❇️ सत्ता के वैकल्पिक केन्द्र :-
🔹 सोवियत संघ के विभाजन के बाद विश्व में अमेरिका का वर्चस्व कायम हो गया है । कुछ देशों के संगठनों का उदय सत्ता के वैकल्पिक केन्द्र के रूप में हुआ है । ये संगठन अमरीका के प्रभुत्व को सीमित करेगें क्योंकि ये संगठन राजनीतिक तथा आर्थिक रूप से शक्तिशाली हो रहे है ।
❇️ क्षेत्रीय संगठन :-
🔹 क्षेत्रीय संगठन प्रभुसत्ता सम्पन्न देशों के स्वैच्छिक समुदायों की एक संधि है , जो निश्चित क्षेत्र के भीतर हो तथा उन देशों का सम्मिलित हित हो जिनका प्रयोजन उस क्षेत्र के संबंध में आक्रामक कार्यवाही न हो ।
❇️ संगठन :-
- यूरोपीय संघ
- आसियान
- ब्रिक्स
- सार्क
❇️ देश :-
- चीन
- जापान
- भारत
- इजराइल
- रूस
❇️ क्षेत्रीय संगठन के उद्देश्य :-
- सदस्य देशों में एकता की भावना का मजबूत होना ।
- क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा ।
- सदस्यों के बीच आपसी व्यापार को बढ़ाना ।
- क्षेत्र में शांति और सौहार्द को बढ़ाना ।
- विवादों को आपसी बातचीत द्वारा निपटाना ।
❇️ मार्शल योजना :-
🔹 द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूरोप को बहुत नुकसान पहुँचा और अमरीकी खेमे के पश्चिमी यूरोप की अर्थव्यवस्था को दुबारा खड़ा करने के लिए अमरीकी ने जबरदस्त मदद की । जिसे मार्शल योजना कहा जाता है ।
🔹 मार्शल योजना के तहत 1948 में यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन की स्थापना हुई ।
🔹 1949 में यूरोपीय परिषद – राजनीतिक मामलो की देखरेख ।
🔹 1957 में यूरोपीय इकनॉमिक कम्युनिस्ट का गठन ।
🔹 अतः में 1992 में यूरोपीय संघ बना । यूरोपीय संघ की अपनी विदेश नीति , साँझी मुद्रा , सुरक्षा नीति आदि है ।
🔹 यूरोपीय संघ आर्थिक सहयोग वाली संस्था से बदलकर ज्यादा से ज्यादा राजनैतिक रूप लेता गया ।
❇️ यूरोपीय संघ का गठन :-
🔹 यूएसएसआर के विघटन ने 1992 में यूरोपीय संघ के गठन का नेतृत्व किया जिसने एक आम विदेशी और सुरक्षा नीति , न्याय पर सहयोग और एकल मुद्रा के निर्माण की नींव रखी ।
❇️ यूरोपीय संघ के गठन के उद्देश्य :-
- एक समान विदेश व सुरक्षा नीति ।
- आंतरिक मामलों तथा न्याय से जुड़े मामलों पर सहयोग ।
- एक समान मुद्रा का चलन ।
- वीजा मुक्त आवागमन ।
❇️ यूरोपीय संघ की विशेषताएँ :-
🔹 यूरोपीय संघ समय के साथ – साथ एक आर्थिक संघ से तेजी से राजनैतिक रूप से विकसित हुआ है ।
🔹 यूरोपीय संघ एक विशाल राष्ट्र – राज्य की तरह कार्य करने लगा है ।
🔹 इसका अपना झंडा , गान , स्थापना दिवस और अपनी एक मुद्रा है ।
🔹अन्य देशों से संबंधों के मामले में इसने काफी हद तक साझी विदेश और सुरक्षा नीति बना ली है ।
🔹 यूरोपीय संघ का झंडा 12 सोने के सितारों के घेरे के रूप में वहाँ के लोगों की पूर्णता , समग्रता , एकता और मेलमिलाप का प्रतीक है ।
✳️ यूरोपीय संघ को ताकतवार बनाने वाले कारक या विशेषताएँ :-
🔹 आर्थिक रूप से , यूरोपीय संघ दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है । 2005 में 12 ट्रिलियन डॉलर से अधिक की जीडीपी थी ।
🔹 राजनीतिक और राजनयिक आधार पर , ब्रिटेन और फ्रांस , यूरोपीय संघ के दो सदस्य संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य हैं ।
🔹 रक्षा क्षेत्र में , यूरोपीय संघ की संयुक्त सशस्त्र सेना दुनिया में दूसरी सबसे बड़ी सेना है ।
🔹 इसकी मुद्रा यूरो , अमरीकी डॉलर के प्रभुत्व के लिए खतरा बन गई है । विश्व व्यापार में इसकी हिस्सेदारी अमेरिका से तीन गुना ज्यादा है ।
