न्यायपालिका (Judiciary) || 11th Class Pol. Science Ch-6 ( Book-1) || Notes in Hindi

 

न्यायपालिका

(Judiciary)



❇️ न्यायपालिका :-

🔹 न्यायपालिका सरकार का महत्वपूर्ण तीसरा अंग है जिसे विभिन्न व्यक्तियों या निजी संस्थाओं ने आपसी विवादों को हल करने वाले पंच के रूप में देखा जाता है कि कानून के शासन की रक्षा और कानून की सर्वोच्चता को सुनिश्चित करें । इसके लिये यह जरूरी है कि न्यायपालिका किसी भी राजनीतिक दबाव से मुक्त होकर स्वतंत्र निर्णय ले सकें । 

🔹 न्यायपालिका देश के संविधान लोकतांत्रिक परम्परा और जनता के प्रति जवाबदेह है ।

🔹  विधायिका और कार्यपालिका , न्यायपालिका के कार्यों में किसी प्रकार की बाधा न पहुँचाए और न्यायपालिका ठीक प्रकार से कार्य कर सकें । 

🔹 न्यायाधीश बिना भय या भेदभाव के अपना कार्य कर सकें । 

❇️ न्यायपालिका की स्थापना :-

🔹 भारत सरकार अधिनियम 1935 के तहत संघीय न्यायालय की स्थापना का प्रावधान किया गया है जिसके तहत भारत में संघीय न्यायालय की स्थापना 1 अक्टूबर 1937 को की गई । इसके प्रथम मुख्य न्यायाधीश सर मौरिस ग्वेयर थे । भारत की आजादी के बाद उच्चतम न्यायालय का उद्घाटन 28 जनवरी 1950 को दिल्ली में किया गया ।

❇️ न्यायपालिका की पिरामिड रूपी सरंचना :-



❇️ न्यायपालिका की स्वतंत्रता :-

🔹 न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अर्थ है कि सरकार के अन्य दो अंग विधायिका और कार्यपालिका , न्यायपालिका के कार्यों में हस्तक्षेप न करके उनके कार्यों में किसी भी प्रकार की बांधा न पहुंचाये ताकि वह अपना कार्य सही ढंग से करे और निष्पक्ष रूप से न्याय कर सके । 

🔹 संघात्मक सरकार में संघ और राज्यों के मध्य विवाद के समाधान और संविधान की सर्वोच्चता बनाये रखने का दायित्व न्यायपालिका पर ही होता है । इसके साथ – साथ उस पर मूल अधिकारों के संरक्षण का भी दायित्व होता है इसके लिए न्यायपालिका का स्वतंत्र एवं निष्पक्ष होना अति आवश्यक है ।

❇️ सर्वोच्च न्यायालय का गठन :-

🔹 सर्वोच्च न्यायालय के गठन के बारे में प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 124 ( 1 ) में दिया गया है । अनुच्छेद 124 ( 1 ) के तहत मूल संविधान में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या एक मुख्य न्यायाधीश तथा सात अन्य न्यायाधीशों को मिलाकर कुल 8 रखी गयी । 

🔹 सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या , क्षेत्राधिकार , न्यायाधीशों के वेतन एवं शर्ते निश्चित करने का अधिकार संसद को दिया गया है । इस शक्ति का प्रयोग कर संसद ने समय – समय पर न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि कर वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में कुल न्यायाधीशों की संख्या 31 है ।

❇️ न्यायाधीश :-

🔹 न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने के लिए व्यक्ति को वकालत का अनुभव या कानून का विशेषज्ञ होना चाहिए । इनका निश्चित कार्यकाल होता है । ये सेवा निवृत्त होने तक अपने पद पर बने रहते है । विशेष स्थितियों में न्यायधीशों को हटाया जा सकता है । न्यायपालिका , विधायिका या कार्यपालिका पर वित्तीय रूप से निर्भर नहीं है ।

❇️ न्यायधीश की नियुक्ति :-

🔹 मंत्रिमंडल , राज्यपाल , मुख्यमंत्री और भारत के मुख्यन्यायधीष – ये सभी न्यायिक नियुक्ति के प्रक्रिया को प्रभावित करते है । 

