वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसमी प्रणालियाँ (Atmospheric Circulation and Seasonal Systems) || 11th Class Geography Ch-10 (Book-1) || Notes In Hindi

वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसमी प्रणालियाँ 

(Atmospheric Circulation and Seasonal Systems)


❇️ वायुमंडलीय दाब :-

🔹 समुद्रतल से वायुमंडल की अंतिम सीमा तक एक इकाई क्षेत्रफल के वायु स्तंभ के भार को वायुमंडलीय दाब कहते हैं ।

🔹 वायुमण्डलीय भार या दाब को मिलीबार तथा हैक्टोपास्कल में मापा जाता है । 

🔹 महासागरीय सतह पर औसत वायुदाब 1013.25 मिलीबार होता है ।

🔹 मानचित्र पर वायुदाब को समदाब अथवा समभार रेखाओं द्वारा दर्शाया जाता है । 

❇️ वायुदाब की हास:-

🔹 वायु दाब वायुमंडल के निचले हिस्से में अधिक तथा ऊँचाई बढ़ने के साथ तेजी से घटता है यह ह्रास दर प्रति 10 मीटर की ऊँचाई पर 1 मिलीबार होता है । 

❇️ सम दाब रेखाओं  :-

🔹 समुद्र तल से एक समान वायु दाब वाले स्थानों को मिलाते हुए खींची जाने वाली रेखाओं को समदाब रेखाएँ कहते हैं । ये समान अंतराल पर खीची जाती है ।

❇️  सम दाब रेखाओं का पास या दूर होना क्या प्रकट करता है ?

🔹 सम दाब रेखायें यदि पास – पास है तो दाब प्रवणता अधिक और दूर हैं तो दाब प्रवणता कम होती है ।

❇️  दाब प्रवणता :-

🔹  एक स्थान से दूसरे स्थान पर दाब में अन्तर को दाब प्रवणता कहते हैं ।

❇️ स्थानीय पवनें :-

🔹 तापमान की भिन्नता एंव मौसम सम्बन्धी अन्य कारकों के कारण किसी स्थान विशेष में पवनों का संचलन होता है जिन्हें स्थानीय पवनें कहते हैं । 

❇️ टारनैडो :-

🔹 मध्य अंक्षाशों में स्थानीय तूफान तंड़ित झंझा के साथ भयानक रूप ले लेते हैं । इसके केन्द्र में अत्यन्त कम वायु दाब होता है और वायु ऊपर से नीचे आक्रामक रूप से हाथी की सूंड़ की तरह आती है इस परिघटना को टारनैडो कहते हैं ।

❇️ वायु राशि :-

🔹 जब वायु किसी विस्तृत क्षेत्र पर पर्याप्त लम्बे समय तक रहती है तो उस क्षेत्र के गुणों ( तापमान तथा आर्द्रता संबंधी ) को धारण कर लेती है । तापमान तथा विशिष्ट गुणों वाली यह वायु , वायु राशि कहलाती है । ये सैंकड़ों किलोमीटर तक विस्तृत होती हैं तथा इनमें कई परतें होती हैं ।

❇️ कोरिऑलिस बल :-

🔹 पवन सदैव समदाब रेखाओं के आर – पार उच्च दाब से निम्न वायुदाब की ओर ही नहीं चलतीं । वे पृथ्वी के घूर्णन के कारण विक्षेपित भी हो जाती हैं । पवनों के इस विक्षेपण को ही कोरिऑलिस बल या प्रभाव कहते हैं ।

❇️ कोरिऑलिस ( Coriolis Force ) प्रभाव किस प्रकार पवनों की दिशा को प्रभावित करता है ?

