❇️ आर्थिक क्रियाएँ :-
🔹 मानव के उन कार्यकलापों को जिनसे आय प्राप्त होती हैं । आर्थिक क्रिया कहा जाता है ।
🔹 मानव की क्रियाओं को मुख्यतः चार वर्गों में रखा जा सकता है –
- 1 ) प्राथमिक क्रियाएँ
- 2 ) द्वितीयक क्रियाएँ
- 3 ) तृतीयक क्रियाएँ
- 4 ) चतुर्थक क्रियाएँ
❇️ प्राथमिक क्रियाएँ :-
🔹 प्राथमिक क्रियाएँ ये वे क्रियाये है जिनके लिए मनुष्य प्रत्यक्ष रूप से प्राकृतिक पर्यावरण पर निर्भर है ।
🔹 ये आर्थिक क्रियाये भूमि , जल , खनिज आदि की उपलब्धता एवं प्रकार पर निर्भर करती है ।
🔹 इनके अंतर्गत मुख्यतः कृषि , पशुपालन , संग्रहण आखेट , मत्स्यपालन , लकड़ी काटना , खनन जैसे कार्य आते हैं ।
❇️ आखेट एवं भोजन संग्रहण :-
🔹 मनुष्य के प्राचीनतम व्यवसाय संग्रहण तथा आखेट है ।
🔶 आखेट :- आखेट का अर्थ होता है शिकार करना ।
🔶 भोजन संग्रहण :- भोजन संग्रहण का अर्थ होता है अपनी जरूरत के लिए भोजन इकट्ठा करना ।
🔹 संग्रहण तीन पैमानों पर किया गया है ।
- ( 1 ) जीविकोपार्जन संग्रहण
- ( 2 ) वाणिज्यिक संग्रहण
- ( 3 ) सगठित संग्रहण
❇️ प्रमुख क्षेत्र :-
🔹 चलवासी पशुचारण – उत्तर अफ्रीका , यूरोप एशिया , टुंड्रा प्रदेश , दक्षिण पश्चिम अफ्रीका ।
🔹 वाणिज्य पशुपालन – न्यूजीलैण्ड , आस्ट्रेलिया , अर्जेंटाइना , संयुक्त राज्य अमेरिका ।
🔹 आदिकालीन निर्वाह कृषि – अफ्रीका , दक्षिण व मध्य अमेरिका का उष्णकटिबंधीय भाग तथा दक्षिण पूर्वी एशिया ।
🔹 विस्तृत वाणिज्य – स्टेपीज के यूरेशिया , उ . अमेरिका के प्रेयरीज , अर्जेंटाइना के पम्पास , द . अफ्रीका का वेल्डस , आस्ट्रेलिया का डाउन्स तथा न्यूजीलैण्ड के कैंटरबरी घास के मैदान ।
🔹 डेयरी कृषि – उत्तरी पश्चिम यूरोम , कनाडा तथा न्यूजीलैण्ड व आस्ट्रेलिया ।
🔹 सहकारी कृषि – पश्चिम यूरोप के डेनमार्क , नीदरलैण्ड बेल्जियम , स्वीडन तथा इटली ।
🔹 पुष्पोत्पादन – नीदरलैण्ड – ट्यूलिप
🔹 उद्यान कृषि – पश्चिम यूरोप व उत्तर अमेरिका
🔹 मिश्रित कृषि – अत्याधिक विकसित भाग जैसे उत्तरी अमेरिका , उ . पश्चिमी यूरोप , यूरेशिया के कुछ भाग ।
🔹 सामूहिक कृषि – सोवियत संघ ( कोलखहोज )
❇️ चलवासी पशुचारण :-
🔹 चलवासी पशुचारण में समुदाय अपने पालतू पशओं के साथ पानी एवं चारगाह की उपलब्धता एवं गुणवत्ता के अनुसार एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थांतरित होते रहते हैं ।
❇️ वाणिज्य पशुधन :-
🔹 वाणिज्य पशुधन पालन एक निश्चित स्थान पर विशाल क्षेत्र वाले फार्म पर किया जाता है और उनके चारे की व्यवस्था स्थानीय रूप से की जाती है ।
❇️ चलवासी पशुचारण और वाणिज्य पशुधन पालन में अंतर :-
चलवासी पशुचारण | वाणिज्य पशुधन पालन |
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1 ) अर्थ – चलवासी पशुचारण में पशुपालक समुदाय चारे एवं जल की खोज में एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते हैं । | 1 ) अर्थ – वाणिज्य पशुधन पालन एक निश्चित स्थान पर विशाल क्षेत्र वाले फार्म पर किया जाता है और उनके चारे की व्यवस्था स्थानीय रूप से की जाती है । |
