जलवायु (Climate) || 11th Class Geography Ch-4 (Book-2) || Notes In Hindi

जलवायु

(Climate)



❇️ मौसम तथा जलवायु :-

🔹  मौसम वायुमंडल की क्षणिक अवस्था है , जबकि जलवायु का तात्पर्य अपेक्षाकृत लंबे समय की मौसमी दशाओं के औसत से होता है । मौसम जल्दी – जल्दी बदलता है , जैसे कि एक दिन में या एक सप्ताह में , परंतु जलवायु में बदलाव 50 अथवा इससे भी अधिक वर्षों में आता है ।

❇️ भारतीय मौसम को प्रभावित करने वाले कारक :-

🔹 वायु दाब तथा ताप का धरातलीय वितरण । 

🔹 ऊपरी वायु परिसंचरन , वायुराशियों का अन्तर्वाह । 

🔹 वर्षा लाने वाले तंत्र – पश्चिमी विक्षोभ तथा उष्ण कटिबंधीय चक्रवात ।

❇️ भारतीय मानसून की प्रमुख विशेषताएं :-

🔹 ऋतु के अनुसार वायु की दिशा में परिवर्तन होना मानसूनी पवनों का अनिश्चित तथा अनियमित ( संदिग्ध ) होना।

🔹 मानसूनी पवनों के प्रादेशिक स्वरूप में भिन्नता होते हुए भी भारतीय जलवायु को व्यापक एकरूपता प्रदान करना ।

❇️ भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक :-

🔹 भारत विषुवत रेखा के उत्तर में विस्तृत है । कर्क रेखा इसके लगभग मध्य से गुजरती है , हिमालय पर्वत श्रृंखला इसको उत्तर में घेरे हुये है एवं दक्षिण में हिन्द महासागर है । ये परिस्थितियां यहां की जलवायु को निम्न प्रकार से प्रभावित करती है :-

🔶 आक्षांश :- भारत का दक्षिण भाग विषुवत रेखा एवं कर्क रेखा के बीच में पड़ता है । अतः यहां उष्ण कटिबंधीय प्रभाव रहता है जबकि कर्क रेखा से उत्तर का भाग शीतोष्ण कटिबंध में पड़ता है । 

🔶 पर्वत श्रेणी :- भारत के उत्तर में स्थित हिमालय पर्वत श्रेणी उत्तरी ध्रुव की ओर से आने वाली ठंडी हवाओं को भारत में आने से रोकती है , जिससे भारतीय उपमहाद्वीप में जलवायु का समताकारी स्वरूप बना रहता है । यही पर्वत श्रृंखला मानसूनी पवनों को रोककर वर्षा करने में सहायक होती है ।

🔶 जल एवं स्थल का वितरण :- भारत के प्रायद्वीपीय भाग एक ओर बंगाल की खाड़ी से एवं दूसरी ओर अरब सागर से घिरा होने के कारण यहाँ की जलवायु को प्रभावित करता है जिसके कारण दक्षिण – पश्चिम हवाओं को आर्द्रता ग्रहण करने में सहायता मिलती है । 

🔹 भारत का उत्तरी भाग स्थलबद्ध है इसलिये यहाँ तापमान ग्रीष्म ऋतु में अत्यधिक एवं शीत ऋतु में बहुत कम हो जाता है । 

🔹 इसके अतिरिक्त समुद्रतट से दूरी , समुद्रतल से ऊँचाई एवं उच्चावच भी जलवायु को प्रभावित करते हैं ।

❇️ भारत की परंपरागत ऋतुएँ :-

🔹 भारत की पंरपरागत ऋतुएँ द्विमासिक आधार पर बनी है इसलिए इनकी संख्या 6 है । इनके नाम हैं- बंसत , मार्च – अप्रैल , ग्रीष्मः मई – जून , वर्षाः जुलाई – अगस्त , शरदः सितंबर – अक्टूबर , हेमंतः नवम्बर – दिसम्बर तथा शिशिरः जनवरी – फरवरी ।

