9. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार (International Trade) || B-1 Geography Class 12th Chapter-9 NCERT CBSE || NOTES IN HINDI

 


❇️ अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का इतिहास :-

🔹 प्राचीन समय में , स्थानीय बाजारों में व्यापार प्रतिबंधित था । धीरे – धीरे लंबी दूरी का व्यापार विकसित हुआ , जिनमें से सिल्क रूट एक उदाहरण है । यह मार्ग 6000 किलोमीटर लंबा था जो रोम को चीन से जोड़ता था और व्यापारियों ने इस मार्ग से चीनी रेशम , रोमन ऊन , धातुओं आदि का परिवहन किया । बाद में , समुद्री और महासागरीय मार्गों की खोज हुई और व्यापार में वृद्धि हुई । 

🔹  15 वीं शताब्दी में दास व्यापार का उदय हुआ , जिसमें पुर्तगाली , डच , स्पेन और ब्रिटिश ने अफ्रीकी मूल निवासियों को पकड़ लिया और अमेरिका में बागान मालिकों को बेच दिया । औद्योगिक क्रांति के बाद , औद्योगिक देशों ने कच्चे माल का आयात किया और गैर औद्योगिक देशों को तैयार उत्पादों का निर्यात किया । 

🔹  अंतर्राष्ट्रीय व्यापार उत्पादन और श्रम विभाजन में विशेषज्ञता का परिणाम है । यह तुलनात्मक लाभ के सिद्धांत पर आधारित है जो व्यापारिक भागीदारों के लिए पारस्परिक रूप से फायदेमंद है ।

  • रेशम मार्ग के जरिये चीन की रेशम एवं रोम की ऊन का भारत एवं मध्य ऐशिया के जरिये व्यापार होता था । 
  • अफ्रीका से दासों का व्यापार अमेरिका में होता था । 
  • औद्योगिक क्रान्ति के समय विनिर्मित वस्तुओं का व्यापार । 
  • आधुनिक युग में W.T.O. का गठन । 
  • आधुनिक युग में पत्तनों की महत्वपूर्ण भूमिका । 

❇️ अंतरराष्ट्रीय व्यापार का आधार :-

🔹 अंतरराष्ट्रीय व्यापार का आधार जिन कारकों पर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार निर्भर करता है वे इस प्रकार हैं :-

🔶 राष्ट्रीय संसाधनों में अंतर संसाधन दुनिया में असमान रूप से वितरित किए जाते हैं । ये अंतर मुख्य रूप से भूविज्ञान , खनिज संसाधनों और जलवायु को संदर्भित करते हैं । 

🔶 भूवैज्ञानिक संरचना इसका अर्थ है राहत सुविधाएँ , भूमि का प्रकार जैसे उपजाऊ , पहाड़ी , तराई , जो कृषि , पर्यटन और अन्य गतिविधियों का समर्थन करती हैं । 

🔶 खनिज संसाधन खनिज से समृद्ध क्षेत्र व्यापार को आगे बढ़ाने वाले औद्योगिक विकास का समर्थन करेंगे । 

🔶 जलवायु यह एक क्षेत्र में पाए जाने वाले वनस्पतियों और जीवों के प्रकार को प्रभावित करता है , जैसे कि ठंडे क्षेत्रों में ऊन का उत्पादन । कोको , रबर , केले उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में बढ़ सकते हैं । 

🔶 जनसंख्या कारक देशों के बीच जनसंख्या का आकार , वितरण और विविधता माल के प्रकार और मात्रा के संबंध में व्यापार को प्रभावित करती है । बाहरी व्यापार की तुलना में आंतरिक व्यापार की बड़ी मात्रा स्थानीय बाजारों में खपत के कारण घनी आबादी वाले क्षेत्रों में होती है । 

🔶 सांस्कृतिक कारक कला और शिल्प के विशिष्ट रूप कुछ संस्कृतियों में विकसित होते हैं और व्यापार को जन्म देते हैं जैसे चीन के चीनी मिट्टी के बरतन और ब्रोकेस , ईरान के कालीन , इंडोनेशिया के बाटिक कपडे , आदि ।

🔶 आर्थिक विकास के चरण औद्योगीकृत राष्ट्र निर्यात मशीनरी , तैयार उत्पाद और खाद्यान्न और कच्चे माल का आयात करते हैं । सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण देशों में स्थिति विपरीत है । 