🔹 मुख्य न्यायधीश की नियुक्ति के संदर्भ में यह परम्परा भी है कि सर्वोच्च न्यायलय के सबसे वरिष्ठ न्यायधीश को मुख्यन्यायधीष चुना जाता है किन्तु भारत में इस परम्परा को दो बार तोड़ा भी गया है । 

🔹 सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायलय के अन्य न्यायधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति भारत के मुख्य न्यायधीश की सलाह से करता है । ताकि न्यायलय की स्वतंत्रता व शक्ति संतुलन दोनों बने रहे ।

❇️ सर्वोच्य न्यायालय के मुख्य न्यायधीश की नियुक्ति :-

🔹 सर्वोच्य न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है । 

❇️ सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीशों को पद से हटाने की प्रक्रिया :-

🔹 महाभियोग द्वारा 

🔹 अयोग्यता का आरोप लगने पर 

🔹 विशेष बहुमत से प्रस्ताव पारित 

🔹 दोनो सदनों में बहुमत के बाद

❇️ उच्च न्यायालय का गठन :-

🔹 संविधान के भाग 6 , अनुच्छेद 214 से 232 में राज्यों के उच्च न्यायालय के बारे में प्रावधान किया गया है । 

🔹 उच्च न्यायालय राज्य का सबसे बड़ा न्यायालय होता है । 

🔹 प्रत्येक उच्च न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश तथा ऐसे अन्य न्यायाधीश होते हैं जिन्हें राष्ट्रपति समय – समय पर अनुच्छेद 216 के तहत नियुक्त करता है । 

🔹 उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की संख्या निश्चित नहीं है उनकी संख्या आवश्यकतानुसार समय – समय पर 

🔹 राष्ट्रपति द्वारा बढ़ाई जा सकती है । 

🔹 वर्तमान में उच्च न्यायालयों की संख्या 24 है ।

❇️ उच्चतम न्यायालयों के न्यायाधीशों की योग्यताएं :-

🔹 वह भारत का नागरिक हो ।

🔹 वह किसी उच्च न्यायालय में कम से कम पाँच वर्ष तक न्यायाधीश रह चुका हो अथवा वह एक या अधिक उच्च न्यायालय में लगातार कम से कम 10 वर्ष तक अधिवक्ता रह चुका हो । 

🔹 वह राष्ट्रपति की दृष्टि में एक पारंगत विधिवेत्ता हो । 

❇️ उच्चतम न्यायालयों के न्यायाधीशों का कार्यकाल :-

🔹 उच्चतम न्यायालय के सभी न्यायाधीश ( मुख्य न्यायाधीश एवं अन्य न्यायाधीश ) 65 वर्ष की आयु तक अपना पद धारण करते हैं

❇️ सर्वोच्य न्यायालय का क्षेत्राधिकार :-

🔶 मौलिक क्षेत्राधिकार :-

🔹 मौलिक क्षेत्राधिकार का अर्थ है कि कुछ मुकदमों की सुनवाई सीधे सर्वोच्य न्यायालय कर सकता है । ऐसे मुकदमों में पहले निचली अदालतों में सुनवाई जरुरी नहीं । यह अधिकार उसे संधीय मामलों से संबंधित सभी विवादों में एक अम्पायर या निर्णयाक की भूमिका देता है । 

🔶 रिट संबंधी क्षेत्राधिकार :-

🔹 मौलिक अधिकारों के उल्लंधन रोकने के लिए सर्वोच्य न्यायालय अपने विशेष आदेश रिट के रूप में दे सकता है । उच्च न्यायालय भी रिट जारी कर सकता है । इन रिटो के माध्यम से न्यायालय कार्यपालिका को कुछ करने या ना करने का आदेश दे सकता है । 

