जलवायु
(Climate)
❇️ मौसम तथा जलवायु :-
🔹 मौसम वायुमंडल की क्षणिक अवस्था है , जबकि जलवायु का तात्पर्य अपेक्षाकृत लंबे समय की मौसमी दशाओं के औसत से होता है । मौसम जल्दी – जल्दी बदलता है , जैसे कि एक दिन में या एक सप्ताह में , परंतु जलवायु में बदलाव 50 अथवा इससे भी अधिक वर्षों में आता है ।
❇️ भारतीय मौसम को प्रभावित करने वाले कारक :-
🔹 वायु दाब तथा ताप का धरातलीय वितरण ।
🔹 ऊपरी वायु परिसंचरन , वायुराशियों का अन्तर्वाह ।
🔹 वर्षा लाने वाले तंत्र – पश्चिमी विक्षोभ तथा उष्ण कटिबंधीय चक्रवात ।
❇️ भारतीय मानसून की प्रमुख विशेषताएं :-
🔹 ऋतु के अनुसार वायु की दिशा में परिवर्तन होना मानसूनी पवनों का अनिश्चित तथा अनियमित ( संदिग्ध ) होना।
🔹 मानसूनी पवनों के प्रादेशिक स्वरूप में भिन्नता होते हुए भी भारतीय जलवायु को व्यापक एकरूपता प्रदान करना ।
❇️ भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक :-
🔹 भारत विषुवत रेखा के उत्तर में विस्तृत है । कर्क रेखा इसके लगभग मध्य से गुजरती है , हिमालय पर्वत श्रृंखला इसको उत्तर में घेरे हुये है एवं दक्षिण में हिन्द महासागर है । ये परिस्थितियां यहां की जलवायु को निम्न प्रकार से प्रभावित करती है :-
🔶 आक्षांश :- भारत का दक्षिण भाग विषुवत रेखा एवं कर्क रेखा के बीच में पड़ता है । अतः यहां उष्ण कटिबंधीय प्रभाव रहता है जबकि कर्क रेखा से उत्तर का भाग शीतोष्ण कटिबंध में पड़ता है ।
🔶 पर्वत श्रेणी :- भारत के उत्तर में स्थित हिमालय पर्वत श्रेणी उत्तरी ध्रुव की ओर से आने वाली ठंडी हवाओं को भारत में आने से रोकती है , जिससे भारतीय उपमहाद्वीप में जलवायु का समताकारी स्वरूप बना रहता है । यही पर्वत श्रृंखला मानसूनी पवनों को रोककर वर्षा करने में सहायक होती है ।
🔶 जल एवं स्थल का वितरण :- भारत के प्रायद्वीपीय भाग एक ओर बंगाल की खाड़ी से एवं दूसरी ओर अरब सागर से घिरा होने के कारण यहाँ की जलवायु को प्रभावित करता है जिसके कारण दक्षिण – पश्चिम हवाओं को आर्द्रता ग्रहण करने में सहायता मिलती है ।
🔹 भारत का उत्तरी भाग स्थलबद्ध है इसलिये यहाँ तापमान ग्रीष्म ऋतु में अत्यधिक एवं शीत ऋतु में बहुत कम हो जाता है ।
🔹 इसके अतिरिक्त समुद्रतट से दूरी , समुद्रतल से ऊँचाई एवं उच्चावच भी जलवायु को प्रभावित करते हैं ।
❇️ भारत की परंपरागत ऋतुएँ :-
🔹 भारत की पंरपरागत ऋतुएँ द्विमासिक आधार पर बनी है इसलिए इनकी संख्या 6 है । इनके नाम हैं- बंसत , मार्च – अप्रैल , ग्रीष्मः मई – जून , वर्षाः जुलाई – अगस्त , शरदः सितंबर – अक्टूबर , हेमंतः नवम्बर – दिसम्बर तथा शिशिरः जनवरी – फरवरी ।
❇️ कोपेन के अनुसार भारत के जलवायु प्रदेश :-
