विजयनगर :-
विजयनगर साम्राज्य दक्षिण भारत का सबसे सम्मानित और शानदार साम्राज्य था । इसकी राजधानी हम्पी थी ।
विजयनगर साम्राज्य की स्थापना 1336 ई० में दो भाइयों , हरिहर और बुक्का ने की थी ।
विजयनगर साम्राज्य के शासक को रायस कहा जाता था ।
विजयनगर साम्राज्य का सबसे शक्तिशाली शासक कृष्णदेव राय था । उनके कार्यकाल के दौरान , साम्राज्य ने अपनी महिमा को छुआ ।
लगभग सवा दो सौ वर्ष के उत्कर्ष के बाद सन 1565 में इस राज्य की भारी पराजय हुई और राजधानी विजयनगर को जला दिया गया।
विजयनगर साम्राज्य का प्रशासन बहुत अच्छा था और इसके लोग बहुत खुश थे । विजयनगर साम्राज्य 16 वीं शताब्दी तक घटने लगा और 17 वीं शताब्दी में यह साम्राज्य समाप्त हो गया ।
कर्नाटक सम्राज्य :-
जहाँ इतिहासकार विजयनगर साम्राज्य शब्द का प्रयोग करते थे वही समकालीन लोगो ने इसे कर्नाटक साम्राज्य की संज्ञा दी ।
हम्पी का इतिहास :-
हम्पी खोज का उद्भव यहाँ की स्थानीय मातृदेवी पम्पा देवी के नाम पर हुआ था ।
हम्पी की खोज 1815 में भारत के पहले सर्वेयर जनरल कॉलिन मैकेंजी ने की थी ।
अलेक्जेंडर ग्रीनलाव ने 1856 में हम्पी की पहली विस्तृत फोटोग्राफी की , जो विद्वान के लिए काफी उपयोगी साबित हुई ।
1876 में जेएफ फ्लीट , हम्पी में मंदिरों की दीवारों से शिलालेख का संकलन और प्रलेखन शुरू किया ।
जॉन मार्शल ने 1902 में हम्पी के संरक्षण की शुरुआत की ।
1976 में , हम्पी को राष्ट्रीय महत्व के स्थल के रूप में घोषित किया गया था और 1986 में इसे विश्व धरोहर केंद्र घोषित किया गया था ।
हम्पी की खोज :-
हम्पी के खंडहरों को कर्नल कॉलिन मैकेंजी द्वारा 1800 ई० में प्रकाश में लाया गया था ।
शहर के इतिहास को फिर से बनाने के लिए , विरुपाक्ष मंदिर के पुजारी की यादों और पंपादेवी के मंदिर , कई शिलालेखों और मंदिरों , विदेशी यात्रियों के खातों और तेलुगु , कन्नड़ , तमिल और संस्कृत में लिखे गए अन्य साहित्य जैसे स्रोतों ने हम्पी की खोज में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।
कर्नल कॉलिन मैकेंजी :-
जन्म = 1754 ई० में कर्नल कॉलिन मैकेंजी जन्म हुआ था ।
यह एक इतिहासकार , सर्वेक्षक , मानचित्र कार के रूप में अत्यधिक प्रसिद्ध थे ।
1815 में उन्हें कर्नल कॉलिन मैकेंजी को भारत का पहला सर्वेयर जनरल बनाया गया था । 1821 तक अपनी मृत्यु तक के समय में वे इस पद पर बने रहे ।
हम्पी का शाही केंद्र :-
- हम्पी का शाही केंद्र हम्पी की बस्ती के दक्षिण – पश्चिमी भाग में स्थित था ।
- जिसमें 60 से अधिक मंदिर थे ।
- तीस भवन परिसरों की पहचान महलों के रूप में की गई थी ।
- राजा का महल बाड़ों में सबसे बड़ा था और इसके दो मंच थे । ‘ दर्शक हॉल ‘ और ‘ महानवमी डिब्बा ।
- शाही केंद्र में कुछ खूबसूरत इमारतें हैं कमल महल , हजारा राम मंदिर , आदि ।
महानवमी डिब्बा :-
