कार्यपालिका
(Executive)
❇️ लोकतंत्र में सरकार को तीन अंगों में बांटा गया है :-
🔹 विधायिका
🔹 न्यायपालिका
🔹 कार्यपालिका
❇️ कार्यपालिक :-
🔹 सरकार के उस अंग से है जो कायदे – कानूनों को संगठन में रोजाना लागू करते है ।
🔹 सरकार का वह अंग जो नियमों कानूनों को लागू करता है और प्रशासन का काम करता है कार्यपालिका कहलाता है । कार्यपालिका विधायिका द्वारा स्वीकृत नीतियों और कानूनों को लागू करने के लिए जिम्मेदार है ।
🔹 कार्यपालिका में केवल राष्ट्रपति , प्रधानमंत्री य मंत्री ही नहीं होते बल्कि इसके अंदर पूरा प्रशासनिक ढांचा ( सिविल सेवा के सदस्य ) भी आते है ।
❇️ राजनीतिक कार्यपालिका :-
🔹 राजनीतिक कार्यपालिका में सरकार के प्रधान और उनके मंत्रियों को सम्मिलित किया जाता है । ये सरकार की सभी नीतियों के लिए उत्तरदायी होते है । राजनीतिक अधिकारी निर्वाचित होते है , स्थायी नही ।
❇️ स्थायी कार्यपालिका :-
🔹 स्थायी कार्यपालिका में जो लोग रोज – रोज के प्रशासन के लिए उत्तरदायी होते है , को सम्मिलित किया जाता है । ये सिविल सेवक है जैसै IAS , IPS आदि ।
❇️ कार्यपालिका के कार्य :-
🔹 सरकार की नीतियों को लागु करना एवं विधायी निकायों द्वारा बनाये गए कानूनों को अमल में लाना ।
🔹 कार्यपालिका कानून निर्माण प्रक्रिया में सरकार की सहायता करता है ।
🔹 कार्यपालिका राज्यों के साथ संबंधो का संचालन करता है ।
🔹 विभिन प्रकार के संधियों एवं समझौतों का निष्पादन करता है ।
🔹 सभी देशों में राज्य का अध्यक्ष देश की सशस्त्र सेना का सर्वोच्य कमांडर होता है परंतु वह किसी युध्य में भाग नहीं लेता है ।
❇️ कार्यपालिका के प्रकार :-
🔹 वास्तविक कार्यपालिका ( ब्रिटेन और भारत )
🔹 नाममात्र की कार्यपालिका ( भारत का PS व ब्रिटेन का सम्राट )
🔹 एकल कार्यपालिका ( US का PS )
🔹 बहुल कार्यपालिका ( स्विट्ज़रलैंड )
🔹 पैतृक कार्यपालिका ( ग्रेट ब्रिटेन ) ( वंश परम्परा के आधार पर )
🔹 निर्वाचित कार्यपालिका ( भारत व US )
🔹 संसदात्मक कार्यपालिका ( ब्रिटेन व IN जर्मनी , इटली , जापान , कनाडा )
🔹 अध्यक्षात्मक कार्यपालिका ( US , ब्राजील , लैटिन अमेरिका )
🔹 अर्ध – अध्यक्षात्मक कार्यपालिका ( भारत , फ्रांस , रूस , श्रीलंका )
❇️ अध्यक्षात्मक व्यवस्था :-
🔹 अध्यक्षात्मक व्यवस्था में राष्ट्रपति देश और सरकार दोनों का ही प्रधान होता है । इस व्यवस्था में सिद्धांत और व्यवहार दोनों में ही राष्ट्रपति का पद बहुत शक्तिशाली होता है । अमेरिका , ब्राजील और लेटिन अमेरकिा के कई देशों में यह व्यवस्था पाई जाती है ।
🔹 अमेरिका में अध्याक्षात्मक व्यवस्था है और कार्यकारी शक्तियां राष्ट्रपति के पास होती है ।
❇️ संसदीय व्यवस्था :-
🔹 संसदीय व्यवस्था में प्रधानमंत्री सरकार का प्रधान होता है इस व्यवस्था में एक राष्ट्रपति या राजा होता है जो देश का नाममात्र का प्रधान होता है । प्रधानमंत्री के पास वास्तविक शक्ति होती है । भारत , जर्मनी , इटली , जापान , इग्लैंड और पुर्तगाल आदि देशों में यह व्यवस्था है ।