🔶 विदेशी निवेश की अधिकता विकासशील देशों में पूंजी की कमी होती है इसलिए विदेशी निवेश वृक्षारोपण कृषि को विकसित करके विकासशील देशों में व्यापार को बढ़ावा दे सकता है । 

🔶 पुराने समय में परिवहन का अभाव केवल स्थानीय क्षेत्रों तक ही सीमित था । रेल , महासागर और हवाई परिवहन का विस्तार , प्रशीतन और संरक्षण के बेहतर साधन , व्यापार ने स्थानिक विस्तार का अनुभव किया है ।

❇️ अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रकार :-

🔹अंतरराष्ट्रीय व्यापार दो प्रकार का होता है 

🔶 द्विपार्श्विक व्यापार – दो देशों द्वारा एक दूसरे के साथ किया जाने वाला व्यापार द्विपार्श्विक व्यापार कहलाता है ।

🔶 बहुपार्श्विक व्यापार – बहुत से व्यापारिक देशो के साथ किया जाने वाला व्यापार बहुपार्श्विक व्यापार कहलाता है

❇️ अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के तीन बहुत महत्वपूर्ण पक्ष  :-

  • व्यापार का परिमाण
  • व्यापार संयोजन
  • व्यापार की दिशा

❇️ व्यापार का परिमाण :-

🔹 व्यापार की गई वस्तुओं का वास्तविक तौल परिमाण कहलाता है । सभी प्रकार की व्यापारिक सेवाओं को तौला नहीं जा सकता इसीलिए व्यापार की गई वस्तुओं व सेवाओं के कुल मूल्य को व्यापार का परिमाण के रूप में जाना जाता है । 

❇️ व्यापार संयोजन :-

🔹 व्यापार संयोजन से अभिप्राय देशों द्वारा आयातित व निर्यातित वस्तुओं व सेवाओं के प्रकार में हुए परिवर्तन से हैं । जैसे पिछली शताब्दी के शुरू में प्राथमिक उत्पादों का व्यापार प्रधान था । बाद में निर्माण क्षेत्र की वस्तुओं का आधिपत्य हो गया । अब सेवा क्षेत्र भी तेजी से बढ़ रहा है ।

❇️ व्यापार की दिशा :-

🔹 पहले विकासशील देश कीमती वस्तुओं तथा शिल्पकला की वस्तुओं आदि का निर्यात करते थे । 19वीं शताब्दी में यूरोपीय देशों ने विनिर्माण वस्तुओं को अपने उपनिवेशों से खाद्य पदार्थ व कच्चे माल के बदले निर्यात करना शुरू कर दिया । वर्तमान में भारत ने विकसित देशों के साथ प्रतिस्पर्धा शुरु कर दी है । आज चीन तेजी से व्यापार के क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है ।

❇️ व्यापार संतुलन :-

🔹  एक देश दूसरे देश को कुछ वस्तुएं या सेवाएं भेजता ( निर्यात ) है या कुछ वस्तुओं या सेवाओं को अपने देश में मंगाता ( आयात ) है । इसी आयात व निर्यात के अंतर को व्यापार संतुलन कहते हैं ।

❇️ व्यपार संतुलन के प्रकार :-

🔹 यह दो प्रकार का होता है :-

🔶 ऋणात्मक संतुलन :- देश दूसरे देशों से वस्तुओं के खरीदने पर उस मूल्य से अधिक खर्च करता है जितना वह अपनी वस्तुओं को बेचकर मूल्य प्राप्त करता है अर्थात् आयात का मूल्य निर्यात के मूल्य से अधिक होता है ।

🔶 धनात्मक संतुलन :- यदि निर्यात का मूल्य ( विक्रय मूल्य ) आयात के मूल्य से अधिक है तो यह धनात्मक व्यापार संतुलन होता है ।

❇️ मुक्त व्यापार :-

🔹 जब दो देशों के मध्य व्यापारिक बाधायें हटा दी जाती हैं जैसे सीमा शुल्क खत्म करना , तो इसे मुक्त व्यापार कहा जाता हैं ।

