आकृतिक प्रक्रियाएँ (Geomorphic Processes) || 11th Class Geography Ch-6 ( Book-1) || Notes In Hindi

 आकृतिक प्रक्रियाएँ 

(Geomorphic Processes)



❇️ विवर्तनिक शक्तियाँ :-

🔹 पृथ्वी का धरातल असमान है । इस असमानता के पीछे पृथ्वी की आन्तरिक शक्तियाँ जिम्मेदार हैं । ये शक्तियाँ स्थलमंडलीय प्लेटों को गतिमान करती हैं । जिससे धरातल पर विभिन्न स्थलरूपों की रचना होती है और पृथ्वी का धरातल असमतल हो जाता है । इन शक्तियों को विवर्तनिक शक्तियाँ ( Tectonic Forces ) कहा जाता है ।

🔹 पृथ्वी का धरातल ज्योंही असमतल होता है सूर्य की शक्ति से उत्पन्न बहिर्जनिक शक्तियाँ तोड़फोड़ कर तथा घिस – घिस कर समतल करने का प्रयास करती हैं । 

❇️ भू – आकृतिक प्रक्रियाएं :-

🔹 अन्तर्जनित अर्थात आन्तरिक शक्तियों ( Endogenic Forces ) एवं बर्हिजनिक अर्थात बाहरी शक्तियों ( Exogenic Forces ) के इस खेल से पृथ्वी पर भू – आकृतियाँ बनती संवरती जाती हैं । 

🔹 ये दोनो प्रक्रियाएँ पृथ्वी के धरातल पर निंरतर सक्रिय रहती हैं । इन्हीं को भू – आकृतिक प्रक्रियाएं कहते हैं । धरातल पर इन प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप मानव को उसकी जीविका तथा विविध संसाधन आधार प्राप्त होता है ।

🔹 धरातल पर दिखायी देने वाली समस्त भू – आकृतियाँ दो प्रकार के बलों से बनती हैं ।

1) बहिर्जनिक बल 

2) अंतर्जनित बल 

🔹 अंतर्जनित शक्तियां धरातल को उठाती रहती हैं और बाह्य शक्तियां लगातार उन्हें समतल करती रहती हैं । 


नोट :- इस अध्याय में हम विशेष रूप से बाह्य प्रक्रियाओं जैसे अनाच्छादन , अपरदन , वृहत् संचलन आदि का अध्ययन करेंगे ।


❇️ अनाच्छादन :-

🔹 विभिन्न बहिर्जनिक भू – आकृतिक प्रक्रियाओं जैसे अपक्षय , वृहतक्षरण , संचलन , अपरदन , परिवहन आदि के कारण धरातल की चट्टानों का ऊपरी आवरण हट जाता है , इसे ही अनाच्छादन कहते हैं । 

❇️ अपक्षय :-

🔹  अपक्षय उस यान्त्रिक , रासायनिक तथा जैविक प्रक्रिया को कहते हैं जिसके कारण शैलें एक ही स्थान पर टूटती – फूटती व अपघटित होती रहती हैं ।

❇️ अपक्षय को निम्नलिखित प्रक्रियाओं द्वारा समझिये :-

🔶 अपशल्कन ( Exfoliation ) :- अपक्षय की इस प्रक्रिया में चट्टानों की परतें प्याज के छिलके की तरह उतरती हैं । ऐसा गुबंद आकार की भू – आकृतियों में होता है । इनके ऊपर की परत अपरदन के कारण हट जाती है और परतदार पट्टियाँ विकसित हो जाती हैं ।

🔶 संकुचन एंव विस्तारण ( Shrink and Expansion ) :- शैलों में मौजूद खनिज तापमान बढ़ने से फैलते हैं एवं तापमान कम होने से सिकुड़ते हैं इस प्रक्रिया से शैलें कमजोर होकर टूटती हैं । 

🔶 हिमकरण व तुषार वेडिंग ( Freezing and Frost Weding ) :- शैलों की दरारों में जल भर जाता है एवं तापमान गिरने से जल हिम से परिवर्तित हो जाता है । हिम बनने से आयतन बढ़ता है जो शैलों पर दबाव डालता है । इस प्रक्रिया की पुनरावृत्ति से शैले टूट जाती है ।

