महाभारत :-
महाभारत हिन्दुओं का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है , जो स्मृति के इतिहास वर्ग में आता है । यह काव्यग्रंथ भारत का अनुपम धार्मिक , पौराणिक , ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथ हैं ।
विश्व का सबसे लंबा यह साहित्यिक ग्रंथ और महाकाव्य , हिन्दू धर्म के मुख्यतम ग्रंथों में से एक है । इस ग्रन्थ को हिन्दू धर्म में पंचम वेद माना जाता है ।
महाभारत की रचना :-
इतिहासकारों का मानना है कि यह वेद व्यास द्वारा लिखा गया था , लेकिन अधिकांश इतिहासकारों का मानना है कि यह कई लेखकों की रचना है ।
इसमे केवल 8800 श्लोक थे बाद में छंदों की संख्या बढ़कर 1 लाख हो गई है। 1919 में एक महत्वपूर्ण काम शुरू हुआ , वीएस सुथंकर के नेतृत्व में ” एक प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान ” जिन्होंने महाभारत के एक महत्वपूर्ण संस्करण को तैयार करने के लिए समर्थन दिया ।
महाभारत का पुराना नाम जय संहिता था । महाभारत की रचना 1000 वर्ष तक होती रही है ( लगभग 500 BC ) महाभारत से उस समय के समाज की स्थिति तथा सामाजिक नियमों के बारे में जानकारी मिलती है।
महाभारत का समालोचनात्मक संस्करण :-
1919 में संस्कृत भाषा के एक महान विद्वान ( जिनका नाम वी . एस . सुक्थांकर था ) , के नेतृत्व में एक बहुत महत्वकांक्षी परियोजना की शुरुआत हुई ।
इस परियोजना का उद्देश्य था महाभारत नामक महान महाकव्य की विभिन्न जगहों से प्राप्त विभिन्न पांडुलिपियों को इकठ्ठा करके एक किताब का रूप देना ।
बहुत सारे बड़े बड़े विद्वानों ने मिलकर महाभारत का समालोचनात्मक संस्करण ( Edition ) तैयार करने की जिम्मेदारी उठाई । विद्वानों ने सभी पांडुलिपियों में पाए गए श्लोकों की तुलना करने का एक तरीका ढूँढ निकाला , विद्वानों ने उन श्लोको को चुना जो लगभग सभी पांडुलिपियों में लिखे हुए थे ।
इन सब का प्रकाशन लगभग 13000 पन्नो में फैले अनेक ग्रन्थ खण्डों में हुआ । इस परियोजना को पूरा करने में 47 साल लगे ।
इस पूरी प्रक्रिया में दो बातें विशेष रूप से उभरकर आई !
- ( i ) संस्कृत के कई पाठो के अंशो में समानता थी । यह इस बात से ही सपष्ट होता है कि समूचे उपमहाद्वीप में उत्तर में कश्मीर और नेपाल से लेकर दक्षिण में केरल और तमिलनाडु तक सभी पांडू लिपियो में यह समानता देखने मे आई ।
- ( ii ) कुछ शताब्दीयो के दौरान हुए महाभारत के प्रेषण में अनेक क्षत्रिय प्रभेद उभरकर सामने आए ।
बंधुता एवं विवाह
परिवार :-
- परिवार समाज की एक महत्वपूर्ण संस्था थी ।
- एक ही परिवार के लोग भोजन मिल बाँट के करते हैं ।
- परिवार के लोग संसाधनों का प्रयोग मिल बाँट कर करते हैं ।
- परिवार के लोग एक साथ रहते थे ।