शहर में उच्चतम बिंदुओं में से एक पर स्थित , ‘ महानवमी दिबा ‘ एक विशाल मंच है ।
जो लगभग 11 ,000 वर्ग फुट से 40 फीट की ऊँचाई तक बढ़ता है । विभिन्न समारोह यहाँ पर किये जाते थे ।
महानवमी :-
महानवमी का शब्दिक अर्थ 9 दिन तक चलने वाला पर्व आर्थात महान नवा दिवस है ।
इस अवसर पर अनेक राजकीय कर्मकांड निष्पादित किये जाते थे । इस अवसर पर विजयनगर शासक अपने रुतवे , ताकत , प्रदर्शन तथा आदि राज्यो का प्रदर्शन करते ।
इस अवसर पर धर्मानुष्ठानिक में होने वाली मूर्ति की पूजा , राज्य के अश्व की पूजा तथा भैसे तथा अन्य जानवरों की बलि दी जाती थी ।
नृत्य , कुश्ती , प्रतिस्पर्धा तथा साज लगे घोड़ो हथियारो और अधीनस्थ राजाओ द्वारा उसके अतिथियों को दी जाने वाली औपचारिक भेटे इस अवसर के प्रमुख आकर्षण थे ।
इन उत्सवों के गहन सांकेतिक अर्थ थे । त्योहार के अंतिम दिन राजा अपनी तथा आपने नायको की सेना को खुले मैदान में नियोजित समाहरो में निरीक्षण करता था । इस अवसर पर नायक राजा के लिए बड़ी मात्रा में भेट तथा साथ ही नियतकर भी लाते थे ।
हम्पी के मंदिर :-
इस क्षेत्र में मंदिर निर्माण का एक लंबा इतिहास था । पल्लव , चालुक्य , होयसला , चोल , सभी शासकों ने मंदिर निर्माण को प्रोत्साहित किया । मंदिरों को धार्मिक , सामाजिक , सांस्कृतिक , आर्थिक और शिक्षा केंद्रों के रूप में विकसित किया गया था ।
विरुपाक्ष और पम्पादेवी की श्राइन बहुत महत्वपूर्ण पवित्र केंद्र हैं । विजयनगर के राजाओं ने भगवान विरुपाक्ष की ओर से शासन करने का दावा किया । उन्होंने ‘ हिंदू सूरताना ‘ ( अरबी शब्द सुल्तान का संस्कृतिकरण ) ‘ हिंदू सुल्तान ‘ शीर्षक का उपयोग करके अपने करीबी संबंधों का संकेत दिया ।
मंदिर की वास्तुकला के संदर्भ में , विजयनगर के शासकों द्वारा रायस ‘ गोपुरम ओर मंडप विकसित किए गए थे । कृष्णदेव राय ने विरुपाक्ष मंदिर में मुख्य मंदिर के सामने हॉल बनवाया और उन्होंने पूर्वी गोपरम का निर्माण भी कराया ।
मंदिर में हॉल का उपयोग संगीत , नृत्य , नाटक और देवताओं के विवाह के विशेष कार्यक्रमों के लिए किया जाता था । विजयनगर के शासकों ने विठ्ठला मंदिर की स्थापना की । विष्णु का एक रूप विट्ठल , आमतौर पर महाराष्ट्र में पूजा जाता था । कुछ सबसे शानदार गोपुरम स्थानीय नायक द्वारा बनाए गए थे ।
हम्पी : राष्ट्रीय महत्व के स्थल के रूप में :-
1976 में , हम्पी को राष्ट्रीय महत्व के स्थल के रूप में मान्यता दी गई थी । लगभग बीस वर्षों में , दुनिया भर के दर्जनों विद्वानों ने विजयनगर के इतिहास के पुनर्निर्माण का काम किया ।
1980 के दशक के शुरुआती सर्वेक्षण में , भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा विभिन्न प्रकार की रिकॉर्डिंग तकनीकों का उपयोग किया गया था , जिसके कारण सड़कों , रास्तों , बाज़ारों आदि के निशान ठीक हो गए ।