🔹 कोपेन के अनुसार भारत के जलवायु प्रदेश निम्नलिखित है :-
🔶 लघु शुष्क ऋतु का मानसूनी प्रकार ( Amw ) :- इस प्रकार की जलवायु पश्चिमी तट के साथ – साथ ।
🔶 ग्रीष्म ऋतु में शुष्क मानसूनी प्रकार ( As ) :- इस प्रकार की जलवायु वाले प्रदेश का विस्तार कोरमंडल तट के साथ – साथ है ।
🔶 उष्ण कटिबंधीय सवाना प्रकार की जलवायु ( Aw ) :- तटवर्ती प्रदेश के कुछ क्षेत्रों को छोड़कर लगभग पूरे प्रायद्वीपीय भारत में इस प्रकार की जलवायु पाई जाती है ।
🔶 अर्धशुष्क स्टेपी जलवायु ( BShw ) :- प्रायद्वीप के अन्दर के भाग में तथा गुजरात , राजस्थान , हरियाणा , पंजाब , जम्मू और कश्मीर के कुछ भागों में पाई जाती है ।
🔶 उष्ण मरुस्थलीय प्रकार की जलवायु ( BWhw ) :- इस प्रकार की जलवायु केवल राजस्थान के पश्चिमी भाग में पाई जाती है ।
🔶 शुष्क शीत ऋतु वाला प्रदेश ( Cwg ) :- भारत के उत्तरी मैदान के अधिकतर भाग में यह जलवायु पाई जाती है ।
🔶 ठंडी आद्र शीत ऋतु वाला प्रदेश ( Dfc ) :- यह जलवायु पूर्वी क्षेत्र में पाई जाती है ।
🔶 ध्रवीय जलवायु ( E ) :- इस प्रकार की जलवायु कश्मीर और निकटवर्ती पर्वतीय श्रृंखलाओं में पाई जाती है ।
❇️ अंत: उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र ( आईटीसीजैड ) :-
🔹 अंतः उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र विषुवत रेखा पर स्थित एक निम्न वायुदाब वाला क्षेत्र है । इस क्षेत्र में व्यापारिक पवनें विपरीत दिशा से आकर मिलती हैं परिणामस्वरूप वायु ऊपर उठने लगती है ।
🔹 जुलाई के महीने में आई.टी.सी. जेड़ 20 ° से 25 ° उत्तरी अक्षांश के आस – पास गंगा के मैदान में स्थित हो जाता है । इसे मानसूनी गर्त भी कहते हैं । यह मानसूनी गर्त , उत्तर व उत्तर – पश्चिमी भारत पर तापीय निम्न वायु के विकास को प्रोत्साहित करता है ।
🔹 आई.टी.सी.जेड़ के उत्तर की ओर खिसकने के कारण दक्षिणी गोलार्द्ध की व्यापारिक पवनें 40 ° तथा 60 ° पूर्वी देशांतरों के बीच विषुवत वृत को पार कर जाती हैं ।
🔹 कोरियोलिस बल के प्रभाव से विषुवत वृत को पार करने वाली इन व्यापारिक पवनों की दिशा दक्षिण – पश्चिम से उत्तर – पूर्व की ओर हो जाती है । यही दक्षिण – पश्चिम मानसून है । शीत ऋतु में आई.टी.सी.जेड़ दक्षिण की ओर खिसक जाता है और पवनों की दिशा भी दक्षिण – पश्चिम से बदलकर उत्तर – पूर्व हो जाती है , यही उत्तर – पूर्व मानसून है ।
❇️ एल – निनो :-
🔹 एल – निनो का शाब्दिक अर्थ है ‘ बालक क्रिस्ट / ईसा ‘ । यह एक मौसम संबंधी घटना के लिए प्रयोग होने वाली शब्दावली है । जो कि प्रायः दिसम्बर के महीने में क्रिसमस के आस – पास पेरू तट के पास घटित होती है ।