🔹 इसकी आर्थिक शक्ति का प्रभाव यूरोप , एशिया और अफ्रीका के देशों पर है ।
🔹 यह विश्व व्यापार संगठन के अंदर एक महत्वपूर्ण समूह के रूप में कार्य करता है ।
🔹 इसका दो सदस्य देश ब्रिटेन और फ्रांस सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य है । इसके चलते यूरोपीय संघ अमरीका समेत सभी राष्ट्रों की नीतियों को प्रभावित करता है ।
🔹 यूरोपीय संघ का सदस्य देश फ्रांस परमाणु शक्ति सम्पन्न है ।
🔹 अधिराष्ट्रीय संगठन के तौर पर यूरोपीय संघ आर्थिक , राजनैतिक और सामाजिक मामलों में दखल देने में सक्षम है ।
❇️ यूरोपीय संघ की कमजोरियाँ :-
🔹 इसके सदस्य देशों की अपनी विदेश और रक्षा नीति है जो कई बार एक – दूसरे के खिलाफ भी होती हैं ।
🔹 जैसे – इराक पर हमले के मामले में ।
🔹 यूरोप के कुछ हिस्सों में यूरो मुद्रा को लागू करने को लेकर नाराजगी है ।
🔹 डेनमार्क और स्वीडन ने मास्ट्रिस्स संधि और साझी यूरोपीय मुद्रा यूरो को मानने का विरोध किया ।
🔹 यूरोपीय संघ के कई सदस्य देश अमरीकी गठबंधन में थे ।
🔹 ब्रिटेन यूरोपीय संघ से जून 2016 में एक जनमत संग्रह के द्वारा अलग हो गया है ।
❇️ दक्षिण – पूर्व एशियाई राष्ट्रों का संगठन ( आसियान ) :-
🔹 अगस्त 1967 में इस क्षेत्र के पाँच देशों इंडोनेशिया , मलेशिया , फिलिपींस , सिंगापुर ओर थाईलैंड ने बैंकाक घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर करके ‘ आसियान ‘ की स्थापना की ।
🔹 बाद में ब्रुनई दारूस्लाम , वियतनाम , लाओस , म्यांमार ओर कंबोडिया को शामिल किया गया और इनकी सदस्या संख्या 10 हो गई ।
❇️ आसियान के मुख्य उद्देश्य :-
🔹 सदस्य देशों के आर्थिक विकास को तेज करना ।
🔹 इसके द्वारा सामाजिक और सांस्कृतिक विकास हासिल करना ।
🔹 कानून के शासन और संयुक्त राष्ट्र संघ के नियमों का पालन करके क्षेत्रीय शांति और स्थायित्व को बढ़ावा देना ।
❇️ आसियान शैली :-
🔹 अनौपचारिक , टकरावरहित और सहयोगात्मक मेल – मिलाप का नया उदाहरण पेश करके आसियान ने काफी यश कमाया है । इसे ही ‘ आसियान शैली ‘ कहा जाने लगा ।
❇️ आसियान के प्रमुख स्तंभ :-
🔶 आसियान सुरक्षा समुदाय क्षेत्रीय विवादों को सैनिक टकराव तक न ले जाने की सहमति पर आधारित है ।
🔶 आसियान आर्थिक समुदाय का उद्देश्य आसियान देशों का साझा बाजार और उत्पादन आधार तैयार करना तथा इस क्षेत्र के सामाजिक और आर्थिक विकास में मदद करना है ।
🔶 आसियान सामाजिक सांस्कृतिक समुदाय का उद्देश्य है कि आसियान देशों के बीच टकराव की जगह बातचीत और सहयोग को बढ़ावा दिया जाए ।
❇️ आसियान का विजन दस्तावेज 2020 :-
🔹 आसियान तेजी से बढ़ता हुआ एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय संगठन है । इसके विजन दस्तावेश 2020 में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में आसियान की एक बहिर्मुखी भूमिका को प्रमुखता दी गई है । आसियान द्वारा अभी टकराव की जगह बातचीत को बढ़ावा देने की नीति से ही यह बात निकली है ।
❇️ आसियान क्षेत्रीय मंच :-
🔹 1994 में आसियान क्षेत्रीय मंच की स्थापना की गई । जिसका उद्देश्य देशों की सुरक्षा और विदेश नीतियों में तालमेल बनाना है ।
❇️ आसियान की उपयोगिता या प्रासंगिकता :-
🔹 आसियान की मौजूदा आर्थिक शक्ति खासतौर से भारत और चीन जैसे तेजी से विकसित होने वाले एशियाई देशों के साथ व्यापार और निवेश के मामले में प्रदर्शित होती है ।