जॉन एम फ्रिट्ज , जॉर्ज निकेल और एमएस नागराजा राव ने वर्षों तक काम किया और साइट का महत्वपूर्ण अवलोकन किया ।
यात्रियों द्वारा छोड़े गए विवरण हमें उस समय के जीवंत जीवन के कुछ पहलुओं को समेटने की अनुमति देते हैं ।
विजयनगर की भौगोलिक संरचना और वास्तुकला :-
विजयनगर एक विशिष्ट भौतिक लेआउट और निर्माण शैली की विशेषता थी ।
विजयनगर तुंगभद्रा नदी के प्राकृतिक बेसिन पर स्थित था जो उत्तर – पूर्व दिशा में बहती थी ।
चूंकि यह प्रायद्वीप के सबसे शुष्क क्षेत्रों में से एक है , इसलिए शहर के लिए बारिश के पानी को संग्रहित करने के लिए कई व्यवस्थाएं की गई थीं । उदाहरण के लिए , कमलापुरम टैंक और हिरिया नहर के पानी का उपयोग सिंचाई और संचार के लिए किया जाता था ।
फारस के एक राजदूत अब्दुर रज्जाक शहर के किलेबंदी से बहुत प्रभावित थे और उन्होंने किलों की सात पंक्तियों का उल्लेख किया था । इनसे घिरे शहर के साथ – साथ इसके कृषि क्षेत्र और वन भी हैं ।
गेटवे पर मेहराब को किलेबंद बस्ती में ले जाया गया और गेट पर गुंबद तुर्की सुल्तानों द्वारा पेश किए गए आर्किटेक्चर थे इसे इंडो – इस्लामिक शैली के रूप में जाना जाता था ।
आम लोगों के घरों में बहुत कम पुरातात्विक साक्ष्य थे । हम पुर्तगाली यात्री बारबोसा के लेखन से आम लोगों के घरों का वर्णन पाते है ।
विजयनगर के राजवंश और शासक :-
विजयनगर पर चार राजवंशों ने शासन किया :
संगम राजवंश
सलुव राजवंश
तुलुव वंश
अरविदु वंश
संगम राजवंश ने साम्राज्य की स्थापना की , सलुव ने इसका विस्तार किया , सलुव ने इसे अपने गौरव के शिखर पर ले गया , लेकिन अरविदु के तहत इसे अस्वीकार कर दिया ।
कमजोर केंद्र सरकार , कृष्णदेव राय के कमजोर उत्तराधिकारी , बहमनी साम्राज्य के खिलाफ विभिन्न राजवंशों , कमजोर साम्राज्य आदि के विभिन्न कारणों ने साम्राज्य के पतन में योगदान दिया । साम्राज्य की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता इसकी पानी की आवश्यकता तुंगभद्रा नदी द्वारा गठित प्राकृतिक खलिहान से पूरी की गई थी ।
कृष्णदेवराय :-
कृष्णदेव राय के शासन के दौरान , विजयनगर अद्वितीय शांति और समृद्धि की शर्तों के तहत विकसित हुआ । कृष्णदेव राय ने नागालपुरम नामक कुछ बेहतरीन मंदिरों और गोपुरम और उप – शहरी बस्ती की स्थापना की ।
1529 में उनकी मृत्यु के बाद , उनके उत्तराधिकारी विद्रोही ‘ नायक ‘ या सैन्य प्रमुखों से परेशान थे । 1542 तक , केंद्र पर नियंत्रण एक और सत्तारूढ़ – वंश में स्थानांतरित हो गया , जो कि अरविदु था , जो 17 वीं शताब्दी के अंत तक सत्ता में रहा ।
राय तथा नायक :-
सम्राज्य मे शक्ति का प्रयोग करने वालो में सेना प्रमुख होते थे । जो सामान्यत : किलो पर नियंत्रण रखते थे और जिनके पास सशास्त्र समर्थक होते थे ।
ये प्रमुख आमतौर पर एक स्थान से दूसरे स्थान तक भ्रमणशील रहते थे और कई बार बसने के लिए उपजाऊ भूमि की तलाश में किसान भी उनका साथ देते थे ।