🔹 इस बल के प्रभाव से पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में अपने दाई ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में अपने बाईं ओर मुड़ जाती हैं । 

🔹 कोरिऑलिस बल का प्रभाव विषुवत वृत पर शून्य तथा ध्रुवों पर अधिकतम होता है ।

🔹 इस विक्षेप को फेरेल नामक वैज्ञानिक ने सिद्ध किया था , अतः इसे फेरेल का नियम ( Ferrel’s Law ) कहते हैं।

❇️ पवनों के प्रकार :-

🔹 पवनें तीन प्रकार की होती हैं :-

🔶 भूमंण्डलीय पवनें ( PlanetaryWinds ) 

🔶 सामयिक पवन ( Seasonal Winds ) 

🔶 स्थानीय पवनें ( Local Winds )

❇️  भूमंण्डलीय पवनें ( PlanetaryWinds ) :-

🔹 पृथ्वी के विस्तृत क्षेत्र पर एक ही दिशा में वर्ष भर चलने वाली पवनों को भूमण्डलीय पवनें कहते हैं । ये पवनें एक उच्चवायु दाब कटिबन्ध से दूसरे निम्न वायुदाब कटिबन्ध की ओर नियमित रूप में चलती रहती हैं ।

🔹 ये मुख्यतः तीन प्रकार , की होती हैं :- 

🔶 सन्मार्गी या व्यापारिक पवनें ।

🔶 पछुआ पवनें ।

🔶 धवीय पवनें ।

❇️ सन्मार्गी या व्यापारिक पवनें :-

🔹 उपोष्ण उच्च वायु दाब कटिबन्धों से भूमध्य रेखीय निम्नवायु दाब कटिबन्धों की ओर चलने वाली पवनों को सन्मार्गी पवनें कहते हैं । 

🔹 कोरिऑलिस बल के अनुसार ये अपने पथ से विक्षेपित होकर उत्तरी गोलार्द्ध में उत्तर पूर्व दिशा में तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिणी – पूर्व – दिशा में चलती हैं । 

🔹 व्यापारिक पवनों को अंग्रेजी में ट्रेड विंड्स कहते हैं । जर्मन भाषा में ट्रेड का अर्थ निश्चित मार्ग होता है ।

🔹 विषुवत वृत्त तक पहुँचते – पहुँचते ये जलवाष्प से संतृप्त हो जाती हैं तथा विषुवत वृत के निकट पूरे साल भारी वर्षा करती है । 

❇️ पछुआ पवनें :-

🔹 उच्च वायु दाब कटिबन्धों से उपध्रुवीय निम्न वायु दाब कटिबन्धों की ओर बहती हैं । 

🔹 दोनो गोलार्द्ध में इनका विस्तार 30 ° अंश से 60 ° अक्षांशों के मध्य होता है । 

🔹 उत्तरी गोलार्द्ध में इनकी दिशा दक्षिण – पश्चिम से तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में उत्तर – पश्चिम से होती है ।

🔹 व्यापारिक पवनों की तरह ये पवनें शांत और दिशा की दृष्टि से नियमित नहीं हैं । इस कटिबन्ध में प्रायः चक्रवात तथा प्रतिचक्रवात आते रहते हैं । 

❇️ ध्रुवीय पवनें :-

🔹 ये पवनें ध्रुवीय उच्च वायु दाब कटिबन्धों से उपध्रुवीय निम्न वायुदाब कटिबन्धों की ओर चलती हैं । 

🔹 इनका विस्तार दोनो गोलार्डों में 60 ° अक्षांशो और ध्रुवों के मध्य है । 

🔹 बर्फीले क्षेत्रों से आने के कारण ये पवनें अत्यन्त ठंडी और शुष्क होती हैं ।

❇️ सामयिक पवन ( Seasonal Winds ) :-

🔹 ये वे पवनें हैं जो ऋतु या मौसम के अनुसार अपनी दिशा परिवर्तित करती हैं । उन्हें सामयिक पवनें कहते हैं । मानसूनी पवनें इसका अच्छा उदाहरण हैं । 