🔹 जर्मनी में एक संसदीय व्यवस्था है जिसमे राष्ट्रपति नाम मात्र का प्रधान और चांसलर सरकार का प्रधान है ।
🔹 इटली में एक संसदीय व्यवस्था है जिसमें राष्ट्रपति देश का और प्रधानमंत्री सरकार का प्रधान है ।
🔹 जापान में संसदीय व्यवस्था है जिसमें राजा देश का और प्रधानमंत्री सरकार का प्रधान होता है ।
🔹 कनाडा में संसदीय लोकतंत्र और संवैधानिक राजतंत्र है जिसमें महारानी राज्य की प्रधान और प्रधानमंत्री सरकार का प्रधान है ।
❇️ अर्द्धअध्यक्षात्मक व्यवस्था :-
🔹 अर्द्धअध्यक्षात्मक व्यवस्था में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों होते हैं लेकिन उसमें राष्ट्रपति को दैनिक कार्यों के संपादन में महत्वपूर्ण शक्तियां प्राप्त हो सकती है फ्रांस , रूस और श्रीलंका में ऐसी ही व्यवस्था है ।
🔹 रूस में एक अर्द्धअध्यक्षात्मक व्यवस्था है जिसमें राष्ट्रपति देश का प्रधान और राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त प्रधानमंत्री सरकार का प्रधान है ।
🔹 फ्रांस में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री अर्द्धअध्यक्षात्मक व्यवस्था के हिस्से हैं । राष्ट्रपति प्रधानमंत्री और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है पर उन्हें पद से हटा नहीं सकता क्योंकि वे संसद के प्रति उत्तरदायी होते हैं ।
❇️ संसदीय प्रणाली :-
🔹 प्रधान मंत्री और उसके सहयोगी वास्तविक कार्यपालिका की रचना करते है ।
🔹 प्रधान मंत्री और उसके मंत्रीगण विधानमंडल के सदस्य होते हैं ।
🔹 मंत्रिपरिषद विधानमंडल के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होते हैं ।
🔹 निचला सदन ( लोकसभा ) को कभी भी राष्ट्रपति द्वारा । भंग किया जा सकता है ।
🔹 मंत्रिमंडल को किसी भी समय सदन के अविश्वास प्रस्ताव द्वारा हटाया जा सकता है ।
❇️ अध्यक्षीय प्रणाली :-
🔹 राष्ट्रपति कार्यपालिका का वास्तविक अध्यक्ष होता है ।
🔹 मंत्री विधानमंडल के सदस्य नहीं होते है ।
🔹 मंत्रिमंडल के सदस्य विधानमंडल के प्रति उतरदायी नहीं होते हैं ।
🔹 राष्ट्रपति किसी भी सदन को भंग नहीं कर सकता है।
🔹 विधानमंडल को मंत्रिमंडल में अविश्वास प्रस्ताव पारित करने का कोई अधिकार नहीं हैं ।
❇️ भारत में संसदीय कार्यपालिका :-
🔹 हमारे संविधान निर्माता यह चाहते थे सरकार ऐसी हो जो जनता की अपेक्षाओं के प्रति संवेदनशील और उत्तरदायी हो ऐसा केवल संसदीय कार्यपालिका में ही संभव था ।
🔹 भारत में इस व्यवस्था में राष्ट्रपति , औपचारिक प्रधान होता है तथा प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद राष्ट्रीय स्तर पर सरकार चलाते है । राज्यों के स्तर पर राज्यपाल , मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद मिलकर कार्यपालिका बनाते है ।
🔹 औपचारिक रूप से संघ की कार्यपालिका शक्तियां राष्ट्रपति को दी गई है परंतु वास्तविक रूप से प्रधानमंत्री तथा मंत्रिपरिषद के माध्यम से राष्ट्रपति इन शक्तियों का प्रयोग करता है ।
