4. भारत में दल और दलीय व्यवस्था (Parties and the Party System in India) || Pol. Science Class 12th Chapter-4 (Book-2) Notes in Hindi || NCERT CBSE

 



🔹 भारतीय नेताओं की स्वतन्त्रता आंदोलन के समय से ही लोकतंत्र में गहरी । प्रतिबद्धता ( आस्था ) थी । इसलिए भारत ने स्वतंत्रता के बाद लोकतंत्र का मार्ग अपनाया जबकि लगभग उसी समय स्वतंत्र हुए कई देशों में अलोकतांत्रिक शासन व्यवस्था कायम हुई । 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू होने के समय देश में अंतरिम सरकार थी । अब संविधान के अनुसार नयी सरकार के लिए चुनाव करवाने थे । 

✳️ चुनाव आयोग :-

🔹 जनवरी 1950 में चुनाव आयोग का गठन किया गया । सुकुमार सेन पहले चुनाव आयुक्त बने ।

✳️ चुनाव आयोग की चुनौतियाँ :-

🔹 देश का आकार बहुत बड़ा था , तथा जनसंख्या अधिक थी । ऐसे में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करवाना कठिन था ।

🔹  चुनाव क्षेत्रों का सीमांकन जरूरी था ।

🔹  मतदाता सूची बनाने के मार्ग में बाधाए । जब पहली मतदाता सूची आई तो उसमें 40 लाख महिलाओं के नाम दर्ज होने से रह गए । 

🔹 अधिकारियों और चुनावकर्मियों को प्रशिक्षित करना । 

🔹 कम साक्षरता के चलते मतदान की विशेष पद्धति के बारे में सोचना ।

🔹 दुबारा सूची बनानी आसान नही थी ।
🔹 मतदाता - 17 करोड़ 
🔹 विधायक - 3200 
🔹 लोकसभा सांसद - 489
🔹 साक्षर मतदाता - 15 % only
🔹 3 लाख लोगों को चुनाव की ट्रेनिंग दी गई ।

🔹 भारत में एक दल का प्रभुत्व दुनिया के अन्य देशों में एक पार्टी के प्रभुत्व से इस प्रकार भिन्न रहा ।

🔹 मैक्सिको में PRI की स्थापना 1929 में हुई , जिसने मैक्सिको में 60 वर्षों तक शासन किया । परन्तु इसका रूप परिपूर्ण तानाशाही का था ।

🔹 बाकी देशों में एक पार्टी का प्रभुत्व लोकतंत्र की कीमत पर कायम हुआ ।

🔹 चीन , क्यूबा और सीरिया जैसे देशों में संविधान सिर्फ एक ही पार्टी को अनुमति देता है ।

🔹  म्यांमार , बेलारूस और इरीट्रिया जैसे देशों में एक पार्टी का प्रभुत्व कानूनी और सैन्य उपायों से कायम हुआ ।

🔹 भारत में एक पार्टी का प्रभुत्व लोकतंत्र एवं स्वतंत्र निष्पक्ष चुनावों के होते हुए रहा है ।

✳️ पहला आम चुनाव :-

🔹 अक्टूबर 1951 से फरवरी 1952 तक प्रथम आम चुनाव हुए । 

🔹 पहले तीन आम चुनावों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का प्रभुत्व रहा ।

🔹 चुनाव अभियान , मतगणना में 6 month लगे । तथा कांग्रेस की जीत हुई ।


🔹 सफल मतदान देखकर आलोचकों का मुँह बन्द हो गया इसकी सफलता ने इतिहास में मिल का पत्थर साबित होकर दिखाया ।

🔹 पहले चुनाव में लोकसभा की 489 सीट में से 364 कांग्रेस ने जीती । भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी 16 सीट लेकर दूसरा स्थान पर आई ।

🔹 इसी के साथ विधानसभा के चुनाव हुए उसमे भी कांग्रेस जीती । तथा कोचीन , मद्रास , उड़ीसा बाद में इन 3 राज्यो में कांग्रेस की सरकार बनी ।

