तीन महाद्वीपों में फैला हुआ साम्राज्य
(An Empire Across Three Continents)
❇️ रोम साम्राज्य :-
🔹 आज का अधिकांश यूरोप पश्चिमी एशिया और उत्तरी अफ्रीका का हिस्सा शामिल था ।
❇️ रोमन साम्राज्य का फैलाव तीन महाद्वीपों में :-
🔹 यूरोप
🔹 पश्चिमी एशिया
🔹 उत्तरी अफ्रीका
❇️ रोमन साम्राज्य की जानकारी के स्रोत :-
🔹 सामग्री जिसे तीन वर्गों में विभाजित किया गया है :-
🔶 पाठ्य सामग्री :-
🔹 वर्ष वृत्तान्त
🔹 पत्र
🔹 व्याख्यान
🔹 प्रवचन
🔹 कानून
🔶 प्रलेख या दस्तावेज :-
🔹 पेपाइरस पर लिखे गए
🔹 भौतिक अवशेष :-
🔹 इमारते
🔹 सिक्के
🔹 बर्तन
❇️ वर्ष वृतांत :-
🔹 समकालीन व्यक्तियों द्वारा प्रतिवर्ष लिखे जाने वाले इतिहास के ब्यौरे को ‘ वर्ष – वृतांत कहा जाता है ।
❇️ पैपाइरस :-
🔹 पैपाइरस एक सरकंडे जैसा पौधा था , जो नील नदी के किनारे उगा करता था , इस से लेखन सामग्री तैयार की जाती थी ।
❇️ रोमन साम्राज्य का आरंभिक काल :-
🔹 रोम साम्राज्य में 509 ई . पू . से 27 ई . पू . तक गणतंत्र शासन व्यवस्था चली ।
🔹 प्रथम सम्राट ऑगस्टस – 27 ई . पू . में ऑगस्टस ने गणतंत्र शासन व्यवस्था का तख्ता पलट दिया और स्वयं सम्राट बन गया , उसके राज्य को प्रिंसिपेट कहा गया । वह एक प्रमुख नागरिक के रूप में था , निरंकुश शासक नहीं था ।
🔹 रोमन साम्राज्य के राजनीतिक इतिहास के तीन प्रमुख खिलाड़ी – सम्राट , अभिजात वर्ग और सेना ।
🔹 प्रांतों की स्थापना ।
🔹 सार्वजनिक स्नानगृह ।
❇️ मध्य का काल ( तीसरी शताब्दी का संकट )
🔹 प्रथम और द्वितीय शताब्दियां – शांति , समृद्धि और आर्थिक विस्तार की प्रतीक थी ।
🔹 तीसरी शताब्दी में तनाव उभरा । जब ईरान के ससानी वंश के बार – बार आक्रमण हुए । इसी बीच जर्मन मूल की जनजातियों ( फ्रेंक , एलमन्नाइ और गोथ ) ने रोमन साम्राज्य के विभिन्न प्रांतों पर कब्जा कर लिया जिससे साम्राज्य में अस्थिरता आई ।
🔹 47 वर्षों में 25 सम्राट हुए । इसे तीसरी शताब्दी का संकट कहा जाता है ।
❇️ परवर्ती पुरा काल :-
🔶 चौथी से सातवीं शताब्दी
🔶 डायोक्लीशियन का शासन 284 – 305 ई .
🔶 कॉन्स्टैनटाइन शासक
🔹 इसाई धर्म राज धर्म
🔹 सॉलिडस सोने का सिक्का
🔹 कुस्तुनतुनियाँ राजधानी
🔹 व्यापार विकास
🔹 स्थापत्य कला
🔶 जस्टीनियन शासक
❇️ रोमन साम्राज्य में लिंग , साक्षरता , संस्कृति :-
🔹 एकल परिवार का समाज में चलन ।
🔹 महिलाओं की अच्छी स्थिति , संपत्ति में स्वामित्व व संचालन में कानूनी अधिकार होना ।
🔹 कामचलाऊ साक्षरता होना ।
🔹 सांस्कृतिक विविधता होना ।
❇️ रोमन साम्राज्य का विस्तार :-
🔹 रोम साम्राज्य का आर्थिक आधारभूत ढाँचा काफी मजबूत था ।
🔹 बंदरगाह , खानें , खदानें , ईंट के भट्टे जैतून का तेल के कारखाने अधिक मात्रा में व्याप्त होना ।
🔹 असाधारण उर्वरता के क्षेत्र होना ।
🔹 सुगठित वाणिज्यिक व बैंकिंग व्यवस्था तथा धन का व्यापक रूप से प्रयोग ।
🔹 तरल पदार्थों की दुलाई जिन कन्टेनरों में की जाती थी उन्हें ‘ एम्फोरा कहा जाता था ।
🔹 स्पेन में उत्पादित जैतून का तेल ‘ ड्रेसल – 20 ‘ नामक कन्टेनरों में ले जाया जाता था ।
❇️ रोमन साम्राज्य में श्रमिकों पर नियंत्रण :-
🔹 दासता की मजबूत जड़ें पूरे रोमन समाज मे फैली हुई थी ।
🔹 इटली में 75 लाख की आबादी में से 30 लाख दासो की संख्या थी ।
🔹 दासों को पूंजी निवेश का दर्जा प्राप्त था।
🔹 ऊँच वर्ग के लोगों द्वारा श्रमिकों एवं दासों से क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया जाता था ।
🔹 ग्रामीण लोग ऋणग्रसता से जूझ रहे थे |
🔹 दासों के प्रति व्यवहार सहानुभूति पर नहीं बल्कि हिसाब – किताब पर आधारित था ।