❇️ भारत में संसदीय प्रणाली के अपनाने के कारण :-
🔹 अध्यक्षात्मक कार्यपालिका क्यूंकि राष्ट्रपति की शक्तियों पर बहुत बल देती है , इससे व्यक्ति पूजा का खतरा बना रहता है । संविधान निर्माता एक ऐसी सरकार चाहते थे जिसमें एक शक्तिशाली कार्यपालिका तो हो , लेकिन साथ – साथ उसमें व्यक्ति पूजा पर भी पर्याप्त अंकुश लगें हो ।
🔹 संसदीय व्यवस्था में कार्यपालिका विधायिका या जनता के प्रति उत्तरदायी होती है और नियंत्रित भी । इसलिए संविधान में राष्ट्रीय और प्रांतीय दोनों ही स्तरों पर संसदीय कार्यपालिका की व्यवस्था को स्वीकार किया गया ।
❇️ राष्ट्रपति :-
🔹 राष्ट्रपति 5 वर्ष के लिए चुना जाता है वह भी अप्रत्यक्ष तरीके से , निर्वाचित सांसद और विधायक करते हैं । यह निर्वाचन समानुपातिक प्रतिनिधित्व की प्रणाली और एकल संक्रमणीय मत के सिद्धांत के अनुसार होता है ।
🔹 संसद , राष्ट्रपति को महाभियोग की प्रक्रिया के द्वारा उसके पद से हटा सकती है । महाभियोग केवल संविधान के उल्लंघन के आधार पर लगाया जा सकता है ।
❇️ राष्ट्रपति की शक्ति और स्थिति :-
🔹 एक औपचारिक प्रधान है : राष्ट्रपति को वैसे तो बहुत सी कार्यकारी , विधायी ( कानून बनाना ) कानूनी और आपात शक्तियाँ प्राप्त है परंतु इन सभी शक्तियों का प्रयोग वह मंत्रिपरिषद की सलाह पर करता है ।
❇️ राष्ट्रपति के चुनाव के लिए उम्र और कार्यकाल :-
🔹 राष्ट्रपति के चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम उम्र 35 वर्ष होनी चाहिए एवं एक चुने हुए राष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्ष होता है । कोई भी पूर्व राष्ट्रपति पुन : चुनाव लड़ सकता है ।
❇️ राष्ट्रपति के विशेषाधिकार :-
🔹 संवैधानिक रूप से राष्ट्रपति को सभी महत्वपूर्ण मुद्दों और मंत्रिपरिषद की कार्यवाही के बारे में सूचना प्राप्त करने का अधिकार है ।
1. सदनों को पुर्नविचार के लिए लौटा सकता है ।
2. वीटो शक्ति का प्रयोग करके संसद द्वारा पारित विधेयकों को स्वीकृति देने में विलम्ब ।
3. चुनाव के बाद कई नेताओं के दावें के समय यह निर्णय करें कि कौन प्रधानमंत्री बनेगा ।
❇️ राष्ट्रपति पर महाभियोग की प्रक्रिया :-
🔹 राष्ट्रपति को उसके पद से हटाने के लिए उसके ऊपर महाभियोग चलाया जाता है , ऐसा तब किया जाता है जब राष्ट्रपति संविधान का कोई उलंघन करता है ।
🔹 राष्ट्रपति पर महाभियोग का प्रस्ताव संसद के किसी भी सदन में चाहे वो लोकसभा हो या राज्यसभा हो पेश किया जा सकता है ।
🔹 इस प्रस्ताव को सदन में दो तिहाई से अधिक बहुमत की आवश्यकता होती है । यदि इस प्रस्ताव को सदन में दो तिहाई से अधिक बहुमत प्राप्त हो जाता है तो उसके विरुद्ध लगाये गए आरोप की दुसरे सदन के द्वारा जाँच की जाती है ।
🔹 यदि दुसरे सदन में उन आरोपों को दो तिहाई बहुमत से स्वीकार कर लिया जाता है तो राष्ट्रपति को अपने पद से हटना पड़ेगा ।
नोट :- " अब तक किसी भी राष्ट्रपति पर महाभियोग नहीं लगाया गया है "।
❇️ आखिर राष्ट्रपति पद की क्या आवश्यकता है ?