🔹 आसियान ने निवेश , श्रम और सेवाओं के मामले में मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाने पर भी ध्यान दिया है । अमरीका तथा चीन ने भी मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाने में रूचि दिखाई है ।
❇️ आसियान और भारत :-
🔹 1991 के बाद भारत ने ‘ पूरब की ओर देखो ‘ की नीति अपनाई है । भारत ने आसियान के दो सदस्य देशों सिंगापुर और थाईलैंड के साथ मुक्त व्यापार का समझौता किया है ।
🔹 भारत आसियान के साथ भी मुक्त व्यापार संधि करने का प्रयास कर रहा है । आसियान की असली ताकत अपने सदस्य देशो , सहभागी सदस्यों और बाकी गैर – क्षेत्रीय संगठनों के बीच निरंतर संवाद और परामर्श करने की नीति में है ।
🔹 यह एशिया का एकमात्र ऐसा संगठन है जो एशियाई देशों और विश्व शक्तियों को राजनैतिक और सुरक्षा मामलों पर चर्चा के लिए मंच उपलब्ध कराता है ।
🔹 हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री ने आसियान देशों की यात्रा की तथा विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर समझौते किए तथा पूर्व की ओर देखो नीति के स्थान पर पूर्वोत्तर कार्यनीति ( एक्ट ईस्ट पॉलिसी ) की संकल्पना प्रस्तुत की ।
🔹 इसी के अंतर्गत वर्ष 2018 के गंणतत्र दिवस समारोह में आसियान देशों के राष्ट्रध्यक्षों को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था ।
❇️ SAARC (सार्क) :-
🔹 सार्क के पूरा नाम दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन ( South Asian association for regional cooperation ) है ।
🔹 सार्क की स्थापना 8 दिसंबर 1985 को हुई थी । सार्क की स्थापना के समय भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, मालदीव, श्रीलंका यह 7 देश शामिल थे ।
🔹 बाद में इसमे अफगानिस्तान शामिल हुआ । इसका मुख्यालय काठमांडू ( नेपाल ) में है ।
❇️ SAARC (सार्क) का उद्देश्य :-
- दक्षिण एशिया के देशों में जनता के विकास एवं जीवन स्तर में सुधार लाना ।
- आत्मनिर्भरता का विकास ।
- आर्थिक विकास करना ।
- सांस्कृतिक एवं सामाजिक विकास करना ।
- आपसी सहयोग ।
- आपसी विवादों का निपटारा ।
- आपसी विश्वास बढ़ाकर व्यापार को बढ़ावा देना ।
❇️ पूरब की ओर देखो नीति :-
🔹 भारत ने 1991 से पूरब की ओर देखो नीति अपनायी । इससे पूर्वी एशिया के देशों जैसे आसियान , चीन जापान और दक्षिण कोरिया से उसके आर्थिक संबंधों में बढ़ोतरी हुई ।
❇️ चीन का विकास :-
🔹 1949 की क्रांति के द्वारा चीन में साम्यवादी शासन की स्थापना हुई । शुरू में यहाँ साम्यवादी अर्थव्यवस्था को अपनाया गया था । लेकिन इसके कारण चीन को निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ा
🔹 चीन ने समाजवादी मॉडल खड़ा करने के लिए विशाल औद्योगिक अर्थव्यवस्था का लक्ष्य रखा । इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए अपने सारे संसाधनों को उद्योग में लगा दिया ।
🔹 चीन अपने नागरिको को रोजगार , स्वास्थ्य सुविधा और सामाजिक कल्याण योजनाओं का लाभ देने के मामले में विकसित देशों से भी आगे निकल गया लेकिन बढ़ती जनसंख्या विकास में बाधा उत्पन्न कर रही थी ।
🔹 कृषि परम्परागत तरीकों पर आधारित होने के कारण वहाँ के उद्योगों की जरूरत को पूरा नहीं कर पा रही थी ।
❇️ चीन में सुधारों की पहल :-
🔹 चीन ने 1972 में अमरीका से संबंध बनाकर अपने राजनैतिक और आर्थिक एकांतवास को खत्म किया ।
🔹 1973 में प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई ने कृषि , उद्योग , सेवा और विज्ञान – प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आधुनिकीकरण के चार प्रस्ताव रखे ।