❇️ अपक्षय के प्रकार :-

🔹 अपक्षय दो प्रकार के होते हैं :-

🔶 रसायनिक अपक्षय

🔶 भौतिक अपक्षय

❇️ रसायनिक अपक्षय :-

🔹 रसायनिक अपक्षय को निम्न उदाहरणों के द्वारा समझा जा सकता है । नमक की एक डली को आर्द्र स्थान पर रखने से वह गल कर खत्म हो जाती है । लोहे को खुले में आर्द्र स्थान पर रखने से उसमें जंग लग जाता है । और धीरे – धीरे नष्ट होकर मिट्टी में मिल जाता है नमक का गलना एवं लोहे में जंग लगना रासायनिक क्रियाएँ हैं यही प्रक्रिया चट्टानों के साथ होती हैं तब इसे रासायनिक अपक्षय कहते हैं । 

❇️ रसायनिक अपक्षय के प्रकार :-

🔹 रसायनिक अपक्षय निम्नलिखित प्रकार के हो सकते है :-

🔶 विलयन ( Solution ) :- चट्टानों में मौजूद कई प्रकार के खनिज घुल जाते हैं जैसे नाइट्रेट , सल्फेट एंव पौटेशियम । इस तरह अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में तथा आर्द्र जलवायु में ऐसे खनिजों से युक्त शैलें अपक्षयित हो जाती हैं ।

🔶 कार्बोनेशन ( Carbonation ) :- वर्षा क जल में घुली हुई कार्बनडाईआक्साईड से कार्बोनिक अम्ल का निर्माण होता है यह अम्ल चूना युक्त चट्टानों को घुला देता है । 

🔶 जलयोजन ( Hydration ) :- कुछ चट्टानें जैसे कैल्शियम सल्फेट जल को सोख लेती हैं और फैल कर कमजोर हो जाती हैं तथा बाद में टूट जाती हैं ।

🔶 आक्सीकरण ( Oxidation & Reduction ) :- लोहे पर जंग लगना आक्सीकरण का अच्छा उदाहरण है । चट्टानों के ऑक्सीजन गैस के सम्पर्क में आने से यह प्रक्रिया होती है । यह प्रक्रिया वायुमंडल एवं ऑक्सीजन युक्त जल के मिलने से होती है ।

❇️ भौतिक अपक्षय :-

🔹 भौतिक अपक्षय के कारण चट्टानें छोटे – छोटे टुकड़ों मे टूट जाती हैं जिनके लिये गुरूत्वाकर्षण बल , तापमान में परिवर्तन शुष्क एवं आर्द्र परिस्थितयों का अदल – बदल कर आना जैसे कारक जिम्मेदार हैं । 

❇️ भौतिक अपक्षय के प्रकार :-

🔹 भौतिक अपक्षय निम्नप्रकार से होता है :-

🔶 भार विहीनीकरण ( Unloading ) 

🔶 तापक्रम में परिवर्तन ( Change in Temperature ) 

🔶 हिमकरण एवं तुषार वेडिंग ( Freezing and Frost Wending )

🔶 लवण अपक्षय ( SaltWeathering ) 

🔶 जैविक अपक्षय ( Biological Weathering )

❇️ जैविक अपक्षय :-

🔹 जीवों की वृद्धि यां संचलन से उत्पन्न अपक्षय एवं भौतिक परिवर्तन से खनिजों का स्थानान्तरण होता है और मानवीय क्रियाएँ भी जैविक अपक्षय में सहायक होती हैं । केंचुओं , दीमकों , चूहों इत्यादि जीवों द्वारा बिल खोदने के द्वारा नई सतहों का निर्माण होता है । पौधों की जड़ें धरातल के पदार्थों पर जबरदस्त प्रभाव डालती हैं तथ उन्हें यांत्रिक ढंग से तोड़कर अलग अलग कर देती है ।