🔹 1957 में केरल में कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार बनी । कांग्रेस को 126 में से 60 सीटे मिली ।




✳️ कांग्रेस के प्रभुत्व का कारण :-

🔹 कांग्रेस पार्टी को स्वाधीनता संग्राम की विरासत हासिल थी | तब के दिनों में यह एक मात्र पार्टी थी जिसका संगठन पुरे भारत में मजबूत था |

🔹 आजादी की विरासत हासिल थी ।

🔹  इस पार्टी में जवाहर लाल नेहरू जैसा लोकप्रिय और करिश्माई नेता था जो चुनाव के समय पार्टी की अगुआई की और पुरे देश का दौरा किया था |

🔹 बाकी पार्टियाँ कांग्रेस पार्टी से ही निकली थी ।

🔹 कांग्रेस एक ऐसी पार्टी थी जो सभी को साथ लेकर चलती थी । जैसे - हिन्दू , मुस्लिम , आमिर , गरीब , वामपंथ , दक्षिणपंथ , नरमपंथी , गरमपंथी , मजदूर , किसान , उद्योगपति आदि ।

🔹 कांग्रेस में विभिन्न वर्गों में हुए विवादों को सुलझा लेती थी ।

🔹  पहले आम चुनाव में 489 सीटों में से 364 सीटें कांग्रेस ने अकेले जीती थी । दुसरे न० पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी विजयी रही जिसने 16 सीटें जीती थी ।

🔹 लगभग सभी राज्यों के चुनावों में कांग्रेस विजयी रही और उसी की सरकार बनी ।

✳️ विपक्षी दलों का उद्भव और लोकतंत्र में उनकी भूमिका :-

🔹 भारत में बहुदलीय लोकतंत्र व्यवस्था है लेकिन यहाँ कई वर्षों तक एक ही दल का प्रभुत्व रहा | आज़ादी के समय भी बहुत से जिवंत विपक्षी पार्टियाँ थी जो स्वतंत्र रूप से चुनाव में भाग ले रही थी ।

🔹  इनमें से कई पार्टियाँ का अस्तित्व 1952 के आम चुनाव के पहले से भी था | इनकी भूमिका 60 और 70 के दशक में महत्वपूर्ण रही है ।

🔹  इन पार्टियों की मौजूदगी ने स्वास्थ्य लोकतंत्र में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दिया है जो लोकतंत्र के लिए जनता को जागरूक किया है ।

🔹  इन दलों की मौजूदगी ने हमरी शासन - व्यवस्था के लोकतान्त्रिक चरित्र को बनाए रखने में निर्णायक भूमिका निभाई है ।

🔹 विपक्षी दलों ने शासक - दल पर अंकुश रखा और बहुधा इन दलों के कारण कांग्रेस पार्टी के अन्दर शक्ति - संतुलन बदला और एक दल के प्रभुत्व को जोरदार चुनौती दी है ।

✳️ सोशलिस्ट पार्टी :-

🔹 कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का गठन खुद कांग्रेस के भीतर 1934 में युवा नेताओं की एक टोली ने किया था । ये नेता कांग्रेस को ज्यादा - से - ज्यादा परिवर्तनकामी और समतावादी बनाना चाहते थे | कांग्रेस पार्टी ने 1948 में अपने पार्टी संविधान में संसोधन किया ताकि कोई कांग्रेस सदस्य दोहरी सदस्यता न ले सके | इससे कांग्रेस के अन्दर के सोशलिस्ट नेताओं को मजबूरन 1948 में सोशलिस्ट पार्टी बनानी पड़ी ।

✳️ सोशलिस्ट विचारधारा के नेताओं द्वारा कांग्रेस की आलोचना :-

🔹 वे कांग्रेस की आलोचना करते थे कि कांग्रेस पूंजीपतियों और जमींदारों का पक्ष ले रही है ।

🔹 समाजवादियों को दुबिधा का सामना करना पड़ा क्योंकि कांग्रेस ने 1955 में घोषणा दर दिया कि उनका लक्ष्य समाजवादी बनावट वाले समाज की रचना करना है ।