❇️ कोपेन के अनुसार भारत के जलवायु प्रदेश :-

🔹 कोपेन के अनुसार भारत के जलवायु प्रदेश निम्नलिखित है :-

🔶 लघु शुष्क ऋतु का मानसूनी प्रकार ( Amw ) :- इस प्रकार की जलवायु पश्चिमी तट के साथ – साथ ।

🔶 ग्रीष्म ऋतु में शुष्क मानसूनी प्रकार ( As ) :- इस प्रकार की जलवायु वाले प्रदेश का विस्तार कोरमंडल तट के साथ – साथ है ।

🔶 उष्ण कटिबंधीय सवाना प्रकार की जलवायु ( Aw ) :- तटवर्ती प्रदेश के कुछ क्षेत्रों को छोड़कर लगभग पूरे प्रायद्वीपीय भारत में इस प्रकार की जलवायु पाई जाती है ।

🔶 अर्धशुष्क स्टेपी जलवायु ( BShw ) :- प्रायद्वीप के अन्दर के भाग में तथा गुजरात , राजस्थान , हरियाणा , पंजाब , जम्मू और कश्मीर के कुछ भागों में पाई जाती है । 

🔶 उष्ण मरुस्थलीय प्रकार की जलवायु ( BWhw ) :- इस प्रकार की जलवायु केवल राजस्थान के पश्चिमी भाग में पाई जाती है । 

🔶 शुष्क शीत ऋतु वाला प्रदेश ( Cwg ) :- भारत के उत्तरी मैदान के अधिकतर भाग में यह जलवायु पाई जाती है ।

🔶 ठंडी आद्र शीत ऋतु वाला प्रदेश ( Dfc ) :- यह जलवायु पूर्वी क्षेत्र में पाई जाती है ।

🔶 ध्रवीय जलवायु ( E ) :- इस प्रकार की जलवायु कश्मीर और निकटवर्ती पर्वतीय श्रृंखलाओं में पाई जाती है ।

❇️ अंत: उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र ( आईटीसीजैड ) :-

🔹 अंतः उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र विषुवत रेखा पर स्थित एक निम्न वायुदाब वाला क्षेत्र है । इस क्षेत्र में व्यापारिक पवनें विपरीत दिशा से आकर मिलती हैं परिणामस्वरूप वायु ऊपर उठने लगती है ।

🔹  जुलाई के महीने में आई.टी.सी. जेड़ 20 ° से 25 ° उत्तरी अक्षांश के आस – पास गंगा के मैदान में स्थित हो जाता है । इसे मानसूनी गर्त भी कहते हैं । यह मानसूनी गर्त , उत्तर व उत्तर – पश्चिमी भारत पर तापीय निम्न वायु के विकास को प्रोत्साहित करता है । 

🔹 आई.टी.सी.जेड़ के उत्तर की ओर खिसकने के कारण दक्षिणी गोलार्द्ध की व्यापारिक पवनें 40 ° तथा 60 ° पूर्वी देशांतरों के बीच विषुवत वृत को पार कर जाती हैं । 

🔹 कोरियोलिस बल के प्रभाव से विषुवत वृत को पार करने वाली इन व्यापारिक पवनों की दिशा दक्षिण – पश्चिम से उत्तर – पूर्व की ओर हो जाती है । यही दक्षिण – पश्चिम मानसून है । शीत ऋतु में आई.टी.सी.जेड़ दक्षिण की ओर खिसक जाता है और पवनों की दिशा भी दक्षिण – पश्चिम से बदलकर उत्तर – पूर्व हो जाती है , यही उत्तर – पूर्व मानसून है ।

❇️ एल – निनो :-

🔹 एल – निनो का शाब्दिक अर्थ है ‘ बालक क्रिस्ट / ईसा ‘ । यह एक मौसम संबंधी घटना के लिए प्रयोग होने वाली शब्दावली है । जो कि प्रायः दिसम्बर के महीने में क्रिसमस के आस – पास पेरू तट के पास घटित होती है । 