🔹 संसदीय व्यवस्था मे , समर्थन न रहने पर , मंत्रिपरिषद को कभी भी हटाया जा सकता है , ऐसे समय में एक ऐसे राष्ट्र प्रमुख की आवश्यकता पड़ती है जिसका कार्यकाल स्थायी हो , जो सांकेतिक रूप से पूरे देश का प्रतिनिधित्व कर सकें ।
🔹 राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में उपराष्ट्रपति ये सभी कार्य करते हैं ।
❇️ भारत का उपराष्ट्रपति :-
🔹 पांच वर्ष के लिए चुना जाता है , जिस तरह राष्ट्रपति को चुना जाता है । वह राज्यसभा का पदेन सभापति होता है और राष्ट्रपति की मृत्यु , त्यागपत्र , महाभियोग द्वारा हटाया जाने या अन्य किसी कारक के पद रिक्त होने पर वह कार्यवाहक राष्ट्रपति का काम करता है ।
❇️ उपराष्ट्रपति को उसके पद से हटाने की प्रक्रिया :-
🔹 उपराष्ट्रपति को राज्यसभा के प्रस्ताव द्वारा हटाया जा सकता है , बशर्ते कि लोकसभा भी उस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया हो । उपराष्ट्रपति पर महाभियोग लगाए जाने का कोई प्रावधान नहीं है ।
❇️ उपराष्ट्रपति का चुनाव :-
🔹 उपराष्ट्रपति का चुनाव एकल संक्रमणीय मत प्रणाली के द्वारा होता है । यह चुनाव राष्ट्रपति के चुनाव से भिन्न होता है । इसमें केवल संसद के दोनों सदन ही भाग लेते है विधानमंडलों की कोई भूमिका नहीं होती है । उपराष्ट्रपति पद की शपथ भारत के राष्ट्रपति के द्वारा दिलवाई जाती है ।
❇️ उपराष्ट्रपति के कार्य तथा शक्तियाँ :-
🔹 उपराष्ट्रपति राज्यसभा के सभा – पति के रूप में कार्य करता है ।
🔹 वह राज्यसभा के अध्यक्ष के रूप में सदन की कार्यवाही को चलाते हैं ।
🔹 राष्ट्रपति की मृत्यु पर , राष्ट्रपति के त्यागपत्र पर , राष्ट्रपति की अनुपस्थिति पर , राष्ट्रपति को हटाये जाने पर अथवा किसी लंबी बीमारी होने पर उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति का पद ग्रहण कर सकता है ।
❇️ प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद :-
🔹 प्रधानमंत्री लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल का नेता होता है । जैसे ही वह बहुमत खो देता है , वह अपना पद भी खो देता है ।
🔹 प्रधानमंत्री , मंत्रिपरिषद का प्रधान ही तय करता है कि उसके मंत्रिपरिषद में कौन लोग मंत्री होंगे । प्रधानमंत्री ही विभिन्न मंत्रियों के पद स्तर और मंत्रालयों का आबंटन करता है । इसी कारण वह मंत्रिपरिषद का प्रधान भी होता है ।
🔹 प्रधानमंत्री तथा सभी मंत्रियों के लिए संसद का सदस्य होना अनिवार्य है । संसद का सदस्य हुए बिना यदि कोई व्यक्ति मंत्री या प्रधानमंत्री बन जाता है तो उसे छह महीने के भीतर ही ससंद ( किसी भी सदन ) के सदस्य के रूप में निर्वाचित होना पड़ता है ।