❇️ रोमन साम्राज्य में सामाजिक श्रेणियाँ प्रारंभिक राज्य :-
🔹 सैनेटर , अश्वारोही , जनता का सम्मानित वर्ग , फूहड़ निम्नतर वर्ग , दास ।
🔹 परवर्ती काल , अभिजात वर्ग , मध्यम वर्ग और निम्नतर वर्ग ।
🔹 भ्रष्टाचार और लूट – खसोट ।
❇️ रोमन साम्राज्य में पुराकाल की विशेषतायें :-
🔹 रोमवासी बहुदेववादी थे । लोग जूपिटर , जूनो , मिनर्वा तथा मॉर्स जैसे देवी – देवताओं की पूजा करते थे ।
🔹 यहूदी धर्म रोमन साम्राज्य का एक अन्य बड़ा धर्म था ।
🔹 सम्राट डायोक्लीशियन द्वारा सीमाओं पर किले बनवाना ।
🔹 सम्राट कॉन्स्टैनटाइन ने ईसाई धर्म को राजधर्म बनाने का निर्णय लिया ।
🔹 साम्राज्य के पश्चिमी भाग में उत्तर से आने वाले समूहों – गोथ , बैंडल तथा लोम्बार्ड आदि ने बड़े प्रांतों पर कब्जा करके रोमोत्तर राज्य स्थापित कर लिए ।
🔹 प्रांतों का पुनर्गठन करना ।
🔹 सैनिक और असैनिक कार्यों को अलग करना ।
🔹 इस्लाम का विस्तार – ‘ प्राचीन विश्व इतिहास की सबसे बड़ी राजनीतिक क्रान्ति ।
❇️ रोमन साम्राज्य में सैनिक प्रबंध की विशेषताएं :-
🔹 रोम सेना राजनीति की महत्वपूर्ण संस्था
🔹 व्यावसायिक सेना
🔹 सेवा करने की अवधि निश्चित होना
🔹 सबसे बड़ा एकल निकाय
🔹 सैनेट में सेना का डर
🔹 मतभेद होने पर गृहयुद्ध
🔹 आंदोलन व विद्रोह
🔹 शासक अथवा सम्राटों का भाग्य निर्धारित करने की शक्ति ।
❇️ दास प्रजजन :-
🔹 गुलामों की संख्या बढ़ाने की एक ऐसी प्रथा थी जिसके अंतर्गत दासियों और उनके साथ मर्दो को अधिकाधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था | उनके बच्चे भी आगे चलकर दास ही बनते थे ।
❇️ दास श्रमिकों के साथ समस्याएँ :-
🔹 रोम में सरकारी निर्माण कार्यों पर , स्पष्ट रूप से मुक्त श्रमिकों का व्यापक प्रयोग किया जाता था क्योंकि दास – श्रम का बहुतायत प्रयोग बहुत मँहगा पड़ता था ।
🔹 भाड़े के मजदूरों के विपरीत , गुलाम श्रमिकों को वर्ष भर रखने केए भोजन देना पड़ता था और उनके अन्य खर्चे भी उठाने पड़ते थे , जिससे इन गुलाम श्रमिकों को रखने की लागत बढ़ जाती थी ।
🔹 वेतनभोगी मजदुर सस्ते तो पड़ते ही थे , उन्हें आसानी से छोड़ा और रखा जा सकता था ।
❇️ रोमन साम्राज्य में श्रम – प्रबंधन की विशेषताएँ :-
🔹 दास श्रम महंगा होने के कारण दासों को मुक्त किया जाने लगा ।
🔹 अब इन दासों या मुक्त व्यक्तियों को व्यापार प्रबंधक के रूप में नियुक्त किया जाने लगा ।
🔹 मालिक गुलामों अथवा मुक्त हुए गुलामों को अपनी ओर से व्यापार चलाने के पूँजी यहाँ तक की पूरा कारोबार सौप देते थे ।
🔹 मुक्त तथा दास , दोनों प्रकार के श्रमिकों के लिए निरीक्षण सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू था । निरीक्षण को सरल बनाने के लिए , कामगारों को कभी – कभी छोटे दलों में विभाजित कर दिया जाता था ।
🔹 श्रमिकों के लिए छोटे – छोटे समूह बनाये गए थे जिससे ये पता लग सके कि कौन काम कर रहा है और काम चोरी ।
❇️ अश्वारोही ( इक्वाइट्स ) :-
🔹 अश्वारोही ( इक्वाइट्स ) या नाइट वर्ग परंपरागत रूप से दूसरा सबसे अधिक शक्तिशाली और धनवान समूह था । मूल रूप से वे ऐसे परिवार थे जिनकी संपत्ति उन्हें घुड़सेना में भर्ती होने की औपचारिक योग्यता प्रदान करती थी , इसीलिए इन्हें इक्वाइट्स कहा जाता था ।
❇️ अश्वारोही ( इक्वाइट्स ) या नाइट वर्ग की विशेषताएँ :-
🔹 सैनेटरों की तरह अधिकतर नाइट जमींदार होते थे ।
🔹 ये सैनेटरों के विपरीत उनमें से कई लोग जहाजों के मालिक , व्यापारी और साहूकार ( बैंकर ) भी होते थे , यानी वे व्यापारिक क्रियाकलापों में संलग्न रहते थे ।
🔹 इन्हें जनता का सम्माननीय वर्ग माना जाता था , जिनका संबंध महान घरानों से था ।