🔹 इसमें पेरू वियन सागरीय धारा जिसे हम्बोल्ट धारा भी कहते हैं । उसका पानी अपेक्षाकृत अधिक गर्म हो जाता है । इस घटना का प्रभाव का विश्व की जलवायु पर देखा जाता है कहीं पर सूखा तो कहीं पर बाढ़ अर्थात अप्रत्यासित घटनाएँ सामने आती हैं । भारत की जलवायु पर भी इसका प्रभाव देखा जाता है ।

❇️ मानसून :-

🔹 शब्द अरबी भाषा से लिया गया है । मानसून शब्द का अर्थ है पवनों की दिशा में मौसम के अनुसार परिवर्तन ।

❇️ मानसून विस्फोट :-

🔹 आर्द्रता से लदी पवनें जब अत्यधिक भारी हो जाती हैं तो अपनी अधिशेष नमी को अत्यधिक गर्जन के साथ छोड़ती हैं । जो मूसलाधार वर्षा के रूप में धरातल पर पहुंचती है । इनसे वर्षा इतनी अधिक होती हैं कि कुछ घंटो में एक विस्तृत क्षेत्र को बाढ़ग्रस्त कर देती हैं । दक्षिण पश्चिमी मानसून द्वारा अकस्मात् ही भारी वर्षा शुरू हो जाती है । इस प्राकृतिक घटना को ही मानसून विस्फोट कहते हैं ।

❇️ मानसून विच्छेद :-

🔹 जब मानसूनी पवनें दो सप्ताह या इससे अधिक समय तक वर्षा करने में असफल रहती है तो वर्षा काल में शुष्क दौर आ जाता है , इसे मानसून विच्छेद कहते हैं । इसका कारण या तो उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों का कमजोर पड़ना या भारत में अंत : उष्ण कटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र की स्थिति में परिवर्तन आना है । पश्चिमी राजस्थान में तापमान की विलोमता जलवाष्प से लदी हुई वायु को ऊपर उठने से रोकती है और वर्षा नहीं होती है ।

❇️ मानसून का निर्वतन :-

🔹 मानसून के पीछे हटने या लौट जाने को मानसून का निवर्तन कहा जाता है । सितंबर के आरंभ से उत्तर – पश्चिमी भारत से मानसून पीछे हटने लगती है और मध्य अक्तूबर तक यह दक्षिणी भारत को छोड़ शेष समस्त भारत से निवर्तित हो जाती है । लौटती हुई मानसून पवनें बंगाल की खाड़ी से जल – वाष्प ग्रहण करके उत्तर – पूर्वी मानसून के रूप में तमिलनाडु में वर्षा करती हैं ।

❇️ मानसून को समझना :-

🔹 मानसून का स्वभाव एवं रचना – तंत्र संसार के विभिन्न भागों में स्थल , महासागरों तथा ऊपरी वायुमंडल से एकत्रित मौसम संबंधी आँकड़ों के आधार पर समझा जाता है । पूर्वी प्रशांत महासागर में स्थित फ्रेंच पोलिनेशिया के ताहिती ( लगभग 18० द . तथा 1490 प . ) तथा हिंद महासागर में आस्ट्रेलिया के पूर्वी भाग में स्थित पोर्ट डार्विन ( 12 ° 30 ‘ द . तथा 131 ° पू . ) के बीच पाए जाने वाले वायुदाब का अंतर मापकर मानसून की तीव्रता के बारे में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है । भारत का मौसम विभाग 16 कारकों ( मापदंडों ) के आधार पर मानसून के संभावित व्यवहार के बारे में काफी समय का पूर्वानुमान लगाता है । 

❇️ भारतीय मौसम विभाग के अनुसार भारत मे ऋतुएं :-

🔹 भारतीय मौसम विभाग के अनुसार भारत में सामान्यतः चार ऋतुएं मानी जाती है । जोकि इस प्रकार हैं :-

