती है और ऊर्जा तरंगें सभी दिशाओं में गतिमान होती हैं । इससे पृथ्वी में कम्पन हो जाती है ।
❇️ भूकम्प के मुख्य प्रकार :-
🔹 भूकम्प की उत्पत्ति के कारकों के आधार पर भूकम्प को निम्नलिखित पाँच वर्गों में बाँटा गया है :-
🔶 विर्वतनिक भूकम्प ( Tectonic Earthquake ) :- सामान्यतः विर्वतनिक भूकम्प ही अधिक आते हैं । ये भूकम्प भ्रंश तल के किनारे चट्टानों के सरक जाने के कारण उत्पन्न होते हैं । जैसे – महाद्वीपीय , महासागरीय प्लेटों का एक दूसरे से टकराना अथवा एक दूसरे से दूर जाना इसका मुख्य कारण है ।
🔶 ज्वालामुखी भूकम्प ( Volcanic Earthquake ) :- एक विशिष्ट वर्ग के विर्वतनिक भूकम्प को ही ज्वालामुखी भूकम्प समझा जाता है । ये भूकम्प अधिकांशतः सक्रिय ज्वालामुखी क्षेत्रों तक ही सीमित रहते हैं ।
🔶 निपात भूकम्प ( Collapse Earthquake ) :- खनन क्षेत्रों में कभी – कभी अत्यधिक खनन कार्य से भूमिगत खानों की छत ढह जाती हैं , जिससे भूकम्प के हल्के झटके महसूस किए जाते हैं । इन्हें निपात भूकम्प कहा जाता है ।
🔶 विस्फोट भूकम्प ( Explosion Earthquake ) :- कभी – कभी परमाणु व रासायनिक विस्फोट से भी भूमि में कम्पन होता है , इस तरह के झटकों को विस्फोट भूकम्प कहते हैं ।
🔶 बाँध जनित भूकम्प ( Reservoir induced Earthquake ) :- जो भूकम्प बड़े बाँध वाले क्षेत्रों में आते हैं , उन्हे बाँध जनित भूकम्प कहा जाता है ।
❇️ भूकम्पीय तरंगे के प्रकार :-
🔹 भूकम्पीय तरंगें दो प्रकार की होती हैं :-
🔶भूगर्भीय तरंगें
🔶धरातलीय तरंगें
❇️ भूगर्भिक तरंगें :-
🔹 ये तरंगें भूगर्भ में उद्गम केन्द्र से निकलती हैं और विभिन्न दिशाओं में जाती हैं । ये तरंगें धरातलीय शैलों से क्रिया करके धरातलीय तरंगों में बदल जाती हैं ।
🔹 भूगर्भिक तरंगें दो प्रकार की होती हैं ।
🔶 पी तरंगे ( प्राथमिक तरंगें ) स्प्रिंग के समान :- ये तरंगें गैस , तरल व ठोस तीनों प्रकार के मध्यमों से होकर गुजरती हैं । ये तीव्र गति से चलने वाली तरंगे हैं जो धरातल पर सबसे पहले पहुँचती हैं ।
🔶 एस तरंगे ( द्वितियक तरंगें ) ( रस्सी का झटकना के समान ) :- ये तरंगें केवल कठोर व ठोस माध्यम से ही गुजर सकती हैं । ये धरातल पर पी तरंगों के पश्चात् ही पहुँचती हैं इन तरंगों के तरल से न गुजरने के कारण वैज्ञानिकों द्वारा भूगर्भ को समझने में सहायक होती है ।
🔹 पी तरंगें जिधर चलती हैं उसी दिशा में ही पदार्थ पर दबाव डालती हैं । एस तरंगें तरंग की दिशा के समकोण पर कंपन उत्पन्न करती हैं । धरातलीय तरंगें भूकंपलेखी पर सबसे अंत में अभिलेखित होती हैं और सर्वाधिक विनाशक होती है ।
❇️ धरातलीय तरंगे :-