इन प्रमुख को नायक कहते थे और आम तौर पर तेलुगु या कन्न्ड़ भाषा बोलते थे । कई नायको ने विजयनगर शासन की प्रभुसत्ता के आगे समर्पण किया था परन्तु ये अक्सर विद्रोह कर देते थे । इन पर सैनिक कर्यवाही के माध्यम से बस में किया जाता था ।
गजपति :-
गजपति का शाब्दिक अर्थ है हाथियों का स्वामी । यह एक शासक वंश का नाम था जो पंद्रहवीं शताब्दी में ओडिशा में बहुत शक्तिशाली था ।
अश्वपति :-
विजयनगर की लोकप्रिय परंपराओं में दक्खन सुल्तानों को घोड़ों के स्वामी की अश्वपति कहा जाता है ।
नरपति :-
विजयनगर साम्राज्य में , रैयास को नरपति या पुरुषों का स्वामी कहा जाता है ।
अमर नायक प्रणाली :-
अमर शब्द का उद्भव मान्यता अनुसार संस्कृत के समर शब्द से हुआ है । जिसका अर्थ लड़ाई या युद्ध । ये फ़ारसी भाषा के शब्द अमीर से मिलता जुलता है जिसका अर्थ है ऊँचे कुल का या ऊँचे पद का कुलीन व्यक्ति ।
अमर नायक प्रणाली विजयनगर साम्राज्य की एक प्रमुख राजनीतिक खोज थी । ऐसा प्रतीत होता है कि इस प्रणाली के कई तत्व दिल्ली सल्तनत की इक्ता प्रणाली से लिये गए थे ।
अमरनायक सैनिक कमांडर थे जिन्हें राय द्वारा प्रशासन के लिए राज्य क्षेत्र दिए जाते थे । वे किसानों , शिल्पकर्मियो तथा व्यपारियो से भू – राजस्व तथा अन्य कर वसूलते थे ।
वे राजस्व का कुछ भाग व्यक्तिगत उपयोग तथा घोड़ो और हाथियों के निर्धारित दल के रख – रखाव के लिए अपने पास रख लेते थे ।
ये दल विजयनगर शासको को एक प्रभावी सैनिक शक्ति प्राप्त करने में सहायक होते थे । जिसकी मदद से उन्होंने पूरे दक्षिणी प्रयद्विप को अपने नियंत्रण में किया । राजस्व का कुछ भाग मंदिरो तथा सिचाई के साधन के रख – रखाव के लिए खर्च किया जाता ।
अमरनायक राजा को वर्ष में एक बार भेट दिया करते थे और अपनी स्वामी भक्ति प्रकट करने के लिए राजकीय दरबारो में उपहारों के साथ – साथ स्वयं उपस्थित हुआ करते थे ।
राजा कभी – कभी उन्हें एक दूसरे स्थान पर स्थान्तरित कर उन पर अपना नियंत्रण दर्शाता था पर सत्रहवीं शताब्दी में इनमे से कई नायिकों ने अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिये । इस कारण केन्द्रीय राजकीय ढाँचे का विघटन तेजी से होने लगा ।
व्यपार :-
- विजयनगर में गर्म मसाले, कपड़े, रत्नों का व्यापार होता था।
- व्यापार ही साम्राज्य के आय का प्रमुख स्रोत था।
- वहां के लोग धनवान होते थे और बहुमूल्य वस्तुएं खरीदना पसंद करते थे।
- युद्ध के लिए अच्छे नस्ल के घोड़े अरब से आयात किया जाता था और घोड़ों के व्यापारियों को “कुदीरई चेट्टी” कहा जाता था।
- यहाँ के व्यापारिक स्थिति को देखकर पुर्तगाली यहां आकर बसने लगे और व्यापार में अपनी भूमिका निभाने लगे।
इस काल मे युद्ध कला प्रभावशाली अश्वसेना पर आधारित होती थी । इसलिए प्रतिस्पर्धा राज्यो के लिए अरब तथा मध्य एशिया से घोड़ो का आयात बहुत महत्वपूर्ण था ।