- परिवार के लोग एक साथ मिलकर पूजा पाठ करते हैं ।
- कुछ समाजों में चचेरे और मौसेरे भाई बहनों को भी खून का रिश्ता माना जाता ।
पितृवन्शिकता :-
पितृवंशिक से अभिप्राय की पिता की मृत्यु के बाद उसके संसाधनों का हकदार उसका पुत्र का है, इसे पितृवंशिक व्यवस्था कहते हैं ।
परन्तु राजा की म्रत्यु के बाद उसका सिंहासन उसके पुत्र को सौप दिया जाता है । तथा कभी पुत्र न होने पर सम्बधी भाई को उत्तराधिकारी बनाया जाता था ।
विवाह के नियम :-
ब्राह्मणों ने समाज के लिए एक विस्तृत आचारसंहिता तैयार की है ।
लगभग 500 ई० पु० से इन मानदण्डों का संकलन धर्मसूत्र व धर्मशास्त्र नामक संस्कृत ग्रंथो में किया गया । इनमे सबसे महत्वपूर्ण मनुस्मृति थी । जिसका संकलन 200 ई० पु० से 200 ई० के बीच किया गया ।
दिलचस्प बात यह है कि धर्मसूत्र व धर्मशास्त्र विवाह के 8 प्रकारों को अपनी स्वीकृति देती है । इनमे से पहले चार उत्तम मने जाते हैं और बाकियो को निंदित माना गया है । सम्भवतः यह विवाह पद्धतियाँ उन लोगो मे प्रचलित थी जो ब्राह्मणीय नियमो को अस्वीकार करते थे ।
पितृवंशिय समाज मे पुत्र का बहुत महत्व था । पुत्री को अलग प्रकार से देखा जाता था । पुत्री का विवाह गोत्र से बाहर किया जाता तथा कन्यादान पिता का अहम कर्तव्य माना जाता था ।
गोत्र :-
गोत्र एक ब्राह्मण पद्धति जो लगभग 1000 ईसा पूर्व के बाद प्रचलन में आई। इसके तहत लोगों को गोत्र में वर्जित किया जाता थाप्रत्येक गोत्र एक वैदिक ऋषि के नाम पर होता था उस गोत्र के सदस्य ऋषि के वंशज माने जाते थे।
नए नगरो का उद्भव हुआ सामाजिक नियम बदलने लगे । क्रय – विक्रय के लिए लोग नगरो में आते थे । विचारों का आदान – प्रदान होने लगा । इसलिए प्रारंभिक विश्वासो एव व्यवहार पर प्रश्नचिन्ह लगे । इन्ही को चुनौती देने के लिए ब्राह्मणो ने आचार संहिता तैयार की । इसका पालन सभी को करना था ।
स्त्री का गोत्र :-
गोत्र पध्दति 1000 ई० पू० प्रचलन में आई । इसका मुख्य उद्देश्य गोत्र के आधार पर ब्राह्मणों का वर्गीकरण करना था ।
प्रत्येक गोत्र एक वैदिक ऋषि के नाम पर होता है । उस गोत्र के सदस्यों को ऋषि का वंशज माना जाता था ।
गोत्र के नियम :-
सातवाहन राजाओ में यह प्रथा विपरीत थी । सातवाहन राजाओ के नाम से पता लगा कि वहाँ स्त्री को विवाह के बाद भी आपने पिता का गोत्र रखते थे ।
सातवाहन बहुपत्नी प्रथा को मानते थे ।
बहुपत्नी और बहुपति प्रथा :-
बहुपत्नी प्रथा में एक से ज्यादा स्त्रियों से शादी की जाती है | ( ऐसा सातवाहन राजाओ में होता था )
बहुपति प्रथा में एक से अधिक पुरुषों से शादी की जाती है | ( उदाहरण के लिए : द्रोपदी )
क्या माताओं को महत्वपूर्ण समझा जाता था ?