2 ) पूँजी – यह पूँजी प्रधान नहीं है । पशुओं को प्राकृतिक परिवेश में पाला जाता है । | 2 ) पूँजी – चलवासी पशुचारण की अपेक्षा वाणिज्य पशुधन पालन अधिक व्यवस्थित एवं पूँजी प्रधान है । |
3 ) पशुओं की देखभाल – पशु प्राकृतिक रूप से बड़े होते हैं और उनकी विशेष देखभाल नहीं की जाती । | 3 ) पशुओं की देखभाल – पशुओं को वैज्ञानिक तरीके से पाला जाता है और उनकी विशेष देखभाल की जाती है । |
4 ) पशुओं के प्रकार – चलवासी पशुपालक एक ही समय में विभिन्न प्रकार के पशु रखते हैं । जैसे सहारा व एशिया के मरुस्थलों में भेड़ , बकरी व ऊँट पाले जाते हैं । | 4 ) पशुओं के प्रकार – इसमें उसी विशेष पशु को पाला जाता है जिसके लिए वह क्षेत्र अत्यधिक अनुकूल होता है । |
5 ) क्षेत्र – यह पुरानी दुनिया तक की सीमित है । इसके तीन प्रमुख क्षेत्र क ) उत्तरी अफ्रीका के एटलांटिक तट से अरब प्रायद्वीप होते हुए मंगोलिया एवं मध्य चीन ख ) यूरोप व एशिया के टुंड्रा प्रदेश ग ) दक्षिण पश्चिम अफ्रीका एवं मेडागास्कर द्वीप । | 5 ) क्षेत्र – यह मुख्यतः नई दुनिया में प्रचलित हैं । विश्व में न्यूजीलैंड , आस्ट्रेलिया , अर्जेंटाइना , युरुग्वे , संयुक्त राज्य अमेरीका में वाणिज्य पशुधन पालन किया जाता है । |
❇️ निर्वाह कृषि :-
🔹 इस तरह की खेती जमीन के छोटे टुकड़ों पर होती है। इस तरह की खेती में आदिम औजार और परिवार या समुदाय के श्रम का इस्तेमाल किया जाता है। यह खेती मुख्य रूप से मानसून पर और जमीन की प्राकृतिक उर्वरता पर निर्भर करती है।
❇️ निर्वाह कृषि को दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है :-
- 1 . आदिकालीन निर्वाह कृषि
- 2 . गहन निर्वाह कृषि
❇️ 1 . आदिकालीन :-
🔹 निर्वाह कृषि , कृषि का वह प्रकार है जिसमें कृषक अपने व अपने परिवार के भरण पोषण ( निर्वाह ) हेतु उत्पादन करता है । इसमें उत्पाद बिक्री के लिए नहीं होते । आदिमकालीन निर्वाह कृषि का प्राचीनतम रूप है , जिसे स्थानांतरी कृषि भी कहते हैं , जिसमें खेत स्थाई नहीं होते ।
❇️ आदिकालीन निर्वाह कृषि की विशेषताएँ :-
🔹 खेत का आकार :- खेत छोटे – छोटे होते हैं ।
🔹 कृषि की पद्धति :- इसमें किसान एक क्षेत्र के जंगल या वनस्पतियों को काटकर या जलाकर साफ करता है । खेत का उपजाऊपन समाप्त होने पर उस स्थान को छोड़कर भूमि का अन्य भाग कृषि हेतु तैयार करता है ।
🔹 औजार :- औजार पारम्परिक होते हैं , जैसे लकड़ी , कुदाली एवं फावड़े ।
🔹 क्षेत्र :- ऊष्णकटिबंधीय क्षेत्र जहाँ आदिम जाति के लोग यह कृषि करते हैं : ( 1 ) अफ्रीका ( 2 ) उष्णकटिबंधीय दक्षिण व मध्य अमेरीका ( 3 ) दक्षिण पूर्वी एशिया ।
❇️ 2 . गहन निर्वाह कृषि :-
🔹 गहन निर्वाह कृषि के मुख्य दो प्रकार हैं :-
- 1 . चावल प्रधान गहन निर्वाह कृषि
- 2 . चावल रहित गहन निर्वाह कृषि
❇️ 2.1 चावल प्रधान गहन निर्वाह कृषि :-
🔹 इस प्रकार की कृषि में लोग परिवार के भरण पोषण के लिए भूमि के छोटे से टुकड़े पर काफी बड़ी संख्या में लोग चावल की कृषि में लगे होते हैं । यहाँ भूमि पर जनसंख्या का दबाव अधिक होता है ।
❇️ चावल प्रधान गहन निर्वाह कृषि की मुख्य विशेषताएं :-
