तीन वर्ग
( The Three Orders)
❇️ तीन वर्ग :-
🔹 यूरोप में फ्रांसिसी समाज मुख्यत : तीन वर्गों में विभाजित था जो निम्नलिखित है :-
🔶 पादरी वर्ग :-
🔹 ईसाई समाज का मार्गदर्शन ।
🔹 चर्च में धर्मोपदेश ।
🔹 भिक्षु:–निश्चित नियमों का पालन ।
🔹 धार्मिक समुदायों में रहना ।
🔹 आम आदमी से दूर मठों में निवास ।
🔶 अभिजात वर्ग :-
🔹 सैन्य क्षमता ।
🔹 अपनी संपदा पर स्थायी नियंत्रण ।
🔹 न्यायालय लगाने का अधिकार ।
🔹 अपनी मुद्रा का प्रचलन
🔹 नाइट:- अश्वसेना की आवश्यकता के कारण इस वर्ग का उदय ।
🔶 कृषक वर्ग :-
🔹 ये दो प्रकार के है :-
🔸 स्वतंत्र किसान :- अपनी भूमि को लार्ड के काश्तकार के रूप में देखना ।
🔸 कृषि दास या सर्फ :- लार्ड के भूखण्डों पर कार्य करना ।
❇️ यूरोपीय इतिहास की जानकारी के स्त्रोत :-
🔹 भू – स्वामियों के विवरण , मूल्यों और विधि के मुकदमों के दस्तावेज जैसे कि चर्च में मिलने वाले जन्म , मृत्यु और विवाह के आलेख । चर्च से प्राप्त अभिलेखों ने व्यापारिक संस्थाओं और गीत व कहानियों द्वारा त्योहारों व सामुदायिक गतिविधियों का बोध कराया ।
❇️ सामंतवाद :-
🔹 सामन्तवाद शब्द जर्मन शब्द फ्यूड से बना है । फ्यूड का अर्थ है – भूमि का टुकड़ा ।
🔹 सामन्तवाद एक तरह के कृषि उत्पादन को दर्शाता है जो सामंतों और कृषकों के संबंधों पर आधारित है । कृषक लार्ड को श्रम सेवा प्रदान करते थे और बदले में वे उन्हें सैनिक सुरक्षा देते थे।
🔹 सामन्तवाद पर सर्वप्रथम काम करने वाले फ्रांसीसी विद्वान मार्क ब्लॉक के द्वारा भूगोल के महत्व पर आधारित मानव इतिहास को गढ़ने पर जोर , जिससे कि लोगों के व्यवहार और रुख को समझा जा सके ।
" पहला वर्ग – पादरी वर्ग "
❇️ पादरियों व बिशपों द्वारा ईसाई समाज का मार्गदर्शन :-
🔹 ये प्रथम वर्ग के सदस्य थे जो चर्च में धर्मोपदेश , अत्यधिक धार्मिक व्यक्ति जो चर्च के बाहर धार्मिक समुदायों में रहते थे भिक्षु कहलाते थे । ये भिक्षु मठों पर रहते थे और निश्चित नियमों का पालन करते थे ।
🔹 इनके पास राजा द्वारा दी गई भूमियाँ थी , जिनसे वे कर उगाह सकते थे । अधिकतर गाँव में उनके अपने चर्च होते थे जहाँ वे प्रत्येक रविवार को लोग पादरी के धर्मोपदेश सुनने तथा सामूहिक प्रार्थना करने के लिए इक्कठा होते थे ।
❇️ पादरियों और बिशपों की विशेषताएँ :-
🔹 इनके पास राजा द्वारा दी गई भूमियाँ थी , जिनसे वे कर उगाह सकते थे ।
🔹 रविवार के दिन ये लोग गाँव में धर्मोपदेश देते थे और सामूहिक प्रार्थना करते थे ।
🔹 ये फ़्रांसिसी समाज के प्रथम वर्ग में शामिल थे इन्हें विशेषाधिकार प्राप्त था ।
🔹 टाईथ नमक धार्मिक कर भी वसूलते थे ।
🔹 जो पुरुष पादरी बनते थे वे शादी नहीं कर सकते थे |
🔹 धर्म के क्षेत्र में विशप अभिजात माने जाते थे और इनके पास भी लार्ड की तरह विस्तृत जागीरें थी ।
❇️ भिक्षु और मठ :-
🔹 चर्च के आलावा कुछ विशेष श्रद्धालु ईसाइयों की एक दूसरी तरह की संस्था थी । जो मठों पर रहते थे और एकांत जीवन व्यतीत करते थे । ये मठ मनुष्य की आम आबादी से बहुत दूर हुआ करती थी ।
❇️ दो सबसे अधिक प्रसिद्ध मठों के नाम :-
🔹 529 में इटली में स्थापित सेंट बेनेडिक्ट मठ ।
🔹 910 में बरगंडी में स्थापित क्लूनी मठ ।
❇️ भिक्षुओं की विशेषताएँ :-
🔹 ये मठों में रहते थे ।