इतिहास में बहुत से ऐसे किस्से हैं जिनसे पता चलता है की 600 ई . पू से 600 ई . के शुरूआती समाज में माताओं को भी महत्वपूर्ण समझा जाता था ।
ऐसा ही एक किस्सा है सातवाहन राजाओं का , सातवाहन राजा अपने नाम से पहले अपनी माता का नाम लगाते थे जिससे यह पता चलता है की माताओं को भी महत्वपूर्ण माना जाता था |
सामाजिक विषमताँए
वर्ण व्यवस्था :-
A . क्षत्रिय :-
- यह समय पड़ने पर युद्ध करते थे ।
- यह राजाओं को सुरक्षा प्रदान करते थे ।
- वेदों को पढ़ना और यज्ञ कराने का कार्य करते थे ।
- यह जनता के बीच न्याय कराने का कार्य करते थे ।
B . ब्राह्मण :-
- यह पुस्तकों का अध्ययन करते थे ग्रंथों का अध्ययन करते थे ।
- वेदों से शिक्षा प्राप्त करते थे ।
- यज्ञ करवाना और यज्ञ करना इनका कार्य था ।
- यह दान दक्षिणा लेते थे वह देते थे ।
C . वैश्य :-
- यह व्यापार करते थे ।
- पशुपालन करते थे ।
- कृषि करना इनका का मुख्य कार्य था ।
- दान दक्षिणा देना इनके मुख्य कारणों में से एक है ।
D . शुद्र :-
यह तीनों वर्गों की सेवा करने का कार्य करते थे इनका मुख्य कार्य इन तीनों की सेवा करने का था ।
इन नियमो का पालन करवाने के लिए व्राह्मण ने दो – तीन नीतियां अपनाई थी ।
- वर्ण व्यवस्था ईश्वरीय देन है ।
- शासको को प्रेरित करना कि वर्ण व्यवस्था लागू कराएँ ।
- जनता को यकीन दिलाना कि उनकी प्रतिष्ठा जन्म पर आधारित है ।
क्या हमेशा क्षत्रिय राजा हो सकते हैं ?
नहीं , यह असत्य है इतिहास में कई ऐसे राजा रहे हैं जो क्षत्रिय नहीं थे ।
मौर्य वंश का संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य जिसने एक विशाल साम्राज्य पर राज किया था बौद्ध ग्रंथों में यह बताया गया है कि वह क्षत्रिय है लेकिन ब्राह्मण शास्त्र में यह कहा गया है कि वह निम्न कुल के हैं ।
सुंग और कण्व मौर्य के उत्तराधिकारी थे जो कि यह माना जाता है कि वह ब्राह्मण कुल से थे ।
इन उदाहरण से हमें यह जात होता है कि राजा कोई भी बन सकता था इसके लिए यह जरूरी नहीं था कि वह क्षत्रिय कुल में पैदा हुआ हो ताकत और समर्थन ज्यादा महत्वपूर्ण था राजा बनने के लिए ।
जाति :-
जहाँ वर्ण केवल 4 थे वहाँ जातियाँ बहुत सारी थी ।
जिन्हें वर्ण में समाहित नही किया उन्हें जातियो में डाल दिया जैसे :- निषाद , सुवर्णकार
जातियाँ कर्म के अनुसार बनती गई । कुछ लोग दूसरे जीविका को आपने लेते थे ।
चार वर्गो के परे : अधीनता ओर सँघर्ष :-
ब्राह्मणों के द्वारा बनाई गई वर्ण व्यवस्था से कुछ लोगो को बाहर रखा गया । इन्होंने कुछ वर्गों को ” अस्पृश्य घोषित किया ।
ब्राह्मण अनुष्ठान को पवित्र काम मानते थे ।
ब्राह्मण अस्पृश्यो से भोजन स्वीकार नही करते थे ।
कुछ काम दूषित मने जाते थे जैसे :- शव का अंतिम संस्कार करना और मृत जानवरो को छूना । इन कामो को करने वाले को चांडाल कहा जाता था ।
चाण्डालों को छूना और देखना भी पाप समझते थे ।
मनुस्मृति के अनुसार समाज में चांडालो की स्थिति :-
- समाज में चांडालो को सबसे नीच समझा जाता था और इनका मुख्य काम शवों को और मृत पशुओं को दफनाने का था।
- गाँव से बाहर रहना ।
- फेके बर्तन का प्रयोग करना ।
- मृत लोगो के कपडे पहनना।
- मृत लोगो के आभूषण पहनना ।
- रात में गाँव – नगरो में चलने की मनाही ।