❇️ स्थानीय पवनें ( Local Winds ) :-

🔹 ये पवनें भूतल के गर्म व ठण्डा होने की भिन्नता से पैदा होती हैं । ये स्थानीय रूप से सीमित क्षेत्र को प्रभावित करती हैं । स्थल समीर व समुद्र समीर , लू , फोन , चिनूक , मिस्ट्रल आदि ऐसी ही स्थानीय पवनें है ।

❇️ मानसूनी पवनें :-

🔹 मानसूनी शब्द अरबी भाषा के ‘ मौसिम ‘ शब्द से बना है । जिसका अर्थ ऋतु है । अतः मानसूनी पवनें वे पवनें हैं जिनकी दिशा मौसम के अनुसार बिल्कुल उलट जाती है । 

🔹 ये पवनें ग्रीष्म ऋतु के छह माह में समुद्र से स्थल की ओर तथा शीत ऋतु के छह माह में स्थल से समुद्र की ओर चलती हैं ।

🔹 इन पवनों को दो वर्गों , ग्रीष्मकालीन मानसून तथा शीतकालीन मानसून में बाँटा जाता है । ये पवनें भारतीय उपमहाद्वीप में चलती हैं ।

❇️ स्थल – समीर व समुद्र – समीर :-

🔶 स्थल समीर :-

🔹 ये पवनें रात के समय स्थल से समुद्र की ओर चलती हैं । क्योंकि रात के समय स्थल शीघ्र ठण्डा होता है तथा समुद्र देर से ठण्डा होता है जिसके कारण समुद्र पर निम्न वायु दाब का क्षेत्र विकसित हो जाता है । 

🔶 समुद्र – समीर ( Sea Breeze ) :- 

🔹 ये पवनें दिन के समय समुद्र से स्थल की ओर चलती हैं । क्योंकि दिन के समय जब सूर्य चमकता है तो समुद्र की अपेक्षा स्थल शीघ्र गर्म हो जाता है । जिससे स्थल पर निम्न वायुदाब का क्षेत्र विकसित हो जाता है ।

🔹 ये पवनें आर्द्र होती हैं ।

❇️ घाटी समीर :-

🔹 दिन के समय शांत स्वच्छ मौसम में वनस्पतिविहीन , सूर्यभिमुख , ढाल तेजी से गर्म हो जाते हैं और इनके संपर्क में आने वाली वायु भी गर्म होकर ऊपर उठ जाती है । इसका स्थान लेने के लिए घाटी से वायु ऊपर की ओर चल पड़ती है ।

🔹 दिन में दो बजे इनकी गति बहुत तेज होती है ।

🔹 कभी कभी इन पवनों के कारण बादल बन जाते हैं , और पर्वतीय ढालों पर वर्षा होने लगती है ।

❇️ पर्वत समीर :-

🔹 रात के समय पर्वतीय ढालों की वायु पार्थिव विकिरण के कारण ठंडी और भारी होकर घाटी में नीचे उतरने लगती है । 

🔹 इससे घाटी का तापमान सूर्योदय के कुछ पहले तक काफी कम हो जाता है । जिससे तापमान का व्युत्क्रमण हो जाता है । 

🔹 सूर्योदय से कुछ पहले इनकी गति बहुत तेजी होती है । ये समीर शुष्क होती हैं ।

❇️ चक्रवात :-

🔹 जब किसी क्षेत्र में निम्न वायु दाब स्थापित हो जाता है और उसके चारों ओर उच्च वायुदाब होता है तो पवनें निम्न दाब की ओर आकर्षित होती हैं एवं पृथ्वी की घूर्णन गति के कारण पवनें उत्तरी गोलार्ध में घड़ी की सुईयों के विपरित तथा द . गोलार्ध में घड़ी की सुइयों के अनुरूप घूम कर चलती हैं । 

❇️ प्रतिचक्रवात :-

🔹 इस प्रणाली के केन्द्र में उच्च वायुदाब होता है । अतः केन्द्र से पवनें चारों ओर निम्न वायु दाब की ओर चलती हैं । इसमें पवनें उत्तरी गोलार्ध में घड़ी की सुइयों के अनुरूप एंव द . गोलार्ध में प्रतिकूल दिशा में चलती हैं ।