🔹 ये तरंगे धरातल पर अधिक प्रभावकारी होती हैं । गहराई के साथ – साथ इनकी तीव्रता कम हो जाती है । भूगर्भिक तरंगों एवं धरातलीय शैलों के मध्य अन्योन्य क्रिया के कारण नई तरंगें उत्पन्न होती हैं । जिन्हें धरातलीय तरंगें कहा जाता है ।
🔹 ये तरंगें धरातल के साथ – साथ चलती हैं । इन तरंगों का वेग अलग – अलग घनत्व वाले पदार्थों से गुजरने पर परिवर्तित हो जाता है । धरातल पर जान – माल का सबसे अधिक नुकसान इन्ही तरंगों के कारण होता है । जैसे – इमारतों व बाँधों का टूटना तथा जमीन का धंसना आदि ।
❇️ प्राथमिक तरंगों तथा द्वितीयक तरंगों में अन्तर :-
🔶 प्राथमिक तरंगें :-
🔹 ‘ पी ‘ तरंगें तेज गति से चलने वाली तरंगें हैं तथा धरातल पर सबसे पहले पहुँचती हैं ।
🔹 ‘ पी ‘ तरंगें ध्वनि तरंगों की तरह होती हैं ।
🔹 ये तरंगें गैस , ठोस व तरल तीनों तरह के पदार्थों से होकर गुजर सकती हैं ।
🔹 ‘ पी ‘ तरंगों में कंपन की दिशा उत्पन्न तरंगों की दिशा के समांतर होती है ।
🔹 ये शैलों में संकुचन और फैलाव उत्पन्न करती हैं ।
✴️ द्वितीयक तरंगें :-
🔹 ‘ एस ‘ तरंगें धीमे चलती हैं तथा धरातल पर ‘ पी ‘ तरंगों के बाद पहुँचती हैं ।
🔹 ‘ एस ‘ तरंगें सागरीय तरंगों की तरह होती हैं ।
🔹 ये तरंगें केवल ठोस पदार्थ में से ही गुजर सकती हैं ।
🔹 ‘ एस ‘ तरंगों में कंपन की दिशा तरंगों की दिशा से समकोण बनाती हैं ।
🔹ये शैलों में उभार तथा गर्त उत्पन्न करती हैं ।
❇️ भूकम्पीय छाया क्षेत्र :-
🔹भूकम्प लेखी यंत्र पर दूरस्थ स्थानों से पहुँचने वाली भूकंपीय तरंगें अभिलेखित होती हैं । हालाकि कुछ ऐसे क्षेत्र भी होते हैं जहाँ कोई भी भूकंपीय तरंग अभिलेखित नहीं होती । ऐसे क्षेत्रों को भूकंपीय छाया क्षेत्र कहते हैं ।
🔹 एक भूकंप का छाया क्षेत्र दूसरे भूकंप के छाया क्षेत्र से भिन्न होता है । ‘ P ‘ तथा ‘ S ‘ तरंगों के अभिलेखन से छाया क्षेत्र का स्पष्ट पता चलता है ।
🔹 यह देखा गया है कि ‘ P ‘ तथा ‘ S ‘ तरंगें अधिकेन्द्र से 105 के भीतर अभिलेखित की जाती हैं । किन्तु 145 के बाद केवल तरंगें ही अभिलेखित होती हैं ।
🔹अधिकेन्द्र से 105 से 145 के बीच कोई भी तरंग अभिलेखित नहीं होती , अतः यह क्षेत्र दोनो प्रकार की तरंगों के लिए छाया क्षेत्र का काम करता है ।
🔹 यद्यपि ‘ P ‘ तरंगों का छाया क्षेत्र ‘ S ‘ तरंगों के छाया क्षेत्र से कम होता है क्योंकि ‘ P ‘ तरंगें केवल 105 से 145 ° तक दिखलायी नहीं देती , किन्तु ‘ S तरंगे 105 के बाद कहीं भी दिखलाई नहीं देतीं , इस तरह ‘ S ‘ तरंगों का छाया क्षेत्र ‘ P तरंगों के छाया क्षेत्र से बड़ा होता है ।
❇️ बैथोलिथ व लैकोलिथ में क्या अन्तर है ?