❇️ मंत्रिपरिषद का आकार कितना होना चाहिए :-
🔹 संविधान के 91 वे संशोधन के द्वारा यह व्यवस्था की गई कि मंत्रिपरिषद के सदस्यो की संख्या लोकसभा या राज्यों की विधानसभा की कुल सदस्या संख्या का 15 % से अधिक नही होनी चाहिए ।
🔹 मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी है । इसका अर्थ है जो सरकार लोकसभा में विश्वास खो देती है उसे त्यागपत्र देना पड़ता है । यह सिद्धांत मंत्रिमंडल की एकजुटता के सिद्धांत पर आधारित है । इसकी भावना यह है कि यदि किसी एक मंत्री के विरुद्ध भी अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाए तो संपूर्ण मंत्रिपरिषद को त्यागपत्र देना पड़ता है ।
❇️ प्रधानमंत्री का स्थान :-
🔹 सरकार में सर्वोपरि है : मंत्रिपरिषद तभी अस्तित्व में आती है जब प्रधानमंत्री अपने पद की शपथ ग्रहण कर लेता है । प्रधानमंत्री की मृत्यु या त्यागपत्र से पूरी मंत्रिपरिषद भंग हो जाती है ।
❇️ प्रधानमंत्री सरकार की धुरी :-
🔹 प्रधानमंत्री एक तरफ मंत्रिपरिषद तथा दूसरी तरफ राष्ट्रपति और संसद के बीच सेतु का काम करता है वह संघीय मामलों के प्रशासन और प्रस्तावित कानूनों के बारें में राष्ट्रपति को सूचित करता है ।
❇️ प्रधानमंत्री की शक्ति के स्रोत :-
🔹 मंत्रिपरिषद पर नियंत्रण ।
🔹 लोकसभा का नेत्तृत्व ।
🔹 मीडिया तक पहुंच ।
🔹 चुनाव के दौरान उसका व्यक्तिगत उभार ।
🔹 अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में राष्ट्रीय नेता की छवि ।
🔹 अधिकारी वर्ग पर आधिपत्य ।
🔹 विदेषी यात्राओं के दौरान नेता की छवि ।
🔹 पॉकेट बॉक्स ।
🔹 गठबंधन की सरकारों की वजह से प्रधानमंत्री की शक्तियों में काफी परिवर्तन आ गए है । 1989 से भारत में हमने गठबंधन सरकारों का युग देखा है । इनमें से कुछ सरकारें तो लोकसभा की पूरी अवधि तक भी सत्ता में न रह सकीं । ऐसे में प्रधानमंत्री का पद उतना शक्तिशाली नहीं रहा जितना एक दल के बहुमत वाली सरकार में होता है ।
❇️ प्रधानमंत्री पद की शक्तियो में आए बदलाव :-
🔹 प्रधानमंत्री के चयन में राष्ट्रपति की भूमिका बढ़ी है ।
🔹 राजनीतिक सहयोगियों से परामर्श की प्रवृत्ति बढ़ी है ।
🔹 प्रधानमंत्री के विशेषाधिकारों पर अंकुश लगा है ।
🔹 सहयोगी दलों के साथ बातचीत तथा समझौते के बाद ही नीतियां बनती है ।
❇️ राज्यों में कार्यपालिका का स्वरूप :-
🔹 राज्यों में एक राज्यपाल होता है जो ( केन्द्रीय सरकार की सलाह पर ) राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त होता है ।
🔹 मुख्यमंत्री विधान सभा में बहुमत दल का नेता होता है ।
🔹 बाकी सभी सिद्धांत वही है जो केन्द्र सरकार में संसदीय व्यवस्था होने के कारण लागू है ।