🔹 मुख्य फसल – जैसा कि इस कृषि के नाम से ही पता चलता है कि इसमें चावल प्रमुख फसल होती है । सिंचाई वर्षा पर निर्भर होती है ।
🔹 खेतों का आकार – अधिक जनसंख्या घनत्व के कारण खेतों का आकार छोटा होता है तथा खेत एक दूसरे से दूर होते हैं ।
🔹 श्रम – भूमि का गहन उपयोग होता है एवं यंत्रों की अपेक्षा मानव श्रम का अधिक महत्व है । कृषि कार्य में कृषक का पूरा परिवार लगा रहता है ।
🔹 प्राकृतिक खाद – भूमि की उर्वरता बनाए रखने के लिए पशओं के गोबर की खाद एवं हरी खाद का उपयोग किया जाता है ।
🔹 क्षेत्र – मानसून एशिया के घने बसे प्रदेश ।
❇️ 2.2 चावल रहित गहन निर्वाह कृषि :-
🔹 इस कृषि में चावल मुख्य फसल नहीं होती है और इसके स्थान पर गेहूँ , सोयाबीन , जौ तथा सोरपम आदि फसलें बोई जाती है ।
❇️ चावल रहित गहन निर्वाह कृषि की मुख्य विशेषताएँ :-
🔹 यह कृषि उन क्षेत्रों में की जाती है , जहाँ पर चावल की फसल के लिए पर्याप्त वर्षा नहीं होती इसलिए इसमें सिंचाई की जाती है ।
🔹 इस प्रकार की कृषि में भूमि पर जनसंख्या का दबाव अधिक रहता हैं ।
🔹 खेत बहुत ही छोटे तथा बिखरे हुए होते हैं । मशीनों के स्थान पर खेती के अधिकतर कार्य पशुओं द्वारा होते है ।
🔹 मुख्य क्षेत्रों में उत्तरी कोरिया , उत्तरी जापान , मंचूरिया , गंगा सिंधु के मैदानी भाग ( भारत ) हैं ।
❇️ रोपण कृषि :-
🔹 रोपण कृषि एक व्यापारिक कृषि है जिसके अन्तर्गत बाजार में बेचने के लिए चाय , कॉफी , कोको , रबड़ , कपास , गन्ना , केले व अनानास की पौध लगाई जाती है ।
❇️ रोपण कृषि की मुख्य विशेषताएँ :-
🔹 खेत का आकार – इसमें कृषि क्षेत्र ( बागान ) का आकार बहुत बड़ा होता है ।
🔹 पूँजी निवेश – बागानों की स्थापना व उन्हें चलाने , रखरखाव के लिए अधिक पूँजी की आवश्यकता होती है ।
🔹 तकनीकी व वैज्ञानिक विधियाँ – इसमें उच्च प्रबंध तकनीकी आधार तथा वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग किया जाता है ।
🔹 एक फसली कृषि – यह एक फसली कृषि है जिसमें एक फसल के उत्पादन पर ही ध्यान दिया जाता है ।
🔹 श्रम – इसमें काफी श्रमिकों की आवश्यकता होती है । श्रम स्थानीय लोगों से प्राप्त किया जाता है ।
🔹 परिवहन के साधन – परिवहन के साधन सुचारु रूप से विकसित होते हैं जिसके द्वारा बागान एवं बाजार भली प्रकार से जुड़े रहते हैं ।
🔹 क्षेत्र – इस कृषि को यूरोपीय एवं अमेरिकी लोगों ने अपने अधीन उष्ण कटिबंधीय उपनिवेशों में स्थापित किया था ।
❇️ स्थानांतरी कृषि :-
🔹 स्थानांतरी कृषि सबसे प्राथमिक कृषि है । स्थानान्तरी कृषि या स्थानान्तरणीय कृषि कृषि का एक प्रकार है जिसमें कोई भूमि का टुकड़ा कुछ समय तक फसल लेने के लिए चुना जाता है और उपजाऊपन कम होने के बाद इसका परित्याग कर दूसरे टुकड़ों को ऐसे ही कृषि के लिए चुन लिया जाता है। पहले के चुने गए टुकड़ों पर वापस प्राकृतिक वनस्पति का विकास होता है।
🔹 भारत के उत्तरी पूर्वी स्थानांतरी कृषि को झूमिंग , मध्य अमेरिका एवं मैक्सिकों में मिल्पा , मलेशिया में लांदाग कहते हैं ।
❇️ झुम खेती :-