🔹 इसमें पेरू वियन सागरीय धारा जिसे हम्बोल्ट धारा भी कहते हैं । उसका पानी अपेक्षाकृत अधिक गर्म हो जाता है । इस घटना का प्रभाव का विश्व की जलवायु पर देखा जाता है कहीं पर सूखा तो कहीं पर बाढ़ अर्थात अप्रत्यासित घटनाएँ सामने आती हैं । भारत की जलवायु पर भी इसका प्रभाव देखा जाता है ।
❇️ मानसून :-
🔹 शब्द अरबी भाषा से लिया गया है । मानसून शब्द का अर्थ है पवनों की दिशा में मौसम के अनुसार परिवर्तन ।
❇️ मानसून विस्फोट :-
🔹 आर्द्रता से लदी पवनें जब अत्यधिक भारी हो जाती हैं तो अपनी अधिशेष नमी को अत्यधिक गर्जन के साथ छोड़ती हैं । जो मूसलाधार वर्षा के रूप में धरातल पर पहुंचती है । इनसे वर्षा इतनी अधिक होती हैं कि कुछ घंटो में एक विस्तृत क्षेत्र को बाढ़ग्रस्त कर देती हैं । दक्षिण पश्चिमी मानसून द्वारा अकस्मात् ही भारी वर्षा शुरू हो जाती है । इस प्राकृतिक घटना को ही मानसून विस्फोट कहते हैं ।
❇️ मानसून विच्छेद :-
🔹 जब मानसूनी पवनें दो सप्ताह या इससे अधिक समय तक वर्षा करने में असफल रहती है तो वर्षा काल में शुष्क दौर आ जाता है , इसे मानसून विच्छेद कहते हैं । इसका कारण या तो उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों का कमजोर पड़ना या भारत में अंत : उष्ण कटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र की स्थिति में परिवर्तन आना है । पश्चिमी राजस्थान में तापमान की विलोमता जलवाष्प से लदी हुई वायु को ऊपर उठने से रोकती है और वर्षा नहीं होती है ।
❇️ मानसून का निर्वतन :-
🔹 मानसून के पीछे हटने या लौट जाने को मानसून का निवर्तन कहा जाता है । सितंबर के आरंभ से उत्तर – पश्चिमी भारत से मानसून पीछे हटने लगती है और मध्य अक्तूबर तक यह दक्षिणी भारत को छोड़ शेष समस्त भारत से निवर्तित हो जाती है । लौटती हुई मानसून पवनें बंगाल की खाड़ी से जल – वाष्प ग्रहण करके उत्तर – पूर्वी मानसून के रूप में तमिलनाडु में वर्षा करती हैं ।
❇️ मानसून को समझना :-
🔹 मानसून का स्वभाव एवं रचना – तंत्र संसार के विभिन्न भागों में स्थल , महासागरों तथा ऊपरी वायुमंडल से एकत्रित मौसम संबंधी आँकड़ों के आधार पर समझा जाता है । पूर्वी प्रशांत महासागर में स्थित फ्रेंच पोलिनेशिया के ताहिती ( लगभग 18० द . तथा 1490 प . ) तथा हिंद महासागर में आस्ट्रेलिया के पूर्वी भाग में स्थित पोर्ट डार्विन ( 12 ° 30 ‘ द . तथा 131 ° पू . ) के बीच पाए जाने वाले वायुदाब का अंतर मापकर मानसून की तीव्रता के बारे में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है । भारत का मौसम विभाग 16 कारकों ( मापदंडों ) के आधार पर मानसून के संभावित व्यवहार के बारे में काफी समय का पूर्वानुमान लगाता है ।
❇️ भारतीय मौसम विभाग के अनुसार भारत मे ऋतुएं :-
🔹 भारतीय मौसम विभाग के अनुसार भारत में सामान्यतः चार ऋतुएं मानी जाती है । जोकि इस प्रकार हैं :-
🔶 शीत ऋतु
🔶 ग्रीष्म ऋतु
🔶 दक्षिणी – पश्चिमी मानसून की ऋतु
🔶 मानसून के निवर्तन अर्थात मानसून के लौटोने की ऋतु
❇️ ग्रीष्म ऋतु में मौसम की क्रियाविधि :-
🔶 धरातलीय वायुदाब तथा पवनें :-
🔹 गर्मी का मौसम शुरू होने पर जब सूर्य उत्तरायण स्थिति में आता है , उपमहाद्वीप के निम्न तथा उच्च दोनों ही स्तरों पर वायु परिसंचरण में उत्क्रमण हो जाता है ।
जुलाई के मध्य तक धरातल के निकट निम्न वायुदाब पेटी जिसे अंत : उष्ण कटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र ( आई.टी.सी.जेड . ) कहा जाता है , उत्तर की ओर खिसक कर हिमालय के लगभग समानांतर 20 ° से 25 ° उत्तरी अक्षांश पर स्थित हो जाती है ।
🔶 जेट – प्रवाह :-
🔹 भूपृष्ठ से लगभग 12 किमी की ऊंचाई पर क्षोभमंडल में क्षैतिज दिशा में तेज गति से चलने वाली वायुधाराओं को जेट वायु प्रवाह कहते हैं । शीत ऋतु में पश्चिमी विक्षोभों को भारत में लाने का काम यही जेट स्ट्रीम करती हैं । जेट – स्ट्रीम की स्थिति में परिवर्तन के कारण ही ये विक्षोभ भारत में प्रवेश पाते हैं । इसी प्रकार पूर्वी जेट – प्रवाह उष्ण – कटिबंधीय चक्रवातों को भारत की ओर आकर्षित करता है ।
❇️ शीतऋतु में मौसम की क्रियाविधि :-
🔶 धरातलीय वायुदाब तथा पवनें :-
🔹 शीत ऋतु में भारत का मौसम मध्य एवं पश्चिम एशिया में वायुदाब के वितरण से प्रभावित होता है । इस समय हिमालय के उत्तर में तिब्बत पर उच्च वायुदाब केंद्र स्थापित हो जाता है । इस उच्च वायुदाब केंद्र के दक्षिण में भारतीय उपमहाद्वीप की ओर निम्न स्तर पर धरातल के साथ – साथ पवनों का प्रवाह प्रारंभ हो जाता है ।
🔹 मध्य एशिया के उच्च वायुदाब केंद्र से बाहर की ओर चलने वाली धरातलीय पवनें भारत में शुष्क महाद्वीपीय पवनों के रूप में पहुँचती हैं । ये महाद्वीपीय पवनें उत्तर – पश्चिमी भारत में व्यापारिक पवनों के संपर्क में आती हैं । लेकिन इस संपर्क क्षेत्र की स्थिति स्थायी नहीं है ।
❇️ मानसून के निवर्तन अर्थात मानसून के लौटोने की ऋतु :-
🔹 सितम्बर के दूसरे सप्ताह तक दक्षिण – पश्चिम मानसून उत्तरी भारत से लौटने लगता है और दक्षिण से मध्य अक्टूबर तथा दिसम्बर के आरंभ तक लौटता है । दक्षिण विस्फोट के विपरित मानसून पवनों का लौटना काफी क्रमिक होता है ।
🔹 मानसून पवनों के लौटने से आकाश साफ हो जाता है । दिन का तापमान कुछ बढ़ जाता है परन्तु रातें सुखद हो जाती हैं । इस ऋतु में दैनिक तापान्तर अधिक हो जाता है । बंगाल की खाड़ी में पैदा होने वाले चक्रवात दक्षिण पूर्व से उत्तर – पश्चिम दिशा में चलते हैं और पर्याप्त वर्षा करते हैं ।