भारत का परमाणु कार्यक्रम
परिचय:-
- भारत ने अपना पहला परमाणु परीक्षण मई 1974 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के शासनकाल में किया था । इस परमाणु परीक्षण का नाम “ स्माइलिंग बुद्धा " था ।
- इसके बाद पोखरण -2 परीक्षण मई 1998 में पोखरण परीक्षण रेंज पर किये गए पांच परमाणु बम परीक्षणों की श्रृंखला का एक हिस्सा था ।
- भारत ने 11 और 13 मई , 1998 को राजस्थान के पोरखरण परमाणु स्थल पर 5 परमाणु परीक्षण किये थे । इस कदम के साथ ही भारत की दुनिया भर में धाक जम गई ।
- भारत पहला ऐसा परमाणु शक्ति संपन्न देश बना जिसने परमाणु अप्रसार संधि ( NPT ) पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं । भारत द्वारा किये गए इन परमाणु परीक्षणों की सफलता ने विश्व समुदाय की नींद उड़ा दी थी ।
- इन परीक्षणों के कारण विश्व समुदाय ने भारत के ऊपर कई तरह के प्रतिबन्ध लगाये थे । इसी कारण भारत ने विश्व समुदाय से कहा था भारत एक जिम्मेदार देश है और वह अपने परमाणु हथियारों को किसी देश के खिलाफ " पहले इस्तेमाल " नही करेगा ; जो कि भारत की परमाणु नीति का हिस्सा है । भारत ने 2003 में अपनी परमाणु नीति बनायीं थी ।
भारत का परमाणु कार्यक्रम:-
- स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर भारत में होमी जहाँगीर भाभा के नेतृत्त्व में परमाणु कार्यक्रम की शुरुआत की गई।
- भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू परमाणु के सैन्य उपयोग के पक्षधर नहीं थे , अतः आरंभ में परमाणु कार्यक्रम को सिर्फ असैन्य उपयोग तक ही सीमित रखा गया ।
- द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् धीरे - धीरे अमेरिका , ब्रिटेन , रूस तथा फ्राँस ने परमाणु शक्ति हासिल कर ली ।
- वर्ष 1962 में चीन के साथ युद्ध , वर्ष 1964 में चीन द्वारा परमाणु परीक्षण तथा वर्ष 1965 में पाकिस्तान से युद्ध आदि घटनाक्रम के पश्चात् भारत को अपनी नीति में बदलाव के लिये विवश होना पड़ा ।
- इस नीति में बदलाव के साथ भारत ने पोखरण में वर्ष 1974 में प्रथम परमाणु परीक्षण किया । यह परीक्षण इसलिये भी आवश्यक था कि वर्ष 1965 के पश्चात् ऐसे देश जो परमाणु शक्ति संपन्न थे , उनको छोड़कर किसी अन्य को परमाणु क्षमता हासिल करने पर रोक लगा दी गई ।
- इस भेदभावपूर्ण नीति का भारत द्वारा विरोध किया गया क्योंकि , कुछ शक्तिशाली देशों को ही परमाणु क्षमता के योग्य माना गया जिन्हें P - 5 के देशों के नाम से जाना जाता है , तथा अन्य देशों पर निर्योग्यताएँ थोप दी गई ।
- भारत का मानना था कि यह भेदभाव समाप्त होना चाहिये तथा विश्व को निरस्त्रीकरण की ओर बढ़ना चाहिए।
- किंतु वर्ष 1968 में विभिन्न देशों पर परमाणु अप्रसार संधि ( NPT ) थोप दी गई , हालाँकि भारत ने इस संधि पर अभी तक हस्ताक्षर नहीं किये हैं ।
भारत का परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम:-
- विश्व परमाणु उद्योग स्थिति रिपोर्ट ( World Nuclear Industry Status Report ) 2017 से पता चलता है कि स्थापित किये गए परमाणु रिएक्टरों की संख्या के मामले में भारत का विश्व में तीसरा स्थान है ।
- भारत अपने परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के तहत वर्ष 2024 तक 14.6 गीगावाट बिजली का उत्पादन करेगा , जबकि वर्ष 2032 तक बिजली उत्पादन की यह क्षमता 63 गीगावाट हो जाएगी ।
- फिलहाल भारत में 21 परमाणु रिएक्टर सक्रिय हैं , जिनसे लगभग 7 हजार मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है । इनके अलावा 11 अन्य रिएक्टरों पर विभिन्न चरणों में काम चल रहा है और इनके सक्रिय होने के बाद 8 हजार मेगावाट अतिरिक्त बिजली का उत्पादन होने लगेगा ।