🔹 इस प्रकार की कषि में क्षेत्रों की वनस्पति को काटा व जला दिया जाता है । एवं जली हुई राख की परत उर्वरक का कार्य करती है । इसमें बोए गए खेत बहुत छोटे – छोटे होते हैं । एंव खेती भी पुराने औजारों से की जाती है । जब मिट्टी का उपजाऊपन समाप्त हो जाता है , तब कृषक नए क्षेत्र में वन जलाकर कृषि भूमि तैयार करता है । भारत के उत्तरपूर्वी राज्यों में इसे झुम कृषि कहते हैं ।
❇️ मिश्रित कृषि :-
🔹 इस प्रकार की कृषि में फसल उत्पादन एवं पशुपालन दोनों को समान महत्व दिया जाता हैं । फसलों के साथ – साथ पशु जैसे मवेशी , भेड़ , सुअर , कुक्कुट आय के प्रमुख स्रोत है ।
❇️ मिश्रित कृषि की विशेषताएं :-
🔹 चारें की फसलें मिश्रित कृषि के मुख्य घटक हैं ।
🔹 इस कृषि में खेतों का आकार मध्यम होता है ।
🔹 इसमें बोई जाने वाली अन्य फसलें गेहूँ , जौ , राई , जई , मक्का , कंदमूल प्रमुख है । शस्यावर्तन एवं अंतः फसली कृषि मृदा की उर्वरता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं ।
🔹 इस प्रकार की कृषि विश्व के अत्यधिक विकसित भागों में की जाती है , जैसे उत्तरी पश्चिमी यूरोप , उत्तरी अमेरिका का पूर्वी भाग , यूरेशिया के कुछ भाग एवं दक्षिणी महाद्वीपों के समशीतोष्ण अंक्षाश वाले भाग ।
❇️ दहन कृषि :-
🔹 इस प्रकार की कषि में क्षेत्रों की वनस्पति को काटा व जला दिया जाता है । एवं जली हुई राख की परत उर्वरक का कार्य करती है । इसमें बोए गए खेत बहुत छोटे – छोटे होते हैं । एंव खेती भी पुराने औजारों से की जाती है । जब मिट्टी का उपजाऊपन समाप्त हो जाता है , तब कृषक नए क्षेत्र में वन जलाकर कृषि भूमि तैयार करता है ।
❇️ ऋतु प्रवास :-
🔹 नए चारागाहों की खोज में चलवासी पशुचारक समतल भागों एवं पर्वतीय क्षत्रों में लंबी दूरियाँ तय करते हैं । गर्मियों में मैदानी भाग से पर्वतीय चरागाह की ओर एवं शीत ऋतु में पर्वतीय भाग से मैदानी चरागाहों की ओर प्रवास करते हैं । इस गतिविधि को ऋतुप्रवास कहते हैं ।
❇️ ट्रक कृषि :-
🔹 जहाँ केवल सब्जियों की खेती है वहाँ ट्रक , बाजार के मध्य दूरी रात भर में तय करते हैं । इन्हें ट्रक कृषि कहते हैं ।
❇️ डेरी कृषि :-
🔹 यह एक विशेष प्रकार की कृषि है , जिसके अन्तर्गत पशुओं को दूध के लिए पाला जाता है , और उनके स्वास्थ्य , प्रजनन एवं चिकित्सा पर विशेष ध्यान दिया जाता है ।
❇️ डेरी कृषि की विशेषतायें बताइये :-
🔹 पूँजी :- पशुओं के लिए छप्पर , घास संचित करने के भंडार एवं दुग्ध उत्पादन में अधिक यंत्रों के प्रयोग के लिए पूँजी भी अधिक चाहिए ।
🔹 श्रम :- पशुओं को चराने , दूध निकालने आदि कार्यों के लिए वर्ष भर श्रम की आवश्यकता होती हैं ।
🔹 नगरीय और औद्योगिक क्षेत्रों में विकसित यातायात के साधन प्रशीतकों का उपयोग तथा पाश्चुरीकरण की सुविधा उपलब्ध होने के कारण इन केंद्रों के निकट स्थापित की जाती है ।
🔹 बाजार :- डेरी कृषि का कार्य नगरीय एवं औद्योगिक केंद्रों के समीप किया जाता हैं , क्योंकि ये क्षेत्र ताजा दूध एवं अन्य डेरी उत्पाद के अच्छे बाजार होते हैं ।
🔹मुख्य क्षेत्र – ( 1 ) उत्तरी पश्चिमी यूरोप ( 2 ) कनाडा ( 3 ) न्यूजीलैंड , दक्षिण पूर्वी , आस्ट्रेलिया एवं तस्मानिया ।
❇️ भूमध्य सागरीय कृषि :-