🔹 1978 में तत्कालीन नेता देंग श्याओपेंग ने चीन में आर्थिक सुधारों और खुलेद्वार की नीति का घोषणा की ।
🔹 1982 में खेती का निजीकरण किया गया ।
🔹 1998 में उद्योगों का निजीकरण किया गया । इसके साथ ही चीन में विशेष आर्थिक क्षेत्र ( स्पेशल इकॉनामिक जोन- SEZ ) स्थापित किए गए ।
🔹 चीन 2001 में विश्व व्यापार संगठन में शामिल हो गया । इस तरह दूसरे देशों के लिए अपनी अर्थव्यवस्था खोलने की दिशा में चीन ने एक कदम और बढ़ाया हैं ।
❇️ चीनी सुधारों का नकारात्मक पहलू :-
- वहाँ आर्थिक विकास का लाभ समाज के सभी सदस्यों को प्राप्त नहीं हुआ ।
- पूँजीवादी तरीकों को अपनाए जाने से बेरोजगारी बढ़ी है ।
- वहाँ महिलाओं के रोजगार और काम करने के हालात संतोषजनक नहीं है ।
- गाँव व शहर के और तटीय व मुख्य भूमि पर रहने वाले लोगों के बीच आय में अंतर बढ़ा है ।
- विकास की गतिविधियों ने पर्यावरण को काफी हानि पहुँचाई है ।
- चीन में प्रशासनिक और सामाजिक जीवन में भ्रष्टाचार बढ़ा ।
✳️ चीन के साथ भारत के संबंध : विवाद के क्षेत्र में :-
🔹 1950 में चीन द्वारा तिब्बत को हड़पने तथा भारत चीन सीमा पर बस्तियाँ बनाने के फैसले से दोनों देशों के संबंध एकदम बिगड़ गये ।
🔹 चीन ने 1962 में लद्दाख और अरूणचल प्रदेश पर अपने दावे को जबरन स्थापित करने के लिए भारत पर आक्रमण किया ।
🔹 चीन द्वारा पाकिस्तान को मदद देना ।
🔹 चीन भारत के परमाणु परीक्षणों का विरोध करता है ।
🔹 बांग्लादेश तथा म्यांमार से चीन के सैनिक संबंध को भारतीय हितो के खिलाफ माना जाता है ।
🔹 संयुक्त राष्ट्र संघ ने आतंकी संगठन जैश – ए – मुहम्मद पर प्रतिबंध लगाने वाले प्रस्ताव को पेश किया । चीन द्वारा वीटो पावर का प्रयोग करने से यह प्रस्ताव निरस्त हो गया ।
🔹 भारत ने अजहर मसूद के आतंवादी घोषित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ में प्रस्ताव पेश किया , जिस पर चीन ने वीटो पावर का प्रयोग किया ।
🔹 चीन की महत्वाकांक्षी योजना Ones Belt One Road , जो कि POK से होती हुई गुजरेगी , उसे भारत को घेरने की रणनीति के तौर पर लिया जा रहा है ।
🔹 वर्ष 2017 में भूटान के भू – भाग , परन्तु भारत के लिए सामरिक रूप से अत्यन्त महत्वपूर्ण डोकलाम पर अधिपत्य के दावे को लेकर दोनों देशों के मध्य लंबा विवाद चला जिससे दोनों देशों के मध्य संबंध तनावपूर्ण हो गये । परंतु इस विवाद के समाधान के लिए भारत के धैयपूर्ण प्रयासों और भारत के रूख को वैश्विक स्तर पर सराहा गया ।
✳️ चीन के साथ भारत के संबंध : सहयोग का दौर ( क्षेत्र ) :-
🔹 1970 के दशक में चीनी नेतृत्व बदलने से अब वैचारिक मुद्दों की जगह व्यावहारिक मुद्दे प्रमुख हो रहे है ।
🔹 1988 में प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने चीन की यात्रा की जिसके बाद सीमा विवाद पर यथास्थिति बनाए रखने की पहल की गई ।
🔹 दोनों देशों ने सांस्कृतिक आदान – प्रदान , विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में परस्पर सहयोग और व्यापार के लिए सीमा पर चार पोस्ट खोलने हेतु समझौते किए गए है ।
🔹 1999 से द्विपक्षीय व्यापार 30 फीसदी सालाना की दर से बढ़ रहा है । विदेशों में ऊर्जा सौदा हासिल करने के मामलों में भी दोनों देश सहयोग द्व रा हल निकालने पर राजी हुए है ।
🔹 वैश्विक धरातल पर भारत और चीन ने विश्व व्यापार संगठन जैसे अन्य अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संगठनों के संबंध में एक जैसी नीतियाँ अपनायी है ।