🔶 अपीली क्षेत्राधिकार :- 

🔹 सर्वोच्य न्यायालय अपील का उच्चतम न्यायालय है । कोई भी व्यक्ति उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध सर्वोच्य न्यायालय में अपील कर सकता है । लेकिन इसके लिए उच्च न्यायालय को प्रमाण – पत्र देना पड़ता है कि वह सर्वोच्य न्यायालय में अपील कर सकता है । अपीली क्षेत्राधिकार का अर्थ है कि सर्वोच्य न्यायालय पुरे मुकदमें पर पुनर्विचार करेगा और उसके क़ानूनी मुद्दों की दुबारा जाँच करेगा । 

🔶 सलाह संबंधी क्षेत्राधिकार :- 

🔹 मौलिक और अपीली क्षेत्राधिकार के अतिरिक्त सर्वोच्य न्यायालय का परामर्श संबंधी क्षेत्राधिकार है ।

❇️ विशेषाधिकार :-

🔹 किसी भारतीय अदालत के दिये गये फैसले पर स्पेशल लाइव पिटीशन के तहत अपील पर सुनवाई । 

🔹 भारत में न्यायिक सक्रियता का मुख्य साधन जन हित याचिका या सामाजिक व्यवहार याचिका रही है । 

🔹 1979 – 80 के बाद जनहित याचिकाओं और न्यायिक सक्रियता के द्वारा न्यायधीश ने उन मामले मे रूचि दिखाई जहां समाज के कुछ वर्गों के लोग आसानी से अदालत की सेवाएँ नहीं ले सकेंते । इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु न्यायलय ने जन सेवा की भावना से भरे नागरिक , सामाजिक संगठन और वकीलों को समाज के जरूरतमंद और गरीब लोगों की ओर से – याचिकाएं दायर करने को इजाजत दी । 

🔹 न्यायिक सक्रियता ने न्याय व्यवस्था को लोकतंत्रिक बनाया ओर कार्यपलिका उत्तरदायी बनने पर बाध्य हुई । 

🔹 चुनाव प्रणाली को भी ज्यादा मुक्त ओर निष्पक्ष बनाने का प्रयास किया । 

🔹  चुनाव लड़ने वाली प्रत्याशियों की अपनी संपति आय और शैक्षणिक योग्यताओं के संबंध में शपथ पत्र दने का निर्देश दिया , ताकि लोग सही जानकारी के आधार पर प्रतिनिधियों का चुनाव कर सकें । 

❇️ अपीलीय :-

🔹 दीवानी फौजदारी व संवैधानिक सवालों से जुड़े अधीनस्थ न्यायलयों के मुकदमों पर अपील सुनना । 

❇️ सलाहकारी :-

🔹 जनहित के मामलों तथा कानून के मसलों पर राष्ट्रपति को सलाह देना ।

❇️ भारत का सर्वोच्य न्यायलय का कार्य :-

🔹 इसके फैसले सभी अदालतों को मानने होते हैं । 

🔹 यह उच्च न्यायलय के न्यायाधीशों का तबादला कर सकता हैं ।

🔹 यह किसी अदालत का मुक़दमा अपने पास मँगवा सकता है ।

🔹 यह किसी एक उच्च न्यायालय में चल रहे मुकदमे को दुसरे उच्च न्यायलय में भिजवा सकता है ।

❇️ उच्च न्यायालय का कार्य :-

🔹 निचली अदालतों के फैसलों पर की गई अपील की सुनवाई कर सकता है । 

🔹 मौलिक अधिकारों को बहाल करने के लिए रिट जारी कर सकता ।

🔹 राज्य के क्षेत्राधिकार में आने वाले मुकदमों का निपटारा कर सकता है । 

🔹 अपने अधीनस्थ अदालतों का पर्यवेक्षण और नियंत्रण करता है ।

❇️ जिला अदालत का कार्य :-

🔹 जिले में दायर मुकदमों की सुनवाई करती है । 

🔹 निचली अदालतों के फैसले पर की गई अपील की सुनवाई करती है । 

🔹 गंभीर किस्म के अपराधिक मामलों पर फैसला देती है । 

❇️ सक्रिय न्यायपालिका का नकरात्मक पहलू :-

🔹 न्यायपालिका में काम का बोझ बढ़ा ।

🔹 न्यायिक सक्रियता से विधायिका , कार्यपालिका और न्यायपालिका के कार्यों के बीच अंतर करना मुश्किल हो गया जैसे – वायु और ध्वनि प्रदूषण दूर करना , भ्रष्टाचार की जांच व चुनाव सुधार करना इत्यादि विधायिका की देखारेख में प्रशासन की करना चाहिए । 