❇️ स्थायी कार्यपालिका ( नौकरशाही ) :-
🔹 कार्यपालिका में मुख्यतः राष्ट्रपति , प्रधानमंत्री , मंत्रिगण और नौकरशाही या प्रशासनिक मशीनरी का एक विशाल संगठन , सम्मिलित होता है । इसे नागरिक सेवा भी कहते है ।
🔹 नौकरशाही में सरकार के स्थाई कर्मचारी के रूप में कार्य करने वाले प्रशिक्षित और प्रवीण अधिकारी नीतियों को बनाने में तथा उन्हें लागू करने में मंत्रियों का सहयोग करते हैं ।
🔹 भारत में एक दक्ष प्रशासनिक मशीनरी मौजूद है लेकिन यह मशीनरी राजनीतिक रूप से उत्तरदायी है इसका अर्थ है कि नौकरशाही राजनीतिक रूप से तटस्थ है । प्रजातंत्र में सरकारे आती जाती रहती है ऐसी स्थिति में , प्रशासनिक मशीनरी की यह जिम्मेदारी है कि वह नई सरकारों को अपनी नीतियां बनाने में और उन्हें लागू करने में मदद करें ।
❇️ नौकरशाही के सदस्यों का चुनाव :-
🔹 नौकरशाही में अखिल भारतीय सेवाएं , प्रांतीय सेवाएं , स्थानीय सरकार के कर्मचारी और लोक उपक्रमों के तकनीकी एवं प्रबंधकीय अधिकारी सम्मिलित है । भारत में सिविल सेवा के सदस्यों की भर्ती की प्रक्रिया का कार्य संघ लोक सेवा आयोग ( यू . पी . एस . सी . ) को सौंपा गया है ।
❇️ लोक सेवा आयोग :-
🔹 ऐसा ही लोकसेवा आयोग राज्यों में भी बनाए गए है जिन्हें राज्य लोक सेवा आयोग कहा जाता है ।
🔹 लोक सेवा आयोग के सदस्यों का कार्यकाल निश्चित होता हैं उनको सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के द्वारा की गई जांच के आधार पर ही निलंबित या अपदस्थ किया जा सकता है ।
🔹 लोक सेवकों की नियुक्ति दक्षता व योग्यता को आधार बनाकर की जाती हैं संविधान ने पिछड़े वर्गों के साथ – साथ समाज के सभी वर्गों को सरकारी नौकरशाही बनने का मौका दिया है इसके लिए संविधान दलित और आदिवासियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था करता है ।
❇️ सिविल सेवाओं का वर्गीकरण :-
🔹 आखिल भारतीय सेवाएं – भारतीय प्रशासनिक सेवा भारतीय पुलिस सेवा ।
🔹 केन्द्रीय सेवाएं भारतीय विदेश सेवा भारतीय सीमा शुल्क।
🔹 प्रांतीय सेवाएं डिप्टी कलेक्टर बिक्री कर अधिकारी ।
🔹 भारतीय प्रशासनिक सेवा ( आई . ए . एस ) तथा भारतीय पुलिस सेवा ( आई . पी . एस . ) के उम्मीदवारों का चयन संघ लोक सेवा आयोग करता है । किसी जिले का जिलाधिकारी ( कलेक्टर ) उस जिले में सरकार का सबसे महत्वपूर्ण अधिकारी होता है और ये समान्यतः आई ए एस स्तर का अधिकारी होता है ।
❇️ पॉकेट वीटो ( Pocket Veto ) :-
🔹 जब राष्ट्रपति किसी विधेयक पर अनुमति नहीं देता है और संविधान के अनुच्छेद III के अर्न्तगत पुर्नविचार को भी नहीं लौटाता है ऐसी स्थिति में वो पॉकेट वीटो का प्रयोग करता है ।