🔶 शीत ऋतु 

🔶 ग्रीष्म ऋतु 

🔶 दक्षिणी – पश्चिमी मानसून की ऋतु 

🔶 मानसून के निवर्तन अर्थात मानसून के लौटोने की ऋतु

❇️ ग्रीष्म ऋतु में मौसम की क्रियाविधि :-

🔶 धरातलीय वायुदाब तथा पवनें :- 

🔹 गर्मी का मौसम शुरू होने पर जब सूर्य उत्तरायण स्थिति में आता है , उपमहाद्वीप के निम्न तथा उच्च दोनों ही स्तरों पर वायु परिसंचरण में उत्क्रमण हो जाता है । 

जुलाई के मध्य तक धरातल के निकट निम्न वायुदाब पेटी जिसे अंत : उष्ण कटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र ( आई.टी.सी.जेड . ) कहा जाता है , उत्तर की ओर खिसक कर हिमालय के लगभग समानांतर 20 ° से 25 ° उत्तरी अक्षांश पर स्थित हो जाती है । 

🔶 जेट – प्रवाह :-

🔹 भूपृष्ठ से लगभग 12 किमी की ऊंचाई पर क्षोभमंडल में क्षैतिज दिशा में तेज गति से चलने वाली वायुधाराओं को जेट वायु प्रवाह कहते हैं । शीत ऋतु में पश्चिमी विक्षोभों को भारत में लाने का काम यही जेट स्ट्रीम करती हैं । जेट – स्ट्रीम की स्थिति में परिवर्तन के कारण ही ये विक्षोभ भारत में प्रवेश पाते हैं । इसी प्रकार पूर्वी जेट – प्रवाह उष्ण – कटिबंधीय चक्रवातों को भारत की ओर आकर्षित करता है ।

❇️ शीतऋतु में मौसम की क्रियाविधि :-

🔶 धरातलीय वायुदाब तथा पवनें :- 

🔹 शीत ऋतु में भारत का मौसम मध्य एवं पश्चिम एशिया में वायुदाब के वितरण से प्रभावित होता है । इस समय हिमालय के उत्तर में तिब्बत पर उच्च वायुदाब केंद्र स्थापित हो जाता है । इस उच्च वायुदाब केंद्र के दक्षिण में भारतीय उपमहाद्वीप की ओर निम्न स्तर पर धरातल के साथ – साथ पवनों का प्रवाह प्रारंभ हो जाता है ।

🔹 मध्य एशिया के उच्च वायुदाब केंद्र से बाहर की ओर चलने वाली धरातलीय पवनें भारत में शुष्क महाद्वीपीय पवनों के रूप में पहुँचती हैं । ये महाद्वीपीय पवनें उत्तर – पश्चिमी भारत में व्यापारिक पवनों के संपर्क में आती हैं । लेकिन इस संपर्क क्षेत्र की स्थिति स्थायी नहीं है ।

❇️ मानसून के निवर्तन अर्थात मानसून के लौटोने की ऋतु :-

🔹 सितम्बर के दूसरे सप्ताह तक दक्षिण – पश्चिम मानसून उत्तरी भारत से लौटने लगता है और दक्षिण से मध्य अक्टूबर तथा दिसम्बर के आरंभ तक लौटता है । दक्षिण विस्फोट के विपरित मानसून पवनों का लौटना काफी क्रमिक होता है । 

🔹 मानसून पवनों के लौटने से आकाश साफ हो जाता है । दिन का तापमान कुछ बढ़ जाता है परन्तु रातें सुखद हो जाती हैं । इस ऋतु में दैनिक तापान्तर अधिक हो जाता है । बंगाल की खाड़ी में पैदा होने वाले चक्रवात दक्षिण पूर्व से उत्तर – पश्चिम दिशा में चलते हैं और पर्याप्त वर्षा करते हैं ।



इतिहास विश्व इतिहास के कुछ विषय

Chapter 1: - समय की शुरुआत से (From the Beginning of Time)

Chapter 2: - लेखन कला और शहरी जीवन (Writing and City Life)

Chapter 3: - तीन महाद्वीपों में फैला हुआ साम्राज्य (An Empire Across Three Continents)

Chapter 4:- इस्लाम का उदय और विस्तार (The Central Islamic Lands )

Chapter 5:- यायावर साम्राज्य (Nomadic Empires)