🔹  राममनोहर लोहिया ने कांग्रेस से अपनी दुरी बढाई और कांग्रेस की आलोचना की ।

✳️  सोशलिस्ट पार्टी का विभाजन :-

🔹 सोशलिस्ट पार्टी के कई टुकड़े हुए और कुछ मामलों में बहुधा मेल भी हुआ | इस प्रक्रिया में कई समाजवादी दल बने । इन दलों में किसान मजदुर प्रजा पार्टी , जनता पार्टी , प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का नाम है | जयप्रकाश नारायण , अच्युत पटवर्धन , अशोक मेहता , आचार्य नरेन्द्र देव , राममनोहर लोहिया और एस . एम . जोशी समजवादी दलों के नेताओं में प्रमुख थे | मौजूदा दलों में समजवादी पार्टी , जनता दल , राष्ट्रिय जनता दल , जनता दल ( यूनाइटेड ) जनतादल ( सेक्युलर ) पर सोशलिस्ट पार्टी की छाप है ।




✳️ कांग्रेस की स्थापना :-

🔹 कांग्रेस का जन्म 1885 में हुआ था । इसकी स्थापना एक रिटायर्ड अंग्रेज अधिकारी ए० ओ० [ म ने की थी | उस वक्त यह नवशिक्षित , कामकाजी और व्यापारिक वर्गों का एक हित - समूह भर थी | लेकिन 20 वीं सदी में यह एक जानआन्दोलन का रूप ले लिया | धीरे - धीरे यह पार्टी एक जानव्यापी राजनितिक पार्टी का रूप ले लिया और जल्द ही राजनितिक व्यवस्था में कांग्रेस ने अपना दबदबा कायम कर लिया | इसमें सभी विचारधारा के लोग जैसे क्रन्तिकारी , शांतिवादी , कंजरवेटिव और रेडिकल , गरमपंथी , नरमपंथी , दक्षिणपंथी वामपंथी और अनेक राजनितिक विचारधारा के लोग शामिल थे और राष्ट्रिय आन्दोलन में भाग लेते थे |

✳️ कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया :-

🔹 रूस के बोल्वेशिक क्रांति से प्रेरित होकर 1920 के दशक में भारत के विभिन्न हिस्सों में साम्यवादी - समूह उभरे |

🔹 1935 से साम्यवादियों ने कांग्रेस के दायरे में रहकर कार्य किया | कांग्रेस से ये साम्यवादी 1941 के दिसंबर में अलग हुए । इस समय साम्यवादियों ने नाज़ी जर्मन के खिलाफ लड़ रहे ब्रिटेन को समर्थन देने का फैसला किया |

✳️ विचारधारा :-

🔹 अन्य गैर - कांग्रेस पार्टियों की तुलना में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के पास सुचारू मिशिनरी , कैडर और समर्पित कार्यकर्त्ता मौजूद थे | इस पार्टी का मानना था कि देश जो 1947 में आजाद हुआ है वह सच्ची आजादी नहीं है | इस विचार के साथ पार्टी तेलंगाना में हिंसक विद्रोह को बढ़ावा दिया | साम्यवादी अपनी बात के पक्ष में जनता का समर्थन हासिल नहीं कर सके और इन्हें सशस्त्र सेनाओं द्वारा दबा दिया गया | 1951 में साम्यवादियों ने हिंसक क्रांति का रास्ता छोड़ दिया और और आने वाले ऍम चुनाओं में भाग लिया | पहले आम चुनाओं में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने 16 सीटें जीती । वह सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के रूप में उभरी | इस दल को ज्यादा समर्थन आन्ध्र प्रदेश , पश्चिम बंगाल , बिहार और केरल में मिला | इस पार्टी के प्रमुख नेताओं में ए . के . गोपालन , एस . ए . डांगे नम्बूदरीपाद , पी . सी . जोशी , अजय घोष और पी . सुन्दरैया के नाम लिए जाते है ।



0 comments: