❇️ खनिज :-
🔹 एक खनिज वह प्राकृतिक पदार्थ है जिसमें निश्चित रासायनिक व भौतिक गुण होते हैं । इनकी उत्पत्ति का आधार अजैविक , कार्बनिक या अकार्बनिक हो सकता है ।
❇️ खनिज के प्रकार :-
🔹 रासायनिक व भौतिक गुणों के आधार पर खनिज के प्रकार :-
- ( i ) धात्विक खनिज
- ( ii ) अधात्विक खनिज
❇️ धात्विक खनिज :-
🔹 लौह अयस्क , तांबा व सोना , मैंगनीज और वाक्साइट आदि धातु से प्राप्त होते है , इन्हें धात्विक खनिज कहते है।
❇️ अधात्विक खनिज :-
🔹 ये खनिज दो प्रकार के होते है । इनमें कुछ खनिज , कार्बनिक उत्पति के होते हैं , जैसे जीवाश्म ईधन , जिन्हें खनिज ईधन भी कहते है , जैसे कोयला और पैट्रोलियम । अन्य अकार्बनिक उत्पति के खनिज होते है । जैसे अभ्रक , चूना पत्थर और ग्रेफाइट आदि ।
❇️ भारत में खनिज एजेंसियाँ :-
- राष्ट्रीय अल्यूमिनियम कंपनी लि .
- भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण ( GSI )
- तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग ONGC ( 1956 )
- खनिज अन्वेषण निगम लि . MECL
- राष्ट्रीय खनिज विकास निगम
- भारतीय खान ब्यूरो
- भारत गोल्ड माइन्स लि .
- हिन्दुस्तान कॉपर लि .
❇️ भारत में खनिजों की प्रमुख पट्टियां :-
🔶 उतर पूर्वी पठारी पट्टी :- इस पट्टी के अंतर्गत छोटा , नागपुर , पठार ( झारखंड ) , उड़ीसा का पठार , पं . बंगाल तथा छतीसगढ़ के कुछ भाग सम्मिलित है । यहां पर विभिन्न प्रकार के खनिज उपलब्ध है । इनमें लोह अयस्क , कोयला , मैंगनीज आदि प्रमुख है ।
🔶 दक्षिणी परिचमी पठारी पट्टी :- यह पट्टी कर्नाटक , गोआ , तमिलनाडु की उच्च भूमि और केरल में विस्तृत है । यह पट्टी लौह धातुओं तथा बॉक्साइट में समद्व है ।
🔶 उत्तर पश्चिमी पट्टी :- यह पट्टी राजस्थान में अरावली और गुजराज के कुछ भाग पर विस्तृत है । यहां खनिज धारवाड़ क्रम की शैलों में पाये जाते है । जिनमें तांबा , जिंक , आदि प्रमुख खनिज है । गुजरात में पेट्रोलियम के निक्षेप है ।
❇️ तांबे के लाभ तथा क्षेत्र :-
🔹 बिजली की मोटरें , ट्रांसफार्मर , जेनरेटर्स आदि के बनाने तथा विद्युत उद्योग के लिए ताँबा अपरिहार्य धातु है ।
🔹 यह एक आघातवर्द्धनीय तथा तन्य धातु हैं ।
🔹 आभूषणों को मजबूती प्रदान करने के लिए इसे सोने के साथ मिलाया जाता है ।
🔶 खनन क्षेत्र – झारखण्ड का सिंहभूमि जिला , मध्यप्रदेश में बालाघाट कर्नाटक में चित्रदुर्ग राजस्थान में झुंझुनु , अलवर व खेतड़ी जिले ।
❇️ मैंगनीज के लाभ तथा क्षेत्र :-
🔹 लौह अयस्क के प्रगलन के लिए महत्वपूर्ण कच्चा माल है ।
🔹 इसका उपयोग लौह मिश्र धातु तथा विनिर्माण में भी किया जाता है ।
🔶 खनन क्षेत्र :- उड़ीसा , कर्नाटक , महाराष्ट्र , मध्य प्रदेश , आन्ध्र प्रदेश व झारखण्ड ।
❇️ ऊर्जा संसाधन :-
🔹 वह सभी संसाधन जो ऊर्जा प्रदान करते हैं , ऊर्जा संसाधन कहलाते हैं ।
🔹 कोयला , पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस जैसे खनिज ईंधन ( जो जीवाश्म ईंधन के रूप में जाने जाते हैं ) , परमाणु ऊर्जा , ऊर्जा के परंपरागत स्रोत हैं ।