🔹 सरकार का प्रत्येक अंग एक – दूसरे की शक्तियों और क्षेत्राधिकार का सम्मान करें । 

❇️ न्यायिक पुनराक्लोकन का अधिकार :-

🔹  न्यायिक पुनरावलोकन का अर्थ है कि सर्वोच्च न्यायलय किसी भी कानून की संवैधानिकता जांच कर सकता है यदि यह संविधान के प्रावधानों के विपरित हो तो उसे गैर – संवैधानिक घोषित कर सकता है । 

🔹 संघीय संबंधी ( केंद्र – राज्य संबंध ) के मामले में भी सर्वोच्च न्यायालय न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति का प्रयोग कर सकता है । 

🔹 न्यायपालिका विधायिका द्वारा पारित कानूनों की और संविधान की व्याख्या करती हैं । प्रभावशाली ढंग से संविधान की रक्षा करती है । 

🔹 नागरिकों के अधिकारी की रक्षा करती है । 

🔹 जनहित याचिकाओं द्वारा नागरिकों के अधिकारी की रक्षा ने न्यायपालिका की शक्ति में बढ़ोतरी की है ।

❇️ न्यायपालिका और संसद :-

🔹 भारतीय संविधान में सरकार के प्रत्येक अंग का एक स्पष्ट कार्यक्षेत्र है । इस कार्य विभाजन के बावजूद संसद व न्यायपालिका तथा कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच टकराव भारतीय राजनीति की विशेषता रही है । 

🔹 संपत्ति का अधिकार । 

🔹 ससद की संविधान को संशोधित करने की शक्ति के संबंध में । 

🔹 इनके द्वारा मौलिक अधिकारों को सीमित नहीं किया जा सकता । निवारक नजरबंदी कानून । 

🔹 नौकरियों में आरक्षण संबंधी कानून ।

❇️ 1973 में सर्वोच्च न्यायलय के निर्णय :-

🔹 संविधान का एक मूल ढांचा है और संसद सहित कोई भी इस मूल ढांचे से छेड़ – छाड़ नहीं कर सकती । संविधान संशोधन द्वारा भी इस मूल ढाँचे को नहीं बदला जा सकता । 

🔹 संपत्ति के अधिकार के विषय में न्यायलय ने कहा कि यह मूल ढाँचे का हिस्सा नहीं है उस पर समुचित प्रतिबंध लगाया जा सकता है । 

🔹 न्यायलय ने यह निर्णय अपने पास रखा कि कोई मुद्दा मूल ढांचे का हिस्सा है या नहीं यह निर्णय संविधान की व्याख्या करने की शक्ति का सर्वोत्तम उदाहरण है । 

🔹 संसद व न्यायपालिका के बीच विवाद के विषय बने रहते है । संविधान यह व्यवस्था करना है कि न्यायधीशों के आचरण पर संसद में चर्चा नहीं की जा सकती लेकिन कर्र अवसरों पर न्यायपालिका के आचरण पर उंगली उठाई गई है । इसी प्रकार न्यायपालिका ने भी कई अवसरों पर विधायिका की आलोचना की है । 

🔹 लोकतंत्र में सरकार के एक अंग का दूसरे अंग की सत्ता के प्रति सम्मान बेहद जरूरी है ।





इतिहास विश्व इतिहास के कुछ विषय

Chapter 1: - समय की शुरुआत से (From the Beginning of Time)

Chapter 2: - लेखन कला और शहरी जीवन (Writing and City Life)

Chapter 3: - तीन महाद्वीपों में फैला हुआ साम्राज्य (An Empire Across Three Continents)

Chapter 4:- इस्लाम का उदय और विस्तार (The Central Islamic Lands )

Chapter 5:- यायावर साम्राज्य (Nomadic Empires)