यह व्यपार आरम्भिक चरणों मे अरब व्यापारियों द्वारा नियंत्रित था व्यपारियो के स्थानीय समूह जिन्हें कुदिरई चेट्टी या घोड़ों के व्यपारी कहा जाता था । लोग भी इन विनिमयो में भाग लेते थे ।
1498 ई० कुछ और लोग पटल पर उभरकर आए ये पुर्तगाली थे जो उपमहाद्वीप के पश्चिमी तट पर आए और व्यापारिक तथा सामरिक केंद्र स्थापित करने का प्रयास करने लगे ।
उनकी बहेतर सामरिक तकनीक विशेष रूप से बन्दूको के प्रयोग से उन्हें इस काल की उलझी हुई राजनीति में एक महत्वपूर्ण शक्ति बनकर उभरने में सहायता की ।
विजयनगर की जलापूर्ति :-
- विजय नगर में 2 नदियां बहती थी।
- कृष्णा और दूसरी तुंगभद्रा
- कृष्णदेव राय ने इन नदियों पर बांध बनवाया।
- और इन नदियों से विजयनगर की जलापूर्ति की व्यवस्था की।
कमलपुरम जलाशय की विशेषताएं :-
- इस जलाशय का निर्माण 15 वी शताब्दी के आरंभिक वर्षों में हुआ था
- इस जलाशय से आसपास के क्षेत्रों को सींचा जाता था।
- इसे एक नहर के माध्यम से राजकीय केंद्र तक भी ले जाया गया था।
किले बंदियाँ तथा सड़के :-
15 वीं शताब्दी की दीवारों पर नजर डालते हैं तो ऐसा लगता है कि उनसे इन्हें घेरा गया था । 15 वीं शताब्दी में फारस के शासक के द्वारा कालीकट ( कोजीकोड ) भेजा गया दूत अब्दुर रज्जाक किले बंदी से बहुत प्रभावित था तो उसने दुर्ग की सात पंक्तियों के उल्लेख किया ।
( i ) इससे न केवल शहर को बल्कि कृषि में प्रयुक्त आस – पास के क्षेत्र तथा जगलो को भी घेरा गया था ।
( ii ) सबसे बाहरी दीवार शहर के चारो ओर बनी पहाड़ियों को आपस मे जोड़ती थी ।
( iii ) यह विशाल राजगिरि पहाड़ियों तथा इनकी संरचना थोड़ी सी शुण्डाकार थी ।
( iv ) गारा या जोड़ने के लिए किसी भी वस्तु के निर्माण में कही भी प्रयोग नही किया गया था ।
( v ) इस किलेबंदी की सबसे महत्वपूर्ण बात इसमे खेतो को भी घेरा गया था ।
( vi ) कृषि क्षेत्रों को किलेबंद भू – भाग में क्यों समाहित किया जाता था ।
अक्सर मध्यकालीन घेराबंदिया का मुख्य उद्देश्य प्रतिपक्ष को खाद्य सामग्री से वंचित कर समपर्ण के लिए बाध्य करना होता था । यह घेराबंदिया कई महीनों और यहाँ तक कि बर्षो तक चल सकती थी आमतौर पर शासक ऐसी परिस्थितियों से निपटने के लिए किलेबंदी क्षेत्रो के भीतर ही विशाल अन्नागरो का निर्माण करवाते थे । विजयनगर के शासको ने पूरे कृषि भू – भाग को बचाने के लिए अधिक महंगी तथा नीति को अपनाया ।
( vii ) दूसरी किलेबंदी नगरीय केंद्र के आतंरिक भाग के चारो ओर बनी हुई थी और तीसरी से शासकीय केंद्र घेरा गया था ।
गोपुरम एव मंडप :-
मंदिर स्थापत्य के सन्दर्भ में इस समय तक नये तत्व प्रकाश में आते हैं । इनमे विशाल स्तर पर बनाई गई सरंचनाए जो राजकीय सत्ता में शामिल हैं ।