❇️ ऊर्जा संसाधनों के प्रकार :-
🔹 ऊर्जा के संसाधनों को मुख्य रूप से दो भागों में बांटा जाता है :-
- परंपरागत संसाधन
- अपरंपरागत संसाधन
❇️ ऊर्जा के परंपरागत संसाधन :-
- कोयला , पेट्रोलियम , प्राकृतिक गैस तथा नाभिकीय ऊर्जा जैसे ईंधन के स्रोत समाप्य कच्चे माल का प्रयोग करते हैं ।
- इन साधनों का वितरण बहुत असमान है ।
- ये साधन पर्यावरण अनुकूल नही है अर्थात पर्यावरण प्रदूषण में इनकी बड़ी भूमिका है ।
❇️ ऊर्जा के गैर अपरंपरागत संसाधन :-
- सौर , पवन , जल , भूतापीय ऊर्जा असमाप्य है ।
- ये साधन अपेक्षाकृत अधिक समान रूप से वितरित है ।
- ये ऊर्जा के स्वच्छ साधन और पर्यावरण हितैषी है ।
❇️ ऊर्जा के अपरम्परागत स्रोत :-
🔶 सौर ऊर्जा – भारत के परिचमी भागों गुजराज व राजस्थान में और ऊर्जा के विकास की अधिक संभावनाएं है ।
🔶 पवन ऊर्जा – पवन ऊर्जा के लिए राजस्थान , गुजराज , महाराष्ट्र , तथा कर्नाटक में अनुकूल परिस्थितियों विधमान है ।
🔶 ज्वारीय ऊर्जा – भारत के पश्चिमी तट के साथ ज्वारीय ऊर्जा विकसित होने की व्यापक संभावनाएं है ।
🔶 भूतापीय ऊर्जा – इसके लिए हिमालय प्रदेश , में विकसित होने की व्यापक संभावनाएं है ।
🔶 जैव ऊर्जा – ग्रामीण क्षेत्रों में जैव ऊर्जा विकसित होने की व्यापक संभावनाएं है ।
❇️ अपटत वेधन :-
🔹 समुद्र तट से दूर समुद्र की तली में मौजूद प्राकृतिक तेल को वेधन करके प्राप्त करना अपतट वेधन है ।
❇️ भारत में पाए जाने वाली खनिजों की विशेषताए :-
🔹 खनिज , असमान रूप में वितरित होते हैं । सब जगह सभी खनिज नहीं मिलते ।
🔹 अधिक गुणवत्ता वाले खनिज , कम गुणवत्ता वाले खनिजों की तुलना में कम मात्रा में पाए जाते हैं । खनिजों की गुणवत्ता व मात्रा में प्रतिलोमी संबंध पाया जाता है ।
🔹 सभी खनिज समय के साथ समाप्त हो जाते हैं । भूगार्भिक दृष्टि से इन्हें बनने में लम्बा समय लगता है और आवश्यकता के समय इनका तुरन्त पुनर्भरण नहीं किया जा सकता है ।
❇️ भारत में खनिजों का संरक्षण क्यों आवश्यक है ?
- खनिज समय के साथ समाप्त हो जाते हैं ।
- भूगर्मिक दृष्टि से इन्हें बनने में लम्बा समय लगता है ।
- आवश्यकता के समय तुरन्त इनका पुनर्भरण नहीं किया जा सकता ।
- सतत् पोषणीय विकास तथा आर्थिक विकास के लिए खनिजों का संरक्षण करना आवश्यक हो जाता है ।
❇️ खनिजों का संरक्षण की विधियाँ :-
🔹 इसके लिए ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों जैसे सौर ऊर्जा , पवन , तरंग व भूतापीय ऊर्जा के असमाप्य स्रोतों का प्रयोग करना चाहिए ।
🔹 धात्विक खनिजों में , छाजन धातुओं के उपयोग तथा धातुओं के पुर्नचक्रण पर बल देना चाहिए ।
🔹 अत्यल्प खनिजों के लिए प्रति स्थापनों का उपयोग भी खनिजों के । संरक्षण में सहायक है।
🔹 सामरिक व अति अल्प खनिजों के निर्यात को भी घटाना चाहिए ।
🔹सबसे उचित तरीका है खनिजों का सूझ – बूझ से तथा मितव्यतता से प्रयोग कराना है ताकि वर्तमान आरक्षित भण्डारों का लंबे समय तक प्रयोग किया जा सके ।