Chapter 6:- तीन वर्ग (The Three Orders)

Chapter 7:- बदलती हुई सांस्कृतिक परम्पराएँ (Changing Cultural Traditions)

Chapter 8:- संस्कृतियों का टकराव (Confrontation of Cultures)

Chapter 9:- औद्योगिक क्रांति (The Industrial Revolution)

Chapter 10:- मूल निवासियों का विस्थापन (Displacing Indigenous Peoples)

Chapter 11:- आधुनिकीकरण के रास्ते (Paths to Modernization)

राजनीति विज्ञान  भारत का संविधान : सिद्धांत और व्यवहार

Chapter 1:- संविधान क्यों और कैसे (Constitution because and how)

Chapter 2:- भारतीय संविधान में अधिकार (Rights in the Indian Constitution)

Chapter 3:- चुनाव और प्रतिनिधि (Election and Representative)

Chapter 4:- कार्यपालिका (Executive)

Chapter 5:- विधायिका (Legislature)

Chapter 6:- न्यायपालिका (Judiciary)

Chapter 7:- संघवाद (Federalism)

Chapter 8:- स्थानीय शासन (Local Government)

Chapter 9:- संविधान एक जीवंत दस्तावेज़ (Constitution a living document)

Chapter10:- संविधान का राजनितिक दर्शन (Political Philosophy of the Constitution)

 

 

- राजनितिक सिद्धांत

Chapter 1:- राजनीतिक सिद्धांत एक परिचय (Political Theory - An Introduction)

Chapter 2:- स्वतंत्रता (Freedom)

Chapter 3:- समानता (Equality)

Chapter 4:- सामाजिक न्याय (Social justice)

Chapter 5:- अधिकार (Rights)

Chapter 6:- नागरिकता (Citizenship)

Chapter 7:- राष्ट्रवाद (Nationalism)

Chapter 8:- धर्मनिरपेक्षता (Secularism)

Chapter 9:- शांति (Peace)

Chapter 10:- विकास (Development)

 

 

भूगोल   भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत

Chapter 1:- भूगोल एक विषय के रूप में (Geography as A Discipline)

Chapter 2:- पृथ्वी की उत्पत्ति एंव विकास (The Origin and Evolution of the Earth)

Chapter 3:- पृथ्वी की आन्तरिक संरचना (Interior of the Earth)

Chapter 4:- महासागरों और महाद्वीपों का वितरण (Distribution of Oceans and Continents)

Chapter 5:- खनिज एंव शैल (Minerals and Rocks)

Chapter 6:- आकृतिक प्रक्रियाएँ (Geomorphic Processes)

Chapter 7:- भू आकृतियाँ तथा उनका विकास (Landforms and their Evolution)

Chapter 8:- वायुमण्डल का संघटन एवं संरचना (Composition and Structure of Atmosphere)

Chapter 9:- सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान (Solar Radiation , Heat Balance and Temperature)

Chapter 10:- वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसमी प्रणालियाँ (Atmospheric Circulation and Seasonal Systems)

Chapter 11:- वायुमंडल में जल (Water in the Atmosphere)

Chapter 12:- विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन (World Climate and Climate Change)

Chapter 13:- महासागरीय जल (Ocean Water)

Chapter 14:- महासागरीय जल संचलन (Movements of Ocean Water)

Chapter 15:- पृथ्वी पर जीवन (Life on the Earth)

Chapter 16:- जैव विविधता एवं संरक्षण (Biodiversity and Conservation)

 

 

 भारत : भौतिक पर्यावरण

Chapter 1:- भारत स्थिति (India - Location)

Chapter 2:- संरचना तथा भू - आकृति विज्ञान (Structure and Physiography)

Chapter 3:- अपवाह तंत्र (Drainage System)

Chapter 4:- जलवायु (Climate)

Chapter 5:- प्राकृतिक वनस्पति (Natural Vegetation)

Chapter 6:- मृदा (Soils)

Chapter 7:- प्राकृतिक आपदाएं और संकट (Natural Hazards and Disaster)

 

 

 


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