🔹यह कृषि भूमध्यसागरीय जलवायु वाले प्रदेशों में की जाती है । यह विशिष्ट प्रकार की कृषि है , जिसमें खट्टे फलों के उत्पादन पर विशेष बल दिया जाता है ।
🔹यहाँ शुष्क कृषि भी की जाती है । गर्मी के महीनों में अंजीर और जैतून पैदा होते हैं । शीत ऋतु में जब यूरोप एवं संयुक्त राज्य अमेरिका में फलों एवं सब्जियों की माँग होती है , तब इसी क्षेत्र से इसकी आपूर्ति की जाती है । इस क्षेत्र के कई देशों में अच्छे किस्म के अंगूरों से उच्च गुणवत्ता वाली मदिरा ( शराब ) का उत्पादन किया जाता है ।
❇️ सहकारी कृषि व सामूहिक कृषि :-
सहकारी कृषि | सामूहिक कृषि |
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सरकारी कृषि में कृषक स्वेच्छा से अपने संसाधनों का समाहित कर , सहाकरी संस्था बनाकर कृषि कार्य सम्पन्न करते हैं । | सामूहिक कृषि में उत्पादन के साधनों का स्वामित्व सम्पूर्ण समाज एवं सामूहिक श्रम पर आधारित होता है । |
सहकारी कृषि में व्यक्तिगत फार्म अक्षुण्ण रहते हैं । | सामूहिक कृषि में कृषक अपने सभी संसाधनो को मिलाकर कृषि करते हैं , किन्तु भूमि का छोटा सा हिस्सा अपने अधिकार में रख सकते हैं । |
सहकार समितियाँ कृषकों की सभी रूपों में सहायता करती हैं । | सामूहिक कृषि में सरकार सभी तरह से नियन्त्रण करती है । |
सहकारी समितियाँ अपने उत्पादों को अनुकूल शर्तो पर बेचती हैं । | सामूहिक कृषि में उत्पादन को सरकार ही निर्धारित मूल्य पर खरीदती है । |
डेनमार्क , नीदरलैंड , बेल्जियम , स्वीडन , इटली आदि यूरोप के देशों में सहकारी कृषि का चलन हैं । | जबकि रूस में सामूहिक कृषि का प्रचलन है । |
❇️ खनन :-
🔹 भूपर्पटी से मूल्यवान धात्विक और अधात्विक खनिजों को निकालने की प्रक्रिया को खनन कहते हैं ।
❇️ खनन के दो प्रकार :-
- 1️⃣ भूमिगत खनन
- 2️⃣ धरातलीय खनन
❇️ भूमिगत खनन :-
🔹 भूमिगत खनन बहुत जोखिम पूर्ण तथा असुरक्षित होता है । सुरक्षात्मक उपायों व उपकरणों पर अत्यधिक खर्च होता है । इसमें दुर्घटनाओं की संभावना अधिक होती है । खानें काफी गहराई पर होती है । इन खानों में वेधन मशीन , माल ढोने वाली गाडियों तथा वायु संचार प्रणाली की आवश्यकता होती है ।
❇️ धरातलीय खनन :-
🔹धरातलीय खनन अपेक्षाकृत आसान , सुरक्षित और सस्ता होता है । इस खनन में सुरक्षात्मक उपायों एवं उपकरणों पर अतिरिक्त खर्च अपेक्षाकृत कम होता है । खनिजो के भंडार धरातल के निकट ही कम गहराई पर होते है ।
❇️ खनन को प्रभावित करने वाले दो कारक :-
🔶 1 . भौतिक कारक – इनमें खनिज पदार्थों के आकार , श्रेणी एवं उपस्थिति की अवस्था को सम्मिलित किया जाता है । खनिजों की अधिक गहराई , खनिजों में धातु की मात्रा का कम प्रतिशत तथा उपभोग के स्थानों से अधिक दूरी खनिजों के खनन के व्यय को बढ़ा देती है ।
🔶 2 . आर्थिक कारक – इसमें खनिजों की मांग , विद्यमान तकनीकी ज्ञान एवं उसका उपयोग , पूंजी की उपलब्धता , यातायात व श्रम पर होने वाला व्यय आता है ।
❇️ विवृत खदान का अर्थ :-
🔹 इसे धरातलीय खनन भी कहा जाता है। यह एक सस्ता तरीका हैं जिसमें सुरक्षात्मक पूर्वोपायों एवं उपकरणों पर अतिरिक्त खर्च कम तथा उत्पादन शीघ्र व अधिक होता है ।