❇️ कार्बोनेशन प्रक्रिया :-

🔹 यह एक प्रक्रिया है जिसमें कार्बोनेट तथा बाई कार्बोनेट का खनिजों से प्रतिक्रिया का प्रतिफल कार्बोनेशन कहलाता है । जल द्वारा वायुमंडल व मृदा से कार्बन डाईऑक्साईड अवशोषित की जाती है । इससे कार्बोनिक अम्ल निर्मित होता है , जो एक कम सक्रिय अम्ल के रूप में घुल जाते हैं तथा कोई अवशेष नहीं छोड़ते । इसके फलस्वरूप चुना पत्थर क्षेत्रों में भूमिगत गुफाओं का निर्माण होता है ।

❇️ अपक्षय प्रक्रिया का महत्व :-

🔹 चट्टानें छोटे टुकड़ों में बंटकर मृदा के निर्माण में सहायक होती हैं । अपक्षय , चट्टानों में मूल्यवान खनिजों जैसे लौहा , मैगनीज , तांबा आदि के संकेन्द्रण में सहायक है क्योंकि , अपक्षय के कारण अन्य पदार्थों का निक्षालन हो जाता है और वे स्थानान्तरित हो जाते है एवं खनिज एक जगह इकट्ठे हो जाते हैं ।

❇️ वृहत् संचलन :-

🔹 शैलों का मलवा छोटे या बड़े रूप में गुरुत्वाकर्षण बल के कारण ढाल के सहारे मंद या तीव्र गति से स्थानान्तरित होता है तो इसे वृहत संचलन कहते है ।

❇️ वृहत संचलन की सक्रियता के पीछे कार्य करने वाले कारक :-

🔹 वृहत संचलन की सक्रियता के पीछे अनेक कारक कार्य करते हैं । जोकि इस प्रकार हैं :-

🔶प्राकृतिक और कृत्रिम साधनों द्वारा ऊपर के पदार्थो के टिकने के आधार का हटाना । 

🔶ढालों की प्रवणता और ऊँचाई में बढ़ोतरी । 

🔶पदार्थों के प्राकृतिक या कृत्रिम भराव के कारण पैदा अतिभार । 

🔶अत्यधिक वर्षा , संतृप्ति तथा ढाल से पदार्थो के स्नेहन द्वारा उत्पन्न अतिभार । 

🔶मूल ढाल की सतह पर पदार्थ अथवा भार का हटना ।

🔶 भूकंप आना , 

🔶विस्फोट अथवा मशीनों का कंपन ।

🔶 प्राकृतिक वनस्पति की अंधाधुंध कटाई ।

❇️ तीव्र संचलन प्रक्रिया :-

🔹 आर्द्र जलवायु में मंद या तीव्र वनस्पति विहीन ढालों पर जलयुक्त मिट्टी अथवा गाद का तेजी से खिसकना तीव्र संचलन कहलाता है । 

🔹 यह प्रक्रिया कई तरीके की होती है :-

🔶 मृदा – प्रवाह ( Earth Flow ) :- जब संतृप्त चिकनी मिट्टी व गाद पहाड़ी ढालों के सहारे नीचे की ओर संचलन मृदा प्रवाह कहलाता है । सीढी बनाते हुए जब यह पदार्थ सांप की तरह नीचे खिसकता है तो यह अवसर्पण कहलाता है ।

🔶 कीचड़ प्रवाह ( Mud Flow ) :- बहुत अधिक मात्रा में अपक्षय होने से पदार्थ भारी वर्षा के कारण कीचड़ बन जाता है । और तेजी से कीचड़ की नदी के रूप में ढालों से घाटियों की और बहने लगता है यह घटना बहुत विनाशकारी सिद्ध होती है । 

🔶 मलवा अवधाव ( Avalanche ) :- यह प्रक्रिया तीव्र ढालों पर हाती है जिससे मलवा ( चट्टानों के टुकडे ) कीचड़ प्रवाह से भी तेज गति से नीचे आता है ।

❇️ निक्षेपण :-

🔹 निक्षेपण अपरदन का परिणाम होता है जब ढाल में कमी आ जाती है तो अपरदित पदार्थ का निक्षेपण अर्थात जमाव शुरू हो जाता है ।

❇️ मृदा क्या है ?