- अस्पृश्यो को सड़क पर चलते हुए करताल बजाना पड़ता था । ताकि दूसरे उन्हें देखने से बच जाए ।
संसाधन एव प्रतिष्ठा :-
आर्थिक संबंधों के अध्यन से पता लगा की दस , भूमिहीन खेतिहर मजदूर , मछुआरों , पशुपालक , कृषक , मुखिया , शिकारी , शिल्पकार , वणिक , राजा आदि सभी का सामाजिक स्थान इस बात पर निर्भर करता था कि आर्थिक संसाधनों पर उनका नियंत्रण कैसा है ।
सम्पत्ति पर स्त्री , पुरूष के भिन्न अधिकार :-
मनु स्मृति के अनुसार :-
- पिता की मृत्यु के बाद उसकी सम्पत्ति पुत्रों में बाँटी जाती थी।
- ज्येष्ट पुत्र को विशेष हिस्सा दिया जाता था ।
- विवाह के दौरान मिले उपहार पर स्त्री का अधिकार था ।
- यह संपति उसकी संतान को विरासत में मिलती थी ।
- पति का उस पर अधिकार नहीं था ।
- स्त्री पति की आज्ञा के बिना गुप्त धन संचय नही कर सकती थी ।
- उच्च वर्ग की औरत संसाधनों पर अधिकार रखती थी ।
पुरुषो के लिए मनुस्मृति कहती है धन अर्जित करने के 7 तरीके थे :-
- ( i ) विरासत
- ( ii ) खरीद
- ( iii ) विजित करके
- ( iv ) निवेश
- ( V ) खोज
- ( Vi ) कार्य द्वारा
- ( Vii ) सज्जनों द्वारा भेट को स्वीकार करके
स्त्रियों के लिए सम्पति अर्जन के 6 तरीके
( i ) वैवाहिक अग्नि के सामने
( ii ) वधुगमन के समय मिली भेंट
( iii ) स्नेह के प्रतीक के रूप में
( iv ) माता द्वारा दिये गए उपहार
( V ) भ्राता द्वारा दिये गए उपहार
( Vi ) पिता द्वारा दिये गए उपहार
वर्ण एवं संपति के अधिकार :-
- शुद्र के लिए केवल एक जीविका थी →सेवा करना
- लेकिन उच्च वर्गों में पुरुषो के लिए अधिक संभावना थी ।
- ब्राह्मण और क्षत्रिय धनी व्यक्ति थे ।
- बौध्दों ने ब्राह्मणीय वर्ण व्यवस्था की आलोचना की ।
- बौध्दों ने जन्म के आधार पर सामाजिक प्रतिष्ठा को स्वीकार नहीं किया ।
साहित्यक , स्रोतों का इस्तेमाल :-
- किसी भी ग्रन्थ का विश्लेषण करते समय इतिहासकार कई पहलुओ का ध्यान रखते हैं ।
- भाषा = साधारण भाषा या विशेष भाषा
- ग्रंथ का प्रकार = मंत्र या कथा
- लेखक के विषय में ( दृष्टिकोण )
- श्रोताओं का निरीक्षण
- ग्रंथ का रचना काल
- ग्रंथ की विषयवस्तु
भाषा एव विषयवस्तु :-
आख्यान
कहानियाँ
ग्रंथ विषयवस्तु =
उपदेशात्मक
सामाजिक आचार विचार के मानदंड
सदृशता की खोज में बी . बी . लाल के प्रयास :-
1951 – 52 में एक प्रसिद्ध पुरातात्विक और इतिहासकार ( जिनका नाम बी . बी . लाल था ) ने मेरठ जिले ( उत्तरप्रदेश ) के हस्तिनापुर नाम के गांव में खुदाई का काम किया ।
लेकिन जैसा हम किताबों में पढ़ते आएं हैं यह हस्तिनापुर वैसा बिल्कुल नहीं था ।
हालांकि संयोग से इस जगह का नाम भी हस्तिनापुर ही था । बी . बी . लाल जी को यहाँ की आबादी के कुछ सबूत मिले । बी . बी . लाल ने बताया कि , जिस जगह खुदाई की गई वहां से मिट्टी की बनी दीवारों और कच्ची ईंटों के अलावा कुछ भी नहीं मिला ।
और इससे यह बात पता चली की शायद जैसा महाभारत में हस्तिनापुर दिखाया जाता रहा है जिसमे बड़े बड़े महल भी थे लेकिन यहां से ऐसा कुछ नहीं मिला ।
महाभारत एक गतिशील ग्रंथ है , कैसे ?
महाभारत एक गतिशील ग्रंथ है क्योंकि यह हजारों सालों तक लिखा गया है इसमें कई सारे परिवर्तन पिछले कई सालों में आए है इसका अनुवाद भी कई सारी भाषा में अलग अलग हुआ है इसमें कई सारे श्लोक है और यह दुनिया का सबसे बड़ा महाकाव्य है ।