❇️ वाताग्र :-

🔹 जब दो भिन्न प्रकार की वायु राशियाँ मिलती हैं तो उनके मध्य सीमा क्षेत्र को वाताग्र कहते हैं ।

🔹 ये चार प्रकार के होते है – 

🔶 शीत वाताग्र 

🔶 उष्ण वातान 

🔶 अचर वाताग्र 

🔶 अधिविष्ट वाताग्र

❇️ वायु दाब का क्षैतिज वितरण :-

🔹 वायुमण्डलीय दाब के अक्षांशीय वितरण को वायुदाब का क्षैतिज वितरण कहते हैं । विभिन्न अक्षांशों पर तापमान में अन्तर तथा पृथ्वी के घूर्णन के प्रभाव से पृथ्वी पर वायु दाब के सात कटिबन्ध बनते हैं । 

🔹 जो इस प्रकार हैं :-

🔶 विषुवतीय निम्न वायुदाब कटिबन्ध :- 

🔹इस कटिबंध का विस्तार 5 ° उत्तर और 5 दक्षिणी अक्षांशों के मध्य हैं । 

🔹 इस कटिबंध में सूर्य की किरणें साल भर सीधी पड़ती हैं । अतः यहाँ की वायु हमेशा गर्म होकर ऊपर उठती रहती हैं । 

🔹 इस कटिबन्ध में पवनें नहीं चलतीं । केवल ऊर्ध्वाधर ( लम्बवत् ) संवहनीय वायुधाराएं ही ऊपर ही ओर उठती हैं । अतः यह कटिबंध पवन – विहीन शान्त प्रदेश बना रहता है । इसलिए इसे शान्त कटिबन्ध या डोलड्रम कहते हैं । 

🔶 उपोष्ण उच्च वायु दाब कटिबन्ध :-

🔹 यह कटिबन्ध उत्तरी और दक्षिणी दोनों ही गोलार्डों में 30 ° से 35 ° अक्षांशों के मध्य फैला है ।

🔹 इस कटिबन्ध में वायु लगभग शांत एवं शुष्क होती है । आकाश स्वच्छ मेघ रहित होता है । संसार के सभी गरम मरूस्थल इसी कटिबन्ध में महाद्वीपों के पश्चिमी भागों में स्थित हैं क्योंकि पवनों की दिशा भूमि से समुद्र की ओर ( Off Shore ) होती है । अतः ये पवनें शुष्क हाती हैं । 

🔶 उपध्रुवीय निम्न वायु दाब कटिबन्ध :-

🔹 इस कटिबन्ध का विस्तार उत्तरी व दक्षिणी दोनों गोलार्द्ध में 60 ° से 65 ° अंश अक्षाशों के मध्य है । 

🔹 इस कटिबन्ध में विशेष रूप से शीतऋतु में अवदाब ( चक्रवात ) आते है ।

🔶 ध्रुवीय उच्च वायु दाब कटिबन्ध :-

🔹 इनका विस्तार उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों ( 90 ° उत्तर तथा दक्षिण ध्रुवों ) के निकटवर्ती क्षेत्रों में है ।

🔹 तापमान यहाँ स्थायी रूप से बहुत कम रहता है । अतः धरातल सदैव हिमाच्छादित रहता है ।




इतिहास विश्व इतिहास के कुछ विषय

Chapter 1: - समय की शुरुआत से (From the Beginning of Time)

Chapter 2: - लेखन कला और शहरी जीवन (Writing and City Life)

Chapter 3: - तीन महाद्वीपों में फैला हुआ साम्राज्य (An Empire Across Three Continents)

Chapter 4:- इस्लाम का उदय और विस्तार (The Central Islamic Lands )

Chapter 5:- यायावर साम्राज्य (Nomadic Empires)

Chapter 6:- तीन वर्ग (The Three Orders)