🔶 बैथोलिथ :- भूपर्पटी में मैग्मा का गुबंदाकार ठंडा हुआ पिंड है जो कई कि . मी . की गहराई में विशाल क्षेत्र में फैला होता हैं ।
🔶 लैकोलिथ :- बहुत अधिक गहराई में पाये जाने वाले मैग्मा के विस्तृत गुंबदाकार पिंड हैं जिनका तल समतल होता है और एक नली ( जिससे मैग्मा ऊपर आता है ) मैग्मा स्रोत से जुड़ी होती है । इन दोनों भू – आकृतियों में मुख्य अंतर इनकी गहराई ही है ।
❇️ ज्वालामुखी :-
🔹 ज्वालामुखी पृथ्वी पर होने वाली एक आकस्मिक घटना है । इससे भू – पटल पर अचानक विस्फोट होता है , जिसके द्वारा लावा , गैस , धुआँ , राख , कंकड़ , पत्थर आदि बाहर निकलते हैं । इन सभी वस्तुओं का निकास एक प्राकृतिक नली द्वारा होता है जिसे निकास नालिका कहते हैं । लावा धरातल पर आने के लिए एक छिद्र बनाता है जिसे विवर या क्रेटर कहते है ।
❇️ ज्वालामुखी के प्रकार :-
🔹 ज्वालामुखी मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं
🔶 सक्रिय ज्वालामुखी :-
🔹 इस प्रकार के ज्वालामुखी में प्राय विस्फोट तथा उद्भेदन होता ही रहता है इनका मुख सर्वदा खुला रहता है । इटली का ‘ एटना ज्वालामुखी इसका उदाहरण है ।
🔶 प्रसुप्त ज्वालामुखी :-
🔹 इस प्रकार के ज्वालामुखी में दीर्घकाल से कोई उद्भेदन नहीं हुआ होता किन्तु इसकी सम्भावना बनी रहती है । ऐसे ज्वालामुखी जब कभी अचानक क्रियाशील हो जाते हैं तो इन से जन धन की अपार क्षति होती है । इटली का विसूवियस ज्वालामुखी इसका प्रमुख उदाहरण है ।
🔶 विलुप्त ज्वालामुखी :-
🔹 इस प्रकार के ज्वालामुखी में विस्फोट प्रायः बन्द हो जाते हैं और भविष्य में भी विस्फोट होने की सम्भावना नहीं होती । म्यांमार का पोपा ज्वालामुखी इसका प्रमुख उदाहरण है ।
❇️ ज्वालामुखी द्वारा निर्मित निम्नलिखित आकृतियों के निर्माण की प्रक्रिया :-
🔶 काल्डेरा :-
🔹 ज्वालामुखी जब बहुत अधिक विस्फोटक होते हैं तो वे ऊचां ढांचा बनाने के बजाय उभरे हुए भाग को विस्फोट से उड़ा देते हैं और वहाँ एक बहुत बड़ा गढ्ढा बन जाता है जिसे काल्डेरा ( बड़ी कड़ाही ) कहते हैं ।
🔶 सिंडरशंकु :-
🔹 जब ज्वालामुखी की प्रवृति कम विस्फोटक होती है तो निकास नालिका से लावा फव्वारे की तरह निकलता है और निकास के पास एक शंकु के रूप में जमा होता जाता है जिसे सिंडर शंकु कहते है ।
❇️ ज्वालामुखी द्वारा निर्मित अन्तर्वेधी आकृतिया :-
🔶 सिल व शीट :-
🔹 भूगर्भ में लावा जब क्षैतिज तल में चादर के रूप में ठंडा होता है और यह परत काफी मोटी होती है तो इसे सिल कहते हैं यह परत जब पतली होती है तब इसे शीट कहते हैं ।
🔶 डाइक :-
🔹 लावा का प्रवाह भूगर्भ मे कभी – कभी किसी दरार में ही ठंडा होकर जम जाता है । यह दरार धरातल के समकोण पर होती है । इस दीवार की भांति खडी संरचना को डाइक कहते हैं ।