🔹 मृदा धरातल पर प्राकृतिक तत्वों का समूह है जिसमे जीव जंतुओं तथा पौधों को पोषित करने की क्षमता होती है ।

❇️ मृदा निर्माण को प्रभावित करने वाले कारक :-

🔶 जलवायु :- जलवायु मूल शैल के अपक्षय को प्रभावित करती है । अधिक वर्षा मिट्टी में ह्यूमस की मात्रा बढ़ाती है । लेकिन भारी वर्षा के कारण मिट्टी के उपजाऊ तत्वों को नुकसान भी पहुँचता है । 

🔶 मूल पदार्थ :- जिस प्रकार चट्टानों का अपक्षय होता है मिट्टी का प्रकार भी वैसा होता है उदाहरणार्थ दक्षिण भारत की मिट्टी वहाँ की आधार शैलों के कारण काली है । 

🔶 उच्चावच :- पहाड़ी भागों में मिट्टी की परत पतली होती है जबकि मैदानी भागों मे मिट्टी की परत की मोटाई अधिक होती है । 

 🔶 जैविक क्रियाएं :- वनस्पति आवरण एवं सूक्ष्म जीवों की उपस्थिति मृदा को अधिक उपजाऊ बनाती है । 

🔶 समय :- लम्बी कालावधि में बनी मिट्टी अधिक समृद्ध एवं उपजाऊ होती है ।

❇️ अपक्षय मृदा निर्माण को किस तरह प्रभावित करता है ?

🔹 चट्टानों के अपक्षय से प्राप्त पदार्थ मृदा निर्माण के लिये आधार का कार्य करता है । इसमें पेड़ पौधे एवं जीव जन्तुओं के सड़े गले अंश होते हैं । जिन्हें यूमस कहा जाता है । इस मिश्रण में रंध्रो में जीवन के लिए आवश्यक गैसें तथा जल में घुले हुए पोषक खनिज भी मिल जाते हैं । इस तरह लम्बी समयावधि में मृदा का अच्छा मिश्रण तैयार होता जाता है ।

❇️ मिट्टी के निर्माणकारी सक्रिय तथा निष्क्रिय कारक :-

🔹 सक्रिय घटक ( Active Factors ) 

🔶 जलवायु तथा जैविक क्रियाएं सक्रिय घटक है । 

🔶इन घटकों द्वारा मिट्टी में परिवर्तन क्रिया होती रहती है । 

🔶इन घटकों तथा अपघटन तथा विघटन होता रहता है । 

🔶 इन घटकों द्वारा मिट्टी निर्माण में कम समय लगता है ।

🔹 निश्क्रिय घटक ( Passive Factors )

🔶 मूल पदार्थ , धरातल तथा समय निष्क्रिय घटक है ।

🔶ये घटक अपने आप में कोई परिवर्तन नहीं लाते । 

🔶ये घटक कोई क्रिया नहीं करते । 

🔶 इन घटकों द्वारा मिट्टी निर्माण में बहुत अधिक समय लगता है ।

❇️ अपरदन :-

🔹 प्रवाहितजल , भौमजल , हिमानी , वायु , लहरों एवं धाराओं द्वारा शैलों को काटना , खुरचना और उससे प्राप्त मैलवे को एक जगह से दूसरी जगह ले जाना अपरदन कहलाता है ।

❇️ तल संतुलन :-

🔹 प्रकृति ने धरातल पर कही ऊँचे पहाड़ और कहीं गहरी घाटियाँ बनाई हैं । अपरदन के विभिन्न कारकों के माध्यम से उच्चावच के इस अंतर को कम करने को तल संतुलन कहते हैं ।




इतिहास विश्व इतिहास के कुछ विषय

Chapter 1: - समय की शुरुआत से (From the Beginning of Time)

Chapter 2: - लेखन कला और शहरी जीवन (Writing and City Life)

Chapter 3: - तीन महाद्वीपों में फैला हुआ साम्राज्य (An Empire Across Three Continents)

Chapter 4:- इस्लाम का उदय और विस्तार (The Central Islamic Lands )