🔹 इन्हें निश्चित और विशेष नियमों का पालन करना होता था ।
🔹 ये आम आबादी से बहुत दूर रहते थे ।
🔹 भिक्षु अपना सारा जीवन ऑबे में रहने और समय प्रार्थना करने , अध्ययन और कृषि जैसे शारीरिक श्रम में लगाने का व्रत लेता था ।
🔹 पादरी – कार्य के विपरीत भिक्षु की जिंदगी पुरुष और स्त्रिायाँ दोनों ही अपना सकते थे – ऐसे पुरुषों को मोंक ( Monk ) तथा स्त्रियाँ नन ( Nun ) कहलाती थी ।
🔹 पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग – अलग ऑबे थे । पादरियों की तरह , भिक्षु और भिक्षुणियाँ भी विवाह नहीं कर सकती थे ।
🔹 वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूम – घूम कर लोगों को उपदेश देते और दान से अपनी जीविका चलाते थे ।
❇️ फ्रांसिसी समाज में मठों का योगदान :-
🔹 मठों कि संख्या सैकड़ों में बढ़ने से ये एक समुदाय बन गए जिसमें बड़ी इमारतें और भू – जागीरों के साथ – साथ स्कूल या कॉलेज और अस्पताल बनाए गए ।
🔹 इन समुदायों ने कला के विकास में योगदान दिया |
🔹 आबेस हिल्डेगार्ड एक प्रतिभाशाली संगीतज्ञ था जिसने चर्च की प्रार्थनाओं में सामुदायिक गायन की प्रथा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया ।
🔹 तेरहवीं सदी से भिक्षुओं के कुछ समूह जिन्हें फ्रायर (fryer) कहते थे उन्होंने मठों में न रहने का निर्णय लिया ।
" दूसरा वर्ग – अभिजात वर्ग "
❇️ अभिजात वर्ग :-
🔹 यूरोप के सामाजिक प्रक्रिया में अभिजात वर्ग की महत्वपूर्ण भूमिका थी । ऐसे महत्वपूर्ण संसाधन भूमि पर उनके नियंत्रण के कारण था । यह वैसलेज ( Vassalage ) नामक एक प्रथा के विकास के कारण हुआ था ।
🔹 बड़े भू स्वामी और अभिजात वर्ग राजा के आधीन होते थे जबकि कृषक भू – स्वामियों के अधीन होते थे । अभिजात वर्ग राजा को अपना स्वामी मान लेता था और वे आपस में वचनबद्ध होते थे ।
❇️ सेन्योर / लॉर्ड :-
🔹 सेन्योर / लॉर्ड ( लॉर्ड एक ऐसे शब्द से निकला जिसका अर्थ था रोटी देने वाला ) दास ( Vassal ) की रक्षा करता था और बदले में वह उसके प्रति निष्ठावान रहता था । इन संबंधों में व्यापक रीति रिवाजों और शपथ लेकर की जाती थी ।
❇️ अभिजात वर्ग की विशेषताएँ :-
🔹 अभिजात वर्ग की एक विशेष हैसियत थी । उनका अपनी संपदा पर स्थायी तौर पर पूर्ण नियंत्राण था ।
🔹 वह अपनी सैन्य क्षमता बढ़ा सकते थे उनके पास अपनी सामंती सेना थी ।
🔹 वे अपना स्वयं का न्यायालय लगा सकते थे ।
🔹 यहाँ तक कि अपनी मुद्रा भी प्रचलित कर सकते थे ।
🔹 वे अपनी भूमि पर बसे सभी व्यक्तियों के मालिक थे ।
" तीसरा वर्ग – कृषक वर्ग "
❇️ कृषक वर्ग :-
🔹 स्वतंत्र और बंधकों ( दासों ) का वर्ग था । यह वर्ग एक विशाल समूह था जो पहले दो वर्गों पादरी और अभिजात वर्ग का भरण पोषण करता था ।
❇️ काश्तकार दो प्रकार के होते थे :-
(i) स्वतंत्र किसान
(ii) सर्फ़ (कृषि दास)
❇️ स्वतंत्र कृषकों की भूमिका :-
🔹 स्वतंत्र कृषक अपनी भूमि को लॉर्ड के काश्तकार के रुप में देखते थे ।
🔹 पुरुषों का सैनिक सेवा में योगदान आवश्यक होता था(वर्ष में कम से कम चालीस दिन)।
🔹 कृषकों के परिवारों को लॉर्ड की जागीरों पर जाकर काम करने के लिए सप्ताह के तीन या उससे अधिक कुछ दिन निश्चित करने पड़ते थे । इस श्रम से होने वाला उत्पादन जिसे ‘ श्रम – अधिशेष ( Labour rent ) कहते थे , सीधे लार्ड के पास जाता था ।