Chapter 6:- तीन वर्ग (The Three Orders)

Chapter 7:- बदलती हुई सांस्कृतिक परम्पराएँ (Changing Cultural Traditions)

Chapter 8:- संस्कृतियों का टकराव (Confrontation of Cultures)

Chapter 9:- औद्योगिक क्रांति (The Industrial Revolution)

Chapter 10:- मूल निवासियों का विस्थापन (Displacing Indigenous Peoples)

Chapter 11:- आधुनिकीकरण के रास्ते (Paths to Modernization)

राजनीति विज्ञान  भारत का संविधान : सिद्धांत और व्यवहार

Chapter 1:- संविधान क्यों और कैसे (Constitution because and how)

Chapter 2:- भारतीय संविधान में अधिकार (Rights in the Indian Constitution)

Chapter 3:- चुनाव और प्रतिनिधि (Election and Representative)

Chapter 4:- कार्यपालिका (Executive)

Chapter 5:- विधायिका (Legislature)

Chapter 6:- न्यायपालिका (Judiciary)

Chapter 7:- संघवाद (Federalism)

Chapter 8:- स्थानीय शासन (Local Government)

Chapter 9:- संविधान एक जीवंत दस्तावेज़ (Constitution a living document)

Chapter10:- संविधान का राजनितिक दर्शन (Political Philosophy of the Constitution)

 

 

- राजनितिक सिद्धांत

Chapter 1:- राजनीतिक सिद्धांत एक परिचय (Political Theory - An Introduction)

Chapter 2:- स्वतंत्रता (Freedom)

Chapter 3:- समानता (Equality)

Chapter 4:- सामाजिक न्याय (Social justice)

Chapter 5:- अधिकार (Rights)

Chapter 6:- नागरिकता (Citizenship)

Chapter 7:- राष्ट्रवाद (Nationalism)

Chapter 8:- धर्मनिरपेक्षता (Secularism)

Chapter 9:- शांति (Peace)

Chapter 10:- विकास (Development)

 

 

भूगोल   भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत

Chapter 1:- भूगोल एक विषय के रूप में (Geography as A Discipline)

Chapter 2:- पृथ्वी की उत्पत्ति एंव विकास (The Origin and Evolution of the Earth)

Chapter 3:- पृथ्वी की आन्तरिक संरचना (Interior of the Earth)

Chapter 4:- महासागरों और महाद्वीपों का वितरण (Distribution of Oceans and Continents)

Chapter 5:- खनिज एंव शैल (Minerals and Rocks)

Chapter 6:- आकृतिक प्रक्रियाएँ (Geomorphic Processes)

Chapter 7:- भू आकृतियाँ तथा उनका विकास (Landforms and their Evolution)

Chapter 8:- वायुमण्डल का संघटन एवं संरचना (Composition and Structure of Atmosphere)

Chapter 9:- सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान (Solar Radiation , Heat Balance and Temperature)

Chapter 10:- वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसमी प्रणालियाँ (Atmospheric Circulation and Seasonal Systems)

Chapter 11:- वायुमंडल में जल (Water in the Atmosphere)

Chapter 12:- विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन (World Climate and Climate Change)

Chapter 13:- महासागरीय जल (Ocean Water)

Chapter 14:- महासागरीय जल संचलन (Movements of Ocean Water)

Chapter 15:- पृथ्वी पर जीवन (Life on the Earth)

Chapter 16:- जैव विविधता एवं संरक्षण (Biodiversity and Conservation)

 

 

 भारत : भौतिक पर्यावरण

Chapter 1:- भारत स्थिति (India - Location)

Chapter 2:- संरचना तथा भू - आकृति विज्ञान (Structure and Physiography)

Chapter 3:- अपवाह तंत्र (Drainage System)

Chapter 4:- जलवायु (Climate)

Chapter 5:- प्राकृतिक वनस्पति (Natural Vegetation)

Chapter 6:- मृदा (Soils)

Chapter 7:- प्राकृतिक आपदाएं और संकट (Natural Hazards and Disaster)

 

 

 

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