❇️ मुक्त व्यापार के गुण :-

🔹 घरेलू उत्पादों एवं सेवाओं को अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा मिलती है जिससे उत्पादन की गुणवत्ता में वृद्धि होती है । व्यापार में भी वृद्धि होती है ।

❇️ मुक्त व्यापार के दोष :-

🔹 विकासशील देशों में समुचित विकास न होने के कारण विकसित देश अपने उत्पादों को उनके बाजारों में अधिक मात्रा में भेज देते हैं जिसे विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है उनके अपने उद्योग बंद होने लगते हैं ।

❇️ विश्व व्यापार संगठन [ WTO ] :-

🔹 विश्व व्यापार संगठन की नींव GATT ( जनरल एग्रीमेंट आन ट्रेड एन्ड टैरिफ ) के रूप में 1948 में पड़ी थी । 1995 में GATT विश्व व्यापार संगठन के रूप में परिवर्तित हो गया ।

🔹 विश्व व्यापार संगठन एकमात्र ऐसा अन्तर्राष्ट्रीय संगठन है , जो राष्ट्रो के मध्य विवादों का निपटारा करता है ।

🔹 यह संगठन दूर संचार और बैंकिंग जैसी सेवाओं तथा अन्य विषयों जैसे बौद्धिक सम्पदा अधिकार के व्यापार को भी अपने कार्यों में सम्मिलित करता है ।

❇️ विश्व व्यापार संगठन [ WTO ] की आलोचना :-

🔹 WTO ने मुक्त व्यापार एवं भूमंडलीकरण को बढ़ावा दिया है जिसके कारण धनी और धनी एवं गरीब देश और गरीब हो रहे हैं ।

🔹 विकसित देशों ने अपने बाजार को विकासशील देशों के उत्पादों के लिए नहीं खोला है ।

🔹 इस संगठन में केवल कुछ प्रभावशाली राष्ट्रो का वर्चस्व है ।

🔹 WTO पर्यावरणीय मुद्दों , बालश्रम , श्रमिकों के स्वास्थ्य व अधिकारों की उपेक्षा करता है ।

❇️ प्रादेशिक व्यापार :-

🔹 विश्व के वे देश , जिसकी व्यापार सम्बन्धी आवश्यकतायें एवं समस्याएं एक जैसी होती है , व भौगोलिक दृष्टि से एक – दूसरे के समीप हैं , एक व्यापार समूह का गठन कर लेते हैं । इसे ही प्रादेशिक व्यापार समूह कहा जाता हैं । जैसे ओपेक , असियान आदि ।

❇️ डंप :-

🔹  लागत की दृष्टि से नहीं वरन् भिन्न – भिन्न कारणों से अलग – अलग कीमत की किसी वस्तु को दो देशों में विक्रय करने की प्रथा को डंप कहते हैं ।

❇️ मार्ग पत्तन व आंत्रपों पत्तन में अंतर :-

🔶 मार्ग पत्तन :- समुद्री मार्ग पर विश्राम केन्द्र के रूप में विकसित हुए है । यहाँ पर जहाज ईंधन , जल एवं भोजन के लिए लंगर डालते हैं । जैसे – होनोलूलू एवं सिंगापुर ।

🔶 आंत्रपों पत्तन :- इन पत्तनों पर विभिन्न देशों से निर्यात हेतु वस्तुएं लाई जाती हैं एकत्र की जाती हैं व अन्य देशों को भेज दी जाती हैं जैसे – यूरोप का रोटरडम एवं कोपेनहेगन ।

❇️ पत्तनों को अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रवेश द्वार क्यों कहा जाता हैं ?

🔶 महत्व :- पत्तन व्यापार के लिए अत्यावाश्यक है क्योंकि बड़े पैमाने पर अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार समुद्री भागों से ही किया जाता है । ये पत्तन निम्न सुविधाएं प्रदान करते हैं ।

  • जहाजों के रुकने , ठहरने के लिए आश्रय प्रदान करते हैं ।
  • वस्तुओं को लादने , उतारने एवं भंडारण की सुविधा प्रदान करते हैं ।
  • अत्याधुनिक सुविधाएं , प्रशीतकों , छोटी नौकाओं की सुविधा ।
  • श्रम एवं प्रबंधकीय सुविधाएं प्रदान करते हैं ।
  • जहाजों के रखरखाव की व्यवस्था करते हैं ।

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