🔹 इसके अतिरिक्त , उनसे अन्य श्रम कार्य जैसे – गढ्ढे खोदना , जलाने के लिए लकड़ियाँ इक्कठी करना , बाड़ बनाना और सड़कें व इमारतों की मरम्मत करने की भी उम्मीद की जाती थी और इनके लिए उन्हें कोई मज़दूरी नहीं मिलती थी ।
🔹 खेतों में मदद करने के अतिरिक्त , स्त्रियों व बच्चों को अन्य कार्य भी करने पड़ते थे । वे सूत कातते , कपड़ा बुनते , मोमबत्ती बनाते और लॉर्ड के उपयोग हेतु अंगूरों से रस निकाल कर मदिरा तैयार करते थे ।
❇️ टैली (Taille) :-
🔹 राजा द्वारा कृषकों पर लगाये जाने वाले प्रत्यक्ष कर को टैली ( Taille ) कहा जाता था ।
❇️ श्रम अधिशेष :-
🔹 कृषकों के परिवारों को लॉर्ड की जागीरों पर जाकर काम करने के लिए सप्ताह के तीन या उससे अधिक कुछ दिन निश्चित करने पड़ते थे । इस श्रम से होने वाला उत्पादन जिसे ‘ श्रम – अधिशेष ‘ ( Labour rent ) कहते थे , सीधे लार्ड के पास जाता था ।
❇️ कृषि दास :-
🔹 वे कृषक जो लार्ड के स्वामित्व में ही कार्य कर सकते थे कृषि दास कहलाते थे ।
❇️ ग्यारहवीं शताब्दी तक यूरोप में विभिन्न प्रौद्योगिकी में बदलाव :-
🔹 लकड़ी के हल के स्थान पर लोहे के भारी नोक वाले हल और साँचेदार पटरे का प्रयोग ।
🔹 पशुओं के गले के स्थान पर जुआ अब कंधे पर ।
🔹 घोड़े के खुरों पर अब लोहे की नाल का प्रयोग ।
🔹 कृषि के लिये वायु और जलशक्ति का प्रयोग ।
🔹 संपीडको व चक्कियों में भी वायु तथा जलशक्ति का प्रयोग ।
🔹 दो खेतों की व्यवस्था के स्थान पर तीन खेतों वाली व्यवस्था का उपयोग । कृषि उत्पादन में तेजी से बढ़ोतरी ।
🔹 भोजन की उपलब्धता दुगुनी ।
🔹 कृषकों को बेहतर अवसर ।
🔹 जोतों का आकार छोटा ।
🔹 इससे अधिक कुशलता के साथ कृषि कार्य होना व कम श्रम की आवश्यकता ।
🔹 कृषकों को अन्य गतिविधियों के लिए समय ।
❇️ चौदहवीं शताब्दी का संकट :-
🔶 चौदहवीं शताब्दी के आरंभ में यूरोप को आर्थिक विस्तार धीमा पड़ने के कारण :-
🔹 तेरहवीं सदी के अंत तक उत्तरी यूरोप में तेज ग्रीष्म ऋतु का स्थान ठंडी ग्रीष्म ऋतु ने ले लिया ।
🔹 पैदावार के मौसम छोटे , तूफानों व सागरीय बाढ़ों से फार्म प्रतिष्ठान नष्ट । सरकार को करों से आमदनी में कमी ।
🔹 पहले की गहन जुताई के तीन क्षेत्रीय फसल चक्र से भूमि कमजोर ।
🔹 चरागाहों की कमी से पशुओं की संख्या में कमी ।
🔹 जनसंख्या वृद्धि के कारण उपलब्ध संसाधन कम पड़ना ।
🔹 1315 – 1317 में यूरोप में भयंकर अकाल , 1320 ई . में अनेक पशुओं की मौत । आस्ट्रिया व सर्बिया की चाँदी की खानों के उत्पादन में कमी ।
🔹 धातु – मुद्रा में कमी से व्यापार प्रभावित ।
🔹 जल पोतों के साथ चूहे आए जो ब्यूबोनिक प्लेग जैसी महामारी का संक्रमण लाए । लाखों लोग ग्रसित ।
🔹 विनाशलीला के साथ आर्थिक मंदी से सामाजिक विस्थापन हुआ । मजदूरों की संख्या में कमी आई इससे मजदूरी की दर में 250 प्रतिशत तक की वृद्धि ।
❇️ राजनीतिक परिवर्तन :-
🔹 नए शक्तिशाली राज्यों का उदय – संगठित स्थायी सेना , एक स्थायी नौकरशाही और राष्ट्रीय कर प्रणाली स्थापित करने की प्रक्रिया आरंभ ।
❇️ नई शासन व्यवस्था पूरानी व्यवस्था से भिन्न :-
🔹 शासक अब पिरामिड के शिखर पर नहीं था जहाँ राज भक्ति विश्वास और आपसी निर्भरता पर टिकी थी । वह अब व्यापक दरबारी समाज और आश्रयदाता – अनुयायी तंत्र का केन्द्र बिन्दु था ।