Chapter 7:- बदलती हुई सांस्कृतिक परम्पराएँ (Changing Cultural Traditions)

Chapter 8:- संस्कृतियों का टकराव (Confrontation of Cultures)

Chapter 9:- औद्योगिक क्रांति (The Industrial Revolution)

Chapter 10:- मूल निवासियों का विस्थापन (Displacing Indigenous Peoples)

Chapter 11:- आधुनिकीकरण के रास्ते (Paths to Modernization)

राजनीति विज्ञान  भारत का संविधान : सिद्धांत और व्यवहार

Chapter 1:- संविधान क्यों और कैसे (Constitution because and how)

Chapter 2:- भारतीय संविधान में अधिकार (Rights in the Indian Constitution)

Chapter 3:- चुनाव और प्रतिनिधि (Election and Representative)

Chapter 4:- कार्यपालिका (Executive)

Chapter 5:- विधायिका (Legislature)

Chapter 6:- न्यायपालिका (Judiciary)

Chapter 7:- संघवाद (Federalism)

Chapter 8:- स्थानीय शासन (Local Government)

Chapter 9:- संविधान एक जीवंत दस्तावेज़ (Constitution a living document)

Chapter10:- संविधान का राजनितिक दर्शन (Political Philosophy of the Constitution)

 

 

- राजनितिक सिद्धांत

Chapter 1:- राजनीतिक सिद्धांत एक परिचय (Political Theory - An Introduction)

Chapter 2:- स्वतंत्रता (Freedom)

Chapter 3:- समानता (Equality)

Chapter 4:- सामाजिक न्याय (Social justice)

Chapter 5:- अधिकार (Rights)

Chapter 6:- नागरिकता (Citizenship)

Chapter 7:- राष्ट्रवाद (Nationalism)

Chapter 8:- धर्मनिरपेक्षता (Secularism)

Chapter 9:- शांति (Peace)

Chapter 10:- विकास (Development)

 

 

भूगोल   भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत

Chapter 1:- भूगोल एक विषय के रूप में (Geography as A Discipline)

Chapter 2:- पृथ्वी की उत्पत्ति एंव विकास (The Origin and Evolution of the Earth)

Chapter 3:- पृथ्वी की आन्तरिक संरचना (Interior of the Earth)

Chapter 4:- महासागरों और महाद्वीपों का वितरण (Distribution of Oceans and Continents)

Chapter 5:- खनिज एंव शैल (Minerals and Rocks)

Chapter 6:- आकृतिक प्रक्रियाएँ (Geomorphic Processes)

Chapter 7:- भू आकृतियाँ तथा उनका विकास (Landforms and their Evolution)

Chapter 8:- वायुमण्डल का संघटन एवं संरचना (Composition and Structure of Atmosphere)

Chapter 9:- सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान (Solar Radiation , Heat Balance and Temperature)

Chapter 10:- वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसमी प्रणालियाँ (Atmospheric Circulation and Seasonal Systems)

Chapter 11:- वायुमंडल में जल (Water in the Atmosphere)

Chapter 12:- विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन (World Climate and Climate Change)

Chapter 13:- महासागरीय जल (Ocean Water)

Chapter 14:- महासागरीय जल संचलन (Movements of Ocean Water)

Chapter 15:- पृथ्वी पर जीवन (Life on the Earth)

Chapter 16:- जैव विविधता एवं संरक्षण (Biodiversity and Conservation)

 

 

 भारत : भौतिक पर्यावरण

Chapter 1:- भारत स्थिति (India - Location)

Chapter 2:- संरचना तथा भू - आकृति विज्ञान (Structure and Physiography)

Chapter 3:- अपवाह तंत्र (Drainage System)

Chapter 4:- जलवायु (Climate)

Chapter 5:- प्राकृतिक वनस्पति (Natural Vegetation)

Chapter 6:- मृदा (Soils)

Chapter 7:- प्राकृतिक आपदाएं और संकट (Natural Hazards and Disaster)

 

 

 


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