इनका सबसे अच्छा उदहारण राय गोपुरम अथवा राजकीय प्रवेश द्वार थे । इनमे विशाल स्तर पर बनाई गई सरंचनाए गोपुरम को दर्शाते हैं । जो राजकीय प्रवेश द्वार थे वो अक्सर केंद्रीय देवालयों की मीनारों को बौना प्रतीत कराते थे और जो लम्बी दूरी से ही मंदिर के होने का संकेत देते थे ।
अन्य विशिष्ट अभिलक्षणों ने मण्डप तथा लबे स्तम्भो वाले गलियारों जो अक्सर मंदिर परिसरों में स्थित देवालयों के चारो ओर बने थे , सम्मिलित थे ।
विरुपाक्ष मंदिर :-
- विरुपाक्ष मंदिर का निर्माण नोवी – दसवीं शताब्दी में हुआ था ।
- हंपी बाजार के 10 किलोमीटर के केंद्र में यह मंदिर था।
- यह आज भी बिल्कुल वैसे ही है जैसे कृष्णदेव राय के काल में था।
- यहां के पत्थर ग्रेनाइट के थे।
- मंदिर की दीवार पर नृत्य करने, युद्ध, शिकार करने जैसे चित्र बने हुए थे।
- जो हमें अनेक कहानियां बताती है।
- इनमें शिव की आराधना की जाती है।
विट्ठल मंदिर :-
- यह एक सुदृढ और दर्शनीय मंदिर था।
- यहां दीवार के नीचे से ऊपर तक तांबे के पात्र से बने हुए थे।
- मंदिर की छत पर जानवरों की मूर्ति बनी हुई थी।
- मंदिर के अंदर 2500 से 3000 जले हुए दीपक मिले हैं।
- यहां के पत्थरों पर स्त्री, कोमल फूल, जानवरों की चित्र की नक्काशी की गई है।
- यहां के आंगन में सूर्य देवता के ग्रेनाइट के रथ बने हैं।
- जिन के पहिए आज भी घूमते हैं परंतु सरकार ने इस को घुमाने पर बैन कर रखा है।
- और यहां विष्णु की पूजा की जाती है।
शिखर :-
मंदिरों की सबसे ऊपरी या बहुत ऊंची छत को शिखर कहा जाता है । आम तौर पर , यह मंदिरों के आगंतुकों द्वारा उचित दूरी से देखा जा सकता है । शिखर के नीचे हम मुख्य भगवान या देवी की मूर्ति पाते हैं ।
गर्भगृह :-
यह मंदिर के एक केंद्रीय स्थान पर स्थित मुख्य कमरे का एक केंद्रीय बिंदु है । आमतौर पर , प्रत्येक भक्त अपने मुख्य कर्तव्य के प्रति सम्मान और भक्ति की भावनाओं का भुगतान करने के लिए इस कमरे के गेट के पास जाता है ।
सभागारों :-
मंदिरो के सभागारों का प्रयोग विविध कार्य के लिए होता था । इनमे से कुछ ऐसे थे जिनमें देवताओं की मूर्तियां , संगीत , नृत्य और नाटकों के विशेष कार्यकर्मो को देखने के लिए रखी जाती थी ।
अन्य सभी सभागारों का प्रयोग देवी – देवताओं के विवाह के उत्सव पर आनंद मनाने और कुछ अन्य का प्रयोग देवी देवताओं को झूला झुलाने के लिए होता था । इन अवसरों पर विशिष्ट मूर्तियों का प्रयोग होता था । वे घोटे केंद्रीय देवालयों में स्थापित मूर्तियों से भिन्न होती थी ।
विजयनगर के बारे में निरंतर शोध :-
इमारतें जो जीवित रहती हैं वे सामग्रियों और तकनीकों , बिल्डरों या संरक्षकों और विजयनगर साम्राज्य के सांस्कृतिक संदर्भ के बारे में विचार व्यक्त करती हैं । इस प्रकार , हम साहित्य शिलालेख और लोकप्रिय परंपराओं से जानकारी को जोडते है ।
लेकिन वास्तुशिल्प सुविधाओं की जांच हमें उन जगहों के बारे में नहीं बताती है जहाँ आम लोग रहते हैं , राजमिस्त्री , पत्थरबाज , मूर्तिकारों को किस तरह की मजदूरी मिलती है , भवन निर्माण सामग्री कैसे पहुंचाई गई और कितने अन्य प्रश्न हैं ।