- चूँकि भारत अपने हथियार कार्यक्रम के कारण परमाणु अप्रसार संधि में शामिल नहीं है । अतः 34 वर्षों तक इसके परमाणु संयंत्रों अथवा पदार्थों के व्यापार पर प्रतिबंध लगा दिया गया था , जिस कारण यह वर्ष 2009 तक अपनी सिविल परमाणु ऊर्जा का विकास नहीं कर सका ।
- पूर्व के व्यापार प्रतिबंधों और स्वदेशी यूरेनियम के अभाव में भारत थोरियम के भंडारों से लाभ प्राप्त करने के लिये परमाणु ईधन चक्र का विकास कर रहा है । भारत का प्राथमिक ऊर्जा उपभोग वर्ष 1990 से वर्ष 2011 के मध्य दोगुना हो गया था ।
परमाणु अप्रसार सधि ( Nuclear Non and Proliferation Treaty and NPT ):-
- इस संधि पर वर्ष 1965 में हस्ताक्षर किये गए तथा वर्ष 1970 यह प्रभाव में आई । वर्तमान में इसके 190 हस्ताक्षरकर्ता सदस्य हैं ।
- इस संधि के अनुसार कोई भी देश न वर्तमान में और न ही भविष्य में परमाणु हथियारों का निर्माण करेगा । हालाँकि सदस्य देशों को परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को अनुमति होगी ।
- इस संधि के तीन प्रमुख लक्ष्य है परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकना , ( i ) निरस्त्रीकरण को प्रोत्साहित करना तथा ( m ) परमाणु तकनीक के शांतिपूर्ण उपयोग के अधिकार को सुनिश्चित करना ।
- भारत उन पाँच देशों में शामिल है जिन्होंने या तो संधि पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं अधवा बाद में इस संधि से बाहर हो गए हैं । भारत के अतिरिक्त इसमें पाकिस्तान , इजराइल , उत्तर कोरिया तथा दक्षिण सूडान शामिल हैं ।
- भारत का विचार है कि NPT संधि भेदभावपूर्ण है अत : इस में शामिल होना उचित नहीं है । भारत का तर्क है कि यह संधि सिर्फ पाँच शक्तियों P - 5 ( अमेरिका , रूस , चीन , ब्रिटेन और फ्रांस ) को परमाणु क्षमता का एकाधिकार प्रदान करती है तथा अन्य देश जो परमाणु शक्ति संपन्न नहीं हैं सिर्फ उन्हीं पर लागू होती है ।
व्यापक परमाणु - परीक्षण - प्रतिबंध संधि ( The Comprehensive Nuclear and Test and Ban Treaty and CTBT ):-
- CTET संधि सभी प्रकार के परमाणु हथियारों के परीक्षण एवं उपयोग को प्रतिबंधित करती है ।
- यह संधि जिनेवा के निरस्त्रीकरण सम्मेलन के पश्चात् प्रकाश में आई ।
- इस संधि पर वर्ष 1996 में हस्ताक्षर किये गए । अब तक इस संधि पर 184 देश हस्ताक्षर कर चुके है ।
निष्कर्ष:-
- एक वर्ष पूर्व भारत की बैलिस्टिक मिसाइल क्षमता वाली परमाणु पनडुब्बी INS अरिहंत ने अपना पहला अभियान पूरा किया । इस अभियान के पूरे होने के साथ ही भारत उन देशों की कतार में शामिल हो गया जिनके पास परमाणु ट्राइडेंट मौजूद है ।
- इस उपलक्ष्य में भारत के प्रधानमंत्री ने अपनी परमाणु प्रतिबद्धता को दोहराते हुए कहा था कि नो फस्र्ट यूज भारत की परमाणु नीति का अखंड भाग है । लेकिन कुछ समय पूर्व दिये गए रक्षा मंत्री के बयान ने परमाणु नीति पर दोबारा बहस छेड़ दी है ।
- परमाणु नीति का निर्माण कई वर्षों के विश्लेषण एवं मूल्याकन के पश्चात् ही किया गया था । ऐसे में यदि सरकार इस नीति में कोई भी बदलाव करना चाहती है तो नीति में बदलाव से पूर्व इसके प्रभावों एवं परिणामों का गहन मूल्याकन आवश्यक है । साथ ही सरकार को उपरोक्त बयान के पश्चात् नीति को दोबारा स्पष्ट करना चाहिये , क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में अस्पष्टता कई बार गंभीर परिणाम उत्पन्न कर सकती है ।