Chapter 5:- यायावर साम्राज्य (Nomadic Empires)

Chapter 6:- तीन वर्ग (The Three Orders)

Chapter 7:- बदलती हुई सांस्कृतिक परम्पराएँ (Changing Cultural Traditions)

Chapter 8:- संस्कृतियों का टकराव (Confrontation of Cultures)

Chapter 9:- औद्योगिक क्रांति (The Industrial Revolution)

Chapter 10:- मूल निवासियों का विस्थापन (Displacing Indigenous Peoples)

Chapter 11:- आधुनिकीकरण के रास्ते (Paths to Modernization)

राजनीति विज्ञान  भारत का संविधान : सिद्धांत और व्यवहार

Chapter 1:- संविधान क्यों और कैसे (Constitution because and how)

Chapter 2:- भारतीय संविधान में अधिकार (Rights in the Indian Constitution)

Chapter 3:- चुनाव और प्रतिनिधि (Election and Representative)

Chapter 4:- कार्यपालिका (Executive)

Chapter 5:- विधायिका (Legislature)

Chapter 6:- न्यायपालिका (Judiciary)

Chapter 7:- संघवाद (Federalism)

Chapter 8:- स्थानीय शासन (Local Government)

Chapter 9:- संविधान एक जीवंत दस्तावेज़ (Constitution a living document)

Chapter10:- संविधान का राजनितिक दर्शन (Political Philosophy of the Constitution)

 

 

- राजनितिक सिद्धांत

Chapter 1:- राजनीतिक सिद्धांत एक परिचय (Political Theory - An Introduction)

Chapter 2:- स्वतंत्रता (Freedom)

Chapter 3:- समानता (Equality)

Chapter 4:- सामाजिक न्याय (Social justice)

Chapter 5:- अधिकार (Rights)

Chapter 6:- नागरिकता (Citizenship)

Chapter 7:- राष्ट्रवाद (Nationalism)

Chapter 8:- धर्मनिरपेक्षता (Secularism)

Chapter 9:- शांति (Peace)

Chapter 10:- विकास (Development)

 

 

भूगोल   भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत

Chapter 1:- भूगोल एक विषय के रूप में (Geography as A Discipline)

Chapter 2:- पृथ्वी की उत्पत्ति एंव विकास (The Origin and Evolution of the Earth)

Chapter 3:- पृथ्वी की आन्तरिक संरचना (Interior of the Earth)

Chapter 4:- महासागरों और महाद्वीपों का वितरण (Distribution of Oceans and Continents)

Chapter 5:- खनिज एंव शैल (Minerals and Rocks)

Chapter 6:- आकृतिक प्रक्रियाएँ (Geomorphic Processes)

Chapter 7:- भू आकृतियाँ तथा उनका विकास (Landforms and their Evolution)

Chapter 8:- वायुमण्डल का संघटन एवं संरचना (Composition and Structure of Atmosphere)

Chapter 9:- सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान (Solar Radiation , Heat Balance and Temperature)

Chapter 10:- वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसमी प्रणालियाँ (Atmospheric Circulation and Seasonal Systems)

Chapter 11:- वायुमंडल में जल (Water in the Atmosphere)

Chapter 12:- विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन (World Climate and Climate Change)

Chapter 13:- महासागरीय जल (Ocean Water)

Chapter 14:- महासागरीय जल संचलन (Movements of Ocean Water)

Chapter 15:- पृथ्वी पर जीवन (Life on the Earth)

Chapter 16:- जैव विविधता एवं संरक्षण (Biodiversity and Conservation)

 

 

 भारत : भौतिक पर्यावरण

Chapter 1:- भारत स्थिति (India - Location)

Chapter 2:- संरचना तथा भू - आकृति विज्ञान (Structure and Physiography)

Chapter 3:- अपवाह तंत्र (Drainage System)

Chapter 4:- जलवायु (Climate)

Chapter 5:- प्राकृतिक वनस्पति (Natural Vegetation)

Chapter 6:- मृदा (Soils)

Chapter 7:- प्राकृतिक आपदाएं और संकट (Natural Hazards and Disaster)

 

 

 


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