अन्य स्रोतों का उपयोग करके अनुसंधान जारी रखना जो कि उपलब्ध वास्तु उदाहरण विजयनगर के बारे में कुछ और सुराग दे सकते है ।
विजय नगर के पतन का कारण :-
- ( i ) पड़ौसी राज्यो से शत्रुता
- ( ii ) निरकुंश शासक
- ( iii ) आयोग उत्तराधिकारी
- ( iv ) उड़ीसा बीजपुर के आक्रमण
- ( v ) गोलकुंडा तथा बीजपुर के विरुद्ध सैनिक अभियान
- ( vi ) तलिकोटा का युद्ध तथा विजयनगर साम्राज्य का अंत
( i ) पड़ौसी राज्यो से शत्रुता – विजयनगर के शासक सदैव पड़ोसी राज्यो से संघर्ष करते रहे / बहमनी राय से विजयनगर नरेशो का झगड़ा हमेशा होता रहता था । इसमे सम्राज्य की स्तिथि शक्तिहीन बन गईं ।
( ii ) निरकुंश शासक – आधिकांश शासक निरकुंश शासक थे । वे जनता में लोकप्रिय नही बन सके ।
( iii ) आयोग उत्तराधिकारी – कृष्णदेव राय के बाद उसका भतीजा अच्युत राय राजगददी पर बैठा / वह कमजोर शासक था उसकी कमजोरी से गृहयुद्ध छिड़ गया तथा गुटबाजो को प्रोत्साहन मिला ।
( iv ) उड़ीसा बीजपुर के आक्रमण – जिन दिनों विजयनगर साम्राज्य गृहयुद्ध में लिप्त था उन्ही दिनों उड़ीसा के राजा प्रतापरुद्र गजपति तथा बीजापुर के शासक इस्माइल आदिल ने विजयनगर पर आक्रमण कर दिया गजपति हारकर लौट गया पर आदिल ने रायचूर और मगदल के किलो पर अधिकार कर लिया ।
( v ) गोलकुंडा तथा बीजपुर के विरुद्ध सैनिक अभियान – इस अभियान से दक्षिण की मुस्लिम रियासतों ने एक संघ बना लिया । इनमे विजयनगर की सैनिक शक्ति कमजोर हो गई ।
( vi ) तलिकोटा का युद्ध तथा विजयनगर साम्राज्य का अंत – 1565 में यह युद्ध हुआ विजयनगर और बीजापुर, अहमदनगर, गोलकुंडा के बीच हुआ । विजयनगर का नेतृत्व प्रधानमंत्री रामराय ने किया । इस युद्ध में विजयनगर को हार मिली। सेनाओं ने विजयनगर शहर को काफी लूटा जिस कारण विजयनगर कुछ ही सालों में उजड़ गया। और इसी युद्ध को राक्षसी तांगड़ी के युद्ध के नाम से जाना जाता है।
तलिकोटा के युद्ध में विजयनगर के हार का कारण और परिणाम :-
विजयनगर का बढ़ता हस्तक्षेप :
विजयनगर अत्यधिक शक्तिशाली होने के कारण मुस्लिम राज्यों में हस्तक्षेप कर रहा था जो उनको बिल्कुल पसंद नहीं था।
अहमदनगर के साथ दुर्व्यवहार :
युद्ध में विजय नगर ने अहमदनगर के महिलाओं के साथ काफी गंदा व्यवहार किया था।
राम राय की नीति :
रामराय मुस्लिम सुल्तानों को अलग अलग करने की कोशिश कर रहे थे, ताकि कोई ताकत दक्षिण में उनका मुकाबला ना कर सके परंतु सभी मुस्लिम राज्य संगठित होकर विजयनगर को भी हरा दिया।
परिणाम :-
- विजय नगर के लाखों सैनिक मारे गए और काफी धन भी लूटा गया।
- इसमें विजयनगर कुछ वर्षों में ही पतन की ओर चला गया।
- युद्ध के बाद इसका केंद्र दक्षिण से पूर्व की ओर चला गया।
- विजय नगर के लिए दक्षिण में मुस्लिम शक्ती हमेशा के लिए सिरदर्द बनी रही।